AKASMIK DHAN PRAPTI - CHINCHINI SADHNA
धन मानव जवन क अज सबसे बड़ अवयकता ह,बना ,बना धन के मानव जवन क अज के अधु नक जवन क कपना कपना करना करना एक एक मृ ग मरिका ह मरिका ह ह.जब .जब धन क बात अये तो जतना एक जतना एक सामाय मानव सामाय मानव से सं संभव भव होता ह होता ह वह हर वह हर संभव भव यास करता ह ह .पर .पर हर यास क एक समा ह पर पर जब साधक साधना का असरा ले ता ह तो तो वह वह ऄपन आस ऄपन आस समा को कइ कइ गु णा बढ़ा बढ़ा सकता सकता ह ह.और जब .और जब बात साधनामक यास क अये तब पारद क ईपयोगता से कौन कौन आनकार कर सकता ह .पारद .पारद म वयं वयं ह लम तव तव समाहत समाहत ह और हमारा सौभाय होता ह क क हमारे घर परवार म एक ऐसा ई ऐसा ई को का पारद पारद वह वह हो,पर वह के साथ साथ पारद गु काओ क अये तो यह तो सौभाय क बात ह.पारद .पारद पर अधारत यह द योग अपके लए अकमक धन ा के नए नए नए नए ार ार खोलने म म समथ ह ह . . यह योग साधक कस भ भ ऄमावया क रा को करे. समय रा म १० १० बजे के के बाद का रहे. साधक ऄगर यह योग मशान म करे करे तो सवम है ले कन ऄगर मशान म साधना साधना कस भ हालत म संभव भव ना हो तो ऐस थत म साधक साधक को यह योग कस नज न थान म करना करना िाहए. आस योग म साधक साधक को लाल रंग के व धारण करने है तथा तथा लाल रंग के असन पर बै ठना है. साधक का मु ख ईर दशा क तरफ होना होना िाहए. साधक सव थम ऄपने सामने को कस म के पा म थापत थापत कर. दे वरंजन गु का के ऄलावा यह योग दे दयमान गु का या ऄणु स स गोलक पर भ सपन कया जा सकता है. साधक सव थम थम गु पू जन सं प करे. गणेश पू जन, भै रव पू जन को कंर के बाद साधक को गु का का पू जन करना है. साधक को गु का का पू जन पू ण होने होने पर पर गु म का जाप करना िाहए. गु म का जाप करने के के बाद साधक को न म का ईारण कर गु का गु का पर एक लाल गु लाब का पु प ऄपत करना है. आस कार कम से कम कम ७ लाल रंग के गु लाब पु प को ऄपत करना ि ाहए. साधक २१, ५१, १०८ पु प पु प भ ऄपत कर सकता है ह ै ले कन ७ पु प को ऄपत करना ऄनवाय है है. ऄगर साधक गु लाब के पु प ा न कर पाए तो कस भ दू द सरे ू लाल रंग के पु प ह होनेि ाहए ि ाहए साधक को यथा संभव कोशश करन िाहए क लाल गु लाब गु लाब के पु प का ह योग कया जाए.
आसके बाद साधक लाल हकक या मू ं गे क माला या ऄगर यह भ ईपलध न हो पाए तो ा माला से ईपरो म का ११ माला जाप करना है . आसके बाद दे व को ाथ ना कर क वह धन सबं धत समयाओ का समाधान दे तथा जवन के ऄभावो को दू र कर. ी छोड़ दे तथा गु का को ले कर घर म पू जा साधक पु प तथा वह म के पा को वह थान म थापत कर दे. साधक को श ह ऄनुकल ू परणाम क ा होत है. साधक को आस योग म ईपयोग क गइ माला को ऄपने पास रखना िाहए. यह माला का अगे भ यह योग को दु बारा करने के लए ईपयोग कया जा सकता है. AAKASMIK DHAN PRAPTI - SWARNA MALA PRAYOG
जीवन म धन क आवयकत को कौन नकर सकत है , आज के य ु ग मि कसी भी े क सफलत क आधर धन ही तो है. एक िय के जीवन म वह आयिमक तथ िभौतक उिनत के िलए ही तो हमे श कय करत रहत है. पढ़ई तथ ििववध कय मि नप ू ण बनने म िय शरीरक तथ मिनसक म कर जीवन के बह म म ू य िदन और बह ू य समय को यय करत है, य िफर ििववध कय से अन ुभव एिकत करत है. और यह सब वह करत है एक स प ण स ु खी िभवय के िलए िजसमे उसे ू ु ख क ि हो सके, प ू ण भोग क ि हो सके तथ समज म एक आदश िय बन प ू ण मन समन को िअज त कर सके. िलेकन इन सब के म ू ल म य धन नह है? धन क िअनवय त को ििनव विदत प से आज के य ु ग म वीकर करन ही पड़त है. चहे वह सम ृि हो, ििववध वत ुओ क उपभोग हो य िफर उचतम िश को िअज त करन हो. इन सब क आधर धन ही तो है. िलेकन कई बर भय से व ि चत ं िय के ऊपर क ु दरत अपनी महे रबनी नह िदखती. और एसी ििथत म ियको अपने कई कई वन क यग करन पड़त है तथ कई कर के स ु ख भोग से व ि चत ं रहन पड़त है. जीवन के इही िबोजल ण म उसक आमबल धीरे धीरे ीण होने लगत है तथ िभवय म भी वह अपनी ििथत को वीकर कर जीवन को इसी कर बोज प ू ण प से आगे बढने लगत है. यह िकसी भी कर से े यकर ििथत तो नह है. खस कर जब हमरे पस सधनओ क बल
हो, हमरे प ू व जो क आशीवद उनके न के प म हमरे चर तरफ सधन िवन बन कर ि बखर ह आ हो. त ं सधनओ म एक से एक िवलण योग धन क ि म सधक को सहयत दन करने के िलए हैि जसके मयम से सधक के समने नए नए धन के ोत ख ु लने लगते है, के ह वे धन को करने क अवसर होत है तथ नन कर से उसको धन क ि हो सकती है, और िफर अगर यह सब अचनक य आिकमक प से हो तो उसक तो बत ही य. ऐसे ही द ु लभ आिकमक धन ि के योग म से एक योग है वण मल योग. िजसमे परद के स ं योग से ती आकष ण के वशीभ ू त हो कर इस दे व योनी को सधक क सहयत करने के ि लए बय होन पड़त है, िलेकन िववशत प ू ण नह, शनत प ू व क ही तो. य क जह ं त ंि क िय के सथ सथ िवश ु परद के चै तयत क स ं योग होत है, वहा तो सधक क तरफ दे व योनी क भी आिकष त होन वभिवक ही है. त ु त योग ऐस ही एक ग ु ढ़ िवधन है, िजसे ू प ण मनोयोग के सथ सपन करने पर सधक को उपरो लभ क ि होती है तथ शी ही धन सब ंधी समयओ क िनरकरण होत है. यह योग सधक िकसी भी प ूि ण म क री म कर सकत है. सधक यह योग िकसी वटव ृ के िनचे करे सधक री म १० बजे के बद नन िआद सेि नव ृ त हो कर िकसी भी स ु िसजत व को धरण करे तथ वटव ृ के िनचे पीले आसन पर बै ठ जए. सधक को उर िदश क तरफ म ु ख कर बैठन चिहए. सधक को इस योग म स ु िगधत अगरबी लगनी चिहए, अपने व पर भी इ लगन चिहए. सधक को कोई िमठई क भोग अपने पस रख सकत है. इसके अलव सधक को खने वल पन िजसमे कथ स ु परी तथ इलइची डली ह ई हो उसको भी सिमपत कर सकत है. सव थम सधक ग ु पारद से ु प ू जन तथ ग ु म क जप करे. उसके बद सधक वश वनवमत यवणी ुग वका को अपने समने िकसी प म थिपत करे तथ उसक प ू जन करे. ियणी ग ुि टक क अन ु पिलध म सधक सदय क ं कण पर भी यह योग कर सकत है . प ू जन के बद सधक दे वी वण मल को व ं दन करे तथ आिकमक धन ि के िलए सहय करने के िलए िवन ं ती करे. इसके बद सधक यथ स ंभव म ृ य ु ं जय म क जप करे. इसके बद सधक िफटकमल से य मल सेि नन म क २१ मल म जप करे.
(om shreem shreem swarnamaale dravyasiddhim hoom hoom thah thah)
म जप ू प ण होने पर सधक वण मल ियणी को व दन ं करे तथ िमठई/पन वय ं हण करे. मल क िवसज न सधक को नह करन है सधक इस मल क िभवय म भी इस योग हे त ु उपयोग कर सकत है. NAKHANIYA PRAYOG KA EK AUR ADBHUT VIDHAAN
|| ि नय ही यह सप ृि उस पर महपर िश क कपन िवतर ही तो है जो अपने अ ं श ू ण स भ ृ तव, आरोय, च ृि जत करती है तभी तो ऐय को ू तो को अम ु र ऐय के स ं य ु वरदन से स भी सौदय कह गय है.
महकल रि क पव अपने आप म उसह जय तो है ही परत ु एक सधक के िलए अन क चरम परक को भी वय ं म समे टे ह ए है. य कभी सोच है क अधकर क ुभ ूि त त ु लन म कश मि वचलन और म कह िअधक तीत से होने क सभवन रहती है, यिक कश मि चत क एकत क तर िवख ि डत ु अधकर म सम ू ण ं स होत है परत कमि य, िनेया और आम इ ि य प ण एकत के सथ लय क ओर िगतशील होती ं ं ू ह. इिसीलए िवचलन क सभवन कम होती है. अन ुभव िवषय है अवथ क जो न ि के पत बढ़त जत हैि कत आम क अवथ है, िभौतक नह और अन को ु अन ुभ ूि त ुभ ूि त अपने सथ िलए आम एक दे ह से ू द सरी दे ह तक क य करते चली जती है तब तक, जब तक क वह अपने परम लय तक न पह च ं जए. जीवन के चर प के अ तग ु षथ म से तीन अन ुभ ूि त ं त आते ह-
धम अथ कम ये तीन तो िनय ही अन क शत से ही होते हि कत ुभ ूि तय ु मो क गणन अन म नह हो सकती, मो तो प क समत के पत ही ुभ ूि तय ू ण त हैि जसे अन ुभ ूि तय ि कय ज सकत है. शयद हम इस िवषय क ग ंभीरत को ऐसे नह समझ पए गे ं ,और समझ गे भी तब जब हमरी आम क समन वय ं ऐसी ही अन से हो जये ग. ुभ ूि तय
. ऊपर के ोक म उसी योग क क ू ट भष म वण न िकय गय है. आवयकत म उसे समझने क है.यद िरखये सदगु दे व हमे श कहते थे क िजसने कल क िगत को समझकर तदन ु प यवहर और िय करन सीख िलय,उसक उिनत को कोई नह रोक सकत है. यहा बत म धन ि क नह है िअपत ु सथ ही सथ जीवन के ििववध रस म सेि कसी एक रस को ू प ण ि क भी हो रही है.वतव म निखनय त ं ििववध ििवधय क स ह ं ही तो है,जो म इसी एक त से ं म स ह ं क गयी ह और िजनके र आप अपन अभी त योग ं कर सकते ह. ियद हम श ं त अवथ म यनथ हो पते ह तो इसे हम धम क अन ुभ ूि त ही कह गे तद भी अय ं त आवयक है,य ुभ ूि त ू ंि क इसके पत ही कम पी ु पर ं त अथ क अन सोपन को पर करके आप मो क ि कर पते ह.इिसलए अथ के सोपन क ि भी अय ं त आवयक है और ये ुद लभ योग सधक के उसी अभी को ू प ण करत है. ऊपर कह भी गय है क परिश क वही सबध जो एक समय पदथ से होत है,और ि जसके फलवप उस पदथ म एक ििवश उजक क िनम ण होत है और होती है उसे एक ििवश मत य ग ु ण क ि. उस सबध य तर क वय ं से स पक ं बनकर िनय ही सधक च ु र ऐय क ि क ज सकती है. इस अ ु नरयल (ि जसे उपरो ोक म जगत य ड कह गय ु त योग म एक जटय है) और च ं दी क कलम य बरक तर क आवशकत होती है.तथ स ृ जरस य ुक मक ु म के र म ं िवशे ष क अ ं कन कर के उस नरयल के समने म ं क जप करने से ऊज क क भे दन हो जत है और िय क सप ू ण त उसे लल व म बाध दे ने से होती हैि. जसके र कयि िस और ऐय क ि क द ु लभ घटन िघटत होती ही है. ड ऊज भे दन अथ त नरयल पी जगत के ऊजके क भे दन म दीपवली क महरि को ही स ंभव है.य ू ंि क ड म सभी पदथ क उजक िभन िभन समय पर ही भेि दत िकय ज सकत है.और इसके र अस ंभव कय को स ंभव िकय ज सकत है.िकत ु वो एक थक त िवन है.और समय आने पर म उनक िववे चन सदग ु दे व के आशीव द से अवय ं काग.पर बत िफलहल इस योग क और ोक के क ू टथ को समझने क हो रही है.
इस योग को दीपवली क रि म ठीकि मथ ु न लन के र ंभ के सथ िकय जत है.इस ि दन सधक िदन म न सोये.रि म सधन म लल व धरण कर स पन ं क जती है.लल आसन,ितल के ते ल क दीपक,रप े म ु प य ग दे क ुप प,खीर क नैव . ू ग ं य कमलगे क मल. ि मथ प व ही ग प जन,गणिपत ू प जन िआद स ं पन कर ल. और इस ु न लन के र ंभ होने के ू ु ू अ ु िमत और सफलत क आशीवद क थन ु त योग को स ं पन करने क स ं कप,अन कर. ये सभी म प ू वि दश क ओर म ु ख करके करन है.तपत िमथ ु न लन र ंभ होते ही समने भ यी हो तथ उस पर एक लल व िबछ ह आ हो.उस ूि म पर जो पहले से वछ क ह व पर क ु मक ु म और ितल के ते ल के र सीधे हथ क अनिमक ऊागली से “” अ ि कत ं कर द और उसके ऊपर आपक मनोकमन िलख ह आ भोजप य कगत क ुट कड़ रख द तथ उस कगज़ पर नरयल थिपत कर द,उस नरयल के ऊपर क ु मक ु म के र (जो क ि तल के ते ल से गील िकय ह आ हो) च ं दी के तर य कलम से एक अधोम ु खी िकोण बनकर उपरो िच म िदश त य क िनमण कर और इसके बद उसक महलमी वप मनकर ू प जन िकय जये.तथ दीपक ितल ते ल क हो,खीर क नैव े हो,ग ु लब क ध ू प िवलत कर ल और हो सके तो क ु छ िसके िअप त कर तथ प ु प िअप त कर.इसके बद ि ससन,स ु खसन िआद मि थर िच होकर उस नरयल पर अ ंि कत य को दे खते ह ए िनन म ं क ११ मल म ं जप कमलगे य म ू ं गे क मल से कर.
OM HREENG SHREEM LAKSHMI MAHALAKSHMI SARVKAAMPRADE SARV SOUBHAAGYDAAYINI ABHIMART PRAYACHCHH SARVE SARVGAT SURUPE SARV DURJAY VIMOCHINI HREENG SAH SWAHA
जप के पत उस नरयल को णम कर उसी लल कपडे मि सके तथ च ं दी के तर के सथ बाध कर उस प प ज क म ही रख द.दीपक प ू री रत ू ू री रत जलते रहन चिहए.भोग आप वय ं हण कर और द ु बह उस कपडे मि लपटे नरयल को अपने कोषगर य ु सरे िदन स अलमरी के लकर अथव प ू जन थल पर ही थिपत कर द.िनय ध ू प दीप िदखएा और हो सके तो २-५ पयेि नय रखते जएा.घर सेि कसी भी िआथक मसले से सब ंि धत कय के िलए जते समय इस म फ क ल और उस हथ को ू प रे शरीर पर ं क २४ बर उचरण कर हथ पर ा ू फेर कर जएा.चमकर और िदिनोदन हो रही उिनत को आप वय ं दे ख गे. ऐसेि वधन को म स ं जोकर नह रखन चिहए,िअपत ु इसक योग वय ं स ं पन कर ुद भय को ू द र कर वय ं को भयशली बनन चिहए.तभी सथकत है हमरे जीवन क और सदग ु दे व के वन को सकर करने के िलए बढते ह ए आपके एक और सफल कदम क . PAARAD SHRI YANTRA EVAM CHAKRESHVARI VIDHAAN
“रिसव परिव ै लोयैऽपी स ु द ु लभ” वतव म त ं े अ ु त है , त ं े हर एक प तथ हर एक तय य िय म कई कई कर के रहय को अपने आप म समे टे ह वे होत है. भगवन िआिदशव के ििववध वप तथ िआद िश के ििववध वप के स ं वद के प मि िववध त ं चलन म आये, इसी कर त न क सव े ियओ के सथ ६४ कर के त ं ं चलन म आय िजसमे रिसव, रसत ं य परद त ं अ ि तम ं त ं कह गय और इसी िच तन ं क सथकत पर हमरे िआद रसचय तथ त चय ने श श ु कई कर क ं ं भर वीकर िकय तथ ििववध रहय से य रिसयओ ं को जनमनस को दन िकय. परमकयण वप यह िव तथ परद से सब ंि धत गोपनीय िवषय को ही रिसव कह जत है. और परद को ििववध तथ िवशे ष ियओ के मयम से ब कर िशव वरदन के मयम से उसक लभ मन ु य को होत आय है. हम ं ड म ३ म ु ख िवएा है जो क िसिमलत प म भगवती िप ु र स ु ं दरी क ं डीय प रजरजेरी ही है. अपरिव
परपर िव परिव गध त ं के अन ु सर यह तीन एक ही सधन के तीन म है; अपर आत ं रक न ि है, परपर आत ं रक तथ ब न के िसिमलत वप क से त ु हैि जसमे अपरिव िसिमलत हो जती है तथ परिव ं डीय न ि क वप हैि जसमे अपर तथ परपर भी िसिमलत हो जते है. इस िलए म ृि के समत भोग तथ मो सव ू ल प से परिव स करने के िलए समथ है. जे से क ऊपर कह गय है क वतव म इस स ंि परिश क ि वत ृ त प ीभगवती रजरजेरी िप ु रस ु ं दरी है. तथ उही क ििववध कर क िशय को एक ं डीय के म थिपत होने पर जो आक ृि त क िनमण होत है वह ीय ं है. परिश वतव म व ृ हद िवषय हैि जस पर एक लेख मि िववरण दे न िकसी भी कर से स ंभव नह है. यहा पर इसक उले ख करन आवयक इस िलए है य क ीिआद िशव के भै रव वप के ीम ु ख से उचरत उपरो प ंि एक समय प ंि न हो कर अिनगनत रहय को अपने अ दर ं समे टे ह वे हैि जसमे रिसव को परिव के सथ जोड़ गय है. प ंि क अथ है क रिसव तथ परिव िसिमलत प म तीन लोको म भी करन िअत द ु लभ है तथ इसक िववे चन इस कर से है क रिसव अथत परद क परिव अथत भगवती ि प ु रस ु दरी ू ल के ीय ं क ं डीय वप थ ं को करन अथत परद ीय ं िलोक म भी िनय ही द ु लभ है. वत ु त हम ीय ं को लमी क य ं मनते है जब क यह एक म िमय धरण है , ीय ं भगवती िप ृ हद वप य ड यपी िश के वप िजसे रजरजेरी ु र स ु ं दरी के भी व भी कह गय है, उनक ही ितक ृि त है. िनय ही ऐस िवह समत कर क मनोकमन क प ूि त कर सकत है तथ भोग एव ं मो के सथ सथ सधक को सवनती क ि कर सकत है, इसी िलए इस य ं क इतन िअधक चर तथ सर ह आ है िलेकन कल म म इसक आक ृि त म रह गई है िलेकन सब ंि धत िवधन ल ु य होने लग है. य क जब बत ीय ं क हो तब बत समत ड क िशय को एक जगह पर एिकत कर के थपन करने क िय है. वत प णि वधन के यह कयि कसी भी कर से स ंभव है? ु त िबन योय और ू नह. और ऐसे अश ृि त िच य म ु और अचे तन य ं , य ं न हो कर म एक आक ूि त ही है ि जसे थिपत कर लभ करने क आश रखन यथ ही है और िफर जब बत परद ी
य ं क आती है तो िनय ही उसके िशथपन तथ ण ित क म िकतन द ु लभ हो सकत है यह एक सधक ही समज सकत है. ू प णि वधन सब ि धत ं ियओ के म नम भी ि दए जए तो भी एक ुप तक बन सकती है परद के अ स कर करने पर परद क म ू ल श ुि होती है म ऐसे ही परद क योग इस ं ि वह के िनमण मि कय जत है. इसके बद इस कर के परद को म ो ूम ं के मयम से स िशोधत िकय जत है. तथ उसेि िववध रसरसयन तथ त ो ं ियओ के मयम से य ं ं कन िकय जत है. यह य ं ं कन भी िकतन ुद लभ तथ मसय होत है, ीिव उपसक तथ सधकगण इसके बरे म जनते है. आक ृि त मि कसी भी कर क थोड स भी अ ं तर आने पर वह िश के नह बन पत, िजसके करण उस आधर पर थिपत िश तथ ू द सरी आधरत िशय को थन नह होत और य ं को चे तन ही नह हो पती. इस अ ं कन के बद इसम व ृ हद प से भगवन गणे श क थपन िकय जत है, बहोत कम लोग जनते है क भगवन गणे श के ५१ व ृ हद वप है जो क िय के जीवन के समत कर के िवन क नश कर सभी द ु गि त क तभन करते है. सथ ही सथ ५१ पीठ िशय क थपन, अ ियोगनी थपन षोडश मिक िशय क थपन िकय जत है. िजसके मयम से िय जीवन स ु ख से ज ु डी ह ई सभी िशय क आशीष कर जीवन के सभी े तथ सभी प म उिनत कर सकत है इस िय के बद क म अियधक ग ु ढ़ है ि जसमे समत दस म ू ल महिव तथ ६ वप महिवओ क भै रव सह थपन िकय जत है. िनय ही सधक को यह म सधक को एक तरफ जह ं धन, यश, समन पद ित उिनत शी दन करत सकत है उसी कर ििववध सधनओ से सब ंि धत आयम ि वषय के रहय से भी सधक को अवगत कर दे त है. सथ ही सथ सधक के अ दर ं क सत ् रज तथ तम य न इछ तथ िय िशय के जगरण को करने वली ििव अथ त महसरवती, महलमी तथ महकली क थपन िकय जत है इस गोपनीय म म लमी के ििववध वप क िवशे ष थपन योग सपन होत है. अ ं त मि िववध ियओ से भगवती कमय िललतब तथ रजरजेरी क थपन करने के बद ि िववध त ंि क म ं ो तथ म ु ओ से इसे अिभीस ि चत ं िकय जत है तथ अच न िय क जती है. इस कर सेि िनम त परदीय ं सधक को भल य क ु छ करने क समय नह रखत. वत प ण चै तय ण िितत परद ी य ं पर ुद लभ योग सपन होते है. कई ु त ऐसेि वश ु ू
कर क िमय धरणओ म यह एक धरण गत क गई है क यह य ं म धन सब ि धत ं य ं है, जब क िनय ही ऐस नह है. ऐसे य ं पर एक तरफ जह ं परिलौकक सधन सपन क जती है वही ा द ू सरी तरफ त ंि क षट ् कम भी ऐसेि वह के मयम सेि कये ज सकते है. परदी य ं के ित म म एक गोपनीय म कनकवती थपन भी है . इस कर क ि य के मयम से िितत ह वे परदीय ं के मयम से वणि नमण क िय भी सपन क ज सकती है. वही ा द ं सधन य परजगत सधन करते समय इस ू सरी और योग त ि क कर के िवह को समने रखने पर सफलतओ को सभवन कई ग ु न बढ़ जन वभिवक ही है. इस म म परद ीय ं से सब ंि धत क ु छ ुद लभ योग आपके समने रखे ज रहे हैि जसके मयम से समत सधक गण इसक लभ कर सके. सव थम योग भगवती िप ु रस ु ं दरी के चे री वप से सब ंि धत योग है. यह द ु लभ योग िवधन सहज है िलेकन सधक को यह ििववध कर क उपिलधय क ि शी ही करवने म समथ हैि जसके मयम से सधक अपने जीवन के दोन प भोग तथ मो क प ृ ं गर कर सकत है. ू ण चे री िवधन : इस योग को सधक िकसी भी िरववर क रि को कर सकत है. समय १० बजे के बद क रहे. सधक नन िआद सेि नव ृ त हो कर लल व को धरण करे तथ लल आसन पर उर ि दश क तरफ म ु ख कर बै ठ जए. अपने समने सधक िकसी बजोट पर सफ़ेद व पर परदीय ं को थिपत करे तथ उसके बद सधक मन ही मन अपन स कप ं य इछ य करे, जे से क धन ि, पदोिनत य कोई िवशे ष इछ. इसके बद सधक म ं क जप करे . यह जप म ू ं ग मल से करे. सधक थम िनन म क एक मल जप करे ॎ ऐ ं सौ (OM AING HREEM SHREEM SAUH ) एक मल हो जने पर सधक िनन म ं क २१ मल जप करे ॎ ऐ ं िप ुरशे ी चे री नम
(OM AING HREEM SHREEM TRIPURESHI CHAKRESHWARI NAMAH)
२१ मल म ु र जप समपण करे तथ दे वी को नमकर ं जप हो जने पर सधक योनी म करे. यह एक िदवसीय योग करने पर सधक कई कर से अपने जीवन को स वर ं सकत है, धन सब ि धत ं समयओ क समधन होत है, सधक के कय े म सधक को मन समन क ि होती है, सधक क वणी म एक िमठस तथ लोच आजती हैि जसके मयम से सधक िकसी भी िय को भिवत करने म समथ हो जत है. सधक को मल क िवसज न नह करन है इस मल क योग सधक कई बर कर सकत है. इस कर के कई और ुद लभ योग भी जो क प ू णि वश ु चै तय ण िितत परद ी य ं पर िकये जते है, िजसे आने वले लेखो मि दय जये ग. TIBBATI SAMPOORN SAABAR LAKSHMI VASHIKARAN VIDHAAN
ी लमीजात ं वह स सार ् सवत जगयम ् | ं ं तवमन तवमन ् ीणे जगत ् ीण ं तविचवकसय ं यनतः || “ी लमी का काय यह स सार ं है.आनके अवभा से ही तीन जगत क ईपव होती ह और आनका वतरोभा होने पर जगत का ऄभा हो जाता है.आसवलए यन कर ईही क ाव का या ये कह क सद ् ाव का विार करना िावहए .” उपरो प ंि या तीक ह उस सचई क िजसके धरतल पर सम िव िगतशील है. आज धन क उपियोगत को नकर नह ज सकत है. परिवन पर शोध के मय सदग ु दे व के आशीवद से मे र परचय और सबध ििववध सधक और उनक पितय से ह आ.अपने समथ भर म ने उन स ू को आमसत करने और समझने क यस भी िकय जो म ए थे. ऐसे ही एक सधक के पस म ु झे उन मिनीषय से ह ु झे एक िवशे ष य को दे खने क सौभय िमल,जब म अपनी अणचल दे श क य पर थ. अपनी दी के बद से मे र कय े एक कर से उरप ू व भरत ही हो गय थ. परद िवन,आय ु व द,ती त ं और श पितय के अच ू क रहय क न म ु झे इसी िदश के थन िवशे ष से ह आ.खस तौर पर कौल मग क जो सजीवत और िय म ने यहा अन ुभव क और सी रह,वे कदिप िकसी अय दे श म म ु झे दे खने को नह िमली थी .
खै र िजस य क म बत कर रह ह ा ,वह य म ु झे बोधमठ अम के वमी ी तारानाथ जी के पस थ.और ी कालीद शमा जी के िनद श पर म वहा गय थ.उहने म ु झसे कह थ क एक बर त ु म जकर उस य क िवशे षत अवय अन ुभव करन. और उसी उस ु कत म म उस आम को ढ ा ढत ढ ा ढत प ं ह च गय.जब म ने वमी जी को अपने आगमन क उे य बतय और ू ू शम जी क प िदय तो वे बह त सन ह ए. रिकल म भोजन के समय उस छोटी सी क ुि टय म जहा कोई से वक और यवथ नह थी,म ु झे भरप ह उस े िवशे ष म न तो ग ह क ही िवशेष पै दवर होती है और ू र भोजन क ि यी.जिबक न ही ििववध फल ही म ु झे रह मि दखई पड़े थे.िफर भी ग ह क गरमगरम रोटी,मे री मनपस द ं सजी,पस ं दीद चवल और कई पकवन क वद म ने उस री को उस थन पर िलय. वमी जी के बजोट के बए ं तरफ एक ओर बजोट रख ह आ थ,और वमी जी न उस पर बजोट पर खली थल और कटोरी रख दी थी और उसके ऊपर लल रेशम क व ढ क ं िदय थ,और ि कसी म ं िवशे ष क उचरण करते ह ए उहने एक ते ल क दीपक उस थली वले बजोट के समने िवलत कर िदय थ.थोड़ी दे र बद जब उहने उस व को उस थल के ऊपर से उठय तो उसम गरमगरम भोजन मौज ू द थ. भरपे ट खने के बद म वमी जी के पस बै ठ गय और उनके समने म ने उस य क चच छेड़ दी िजसके बरे म म ु झे शम जी ने बतय थ.जैस े ही म ने य क बत क वमी जी ठठकर ह स ं पड़े और कह क अरे अभी जो त ु मने भोजन िकय है,वो भोजन भल इस वीरने मि कस द ु कन पर ि मलत,वो भोजन उसी य के तप से म ु झेि मल जत है. म ने िशमद होकर उनसे म म ं गी और िवतर से उस य के बरे म जनने क इछ कट क.तब उहने म ु झे कह क इस बरे म त ु हे सदग ु दे से बेहतर और कोई नह बत सकत है,हा इसक जनकरी और भी क ु छ लोग को है और उन सभी लोगो ने इस य क लभ अपने जीवन म प ा ू री तरह से उठय भी है.मेरे ये प ू छने पर क य उनम सेि कसी से मि मल सकत ह उहने ी ऄण ुक मार शमा जी क नम बतय. और सथ ही य और उसक िनमण ििवध को भी उहने समझय. जब म ने सदग ु दे व से उस य के बरे म प ू छ तो उहने बतय क म ू लत “ये साबर य है,िजसक िवधन भरत से होकर ितबत तक प ं ह च गय और वही ा पर इसक प ू णि िवध भी िचलत है. वजस कार ीय ं अवथक ईनवत और मनोकामना प त का सश मायम
माना गया है,ैसे ही ये साबर य ं लमी क ऄकमात ाव,लमी का ब ंधन और दरता वनारण का वतबत म िऄ क ईपाय माना जाता रहा है, आस य के ारा जम जमातर क दरता का नाश वकया जाता है. साबर म ैवदक म और ता ं वक म क ऄपेा कइ ुग ना ऄवधक ती होत है.इथर शव का वतवनवध करने ाली शवय को श म करके ईनसे ऄपनी मनोकामना क प त क जाती है.जबवक ैवदक साधना और म ं मा दे शवय का ऄन करते ह.जबवक आसी ाड म ईही ु ह ा कर काय स पावदत ं तो से ऄय शवया ं भी वनवमत होती ह,वजनसे दे ग क वनवमव स पन ं ह यी है.साबर वधान म ईही ऄय शवय को म ं बल से ऄन ु क ल कर कह ऄवधक सहजता से काय को सफलता प कराया जा सकता है.” क स पावदत ं इस य के ऊपर तीन कर से योग स पिदत िकये ज सकते ह ं सौय पित से त ंि क पित से ती सबरी पित से
तीन पितय से परणम िभन िभन होते ह,य द सरी ू ंि क येक पित क सधिनय ू पित सेि भन होती है,और िभनत होती है उनक सधन समी म भी. ऄवत ईिचाथा और ती म से साधन वया करने पर ु श य से पदाथ ाव,शव का यीकरण और मनोन ु क ल गमन भी स ंभ है,िकत ु यहा हमर अभी ये नह है.और न ही हम उस पर य उस िवधन पर कोई चच ही करेग,े य ू ंि क वो हमरी िथमकत नह है यहा हमर अभी है,उस िआथ क वत ं त और उिनत को पन िजसके र िआथ क अभव को हमरे जीवन से कोस ू द र िकय ज सके,ितल ितल कर मरने से कह बेहतर ह दरत क सम ू ल नश तिक आपके बद आपक आने वली िपीढय ं भी स ए अपने जीवन म ी लमी क ु कम करते ह थियव दे ख सक और उसक मनोन ु क ू ल उपभोग कर सक .
वै से भी कह जत है क दरत से त और िअभश िय हर पल मरते जत है. अपनी स ं तन य भई बहन के जीवन िवकस हे त ु सम ुि चत अथ क यवथ न कर पने से बड़ द ुख और य है......
अपने परवर के सदय को रोगत होकर तडपते दे खने से और उनके उपचर हे त ु िउचत िआथ क ब ंध न कर पने से िअधक िववशत य हो सकती है....... अपने बच क छोटी से छोटी इछ को िआथ क कमजोरी के करण प ू र न कर पने से िअधक बड़ प य हो सकत है....... ग ु ण क खन होने के बद भी म धन क कमी के करण अपनी वै चरक योजनओ ं को सकर न कर पने से बड़ी पीड़ य हो सकती है...... कज लेकर यवसय र ंभ करने पर भी आपक तरफ न तो हक यन दे त हो और न ही धन....तब ऐसी ििथत म वो कज और उसे लेने के पीछे दे खे गए सपने को च ू र च ू र होते दे खने से बड़ जहर य हो सकत है....... आपक अपन धन आपक कोई अपन ही आपको भव ु कत के सगर म बहकर य धोख दे कर हड़प िलय हो और वपस न कर रह हो..इससे बड़ ुद भय और य हो सकत है..... गय ऄण ुक मार शमा जी क म त ने ह थ और असर म उनसे ग ु झसे बह ु िवन और रहय क न िकय करत थ,इसी म म इस य के बरे म उहने म ु झे बतते ह ए कह थ क “वै से श म दरत िनवरण और धन ि के ििववध योग ह,िकत ु सधन समी क अन ु पलधत, सधन और िउचत िवधन क कमी तथ कठोर िनयम और ल ं बे िवधन के करण उह स ं पन करन मन िजटलतओ ं से दो दो हथ करन ही है. िकत ु ऐसी ििथत म यवसय,नौकरी और िआथ क स ण साबर लमी शीकरण ु णत ि के िलए वतबती सप महाय ं और उससे सब ंि धत िवधन को करन कही यद आसन और सफलत दयक है.” ऄ ं क और शद के स योजन से वनवमत आस य का ऄ ं कन और ाण वता वधान ं ऄय त ण योग वकया ं भाकारी और ुग है,तथा अज तक वजसने भी आस य का प है,ईसे ऄपने जीन म वफर कभी पीछे ुम ड़कर देखने क अशयकता महस स नह ह यी और ो अवथक प से मजब त होकर अगे बढ़ता िला गया.. सदग ु दे के न को प ण करने के वलए मा तन और मन क अयकता ही नह है,ऄवपत ु ईिवत परमाण म धन का होना भी ऄवनाय है,और मा सदग ू,य ं ु दे के न को [प रा करने म ही य के न भी तो धन के ऄभा म प रे नह हो सकते ह.मने आस योग को वकया है,और प रा लाभ पाया है,और ऄपने एनी भाइ बहन के सम आसे रखने का मेरा लािल भी यही है क े सभी भी अवथक प से मजब त होकर ऄपने न को प रा करते ह ए ुग काय कर सके.
इस य क ण ित म अय ं त म करन पड़त है,य ू ंि क एक तो इसे ण िितत करने क ि वधन सबर मग क है,द ु सरे हर य क ण ित थक थक ही करनी पड़ती है,तीसरे हर य ं को चै तयत दे ने क कय और क ु छ गोपनीय म ु ओ ं क दश न करते ह ए म ं जप अलग अलग ही य िवशे ष के समनेि कय जत है.अत परम क िआधय होन वभिवक ही है....िकत ु जब आप सभी इससे सब ंि धत योग कर सफलत कर लोगे तो म ु झे मेरे परम क परिमक आपके आद मि मल ही जएग . ये य उन सभी भई बहन के िलए “वनवखल परावान शोध आकाइ”(NPRU) क ओर से उपहर है जो अपने जीवन म िआथ क आधर और मजब ू ती करन चहते ह,जो अब ि गिडगडते ह ए धन के िलए तरस तरस कर जीवन नह जीन चहते ह.,और इसक वयद म ने “यवणी ऄसरा सेमीनार” म सभी सेि कय थ.हा म दवे से कह सकत ह ा क इस य और उसके िवधन क योग करने पर भय आपको अन ु क ू लत दे ग ही....आपके यवसय,नौकरी म चत ु म ु खी उिनत और िगत के सथ सथ ये नवीन मग भी शत करेग िआथ कत के सम ुि चत वे श हे त ु. अय िवधन म शयद िवफलत क म ु ं ह दे खन िफर भी स ंभव होग,िकत ु ये सबर िवधन अपने आप मि वलण है,इसे य के समनेि स करन बह त ही आसन है..म ३४ िदन,क ु छ घरेल ु समी सेि नय प ि त घ ृ त और खीर ू जन और िितदन रि म १ मल म ं जप,३४ आह क...और उसके बद म य थपन....क ु छ सवधिनय क यन रखन है,वो िवधन के सथ ही स ं लन रह गी.आप उनक पलन किजये ग और य क लभ उठइये ग. आप सभी ऄन ु राग वस ह ं गौतम भाइ(
[email protected]) को इस य क ि हे त ु मे ल भे ज िदीजयेग,यन िरखयेग क म ु झे य अय िकसी भी मे ल एेस पर य ि के िलए मे ल भे जने से म आप अपन समय ही यथ करगे.य के सथ ही आपको इसक योग ििवध ेिषत कर दी जयेगी.. याद रवखयेगा क य और ईसका वधान वमलकर ही प री वया होती है.ऄतः अप ना तो ऄपना य वकसी को एक बार पश करने के बाद दे सकते ह ना ही बगैर ऄन ु मवत के आसका वधान मने आस हे ुत ऄन ु मवत लेने के बाद ही आस बह म य साधन वया को अप सभी के वलए ईपलध कराया है..ऄतः वनदश का यान ऄय रखऄयथा होने ाली हावन के वजमेदार अप य ं ही हगे..
ये िवधन और य म आपके अपने वन और घर के िलए है..क ु तक त क यहा कोई जगह ही नह है. क ु त म अपन और हमर समय यथ करने क कय है.. समय अभव के करण म बह ा ,अत िजस म से मे ल पहले आ जयेगी,म ये त कम य िस करके उपलध कर पय ह उसे ही उपलध कर पए गे ु १ पैसा भी नह दे न है,िरजटड डक से ं .आपको इस य क ि हे त ही य िनकले जयग.े ियद ऄब भी हमने साधना का माग ना ऄपनाया और भाय को ही द षण देते रहे तो वजमेदार कोइ और नह हम य ं ही हगे. FOR COMPLETE LUXURIOUS LIFE - AKSHAY PAATRA SADHNA
जवनदायन कुदरत ने सब को एक समान जवन दया है |एक समान आसलए कह रह ी योक शायद सां स ले ने को ह हम लोगो ने जवन मान लया है योक सां स क जाने क या को तो हम लोग मृ यु मानते है ना....और यद ऐसा ह है तो या पड़ थ इर को हमे मानव दे ह दे ने क योक सां स ले ना , पे भरना , बे पै दा करना और फर ऄत म मर जाना ये सब या कलाप तो जानवर भ करते ह है....और यद हम म कोइ वलणता नह तो हम म और जानवर म फक भ या है....बस आतना क हम बोलने के लए भगवान ने जु बां द है, हम एक दू सरे क भावनाएं समझ सकते है तो जानवर भ एक दू सरे क भाषा समझते है, एक दू सरे के भाव समझ ले ते है तो ईनम और हम म मा एक ह अधारत भे द ये है क हम ववे क से काम ले सकते है तो यद हम म िसोने समझने क मता है तो या ये ईित है क हम सब कुछ जानते बू झते ए भ दरता वाला जवन जय...या ये हमार गलत नह है क कल कल करत बहत नद हमारे सामने बह रह है और फर भ हम िख - पु कार िमा रहे है क हमे यास लग है.....ठक आस तरह नखल ऄंश होते ए भ यद हम ऄपू ण ता , दरता और अभाव से यु जवन जते ह तो हमसे बड़ा बदनसब कोइ नह हो सकता और दू सर बात कहते है क ," जवन म पै सा सब कुछ नह होता मगर बत कुछ जर होता है" . यद सपता िाहए तो दरता का नाश करना ह पड़े गा....पर ऐसे धन का या लाभ जसम लम हमारा वरन तो कर ले पर ईसे सभालने का सामय हमम नह है?? मतलब यद दे ह रोग मु नह है तो धन का या ऄभाय रह जाता है |ऐसा धन कस काम का नह जो हम सां सरक सु खो को भोगने के काम ना अ सके योक ऄसर ऐसा होता है क ऄगर कस धनवान को कोइ रोग हो जाए तो डार ईसे सफ दाल रो खाने को बोल द गे जब क वो कुछ भ और कतना भ महं गा भोजन खा सकता है और एक गरब जसको दो व को रो के वभ वां दे होते है ईसको कोइ रोग होने पर ऐस ऐस िज़े खाने को बता द गे जो ईस बेि ारे क
कपना के भ बाहर हो.....कहने का ऄभाय ये है क यद अप हर तरह से सु पा ह तो ह जवन सपू ण हो पाये गा. सदगु दे व हमेशा कहते है क पा का ऄथ मा बत न से नह है आसका गू ढ़ ऄथ हमारे जवन से जु ड़ा है| ऄगर हम म सु पाता नह है तो हम ऄपने गु से कुछ भ नह ले पाय गे योक यद हमार ह ऄं जु र छो है तो दाने तो बाहर गरगे ह...आसलए ऄचछे सु पा बनने के लए जवन को ऄय बनाना ऄत अवयक है योक जो ऄजय है वह तो ऄमर हने क कला सख पाये गा ना | कस भ साधना को स करने का मू ल मं ये है क खु द को ह शव और श मान के अपने अप को मं बनाना सख लया जाए ऄथा त मं और अप म कोइ भे द ना रहे...जै से लय भे दन के लए आकाता जर है ठक वै से ह अपन ऄते तना को आतना गहरा कर लो क सदगु दे व क ईपथत महसू स कर सको...महसू स कर सको ईनके शरर क द गंध जो अपने अप म ऄतय है...योक जस दन ये हो जाएगा ईस दन अपका जवन भ ऄय पा बन जाएगा ... हर साधना के ऄपने कुछ नधा रत नयम होते ह जनसे ईस साधना को स कया जा सकता है... वै से ह ऄय पा साधना के लए... १- अपके पास एक तां बे का पा ( बत न) होना िाहए जसम कम से कम 250ml पान अ सके. २-ि ावल जसे अप अपन मता के हसाब से रोज मं जाप करने के बाद ईस पा म दाल सको. ३- पल धोत या साड़ ४- अपक दशा पू रब या ईर होग ५- ये रात कालन साधना है ५- एक लाल कपड़ा ये ११ दन क साधना है और पहले दन आसक २१ माला करन होत है ईसके बाद ऄगले ११ दन तक १-१ माला और यद २१ माला हर दन कर सको तो और ऄचछा. गु ि के सामने पा को रख लो और साधना शु करने से पहले गु मं करो योक गु मं हमारे और सदगु दे व के बि से ेलाआ का काम करता है. साधना म बै ठने से पहले ऄचछे से नहा लो योक दे ह का शु होना बत जर है और जतने दन साधना िले ग ईतने दन बलकुल शु भोजन खाये. रोज रात को साधना के बाद थोड़े सेि ावल हाथ म ले कर ईस पा म डाल दे और ऄं तम दन साधना सप करने के बाद ईस पा को िावल समे त लाल कपड़े म बाीध कर ऄपन तजोर म या मं दर म रख द. मं
वतु तः कस भ साधना क महा तभ समझ जा सकत है,जब ईसे वयं योग का दे खा जाये,मा शद का महमामं डन करने से तो योग को नह समझा जा सकता, ऄब मज अपक है|