DAINIK JEEVAN ME POORN AATM SURAKSHA HETU - POORN PHETKARINI APARAJITA PRAYOG
Leaves are all dead on the ground, Try to keep those that the oak is keeping…..
Robert frost की ये पंक्तियााँ हमेशा से मझ ु े बहुत प्रेरणादायक लगती हैं.....हो सकता है आप इन्हें पढ़ें और सोचें की इनमें ऐसा क्तिशेष क्या है???....मगर मेरे क्तप्रय भाइयों और बहनों इन पंक्तियों को समझोगे तो पता चलेगा की इनमें जीिन का सार क्तनक्तहत है......इनका शाक्तददक अथथ है“ जो समय बीत गया उसका अथथ है िो काल की बक्तल चढ़ चक ु ा है, मगर अभी के जो पल तम्ु हारे हाथ में हैं िो जीिन है, इसी को जी लो क्योंक्तक जीिन में कुछ भी शास्ित नहीं है....सब कुछ पररितथ न के अधीन है क्तजसमें के िल और के िल पररितथ न ही अपररितथ नीय है पर इसके क्तिपरीत समय
क्तनक्तिथघ्न प्रिाक्तहत होने िाली जीिंत नदी के समान है.....पानी की एक बूदं भी लौटकर क्तकसी के पास िाक्तपस नहीं आएगी.....भूत क्तनशाना साधे बाण के समान है और भक्तिष्य तरकश में रखे बाण के समान ....के िल ितथ मान ही एक ऐसा बाण है क्तजसे हम उपयोग में ला सकते हैं और इस बाण से जो लक्ष्य साधने की क्षमता रखते हैं, िो ही आनंद को प्राप्त कर सकते हैं......” हैं ना कमाल की पंक्तियााँ और आज के हमारे इस लेख से भी इनका बहुत लेना देना है क्योंक्तक हममें से हर क्तकसी ने जीिन के हर अच्छे बरु े पहलु को देखा है पर जो तकलीफें हमने सतकथता की कमी के कारण झेली हैं इस प्रयोग को करके हम कम से कम उन क्तदक्कतों से तो बच सकते हैं.....हैं ना !! इस बात से तो आप सब सहमत होंगें की जीिन पल प्रक्तत पल बदलता है पर ये जरूरी नहीं होता ही हर बदलाि अच्छाई के क्तलए हो, जैसे हम आज कल की अपनी क्तदनचयाथ को ही लेते हैं.....हम सब इतने भौक्ततकिादी हो चक ु े हैं की जीिन की नदी क्तकस ओर बह रही है इसका ज्ञान ही नहीं.... .....यह क्तबलकुल सत्य कथन है की जीिन एक बहती नदी है, क्तजसके जीिन और मत्ृ यु दो क्तकनारे हैं और दोनों क्तकनारे अपनी-अपनी जगह पर क्तस्थर हैं पर सतकथता की कमी के कारण जानते बझ ु ते एक क्तकनारे को दस ु रे क्तकनारे के साथ बदल देना तो कोई समझदारी नहीं..... क्तकतनी लडक्तकयााँ प्रक्ततक्तदन बलात्कार या क्तफर उनके साथ हुई घक्तटया छे ड़छाड़ के कारण आत्म हत्या कर लेती हैं और यक्तद दभु ाथ ग्यिश कोई ऐसा
ना करे तो हमारा समाज उससे सख ु चैन से जीने का अक्तधकार छीन लेता है, क्तकतनी मासूम छोटी-छोटी बक्तच्चयां घर से स्कूल तो जाती हैं मगर िाक्तपस नहीं आती, छोटे बच्चे खेलने के क्तलए घर से बहार क्तनकलते हैं मगर लौट कर नहीं आते....हम आज ऐसे समाज में जी रहे हैं जहााँ स्त्री या छोटे बच्चे तो दरू की बात रही परुु ष तक सरु क्तक्षत नहीं हैं......घर से ओक्तफस के क्तलए क्तनकलेंगे तो रास्ते में कब क्या घक्तटत हो जाए कोई नहीं कह सकता.... आम आदमी को ऐसी घटनाए ाँ क्तिचक्तलत तो करती हैं पर िो उनके क्तिरुद्ध कोई ठोस कदम नहीं उठाता.... १)पर यहााँ सोचने िाली बात ये है की ऐसी त्रासक्तदयााँ सभ्य समाज में क्यों घक्तटत होती हैं??? २)क्या हम अपने घर की बहु बेक्तटयों और बच्चो को उक्तचत सरु क्षा प्रदान कर रहे हैं??? ३) क्या हम खदु अपनी आत्म रक्षा करने में इतने सक्षम हैं की हम अपने पररिार और क्तफर समाज को सरु क्तक्षत कर सकें ??? ......क्तकतने ही जक्तटल सिाल क्तकन्तु हर सिाल का एक साधारण जिाब “ नहीं .......a big NO “ कारण हमारी आत्म कमज़ोरी जो भतु , क्तपशाच और चोरों के समान ऐसे दष्टु लोगों को ना के िल पनपाती है बक्तकक उन्हें रृष्ट-पष्टु होने के क्तलए एक उक्तचत िातािरण भी प्रदान करती है.....पर तंत्र कहता है ऐसी कोई समस्या नहीं है क्तजसका समाधान ना हो......
मैं जानती हाँ ये लेख तंत्र पर के क्तन्ित ना होकर समाज पर है पर इसका समाधान कहीं ना कहीं तंत्र में ही क्तनक्तहत है क्योंक्तक तंत्र एक ऐसे अचूक हक्तथयार के समान है क्तजसका क्तजस क्तदशा में उपयोग क्तकया जाएगा क्तबलकुल प्रक्ततक्तिया के रूप में ये िैसे ही कायथ करेगा.....इसीक्तलए हम आज ये जानेंगे की सदगरुु देि ने कै से तंत्र से आत्म रक्षा करने का क्तिधान समझाया है...... इस प्रयोग को आपके घर का कोई भी सदस्य कर सकता है, यहााँ तक की बच्चे भी क्योंक्तक यह क्तिधान उसी के क्तलए कायथ करेगा क्तजसके नाम का संककप लेकर इसको क्तकया जाएगा और एक बार इसे करने के बाद आप जब भी घर से बाहर जाए ाँ इस मन्त्र को मात्र ५१ या १०८ बार पढ़ लें क्तजसके आप घर से बाहर जाने तक से अपने घर सकुशल लौटने तक पूरी तरह हर पररक्तस्थक्तत से सरु क्तक्षत रहेंगे..... प्रयोग विवध क्तकसी भी मंगलिार की मध्य रात्री को लाल िस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठ जाए ाँ और महु ं दक्तक्षण की ओर हो. पणू थ गरुु पूजन,गणपक्तत ि भैरि पूजन संपन्न कर सामने भूक्तम पर एक मैथुन चि का क्तनमाथ ण कर उसके मध्य में जहााँ क्तबदं ु होता है िहााँ एक सपु ारी स्थाक्तपत कर लें और उस मैथुन चि के दाक्तहने अथाथ त आपके बायीं तरफ एक सरसों तेल का दीपक प्रज्िक्तलत कर लें और सपु ारी पर हकदी क्तमक्तित क्तसन्दरू अक्तपथत कर दें.और इसके बाद रुिाक्ष,मूंगा या काली हकीक माला से क्तनम्न मंत्र की ५१ माला जप कर लें ये
पूर्ण अपराविता फे त्काररर्ी मंत्र है जो आक्रमर् और सुरक्षा एक साथ करता है.तंत्र में फे त्काररणी साधना का अपना महत्त्ि है और मझ ु े मयंक बताते थे की उन्होंने सदगरुु देि से इस मंत्र की बहुत प्रसंशा सनु ी है और सदगुरुदेि लगभग हर क्तशक्तिर में १९९५ से ९८ तक इसे साधकों को ५ क्तमनट क्तनत्य करने को कहते रहे हैं. ये अपने आप में अत्यक्तधक तीक्ष्ण मंत्र है. मंत्र -
ह्लीं फूूं ह्लीं HLEEM PHOOM HLEEM जप समाक्तप्त के पश्चात आप सदगरुु देि और मााँ फे त्काररणी से पूणथ सफलता की प्राथथ ना कर जप समक्तपथत कर दें और आसन के नीचे एक आचमनी जल अक्तपथत कर उठ जाए ाँ और दस ु रे क्तदन उस मैथुन चि को साफ़ पानी से साफ़ कर िहााँ थोड़ी सी गग्ु गल ु धपु प्रज्िक्तलत कर दें.और सपु ारी को क्तकसी क्तनजथ न स्थान पर अक्तपथत कर दें और क्तकसी कन्या को दक्तक्षणा और क्तमष्ठान की भेट दे दें. भक्तिष्य में भी क्तनत्य प्रक्तत के जीिन में ५ क्तमनट इस मंत्र का जप करना अनक ु ू लता देता है. (POORN BADHA NIVARAK DHOOMAVATI NRISINH PRAYOG)
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. कइ बार हम देखते है की पररवार मे ऄचानक से ववववध प्रकार की बाधाए और समस्याए अने लगती है. चाहे वह पररवार मे मदभेद हो या रोगग्रस्त रहना हो या फिर शत्रुओ के षड्यंत्र हो. और जब एक का समाधान वनकला जाता है तब ऄनेको समस्या वापस से सामने अ जाती है.
आस प्रकार के वातावरण मे व्यवि का जीवन ऄत्यवधक दुखमय हो जाता है की अवखर आन समस्याओ का समाधान फकस प्रकार से फकया जाए. आस प्रकार की समस्याए सामने अने का कारण व्यवि के ग्रह दोष, वास्तु दोष, कमम दोष तथा तंत्र प्रयोग भी हो सकता है. जब व्यवि आस प्रकार की समस्याओ से ग्रस्त हो जाए तो ईसे देवी शवि का सहारा लेना ही चावहए. जब हमारे पास हमारे हमारी साधनाओ की शवि है तो हम फकसी भी प्रकार की बाधा को दूर कर ही सकते है. जरुरत है श्रद्धा की, ववश्वास की और सदगुरुदेव मे समपमण भावना की. यह प्रयोग महाववद्या मााँ धूमावती तथा नृससह देव का सायुज्ज प्रयोग है. देवी धूमावती वनत्यकल्याणमइ है. तथा ऄपने साधको को हमेशा ऄभीष्ट प्रदान करती है. साधको की बाधाओ का शमन कर ईनका कल्याण करती है. दूसरी तरि भगवान नृससह समस्त षड्यंत्रो का नाश कर साधको पर अइ अितो तथा जीवन की न्यूनता को दूर करते है. यह प्रयोग आस प्रकार ऄपने अप मे ऄत्यवधक महत्वपूणम प्रयोग है. आस प्रयोग को साधक फकसी भी फदन शुरू कर सकता है समय रात्री काल मे १० बजे के बाद का रहे. फदशा पूवम रहे. साधक को लाल वस्त्र धारण करने चावहए. लाल असान पर बैठना चावहए. साधक ऄपने सामने देवी धूमावती तथा भगवन नृससह का वचत्र स्थावपत कर तेल का दीपक लगे तथा समस्त बाधाओं की वनवृवि के वलए प्राथमना करे . ईसके बाद मूंगा माला से साधक वनम्न मंत्र की २१ माला जाप करे . धूं धूं समस्त बाधा वनवारणाय ससहमुखाय िट् साधक यह क्रम ७ फदन तक करे ईसके बाद माला को प्रवावहत कर दे. साधक को योग्य पररणाम साधना काल मे ही फदखने शुरू हो जाते है. DIVINE WEAPONS SUDARSHAN CHAKRA SADHNA प्राचीन मुख्य १०८ ववज्ञान मे कइ ऐसे ववज्ञान है वजसके बारे मे सामान्यजन को पता ही नहीं है. ऐसा ही एक ववज्ञान जो की प्रचलन मे रहा वो था युद्ध ववज्ञान. आस ववज्ञान के ऄंतगमत व्यवि को ऄपनी शवि और सामर्थयम बढा कर फकस प्रकार से अत्मरक्षण तथा पर जन रक्षण कर सके आसकी वशक्षा दी जाती थी. साथ ही साथ शश्त्त्रो की तालीम भी दी जाती थी जो की सहायक रूप मे शवि संचार का कायम करते है. आस ववज्ञान के ऄंतगमत ये भी बताया जाता था की व्यवि फकस प्रकार से भूवम तथा वायु
मे वनवहत शवि को संचाररत कर के युद्ध कर सकता है. आस ववज्ञान का ही बौद्ध काल मे ववस्तरण हुअ वजसमे कइ प्रकार नवोन्मेष कर माशमलअटम अफद ववववध ज्ञान कइ देशो मे ऄमल मे अया. आससे यह जाना जा सकता है की ईस समय वजव तथा भौवतक ववज्ञान का ववशेषतम ज्ञान हमारे ऋवषयो के पास था. जब आसी ववज्ञान को तंत्र पक्ष से जोडा गया तो कइ िंत्र पद्धवतया ऄमल मे अइ वजनका ईद्देश्त्य युद्ध के दौरान ववजय श्री के वलए फकया जा सके . सैन्य स्तम्भन, सैन्य मारण, राज्य मोवहनी, राजा वशीकरण जैसे प्रयोगों को ऄमल मे लाया गया. साथ ही साथ सब से ऄत्यवधक महत्वपूणम जो साधनाओ का प्रचार हुअ वो थी ऄस्त्र साधनाए. हमारे शास्त्रों मे ईल्लेख वमलता है की ववववध ऄस्त्रों का प्रयोग युद्ध मे बराबर होता था, ऄवि, पावका, वरुण, नाग, ऄघोर, ब्रम्हा अफद वववभभन ऄस्त्रों के बारे मे वववरण वमलता है. आन सभी ऄस्त्रों को साधनाओ के माध्यम से अज भी प्राप्त फकया जा सकता है. देवी देवताओ को वसद्ध कर ईनसे ऄस्त्र प्राप्त करने के वववरण हमारे ग्रंथो मे वमलते है. आसी प्रकार ववष्णु भगवान का ऄस्त्र सुदशमनचक्र है. आन ऄस्त्रों को प्राप्त करने की साधना ऄत्यवधक कठोर तथा श्रमसाध्य है तथा आसमें कइ साल का समय साधक को लग सकता है. लेफकन आन ऄस्त्रों से सबंवधत कइ ववववध लघु प्रयोग भी है. वजससे देवी देवता प्रसन्न हो कर ऄपने ऄस्त्रों को साधक के पास भेज कर ईनका रक्षण करने की अज्ञा देते है. लेफकन यह दुष्कर प्रयोग बहोत ही मुवश्त्कल से प्राप्त होते है, यदा कदा मंत्रो का वववरण भी वमल जाए लेफकन सबंवधत प्रफक्रयाए वमलना मुवश्त्कल ही है. सदगुरुदेव ने ऄपने कइ सन्यासी वशष्यों को आन प्रफक्रयाओ का ज्ञान फदया है. यह हमारा सौभाग्य है की हमारे वररष्ठ भाइ बहेनो के पास आस प्रकार के गुढ ज्ञान से सम््पन है. सदगुरुदेव की कृ पा से एक प्रयोग जो की सुदशमन चक्र से सबंवधत है वह मे अप सब के मध्य रखना चाहाँगा. आस साधना को फकसी भी सुबह फदन शुरू फकया जा सकता है. रावत्र काल मे ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के सणे द वस्त्रों को धारण कर के सणे द असान पर बैठे. और रुद्राक्ष माला से वनम्न मंत्र का जाप करे. साधक को ७ फदन मे १०००० मंत्र जाप करना है, साधक ऄपनी सामर्थयम ऄनुसार फदनों का चयन कर ऄपना मंत्र पूरा कर ले लेफकन मंत्र जाप की संख्या रोज वनयवमत रहे. साधक चाहे तो १ फदन मे भी मंत्र जाप पूरा कर सकता है
ॐ सदु र्शन चक्राय र्ीघ्र आगच्छ मम सर्शत्र रक्षय रक्षय स्र्ाहा मंत्र जाप के बाद साधक माला को धारण करे रखे तथा ग्रहण काल मे आस मंत्र की ११ माला जाप फिर से करे और शहद से ऄवि मे १००८ अहुवतयां को आसी मंत्र से ऄर्पपत करे. साधक का सौभाग्य होता है की ईस समय सुदशमन चक्र का दशमन हो. तब साधक को चावहए की वह नमस्कार कर रक्षण के वलए प्राथमना करे.
आसके बाद सुदशमन चक्र साधक के असपास ऄप्रत्यक्ष रूप मे रहता है तथा सवम रूप से शत्रु तथा ऄनेक बाधाओ से व्यवि का रक्षण करता ही रहता है. साधक का ऄवहत करने का सामर्थयम ईसके शत्रुओ मे रहता ही नहीं है. साधना के दौरान साधक ऄघोर मंत्र का भी जाप करे तो वह ऄत्यवधक ईिम है.
भानव जीवनभे घात प्रततघात
तो रग
कोई ऐसा हो
शत्रओ ु
जो हय प्रकाय के
तो सबी भानते हैं की
ककसी
कोटट कचहयी भें
दो,
पसवा
ही यहता हैं औय से भक् ु त हो ,
शामद
हह
औय
मह तथ्म
की भानससक शाॊतत नष्ट कयना
हो तो उसे
उसका धन औय सभम दोनों
ही नष्ट होता
जामेगा, औय
आज की व्मवस्था
कुछ आवश्मक प्रकिमाओ
भें
बी इस
प्रकाय की हैं की एक व्मक्क्त
तथ्म अगय उसके ऩास नहीॊ हुए तो जो
का तनभाटण बी ककमा
हैं
तो तनश्चम
प्रमोग के
उसके तयह
इस
ववयोधी ऩऺ से हभाये
जाती हैं
ऊऩय
इन सभस्माओॊ
आऩके औय आऩके खोर सकता
गए भक ु दभो से
हैं
हभें
हो जाता हैं. औय
इस्तेभार ककमा जा सकताहै न
ववयोधधमों का आभना साभना
तयह से दे खा जाम तो
ऩव ट कय रे ू क
हो जाने के फाद उसके
से भक् ु त
एक
दस ु ये
मह प्रमोग अनेक जगह आऩके सरए
हैं .
की
सा हो जाताहैं.
सपरता
कुछ कह ही नहीॊ ऩाता
अकायण रगामे
कोटट कचहयी फक्कक सबी जगह
दयवाजे
सपर
कोटट
यख कय कुछ ऐसी साधनाओ
जो अगय कोई व्मक्क्त
अऩने ऩऺ भें
औय वह
इन
साभान्मतः रम्फी होती हैं पस कय वेफस
हभाये तॊत्र आचामो ने इस फात को ध्मान भें ही
बी
भानो
साभने औय इस भक्ु क्त सभर न केफर इसे जहाॉ
ऩय
से हो , इस उन्नतत के
औय इस प्रमोग को कयने के सरए शतनवाय से केफर सात
इस प्रमोग को प्रायॊ ब ककमा जा सकता हैं हदन का हैं. औय
जा ता हें , औय
से आऩको आहूततमा
प्रधान हैं .हदशा कोईबी ऩय जैस अ
इस प्रमोग
धऩ दीऩ औय नेवेईद्म से ु
फाय केफर इस भन्त्र हैं
आवश्मक ववधध इस प्रकाय से हैं.
औय
को यात्रत्र भें इसका दे ना हैं
औय
ही सॊऩन्न ककमा
ऩज ू न कयके
एक हजाय
भतरफ मह प्रमोग हवन
वस्त्र औय आसन के यॊ ग ऩय
सदगुरुदे व जी ने
मह प्रमोग
कोई प्रततत्रफॊध नहीॊ
सवट ससवि प्रदामक मग्म ववधान भें
आवश्मक कुछ फाते जो एक मज्ग के सम्फन्ध
भें फताई हैं उसका अऩनी
शक्क्तनस ु ाय ऩरान कये . भन्त्र : अपर अपर अपर दश्ु भन के कय
भॊह ु ऩय कुरप
रुऩमा तोय
दश्ु भन को जय कय
औय जफ बी कबी अऩने भक़ ु दभे के आऩ ववयोधी ऩऺ की तयप
कायण आऩको अदारत
कुछ बी सॊफॊधभे ऩाएॊगे
ववयोधी ऩऺ आऩके
नहीॊ कय ऩामेगा. मा कह ऩामेगा औय आऩको कोई ने प्राथटना ऩत्र
ऩय बी आऩ 108 की
फाय
रगामे
इस तयह से इस प्रमोग भनोमोग से
हो
..
भें से
सरख कय दे ना हो तो उस प्राथटना .ऩत्र औय आऩ
से जो आऩ ऩे केफर आऩको
गए हैं जकद
जोकक
ववयोध
महद अऩने केस
इस भॊत्र को ऩढ़ कय पॊू क भाय दे
आऩ इन भक ु दभो
कयने केसरए आऩ ऩय
जाना
इस भन्त्र को 108 फाय ऩढ़ कय पुक भाय दे
औय .... उस हदन तनश्चम ही आऩका
ऩयु े
भेये हाॉथ कॊु जी
एक सयर
ककमा जाए औय ऐसा तो
ही छुटकाया ऩा
ऩये शाॊ
सकेंगे
सा प्रमोग हैं अगय आऩ द्वाया तो हय प्रमोग के
साथ हैं की
अगय वह प्रमोग फनामा गमा तो होगा,
चॉ कू क हभ आधे अधयू े भन से
अऩेक्षऺत ऩरयणाभ न सभरने छोटा
हो
हैं तो तनश्चम
मा फडा मह
भानससकता औय ककतने
ऩय
ही उसका कोई न कोई अथट
उसको कयते हैं
ऩये शाॊ होते हैं
ज्मादा आवश्मक नहीॊ हैं भजफत ू
वह ज्मादा भहत्तत्तव ऩण ू ट हैं
इससरमे
तफ प्रमोग भें प्रमोग
चाहे
फक्कक उसे ककस
त्रफस्वास के साथ सऩॊन्न ककमा जा यहा हैं
.
Kaal bhairav sadhana - to overcome unwanted incidents जीवन की उऩमुक्त औय मोग्म गततशीरता को ग्रहण रगाने वारे भुख्म शत्रु है सभस्मा औय अकस्भात. अगय मे दो भुख्म फाधक जीवन की गतत भे ना हो तो व्मक्क्त अऩने
बौततक व ् आध्माक्मभक ऩऺ को अममधधक भजफूती दे सकता है . कार की गतत अनंत है जो की तनयं तय रूऩ से चरती यहती है . परस्वरूऩ हभाये फोध कार से ववगत को बुत तथा गंतव्म को बववष्म नाभ ददमा गमा है . रेककन सफ घटनामे भुख्म रूऩ से अऩने
अऩने स्थानों ऩय कार की गतत भे होती ही है औय जफ आऩ कार के उस तनक्चचत बफंद ु ऩय ऩहोचाते है तो वह वततभान के रूऩ भे आऩसे प्रममऺ हो जाता है . मु हभाये जीवन भे कोई बी क्स्थतत होती है मा आती है तो वह कभत प्रधान कायण स्वरुऩ ऩहरे से ही कार भे तनक्चचत धथ. इसी क्रभ भे वह सफ घटनामे कार के गबत भे तनदहत ही है चाहे वह आऩके अनुकूर हो मा कपय प्रततकूर. ज़या सोधचमे की अगय हभ उन प्रततकूर ऩर को
तनकार दे तो जीवन प्रममेक सभम भधयु हो जाएगा. रेकीन क्मा ऐसा संबव है . साधना
तो प्रकक्रमा ही असंबव को संबव फनाने की है . इस ऺेत्र भे असंबव तो अऩने आऩ भे एक छोटा सा शब्द फन कय यह जाता है . तंत्र भे कई ऐसे ववधान है क्जनकी भदद से आने वारी दघ त नाओ तथा ववकट सभस्माओ को ऩहरे से ही जाना जा सकता है . रेककन ु ट
प्रस्तत त नाओ तथा ववकट सभस्माओ के ु ववधान इस प्रकाय से है की वह आने वारी दघ ु ट
भात्र संकेत नहीं दे ता रेककन उस प्रततकूरता को दयू कय के आऩ को उससे फचाता बी है . इस प्रकाय के कुछ ववधान तो तनक्चचत रूऩ से ऩुयातन तंत्र ग्रंथो भे प्राप्म है रेककन वे
सफ ववधान गुढ़ तथा सभमगभ है . अममधधक जदटरता तथा रंफे सभम तक साधना कार होने के कायण आज के इस मुग भे इस प्रकाय की साधना कयना अममधधक दस् ु कय है .
रेककन सदगरु ु दे व ने अऩने गह ृ स्थ शशष्मों के भध्म ज्मादातय सयर औय मवरयत ऩरयणाभ दे ने वारी साधनाऐ ही यखी.
तनम्न साधना के शरए साधक रुद्राऺ मा कारे हकीक की भारा का प्रमोग कये . आसान तथा वस्त्र रार यहे औय ददशा दक्षऺण. मह ११ ददन की साधना है क्जसे साधक शतनवाय मा भंगरवाय की याबत्र भे ११ फजे के फाद शुरू कय सकता है . साधक अऩने साभने कार बैयव की पोटो मा ववग्रह स्थावऩत कये . उसका ऩूजन कुभकुभ तेर शसन्दयू ऩष्ु ऩ वगेया से कये . धऩ ु तथा तेर का दीऩक अवऩतत कये . उसके फाद हाथ भे जर रेके संकल्ऩ कये की भे मे भंत्र जाऩ बववष्म भे आने वारी सबी दघ त ना सभस्मा ु ट तथा फाधा के
सभाधान के शरए कय यहा हू आऩ इसभें भेयी सहामता कये . इसके फाद
तनम्न भंत्र की २१ भारा जाऩ कये .
ॐ कारबैयव अभुक साधकानां यऺम यऺम बववष्मं दशतम दशतम हूं इसभें अभक ु साधकानां की जगह स्वमं के नाभ का उच्चायण कयना चादहए. बववष्म भे जफ बी कोई सभस्मा मा दघ त ना होने वारी हो तो ककसी न ककसी रूऩ भे बगवान कार ु ट बैयव साधक को सूचना दे दे ते है . साधक अऩने कामों को उस प्रकाय से ऩयावतततत कय सकता है . मु तो बगवान बैयव साधक की प्रममऺ अप्रममऺ रूऩ भे भदद कयते ही यहते है .
Easiest prayog from protection from itar yoni
इतर योनी यों से सम्बंधधत अनेको बाते हम आने वाले महा धवशेषांक जो की तीक्षण शधि और इतर योनी पर आधाररत होगा में करें गे ही, हम में से अधधंकाश इस नाम को सुन कर भय भीत हो जातेह,ैं हमें अपने कायय के कारण अनेको बार अपने घर से बाह र जाना ही पड़ता हैं ,कभी होटल में तो कभी धकसी स्थानमे रुकना ही पड़ता हैं , कभी कभी कभी धकसी अनजान स्थानपर भी , मन में भय आना स्वाभाधवक ही हैं .
इन सबी चीजो से जुडी फातों को चाहे ऋणात्तभक उजाट भाने मा जो बी नाभ दे ,ऩय इनका असय
तो होता हैं ऩय मे हभें कबी नक् ु सान न ऩॊहुचा ऩाए इस सरए कोई ववधान तो जरुयी हैं , ….
पर …क्यों ,,इसकी क्या जरुरत हैं .. अपने दे श के एक धवख्यात तंत्र धवधा में धलखने वाले लेखक एक कायय वश जब धवदे श गए तो जब उन्हें कहीं भी जगह न धमली रुकने की तो धकसी साधारण होटल में उन्हें रात को रुकना पड़ा ( होटल स्टाफ कमरे खाली न होने के कारण इस धवशेष कमरे को दे ने के पक्ष में नहीं था , पर इनके बार बार के अनुरोध को दे ख कर ) , उनका धनयम था सोने से पहले की हनुमान चालीसा का पाठ एक धवशेष ढं ग से करके ही सोते थे , रात को दो या तीन बार उनके कमरे का दरवाजा खट खटाया गया , जब भी वह दरवाजा खोल कर बाहर आते कोई भी नहीं धदखाई दे ता सुबह होटल के स्टाफ ने उन्हें परू ी तरह से स्वस्थ दे ख कर कहा आपको कुछ नही हु आ,
क्यों अरे प़ता नहीं कोइ नया व्यधि रात में जब भी उस रूम में रुकता हैं तब रात को पता नहीं कुछ होता हैं जैसे ही व्यधि बाहर आ कर नीचे दे खता हैं . कोई धक्का मार दे ता हैं कई दुघयटना इस बारे में हु ए हैं . पर आपका बचना बहु त ही आश्चयय जनक हैं .
वसे बी कहा गमा हैं घय के हय कभये भें यात को कुछ दे य खास कय शाभ को बफजरी जरा ही दे ना
चादहए , इन ऋणामभक तमवों की उऩक्स्थतत कभ हो जाती हैं .
क्मोंकक क्जन
भें कोई जाता नहीं हैं भतरफ उऩमोग नहीं होता मा बफना योशनी के होते उनऩय मे तमव का अधधकाय हो जाता
हैं , कपय आऩ जफ इनभे जाकय अचानक से यहने रग जाते हैं तो अनेको ऐसी घटनामे होती हैं क्जन ऩय केफर बक् ु त बोगी ही जान सकते हैं .
मे रे एक पररधचत जब जॉब के धसलधसले में धदल्ली जाकर अपने धकसी एक धमत्र के घर में जाकर रहते थे, वह कमरा उन धमत्र के द्वारा काफी समय से उपयोग न धकये जाने के कारण बंद था , एक धदन जब मे रे धमत्र रात को सो ने की तैयारी कर रहे थे और उन्होंने जैसे ही धबजली बंद की , धकसी ने उन्हें मानो धबस्तर में एक जोर से धक्का धदया , मे रे धमत्र तत्काल उठे सब दे खा कुछ समझ नहीं पाए ,पर वे उस समय तक सोये नहीं थे इसधलए इस घटना से बहु त ही सोच में पड़ गए, अगले धदन उन्होंने उस धमत्र के पररवार से बात की पता चला की वह कमरा करीब एक साल से बंद पड़ा था .यह सारी बाते स उनकर , धफर रोज़ एक धदया तो कम से कम उस कमरे में जला धदया जाता था .
सदगरु ु दे व बगवान बी कहते हैं की हय व्मक्क्त को शाभ को अऩने घय के कभये भें थोड़ी दे य के
शरए तो राइट जरा ही दे ना चादहए ही ,
पर एक ऐसा धवधान आपके सामने रख रहा हूँ, धजसके धलए कोई धवशेष प्रधिया नहीं हैं , बस आसानी से आप इस को याद कर सकते हैं , जब कभी नए स्थानमे रहना हो इस मंत्र को एक बार पढ़ कर तीन बार हाूँथ से जोर से ताली बजाये बस इतनी सी तो प्रधिया हैं और और ऐसे तो धसद्ध करने की कोई जरुरत नहीं हैं पर जब भी साधनात्मक दृष्टी से महत्वपण ू य धदवस आते हैं तब कुछ इनका मन्त्र जप कर धलया जाना चाधहए , वेसे अधधकाश साबर मंत्रो में यधद उपरोि समय में कुछ हवन या आहु धत इन मंत्रो से पढ़ कर दे दी जाये तो और भी अनुकूल होता हैं ही
मंत्र ॐ चौकी हनुमत बीर की ,र्ाण ध्र्जा फहराए | मारू मारू मारुत सत ू , मुष्टिक र्त्रु नसाय | मेरे इि राम चन्द्र जी , अगुआ हनुमूंत र्ीर | चौक सुदर्शन चक्र की , रक्षा करे र्रीर |
टोना ब्रह्म भूत प्रेत सूंग , डायन डाइ | साूंप ष्टबच्छू चोर बात ,सबकुछ ष्टनष्फल जाइ |
Bhagvaan Aanjaney Sarv Raksha vidhan
"ऄष्ट वसवद्ध नव वनसध के दाता
ऄस अशीष दीन्हे जानकी माता " भगवान् भोले शंकर की ईदारता
के कारण कौन नहीं होगा जो ईनके
अराधना नवह करना चाहता होगा, देव दानव, गन्धवम, मानव, सभी तो भगवान् अशुतोष की कृ पा के अकांक्षी हैं .ईन्ही भगवान के रूद्र स्वरुप की तेजवस्वता
से तो पूरा ववश्व गवत मान हैं ही,
साधारणतः आन रूद्र के सम्बंवधत साधना ज्यादा प्रकाश में नहीं अइ हैं , पर एकादश रूद्र की बात ही ऄनोखी हैं, ईनके ईपासक ,अराधक तो कहााँ कहााँ नहीं हैं , हर स्थान पर ईनका का मंफदर या अराधक वमल ही जातेहैं , वजनका नाम की कष्टों से वनवृवत फदलाने वाला हैं. यहााँ तक सुना जाता हैं
की ववश्व में सवोपरर साधना
तो ऄघोर साधना
ववधान हैं और ववश्व की हर शवि आस ववधान के सामने नत मस्तक हैं , पर के बल मात्र एक ही देव हैं वजनके पञ्च मुखी स्वरुप की करोंडों सूयम वत तेजवस्वता के सामने यह ऄघोर
ववधान भी
आनको प्रणम्य करता ही हैं .(वास्तव में सूक्षमता से देखें तो ऄघोर ववधान भगवान शंकर के फदव्यतम स्वरूप से सम्बंवधत हैं और भगवान महावीर भी तो ईन्ही भगवान् शंकर के स्वरुप ही हैं ) हनुमान साधनाके ऄनेकों अयाम हमारे सामने हैं कु छ
तो
सामान्य हैं कु छ तो ऄवत फदव्यतम हैं आस सन्दभम में सदगुरुदेव भगवान "हनुमान साधना " एक पूरी पुस्तक और "हनुमान साधना " नाम की cd भी ईपलब्ध करायी हैं , वजसमे सदगुरुदेव भगवान ने भगवान् बजरंग व् ली के ईस फदव्यतम बीज मंत्र की वेवेचना की हैं वजसके माध्यम से अप ईस प्रफक्रया को कर के पूरे फदन स्वयं ही भगवान् मारुती की फदव्य ईजाम से ओत प्रोत रह सकते हैं , वह पूरा ऄत्यवधक सरल ववधान वजसे वसद्ध करना भी जरुरी भी नहीं हैं अप स्वयं सदगुरुदेव भगवान् के श्री मुख से सुने और लाभावन्वत हो , सदगुरुदेव भगवान् ने यफद अप मंत्र तंत्र यंत्र ववज्ञानं पवत्रका में देंखें तो एक ऐसा ववधान फदया हैं और एक ऐसे साधक का पररचय फदया हैं जो ईस समय ८०/८५ वषम के थे और क्रोध अने पर एक पूरा वृक्ष भी जड से ईखाड िें कते थे .
(सच में सदगुरुदेव भगवान् ने क्या क्या ववधान नहीं फदए हैं ऄपने सभी अत्मंशो के वलए , ऄब ये तो हम पर हैं की हम फकस फदशा में चले .. आन साधनाओ को अलोचना की दृष्टी से देखे या फिर वशष्यता तो बहुत दूर की बात हैं , ऄच्छे से वजज्ञासु ही बने तो कम से कम एक सीधी तो ईप र बढे या सीधे ही ऄपने अप को वशष्य मान ले ,क्योंफक यह तो बेहद सरल सा हैं , पर ध्यान भी रखे , ईन परम हंस स्वामी वनवखलेश्वरानंद जीकी वशष्यता के वलए महा योगी भी ऄनेको वषम तपस्या करते रहते हैं क्या वह आतनी सामान्य सी वस्तु हो गयी ...... "को नहीं जानत संकट मोचन नाम वतहारो " आस जीवन में मानो संकट और संकट ही हमारी संपवि बन गए हैं , या ऐसे कहे ही की ववपवि ही हमारी संपवि बन गयी हैं . ऄब फकस फकस समस्या का सामना करे कोइ एक हो तो या दुसरे ढंग से कहं तो की अज तक तो ठीक चल रहा हैं कहीं कोइ समस्या न अ जाये , ऄब आस अकांशा को कै से सामना करे . भगवान् अंजनेय से सम्बंवधत या प्रयोग आन समस्त ववपदा से अपकी रक्षा करता हैं ही मंत्र :
हनुमान पहलवान , बारह वरस का जवान |मुख में वीरा हााँथ में कमान | लोहे की लाठ वज्र का कीला|जहाँ बैठे हनुमान हठीला |बाल रे बाल राखो|सीस रे सीस रखो| अगे जोवगनी राखो| पाछे नरससह राखो | आनके पाछे मुह्मुदा वीर छल करे , कपट करे ,वतनकी कलक ,बहन बेटी पर परे | दोहाइ महावीर स्वामी की |
सामान्य वनयम :
वस्त्र असन फदशा का कोइ प्रवतबंध तो नहीं हैं पर अप चाहे तो लाल रंग के ईपयोग कर
सकते हैं . आस मंत्र से जप अप सुबह करे तो ऄच्छा हैं ,
रुद्राक्ष माला का ईपयोग अप जप कायम के वलए कर सकते हैं .
जप संख्या के बल १०८ बार हैं ही , और आसके बाद अप वजतनी अहुवत हो आस मंत्र से हो
सके करे .यफद गुगुल का प्रयोग करे तो ईिम होगा .
सदगुरुदेव भगवान् से प्राथमना करे की भगवान् अंजनेय कृ पा से अपके ईपर से ववपवि या दूर हो
To get protection from unknown fear arise from nature’s any indication हम मेसे कौन नहीं हैं जो ऄपना भववष्य जानना नहीं चाहता हैं, कौन नहीं कु छ पल के वलए अने वाला स्वर्पणम भववष्य के सपने में थोडी देर के वलए खो जाना चाहता हैं , जब भी हम फकसी भी हस्तरे खा ववद या ज्योवतषी के पास जाते हैं भले ही हम कहते हैं जो कु छ भी हो मेरे भववष्य के बारे में अप साण साण बता दें ,चाहे वह ऄच्छा या बुरा हो , पर अप बता दें , कृ पया कु छ कु छ छु पाये नहीं ,पर वह ज्योवतषी भी जानता हैं की आससे मुझे ऄपनी िीस लेनी हैं तो भले ही अप कु छ कहे वह तो अपको ऐसे बताता हैं की अप मुघ्ध हो जाते हैं .ऄगर ईसने कु छ गलत बताया तो वनश्चय ही हम दुसरे बडे ज्योवतषी
के
पास जाते हैं , ऄगर ईसने भी वही बताया तो तीसरे के पास
पर हममे से कोइ कभी भी दुसरे ज्योवतषी के पास नहीं जायेगा की यह पूछने के वलए के वलए की देवखये ईस ज्योवतषी ने मेरे वलए आतना ऄच्छा ऄच्छा बता फदया, बताएये यह कोइ बात हुइ . पर आसके ऄलावा भी भी प्रकृ वत ऄपने तरीके से ऄपने संकेत देती रहती हैं , और ईनको पढ पाना थोडा सा करठन तो हैं ,(तंत्र कौमुदी के सबसे पहले के ऄंको में हमने स्वपन ववज्ञानं के बारे में ववस्तार से चचाम की ही थी ) कइ बार हम घबडा जाते हैं की यह तो वबलकु ल सुबह का सपना हैं सच न हो जाये,और कभी फकसी की सीधी तो फकसी की ईलटी अाँख िडकने लगती हैं , व्यविके हााँथ पैर िू लने लगते हैं .कभी कभी वबना फकसी बात के भी
हमारा फदल
धडकने लगता हैं की हमारे घर में कभी कु छ ववपवि तो नहीं अने वाली हैं यह सब फकतना सही हैं या गलत वह तो समय ही बताता हैं पर क्या साधना में भी कोइ ईपाय हैं आन बातोंके वलए ..
पर हम तो साधना नहीं कर सकते हैं ,
हमने तो कभी की ही नहीं हैं ,
ऄरे कभी ईल्टा सुलटा हो गया तो ,, और ..
क्या सही में ऄसर होता हैं .
ऄगर कोइ हमारे वलए कर दे तो .. ये सब बाते अलस्य की हैं, भूख ऄगर अपको लगी हैं तो खाना भी अपको ही खाना पडेगा न .. ओर वजतनी मनोयोग से अप करोगे या कर पाओगे वह क्या कोइदूसरा अपके वलए कर पायेगा , कम से कम कु छ बहुत ही सरल से , पर ऄत्यंत प्रभाव दायक प्रयोग तो अप कर के देख.े .एक सीढी तो चढे ,फिर वेसे ही ऄगली के वलए कोवशश करे ,फिर एक फदन अप देखें की अप भी एक योग्य साधक हो ही गए हैं . मंत्र :
ईरे िु रे जरा धुरे िुं आस मंत्र के ववन्यास
तो बहुत ही ऄचरज करने वाला हैं , आसको देख कर अप आसके माध्यम से
काम करने वाली शवि का ऄंदाज लगाया नहीं जा सकता हैं .
आस मंत्र को दवक्षण फदशा की ओर मुह करके जप करना हैं .
फदनके फकसी भी समय आस मन्त्र का जप फकया जा सकता हैं ,जब भी अपको भय सा महसूस हो .
कोइ भी वस्त्र धारण करके कर सकते हैं .
रुद्राक्ष या काले हकीक माला से मंत्र जप करना हैं
फिर आस मंत्र की ११ माला कर के घर मे जल का छींटे लगाना है,
बस आतना सा तो प्रयोग हैं . आसको करते हुए सदगुरुदेव भगवान् से एक बार प्राथमना करके देखें तो सही
Simple but highly effective sadhana/prayog सरल प्रभाव दायक प्रयोग 1.योग्य जीवन साथी के वलए साधना (हमारी बवहनों के वलए) यह ऄद्भुत बात हैं की पुरुष वगम , ऄपने वलए एक योग्य जीवन साथी चाहता हैं, पर हमारे समाज की ऄजीब सी ववसंगवत हैं फक हमारी बवहने यह नहीं कह पाती हैं, ( अज वस्थवत बदल रही हैं फिर भी ऄनेको बवहनों के सामने यह समस्या हैं वह खुल कर ऄपने वहस्नेही जनों से यह कह नहीं सकती हैं )यह बात सही हैं ,नारी के वलए जो माप दंड हैं , वह पुरुष के वलए नहीं हो सकतेहैं , माना जीवन में गुणों का एक ऄलग ही मूल्य हैं,स्थान हैं
फिर भी कौन नहीं
चाहता की ईसका जीवन साथी सुन्दर तो हो समाज में हम फकसी के सामने ऄपने जीवन साथीके साथ खडे होतो मनमे कु छ भी कुं ठा न अये ठीक हैं वह ऄद्भुत रूप धारी न हो पर हमारे योग्य तो हो .सदगुरुदेव एक ऄ्सरा साधना में कहते हैं की जीवन साथी सुन्दर न होने पर कु छ तो समस्या अती हैं , पर ये भी तो सही हैंफक वजसे जो रूप वमल गया हैं ईसे बदले कै से .. फिर यहााँ पर साधना
ही एक मात्र ईपाय हैं ..अप चाहे तो, यफद अपका वववाह हो गया हैं तो ऄ्सरा साधना
करके ऄपने जीवन में ईसके प्रभाव से व्यवित्व ओर रूप रं ग में पररवतमन पा सकते हैं , यह कै से संभव हो सकता हैं ईसके वलए तो अपको सदगुरुदेव भगवान द्वारा आस संबंधमे बताइ गयी साधना ओ को के बल देखना या सुनना ही नहीं बवल्क करना तो पडेगा ही न .
यह तो बात हुयी . वववावहत लोगोंकी ..
पर हमारी जो बवहने ऄभी ऄवबवावहत हैं , क्या ईनके वलए कोइ ऐसी साधना नहीं हैं जो योग्य के साथ सुन्दर जीवन साथी भी ईन्हें प्राप्त कराये ..
एक बहुत ही सरल प्रयोग वजसे यफद अप पूणम श्रद्धा के साथ सदगुरुदेव भगवान् के समक्ष प्राथमना करके संकल्प ले कर प्रारं भ
तो करे वनश्चय ही ईनके अशीवामद से अपको योग्य मनो वांवछत गुणों वाला व्यवि जो सदगुरुदेव भगवान्
की दृष्टी में अपके वलए योग्य होगा प्राप्त होगा ही , अवखर वे हमारे ईन पक्षों को भी जानतेहैं जो हमें ही नहीं ज्ञात हैं वे ही हमारे वपता हैं ,तो ऄपने ऄनंतकाल से जो वपता हैं से मागने में क्यों शरमाना, ईनसे नहीं तो फकस्से कहेंगी अप ऄपनी बात .. मंत्र :
ॎ क्लीं कु माराय स्वाहा || आसमें फदशा , वस्त्र ,माला, असन का कोइ प्रवतबंध नहीं हैं, बस अपकी भावना ,श्रद्धा फकतनी हैं ,ओर फकतनी हो सकती हैं ईस पर ही सब वनभमर हैं , सुबह जब अप ऄपनी साधना करती हैं तो सदगुरुदेव के सामने ऄपने मन की बात ऐसे कवहये मानो वह सामने बैठे हो और अप ऄपने वपता से कह रहे हो . संकल्प ले कर प्रवतफदन कमसे कम १० माला तो रोज़ करनी हैं . अपकी श्रद्धा ववस्वास, सदगुरुदेव का अशीवामद , अपकी साधना अपके वलए क्या कर सकती हैं ,ईसे तो अप ही समझ पायेगी ,ऄब फकतने फदन करना हैं ईसे अप पर ही छोडते हैं,क्योंफक जहााँ भाग्य बदलना हो तब ऄपनी साधना को फदनों में नहीं बााँध सकते हैं .
************************************************************************************************** 2.भयमुि ता के वलए सरल साधना मानव जीवन भी वबवभन्न रूप में गवतमान होता हैं, जोकल तक धनवान वे अज जमीन पर अ जाते हैं जो वमत्र हैं वह शत्रु होजाते हैं पर जीवन तो वनबामध रूप से चलता रहता हैं ,पर सदगुरुदेव भगवान् कहते हैं की हममे से कौन हैं जो ऄपने ह्रदय पर हाथ रख कर यह कह्सके ईसे फकसी का भय नहीं हैं यह भय फकसी भी प्रकार का हो सकता हैं , पर आनभय से व्यवि की रक्षा कै से हो , हर फदन तो हमारा फकन्ही ऄथो में भय से ग्रस्त रहता ही हैं , क्या कोइ रास्ता हैं आस बही से मुवि का तो , फिर बात अ ही जाती हैं की वसिम साधना ..ओर कु छ नहीं .. जब बडी बडी साधना न की जा सकती हो तब क्या करे ... हर व्यवि प्रयास करता हैं ही पर सही ऄथो में तो भय से मुवि तो साधना ही दे सकती हैं.
मंत्र :
ॎ ह्रीं श्रीं चक्रेश्वरी मम रक्षा कु रु कु रु स्वाहा || आस मंत्र को ऄपने फदन प्रवतफदन की पूजा में ईपयोग लाये , बहुत ही प्रभावशाली मंत्र हैं , आस मंत्र का ववन्यास ही अपको समझा सकता हैं , आसमें चक्रेश्वरी
देवी जो की प्रथम जैन तीथंकर भगवान् अफदनाथ की शाशन देवी का
ईल्लेख हैं ,हमारे ऄपने जैन धमम में एक से एक ऄद्भुत साधनाए हैं वजन्हें समयनुसार ऄपना ही चावहए .. राज हंस की भांवत जहााँ भी और जो भी ऄच्छा वमले ईसे स्वीकार करना चावहए ही अप आस मंत्र को प्रवतफदन १०८ बार जप कर सकते हैं. माला ,फदशा ,असन ,फदए ,वस्त्र का कोइ वनयम नहीं हैं अज के वलए बस आतना
Strot sadhana : for removing problems in life(Gajendra moksh strot) हमें ऄनेको गुरु भाइ /.बवहनों के आ मेल वमलते ही रहते हैं वजसमे ऄपनी ऄपने कष्टों का ईल्लेख छोटे या बडे का ईल्लेख रहता हैं , हम सभी साधनात्मक वक्लष्ट से बचना चाहते हैं और चाहते हैं की हमें १००% सिलता वमल जाये वह भी प्रथम बार में ,अप स्वयं ही सोचे की यही हर बार हो तो क्या जरुरत हैं बडी साधनाओ की, पर सबका एक ऄपना ऄथम हैं ही . समस्या तो तब बढ जाती हैं जब ईन्होंने दीक्षा भी नहीं ली होती हैं, और फकन्ही कारण वश वे यन्त्र माला भी नहीं ले पाते हो , अर्पथक कारण के ऄलावा यह कारण स्वयमं के घर वालों का ऄसहयोगात्मक व्यवहार भी रहता हैं . ( हर ऄसिलता अपके वलए मानता हाँफक स्वागत योग नहीं हैं पर जो आन सब का मूल समझते हैं वह जानते हैं की एक बडी सिलता के वलए रास्ता खोल रही हैं ऄन्यथा अप वही रह जाये ,) जो कहा गया हैं की सदगुरुदेव तपाते हैं हैं तो आसका ऄथम हैं की हमें , वे अग में डाल देंगे??? नहीं नहीं , बवल्क आन ऄसिलताओ के माध्यम से वह देखते रहते हैंफकतने ऄभी भी रटके हैं फकतने चल फदए , फकतनी गंदगी , फकतना संशय ऄभी भी हमारे मन में हैं ,
एक बार ईन्होंने ही कहा था, कौन ऄपने बगीचे में मौसमी पोधा लगाना चाहता हैं वह तो सदा ब हार ही पौधे ही लगाये गे जो एक फदन वृक्ष बन कर , जो झुलसी हुए मानवता पर
ईस पर मेघ
बना कर ऄमृत वषाम कर सके ,, पर जब ये संशय नहीं वनकल पा रहा हो या फकसी कारण वश साधना मंत्रो की न की जा पा रही हो तब क्या कोइ और रास्ता नहीं हैं . क्या करें वजससे हम सभी ऄपनी समस्या से मुि हो पाए , सदगुरुदेव भगवान् ने पवत्रका में कइ बार ऐसे प्रयोग फदए हैं , ईनमे से एक ऐसा ही स्त्रोत संबंवधत प्रयोग हैं वह हैं गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत सदगुरुदेव भगवान् ने आस स्त्रोत सेसंबंवधत ऄपने स्वयं के ऄनेको ऄनुभव बताये हुए हैं साथ ही देश के ऄनेक ईच्चस्तरीय नेता और ऄवधकारी यो के ऄनुभव बताया हुए हैं , जब सदगुरुदेव जी ने कह फदया तो मन्त्र मूलं गुरु वाक्य के ऄनुसार ऄब और ववस्वास के वलए क्या बाकी रह जाता हैं . जब स्वयं
गरुडासीन श्रीनारायण ही ऄपने भि की रखाथम दौडे चलेअयेहों , तब कौन सी और
कै सी पररस्थवत हो ,क्या ऄथम रखती हैं
तब ईस भाव को प्रदर्पशत करने वाला यह स्त्रोत तो
सचमुच में ऄद्भुत हैं ही , अप आसे करें औरस्वयं भी एक प्रत्यक्ष प्रमाण बन जायेंगे . स्त्रोत वास्तव में ऄपने ह्रदय के ईदगार हैं शब्दोंमे बंधी एक ऐसी रचना(जो फकसी काल में फकसी महायोगी ह्रदय को मंथन से ईत्पन्न हुए हो जब ईसने ऄपने आष्ट को ऄपने सामने देखा हो )
जो
अपके ह्रदय की भावना सीधे ही ईस स्त्रोत के आष्ट के ह्रदय से संपकम कर अपके वलए मनो बांवछत पररणाम ला ही देती हैं चूाँफक यह मंत्र नहीं हैं आसकार ण, आसका / आनका सही ईच्चारण नहीं भी हो तो कोइ समस्या नहीं हैं अपकी फकतनी श्रद्धा और भावना युि अपका पाठ हैं ईस पर ही सब वनभमर हैं , स्त्रोत
पाठ के सामान्य वनयम तो सभी जानते हैं ही , फिर भी कु छ वनयम का पुनः ईल्लेख करना
बाफक रह जाता हैं ,
स्नान करके साि स्वच्छ वस्त्र धरण करके ही पाठ करे .
कोवशश करे की सप्रटेड स्त्रोत का पाठ करे या वह संभव नहीं हो तो ऄपने घर के या फकसी और व्यवि से कहे ही वह ईसे ईतार कर अप को दे दे , क्योंफक स्वयं वलखा हुअ ईच्चारण करना ऄच्छा नहीं माना जाता हैं ,(पर जब कोइ ऐसे ववशेष स्त्रोत हो की वजसका बारे में ऄन्य को न बताना हो तब पररस्थवत और कालानुसार अप स्वयं ही ईसे ईतार कर वलखे .
सम्बंवधत स्त्रोत के आष्ट का वचत्र वमल जाये तो ईपयोग करे
पूजा स्थान में सदगुरुदेव और पूज्य माताजी का वचत्र तो होगा ही
धुप दीप , ऄगरबिी तो अपके ह्रदय की भावना को व्यि करने के एक प्रकार हैं ईसे तो ईपयोग करना ही चावहएअवखर सदगुरुदेव और आष्ट के प्रवत आतना हो हम बच्चो को करना ही चावहए ही
सबसे पहले जैसा की स्त्रोत में वनदेवशत फकया गया हो ईतनी संख्या में ईसका पाठ करके ईसे वसद्ध करे , फिर अप ईसका ईपयोग कर सकते हैं
या फिर ऄपनी समस्या को संकल्प में बता कर वनवश्चत संख्या में जैसा की वनदेवशत फकया हो , , पहले से ही अप द्वारा वनवश्चत फदन तक जप करे .
एक वनवश्चत समय पर साधना में बैठना तो सिलता का मूल मन्त्र हैं ही . हर फकसी को की अप क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं बताना ईवचत ही नहीं बवल्क ऄसिलता के द्वार पर अपको ला खडा कर देता हैं ·
सबसे ऄंत में सबसे महत्वपूणम बात की हर फदन का पाठ का जप सदगुरुदेव भगवान के श्री
चरणों में समपमण करना न भूले , अवखर वे ही तो ऄनेक देव देवी के माध्यम से हमें पररणाम दे रहे हैं , हमारी अाँखों में व ह वनममलता नहीं अइ हैं आस कारण वह ऐसे भी कायम करते हैं ...
अप मेसे जो भी फकसी भी समस्या से पीवडत हो ईसका कोइ हल नहीं सूझ रहा हो , समय न हो ,बडी साधना करने की तो एक बार आस स्त्रोत को पूरी गंभीरता से ईपयोग करे , यह स्त्रोत ,बाज़ार मेंअसानी से वमल जाता हैंबहुत ही ऄल्पमोलीय हैं पर आसका प्रभाव बहुत ही ऄद्भुत हैं ,
सदगुरुदेव के मूल स्वरुप भगवान् नारायण के पालन कताम और रक्षा कताम स्वरुप का यह स्त्रोत अपके वलए सौभाग्य
के रास्ते खोल देगा और आसे जीवन की हर वह स्थवत जो की अपके वलए
समस्या हो ईसके वलए ईपयोग फकया जा सकता हैं .