आखिर क्यों? जाखिए खिन्दू धर्म की र्ान्यताओ ं के वैज्ञाखिक कारण
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प्रस्तावना खिन्दू धर्म पूणमत: खवज्ञाि पर आधाररत िै। िर्ारे प्रचीि ऋखि-र्खु ियों िे गिि शोध करके िी खिन्दू धर्म को खवज्ञाि की कसौटी पर िडा खकया िै। खवश्व का सबसे परु ािा धर्म खिन्दू धर्म परर्ात्र्ा की प्राखि पर जोर देता िै, साथ िी यि िर्ें एक अच्छे जीवि को कै से खजया जाये उसके बारे र्ें भी बताता िै। खिन्दू धर्म र्ें बिुत से ग्रंथ िैं जो र्ािवों की सीि देते िैं, उिर्ें बिुत िी बाते िैं खजन्िें र्ाििे से र्ािव का कल्याण िी िोता िै। खिन्दू धर्म र्ें बिुत िी परम्पाराऐ ं आज भी कायर् िै और लोग उिका पालि भी करते िैं। पर आज का यवु ा जो अपिे को बिुत वैज्ञाखिक सर्झता िै वि लोग शायद िी इि र्ान्यताओं पर ध्याि देते िोंगे। खवज्ञाि और ज्ञाि दोिों एक िी खसक्के के दो पिलू िैं, जिां ज्ञाि िै वि खवज्ञाि से िै और जिां खवज्ञाि िै वि ज्ञाि से िी िै। इसी को धारणा र्ें रिते िूए िर्िे आप खर्त्रों के खलए इस खिखजटल पस्ु तक का खिर्ाम ण खकया िै खजसर्ें खिन्दू धर्म की सभी र्ान्यताओं के खवज्ञाखिक कारण बताये गये िैं। आप लोगों को िर परम्परा और रस्र् का खवज्ञाखिक कारण खर्लेगा और साथ र्ें पौराखणक कारण भी। िर्ारा उद्देश्य आपको िर तरि से भारतीय संस्कृखत से जोडिा रिा िै, इसी खलए िर् इि खकताबों का खिर्ाम ण करते िैं खजिर्ें बिुत र्ेिित लगती िै। र्झ ु े उम्र्ीद िै खक आप लोग इस पस्ु तक का लाभ जरूर उठायेंगे और गवम से अपिे खर्त्रों को िर र्ान्यता और रस्र् का वैज्ञाखिक कारण बतायेंगे। पल्लवी शर्ाा
हनर्ु ानजी की ककतनी परिक्रर्ा किें? प्रभू श्रीरार् के परर् भक्त ििर्ु ाि जी की भखक्त कखलयगु र्ें कल्याणकारी िै और शांखत प्रदाि करती िै। इसी वजि से आज भगवाि ििर्ु ाि जी के भक्तों की संख्या काफी अखधक िै। ऐसा र्ािा जाता िै ििर्ु ािजी बिुत जल्द अपिे भक्तों के सभी दि ु -सर्खृ ि ु ों को दरू करके सि प्रदाि करते िैं। ििर्ु ाि जी के पूजि र्ें एक र्ित्वपूणम खिया िै पररिर्ा। खकसी भी भगवाि के पूजि कर्म र्ें एक र्ित्वपूण खिया िै प्रखतर्ा की पररिर्ा। वैसे तो सार्ान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक िी पररिर्ा की जाती िै परंतु शास्त्रों के अिस ु ार अलगअलग देवी-देवताओं के खलए पररिर्ा की अलग संख्या खिधाम ररत की गई िै। धर्म शास्त्रों के अिस ु ार आरती और पूजा-अचम िा आखद के बाद भगवाि की र्ूखतम के आसपास सकारात्र्क ऊजाम एकखत्रत िो जाती िै, इस ऊजाम को ग्रिण करिे के खलए पररिर्ा की जाती िै। सभी देवी-देवताओं की पररिर्ा की अलग-अलग संख्या िै। वेद-परु ाण के अिस ु ार श्रीरार् के परर् भक्त पविपत्रु श्री ििर्ु ािजी की तीि पररिर्ा करिे का खवधाि िै। भक्तों को इिकी तीि पररिर्ा िी करिी चाखिए।
परिक्रर्ा के संबंध र्ें कनयर्: पररिर्ा शरुु करिे के पश्चात बीच र्ें रुकिा ििीं चाखिए। साथ पररिर्ा विीं ित्र् करें जिां से शरुु की गई थी। ध्याि रिें खक पररिर्ा बीच र्ें रोकिे से वि पूणम ििी र्ािी जाती। पररिर्ा के दौराि खकसी से बातचीत कतई िा करें। खजस देवता की पररिर्ा कर रिे िैं, उिका िी ध्याि करें। इस प्रकार पररिर्ा करिे से पूणम लाभ की प्रािी िोती िै।
शादी से पहले क्यों औि ककस बात का ध्यान जरूि िखना चाकहए ?
खववाि के संबंध र्ें कई र्ित्वपूणम सावधाखियां रििा जरूरी िै। खववाि के बाद वर-वधू का जीवि सि ु ी और िखु शयोंभरा िो यिी कार्िा की जाती िै। वर-वधू का जीवि सि ु ी बिा रिे इसके खलए खववाि पवू म लडके और लडकी की गणु ों का खर्लाि कराया जाता िै। खकसी खवशेिज्ञ ज्योखतिी द्वारा भावी दंपखि की कंु िखलयों से दोिों के गणु और दोि खर्लाए जाते िैं। गणु खर्लाि करते सर्य वर-वधु के छिीस गणु िोते िैं। छिीस र्ें से कर् से कर् अठारि गणु ों का खर्लिा जरू री िोता िै। ये गणु िर्श: वणम , वश्य, तारा, योिी, गिृ र्ैत्री, गण, भक ृ ु ट, िाडी िै। 36 गणु ों र्ें से िाडी के खलए सबसे अखधक 8 गणु खिधाम ररत िैं। िाखियां तीि िोती िैं-आद्य,र्ध्य और अन्त्य। इि िाखियों का संबधं र्ािव की शारीररक धातओ ु ं से िै। वर-वधू की सर्ाि िाडी िोिे पर दोिपूणम र्ािा जाता िै तथा संताि पक्ष के खलए यि दोि िाखिकारक िो सकता िै। शास्त्रों र्ें यि भी उल्लेि खर्लता िै खक िाडी दोि के वल ब्राह्मण वगम र्ें िी र्ान्य िै। सर्ाि िाडी िोिे पर पारस्पररक खवकिम ण तथा असर्ाि िाडी िोिे पर आकिम ण पैदा िोता िै। ज्योखतिाचायों िे भी अपिा वैज्ञाखिक पक्ष रिते िुए किा खक खववाि के खलए वर-कन्या यखद एक िी रक्त सर्ूि के िोंगे तो संतािोत्पखि र्ें बाधा आ सकती िै। कर्म कांिों र्ें िाडी दोिों वाले खववाि को सवम था वखजम त र्ािा गया िै। खचखकत्सकों का र्ाििा िै खक यखद लडके का आरएच फै क्टर पॉखजखटव िो व लडकी का आरएच फै क्टर खिगेखटव िो तो खववाि उपरांत पैदा िोिे वाले बच्चों र्ें अिेक खवकृखतयााँ सार्िे आती िैं, खजसके चलते वे र्ंदबखु ि व अपंग तक पैदा िो सकते िैं। विीं ररवसम के स र्ें इस प्रकार की सर्स्याए ाँ ििीं आतीं, इसखलए यवु ा अपिा रक्त परीक्षण अवश्य कराए,ाँ ताखक पता लग सके खक वर-कन्या का रक्त सर्ूि क्या िै।
दूल्हा-दुल्हन की र्ागं र्ें कसदं ूि क्यों भिता है? िर्ारे देश र्ें खववाि संस्कार से जडु ी अिेक परंपराएं िैं। खिन्दू खववाि पिखत र्ें कुछ परंपराएं ऐसी िैं खजिका खिवाम ि शादी र्ें ििीं खकया जाए तो शादी पूरी ििीं र्ािी जाती िै जैसे र्ंगलसत्रु पििािा, र्ांग र्ें खसंदूर भरिा, खबखछया पििािा आखद। इि रस्र्ों का खिवाम ि शादी र्ें तो खकया िी जाता िै साथ िी इि सभी चीजों को सिु ागि के सिु ाग का प्रतीक र्ािा जाता िै। इसीखलए
िर्ारे धर्म ग्रंथों के अिस ु ार इन्िें सिु ागिों का अखिवायम श्रंगृ ार र्ािा जाता िै। ऐसी र्ान्यता िै खक इि श्रंगृ ारों के खबिा सिु ागि स्त्री को ििीं रििा चाखिए। खकसी भी सिु ागि स्त्री के खलए र्ांग र्ें खसंदरू भरिा अखिवायम र्ािा गया िै। खिन्दू शादी र्ें बिुत से ररवाज खिभाए जाते िै। शादी र्ें खिभाई जािे वाली सभी रस्र्ों र्ें फे रों की रस्र् सबसे र्ित्वपणू म र्ािी जाती िै। फे रों के सर्य वधू की र्ागाँ खसंदरू से भरिे का प्रावधाि िै। शादी र्ें र्ांग खसंदरू व चांदी के खसक्के से भरी जाती िै। र्ांग भर खववाि के पश्चात् िी सौभाग्य सूचक के रूप र्ें र्ागाँ र्ें खसंदरू भरा जाता िै। यि खसंदरू र्ाथे से लगािा आरंभ करके और खजतिी लंबी र्ांग िो उतिा भरा जािे का प्रावधाि िै। यि खसंदूर के वल सौभाग्य का िी सूचक ििीं िै इसके पीछे जो वैज्ञाखिक धारणा िै खक वि यि िै खक र्ाथे और र्खस्तष्क के चिों को सखिय बिाए रिा जाए खजससे खक िा के वल र्ािखसक शांखत बिी रिे बखल्क सार्ंजस्य की भाविा भी बराबर बलवती बिी रिे अत: शादी र्ें र्ांग भरिे की रस्र् इसीखलए खिभाए जाती िै ताखक वैवाखिक जीवि र्ें िर्ेशा प्रेर् व सार्ंजस्य बिा रिे।
क्यों औि क्या किें ताकक लक्ष्र्ी कभी ना रूठे ? घर र्ें आर्दिी से अखधक िचम अक्सर र्ािखसक तिाव का कारण बि जाता िै। िर व्यखक्त चािता िै खक उसे कभी धि की कोई कर्ी ििीं िो इसीखलए लक्ष्र्ीजी को र्िािे के खलए अलगअलग तरि के पूजा व अिष्ठु ाि खकए जाते िैं। लेखकि िर व्यखक्त अपिी भागदौड से भरी खजंदगी र्ें से पूजा पाठ के खलए सर्य ििीं खिकाल सकता िै। इसीखलए िर्ारे यिां कुछ ऐसी परंपराएं या र्ान्यताएं िै खजिका ध्याि रििे पर र्ािा जाता िै खक घर र्ें लक्ष्र्ी का स्थाई खिवास िोता िै। ये र्ान्यताएं कुछ इस प्रकार िैं। िर रोज कर् से कर् पच्चीस खर्िट के खलए खिडकी जरुर िोलें, इससे कर्रे से िकारात्र्क उजाम बािर खिकल जाएगी और साथ िी सूरज की रोशिी के साथ घर र्ें सकारात्र्क उजाम का प्रवेश िो जाएगा। शार् के सर्य एक बार पूरे घर की लाइट जरूर जलाएं। इस सर्य घर र्ें
लक्ष्र्ी का प्रवेश िोता िै। साल र्ें एक दो-बार िवि करें। घर र्ें अखधक कबाड एकखत्रत िा िोिे दें। शार् के सर्य एक बार परू े घर की लाइट जरूर जलाएं। सबु ि-शार् सार्खु िक आरती करें।र्िीिे र्ें एक या दो बार उपवास करें।घर र्ें िर्ेशा चन्दि और कपूर की िशु बु का प्रयोग करें। र्ािा जाता िै खक इि सभी बातों का ध्याि रििे से घर से िकारात्र्क ऊजाम ित्र् िोती िै और सकारात्र्क वातावरण का खिर्ाम ण िोता िै।
क्या है पगडी िस्र्? घर के र्खु िया की र्त्ृ यु िोिे के पश्चात बडे पत्रु को पगडी बांधी जाती िै, खजसे खिंदू धर्म र्ें पगडी रस्र् किा जाता िै। पगडी रस्र् की परंपरा काफी परु ािे सर्य से चली आ रिी िै। इस प्रथा के संबंध र्ें सभी सर्ाजों र्ें अलग-अलग व्यवस्था रिी गई िै परंतु घर के सदस्य की र्त्ृ यु के पश्चात पगडी रस्र् अवश्य की जाती िै। इस रस्र् के पीछे सार्ाखजक कारण िै। ऐसी र्ान्यता िै खक घर के र्खु िया के र्रिे के बाद की जवाबदारी बडे पत्रु को िी संभालिा िोती िै। अत: उस पत्रु को पगडी बांधिे का यिी आशय िै खक अब विी घर का र्खु िया िै और उसे िी पररवार के सभी सदस्यों का पालि-पोिण करिा िै, उिके सि ु -दि ु का ध्याि रििा िै। साथ िी पररवार के सभी फै सले उसे लेिे िोते िैं। सभी िशु रिे इस का बात का ध्याि भी पगडी खजसे बांधी जाती िै उसी को रििा िोता िै।इस रस्र् के संबंध र्ें सभी जाखतयों और सर्ाजों र्ें अलग-अलग रीखत-ररवाज िोते िैं परंतु र्ूल भाव यिी िोता िै खक र्रिे वाले व्यखक्त की जो भी जवाबदाररयां िोती िैं वे सभी उस व्यखक्त को संभालिा िोती िै खजसे पगडी बांधी जाती िै।
खाना बनाते सर्य क्यों औि क्या ध्यान िखना चाकहए?
किते िैं स्वस्थ शरीर र्ें िी स्वस्थ र्खस्तष्क खिवास करता िै। इसीखलए जब कोई स्वस्थ रिता िै तो उसर्ें िर कायम को करिे की दोगिु ी स्फूखतम अपिे आप आ जाती िै। स्वस्थ शरीर सबसे अखधक खिभम र करता िै भोजि पर। िािा खजतिा पोिक और स्वाखदष्ट िोगा घर के सभी सदस्य उतिे िी अखधक स्वस्थ िोंगे। भोजि कै सा बि रिा िै यि सबसे अखधक उस घर की गखृ िणी पर खिभम र करता िै। इसीखलए अगर गखृ िणी स्वस्थ रिेगी तो पूरा पररवार अपिे आप स्वस्थ रिेगा। खकचि र्ें िािा बिाते सर्य यि खवशेि रूप से ध्याि रििा चाखिए खक खकचि र्ें अपिे कुखकं ग रेंज अथवा गैस स्टोव को इस प्रकार व्यवखस्थत करें खक िािा बिाते वक्त आपका र्ि ु पूवम खदशा की ओर रिे। यखद िािा बिाते सर्य गखृ िणी का र्ि ु उिर खदशा र्ें िो तो वि सवाम इकल स्पॉखन्िलाइखटस एवं थायरॉइि से प्रभाखवत िो सकती िै। दखक्षण खदशा की ओर र्ि ु करके भोजि बिािे से बचें। गखृ िणी के शारीररक-र्ािखसक स्वास््य पर इसका िकारात्र्क प्रभाव पिता िै। इसी तरि पखश्चर् खदशा र्ें र्ि ु करके िािा बिािे से आंि, िाक, काि एवं गले से संबंखधत सर्स्याएं िो सकती िैं। इसीखलए जिां तक िो सके गैस स्टैंि दखक्षण पूवम कोिे र्ें यािी आग्रेय कोण र्ें िोिा चाखिए और िािा िर्ेशा पूवम खदशा की ओर र्िंु करके बिािा चाखिए।
क्या किें कक आये सकून की नींद? आजकल िर व्यखक्त की खजंदगी भागदौड से भरी िै। अखतररक्त बोझ के कारण तिाव से ग्रस्त िोिा एक आर् सर्स्या िै। ऐसे र्ें स्वास््य तो प्रभाखवत िोता िै साथ िी अखिद्रा भी व्यखक्त को घेरे रिती िै। र्ािव की बढ़ती र्ित्वाकांक्षाओं िे उसकी आि ाँ ों की िींद छीि ली िै इसीखलए वि खदिभर की भागदौड व थकाि के बाद भी चैि की गिरी िींद ििीं सो पाता िै क्योंखक िींद र्ें भी अपिे कार् के बारे र्ें िी सोचते रिता िै। कुछ िद तक इसका कारण घर का वास्तु व सिी खदशा र्ें िा सोिा या गलत खदशा र्ें पलंग लगा िोिा भी िोता िै क्योंखक ये सभी चीजे िकारात्र्क प्रभाव िालती िै। शयि कक्ष र्ें कोई िल ु ी अलर्ारी ििीं िोिी चाखिए अलर्ारी कविम रिें शयिकक्ष र्ें यखद शीशा लगा िै तो परदे से ढक दें। वास्तु के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै इससे पखत-पत्िी र्ें अखधक
झगडे िोते िैं। सोते सर्य सर दखक्षण या पखश्चर् खदशा की ओर रिें कोखशश करें खक अपराह्न तीि बजे के बाद शयि कक्ष र्ें सूयम खकरणें ि आयें सोिे से एक घंटे पिले टी.वी.बंद कर दें,रेखिओ या ररकािम प्लयेर पर शास्त्रीय संगीत सिु सकते िैं। इसीखलए गिरी िींद के खलए इि सभी बातों का ध्याि रििा जरूरी िै।
दीपक कहां औि क्यों लगाने से बढ़ता है पैसा? किते िैं खजस घर का वास्तु ठीक िोता िै जिां खकसी तरि का दोि ििीं िोता िै तो घर र्ें सि ु -सर्खृ ि िर्ेशा बिी रिती िै। यखद खकसी घर की आखथम क तरक्की ििीं िो रिी िै। पूरी र्ेिित के बाद भी घर के िर सदस्य को उसकी योग्यता के अिस ु ार सफलता ििीं खर्ल पाती िै, खकसी िा खकसी तरि की सर्स्या या परेशािी िर्ेशा बिी रिती िै। घर र्ें बार-बार एक्सीिेंट्स िोते िैं तो खिखश्चत िी उस घर र्ें खपतदृ ोि िोता िै। इसीखलए खजस घर र्ें पीिे के पािी का स्थाि दखक्षण खदशा र्ें िो उस घर को खपतदृ ोि अखधक प्रभाखवत ििीं करता साथ िी यखद खियखर्त रूप से उस स्थाि पर घी का दीपक लगाया जाए तो खपतदृ ोि आशीवाम द र्ें बदल जाता िै। ऐसा र्ािा जाता िै। यखद पीिे के पािी का स्थाि उिर या उिर-पूवम र्ें भी िै तो भी उसे उखचत र्ािा गया िै और उस पर भी खपतृ के खिखर्ि दीपक लगािे से खपतदृ ोि का िाश िोता िै क्योंखक पािी र्ें खपतृ का वास र्ािा गया िै और पीिे के पािी के स्थाि पर उिके िार् का दीपक लगािे से खपतदृ ोि की शांखत िोती िै ऐसी र्ान्यता िै।
अकस्ियों को दस कदन तक सम्भाल कि क्यों िखा जाता है? अखस्थयों को पूरे दस खदि सरु खक्षत रिा जाता िै खफर ग्यारिवें खदि श्राि व तपम ण खकया जाता िै। आखिर दस खदि तक अखस्थयों का संचय क्यों खकया जाता िै? िि्खियों र्ें ऐसी कौि सी
खवशेि बात िोती िै जो शरीर के सारे अंग और खिस्से छोडकर उिका िी संचय खकया जाता िै?वास्तव र्ें अखस्थ संचय का खजतिा धाखर्म क र्ित्व िै उतिा िी वैज्ञाखिक भी। खिंदू धर्म र्ें र्ान्यता िै खक र्त्ृ यु के बाद भी व्यखक्त की सूक्ष्र् आत्र्ा उसी स्थाि पर रिती िै जिां उस व्यखक्त की र्त्ृ यु िुई। आत्र्ा पूरे तेरि खदि अपिे घर र्ें िी रिती िै। उसी की तखृ ि और र्खु क्त के खलए तेरि खदि तक श्राि औ भोज आखद कायम िर् खकए जाते िैं। अखस्थयों का संख्य प्रतीकात्र्क रूप र्ािा गया िै। जो व्यखक्त र्रा िै उसके दैखिक प्रर्ाण के तौर पर अखस्थयों संचय खकया जाता िै। अंखतर् संस्कार के बाद देि के अंगों र्ें के वल िि्खियों के अवशेि िी बचते िैं। जो लगभग जल चक ु े िोते िैं। इन्िीं को अखस्थयां किते िैं। इि अखस्थयों र्ें िी व्यखक्त की आत्र्ा का वास भी र्ािा जाता िै। जलािे के बाद िी खचता से अखस्थयां इसखलए ली जाती िैं क्योंखक र्तृ शरीर र्ें कई तरि के रोगाणु पैदा िो जाते िैं। खजिसे बीर्ाररयों की आशंका िोती िै। जलिे के बाद शरीर के ये सारे जीवाणु और रोगाणु ित्र् िो जाते िैं और बची िुई िि्खियां भी जीवाणु र्क्त ु िोती िैं। इिको छूिे या इन्िें घर लािे से खकसी प्रकार की िाखि का िर ििीं िोता िै। इि अखस्थयों को श्राि कर्म आखद खियाओं बाद खकसी िदी र्ें खवसखजम त कर खदया जाता िै।
क्यों औि क्या किें घि र्ें बिकत के कलए? ऐसा र्ािा जाता िै खक ईशान्य कोण र्ें खित्य प्रखत ईश्वर की पूजा करिे से स्वगम र्ें स्थाि खर्लता िै। उसी खदशा से सारी उजाम एं घर र्ें बरसती िै। खकसी भी घर के वास्तु र्ें ईशान्य कोण यािी उिर-पूवी कोिे का बडा र्ित्व िै। वास्तु के अिस ु ार ईशान्य कोण स्वगम का र्ागम किलाता िै। ईशान्य साखत्वक ऊजाम ओ ं का प्रर्ि ु स्त्रोत िै। खकसी भी भवि र्ें ईशान्य कोण सबसे ठंिा क्षेत्र िै। वास्तु परू ु ि का खसर ईशान्य र्ें िोता िै। खजस घर र्ें ईशान्य कोण र्ें दोि िोगा उसके खिवाखसयों को दभु ाम ग्य का सार्िा करिा पडता िै। इसखलए ईशान्य कोण र्ें खकसी तरि का कटाव या खवस्तार ििीं िोिा चाखिए। साथ िी इस कोिे र्ें शौचालय िोिे पर आखथम क िाखि का सार्िा तो करिा िी पडता िी िै साथ िी घर की र्खिलाओं का स्वास््य भी प्रभाखवत िोता िै।
ईशान्य कोण का अखधपखत खशव को र्ािा गया िै। वास्तु के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक खजस घर र्ें इस कोिे की साफ-सफाई का खवशेि ध्याि रिा जाता िै। साथ िी उिर-पूवी कोिे र्ें िी भगवाि का स्थाि बिाया जाता िै तो ऐसे घर र्ें सकारात्र्क उजाम का खिवास िोता िै। बाद र्ें ये उजाम एं पूरे घर र्ें फै ल जाती िै। ऊजाम का संतल ु ि बिाए रििे के खलए और इस कोिे की सफाई का ध्याि रििे पर घर र्ें िर्ेशा बरकत रिती िै।
ऐसा क्यों: गरु ु वाि के कदन घि की सफाई नहीं की जाती? िर्ारे बढ़े-बूजगु ों द्वारा बिाई गई सारी परंपराओं और रीखत-ररवाजों के पीछे एक सखु िखश्वत वैज्ञाखिक कारण िै। खकसी बात को पूरा का पूरा सर्ाज यूं िी ििीं र्ाििे लग जाता। िर र्ान्यता के पीछे कोई िा कोई धाखर्म क या वैज्ञाखिक कारण जरूर िोता िै। ऐसी िी एक परंपरा गरुु वार के खदि सफाई िा करिे की। इससे जडु ी िर्ारे शास्त्रों र्ें खवष्णु भगवाि की एक किािी िै खजसके अिस ु ार एक राजा जो खक खवष्णु भगवाि का भक्त था उसिे गरुु वार के खदि अपिे र्िल की साफ-सफाई करवा दी और जाले झडवा खदए। जबखक किािी के अिस ु ार उस खदि खवष्णज ु ी लक्ष्र्ीजी सखित उसके र्िल र्ें आिे वाले थे। वैसे उस राजा को उस खदि खवष्णु भगवाि की पूजा करिी चाखिए थी। उिकी आराधिा और आवाह्न करिा चाखिए था। लेखकि ऐसा कुछ ििीं करते िुए बखल्क उल्टा राजा िे उिके आिे से पिले पूरे र्िल र्ें सफाई कार् फै ला खदया। जब खवष्णु भगवाि लक्ष्र्ीजी के साथ उसके र्िल र्ें पिुचं े तो धल ू व जाले देिकर लक्ष्र्ीजी रूष्ट िो गई और विां से चली गई और खवष्णज ु ी िे जब देिा खक लक्ष्र्ीजी रूठ कर जा रिी िैं तो वे भी विां से चल खदए और उस राजा को शाप दे खदया खक आज से तर्ु लक्ष्र्ीखवखिि रिोगे और गरू ु वार के खदि जो भी घर र्ें साफ-सफाई करेगा उसके घर र्ें कभी लक्ष्र्ी खिवास ििीं करेगी। इसी किािी के कारण ऐसी र्ान्यता िै खक गरुु वार के खदि घर की सफाई ििीं करिा चाखिए।
क्यों ककया जाता है पिेशाकनयां दूि किने के कलए कर्ठाई का दान? किते िैं सि ु और दि ु धूप व छांव की तरि िोते िैं। इसीखलए जीवि कभी खस्थर ििीं रिता िै। िर्ेशा जीवि र्ें उतार चढ़ाव आते रिते िैं लेखकि कुछ लोगों का जीवि िर्ेशा दि ु व परेशाखियों से भरा िी रिता िै जब वे अपिे आसपास दूसरे लोगों को देिते िैं तो उिके र्ि र्ें यिी बात आती िै खक क्या िर्ारी खकस्र्त र्ें भगवाि िे सि ु ििीं खलिा िै। दरअसल ऐसे लोगों के जीवि र्ें रूकावटे या परेशाखियां आिे का एक सबसे बडा कारण खपतदृ ोि भी िै। ज्योखति के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक खपतदृ ोि वाले व्यखक्त को िर्ेशा कोई िा कोई परेशािी घेरे रिती िै। इसीखलए खपतदृ ोि दरू करिे के खलए इसके उपाय करिे भी जरूरी िै। इसीखलए ज्योखति के अिस ु ार गरीब लोगों को चावल का दाि करिा या बच्चों को सफे द खर्ठाई दाि करिे से खपतदृ ोि दरू िोता िै क्योंखक सफे द रंग को खपतृ का कारक र्ािा गया िै दरअसल खपतृ का रंग ज्योखति के अिस ु ार सफे द र्ािा गया िै। इसीखलए किा जाता िै खक खपतदृ ोि िोिे पर सपिे र्ें सफे द रंग के सांप खदिाई देते िैं। इसीखलए ऐसी र्ान्यता िै खक सफे द खर्ठाई या चावल के दाि से खपतदृ ोि दरू िोते िै। खशवखलंग का पूजि करते सर्य जरूर ध्याि रिें ये बात क्योंखक...किते िैं खशव भोले िैं और अपिे भक्तों पर बिुत जल्दी प्रसन्ि िोकर उिके जीवि से परेशाखियों को दरू करते िैं लेखकि खशवजी के पूजि के भी कुछ खवधाि िै खजिका पालि शास्त्रों के अिस ु ार जरूरी र्ािा गया िै और ऐसी र्ान्यता िै खक यखद खशवजी खक खशवखलंग का या खशवजी के पूजि के सर्य कुछ बातों का ध्याि रिा जाए तो भोलेिाथ जल्दी प्रसन्ि िोते िैं।खशव परु ाण के अिस ु ार शंिचूि िार् का र्िापरािर्ी दैत्य िुआ। शंिचूि दैत्यरार् दंभ का पत्रु था। दैत्यराज दंभ को जब बिुत सर्य तक कोई संताि उत्पन्ि ििीं िुई तब उसिे खवष्णु के खलए घोर तप खकया और तप से प्रसन्ि िोकर खवष्णु प्रकट िुए। खवष्णु िे वर र्ांगिे के खलए किा तब दंभ िे एक र्िापरािर्ी तीिों लोको के खलए अजेय पत्रु का वर र्ांगा और खवष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्याि िो गए। तब दंभ के यिां शंिचूि का जन्र् िुआ और उसिे पष्ु कर र्ें ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उन्िें प्रसन्ि
कर खलया। ब्रह्मा िे वर र्ांगिे के खलए किा और शंिचूि िे वर र्ांगा खक वो देवताओं के खलए अजेय िो जाए। ब्रह्मा िे तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच खदया खफर वे अंतध्र्याि िो गए। जाते-जाते ब्रह्मा िे शंिचूि को धर्म ध्वज की कन्या तल ु सी से खववाि करिे की आज्ञा दी। ब्रह्मा की आज्ञा पाकर तल ु सी और शंिचूि का खववाि िो गया। ब्रह्मा और खवष्णु के वर के र्द र्ें चूर दैत्यराज शंिचूि िे तीिों लोकों पर स्वाखर्त्व स्थाखपत कर खलया। देवताओं िे त्रस्त िोकर खवष्णु से र्दद र्ांगी परंतु उन्िोंिे िदु दंभ को ऐसे पत्रु का वरदाि खदया था अत: उन्िोंिे खशव से प्राथम िा की। तब खशव िे देवताओं के दि ु दरू करिे का खिश्चय खकया और वे चल खदए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तल ु सी के पाखतव्रत धर्म की वजि से खशवजी भी उसका वध करिे र्ें सफल ििीं िो पा रिे थे तब खवष्णु से ब्राह्मण रूप बिाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दाि र्ें ले खलया और शंिचूि का रूप धारण कर तल ु सी के शील का अपिरण कर खलया। अब खशव िे शंिचूि को अपिे खत्रशल ु से भस्र् कर खदया और उसकी िि्खियों से शंि का जन्र् िुआ। चूंखक शंिचूि खवष्णु भक्त था अत: लक्ष्र्ी-खवष्णु को शंि का जल अखत खप्रय िै और सभी देवताओं को शंि से जल चढ़ािे का खवधाि िै। परंतु खशव िे चखूं क उसका वध खकया था अत: शंि का जल खशव को खििेध बताया गया िै। इसी वजि से खशवजी को शंि से जल ििीं चढ़ाया जाता िै।
कोई पुरुष बािात र्ें नहीं गया तो सर्झो आ गई उसकी शार्त! शादी यािी रस्र्ों के साथ िी िाच-गािा र्स्ती,धूर्। शादी की इस रस्र् र्ें भरपूर र्जाक र्स्ती िोती िै। बडे िी उत्साि और उर्ंग के साथ खिभाई जाती िै। िर्ारे देश र्ें ऐसी कई लोक परंपराएं िैं खजिके बारे र्ें सिु कर आश्चयम तो िोता िै साथ िी र्ि र्ें खजज्ञासा और िास्य का भाव उत्पन्ि िोते िैं। िोर्कच या टूटया भी एक तरि की क्षेखत्रय परंपरा िै इसे राजस्थाि र्ें टूटया और खबिार र्ें िोर्कच किा जाता िै।
िोर्कच की रस्र् र्ें स्त्री परुु िों के संबंध को कलात्र्कता के साथ दशाम या जाता िै। इस रस्र् र्ें औरते खकसी तरि की कोई शर्म ििीं करती। यिां बस औरतें िोती िै और िोती िैं उिकी उन्र्क्त ु ता। यिां वे िल ु कर सांसें लेती िैं, िंसती िैं। गाती िैं र्जाक करती िैं। वि भी बगैर परुु िों की अिर्ु खत के । िोर्कच या टूटया औरतों का र्िोरंजि तो करती िी िैं साथ िी उिकी कंु ठा को बािर खिकालकर उिर्ें िया उत्साि व उर्ंग भर देती िै। इसके र्ाध्यर् से िर परु ािी पीढ़ी आिे वाली पीढ़ी को दांपत्य जीवि जीिे का तरीका बताती िै। जबखक, इसका व्याविाररक पक्ष यि िै खक बारात र्ें घर के सभी परुु िों के चले जािे के बाद घर की सरु क्षा के खलए औरतों द्वारा र्िोरंजि का कायम िर् तो यि िोता िी िै साथ िी यवु खतयों को शादी के बाद कै सा जीवि जीिा िै इस बारे र्ें भी बताया जाता िै। इस रस्र् र्ें एक र्खिला स्त्री और दूसरी परुु ि बिती िै। इसर्ें र्खिलाओं को इतिी स्वतंत्रता रिती िै खक बारात ििीं जािे वाले परुु िों के साथ ये इतिा र्जाक करती िैं खक वे भाग िडे िोते िैं। गांव र्ें कई परुु ि बारात ििीं गया िो तो उसकी शार्त आ जाती िै। कभी-कभी इसकी अखत भी िो जाती िै, खजसके गलत पररणार् खिकल आते िैं। दरअसल इसका एक कारण यि भी िै खक वर पक्ष के यिां राखत्र र्ें शयि करिा अच्छा ििीं र्ािा शभु ििीं र्ािा जाता िै। इस रस्र् र्ें गांव भर से अिाज व िकद भी इकट्ठा खकया जाता िै खजसका प्रसाद बिाया जाता िै। यिी प्रसाद दल्ु िि के आिे के बाद बांटा जाता िै। इस तरि यि परंपरा पखत-पत्िी के बीच र्धरु संबंध बिाए रििे के साथ िी सर्ाज से ऊंच-िीच के भाव को भी ित्र् करिे का संदेश देती िै।
उन कदनों र्ें क्यों नहीं किने कदया जाता िसोई र्ें कार्? र्ाखसक धर्म के सर्य खदिों र्ें र्खिलाओं के खलए सभी धाखर्मक कायम वखजमत खकए गए िैं। साथ िी इस दौराि र्खिलाओं को अन्य लोगों से अलग रििे का खियर् भी बिाया गया
िै। उि खदिों र्खिलाओं पर अखधक तीव्र िशु बु वाले परफ्यर्ु लगािे को भी र्िा खकया जाता िै। साथ िी ऐसा भी किा जाता िै खक इि खदिों र्ें भोजि भी ििीं बिािा चाखिए। आजकल के अखधकांश यवु ा इसे अंधखवश्वास र्ािकर उस पर खवश्वास ििीं करते िैं। इसका वैज्ञाखिक कारण यि िै खक र्ाखसक धर्म के सर्य र्खिलाओं को अिेक तरि के शारीररक व्याखधयां परेशाि करती िै। खजसके कारण वे आर् खदिों की अपेक्षा अखधक कर्जोर िो जाती िैं। र्खिलाओं के गभाम शय का र्ूंि इि खदिों िल ु ा रिता िै इस कारण उिके शरीर को इस सर्य आरार् की जरूरत िोती िै। जबखक शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक र्ाखसक धर्म यखद कोई स्त्री िािा बिाती िै और घर के सभी सदस्य भोजि करते िैं तो वि सबके स्वास््य के खलए िाखिकारक िोता िै साथ िी इससे घर की बरकत ित्र् िोती िै ऐसी र्ान्यता िै। इसीखलए उि खदिों र्ें र्खिलाओं का िािा बिािा या रसोई र्ें कार् करिा वखजम त र्ािा गया िै।
िस्र्: कजसर्ें दूल्हा-दुल्हन से कलया जाता है दोस्ती का वादा किते िैं खववाि एक जन्र् का ििीं सात जन्र्ों का बंधि िोता िै। सात जन्र् के इस ररश्ते को िर जन्र् र्ें और र्जबूत बिािे के खलए खववाि संस्कार खिभाया जाता िै। खववाि संस्कार र्ें पाखणग्रिण के सर्य अिेक परंपराए खिभाई जाती िैं। उिर्ें से एक रस्र् िै सिपदी की। इस रस्र् र्ें दल्ू िा व दल्ु िि एक साथ सात कदर् आगे बढ़ाते िैं। सिपदी का र्ित्व: सभी स्र्खृ तकारों िे स्वीकार खकया िै। र्िु के अिस ु ार इसके खबिा खववाि पूणम ििीं र्ािा जाएगा। इसर्ें वर और वधू अपिा - अपिा दाखििा पैर एक - एक पद के साथ आगे बढ़ाते िैं। पिले वर , पीछे कन्या। खजस जगि से सीधा पैर उठाया , उसी जगि बायां पैर रिते जाते िैं। इस प्रकार सात र्ंत्रों से सिपद चलते िैं। र्ंत्रों के र्ाध्यर् से वर वधू को सिी र्ाि कर अन्ि , ऊजाम , धि , पशओ ु ं और सभी ऋतओ ु ं र्ें सि ु और सातों लोकों र्ें यश की प्राखि की कार्िा करते िैं। कई र्ंत्रों र्ें वर खवश्व के पोिक खवष्णु की सिायता से धिधान्य और
सि ु की प्राखि की कार्िा करता िै। इस तरि िर्ारे यिां वर-वधु को इस रस्र् के र्ाध्यर् से जन्र्ों का साथी िी ििीं दोस्त भी बिा खदए जाते िैं।
शादी के बाद लडकी का सिनेर् क्यों बदला जाता है? किते िैं शादी एक ऐसा बंधि िै खजससे खकसी लडकी की खजंदगी बदल जाती िै। लेखकि शादी के बाद खसफम खजंदगी िी ििीं सरिेर् भी बदल जाता िै। यि प्रथा खसफम भारत र्ें िी ििीं बखल्क दखु िया के तकरीबि सभी देशों र्ें िै। शादी के बाद लडखकयों के िार् के साथ उिके खपता का ििीं बखल्क उिके पखत का सरिेर् लगाया जाता िै। पररवार के सभी सदस्यों का सरिेर् एक िोिे पर सर्ाज र्ें खकसी व्यखक्त की पिचाि उसके पाररवाररक सरिेर् से िोती िै। इससे पररवार के सदस्यों के बीच एकता की भाविा का भी अिसास िोता िै। इससे यि भी व्यक्त िोता िै खक लडकी को ससरु ाल र्ें स्वीकार कर खलया गया िै और वि शादी के बाद ससरु ाल र्ें रच-बस गयी िै। इससे लडकी के ससरु ाल वालों को यि एिसास िोता िै खक बिू भी िर्ारे घर की िी िै इसखलए वे बिू के साथ बेटी जैसा व्यविार करते िैं। पखत का सरिेर् अपिािे से लडकी का अपिे पखत और ससरु ाल वालों के प्रखत आदर भी व्यक्त िोता िै। इसके अलावा यि खकसी लडकी के त्याग और अपिािपि की भाविा के साथ-साथ पररवार की प्रखतष्ठा को भी दशाम ता िै। खकसी शादीशदु ा र्खिला के द्वारा पखत का सरिेर् अपिािे के कई फायदे िैं। यि प्रथा सर्ाज र्ें शादीशदु ा र्खिला की खस्थखत को और र्जबूत करता िै। जब कोई र्खिला अपिे पाररवाररक सरिेर् को िटाकर अपिे पखत का सरिेर् लगाती िै तो इससे यि पता चल जाता िै खक वि शादीशदु ा िै और उसे अखववाखित र्खिलाओं से अलग करिा आसाि िो जाता िै। इस प्रथा को लागू करिे का उद्देश्य यिी िै खक पररवार के िर सदस्य को एक सर्ाि पररवार का िार् खर्लिा चाखिए। इससे लडकी को सर्ाज र्ें आदर भी खर्लता िै। शादीशदु ा र्खिला ि खसफम अपिे पखत के पररवार के सरिेर् को अपिाती िै बखल्क वि अपिे पखत के लाइफ स्टाइल
को भी अपिाती िै। इससे पखत के प्रखत उसके सच्चे प्यार और आदर की भाविा का पता चलता िै। इसके उलट जब कोई पत्िी अपिे पखत के सरिेर् को ििीं अपिाती िै तो र्ािा जाता िै खक उसके खदल र्ें अपिे पखत के प्रखत सच्चे प्यार और आदर की भाविा ििीं िै।
आवं ले के पेड की पूजा से क्यों बढ़ती है सर्कृ ि? भारत र्ें िर तरि की प्राकृखतक संपदा को सम्र्ाि देिे की परंपरा िै। िदी, तालाब, पेड, पौधे या गाय सभी का पूजि खकया जाता िै।आंवले के वक्षृ के खविय र्े यि र्त िै, की इसकी उत्पखत भगवाि श्री खवष्णु के र्ि ु से िुई िै। इसीखलए िर्ारे धर्म र्ें आंवले के वक्षृ का पूजि खकया जाता िै। दरअसल शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक खवष्णु से उत्पखत िोिे के कारण आंवले के वक्षृ र्ें लक्ष्र्ी का खिवास र्ािा गया िै। किते िैं खक जो आंवले के वक्षृ का पूजि करता िै उसके घर र्ें िर्ेशा सि ु सर्खि बिी रिती िै। आंवले के वक्षृ के पूजि का व्यिाररक कारण यि िै खक आंवले वक्षृ को अिेक बीर्ाररयों की औिधी र्ािा गया िै। आंवला तो खवटाखर्ि सी का स्त्रोत िै िी साथ िी इस वक्षृ की जड से लेकर पिी तक सभी उपयोगी िै। किा जाता िै खक आंवले के वक्षृ की छांव र्ें बैठिे से या उसकी छांव र्ें भोजि करिे से बिुत सी बीर्ाररयां दूर तो िोती िै और शरीर स्वस््य रिता िै। इसीखलए काखतम क र्ाि र्ें आिे वाली आंवला िवर्ी को आंवले के पूजि का खवधाि िै साथ िी आंवला एकादशी पर आंवले की छांव र्ें बैठकर भोजि करिे का खवधाि िै।
पेड काटना पाप है ऐसा क्यों? प्राचीि काल से िी िर्ारे देश र्ें पेड-पौधों के पूजि की परंपरा प्रचखलत िै। पौधे कब, किां और कै से लगाए जाएं साथ िी उन्िें लगािे का लाभ और वक्षृ काटे जािे से िोिे वाली िाखियों का वणम ि िर्ारे सभी धर्म के ग्रथों र्ें िै। पेडों की पूजा प्रकृखत के प्रखत आदर प्रकट करिे का र्ाध्यर् िै, खजसकी वजि से आज तक प्रकृखत का संतल ु ि बिा िुआ िै। आज सभी लोग खसफम भखवष्य के बारे र्ें सोच रिे िैं, क्योंखक सब यि बात भल ु ते जा रिे िैं खक वि प्रकृखत िी िै खजसके कारण
िर्ारा ये जीवि िै। िर्ारा जीवि पािी, खर्ट्टी व वायु पर आधाररत िै। भारतीय संस्कृखत वक्षृ पूजक संस्कृखत रिी िै । िर्ारे देश र्ें वक्षृ ों र्ें देव की अवधारणा और उसकी पूजा की परम्परा प्राचीिकाल से रिी िै । िर पेड या पौधे र्ें खकसी िा खकसी देवी या देवता का खिवास र्ािा जाता िै। वैखदक काल से िी ऋखि-र्खु ि औिधीय पेडो की लकखियों से खकए जािे वाले अिष्ठु ािों को र्ित्व देते थे। पेड व पौधों के पूजि की अवधारणा का उल्लेि वेदों के अलावा र्ख्ु य रूप से र्त्स्यपरु ाण, अखग्िपरु ाण, भखवष्यपरु ाण, र्द्मपरु ाण, िारदपरु ाण, रार्ायण, भगवद्गीता और शतपथब्राह्मण आखद ग्रंथों र्ें खर्लता िै। सभी धर्म शास्त्रों के अिस ु ार पेड काटिा पाप र्ािा गया िै क्योंखक इन्िीं से िर्ारा जीवि िै और यिी िर्ारे जीविदाता िै।
पीपल के पूजन से होती है कपतृदोष की शाकं त क्योंकक... वेदों र्ें भी पीपल के पेड को पूज्य र्ािा गया िै। पीपल की छाया तप, साधिा के खलए ऋखियों का खप्रय स्थल र्ािा जाता था। र्िात्र्ा बि ु का बोधक्तखिवाम ण पीपल की घिी छाया से जडु ा िुआ िै। शास्त्रों के अिस ु ार पीपल र्ें भगवाि खवष्णु का खिवास र्ािा गया िै और खवष्णु को खपतृ के देवता र्ािा गया िै क्योंखक प्रखसि ग्रन्थ व्रतराज की अश्वत्थोपासिा र्ें पीपल वक्षृ की र्खिर्ा का उल्लेि िै। इसर्ें अथम वणऋखि खपप्पलादर्खु ि को बताते िैं खक प्राचीि काल र्ें दैत्यों के अत्याचारों से पीखित सर्स्त देवता जब खवष्णु के पास गए और उिसे कष्ट र्खु क्त का उपाय पूछा, तब प्रभु िे उिर खदया-र्ैं अश्वत्थ के रूप र्ें भूतल पर प्रत्यक्ष रूप से खवद्यर्ाि िूं। इसखलए यि र्ान्यता िैं खवष्णु भगवाि के स्वरूप पीपल को खपतृ खिखर्ि जो भी चढ़ाया जाता िै। उससे िर्ारे पूवमजों को तखृ ि खर्लती अर्ावस्या खपतृ के खदि र्ािे जाते िै इसखलए इस खदि पूवमजों की तखृ ि के खलए पीपल को दूध और जल चढ़ाया जाता िै।
यहां शादी र्ें जूते नहीं चिु ाते बकल्क पौधे लगवाते हैं... दल्ु िि के देवर तर्ु खदि लाओ िा यंु तेवर जूते खलए िैं ििीं चरु ाया कोई जेवर जूते ले लो पैसे दे दो। खफल्र् िर् आपके िैं कौि का ये सपु र खिट गािा सिु ते िी याद आ जाती िै। शादी र्ें जूते चरु ाई की रस्र् के सर्य िोिे वाली र्स्ती व िंसी खठठौली की। लेखकि भारत र्ें उिरािंि के कुछ गांव ऐसे भी िैं जिां अब जूते चरु ािे की परंपरा ििीं िै बखल्क उसकी जगि खपछले कुछ दशकों से एक िई परंपरा िे ले ली िै। इस परंपरा के तित साली दल्ू िे के जूते चरु ाकर उिसे पैसे ििीं र्ांगती बखल्क र्ैती की यािी र्ायके र्ें पौधा लगवािे की इस रस्र् के तित साखलयां दल्ू िे से पौधा लगवाती िैं। इस रस्र् के तित गांव र्ें लडखकयां गांव र्ें खकसी भी सरु खक्षत स्थाि पर पेड लगाती िै। िर लडकी एक पौधा लगाती िै और उसे देवता की तरि पूजती िै। वि उसे बडे िी प्यार से सिजती िै उसकी देिभाल करती िै और शादी के सर्य उस पौधे को सभी ररश्तेदारों की उपखस्थत र्ें दल्ू िे से लगवाया जाता िै जो एक तरि से दल्ु िि के र्ायके र्ें उसके व उसकी पखत की खिशािी के रूप र्ें रिता िै। र्ैती परंपरा से प्रभाखवत िोकर किािा सखित अर्ेररका, ऑखस्िया, िावे, चीि, थाईलैंि और िेपाल र्ें भी खववाि के र्ौके पर पेड लगाए जािे लगे िै।
कशवजी की पूजा से क्यों र्ान जाते हैं रूठे शकन देव? शखि देव को न्यायाधीश भी किते िैं। किा जाता िै खक शखि की कुदृखष्ट खजस पर पड जाए वि रातों-रात राजा से खभिारी िो जाता िै और विीं शखि की कृपा से खभिारी भी राजा के सर्ाि सि ु प्राि करता िै। इसीखलए शखिदेव को र्िािे के खलए उिके भक्तो द्वारा अिेक उपाय खकए जाते िैं उिर्ें से िी एक िै खशव पूजा व र्िार्त्ृ यज ंु य र्ंत्र का जप। लेखकि बिुत कर् लोग जािते िैं खक खशव को र्िा लेिे पर रूठे शखि क्यों र्ाि जाते िैं? दरअसल शास्त्रों के अिस ु ार शखिदेव
सूयमदेव के पत्रु िैं। शखि को काला र्ािा गया िै। कथा के अिस ु ार एक बार शखिदेव अपिे काले रंग रूप से दि ु ी िोकर अपिे खपता के पास पिुचं े और उिसे बोले खपताश्री र्ैं आपका पत्रु िूं और आप तो इतिे तेजस्वी िैं और र्ैं इतिा श्यार्वणम और कुरूप इसीखलए सभी आपको पूजते िैं लेखकि र्ेरी पूजा कोई ििीं करता िै। इसीखलए र्ैं बिुत दि ु े सर्झ ििीं आता खक र्ैं ु ी िू।ं र्झ क्या करूं। तब सूयमदेव िे किा पत्रु तर्ु र्िार्त्ृ यंज ु य र्ंत्र के जप से खशव का जप करो तो तम्ु िारी इस सर्स्या का सर्ाधाि खिखश्चत िी िो जाएगा। उसके बाद शखिदेव िे खशवजी की र्िार्त्ृ यज ंु य र्ंत्र द्वारा आराधिा खक और खशवजी िे प्रसन्ि िोकर उन्िें ग्रि के रूप र्ें पूजा िे का आशीवाद खदया तभी से शखिदेव िौ ग्रिों र्ें पूजे जाते िैं। इसीखलए धर्म शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक खशवजी के पूजि व र्िार्त्ृ यंज ु य र्ंत्र के जप से भी शखि के अशभु प्रभाव से र्खु क्त खर्लती िै।
गौर्ूत्र किडकने से बढ़ती है सर्कृ ि क्योंकक... भारतीय संस्कृखत र्ें गाय को र्ाता र्ािा गया िै। किा जाता िै खक गाय का र्ि ु अशि ु िोता िै और शरीर का खपछला भाग शि ु िोता िै। घर र्ें गौ र्ूत्र खछडकिे के साथ िी सबु ि शार् भगवाि के सर्क्ष गाय के दूध से खिखर्म त घी का दीपक लगािे से इस से घर के सभी वास्तदु ोि दूर िोते िैं। साथ िी घर र्ें सखिय िेगेखटव एिजी का प्रभाव ित्र् िो जाता िै। घर का वातावरण शि ु िोता िै और सभी सदस्य खिरोगी बिे रिते िैं। गाय की सेवा से लक्ष्र्ी सखित सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राि िोती िै। िर्ारे शास्त्रों र्ें किा गया िै खक गाय के शरीर र्ें सभी देवी-देवताओं का वास िोता िै। इसी वजि से गाय की सेवा का अक्षय पण्ु य प्राि िोता िै। गाय की सेवा से सभी सि ु ों को देिे वाले भगवाि खशव भी प्रसन्ि िोते िैं।गोर्ूत्र को भी घर से दोि दूर करिे र्ें उपयोग खकया जाता िै। घर र्ें गोर्ूत्र खछडकिे से घर के सभी वास्तदु ोिों खिखष्िय िो जाते िैं। गोर्ूत्र के प्रभाव से घर र्ें फै ले सभी िाखिकारक कीटाणु िष्ट िो जाते िैं। साथ िी देवी लक्ष्र्ी की खवशेि कृपा बिी रिती िै। इसीखलए घर र्ें गौ र्ूत्र खछडकिे से सर्खृ ि बढ़ती िै।
रिगं कफंगि से ही क्यों लगाते हैं कतलक? खिन्दू धर्म र्ें पूजा के सर्य खतलक जरूर लगाया जाता िै। खसफम पूजा िी क्यों? अन्य खकसी भी तरि का कोई र्ांगखलक कायम िो तो उसका प्रारंभ भी खतलक लगाकर खकया जाता िै। खबिा खतलक धारण खकए कोई भी पूजा-प्राथम िा शरू ु ििीं िोती िै। र्ान्यताओं के अिस ु ार, सूिे र्स्तक को शभु ििीं र्ािा जाता। पूजि के सर्य र्ाथे पर अखधकतर कुर्कुर् या चंदि का खतलक लगाया जाता िै। खतलक ललाट पर या छोटी सी खबंदी के रूप र्ें दोिों भौिों के र्ध्य लगाया जाता िै।ररंग खफं गर के िीचे का क्षेत्र िस्तज्योखति के अिस ु ार सूयम पवम त या सूयम क्षेत्र र्ािा जाता िै। ललाट पर जिां खतलक लगाया जाता िै विां आज्ञा चि िोता िै। र्ािा जाता िै खक सूयम की अंगल ु ी से आज्ञा चि पर खतलक लगािे से चेिरे को सूयम के सर्ाि तेज प्राि िोता िै। साथ िी आज्ञा चि भी जागतृ िोता िै खजससे एकाग्रता बढ़ती िै और खतलक लगवािे वाला यशस्वी व ओजस्वी िोता िै। इसीखलए खतलक िर्ेशा ररंगखफं गर से लगाया जाता िै।
कृष्ण र्कं दि जाए ं तो जरूि ध्यान िखें ये बात क्योंकक... िर्ारे यिां पूजा-पाठ से जडु े अिेक खियर् िै कुछ खियर् र्ंखदर जािे को लेकर भी बिाए गए िैं जैसे शि ु वस्त्र धारण करके व ििाकर िी र्ंखदर जािा ऐसा िी एक खियर् िै कृष्ण भगवाि की पीठ के दशम ि िा करिे का। इसखलए जब भी कृष्ण भगवाि के र्ंखदर जाएं तो यि जरुर ध्याि रिें खक कृष्ण जी खक र्ूखतम की पीठ के दशम ि िा करें। दरअसल पीठ के दशम ि ि करिे के संबंध र्ें भगवाि खवष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की एक कथा प्रचखलत िै। कथा के अिस ु ार जब श्रीकृष्ण जरासंध से यि ु कर रिे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवि भी भगवाि से यि ु करिे आ पिुचं ा। कालयवि श्रीकृष्ण के सार्िे पिुचं कर ललकारिे लगा। तब श्रीकृष्ण विां से भाग खिकले। इस तरि रणभूखर् से भागिे के कारण िी उिका िार् रणछोड पडा। जब श्रीकृष्ण
भाग रिे थे तब कालयवि भी उिके पीछे -पीछे भागिे लगा। इस तरि भगवाि रणभूखर् से भागे क्योंखक कालयवि के खपछले जन्र्ों के पण्ु य बिुत अखधक थे और कृष्ण खकसी को भी तब तक सजा ििीं देते जब खक पण्ु य का बल शेि रिता िै। कालयवि कृष्णा की पीठ देिते िुए भागिे लगा और इसी तरि उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंखक भगवाि की पीठ पर अधर्म का वास िोता िै और उसके दशम ि करिे से अधर्म बढ़ता िै। जब कालयवि के पण्ु य का प्रभाव ित्र् िो गया कृष्ण एक गफ ु ा र्ें चले गए। जिां र्चु क ु ंु द िार्क राजा खिद्रासि र्ें था। र्चु क ु ंु द को देवराज इंद्र का वरदाि था खक जो भी व्यखक्त राजा को खिंद से जगाएगा और राजा की िजर पढ़ते िी वि भस्र् िो जाएगा। कालयवि िे र्चु क ु ंु द को कृष्ण सर्झकर उठा खदया और राजा की िजर पढ़ते िी राक्षस विीं भस्र् िो गया। अत: भगवाि श्री िरर की पीठ के दशम ि ििीं करिे चाखिए क्योंखक इससे िर्ारे पण्ु य कर्म का प्रभाव कर् िोता िै और अधर्म बढ़ता िै। कृष्णजी के िर्ेशा िी र्ि ु की ओर से िी दशम ि करें। यखद भूलवश उिकी पीठ के दशम ि िो जाते िैं और भगवाि से क्षर्ा याचिा करिी चाखिए। शास्त्रों के अिस ु ार इस पाप से र्खु क्त के खलए कखठि चांद्रायण व्रत करिा िोता िै। इस व्रत के कई खियर् बताए गए िैं। जैसे-जैसे चंद्र घटता जाता िै ठीक उसी प्रकार व्रती को िाि-पाि र्ें कटौती करिा िोती िै और अर्ावस्या के खदि खिरािार रििा पडता िै। अर्ावस्या के बाद जैसे-जैसे चांद बढ़ता िै ठीक उसी प्रकार िाि-पाि र्ें बढ़ोतरी की जािी चाखिए और पूखणम र्ा के बाद यि व्रत पूणम िो जाता िै। ऐसा करिे पर भक्त की आराधिा से श्री िरर अखतप्रसन्ि िोते िैं और सभी र्िोकार्िाओं को पूणम करते िैं।
घि पि झडं ा लगाने से बढ़ता है सुख क्योंकक... झंिे या ध्वजा को खवजय और सकारात्र्कता ऊजाम का प्रतीक र्ािा जाता िै। इसीखलए पिले के जर्ािे र्ें जब यि ु र्ें या खकसी अन्य कायम र्ें खवजय प्राि िोती थी तो ध्वजा फिराई जाती थी। वास्तु के अिस ु ार भी झंिे को शभु ता का प्रतीक र्ािा गया िै। र्ािा जाता िै खक घर पर ध्वजा लगािे से िकारात्र्क ऊजाम का िाश तो िोता िी िै साथ िी घर को बरु ी िजर भी ििीं लगती िै। लेखकि घर के उिर-पखश्चर् कोिे र्ें यखद ध्वजा लगाई जाती िै तो उसे वास्तु के दृखष्टकोण से बिुत अखधक शभु र्ािा जाता िै।
वायव्य कोण यािी उिर पखश्चर् र्ें झंिा या ध्वजा वास्तु के अिस ु ार जरूर लगािा चाखिए क्योंखक ऐसा र्ािा जाता िै खक उिर-पखश्चर् कोण यािी वायव्य कोण र्ें रािु का खिवास र्ािा गया िै। ज्योखति के अिस ु ार रािु को रोग, शोक व दोि का कारक र्ािा जाता िै। ऐसी र्ान्यता िै खक यखद घर के इस कोिे र्ें खकसी भी तरि का वास्तदु ोि िो या िा भी िो तब भी ध्वजा या झंिा लगािे से घर र्ें रििे वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोि का िाश िोता िै और घर की सि ु व सर्खृ ि बढ़ती िै।
बधु वाि का व्रत क्यों किना चाकहए? बधु वार को शास्त्रों के अिस ु ार गणेश जी का खदि र्ािा जाता िै। ज्योखति के अिस ु ार बधु को व्यापार का कारक र्ािा जाता िै। साथ िी बधु को बखु ि का कारक भी र्ािा जाता िै। खजसकी कंु िली र्ें बधु शभु फल देिे वाला िोता िै वि खबजिेस के साथ िी वाणी व लेिि से जडु े कार्ों र्ें खवशेि सफलता प्राि करता िै। लेखकि यखद कंु िली र्ें बधु अशभु फल देिे वाला िो तो ऐसे व्यखक्त को खबजिेस र्ें व कायम क्षेत्र र्ें अपेखक्षत सफलता ििीं खर्ल पाती िै। इसीखलए व्यापार व कायम क्षेत्र र्ें अपेखक्षत सफलता प्राि करिे के खलए श्री गणेश की आराधिा करिे को किा जाता िैं क्योंखक गणेशजी को बखु ि और खवद्या के स्वार्ी िैं। गणेशजी की प्रसन्िता प्राि करिे के खलए बधु वार का व्रत करिे के साथ िी बधु वार के खदि उन्िें दूवाम चढ़ाकर लि्िू का भोग लगािा चाखिए। इससे व्यापार व कायम क्षेत्र र्ें शीघ्र िी सफलता प्राि िोती िै क्योंखक ज्योखति के अिस ु ार गणेशजी के प्रसन्ि िोिे पर बधु शभु फल देिे लगता िै।
धिती पि क्यों आना पडा देवनदी गगं ा को? िर्ारे देश र्ें अिेक िखदयां िै लेखकि उि सभी र्ें गंगा का अपिा अलग र्ित्व िै। धर्म शास्त्रों के अिस ु ार गंगा के स्िाि र्ात्र से जन्र्-जन्र्ांतर के पाप धल ु जाते िैं। गंगा के धरती पर आिे की कथा भी बडी रोचक िै जो इस प्रकार िै-
भगवाि श्रीरार् के पूवमज सूयमवंशी राजा सगर की दो पखत्ियां थीं के खशिी और सर्ु खत। के खशिी का एक िी पत्रु था खजसका िार् असर्ंजस था, जबखक सर्ु खत के साठ िजार पत्रु थे। असर्ंजस बिुत िी दष्टु था। उसको देिकर सगर के अन्य पत्रु भी दरु ाचारी िो गए। इधर असर्ंजस के यिां अंशर्ु ाि िार् का धर्ाम त्र्ा पत्रु िुआ वि अपिे दादा राजा सगर की सेवा करिे लगा। एक बार सगर िे अश्वर्ेध यज्ञ खकया। तब इंद्र िे उस यज्ञ के घोडे को चरु ाकर पाताल र्ें कखपलर्खु ि के आश्रर् र्ें छुपा खदया। जब अश्व ििीं खर्ला तो सगर के पत्रु ों िे प्ृ वी को िोदिा प्रारंभ खकया। तब पाताल र्ें उन्िें कखपलर्खु ि के आश्रर् र्ें यज्ञ का घोडा खदिाई खदया। यि देिकर सगर के सभी पत्रु ों िे सर्ाखध र्ें लीि कखपल र्खु ि को भला-बरु ा किा। सगर पत्रु ों की बात सिु कर जैसे िी कखपल र्खु ि िे आंिें िोली सभी सगर पत्रु विीं भस्र् िो गए। इसके बाद सगर िे अपिे पौत्र अंशर्ु ि को घोडे की िोज र्ें भेजा। अंशर्ु ि भी कखपल र्खु ि के आश्रर् तक गए और विां उन्िोंिे अपिे खपतरों की भस्र् तथा यज्ञ का घोडा देिा। तब अंशर्ु ि िे कखपलर्खु ि की स्तखु त की। प्रसन्ि िोकर कखपलर्खु ि िे अंशर्ु ि को वि घोडा खदया और यि भी बताया खक गंगाजल से िी तम्ु िारे खपतरों का उिार संभव िै। अंशर्ु ि के बाद उिके पत्रु खदलीप और खदलीप के पत्रु भगीरथ िुए। सभी िे अपिे खपतरों की शांखत के खलए घोर तपस्या की। तब भगीरथ की तपस्या से प्रसन्ि िोकर देवी गंगा िे प्ृ वी पर आिा स्वीकार खकया। गंगा का वेग धारण करिे के खलए भगीरथ िे भगवाि शंकर से खिवेदि खकया। तब गंगा प्ृ वी पर आई और उसके जल के स्पशम से राजा सगर का 60 िजार पत्रु ों का उिार िुआ।
दुल्हन के बदले देनी पडती है दुल्हन नहीं तो... आज लोग जीविसाथी को ढ़ंढिे के खलए जिां अिबार व इंटरिेट का सिारा ले रिे िैं। विीं आज भी एक ऐसी खबरादरी भी िै, खजसके रस्र् और ररवाज िासतौर पर लडके की शादी को कखठि बिा देते िैं। जिां एक और सार्ान्य रूप से िर्ारे सर्ाज र्ें यि र्ान्यता िै खक बेटी की शादी करिे र्ें र्ाता-खपता को बिुत परेशािी का सार्िा करिा पडता िै। लेखकि वि गज ु मर सर्ाज र्ें इसके ठीक खवपररत र्ान्यता िै।
इस सर्ाज र्ें खकसी के घर जब पत्रु का जन्र् िोता िै तभी से र्ाता-खपता को उसके खववाि के संबंध र्ें खचंता सतािे लगती िै क्योंखक उिर्ें दल्ु िि लेिे के बदले दल्ु िि देिे की प्रथा िै। िां शायद ये बात आपको थोडी अजीब लगे लेखकि वि गज ु म र सर्ाज र्ें ऐसी िी कुछ अजीबोगरीब ररवाज िै। इस सर्ाज र्ें र्खिला संगीत की बजाय परुु ि संगीत िोता िै। खजसर्ें परुु ि सखु फयािा गीत गाते िैं। इस सर्ाज र्ें लडके की शादी र्ें दल्ु िि के बदले दल्ु िि का आदाि-प्रदाि खकया जाता िै अथाम त वर पक्ष दल्ु िि लेिे के बदले कन्या पक्ष को भी दल्ु िि देता िै खजसे स्थािीय भािा र्ें साटा-पल्टा किा जाता िै। यखद देिे के खलए दल्ु िि ि िो, तो दार्ाद को खववाि से पिले िी घर जर्ाई बिा खदया जाता िै, खजसे पांच से दस साल तक लडकी के घर रिकर उिके घर के कार्ों र्ें िाथ बटांिा पडता िै। वि गज ु म र सर्दु ाय का र्ाििा िै खक यि रस्र् र्खु श्कल जरूर िै लेखकि इसके पालि से लडकी को सम्र्ाि तो खर्लता िी िै साथ िी आपसी भाईचारा भी बढ़ता िै।
सोने से पहले क्या औि क्यों पढ़े? किते िैं रात को िर् खजस तरि के खवचारों के साथ सोते िैं सबु ि िर्ारे खदि की शरू ु आत जैसे िोती िै वैसे िी पूरा िर्ारा खदि बीतता िै। यखद रात को र्ंत्र जप करते िुए, ध्याि करते िुए या कुछ अच्छे खवचार रिकर सोएं तो िींद गिरी आती िी िै। साथ िी आिे वाला खदि भी सकारात्र्क ऊजाम से भरा िुआ िोता िै। अखधकतर खियर्बि धाखर्म क लोग अपिी खदिचयाम की शरू ु आत धर्म ग्रंथों के साथ करते िैं लेखकि आजकल की इस भागदौड भरी खजंदगी र्ें लोग चािकर भी यि ििीं कर पाते िैं। किते िैं सबु ि के सर्य इिको पढऩे से कोई खवशेि फल खर्लता िै यि के वल एक रूढ़ी र्ात्र िै। दरअसल यि िर्ारी खवचारधारा, र्ािखसकता और स्वास््य के खलए तय खकया गया िै खक धर्म ग्रंथ सबु ि िी पढ़े जाएं। लेखकि यखद रात को अच्छे खवचारों वाली या आध्याखत्र्क पस्ु तक पढ़ते िुए सोएं तो कुछ िी खदिों र्ें आप अपिे आप र्ें और अपिे जीवि र्ें इसका प्रभाव र्िसूस करेंगे। इसीखलए रात को सोिे से पिले आध्याखत्र्क खवचारों वाली खकताब का ज्यादा ििीं तो खसफम एक पेरग्रे ाफ पढ़कर सोएं। आपका आिे वाला कल सकारात्र्क ऊजाम से भरा िुआ िोगा।
ये िस्र् कसखाती है बिु े सर्य र्ें भी साि कनभाना क्योंकक... खववाि के बाद दो इंसािो के साथ-साथ दो पररवारों का जीवि भी पूरी तरि बदल जाता िै। खववाि र्ें सबसे र्ख्ु य रस्र् िोती िै वरर्ाला की। खिन्दू धर्म के अिस ु ार वरर्ाला और फे रों के बाद िी शादी की रस्र् पूणम िोती िै। वरर्ाला प्रतीक िै दो आत्र्ाओं के खर्लि का। जब श्रीरार् िे सीता स्वयंवर र्ें धििु तोडा, तब सीता िे उन्िें वरर्ाला पििा कर पखत रूप र्ें स्वीकार खकया। इसी तरि वरर्ाल के संबंध र्ें कई प्रसंग िर्ारे धर्म ग्रंथों र्ें भी खदए गए िैं। वरर्ाला फूलों और धागे से बिती िै। फूल प्रतीक िैं िशु ी, उत्साि, उर्ंग और सौंदयम का, विीं धागा इि सभी भाविाओं को सिेज कर रििे वाला र्ाध्यर् िै। खजस तरि फूलों के र्रु झािे पर भी धागा उि फूलों का साथ ििीं छोडता उसी तरि वरर्ाला िव दंपखि को भी यिी संदेश देते िैं खक जैसे अच्छे सर्य र्ें िर् साथ-साथ रिे वैसे िी बरु े सर्य र्ें भी एक-दस ू रे के साथ कदर् से कदर् खर्लाकर चले, खकसी एक को अके ला िा छोडे। जब भी लगाएं पौंछा रिें इि बातों का ध्याि क्योंखक...किते िैं खकसी भी घर र्ें साफ-सफाई पर यखद खवशेि ध्याि खदया जाए तो उस घर र्ें िर्ेशा बरकत रिती िै। शास्त्रों के अिस ु ार धि की देवी लक्ष्र्ी खजस घर र्ें अखधक साफ-सफाई रिती िै विां स्थाई रूप से खिवास करती िै। साथ िी घर की साफ-सफाई से िर्ारा र्ि िर्ेशा प्रसन्ि और िशु रिता िै। जबखक इसके खवपररत घर र्ें गंदगी रििे पर दररद्रता का खिवास िोता िै। इसीखलए घर र्ें खियखर्त रूप से पौंछा लगािा चाखिए। साथ िी यि भी ध्याि रिें खक कभी शार् को पौछा िा लगाएं। पूजा घर व रसोई घर पौंछा अलग से रिें। र्ान्यता िै खक इि बातों का ध्याि िा रििे पर लक्ष्र्ी रूठ जाती िै। घर र्ें पौंछा लगाएं इस संबंध र्ें वास्तशु ास्त्र र्ें जरूरी खटप्स बताई गई िैं। पौंछा लगािे के पािी र्ें थोडा िर्क खर्ला लेिा चाखिए।
इस पािी से बीर्ारी फै लािे वाले सभी कीटाणु िष्ट िो जाते िैं। साथ िी िर्क िकारात्र्क शखक्तयों को भी दरू करता िै। घर के वातावरण र्ें सकारात्र्क ऊजाम का प्रवाि भी बढ़ जाता िै। र्ान्यता िै खक इस उपाय से घर के वास्तदु ोिों का प्रभाव कर् िोिे लगता िै।
चिणार्तृ सीधे हाि से ही क्यों लेना चाकहए? किते िैं भगवाि श्रीरार् के चरण धोकर उसे चरणार्तृ के रूप र्ें स्वीकार कर के वट ि के वल स्वयं भव-बाधा से पार िो गया बखल्क उसिे अपिे पूवमजों को भी तार खदया। चरणार्तृ का र्ित्व खसफम धाखर्म क िी ििीं खचखकत्सकीय भी िै। चरणार्तृ के बारे र्ें एक र्ान्यता और प्रचखलत िै वो ये खक चरणार्तृ िर्ेशा सीधे िाथ से िी लेिा चाखिए। किते िैं िर शभु कार् या अच्छा कार् खजससे आप जल्द िी सकारात्र्क पररणार् प्राि करिा चािते िैं वि कार् सीधे िाथ से करिा चाखिए। इसीखलए िर धाखर्म क कायम चािे वि यज्ञ िो या दाि-पण्ु य सीधे िाथ से िी खकया जािा चाखिए । जब िर् िवि करते िैं और यज्ञ िारायण भगवाि को आिूखत दी जाती िै तो वो सीधे िाथ से िी दी जाती िै। दरअसल सीधे िाथ को सकारात्र्क ऊजाम देिे वाला र्ािा जाता िै। आयवु ेखदक र्तािस ु ार तांबे के पात्र र्ें अिेक रोगों को िष्ट करिे की शखक्त िोती िै जो उसर्ें रिे जल र्ें आ जाती िै। उस जल का सेवि करिे से शरीर र्ें रोगों से लिऩे की क्षर्ता पैदा िो जाती िै तथा रोग ििीं िोते। इसर्ें तल ु सी के पिे िालिे की परंपरा भी िै खजससे इस जल की रोगिाशक क्षर्ता और भी बढ़ जाती िै। साथ िी सीधे िाथ से चरणार्तृ लेिे पर ईश्वर की कृपा तो प्राि िोती िी िै साथ िी सोच भी सकारात्र्क िोती िै।
खाना खाने से पहले आचर्न क्यों किना चाकहए? किते िैं स्वस््य शरीर र्ें िी स्वस््य र्खस्तष्क खिवास करता िै और खजसका शरीर स्वस््य रिता िै वि जीवि का िर खदि पूरी ऊजाम व िशु ी के साथ जीता िै और उसे अपिे जीवि के
िर क्षेत्र र्ें सफलता प्राि िोती िै। िर्ारे यिां दैखिक जीवि से जडु ी कई परंपराएं िैं। उन्िी र्ें से कुछ परंपराएं ऐसी िैं जो िर्ारे स्वास््य को अच्छा बिाए रििे र्ें र्दद करती िै। ऐसी िी एक परंपरा िै भोजि के सर्य आचर्ि की। भोजि से पिले आचर्ि खकया जाता िै। आचर्ि करते सर्य िाथ र्ें जल लेकर पिले तीि बार उसे िािे की प्लेट की चारों तरफ घर्ु ाते िैं। उसके बाद र्ि िी र्ि ईश्वर का स्र्रण खकया जाता िै और ईश्वर को िैवेद्य ग्रिण करिे की प्राथम िा तो खक िी जाती िै। साथ िी उन्िें भोजि प्रदाि करिे के खलए धन्यवाद खदया जाता िै। उसके बाद तीि बार आचर्ि लेकर उसे ग्रिण खकया जाता िै। र्ािा जाता िै खक ऐसा करिे से ईश्वर का आशीवाद तो प्राि िोता िी साथ िी भोजि भी बिुत जल्दी पच जाता िै और भोजि से पूरी तरि से सकारात्र्क ऊजाम प्राि िोती िै। इसके पीछे वैज्ञाखिक कारण भी िै वि यि खक भोजि से पिले थोडा जल ग्रिण करिे से आिार िखलका जो थोडी खसकुडी िुई िोती िै िल ु जाती िै। खजससे भि ु तो बढ़ती िी िै साथ िी पाचि संबंखधत कोई सर्स्या भी ििीं िोती िै।
कुि लोगों को पूजा का परिणार् क्यों नहीं कर्लता? खिन्दू धर्म शास्त्रों र्ें पूजि के खलए अिेक खवखध-खवधाि िै। किा जाता िै खक पूरी खवखध-खवधाि से पूजि करिे पर िी खकसी भी व्रत या पूजि का पूरा पररणार् खर्लता िै। इसीखलए जब भी िर्ारे घर र्ें खकसी तरि के पूजि का आयोजि खकया जाता िै तो खकसी शास्त्रों को जाििे वाले पंखित को बल ु ाया जाता िै। लेखकि पूजा के कुछ खवधाि ऐ ेसे भी िैं खजन्िे रोज पूजा के सर्य करिे पर पूजा के पूणम फल की प्राखि िोती िै। लेखकि सार्ान्य लोग अक्सर ऐसे उपायों से अिजाि िोते िैं। शास्त्रों के अिस ु ार ऐसा िी एक खियर् िै पूजा से पिले संकल्प लेिे का। पूजा से पिले यखद संकल्प िा खलया जाए तो उसका पूजा फल ििीं खर्लता िै। साथ िी र्ािा जाता िै खक उस पूजा का सारा फल इन्द्र देव को प्राि िोता िै। पूजा के खलए संकल्प लेिे का अथम िै एक तरि
से स्वयं की कसर् उठािा, या स्वयं को साक्षी र्ािकर कोई संकल्प लेिा। संकल्प लेते सर्य िाथ र्ें जल भी खलया जाता िै क्योंखक इस पूरी सखृ ष्ट के पंचर्िाभूतों (अखग्र, प्ृ वी, आकाश, वायु और जल) र्ें भगवाि गणपखत जल तत्व के अखधपखत िैं, उन्िें आगे रिकर संकल्प लेिा यािी संकल्प र्ें िर कायम शभु िो ऐसी प्राथम िा भी शाखर्ल िोती िै। कुल खर्लाकर व्रत व पज ू ि के खलए एक बार संकल्प करिे के बाद उसे पूरा करिा आवश्यक िो जाता िै। ऐसे र्ें जो व्यखक्त संकल्प करता िै उसे िर िाल र्ें संकल्प पूरा करिा पडता िै खजससे उसकी संकल्प शखक्त र्जबतू िोती िै। जीवि की खविर् पररखस्थखतयों से खिपटिे की व अपिे िर कायम की प्रखत दृढ़संकल्प कर उसे पूरा करिे की शखक्त खर्लती िै।
क्यों िखी जाती है पूजा घि र्ें बालगोपाल की र्कू ता? कृष्ण िी एक र्ात्र ऐसे भगवाि िै खजिका बालरूप भी पूजा जाता िै। दरअसल कृष्ण के बचपि की खजतिी उल्लेििीय घटिाएं िैं। उतिी खकसी और देवता के बारे र्ें ििीं िै। लेखकि घर र्ें बालगोपाल की सेवा पज ू ा करिा बिुत शभु र्ािा जाता िै। इसीखलए िर घर र्ें बालगोपाल की छोटी सी र्ूखतम पूजा घर र्ें जरूर रिी जाती िै।
पूजा घि र्ें बालगोपाल की र्ूकता क्यों िखी जाती है? इस सवाल का सारा आधार बिुत दाशम खिक िै। यि पूरी तरि र्ािवीय संवेदिा और र्िोदशा पर आधाररत िै। दरअसल भगवाि का बाल रूप र्ि र्ें िर तरि इंसाि के र्ि र्ें प्रेर् और वात्सल्य जगाता िै। जब िर् भगवाि की प्रखतर्ा की सेवा एक जीखवत बालक की तरि करते िैं तो र्ि र्ें िर्ेशा प्रेर्, सद्भाव, दया, करूणा और आदर जैसे भाव पैदा िोते िैं, जो िर्ारे आध्याखत्र्क और वैयखक्तक खवकास के खलए जरूरी िै। इससे िर्ारे भीतर खकसी के प्रखत दभु ाम विा ििीं आती िै। इसका एक बडा कारण यि भी िै खक इससे िर्ारे जीवि र्ें व्यविाररक और आध्याखत्र्क अिशु ासि भी आता िै। भगवाि का बाल रूप जीखवत र्ािकर पूजा करिे से िर्ारी खदिचयाम र्ें खियखर्तता आती िै।िर कार् सर्य पर,
सावधािी से करिे की आदत भी पड जाती िै। भगवाि का यि स्वरूप र्ि र्ें प्रेर् जगाता िै, खजससे वैष्णव खकसी छोटे का भी अपर्ाि ििीं करते, उससे बडे प्रेर् से िी पेश आते िैं।
इस सर्य खाना खाने के हैं अनेक फायदे क्योंकक... भोजि से िर्ारे शरीर को ऊजाम खर्लती िै। इसीखलए किते िैं स्वस््य रििे के खलए सिी सर्य पर भोजि करिा बिुत जरूरी िै। सभी स्वस््य और खिरोगी रिे इसीखलए िर्ारे धर्म शास्त्रों र्ें भी िािे से संबंखधत कई खियर् बिाए गए िैं ऐसा िै सूयम अस्त से पूवम भोजि का। इस खियर् का सबसे अखधक पालि जैि धर्म के लोग करते िैं। लेखकि बिुत कर् लोग जािते िैं खक वाकई र्ें सूयाम स्त से पूवम भोजि के अिेक फायदे िैं। दरअसल यि खियर् व्यखक्त के स्वास््य को ध्याि र्ें रिकर बिाया गया िै। सूयाम स्त के पिले भोजि करिे से ि के वल पाचि तंत्र ठीक रिता िै बखल्क िर् कई तरि की बीर्ाररयों से भी बच जाते िैं। कई तरि के बैखक्टररया और अन्य जीव िर्ारे भोजि के साथ शरीर र्ें प्रवेश ििीं कर पाते। इस खियर् के पीछे सबसे बडा कारण िै खक सूयाम स्त के बाद र्ौसर् र्ें िर्ी बढ़ जाती िै और इस िर्ी के कारण कई तरि के सूक्ष्र् जीव और बैखक्टररया उत्पन्ि िो जाते िै। सूयम की रोशिी र्ें ये गरर्ी के कारण पिप ििीं पाते िैं और सूयाम स्त के साथ िी जैसे िी िर्ी बढ़ती िै ये जीव सखिय िो जाते िैं। साथ िी सिी सर्य पर िािा-िािे से पािी अखधक पीिे र्ें आता िै खजससे भोजि तो जल्दी पच िी जाता िै। साथ िी अन्य कई बीर्ाररयों से भी बचाव िोता िै।
कै से नारियल से होती है लक्ष्र्ीजी प्रसन्न? खिन्दू ररवाज और र्ान्यताओं के अिस ु ार श्रीफल याखि िाररयल के खबिा पूजा अधरु ी र्ािी जाती िै क्योंखक श्री फल लक्ष्र्ी जी का फल र्ािा गया िैं। यि पूणमता और सि ु सर्खृ ि देिे वाला फल िै। इसखलए खकसी भी शभु कार् या पूजा पाठ करिे से पिले श्री फल का उपयोग खकया जाता िै ताखक खकया गया कायम पूरा िो और उसका सकारात्र्क फल भी खर्ल सके । धि
अखपम त करिे की िर्ारी शखक्त ििीं परंतु प्रतीक रूप से िर् भगवाि को श्रीफल अखपम त करते िैं। खजससे धि का अिंकार िर्ारे भीतर से खिकल जाए और िर् िाररयल के भीतर की तरि श्वेत, कोर्ल और दोिरखित िो जाए। िाररयल ऊपर से खजतिा कठोर िोता िै अंदर से उतिा र्ल ु ायर्। खजसका स्वाद सभी को अच्छा लगिे वाला िै। लेखकि क्या आप जािते िै खक खबिा र्ौली का िाररयल ऐसा शभु फल ििी देता िै। जी िां खिन्दु धर्म के कुछ र्ित्वपूणम ग्रंथ ओर शास्त्रों के अिस ु ार खबिा र्ौखल का िाररयल अपूणम र्ािा जाता िै। ऐसा िाररयल अधरू ा फल देिे वाला िोता ह्रै। क्योंखक पूजा पाठ र्ें र्ौखल का उपयोग उपवस्त्र के रूप र्ें खकया जाता िै और श्री फल का उपयोग खबिा वस्त्र के या खबिा ढंके ििी खकया जाता िै। र्ािा जाता िै खक श्री फल पर र्ौली लपेटकर अखपम त करिे से र्ां लक्ष्र्ी प्रसन्ि िोती िै और घर र्ें खस्थर लक्ष्र्ी का खिवास िोता िै।
शिीि र्ें कै से आए िक्त, शुक्राणु औि र्न अध्यात्र् का वास्तखवक अथम िै वैज्ञाखिक धर्म । सर्स्या यि िै खक लोग अध्यात्र् की असखलयत और गिराई जािे बगैर िी उसके खविय र्ें अपिी राय बिा लेते िैं। आर् लोगों का सोचिा यि िै खक अध्यात्र् र्ें खसफम आत्र्ा और परर्ात्र्ा के बारे र्ें खवचार खकया जाता िै इसखलये यि िर्ारे खकस कार् का? जबखक वास्तखवकता कुछ और िी िै। अध्यात्र् को जािे, सर्झे और गिराई से उसर्ें उतरे बगैर कोई भी खजंदगी को असल र्ायिे जाि िी ििीं सकता। अध्यात्र् खजंदगी के िर पिलू पर बेिद अिर्ोल और वैज्ञाखिक दृखष्टकोण के साथ बात करता िै। यिां तक खक भोजि जैसे खविय पर भी अध्यात्र् र्ें सूक्ष्र् वैज्ञाखिक जािकाररयां दी गई िैं। अध्यात्र् र्ें भोजि का भी बडा र्ित्व बताया गया िै। अध्यात्र् किता िै खक यखद िर्ारा भोजि ठीक ि िो तो शरीर, र्ि और अंतत: पूरा व्यखक्तत्व भी ठीक ििीं रि सकता। भोजि के खविय र्ें अध्यात्र् र्ें एक बडी िी कीर्ती बात किी गई िै। इसर्ें भोजि का बडा िी वैज्ञाखिक या किें बॉयोलाजीकल खवशलेिण खकया गया िै। अध्यात्र् का सप्रु ीर् सांइस किता िै खक याद रखिए जो भी कुछ िर् िाते िैं उसर्ें से एक चौथाई से र्ि बिता िै, एक चौथाई से रक्त बिता िै, एक चौथाई शि ु यािी वीयम (वीयम को िी
अंगे्रजी र्ें सीर्ि किा जाता िै) र्ें और एक चौथाई र्ल र्ें पररवखतम त िो जाता िै। र्तलब यि खक आपके भोजि करिे लेिे के बाद ये चार प्रखियाएं घटती िैं। िर्ें बडी सावधािी और चोकन्िेपि के साथ र्ि, रक्त (िूि) और शि ु यािी वीयम को संभालकर रििा िै और खसफम र्ल का त्याग करिा िै। अध्यात्र् र्ें र्ि, रक्त और वीयम के खविय र्ें जो बात किी गई िै यखद उसका ध्याि रिा जाए तो इंसाि 100 फीसदी र्िाि व्यखक्तत्व का र्ाखलक बि सकता िै।
कवदाई के सर्य कतलक क्यों लगाते हैं? खिन्दू धर्म र्ें खकसी भी तरि का पूजि करते सर्य र्स्तक पर खतलक जरूर लगाया जाता िै। र्ािा जाता िै खक खबिा खतलक लगाए पूजा करिे पर पूजा का पूरा फल ििीं खर्लता। लेखकि खसफम पूजि के सर्य िी खतलक ििीं खकया जाता िै बखल्क खतलक िर्ारी भारतीय संस्कृखत का भी एक अखभन्ि अंग िै। इसीखलए िर्ारे यिां जब खकसी का स्वागत खकया जाता िै , शादी ब्याि र्ें कोई रस्र् खिभाई जाती िै या खकसी खक खवदाई की जाती िै तो भी र्ेिर्ािों को खतलक लगाकर िी खवदा खकया जाता िै। लेखकि बिुत कर् लोग जािते िैं खक खवदाई के सर्य खतलक क्यों लगाया जाता िै? दरअसल खतलक को िर्ारी सभ्यता र्ें सम्र्ाि का प्रतीक र्ािा गया िै। इसके अलावा इसे खवजय का प्रतीक भी र्ािा जाता िै। इसीखलए प्राचीि सर्य से िी जब िर्ारे यिां कोई यि ु के खलए जाता था। तब उसे खतलक लगाकर िी खवदा खकया जाता था ताखक जब वो लौटे तो खवजय प्राि करके लौटे। ऐसे र्ें खतलक करिे वाले की सकारात्र्क भाविा या दआ ु एं खवदाई लेिे वाले के साथ रिती िै और उसे अपिे लक्ष्य तक पिुंचिे र्ें सिायता करती िै। साथ िी खतलक लगािे से एकाग्रता और आत्र्खवश्वास बढ़ता िै क्योंखक खतलक लगािे से आज्ञा चि जागतृ िोता िै। साथ िी र्खस्तष्क को शीतलता भी खर्लती िै।
बेडरूर् र्ें नहीं िखने चाकहए झूठे बतान क्योंकक... बेिरूर् या शयि कक्ष घर का वि कर्रा िोता िै खजसका वास्तु अगर सिी िो तो पूरे घर र्ें सि ु व शांखत रिती िै क्योंखक खकसी भी सि ु ी गिृ स्थी की िींव िै सि ु ी दांपत्य जीवि। लेखकि
बेिरुर् र्ें खकसी भी तरि का वास्तु दोि िोिे पर पखत-पत्िी का ररश्ता बिुत र्जबूत ििीं रि पाता िै।िर्ारे शास्त्रों के अिस ु ार बेिरूर् र्ें झूठे बतम ि छोिऩा खिखिि र्ािा गया िै। क्योंखक इससे घर की सि ु व सर्खृ ि िष्ट िोती िै। पखत-पत्िी के ररश्ते भी प्रभाखवत िोते िैं। साथ िी घर र्ें अलक्ष्र्ी का वास िोता िै। वास्तु के अिस ु ार भी घर र्ें बेिरूर् र्ें झूठे बतम ि रििा अच्छा ििीं र्ािा गया िै। आलस्य के कारण ऐसा करिे पर रोग व दररद्रता आती िै। िर्ारे यिां बिाई गई ऐसी िर एक परंपरा के पीछे कोई िा कोई वैज्ञाखिक कारण भी जरूर छूपा िोता िै। घर र्ें झूठे बतम ि रििे से उि बतम िों र्ें छोटेछोटे बैखक्टररया जन्र् ले लेते िैं और इिकी संख्या तेजी से बढऩे लगती िै। खजससे कर्रे र्ें िकारात्र्क ऊजाम तो फै लती िी िै साथ िी कई बीर्ाररयां भी िो सकती िैं।
कबना जीवनसािी के दान अधूिा क्यों र्ाना जाता है? दाि करिे के संबंध र्ें सबसे र्ित्वपूणम खियर् यि िै खक दाि िर्ेशा अपिे जीविसाथी के साथ िी खकया जािा चाखिए। ऐसी र्ान्यता िै खक खशवजी के अद्रध् िारीश्वर स्वरूप र्ें खशवजी के दाएं भाग र्ें स्वयं खशवजी और बाएं भाग र्ें र्ाता पावम ती को दशाम या जाता िै। धर्म से संबंखधत सभी कायम परुु िों से कराए जािे की बात िर्ेशा से िी किी जाती रिी िै। दाि सीधे िाथ से करिा चाखिए लेखकि दाि का धर्म तब और अखधक खर्लता िै जब दाि जोडे से खकया जाए क्योंखक पत्िी को पखत की अद्रध् ांखगिी किा जाता िै, इसका र्तलब यिी िै खक पत्िी के खबिा पखत अधरू ा िै। पखत के िर कायम र्ें पत्िी खिस्सेदार िोती िै। शास्त्रों र्ें इसी कारण सभी पूजा कर्म दोिों के खलए एक साथ करिे का खियर् बिाया गया िै। यखद दोिों एक साथ पूजाखद कर्म करते िैं तो इससे पखत-पत्िी को पण्ु य तो खर्लता िै साथ िी परस्पर प्रेर् भी बढ़ता िै। स्त्री को परुु ि की शखक्त र्ािा जाता िै इसी वजि से सभी देवीदेवताओं के िार् के पिले उिकी शखक्त का िार् खलया जाता िै जैसे सीतारार्, राधाकृष्ण। इसी
वजि से पत्िी के खबिा पखत को खकसी भी तरि के दाि का कोई पण्ु य ििीं लगता और खदया गया दाि अधूरा िी र्ािा जाता िै।
शादी र्ें ककसी को भी काले कपडे नहीं पहनना चाकहए क्योंकक.... काला रंग अशभु िोता िै। अखधकतर लोग इसे अंधखवश्वास र्ािकर इस बात को ििीं र्ािते िैं क्योंखक काले रंग के कपडे इि खदिों फै शि र्ें िै इसखलए आजकल शादी र्ें दल्ू िा- दल्ु िि भी और उिके ररश्तेदार भी इस बात को अंधखवश्वास र्ािकर टाल देते िैं। लेखकि ज्योखति के अिस ु ार भी शभु कायम र्ें काले रंग के कपडे ििीं पिििा चाखिए। इसखलए शादी र्ें भी वस्त्रों र्ें लाल, पीले और गल ु ाबी रंगों को अखधक र्ान्यता दी जाती िै क्योंखक लाल रंग सौभाग्य का प्रतीक र्ािा गया िै। इसके पीछे वैज्ञाखिक त्य यि िै खक लाल रंग ऊजाम का स्तोत्र िै। साथ िी लाल रंग सकारात्र्क ऊजाम का भी प्रतीक िै। इसके खवपरीत जब िीले, भूरे और काले रंगों की र्िािी करते िैं तो उसके पीछे भी वैज्ञाखिक कारण िैं। काला और गिरा रंग िैराश्य का प्रतीक िै और ऐसी भाविाओं को शभु कायो र्ें ििीं आिे देिा चाखिए। जब पिले िी कोई िकारात्र्क खवचार र्ि र्ें जन्र् ले लेंगे तो ररश्ते का आधार र्जबतू ििीं िो सकता। इसखलए शादी र्ें वर और वधु दोिों को िी काले कपडे ििीं पिििा चाखिए। साथ िी उिके ररश्तेदारों को भी काले कपडे पिििे से बचिा चाखिए।
क्यों औि ककस कदन नहीं किना चाकहए सफि? िर्ारे यिां िर खदि से जडु ी एक अलग र्ान्यता िै जैसे गरू ु वार के खदि सफाई िा करिा या शखिवार के खदि घर र्ें लोिा िा लािा ऐसी िी कुछ परंपराए खतखथयों के खलए भी बिाई गई िै जैसे ग्यारस के खदि चावल िा िािा या चतथु ी के खदि चंद्रर्ा के दशम ि की। ऐसी िी अिेक परंपराएं या र्ान्यताएं िै खजन्िें िर् र्ािते िैं और इिका पालि भी करते िैं पर कारण ििीं जािते िैं खक आखिर ये र्ान्यताए बिाई क्यों गई िैं? ऐसी िी एक र्ान्यता िै खक अर्ावस्या के
खदि यात्रा ििीं करिी चाखिए। अर्ावस्या र्ें अर्ा का अथम िै करीब तथा वस्य का अथम िै,रििा यािी करीब रििा।इस खदि चंद्र खदिाई ििीं देता तथा खतखथयों र्ें इस खतखथ के स्वार्ी खपतृ िोते िैं।इसखलए इस खतखथ को भी शभु कर्म करिा खििेध िै।यिां तक की र्जदरू वगम भी इस खदि कार् बंद रिता िै और इस खदि यात्रा भी ििीं करिा चाखिए क्योंखक चंद्रर्ा की शखक्त प्राि ििी िोिे के कारण शरीर र्ें एक र्ित्वपूणम तत्व जल का संतल ु ि ठीक ििी रिता खजससे खिणम य सिी ििी िो पाते और गलखतयां अखधक िोती िै। दु घम टिाओं के िोिे का भय रिता िै। साथ िी यखद यात्रा व्यापाररक िो तो सिी फै सले ििीं िोते खजससे व्यापार र्ें िक ु साि भी िो सकता िै। इसखलए अगर आप खकसी र्ित्वपणू म कायम के खलए जा रिे िों तो अर्ावस्या के खदि को टालिा चाखिए और यात्रा ििीं करिा चाखिए।
पूजा र्ें भगवान को अबीि क्यों चढ़ाया जाता है? पूजा से जडु ी अिेक परंपराओं र्ें से एक परंपरा िै पूजि के सर्य गंध अखपम त करिे की। चंदि, िल्दी, गल ु ाल व र्ेंिदी इि सभी को शास्त्रों के अिस ु ार गंध र्ािा गया िै। ऐसी र्ान्यता िै खक पूजि के सर्य ये गंध अखपम त करिे से भगवाि की खवशेि कृपा प्राि िोती िै। लेखकि सारे गंध र्ें से सबसे श्रेष्ठ गंध अबीर को र्ािा गया िै।अबीर अभ्रक से प्राि िोता िै। इसे अभ्रक भस्र् भी किा जाता िै। भगवाि की र्ूखतम यों पर अबीर चढ़ािे से र्ूखतम यां चर्कती िै और र्ािा जाता िै खक इससे भगवाि के अंगों का तेज बढ़ता िै। अबीर को पूजा र्ें गल ु ाल के साथ सगु ंखधत द्रव्य व गंध के रूप र्ें चढ़ाया जाता िै। इसीखलए इसे भगवाि का खप्रय र्ािा जाता िै। र्ान्यता िै खक अबीर को पूजि र्ें पूरी श्रि ृ ा के साथ चढ़ाकर भगवाि से उिके िी सर्ाि तेज देिे की प्राथम िा की जाती िै तो उससे सभी अंग तेजस्वी बिते िैं।साथ िी रोग ित्र् िोकर शरीर स्वस््य बिता िै।
ग्रहण के सर्य भोजन क्यों नहीं किना चाकहए! खिंदु धर्म के अिस ु ार ग्रिण के दौराि भोजि करिे को खिखिि र्ािा गया िै। यि परंपरा िर्ारे यिां आज से िी ििी ऋखि-र्खु ियों के सर्य से िी चली आ रिी िै।िर्ारे धर्म शास्त्रों र्ें सूयम
ग्रिण लगिे के सर्य भोजि के खलए र्िा खकया िै, क्योंखक र्ान्यता थी खक ग्रिण के सर्य र्ें कीटाणु बिुलता से फै ल जाते िै। िाद्य वस्त,ु जल आखद र्ें सूक्ष्र् जीवाणु एकखत्रत िोकर उसे दखू ित कर देते िैं। इसके पीछे वैज्ञाखिक कारण यि िै खक ग्रिण के सर्य र्िष्ु य के पेट की पाचि-शखक्त कर्जोर िो जाती िै, खजसके कारण इस सर्य खकया गया भोजि अपच, अजीणम आखद खशकायतें पैदा कर शारीररक या र्ािखसक िाखि पिुचाँ ा सकता िै। इसीखलए खिन्दू धर्म र्ें ऐसी र्ान्यता िै खक चंद्र ग्रिण लगिे से दस घंटे पूवम से िी इसका कुप्रभाव शरू ु िो जाता िै। अंतररक्षीय प्रदिू ण के सर्य को सतू क काल किा गया िै। इसखलए सतू क काल और ग्रिण के सर्य र्ें भोजि तथा पेय पदाथों के सेवि की र्िािी की गई िै। साथ िी इस सर्य र्ंत्र जप व पूजा-पाठ व दाि पण्ु य आखद करिे के बाद भोजि करिे का खियर् बिाया गया िै।
सूतक के प्रभाव को खत्र् किती है तुलसी क्योंकक.... खिंदु धर्म के अिस ु ार ग्रिण के दौराि सभी िाद्य पदाथम और पािी आखद र्ें तल ु सी की पखियां िालिा अखिवायम बताया गया िै। ग्रिण र्ें तल ु सी के पिे िािे र्ें िालिे से धाखर्म क और वैज्ञाखिक दोिों की फायदे प्राि िोते िैं। तल ु सी एक ऐसा पौधा िै जो धर्म और आयवु ेद र्ें र्ित्वपूणम स्थाि रिता िै। इसकी पखियों र्ें कई औिधीय गणु िोते िैं जो खक िर्ारे स्वास््य के खलए बिुत फायदेर्दं िै। इसी वजि से तल ु सी के पिे का खियखर्त सेवि करिे की सलाि दी िै। साथ िी तल ु सी पखवत्रता का भी प्रतीक िै। ऐसा र्ािा जाता िै ग्रिण काल र्ें भोजि की सार्ग्री आखद अपखवत्र िो जाती िै। अत: भोजि को ग्रिण की अपखवत्रता से बचािे के खलए पखवत्रता की प्रतीक तल ु सी को िािे र्ें िाल खदया जाता िै। दरअसल इसका र्ख्ु य कारण यि िै खक तल ु सी िालिे से भोजि को िाखिकारक खवखकरणें प्रभाखवत ििीं करती। इसीखलए ऐसी र्ान्यता िै खक ग्रिण के सर्य िािे र्ें कई खविैले कीटाणु
आखद पैदा िो जाते िैं, इि कीटाणओ ु ं के बरु े प्रभाव को ित्र् करिे के खलए तल ु सी के पिे सक्षर् िोते िैं। औिधीय गणु वाली तल ु सी िर्ारे स्वास््य पर बरु ा प्रभाव िालिे वाले कीटाणु को िष्ट कर देती िै और िािे को िराब िोिे बचा लेती िै।
ग्रहण के बाद जरूि किना चाकहए 'स्नान' क्योंकक... शास्त्रों के अिस ु ार ग्रिण करिे के बाद स्िाि करिा बिुत जरूरी र्ािा गया िै क्योंखक र्ािा जाता िै खक ग्रिण के सर्य र्ें अंतररक्षीय प्रदिू ण िोता िै। अंतररक्षीय प्रदिू ण के इस सर्य को सूतक काल किा गया िै। इसखलए सूतक काल और ग्रिण के सर्य र्ें भोजि तथा पेय पदाथों के सेवि की र्िािी की गई िै। साथ िी इस सर्य र्ंत्र जप व पूजा-पाठ के बाद दाि पण्ु य आखद करिे के बाद भोजि करिे का खियर् बिाया गया िै। इसखलए ऋखियों िे पात्रों के कुश िालिे को किा िै, ताखक सब कीटाणु कुश र्ें एकखत्रत िो जाएं और उन्िें ग्रिण के बाद फें का जा सके । पात्रों र्ें अखग्ि िालकर उन्िें पखवत्र बिाया जाता िै ताखक कीटाणु र्र जाएं। ग्रिण के बाद स्िाि करिे का खवधाि इसखलए बिाया गया ताखक स्िाि के दौराि शरीर के अंदर ऊष्र्ा का प्रवाि बढ़े, भीतर-बािर के कीटाणु िष्ट िो जाएं और धल ु कर बि जाएं।
सूया... सौिर्डं ल का ही नहीं सेहत का भी िाजा है प्रकृखत को पूजिे की परम्परा िर्ारे यिां प्राचीि काल से चली आ रिी िै। िर्िे गाय के खदव्य गणु ों को देिा और लाभ उठाया तो उसके प्रखत अपिा सम्र्ाि और आभार व्यक्त करिे के खलये उसे गौ र्ाता कििे लगे। देव िदी गंगा के र्िाि गणु ों को देिकर भी ऐसा िी िुआ पिले तो अद्भतु गणु ों को देिकर िर्ें आश्चयम िुआ और खफर यिी आश्चयम गिरे खवश्वास, श्रि ृ ा और कृतज्ञता र्ें पररवखतम त िो गया। गाय और गंगा की तरि िी जब िर्ें अपिे अिभु वों से ज्ञात िुआ खक सूयम खकस तरि से िर्ारे ऊपर अिंत उपकार करता िै तो उसके प्रखत भी वैसी िी भाविा
िे जन्र् खलया। ऐसा ििीं िै खक प्रकृखत के इि अंगों के खलये िर्ारे र्ि र्ें जो सम्र्ाि िै वि खसफम भाविा और श्रि ृ ा पर िी खिभम र िै। इस सम्र्ाि के पीछे पख्ु ता वैज्ञाखिक आधारा भी िैं। खवज्ञाि के क्षेत्र र्ें िोिे वाले कई शोधों से यि साखबत िो चक ु ा िै खक सूयम की प्रात:कालीि खकरणें िर्ारे शारीररक, र्ािखसक और आध्याखत्र्क खवकास के खलये बेिद फायदेर्ंद िैं। गाय के दधू से, देव िदी गंगा के पािी से और उगते िुए सूरज की खकरणों के स्पशम से िर्ारा शरीर और र्ि इतिा शखक्तशाली िो जाता िै खक खकसी भी तरि की कोई भी बीर्ारी िर् पर अपिा बरु ा प्रभाव ििीं खदिा पाती।
घि र्ें जरूि िखना चाकहए बास ं िु ी क्योंकक..... किते िैं कृष्ण जी सोलि कलाओं से पररपूणम िैं। श्रीकृष्ण की सबसे खप्रय वस्तु र्ें से एक िै बांसरु ी। कृष्ण जब बांसरु ी बजाते थे तो पूरा गोकुल र्ग्ु ध िोकर उिकी बांसरु ी सिु ा करता था। इसीखलए बांसरु ी को सम्र्ोिि िशु ी व आकिम ण का प्रतीक र्ािी गई िै । इसीखलए िर कोई इस संगीत की तरफ सिज िी आकखिम त िो जाता िै।ऐसी र्ान्यता िै खक घर र्ें बांसरु ी जरूर रििा चाखिए क्योंखक बांसरु ी रििे से घर से कई तरि के वास्तदु ोि दूर िोते िैं।बांसरु ी र्ें से गज ु र कर िकारात्र्क ऊजाम सकारात्र्क उजाम र्ें बदल जाती िै। बांस के तिे, बांसरु ी छत के बीर् की िकारात्र्क ऊजाम के दष्ु प्रभाव को रोकिे र्ें कारगर िैं। इससे आपके घर का र्ािौल िशु िर्ु ा रिेगा।साथ िी बांसरु ी शांखत व सर्खृ ि कर प्रतीक िै। घर के र्ख्ु य द्वार के सर्ीप बांसरु ी लटकाएं। इससे घर की सकारात्र्क ऊजाम र्ें बढऩे लगती िै। घर र्ें सबु ि-शार् शंि घंटी के साथ अगर बांसरु ी भी बजाएं तो इसकी र्धरु आवाज से प्राखणक ऊजाम र्ें वखृ ि िोती िै।
क्यों औि ककस कदशा र्ें शुभ नहीं होता बेडरूर्? किते िैं यखद खकसी व्यखक्त का वैवाखिक जीवि सि ु ी िो तो उसका पूरा जीवि अपिे आप सि ु ी िो जाता िै। वास्तु के अिस ु ार यखद बेिरूर् सिी खदशा र्ें ििीं िो तो पखत-पत्िी र्ें झगडे िोते िैं। पूवम खदशा र्ें बेिरूर् शभु ििीं र्ािा जाता िै। इस खदशा र्ें बेिरूर् बिा िुआ िैं तो उसे
अखववाखित बच्चों के खलए प्रयोग र्ें ला सकते िैं। िवखववाखित खववाखित दम्पखि के खलए यि खदशा वखजम त िैं। दरअसल वास्तु के अिस ु ार पवू म खदशा इन्द्र की िोती िैं और ग्रिों र्ें सूयम-ग्रि की खदशा िोती िैं। बज ु गु ों एवं अखववाखित बच्चों के खलए बेिरूर् के खलए प्रयोग र्ें लाया जा सकता िैं। उिर-पवू म खदशा र्ें बेिरूर् का खिर्ाम ण ि करें तो श्रेष्ठ रिेगा। यि खदशा ग्रिों र्ें गरू ु की खदशा र्ािी जाती िै जो खक पूजा कक्ष या बच्चों के अध्ययि कक्ष के रूप र्ें उपयोग र्ें ला सकते िैं। शादीशदु ा इस कक्ष र्ें शयि करेंगे तो कन्या संताि अखधक िोिे की सम्भाविा बिी रिती िैं। दखक्षण-पखश्चर् खदशा का कक्ष शयि के खलए सबसे अच्छा र्ािा जाता िैं। गिृ स्वार्ी के खलए सबसे उपयक्त ु र्ािा जाता िै। िैऋत्य कोण प्ृ वी तत्व िैं अथाम त खस्थरता का प्रतीक िैं। अत: इस कक्ष र्ें गिृ स्वार्ी का शयि कक्ष िोिे पर वि खिरोगी एवं भवि र्ें दीघम काल तक खिवास करता िैं। दखक्षण खदशा र्ें शयि कक्ष गिृ स्वार्ी के खलए उपयक्त ु र्ािा गया िैं। गिृ स्वार्ी के अखतररक्त खववाखित दम्पखियों के खलए भी उपयक्त ु कक्ष र्ािा जाता िैं।
ध्यान िखें कशवजी को कभी तुलसी ना चढ़ाए.ं . खशव परु ाण के अिस ु ार शंिचूि िार् का र्िापरािर्ी दैत्य िुआ। शंिचूि दैत्यराज दंभ का पत्रु था। दैत्यराज दंभ को जब बिुत सर्य तक कोई संताि उत्पन्ि ििीं िुई तब उसिे खवष्णु के खलए तप खकया और तप से प्रसन्ि िोकर खवष्णु प्रकट िुए। खवष्णु िे वर र्ांगिे के खलए किा तब दंभ िे एक र्िापरािर्ी तीिों लोको के खलए अजेय पत्रु का वर र्ांगा और खवष्णु तथास्तु बोलकर अंतध्र्याि िो गए। तब दंभ के यिां शंिचूि का जन्र् िुआ और शंिचूि िे पष्ु कर र्ें ब्रह्मा की घोर तपस्या कर उन्िें प्रसन्ि कर खलया। ब्रह्मा िे वर र्ांगिे के खलए किा और शंिचूि िे वर र्ांगा खक वो देवताओं के खलए अजेय िो जाए। ब्रह्मा िे तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच खदया खफर वे अंतध्र्याि िो गए। जाते-जाते ब्रह्मा िे शंिजीचूि को धर्म ध्वज की कन्या तल ु सी से खववाि करिे की भी आज्ञा दे दी। ब्रह्मा की आज्ञा पाकर तल ु सी और शंिचूि का खववाि िो गया। ब्रह्मा और खवष्णु के वर के र्द र्ें चूर दैत्यराज शंिचूि िे तीिों लोकों पर स्वाखर्त्व स्थाखपत कर खलया। देवताओं िे त्रस्त िोकर
भगवाि खवष्णु से र्दद र्ांगी परंतु उन्िोंिे िदु दंभ को ऐसे पत्रु का वरदाि खदया था अत: उन्िोंिे खशव से प्राथम िा की। तब खशव िे देवताओं के दि ु दरू करिे का खिश्चय खकया और वे चल खदए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तल ु सी के पखतव्रत धर्म की वजि से खशवजी भी उसका वध करिे र्ें सफल ििीं िो पा रिे थे तब खवष्णु से ब्राह्मण रूप बिाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दाि र्ें ले खलया और शंिचूि का रूप धारण कर तल ु सी के शील का अपिरण कर खलया। अब खशव िे शंिचूि को अपिे खत्रशल ु सी राक्षसराज की पत्िी थी। ू से भस्र् कर खदया और तल इसीखलए ऐसी र्ान्यता िै खक खशवजी को पूजा र्ें तल ु सी चढ़ािे पर पूजा का फल ििीं खर्लता और ऐसा करिे से दोि लगता िै।
गोद भिाई के बाद गभावती र्कहलाओ ं को र्ायके क्यों भेज कदया जाता है? िर्ारे यिां बच्चे के जन्र् के पूवम की भी अिेक परंपराएं िैं खजिका गभम वती र्खिला को पालि करिा िोता िै। ऐसी िी एक परंपरा िै खक गभम वती स्त्री को सातवें र्िीिे के बाद िदी व िाले पार ििीं करिा चाखिए या उिके पास ििीं जािा चाखिए ताखक र्ाता और उसके गभम र्ें पल रिा खशशु दोिों की सरु क्षा और सेित अच्छी बिी रिे। गोद भराई करके िोिे वाले खशशु की र्ां को र्ायके भेज खदया जाता िै क्योंखक सातवें र्िीिे के बाद गभम वती र्खिलाओं के खलए यि बिुत जरूरी िोता िै खक वे अच्छे से आरार् करें यात्राएं िा करे ताखक िोिे वाली संताि स्वस््य िो क्योंखक सातवे र्िीिे के बाद गभम वती र्खिलाओं को यात्रा करिे पर कई तरि की सर्स्याओं का सार्िा करिा पड सकता िै। जब कोई स्त्री गभम वती िोती िै तो उसके शरीर र्ें बिुत सारे शारररीक पररवतम ि िोते िैं। उिका शरीर सार्ान्य से अखधक संवेदिशील िोता िै। ऐसे र्े यात्रा करिे से या उिके पास जािे से िोिे वाले बच्चे पर बिुत अखधक प्रभाव पडता िै।
इसका एक कारण यि भी िै खक परु ािे सर्य र्ें सर्ाज र्ें पदाम प्रथा थी और बिुओ ं पर काफी बंधि िोते थे। इसीखलए वे सिज िी उन्िें िोिे वाली तकलीफ या अपिी जरूरतों को ििीं बता पाती थी। ऐसे सर्य र्ें उसे खकसी तरि की कोई कर्ी या तकलीफ िा िो और वि िशु रिे। इसीखलए यि खियर् बिाया गया खक गोद भराई के तरु तं बाद गभम वती र्खिलाओं र्ायके भेज खदया जाता िै।
शादी के बाद लडककयों को कबदं ी लगाना जरूिी क्यों? खबंखदया लडखकयों को सोलि श्रंगृ ार र्ें से एक र्ािा गया िै। इसीखलए खबंदी खकसी भी लडकी की िूबसूरती र्ें चार-चांद लगा देती िै। लडखकयां इसका उपयोग संदु रता बढ़ािे के उद्देश्य से करती िैं और खववाखित र्खिलाओं के खलए यि सिु ाग की खिशािी र्ािी जाती िै। खिंदू धर्म र्ें शादी के बाद िर स्त्री को र्ाथे पर लाल खबंदी लगािा आवश्यक परंपरा र्ािा गया िै। खबंदी का संबंध िर्ारे र्ि से भी जडु ा िुआ िै। योग शास्त्र के अिस ु ार जिां खबंदी लगाई जाती िै विीं आज्ञा चि खस्थत िोता िै। यि चि िर्ारे र्ि को खियंखत्रत करता िै। िर् जब भी ध्याि लगाते िैं तब िर्ारा ध्याि यिीं कें खद्रत िोता िै। यि स्थाि काफी र्ित्वपूणम र्ािा गया िै। र्ि को एकाग्र करिे के खलए इसी चि पर दबाव खदया जाता िै। लडखकयां खबंदी इसी स्थाि पर लगाती िै।खबंदी लगािे की परंपरा आज्ञा चि पर दबाव बिािे के खलए प्रारंभ की गई ताखक र्ि एकाग्र रिे। र्खिलाओं का र्ि अखत चंचल िोता िै, अत: उिके र्ि को खियंखत्रत और खस्थर रििे के खलए यि खबंदी बिुत कारगर उपाय िै। इससे उिका र्ि शांत और एकाग्र रिता िै।
र्कं दि र्ें र्ूकता की उल्टी परिक्रर्ा किना अशुभ क्यों र्ाना गया है?
र्ंखदर या देवालय वि स्थाि िै जिां जाकर कोई भी व्यखक्त र्ािखसक शांखत र्िसूस करता िै। खकसी भी र्ंखदर र्ें भगवाि के िोिे की अिभु ूखत प्राि की जा सकती िै। भगवाि की प्रखतर्ा या उिके खचत्र को देिकर िर्ारा र्ि शांत िो जाता िै और िर्ें सि ु प्राि िोता िै। िर् इस र्िोभाव से भगवाि की शरण र्ें जाते िैं खक िर्ारी सारी सर्स्याएं ित्र् िो जाएंगी, जो बातें िर् दखु िया से खछपाते िैं वो भगवाि के आगे बता देते िैं, इससे भी र्ि को शांखत खर्लती िै, बेचैिी ित्र् िोती िै। श्रिालु जब र्ंखदर या खकसी देव स्थाि पर जाते िैं तो आपिे उन्िें देवर्ूखतम की पररिर्ा करते िुए देिा िोगा। दरअसल पररिर्ा इस कारण की जाती िै क्योंखक शास्त्रों र्ें खलिा िै खक देवर्ूखतम के खिकट खदव्य प्रभा िोती िै।इसखलए प्रखतर्ा के खिकट पररिर्ा करिे से दैवीय शखक्त के ज्योखतर्ंिल से खिकलिे वाले तेज की सिज िी प्रािी िो जाती िै। लेखकि देवर्ूखतम की पररिर्ा सदैव दाएं िाथ की ओर से करिी चाखिए क्योखक दैवीय शखक्त की आभार्ंिल की गखत दखक्षणावती िोती िै। बाएं िाथ की ओर से पररिर्ा करिे पर दैवीय शखक्त के ज्योखतर्ंिल की गखत और िर्ारे अंदर खवद्यर्ाि खदव्य परर्ाणओ ु ं र्ें टकराव पैदा िोता िै, खजससे िर्ारा तेज िष्ट िो जाता िै। जािे-अिजािे की गई उल्टी पररिर्ा का दष्ु पररणार् भगु तिा पिता िै।
िात को पानी का बितन कसिहाने िखकि क्यों सोते हैं? किते िैं अगर शरीर को स्वस््य रििा िो तो ज्यादा से ज्यादा पािी पीिा चाखिए। पािी पीिे से कई तरि के रोग तो दूर िोते िी िै साथ िी शरीर र्ें उखपस्थत खविैले पदाथम भी बािर खिकल जाते िैं। त्वचा कांखतर्य रिती िै। िर्ारे शास्त्रों र्ें वरूण को जल का देवता र्ािा गया िै। र्ािा जाता िै खक तांबे के जग या पात्र का पािी पीिे से कई तरि की पेट से संबंखधत सर्स्याएं भी ित्र् िोती िैं।
लेखकि ज्योखति के अिस ु ार तांबे को सूयम की धातु र्ािा गया िै। ऐसी र्ान्यता िै खक जन्र्कंु िली र्ें सूयम अच्छी खस्थखत र्ें िा िो या िीच राखश र्ें िो तो तांबे के लौटे से सूयम को अघ्र्य देिे से सूयम से संबखं धत सभी दोि दरू िो जाते िैं। इसी कारण िीच के सूयम का प्रभाव कर् करिे के खलए तांबे की अंगठु ी पिििे की राय दी जाती िै। साथ िी ज्योखति के अिस ु ार एक र्ान्यता यि भी िै खक कंु िली र्ें सूयम के अच्छी खस्थखत र्ें िा िोिे पर खकसी भी कायम र्ें आसािी से सक्सेस ििीं खर्ल पाती िै। इसीखलए खकसी भी व्यखक्त को अगर सफलता ििीं खर्ल रिी िो और वि अपिे जीवि र्ें सफलता चािता िो तो उसे सूयम से जडु े उपाय करिे चाखिए। ज्योखति के अिस ु ार सयू म आत्र्ा का कारक िै। सूयम अच्छा िै तो आत्र्खवश्वास बढ़ता िै।इसीखलए सफलता प्राखि के खलए सूयम को बखल बिािा आवश्यक िै। इसके खलए राखत्र को तांबे के पात्र र्ें जल भरकर उसर्ें र्ाखणक िालकर रातभर रिें और वि पािी पीएं क्योंखक र्ाखणक को सूयम का रत्ि र्ािा गया िै। दरअसल इसका एक ओर पिलू िै वो िै कलर थैरपे ी। कलर थैरपे ी के अिस ु ार लाल रंग को आत्र्खवश्वास बढ़ािे वाला र्ािा जाता िै और लाल धातु र्ें लाल रत्ि यािी तांबे र्ें र्ाखणक रत्ि यिी कार् करता िै।ऐसा खियखर्त रूप से करिे से सूयम से जडु े सारे दोि दूर िोिे के साथ िी कई रोग दूर िोते िैं। खदिभर ति व र्ि स्फूखतम से भरा रिता िै और शीघ्र िी सफलता के रास्ते िल ु िे लगते िैं।
कशवकलगं पि शख ं से जल नहीं चढ़ाना चाकहए क्योंकक... किते िैं खक खजस घर र्ें खियखर्त शंि ध्वखि िोती िै विां कई तरि के रोगों से र्खु क्त खर्लती िै। वैखदक र्ान्यता के अिस ु ार शंि को खवजय घोि का प्रतीक र्ािा जाता िै। कायम के आरम्भ करिे के सर्य शंि बजािा शभु ता का प्रतीक र्ािा जाता िै। इसके िाद से सिु िे वाले को सिज िी ईश्वर की उपखस्थखत का अिभु व िो जाता िै और र्खस्तष्क के खवचारों र्ें भी सकारात्र्क बदलाव आ जाता िै। खिन्दू धर्म र्ें पूजा स्थल पर शंि रििे की परंपरा िै क्योंखक शंि को सिाति धर्म का प्रतीक र्ािा जाता िै। शंि खिखध का प्रतीक िै। ऐसा र्ािा जाता िै
खक इस र्ंगलखचह्न को घर के पूजास्थल र्ें रििे से अररष्टों एवं अखिष्टों का िाश िोता िै और सौभाग्य की वखृ ि िोती िै। शंि को खवष्णु और लक्ष्र्ी का अखतखप्रय र्ािा गया िै। लेखकि खशवजी को शंि से जल ििीं चढ़ाया जाता िै। दरअसल इसके पीछे कारण यि िै खक खशव िे शंिचूि को अपिे खत्रशूल से भस्र् कर खदया और उसकी िि्खियों से शंि का जन्र् िुआ। चूंखक शंिचूि खवष्णु भक्त था अत: लक्ष्र्ी-खवष्णु को शंि का जल अखत खप्रय िै और सभी देवताओं को शंि से जल चढ़ािे का खवधाि िै। परंतु खशव िे चूंखक उसका वध खकया था अत: शंि का जल खशव को खििेध बताया गया िै। इसी वजि से खशवजी को शंि से जल ििीं चढ़ाया जाता िै।
बधु वाि के कदन बेकटयों को ससिु ाल नहीं भेजना चाकहए क्योंकक..... जब िर् खकसी भी र्ंखजल या शिर की तरफ घर से खिकलते िैं तो अगर यात्रा सि ु द िोती िै तो कायम र्ें खिखश्चत िी सफलता खर्लती िै। यात्रा कभी सि ु दायी िोती िै तो कभी इतिी यातिाएं यात्रा र्ें खर्लती िै खक व्यखक्त सोचता िै खक यि यि यात्रा, यात्रा ििीं यातिा थी। इसके पीछे सबसे बडा कारण यि िै खक िर् कभी भी यात्रा र्ें जािे से पिले शकुि और खदशा शूल का खवचार ििीं करते, फलस्वरूप कभी सफल िो जाते िै तो कभी िर्ें असफलता का र्िंु देििा पडता िै। ऐसी िी एक र्ान्यता ज्योखति के अिस ु ार बधु वार के बारे र्ें भी िै। किते िैं बधु वार को िा तो यात्रा करिी चाखिए और िा िी बेखटयों को अपिे ससरु ाल जािा चाखिए। दरअसल इसके पीछे कारण यि िै खक िर्ारे शास्त्रों व ज्योखति के अिस ु ार बधु वार के खदि बेखटयों को खवदा करिे पर या यात्रा करिे पर खकसी भी तरि का अशभु पररणार् या अखिष्ट िोिे की संभाविा उस दशा र्ें बढ़ जाती िै जबखक उसकी गिृ दशा भी िराब िो। दरअसल इसका ज्योखतिीय कारण यि िै खक ज्योखति के अिस ु ार बधु व चंद्र शत्रु िै। एक कथा के अिस ु ार बधु चंद्र को शत्रु र्ािता िै पर चंद्र बधु को ििीं।
ज्योखति के अिस ु ार चंद्र को यात्रा का कारक र्ािा जाता िै और बधु को आय या खबजिेस का कारक र्ािा जाता िै। इसीखलए बधु वार के खदि खकसी भी तरि की व्यवसाखयक यात्रा पर िाखि व अन्य खकसी तरि की यात्रा करिे पर िक ु साि िोता िै। यखद बधु िराब िो तो ऐक्सीिेंट या खकसी तरि की अखिष्ट घटिा िोिे की संभाविा बढ़ जाती िै। इसीखलए ऐसी र्ान्यता िै खक बधु वार के खदि बेखटयों को ससरु ाल ििीं भेजा जाता िै।
शादी से पहले सेक्स पि पहिा क्यों?' सेक्स' एक ऐसा शब्द जो सबसे ज्यादा गोपिीय िोिे के बावजूद आज सवाम खधक तेजी से उजागर िोता जा रिा िै। सेक्स, यौि संबंध, शारीररक संबंध, कार्, रखत खिया...जैसे कई िार्ों से इसे जािा जाता िै। यवु ाओं और बडों को तो स्वयं कुदरत िी इस खतखलस्र् से रूबरू करवा देती िै। खकन्तु एक तीसरा वगम भी िै खजसर्ें अवयस्क बच्चे आते िैं। बच्चों और खववाि पूवम यवु ाओं को सेक्स से दरू ी बिाए रििे की प्रेरणा कई स्तरों पर खर्लती िै। र्ाता-खपता, पररवार, सर्ाज, धर्म और परम्पराएं सभी खर्लकर इस र्ित्वपूणम कायम की खजम्र्ेदारी सम्िालते िैं। सर्य के साथ िी र्ान्यताओं और परम्पराओं र्ें बदलाव भी आते जा रिे िैं। बदलाव यखद सिी खदशा र्ें िो तब तो ठीक िै, खकन्तु िालात तो कुछ और िी बयाि कर रिे िैं। सेंसर से र्क्त ु इंटरिेट, खलव इि ररलेशिखशप, को-एजक ु े शि, व्यस्त र्ाता-खपता, खफल्र्ों व टीवी कायम िर्ों का सीर्ा रखित िल ु ापि...इि सभी िे खर्लकर ऐसा र्ािोल बिा खदया िै खक िई जिरेशि पति के गिरे दलदल की तरफ बढ़ती जा रिी िै। इतिा िी ििीं कुछ तथाकखथत खवद्वाि तो बच्चों को सेक्स ऐजक ु े शि देिे की भरपूर वकालत कर रिे िैं। ये खवद्वाि यि ििीं सोचते खक सरु क्षा के िार् पर खजि िखथयारों से बच्चों को पररखचत करवाया जाता िै, बच्चे अपिी स्वाभाखवक कौतक ु ता और खजज्ञासा की आदत के कारण उि िखथयारों को चलाकर देििे का भी प्रयास करिे लगते िैं। क्या कारण िै खक दखु िया के तर्ार् धर्ों र्ें खववाि पूवम खकसी भी प्रकार के शारीररक संबंध या सेक्स को पूरी तरि वखजम त और गैर धाखर्म क बताया गया िै। धर्म और अध्यात्र् र्ात्र श्रिा या भखक्त पर िी खिभम र ििीं िैं ये पूरी तरि से वैज्ञाखिक खसिांतों पर चलते िैं।
आइये जािे उि अज्ञात वैज्ञाखिक कारणों को खजिके कारण खववाि पूवम सेक्स या यौि संबंध को पूरी तरि वखजम त र्ािा गया िै:- 25 वषा की उम्र तक शिीि औि र्कस्तष्क का पूणा कवकास होने के कलये ब्रह्मचया का पालन होना कनंतात आवश्यक है। - सर्ाज कजस आधाि पि खडा है, वह है पकत-पत्नी का संबधं । कववाह पूवा बना यौन संबधं इस आधाि को कर्जोि कि सर्ाज के पतन का कािण बनता है। - एड्स जैसे लाइलाज िोगों का प्रर्ख ु कािण भी अनैकतक औि अधाकर्ाक यौन संबधं ही होते हैं। - कववाह से पूवा इंसान को अपनी योग्यताओं औि क्षर्ताओं को कवककसत किना होता है। इस काया के कलये कजस एकाग्रता औि दृढ़ता की आवश्यकता होती है वही यौन संबधं ो के कािण नष्ट हो जाती है। - योग्य, बुकिर्ान औि प्रकतभाशाली संतान की प्राकि के कलये कववाह पूव का चरित्र औि पकवत्रता बडी अहर् भूकर्का कनभाते हैं।
कटकफन पैक किने से पहले खाने को जूठा किना चाकहए क्योंकक... भोजि िर्ारे जीवि की अखिवायम आवश्यकताओं र्ें से एक िै। इसीखलए भोजि बिाते सर्य व भोजि ग्रिण करते सर्य भी िर् अिेक र्ान्यताओं और परंपराओं का पालि करते िै। िर्ारे यिां ऐसी कई परंपराएं िै खजन्िें अखधकांश लोग अंधखवश्चास र्ािकर टाल देते िैं। ऐसी िी एक परंपरा िै खकसी के खलए भी यखद खटखफि या खकसी भी तरि का िािा पिुंचाया जाता िै। उस भोजि का भोग पिले भगवाि को लगािे के बाद उसे चिा जाता िै या झूठा करके भेजा जाता िै।
दरअसल ऐसी र्ान्यता िै खक ऐसा िा करिे पर खपतदृ ोि लगता िै। साथ िी भोजि को करिे वाले को उस भोजि से पूरी ऊजाम ििीं खर्लती िै। इसका कारण यि िै खक जब भोजि को खबिा झूठा खकए ले जाया जाता िै तो ब्रह्माण्ि र्ें उपखस्थत िकारात्र्क शखक्तयां उसे प्रभाखवत करती िैं। इस र्ान्यता के पीछे विी कारण िै जो आचर्ि करिे के पीछे िै। ज्योखतिीय र्ान्यता िै खक यखद भोजि को घर से बािर भेजिे से पिले झूठा ििीं खकया जाता तो कई तरि की िकारात्र्क शखक्तयां उसे प्रभाखवत करती िैं। उस भोजि के बाद र्ि र्ें सकारात्र्क खवचार कर् आते िैं और िकारात्र्कता बढऩे लगती िै। साथ िी इसका एक फायदा यि भी िोता िै खक भेजिे वाला उस िािे को खकसी अखतखथ या र्ित्वपूणम व्यखक्त को भेजिे से पिले चि लेता िै। इससे भोजि र्ें खकसी भी तरि की कर्ी िोिे पर उसके स्वाद र्ें सधु ार लाया जा सकता िै ताखक भोजि करिे वाला पूरी रूखच से भोजि करे। इसी कारण यि र्ान्यता िै खक घर से बािर ले जािे से पिले िािे का भोग भगवाि को लगाकर उसे झूठा जरूर करिा चाखिए।
डायकनगं टेबल पि खाना क्यों नहीं खाना चाकहए? भारत र्ें प्राचीि सर्य से िी जर्ीि पर सि ु ासि र्ें बैठकर िािा िािे की परंपरा िै। िर्ारे यिां िडे िोकर िािा-िािे को या िायखिंग टेबल पर भोजि करिे को अच्छा ििीं र्ािा जाता िै। िर्ारे यिां तो भोजि को बाजोट पर रििे की परंपरा थी। इसका का कारण यि िै खक भोजि को िर्ारी संस्कृखत र्ें खसफम खदिचयाम का खसफम एक कार् र्ात्र िी ििीं र्ािा गया िै। िर्ारे शास्त्रों के अिस ु ार भोजि एक तरि का िवि िै। िर्ारा िर ग्रास इस िवि र्ें एक आिूखत की तरि िै। खजस तरि पूरी आस्था और सम्र्ाि से िवि र्ें देवताओं का आवाह्न कर उिसे खिवेदि करिे से सर्स्याएं ित्र् िो जाती िै। उसी तरि भोजि को पूरे सम्र्ाि व आस्था के साथ ग्रिण करें तो शरीर की सारी व्याखधयां व रोग ित्र् िो जाते िैं। शरीर स्फूखतम वाि रिता िै। अन्ि को देवता
र्ािा जाता िै इसीखलए उसे सम्र्ाि देकर अपिे आसि से थोडा ऊपर बाजोट पर रिकर ग्रिण खकया जाता िै। साथ िी इसका वैज्ञाखिक कारण यि िै खक सि ु ासि र्ें बैठकर िािा िािे से िािा शीघ्र िी पच जाता िै। इससे चेिरे का तेज भी बढ़ता िै। जबखक िायखिंग टेबल पर िािे से भोजि ठीक से ििीं पचता िै खजसके कारण अिेक बीर्ाररयों का सार्िा करिा पडता िै। इसीखलए िायखिंग टेबल पर भोजि करिा उखचत ििीं र्ािा गया िै।
नहाते सर्य गाना नहीं गाना चाकहए क्योंकक... ििािे से शरीर र्ें एक िई ताजगी व स्फूखतम आ जाती िै। ििािे से शरीर की सफाई तो िोती िी िै साथ िी आलस, बरु े खवचार दरू िोते िैं। अखधकतर लोगों की आदत िोती िै खक वे ििाते सर्य या तो गािे गाते िैं या र्ंत्र बोलते िैं या भगवाि का िार् लेते िैं। शास्त्रों के अिस ु ार िर्ें आंतररक और बािरी शि ु ता का पूणम ध्याि रििा चाखिए। बािरी शि ु ता तो ििािे से िी िोती िै। कुछ लोग ििाते सर्य र्ंत्र जप करते िैं क्योंखक वे सोचते िैं खक ऐसा करिे से पापों से र्खु क्त खर्लती िै। विी कई लोग ििाते सर्य खफल्र्ी गीत गिु गिु ाते िैं। खजस पर अक्सर बढ़े - बूजगु म लोग टोकते िैं और किते िैं खक ििाते सर्य खसंखगंग ििीं करिा चाखिए इससे दोि लगता िै। दरअसल ये खसफम अंधखवश्वास ििीं िै। िर्ारे शास्त्रों के अिस ु ार भी ऐसी िी र्ान्यता िै। शास्त्रों के अिस ु ार ििाते सर्य ििीं बोलिा चाखिए और ि िी गािा चाखिए। र्ान्यता िै खक ििाते सर्य बोलिे से वरूण देव खजन्िें जल का देवता र्ािा गया िै वे शरीर का तेज छीि लेते िैं। इसका वैज्ञाखिक कारण यि िै खक स्िाि से पिले शरीर पर कई कीटाणु व धूल के कण लगे िोते िैं। ििाते सर्य र्ंत्र बोलिे से र्ंिु के र्ाध्यर् से शरीर र्ें प्रवेश कर सकते िैं। खवज्ञाि के अिस ु ार इससे इम्यखु िटी पावर कर् िोता िै। इसीखलए ििाते सर्य र्ंत्र ििीं बोलिा चाखिए।
खाने के तुितं बाद ना लेटे औि ना सोए ं नहीं तो... सर्य के साथ-साथ िर्ारी खदिचयाम र्ें कई बडे-बडे पररवतम ि आ गए िैं। िर्ारी सभी कार् और उन्िें करिे का तरीका बदल गया िै। आधखु िकता की दौड र्ें िर्ारा िािा िािे का तरीका भी पूरी तरि प्रभाखवत िुआ िै। परु ािे सर्य र्ें जर्ीि पर बैठकर िािा िािे की परंपरा थी। लेखकि बढ़ते पाश्चात्य संस्कृखत के प्रभाव र्ें िायखिंग टेबल पर बैठकर भोजि करिे का कल्चर िर्ारे देश र्ें आया। वतम र्ाि र्ें लोग िायखिंग टेबल पर बैठकर तो भोजि करते िी िैं साथ िी अखधकतर लोग िािा-िािे के तरु तं बाद सो जाते िैं या लेट जाते िैं।खजसे िर्ारे शास्त्रों र्ें भी ठीक ििीं र्ािा गया िै। खिन्दू धर्म ग्रंथों के अिस ु ार यि र्ान्यता िै खक िािे के तरु तं बाद सोिे से या आलस्य लेिे से घर र्ें दररद्रता आती िै। साथ िी यखद वैज्ञाखिक दृखष्टकोण से देिें तो र्ि र्ें िकारात्र्क खवचारों का प्रभाव बढ़ता िै। इस तरि िािा िाि के तरु तं बाद सोिे से या लेटिे से र्ोटापा, अपच, कब्ज, एसीिीटी आखद पेट संबधं ी बीर्ाररयां िोिे की संभाविा बढ़ जाती िै।आलस्य बढ़ता िै व शरीर को ऊजाम और स्फूखतम कर् िो जाती िै। इसखलए िािा िाकर कुछ देर वज्रासि र्ें बैठिा चाखिए और कर् से कर् सौ कदर् जरूर चलिा चाखिए।
घि से ककसी को भी खाली हाि न जाने दें, क्योंकक िर्ारी भारतीय संस्कृखत र्ें र्ान्यता िै अखतखथ देवो भव:। िर् अपिे अखतखथयों को देवतल्ु य र्ािते िैं और अपिी शखक्त के अिस ु ार उिके स्वागत सत्कार और कोई क र्ी ििीं छोडते। अखतखथयों के साथ ठीक से व्यविार करिा, उिकी आवश्यकताओं को सर्झ कर उिको पूरा करिे के खलये प्रयत्िशील रििा चाखिए। उिके र्ाि सम्र्ाि और उिकी सि ु सखु वधा का ध्याि रििा चाखिए। उिके खलये यथा सम्भव एक सि ु द और सौिाद्र्रपूणम वातावरण उपलब्ध करवािा चाखिए। इसी प्रकार के संस्कार बचपि से िर्ें िर्ारे र्ाता खपता देते िैं। िर्ारे यिां प्राचीिकाल से िी यि परंपरा िै खजसका उल्लेि िर्ें अपिे धर्म ग्रंथों र्ें भी खर्लता िै। इसका एक सबसे अच्छा
उदािरण भागवत र्ें श्रीकृष्ण और सदु ार्ा की कथा र्ें खर्लता िै। इस कथा के अिस ु ार जब गरीब सदु ार्ा कृष्ण के घर पिुंचे तो स्वयं कृष्ण िे उिके चरण धोए व आदर सत्कार खकया। उसके बाद जब वे विां से खवदा िुए तो उन्िें अिेक तरि के उपिार देकर श्रीकृष्ण िे खवदा खकया। इस तरि के अिेक उदािरण िर्ें िर्ारे धर्म ग्रंथों र्ें खर्लते िैं। इसीखलए र्ेिर्ाि को कभी घर खबिा खतलक खकए व खबिा उपिार खदए खवदा ििीं करिा चाखिए। दरअसल इसके पीछे ज्योखतिीय र्ान्यता िै यि िै खक घर से र्ेिर्ािों को कुछ उपिार देकर खवदा करिे से घर र्ें िर्ेशा सि ु -सर्खृ ि बिी रिती िै। खतलक लगाकर व उपिार देकर खवदा करिा भारतीय संस्कृखत के अिस ु ार सम्र्ाि सूचक तो िै िी साथ िी ऐसा करिे से घर आए अखतखथ के पास वि उपिार खजंदगी भर उस घर के लोगों के साथ खबताए पलों की यादों के रूप र्ें रिता िै। इससे ररश्तों र्ें सधु ार िोता िै। आपसी सार्ंजस्य और र्धरु ता बढ़ती िै। सर्ाज र्ें र्ाि-सम्र्ाि भी बढ़ता िै।
कबना आसन कबिाए नहीं किना चाकहए पूजा क्योंकक... पूजा करिे से र्ािखसक शांखत खर्लती िै। खियखर्त रूप से पूजि करिे के अिेक लाभ िैं। लेखकि पूजा का फल तभी खर्लता िै जब पूरे खवखध-खवधाि के साथ पूजा की जाए। िर्ारे धर्म शास्त्रों र्ें पूजि के सर्य के अिेक खियर् बताए गए िैं। उन्िी र्ें से एक खवधाि िै पूजा के सर्य आसि खबछािे का। आसि को पूजि के सर्य बिुत र्ित्वपणू म र्ािा गया िै। इसीखलए खकसी भी तरि की पूजा की जाती िै या िवि खकया जाता िै तो खजस भी देवता का आवाह्न खकया जाता िै। उन्िें र्ंत्रों द्वारा आसि ग्रिण करवाया जाता िै। ऐसी र्ान्यता िै खक खबिा आसि के पूजा या जप करते िैं तो उस पूजा से खर्लिे वाली ऊजाम प्ृ वी र्ें चली जाती िै। आसि ऊजाम को प्ृ वी र्ें जािे से रोक लेता िै।
इसीखलए किा जाता िै खक िर पूजा करिे वाले व्यखक्त को अपिा आसि अलग रििा चाखिए। इससे पूजा के सकारात्र्क पररणार् जल्दी खर्लिे लगते िै। साथ िी रोज एक िी आसि पर बैठकर पूजा करिे से पज ू ा के सर्य ध्याि खस्थर रिता िै। इसके अलावा खजस आसि पर बैठकर पूजा की जाती िै। शास्त्रों के अिस ु ार उसे पैर से खिसकािा भी उखचत ििीं र्ािा गया िै।
क्या आप जानते हैं क्यों बनाई गई िी स्वयवं ि की पिपं िा? प्राचीिकाल र्ें स्वयंवर की प्रथा थी। उस सर्य खववाि आज की पिखत के ठीक खवपरीत था यािी लडखकयां अपिी इच्छा अिस ु ार वर का चिु ाव करती थी। ऋगवेद के अिस ु ार स्त्री को अखधकार िै खक वि खकसे अपिी भावी संताि का खपता बिाए? यि कोई छोटा-र्ोटा अखधकार ििीं िै। इस अखधकार को पाकर िी स्त्री पखत की आज्ञाकाररणी िो जाती िै, ििीं तो खवचारों के िा खर्लिे के कारण गिृ स्थी चलिा कई बार र्खु श्कल िो जाता िै। दरअसल वेदों र्ें किा गया िै खक पखत-पत्िी प्रेर् से िी खववाि के एकता सत्रू को बांधे रि सकते िैं। खजसके खलए गिृ स्थ आश्रर् बिाया गया िै। इसखलए उस सर्य ऐसी र्ान्यता थी खक प्रारंभ र्ें िी यखद चिु ाव ठीक ििीं िुआ तो जीवि शांखत से ििीं चल सकता। इसीखलए खववाि र्ें चिु ाव एक जरूरी चीज िै। जो वेदों के अिस ु ार पखत को ििीं पत्िी को करिा चाखिए। इसका कारण यि िै खक गिृ स्थाश्रर् का वास्तखवक बोझ पत्िी पर िी िोता िै। उसे सन्तािोत्पखत के सर्य भी कई तरि के कष्ट झेलिे पडते िैं। इसीखलए जब उस पर इतिी खजम्र्ेदारी िै और उसके खलए उसे पूरे जीविभर इतिा त्याग करिा िै। इसी सोच के साथ स्वयंवर की प्रथा बिाई गई व लडखकयों को वर के चिु ाव का अखधकार खदया गया था।
क्या लहसून-प्याज खाना धर्ा के कवरूि है?अक्सर कई संप्रदायों र्ें देिा जाता िै खक कई लोग लिसूि-प्याज को भोजि र्ें इस्तेर्ाल ििीं करते। जैि सर्ाज, वैष्णव संप्रदाय इि दोिों तरि के सर्ाजों र्ें यि अखधकतर पाया जाता िै। लिसूि
और प्याज से परिेज खकया जाता िै। क्यों इसे िािे र्ें उपयोग करिे से बचा जाता िै? क्यों इन्िें सन्याखसयों के भोजि र्ें भी जगि ििीं खर्लती?वास्तव र्ें लिसिू और प्याज कोई शाखपत या धर्म के खवरुि ििीं िै। इिकी तासीर या गणु ों के कारण िी इिका त्याग खकया गया िै। लिसूि और प्याज दोिों िी गर्म तासीर के िोते िैं। ये शरीर र्ें गरर्ी पैदा करते िैं। इसखलए इन्िें तार्खसक भोजि की श्रेणी र्ें रिा गया िै। दोिों िी अपिा असर गरर्ी के रूप र्ें खदिाते िैं, शरीर को गरर्ी देते िैं खजससे व्यखक्त की कार् वासिा र्ें बढ़ोतरी िोते िै। ऐसे र्ें उसका र्ि अध्यात्र् से भटक जाता िै। अध्यात्र् र्ें र्ि को एकाग्र करिे के खलए, भखक्त के खलए वासिा से दरू िोिा जरूरी िोता िै। के वल लिसूि प्याज िी ििीं वैष्णव और जैि सर्ाज ऐसी सभी चीजों से परिेज करते िैं खजससे की शरीर या र्ि र्ें खकसी तरि की तार्खसक प्रवखृ ि को बढ़ावा खर्ले।
तो इसकलए िात 12 बजे कभी न दें जन्र्कदन की बधाई खजस खदि कोई व्यखक्त जन्र् लेता िै वि उसके खलए बिुत खवशेि खदि िोता िै। इसीखलए िर व्यखक्त को अपिे जन्र्खदि को लेकर र्ि र्ें एक खवशेि उत्साि रिता िै। इसीखलए इस खदि को लोग सेलीब्रेट करते िैं। जन्र्खदि के खदि खकसी भी व्यखक्त को बधाई देिे पर उसे लगता िै खक बधाई देिे वाले का उससे आत्र्ीय जडु ाव िै। इसीखलए आजकल दोस्त िो या ररश्तेदार खकसी भी करीबी का जन्र्खदि िोिे पर उसे सबसे पिले बधाई देिे के खलए वतम र्ाि र्ें रात को 12 बजे बधाई देिे का चलि िै। खवशेिकर यवु ाओं र्ें यि चलि बिुत अखधक बढ़ गया िै। लेखकि यखद िर्ारी संस्कृखत या धर्म शास्त्रों के िजररए से सर्झे तो यि सिी ििीं िै। दरअसल राखत्र के 12 बजे वातावरण र्ें रज-तर् कणों की र्ात्रा अखधक िोती िै, इस सर्य तार्खसक या िकारात्र्क शखक्तयां अखधक प्रभावी रिती िैं। इसीखलए उस सर्य दी गई शभु कार्िाएं फलदायी ििीं िोती िैं। खिंदू संस्कृखत के अिस ु ार खदि सूयोदय से आरंभ िोता िै और दूसरे खदि सूयोदय पर ित्र् िोता िै । र्ान्यता िै खक सबु ि का
सर्य ऋखि-र्खु ियों की साधिा का सर्य िै, इसखलए वातावरण र्ें साखववकता अखधक िोती िै और सूयोदय के पश्चात् दी गई शभु कार्िाएं फलदायी खसि िोती िैं। इसीखलए जन्र्खदि की बधाई सबु ि िी देिी चाखिए।
शकनवाि को कबाड बेचने से कर्लता है दरिद्रता से िूटकािा क्योंकक... शखिवार के खदि से जडु ी अिेक र्ान्यताएं िै। ऐसी िी एक र्ान्यता िै शखिवार के खदि कबाड बेचिे की। लेखकि ये बिुत िी कर् लोग जािते िैं खक शखिवार के खदि कबाड बेचिा शभु क्यों र्ािा जाता िै? दरअसल ज्योखति के अिस ु ार कबाड र्ें शखि का खिवास िोता िै। घर पर शखि की कृपा िो यि तो बिुत अच्छा र्ािा गया िै। लेखकि घर र्ें शखि का खिवास ििीं िोिा चाखिए। शखिवार के खदि घर का कबाड बेचिे से दररद्रता दरू िोती िै और रोग भी दरू िोते िैं। ज्योखति र्ें शखि को कबाड और परु ािी वस्तओ ु ं का कारक ग्रि र्ािा गया िै। खजि लोगों की कंु िली र्ें शखि अशभु फल देिे वाला िोता िै या खजस राखश के लोगों पर साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव िोता िै। उन्िें शखिवार के खदि कबाड बेचिा चाखिए। ऐसा करिे से उिके घर र्ें कभी चोरी की घटिा ििीं िोती िै। साथ िी इस खदि कबाड बेचिे से घर र्ें क्लेश ििीं िोता और एक्सीिेंट्स भी ििीं िोते िैं। इसीखलए शखिवार को घर का कबाड बेचिा शभु र्ािा गया िै।
र्तृ व्यकक्त के र्हुं र्े जरूि डालना चाकहए तुलसी के पत्ते क्योंकक.... खिंदू धर्म र्ें र्त्ृ यु के बाद र्तृ क का दाि संस्कार खकया जाता िै अथाम त र्तृ देि अखग्ि को सर्खपम त खकया जाता िै। दाि संस्कार के सर्य कपाल खिया भी की जाती िै। लेखकि दाि संस्कार के पवू म भी िर्ारे यिां र्त्ृ यु से जडु े अिेक ररवाज िै। खजन्िें अखिवायम र्ािा गया िै। ऐसा
िी एक ररवाज िै। र्तृ व्यखक्त के र्िंु र्ें तल ु सी के पिे िालिे का? र्तृ क का खसर दखक्षण र्ें रिा जाता िै तथा पैर उिर खदशा र्ें रिे जाते िैं। इस प्रकार खलटाएं जािे के बाद र्तृ क के र्ि ु र्ें गंगाजल और तल ु सीदल िाला जाता िै। तल ु सीदल के गच्ु छे से र्तृ व्यखक्त के कािों और िाखसकाओं को बंद कर खदया जाता िै। गरूडपरु ाण के अिस ु ार ऐसा करिे से र्तृ आत्र्ा को शीघ्र िी र्ोक्ष खर्लता िै। र्त्ृ यु के बाद कुछ सर्य के खलए जीव की सूक्ष्र् देि पररजिो के आस-पास िी घर्ू ती रिती िै। र्ान्यता िै खक जीवात्र्ा बारि खदि के खलए अंगष्ठु के आकार की िोती िै और बारि खदि के खपंिदाि करिे से जीवात्र्ा को र्ोक्ष खर्लता िै। किते िैं उससे प्रक्षेखपत रज-तर् तरंगें इस खवखध को करिे से पररजिों तक ििीं पिुंचती। इससे जीवात्र्ा की तरफ सकारात्र्क तरंगें आकखिम त िोती िै वउन्िें शीघ्र िी र्खु क्त खर्लती िै।
जल्दी शादी के कलए क्यों औि क्या किें? किते िैं खजि लोगों की कंु िली र्ें दोि िोता िै उिकी शादी र्ें खवघ्र आते िैं या तो उिकी शादी या तो बिुत जल्दी िोती िै या बिुत देर से िोती िै। लोगों के खववाि र्ें देरी का एक कारण र्ंगली लडकी या लडके का िा खर्लिा भी िोता िै। सर्य पर योग्य वर या वधु ििीं खर्ल पाते िैं। जो खर्लते िैं विां कोई दूसरी सर्स्या सार्िे आ जाती िै। ऐसे र्ें शीघ्र खववाि के खलए गरुु के उपाय करिे को किा जाता िै। ज्योखति के अिस ु ार गिृ स्थ जीवि को गरुु प्रभाखवत करता िै। पाररवाररक शांखत और सि ु र्य गिृ स्थ जीवि के खलए बिृ स्पखत यािी गरुु से संबंखधत उपाय खकए जाते िै तो खिखश्चत िी घर र्ें सि ु शांखत बिी रिती िै। दरअसल गरुु को खववाि का कारक गिृ र्ािा जाता िै। जब खकसी की कंु िली र्ें गरुु अशभु िोता िै तो उसकी कंु िली र्ें खववाि खवलंब योग बिता िै।गरुु को जन्र्कंु िली के सिर् भाव का कारक र्ािा जाता िै। कंु िली का यि भाव पखत या पत्िी का र्ािा गया िै। इसखलए र्ंगल िोिे पर भी र्ंगल के उपाय के साथ िी ज्योखतिों द्वारा गरुु वार का व्रत रििे की ओर गरुु से जडु े उपाय करिे की सलाि
दी जाती िै ताखक जन्र्कंु िली के दोि का खिवारण िो और खववाि योग्य लडके या लडकी का शीघ्र खववाि िो जाए।
खाने के पहले िोटी का एक टूकडा अलग क्यों कनकालना चाकहए? िर्ारे यिां भोजि से पिले भोजि र्ंत्र बोलिे के बाद आचर्ि खकया जाता िै। उसके बाद िर्ारे शास्त्रों के अिस ु ार अपिे भोजि से ग्रास के रूप र्ें अलग खकया जाता िै। इस खिवाले को गाय को िी खिलाया जाता िै। पिले खिवाले को गौ-ग्रास किा जाता िै। दरअसल र्ािा जाता िै की पिला खिवाला अलग खिकालकर गाय को देिे से खपतदृ ोि कर् िोता िै साथ िी इसे गौसेवा को धर्म के साथ िी जोडा गया िै। गौसेवा भी धर्म का िी अंग िै। गाय को िर्ारी र्ाता बताया गया िै। ऐसा र्ािा जाता िै खक गाय र्ें िर्ारे सभी देवी-देवता खिवास करते िैं। इसी वजि से र्ात्र गाय की सेवा से िी भगवाि प्रसन्ि िो जाते िैं। भगवाि श्रीकृष्ण के साथ िी गौर्ाता की भी पूजा की जाती िै। भागवत र्ें श्रीकृष्ण िे भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौर्ाता की पूजा प्रारंभ करवाई िै। इसी बात से स्पष्ट िोता िै खक गाय की सेवा खकतिा पण्ु य का अखजम त करवाती िै। साथ िी पिली ज्योखतिीय र्ान्यता िै खक ऐसा करिे से घर र्ें िर्ेशा सि ु -सर्खृ ि बिी रिती िै।
क्या आप जानते हैं दकु नया की सबसे र्हान खोज कै से हुई? वेदों को धाखर्म क पस्ु तक र्ात्र सर्झ कर दखु िया िे बडी भूल की िै। दखु िया की प्राचीितर् पस्ु तकों यािी वेदों र्ें ऐसे अिेक आश्र्चजिक आखवष्काकों और िोजों का वणम ि खदया िै खजिसे आज भी दखु िया अिजाि िी बिी िुई िै वेद प्राचीिकाल से आज तक के आखवष्कारों
व िोजों की सूची िैं। यखद िर् ठीक से इन्िे पढें तो पता चलेगा खक खवश्व की पिली िोज या आखवष्कार कब और किां िुआ था। वेदों र्ें वैज्ञाखिक त्यों की भरर्ार िै। असल र्ें वेदों र्ें िर्ारे आस पास की प्रकृखत र्ें िी छुपे िुए अिेक गिु वैज्ञाखिक त्यों का िी अध्ययि खकया गया िै। वेदों के र्न्त्र बिे िी सांकेखतक िै खजिर्ें ऐसी ऐसी बातों का वणम ि िै खजसे आज का खवज्ञाि अब भी पूरी तरि से ढूंढ ििीं पाया िै। इन्िी सूक्ष्र् वैज्ञाखिक त्यों का िल ु ासा करिे करिे के खलये िर् यिां वेदों के कुछ सूक्तों का उदािरण प्रस्ततु कर रिे िैंसंकेत- अकग्नर्ीले पुिोकहतं......... ित्नधातर्र्् ।। (ऋग्वेद-1/1/1) अथम : िर् अखग्िदेव की स्तखु त करते िैं जो यज्ञ के परु ोखित, देवता, ऋखत्वज, िोता और याजकों को रत्िों से खवभूखित करिे वाले िैं। खवशेि अखग्ि खवश्व की सवम प्रथर् िोज िै, ये खवश्व की सबसे र्िाितर् िोज किी जा सकती िै। इस र्न्त्र र्ें अखग्ि की र्ििा का वणम ि िै। ऋग्वेद का प्रथर् र्न्त्र खकसी खवखशष्ट देव को िी सर्खपम त खकया जािा चाखिये। खवखशष्ट र्ें भी देवराज इन्द्र प्रधाि िैं खकन्तु खफ र भी प्रथर् र्न्त्र उिको सर्खपम त ििीं खकया गया। देवगरू ु विृ स्पखत तो इन्द्र के भी र्ागम दशम िकताम िैं पर प्रथर् र्न्त्र उिको भी सर्खपम त ि िोकर अखग्ि को सर्खपम त खकया गया इससे यि पता चलता िै खक वैखदक काल र्ें िी अखग्ि की र्ििा का पता चल गया था। अखग्ि याजकाखद को सर्खृ ि प्रदाि करिे वाले िैं इससे भी अखग्ि की र्ििा की ओर संकेत खकया गया िै । वेदों र्ें आगे के र्न्त्रों र्ें अखग्ि की उत्पखि का भी वणम ि खदया गया िै और अखग्ि का खवशेि र्ित्व भी बताया गया िै।
पूजा के बाद र्िु झाए फूलों औि पूजा साम्रगी का क्या किें?
िर्ारे यिां कोई उत्सव िोया अन्य कोई शभु कार् पूजि का आयोजि खकया जाता िै। अक्सर पूजा के बाद सार्ग्री बच जाती िै। जैसे ताजे फूलों को पूजा र्ें िर्ेशा रिा जाता िै। इसका कारण यि िै खक फूल की िश्ु बू और सन्ु दरता पूजि करिे वाले के र्ि को सन्ु दरता और शांखत का एिसास खदलावाती िै। ऐसा र्ािा जाता िै खक जब पूजा र्ें इिका उपयोग खकया जाता िै, तो फूल अद्भतु ऊजाम का सज ृ ि पूरे घर र्ें करते िै और इससे घर र्ें िखु शयों का आगर्ि िोता िै। जबखक इसके खवपररत र्रु झाये फूल र्त्ृ यु के सचु क र्ािे जाते िैं। फल व पूजा सपु ारी, चावल, धाि व अन्य पज ू ि सार्ग्री को भी ज्यादा सर्य तक पूजा के बाद घर र्ें रििा शभु ििीं र्ािा जाता। पूजा की बची िुई सार्ग्री जो उपयोगी िो उसे ब्राह्मण को दाि कर देिा चाखिए और जो उपयोगी िा िो उसे तरु तं िदी र्ें प्रवाखित कर देिा चाखिए। इसके अलावा खपतृ या भगवाि को उपले पर लगाए गए भोग की राि को भी घर र्ें रििा शभु ििीं र्ािा जाता िै। तीिों बातों के पीछे का कारण वास्तु से िी जडु ा िै। वास्तु के अिस ु ार इि तीिों िी चीजों का घर र्ें रििे पर घर की सकारात्र्क ऊजाम का स्तर कर् िोिे लगता िै व िकारात्र्क ऊजाम बढऩे लगती िै।
जब जाए ं ककसी जरूिी कार् पि तो इन बातों का िखें ध्यान... जब भी िर् घर से खकसी िास कायम को लक्ष्य बिाकर खिकलते िैं उस वक्त सीधा पैर पिले बािर रििे से खिखश्चत िी आपको कायों र्ें सफलता प्राि िोती िै। यि परंपरा काफी परु ािी िै खजसे िर्ारे घर के बज ु गु म सर्य-सर्य पर बताते रिते िैं। इस प्रथा के पीछे र्िोवैज्ञाखिक और धाखर्म क कारण दोिों िी िैं। धर्म शास्त्रों के अिस ु ार सीधा पैर पिले बािर रििा शभु र्ािा जाता िै। सभी धर्ों र्ें दाएं अंग को िास र्ित्व खदया गया िै। सीधे िाथ से खकए जािे वाले शभु कायम िी देवी-देवताओं द्वारा र्ान्य खकए जाते िैं। देवी-देवताओं की कृपा के खबिा कोई भी व्यखक्त खकसी भी कायम र्ें सफलता प्राि ििीं कर सकता। इसी कारण सभी पूजि कायम सीधे िाथ से िी खकए जाते िैं। जब भी घर से बािर जाते िैं तो सीधा पैर िी पिले बािर रिते िैं ताखक कायम की ओर पिला कदर् शभु रिेगा तो सफलता अवश्य प्राि िोगी। इस परंपरा के पीछे एक त्य
और िै खक इसका िर् पर र्िोवैज्ञाखिक प्रभाव पडता िै। सीधा पैर पिले बािर रििे से िर्ें सकारात्र्क ऊजाम प्राि िोती िै और र्ि प्रसन्ि रिता िै। इस बात का िर् पर खदिभर प्रभाव रिता िै। बाएं पैर को पिले बािर खिकालिे पर िर्ारे खवचार िकारात्र्क बिते िैं।
जाकनए, तत्रं के कुि अनिुए पहलुओ ं के बािे र्ें तंत्र शास्त्र के बारे र्ें िर् अपिे जीवि र्ें कभी ि कभी सिु ते अवश्य िै। आखिर तंत्र शास्त्र िै क्या और यि खकस खसिांत पर कायम करता िै? इसके बारे र्ें कर् िी लोग जािते िैं। ग्रंथों र्ें तंत्र शास्त्र की खवस्ततृ व्याख्या दी गई िै खजसे कुछ शब्दों र्ें बता पािा कखठि िै। तंत्र शास्त्र से जडु े कुछ रोचक पिलओ ु ं के बारे र्ें िीचे बताया गया िै जो इस प्रकार िैतंत्रशास्त्र के खसिांतािस ु ार कखलयगु र्ें वैखदक र्ंत्रों, जपों और यज्ञों आखद का उतिा अखधक फल खर्लिा कखठि िै खजतिा तंत्र प्रयोगों से संभव िै। कलयगु र्ें सब प्रकार के कायों की खसखि के खलए तंत्र शास्त्र र्ें वखणम क र्ंत्रों और उपायों आखद से िी सफलता खर्लती िै। तंत्र शास्त्र र्ख्ु य रूप से शाक्तों (देवी-उपासकों) का िै और इसके र्ंत्र प्राय: एकाक्षरी िोते िैं जैसे- ह्नीं, क्लीं, श्रीं, ऐ ं, िूं आखद। तंत्रशास्त्र की उत्पखि कब से िुई इसका खिणम य ििीं िो सकता लेखकि र्ान्यता के अिस ु ार वैखदक खियाओं और तंत्र-र्ंत्राखद खवखधयों को भगवाि शंकर िे स्वयं कीखलत खकया िै और भगवती उर्ा के आग्रि से िी कखलयगु के खलए तंत्रों की रचिा की िै। अथवम वेदीय िखृ संितापिीयोपखििद र्ें सबसे पिले तंत्र का लक्षण देििे र्ें आता िै। इस उपखििद र्ें र्ंत्रराज िरखसंि- अिष्टु ु प प्रसंग र्ें तांखत्रक र्िार्ंत्र का स्पष्ट आभास सूखचत िुआ िै। तंत्र शास्त्र के अिस ु ार दीक्षा ग्रिण करिे के बाद िी तांखत्रक प्रयोग करिा चाखिए। खबिा दीक्षा के तांखत्रक कायम करिे का अखधकार ििीं िै। तांखत्रक गण पाचाँ प्रकार के आचारों र्ें खवभक्त िैं। ये श्रेष्ठता के आधार पर इस प्रकार िैं- वेदाचार, वैष्णवाचार, शैवाचार, दखक्षणाचार, वार्ाचार, खसिांताचार एवं कौलाचार।
तो इसकलए पूजा र्ें कपूि का उपयोग जरूि किना चाकहए भगवाि की पूजा एक ऐसा उपाय िै खजससे जीवि की बडी-बडी सर्स्याएं िल िो जाती िैं। इसी वजि से पूजिकर्म के संबंध र्ें कई सावधाखियां और खवखधयां बताई गई िैं।किा जाता िै खक पूरी खवखध-खवधाि से पूजि करिे पर िी खकसी भी व्रत या पूजि का पूरा पररणार् खर्लता िै। इसीखलए जब भी िर्ारे घर र्ें खकसी तरि के पूजि का आयोजि खकया जाता िै तो खकसी शास्त्रों को जाििे वाले पंखित को बल ु ाया जाता िै। लेखकि पूजा के कुछ खवधाि ऐसे भी िैं खजन्िे रोज पूजा के सर्य करिे पर पूजा के पूणम फल की प्राखि िोतीिै। खिंदू धर्म र्ें खकए जािे वाले खवखभन्ि धाखर्म क कर्म कांिों तथा पूजि र्ें उपयोग की जािे वाली सार्ग्री के पीछे खसफम धाखर्म क कारण िी ििीं िै इि सभी के पीछे किीं ि किीं िर्ारे ऋखिर्खु ियों की वैज्ञाखिक सोच भी खिखित िै।प्राचीि सर्य से िी िर्ारे देश र्ें खवखभन्ि धाखर्म क कायम िर्ों र्ें कपम ूर का उपयोग खकया जाता िै। कपम ूर का सबसे अखधक उपयोग आरती र्ें खकया जाता िै। प्राचीि काल से िी िर्ारे देश र्ें देशी घी के दीपक व कपम ूर के देवी-देवताओं की आरती करिे की परंपरा चली आ रिी िै। धाखर्म क र्ान्यताओं के अिस ु ार भगवाि आरती करिे के प्रसन्ि िोते िैं व साधक की र्िोकार्िा पूणम करते िैं। ऐसी भी र्ान्यता िै खक कपम ूर जलािे से देवदोि व खपतदृ ोि का शर्ि िोता िै। कपम ूर अखत सगु खं धत पदाथम िोता िै। इसके दिि से वातावरण सगु खं धत िो जाता िै। वैज्ञाखिक शोधों से यि भी ज्ञात िुआ िै खक इसकी सगु ंध से जीवाण,ु खविाणु आखद बीर्ारी फै लािे वाले जीव िष्ट िो जाते िैं खजससे वातावरण शि ु िो जाता िै तथा बीर्ारी िोिे का भय भी ििीं रिता।यिी कारण िै खक पूजि, आरती आखद धाखर्म क कर्म कांिों र्ें कपम ूर का खवशेि र्ित्व बताया गया िै।
खाने की िाली र्ें हाि क्यों नहीं धोना चाकहए? भोजि या िािा िर्ारे जीवि की अखिवायम आवश्यकताओं र्ें से एक िै। िर्ारी खिन्दू संस्कृखत र्ें अन्ि को देवता र्ािा जाता िै। इसीखलए भोजि का सम्र्ाि खकया जाता िै। प्राचीि सर्य र्ें इसीखलए भोजि को बाजोट यािी लकडी के पखटए पर रिकर ग्रिण खकया जाता था। इसका कारण भी भोजि के प्रखत सम्र्ाि की भाविा रििा िी था। इसीखलए जब कभी खकसी िािे के बतम ि पर अगर गलती से पैर लग जाता िै तो किा जाता िै खक भोजि से क्षर्ा याचिा करिा चाखिए। इसके अलावा िर्ारे यिां िािे की थाली र्ें िाथ धोिा भी उखचत ििीं र्ािा जाता िै। जैिधर्म र्ें तो भोजि के िर एक दािे को इतिा सम्र्ाि खदया जाता िै खक इस धर्म के कई लोग थाली को धोकर भी पीिे का खियर् ले लेते िैं। खिन्दू धर्म के भी कई लोग इसका पालि करते िैं। शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक भोजि की थाली र्ें िाथ धोिे से र्ां लक्ष्र्ी रूष्ट िो जाती िैं और दररद्रता आती िै। चूखं क िर्ारी संस्कृखत र्ें अन्ि को देवता र्ािा जाता िै। इसखलए किा जाता िै खक भोजि की थाली र्ें िाथ धोिे से अन्ि देवता का अपर्ाि िोता िै। दरअसल इस र्ान्यता के पीछे का र्ख्ु य कारण यिी िै खक सभी भोजि के िर एक दािे का सम्र्ाि करें और उसकी अिखर्यत को सर्झे। भोजि का एक दािा भी व्यथम ििीं जाए। इसी कारण यि र्ान्यता बिाई गई।
आप जानते हैं, नववधु के कलए कौन से श्रगं ाि जरूिी र्ाने गए हैं? खिन्दू धर्म र्ें िववधु के खलए कुछ श्रंगार अखिवायम र्ािा र्ािे गए िैं।िै। िर्ारे धर्म शास्त्रों र्ें भी इि सभी श्रंगारों को सिु ागि के सिु ाग का प्रतीक र्ािा गया िै। इसीखलए सभी िववधु के खलए ये सोलि श्रंगार बिुत जरूरी और एक तरि का शभु शकुि र्ािे गए िैं।
खबन्दी - सिु ाखगि खस्त्रयां कुर्कुर् या खसन्दरु से अपिे ललाट पर लाल खबन्दी जरूर लगाती िै और इसे पररवार की सर्खृ ि का प्रतीक र्ािा जाता िै। खसन्दरु - खसन्दरु को खस्त्रयों का सिु ाग खचन्ि र्ािा जाता िै। खववाि के अवसर पर पखत अपिी पखत्ि की र्ांग र्ें खसंन्दरु भर कर जीवि भर उसका साथ खिभािे का वचि देता िै। काजल - काजल आि ाँ ों का श्रंगृ ार िै। इससे आि ाँ ों की सन्ु दरता तो बढ़ती िी िै, काजल दल्ु िि को लोगों की बरु ी िजर से भी बचाता िै। र्ेंिन्दी - र्ेिन्दी के खबिा दल्ु िि का श्रगंृ ार अधरू ा र्ािा जाता िै। पररवार की सिु ाखगि खस्त्रयां अपिे िाथों और पैरों र्ें र्ेिन्दी रचाती िै। िववधू के िाथों र्ें र्ेिन्दी खजतिी गाढी रचती िै, ऐसा र्ािा जाता िै खक उसका पखत उतिा िी ज्यादा प्यार करता िै। शादी का जोिा - शादी के सर्य दल्ु िि को जरी के कार् से सस ु खज्जत शादी का लाल जोडा पििाया जाता िै। गजरा-दल्ु िि के जूडे र्ें जब तक सगु खं धत फूलों का गजरा ि लगा िो तब तक उसका श्रंगृ ार कुछ फीका सा लगता िै। र्ांग टीका - र्ांग के बीचोंबीच पििा जािे वाला यि स्वणम आभूिण खसन्दरु के साथ खर्लकर वधू की सन्ु दरता र्ें चार चादाँ लगा देता िै। राजस्थाि र्ें "बोरला" िार्क आभूिण र्ांग टीका का िी एक रुप िै। ऐसी र्ान्यता िै खक इसे खसर के ठीक बीचोंबीच इसखलए पििा जाता िै खक वधू शादी के बाद िर्ेशा अपिे जीवि र्ें सिी और सीधे रास्ते पर चले और वि खबिा खकसी पक्षपात के सिी खिणम य लें। िथ - खववाि के अवसर पर पखवत्र अखग्ि के चारों ओर सात फे रे लेिे के बाद र्ें देवी पावम ती के सम्र्ाि र्ें िववधू को िथ पििाई जाती िै। कणम फूल - काि र्ें जािे वाला यि आभूिण कई तरि की सन्ु दर आकृखतयों र्ें िोता िै, खजसे चेि के सिारे जडु े र्ें बांधा जाता िै।
िार - गले र्ें पििा जािे वाला सोिे या र्ोखतयों का िार पखत के प्रखत सिु ागि स्त्री के वचिबध्दता का प्रतीक र्ािा जाता िै। वधू के गले र्ें वर व्दारा र्ंगलसूत्र (काले रंग की बारीक र्ोखतयों का िार जो सोिे की चेि र्ें गंथु ा िोता िै) पििािे की रस्र् की बडी अिखर्यत िोती िै। इसी से उसके खववाखित िोिे का संकेत खर्लता िै। बाजूबन्द - कडे के सर्ाि आकृखत वाला यि आभूिण सोिे या चान्दी का िोता िै। यि बांिो र्ें पूरी तरि कसा रिता िै, इसी कारण इसे बाजूबन्द किा जाता िै। कं गण और चखू ियााँ - खिन्दू पररवारों र्ें सखदयों से यि परम्परा चली आ रिी िै खक सास अपिी बिी बिू को र्िंु खदिाई रस्र् र्ें सि ु ी और सौभाग्यवती बिे रििे के आशीवाम द के साथ विी कं गण देती िै, जो पिली बार ससरु ाल आिे पर उसकी सास िे खदए थे। पारम्पररक रूप से ऐसा र्ािा जाता िै खक सिु ाखगि खस्त्रयों की कलाइयां चूखियों से भरी रििी चाखिए। अंगूठी - शादी के पिले सगाई की रस्र् र्ें वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पििािे की परम्परा बिुत पूरािी िै। अंगूठी को सखदयों से पखत-पत्िी के आपसी प्यार और खवश्वास का प्रतीक र्ािा जाता रिा िै। कर्रबन्द - कर्रबन्द कर्र र्ें पििा जािे वाला आभूिण िै, खजसे खस्त्रयां खववाि के बाद पििती िै। इससे उिकी छरिरी काया और भी आकिम क खदिाई देती िै। कर्रबन्द इस बात का प्रतीक खक िववधू अब अपिे िए घर की स्वाखर्िी िै। कर्रबन्द र्ें प्राय: औरतें चाखबयों का गच्ु छा लटका कर रिती िै। खबछुआ - पैरें के अंगूठे र्ें ररंग की तरि पििे जािे वाले इस आभूिण को अरसी या अंगूठा किा जाता िै। पारम्पररक रूप से पििे जािे वाले इस आभूिण के अलावा खस्त्रयां कखिष्का को छोिकर तीिों अंगूखलयों र्ें खबछुआ पििती िै। पायल- पैरों र्ें पििे जािे वाले इस आभूिण के घंघु रूओं की सर्ु धरु ध्वखि से घर के िर सदस्य को िववधू की आिट का संकेत खर्लता िै।
कबना चावल िखे भगवान को दीपक नहीं लगाना चाकहए क्योंकक. दीपक का पूजि र्ें बिुत र्ित्व िै। भगवाि के सर्क्ष जब तक दीपक ििीं जलाया जाता िै। खिन्दू पंरपराओं के अिस ु ार तब तक पूजि पूरा िोिा संभव िी ििीं िै। इसीखलए पूजा शरू ु िोिे से पिले दीपक जलाया जाता िै। खफर पूजा के सर्ापि के सर्य आरती की जाती िै। पूजा र्ें दीपक के िीचे चावल रिे जाते िैं। चावल को शि ु ता का प्रतीक र्ािा गया िै।दीपक को पूणमता का प्रतीक र्ािा जाता िै। खिन्दू धर्म र्ें दीपक को देव रूप र्ािा जाता िै। इसीखलए खकसी भी तरि की पूजा शरू ु करिे से पिले दीपक का खतलक लगाकर पूजि खकया जाता िै। उसके बाद दीपक को आसि खदया जाता िै यािी दीपक को स्थाि खदया जाता िै। दीपक के िीचे चावल िा रिें जािे पर इसे अपशकुि र्ािा जाता िै। यखद दीपक के िीचे चावल ििीं िो तो दीपक अपूणम िोता िै। र्ान्यता िै खक यखद दीपक को आसि देकर पूजा र्ें िा रिा जाए तो भगवाि भी पूजि र्ें आसि ग्रिण ििीं करते िैं। साथ िी चावल को लक्ष्र्ीजी का खप्रय धाि भी र्ािा जाता िै। इसीखलए किा जाता िै खक पूजि के सर्य दीपक को चावल का आसि देिे से घर र्ें खस्थर लक्ष्र्ी का खिवास िोता िै। शास्त्रों र्ें ऐसा उल्लेि भी खर्लता िै खक शि ु वार के खदि लक्ष्र्ी र्ां के सार्िे चावल की ढेरी बिाकर उसके ऊपर घी का दीपक लगािे से धि लाभ िोता िै।कौि थे परशरु ार्, क्यों िुआ था इिका जन्र्? खिंदू धर्म ग्रंथों के अिस ु ार परशरु ार् भगवाि खवष्णु के प्रर्ि ु अवतारों र्ें से एक थे। शास्त्रों के अिस ु ार भगवाि परशरु ार् का जन्र् वैशाि र्ास के शक्ु ल पक्ष की ततृ ीया को िुआ था। प्रखतविम भगवाि परशरु ार् की जयंती खिंदू धर्ाम वलंखबयों द्वारा बडी धूर्-धार् से र्िाई जाती िै। भगवाि परशरु ार् के जन्र् के संबंध र्ें दो कथाएं प्रचखलत िैं। िररवंशपरु ाण के अिस ु ार उन्िीं र्ें से एक कथा इस प्रकार िैप्राचीि सर्य र्ें र्खिष्र्ती िगरी पर शखक्तशाली िैययवंशी क्षखत्रय कातम वीयम अजम िु (सिस्त्रबािु) का शासि था। वि बिुत अखभर्ािी था और अत्याचारी भी। एक बार अखग्िदेव िे उससे भोजि
करािे का आग्रि खकया। तब सिस्त्रबािु िे घर्ंि र्ें आकर किा खक आप जिां से चािें, भोजि प्राि कर सकते िैं, सभी ओर र्ेरा िी राज िै। तब अखग्िदेव िे विों को जलािा शरुु खकया। एक वि र्ें ऋखि आपव तपस्या कर रिे थे। अखग्ि िे उिके आश्रर् को भी जला िाला। इससे िोखधत िोकर ऋखि िे सिस्त्रबािु को श्राप खदया खक एक खदि भगवाि खवष्ण,ु परशरु ार् के रूप र्ें जन्र् लेंगे और ि खसफम सिस्त्रबािु का ििीं बखल्क सर्स्त क्षखत्रयों का सवम िाश करेंगे। इसी श्राप के फलस्वरूप भगवाि खवष्णु िे भागम व कुल र्ें र्िखिम जर्दखग्ि के पांचवें पत्रु के रूप र्ें जन्र् खलया। एक अन्य कथा के अिस ु ार जब क्षखत्रय राजाओं का अत्याचार बिुत बढ़ गया तो प्ृ वी र्ाता गाय के रूप र्ें भगवाि खवष्णु के पास गई और अत्याचाररयों का िाश करिे का आग्रि खकया। तब भगवाि खवष्णु िे उन्िें प्ृ वी को वचि खदया खक वे धर्म की स्थापिा के खलए र्िखिम जर्दखग्ि के पत्रु र्ें रूप र्ें अवतार लेकर अत्याचाररयों का सवम िाश करेंगे।
इसकलए िार् को कहते हैं पिशुिार् परशरु ार् भगवाि खवष्णु के प्रर्ि ु अवतारों र्ें से एक थे। इिके खपता का िार् र्िखिम जर्दखग्ि और र्ाता का िार् रेणक ु ा था। बाल्यावस्था र्ें इिके र्ाता-खपता इन्िें रार् किकर पक ु ारते थे। जब रार् कुछ बडे िुए तो उन्िोंिे खपता से वेदों का ज्ञाि प्राि खकया और खपता के सार्िे धिखु वम द्या सीििे की इच्छा प्रकट की। र्िखिम जर्दखग्ि िे उन्िें खिर्ालय पर जाकर भगवाि खशव को प्रसन्ि करिे के खलए किा। खपता की आज्ञा र्ािकर रार् िे ऐसा िी खकया। उस बीच असरु ों से त्रस्त देवता खशवजी के पास पिुंचे और असरु ों से र्खु क्त खदलािे का खिवेदि खकया। तब खशवजी िे तपस्या कर रिे रार् को असरु ों को िाश करिे के खलए किा। रार् िे खबिा खकसी अस्त्र की सिायता से िी असरु ों का िाश कर खदया। रार् के इस परािर् को देिकर भगवाि खशव िे उन्िें अिेक अस्त्र-शस्त्र प्रदाि खकए। इन्िीं र्ें से एक परश(ु फरसा) भी था। यि अस्त्र रार् को बिुत खप्रय था। इसे प्राि करते िी रार् का िार् परशरु ार् िो गया। खशवजी िे परशरु ार् को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञाि खदया। परशरु ार् िे इसी परशु िे 21 बार प्ृ वी को क्षखत्रय खवखिि कर खदया था।
अपनी र्ाता का वध क्यों ककया पिशिु ार् ने? परशरु ार् भगवाि खवष्णु के आवेशावतार थे। उिके खपता का िार् जर्दखग्ि तथा र्ाता का िार् रेणक ु ा था। परशरु ार् के चार बडे भाई थे लेखकि गणु ों र्ें यि सबसे बढ़े-चढ़े थे। एक खदि जब सब सब पत्रु फल लेिे के खलए वि चले गए तब परशरु ार् की र्ाता रेणक ु ा स्िाि करिे को गई, खजस सर्य वि स्िाि करके आश्रर् को लौट रिी थीं, उन्िोंिे राजा खचत्ररथ को जलखविार करते देिा। यि देिकर उिका र्ि खवचखलत िो गया। इस अवस्था र्ें जब उन्िोंिे आश्रर् र्ें प्रवेश खकया तो र्िखिम जर्दखग्ि िे यि बात जाि ली। इतिे र्ें िी विां परशरु ार् के बडे भाई रुक्र्वाि, सिु ेण,ु वसु और खवश्वावसु भी आ गए। र्िखिम जर्दखग्ि िे उि सभी से बारी-बारी अपिी र्ां का वध करिे को किा लेखकि र्ोिवश खकसी िे ऐसा ििीं खकया। तब र्खु ि िे उन्िें श्राप दे खदया और उिकी खवचार शखक्त िष्ट िो गई। तभी विां परशरु ार् आ गए। उन्िोंिे खपता के आदेश पाकर तरु तं अपिी र्ां का वध कर खदया। यि देिकर र्िखिम जर्दखग्ि बिुत प्रसन्ि िुए और परशरु ार् को वर र्ांगिे के खलए किा। तब परशरु ार् िे अपिे खपता से र्ाता रेणक ु ा को पिु जीखवत करिे और चारों भाइयों को ठीक करिे का वरदाि र्ांगा। साथ िी इस बात का खकसी को याद ि रििे और अजेय िोिे का वरदाि भी र्ांगा। र्िखिम जर्दखग्ि िे उिकी सभी र्िोकार्िाएं पूरी कर दीं।
चर्त्कािी है यह कशवकलगं ! जहां चादं भी हुआ बेदाग भगवाि खशव के 12 ज्योखतम खलंगों र्ें पिला सोर्िाथ ज्योखतम खलंग गज ु रात राज्य र्ें वेरावल िगर के सर्ीप खस्थत िै, जो प्रभास तीथम भी किलाता िै। भारत की पखश्चर् खदशा र्ें अरबसागर के खकिारे खस्थत इस खशव र्ंखदर का र्ित्व यि िै खक यिां भगवाि खशव के ज्योखतम खलंग की पूजा और दशम ि से कोढ़ व क्षय रोग सखित सभी गंभीर रोगों से र्खु क्त खर्लती िै।
पौराखणक र्ान्यताओं के र्तु ाखबक यिीं पर क्षय रोग से शाखपत चंद्रदेव िे तप कर खशव की कृपा से शाप से र्खु क्त पाई। तब चंद्रदेव द्वारा यिां सोिे का खशवर्ंखदर बिाया। इसखलए इस ज्योखतम खलंग का िार् सोर्िाथ किलाया। र्ंखदर र्ें खशव के सोर्ेश्वर रुप की पूजा िोती िै। सोर्ेश्वर का अथम िै - चंद्र को खसर पर धारण करिे वाले देवता याखि खशव। चंद्र को र्ि का कारक और खशवखलंग आत्र्खलंग र्ािा जाता िै। इस तरि सोर्िाथ ज्योखतम खलंग के र्ात्र दशम ि से िी शरीर के रोगों के साथ-साथ र्ािखसक और वैचाररक शखु ि भी िोती िै। इसी क्षेत्र र्े भगवाि श्रीकृष्ण िे पैरों र्ें बाण लगिे के बाद देित्याग दी और उिके वंश का िाश िुआ। यिां श्रावण पखू णम र्ा, खशवराखत्र, चंद्र ग्रिण और सयू म ग्रिण पर र्ेला लगता िै। सोर्िाथ ज्योखतम खलंग के दशम ि के खलए िेर्तं , खशखशर और वसंत ऋतु (जिवरी से अप्रैल के बीच) का र्ौसर् अच्छा र्ािा जाता िै। गज ु रात का वेरावल शिर सोर्िाथ जािे के खलए र्ख्ु य सडक र्ागम िै।
कार्वासना! दबाए ं नहीं काबू र्ें लाना सीखें कार्वासिा का दर्ि ििीं काबू करिा खसिाता िै योग। योग और धर्म -अध्यात्र् र्ें अक्सर यि पढऩे और सिु िे को खर्लता खक र्िष्ु य को ब्रह्मचयम का पालि करिा चाखिये। यािी कार्वासिा और भोग-खवलास से यथा संभव दूर रििा चाखिये। लेखकि किीं भी यि ििीं किा गया िै खक जबरि कार् की भाविा को दबा खदया जाए। योग के क्षेत्र र्ें अष्टांग योग को सबसे ज्यादा प्रार्ाखणक र्ािा जाता िै। अष्टांग योग की खसखियां प्राि करिे के खलए यि अखत आवश्यक िै खक यर् र्ें बताए गए सभी चरणों का कडा पालि करें। यर् का चतथु म चरण िै ब्रह्मचयम का पालि करिा। अष्टांग योग र्ें यि चरण काफी र्ित्वपूणम िै। क्योंखक जो व्यखक्त ब्रह्मचयम व्रत का पालि ििीं कर पाता वि कुण्िखलिी जागरण की अवस्था तक कतई ििीं पिुंच सकता।ब्रह्मचयम का पालि करिा सवाम खधक कखठि र्ािा गया िै। कार् भाव की उत्पखि के संबंध र्ें खवद्वािों का कििा िै खक खवपररत खलंग के आकिम ण की वजि से िी ब्रह्मचयम व्रत का पालि ििीं िो पाता।
कुण्िखलिी जागरण की अवस्था प्राि करिे के खलए यि अखतआवश्यक िै खक िर् िर्ारे र्ि र्ें खवपररंग खलंग का स्र्रण तक िा लाएं। क्योंखक यखद परुु ि खकसी स्त्री का स्र्रण कार् की दृखष्ट से करेगा या स्त्री खकसी परुु ि का वैसा िी स्र्रण करती िै तो ब्रह्मचयम व्रत का पालि कर पािा असंभव सा िी िै। अष्टांग योग र्ें यि सबसे अिर् चरण िै इसका पालि करिा अखत आवश्यक िै।
कबस्ति पि बैठकि खाना क्यों नहीं खाना चाकहए? आजकल तेजी से बढ़ती र्िािगरीय संस्कृखत के कारण िर्ारी रोजर्राम के खजंदगी र्ें बिुत तेजी से कई पररवतम ि िुए िैं। कुछ आदते ऐसी िै जो अब िर्ारी लाइफ का एक खिस्सा बिती जा रिी िैं जैसे सबु ि देर से उठिा रात को देर से सोिा, बेि पर चाय और िािा लेिा आखद। ये आदते ऐसी िैं जो िर्ारे शरीर को प्रभाखवत करती िैं। आपिे अक्सर बडे-बज ु ूगों को किते िुए सिु ा िोगा खक खबस्तर पर िािा ििीं िािा चाखिए। आजकल अखधकतर लोग ऐसी बातों को अंधखवश्वास र्ािकर उि पर भरोसा ििीं करते िैं लेखकि यि कोई अंधखवश्वास ििीं िै बखल्क इसके पीछे स्वास््य से जडु ा कारण भी िै। िर्ारी भारतीय संस्कृखत र्ें खबस्तर पर िािा-पीिा खििेध िै क्योंखक शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक खबस्तर पर बैठकर िािे -पीिे से घर र्ें अलक्ष्र्ी का खिवास िोता िै यािी घर र्ें दररद्रता आती िै। साथ िी खबस्तर पर िािे -पीिे से स्वास््य पर बरु ा प्रभाव पडता िै क्योंखक जब िर्ें कोई बीर्ारी िोती िै या िर् अस्वस््य िोते िै तब भी उसी खबस्तर पर आरार् करते िैं साथ िी धल ु व अन्य कई तरि की गंदगी रिती िै। खजसके कारण खबस्तर र्ें कई तरि के छोटे छोटे सक्ष्ु र्जीव रिते िैं। और जब िर् खबस्तर पर बैठकर भोजि करते िैं तो ये सक्ष्ु र्जीव िर्ारे शरीर र्ें भोजि के र्ाध्यर् से प्रवेश कर जाते िैं।खजसके कारण खबस्तर पर िािा िािे पर िर्े एखसखिटी और पेट की कई बीर्ाररयां पैदा िोती िैं।
टूटी -फूटी क्रॉकिी घि र्ें नहीं िखना चाकहए क्योंकक... आपके घर र्ें िॉकरी बता देती िै खक आप खकस स्तर का जीवि व्यापि कर रिे िैं। इसी वजि से आजकल खिजाइिर िाकरी का िे ज बढ़ रिा िै। इसी िे ज के चलते कई घरों र्ें परु ािे या टूटी -फूटी िॉकरी र्ें संभालकर अलग रि दी जाती िैं, जो खक अशभु र्ािा जाता िै। इससे घर र्ें दररद्रता बढ़ती िै और कई तरि की िाखि उठािा पडती िै। िर्ेशा से िी इस बात पर जोर खदया जाता िै खक घरों र्ें टूटी -फूटी िॉकरी ििीं रििी चाखिए, िा िी कभी ऐसी िाकरी र्ें चाय ििीं पीिी चाखिए या िािा ििीं िािा चाखिए। इस संबंध र्ें धाखर्म क त्य यि िै खक ऐसा करिे से ईश्वर की कृपा प्राि ििीं िोती। जो व्यखक्त टूटी -फूटी िॉकरीज र्ें चाय या कॉफी पीिे से या भोजि करिे से उससे लक्ष्र्ी रूठ जाती िै और उसके घर र्ें दररद्रता पैर पसार लेती िै। ऐसा िोिे पर कई प्रकार के आखथम क संकटों का सार्िा करिा पडता िै। ऐसी िॉकरी को वास्तशु ास्त्र र्ें भी अशभु र्ािा गया िै। खजस घर र्ें ऐसी िाकरी रिी जाती िै विां वास्तदु ोि रिता िै। ऐसे र्ें वास्तदु ोि दरू करिे के खलए बिुत से अन्य उपाय करिे के बाद भी यि दोि दरू ििीं िोता िै। इससे घर र्ें िकारात्र्क ऊजाम सिीय िो जाती िै। घर से सभी टूटी -फूटी, बेकार िॉकरी को दरू कर देिा चाखिए। इससे वास्तु दोि सर्ाि िोता िै और घर र्ें सब अच्छा िोिे लगता िै। बेकार िॉकरी र्ें चाय या कॉफी लेिे से या िाश्ता करिे से िर्ारे खवचार िकारात्र्क बिते िैं। जैसे िॉकरी र्ें िर् चाय या कॉफी िैं िर्ारा स्वभाव भी वैसा िी बि जाता िै। इसी वजि से अच्छे और साफ िॉकरी र्ें चाय या कॉफी पीए या िािा िाएं। इससे आपके खवचार भी शि ु िोंगे और सकारात्र्क ऊजाम का शभु प्रभाव आप पर पडेगा।
क्या औि क्यों दान किें शकन के बिु े प्रभाव से बचने के कलए? शखिवार के खदि इस ग्रि से संबंखधत दाि, पूजा व र्ंत्र जप से शखि की दशा, या साढ़ेसाती के सर्य शखि का अशभु प्रभाव कर् िो जाता िै। अशभु शखि को शभु बिािे के खलए लोिे व काले उडद के दाि का ज्योखति के अिस ु ार खवशेि र्ित्व िै। लेखकि शखि को प्रसन्ि करिे के खलए काला उडद िी क्यों चढ़ाते िैं कोई और धाि क्यों ििीं?दरअसल इसका कारण यि िै खक ज्योखति र्ें िर ग्रि के अशभु प्रभाव को कर् करिे के खलए उस ग्रि की रंग, प्रकृखत और स्वभाव के अिस ु ार एक धाि बताया गया िै। खजसके दाि से उस ग्रि का दोि कर् िो जाता िै। इसीखलए अशभु शखि को शभु बिािे के खलए काले उडद का दाि अच्छा र्ािा गया िै क्योंखक इस धाि की प्रकृखत शखि के अिस ु ार िी िै। शखि काले िैं शखि की प्रकृखत वायक ु ारक िै और इस धाि की प्रकृखत भी ऐसी िी िै।इसीखलए शखि के खलए इस धाि को चिु ा गया िै।
गभावती स्त्री को र्तृ व्यकक्त का र्हुं नहीं देखना चाकहए क्योंकक... िर्ारे यिां बच्चे के जन्र् के पूवम की भी अिेक परंपराएं िैं खजिका गभम वती र्खिला को पालि करिा िोता िै। ऐसी िी एक परंपरा िै खक गभम वती स्त्री को र्तृ व्यखक्त या लाश को ििीं देििा चाखिए यिां तक खक उस घर के आसपास भी ििीं जािा चाखिए जिां र्ौत िुई िो। आजकल के अखधकांश लोग इस परंपरा का पालि ििीं करते िैं क्योंखक वे इसे खसफम अंधखवश्वास र्ािते िैंलेखकि ये र्ान्यता अंधखवश्वास ििीं िै दरअसल इसके पीछे कई कारण छुपे िैं। इसका र्ख्ु य कारण यि िै खक खजस घर र्ें र्ौत िोती िै विां का र्ािौल बिुत िी दि ु र्य िोता िै। पूरा पररवार शोक र्ें िूबा रिता िै।उस घर के र्ािौल देिकर गभम वती र्खिला के गभम र्ें पल
रिे बच्चे पर बिुत अखधक िकारात्र्क प्रभाव पडता िै। यखद उस र्खिला के खकसी खप्रयजि की र्ौत िुई िो तो उसे बिुत गिरा दि ु पिुंचता िै और इससे िोिे वाली खशशु को िाखि पिुंच सकती िै। इसके अलावा इसका वैज्ञाखिक कारण यि िै खक र्तृ व्यखक्त के शरीर र्ें कई तरि के बैखक्टररया िोते िैं जो बिुत तेजी से संिर्ण फै लाते िैं। गभम वती र्खिला शारीररक रूप से अखधक र्जबतू ििीं िोती िैं इसखलए र्तृ शरीर से खिकलिे वाले बैखक्टररया उसे बिुत अखधक प्रभाखवत करते िैं। इससे िोिे वाले खशशु और र्ां दोिो संिखर्त िो सकते िैं इसखलए गभम वती र्खिला को र्तृ व्यखक्त का र्िंु ििीं देििे खदया जाता या उस घर र्ें ििीं जािे खदया जाता जिां खकसी की र्ौत िुई िो।
िात र्ें घि से बाहि कचिा नहीं फें कना चाकहए क्योंकक... िर्ारी भारतीय संस्कृखत र्ें िर दैखिक कायम से जडु ी कोई ि कोई र्ान्यता जरूर िै। ऐसी िी एक परंपरा िै रात के सर्य घर र्ें झाड और पौछा ि लगािे की। साथ िी एक र्ान्यता और भी िै वि यि खक रात के सर्य घर से बािर कचरा ििीं फें किा चाखिए। शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी िी र्ान्यता िै क्योंखक किा जाता िै इससे घर र्ें अलक्ष्र्ी का वास िोता िै या लक्ष्र्ी रूष्ट िो जाती िै। इसके पीछे वैज्ञाखिक कारण यि िै खक शार् या राखत्र के सर्य घर की साफ-सफाई खििेध की गई िै। साथ िी रात को कचरा फें किा भी वखजम त र्ािा गया िै ताखक लोग रात के सर्य घर की साफ-सफाई ि करें। इसका र्ख्ु य कारण यि िै खक रात के सर्य धूल व कचरे से घर वालों को सदी-जक ु ार् जैसी परेशाखियां िोिे की संभाविा बढ़ जाती िै। साथ िी यखद सब लोग रात को सफाई करके घर के बािर कचरा फें किे लगे तो घर के चारों ओर कचरा ज्यादा जर्ा िोिे लगेगा। खजससे रातभर उस कचरे र्ें कई तरि के जीवाणु तथा
र्च्छर-र्क्िी तेजी से जन्र् लेिे लगेंगे। इसीखलए यि र्ान्यता बिाई गई िै ताखक रात के सर्य लोग अपिे घरों से बािर कचरा िा फें के ।
र्कं दि र्ें दशान किने के बाद परिक्रर्ा किना जरूिी क्यों? िर् भगवाि की पररिर्ा करते िैं? इससे लाभ क्या िोता िै और भगवाि की खकतिी पररिर्ा करिी चाखिए?दरअसल भगवाि की पररिर्ा का धाखर्म क र्ित्व तो िै िी, खवद्वािों का र्त िै भगवाि की पररिर्ा से अक्षय पण्ु य खर्लता िै, सरु क्षा प्राि िोती िै और पापों का िाश िोता िै। पररिर्ा करिे का व्यविाररक और वैज्ञाखिक पक्ष वास्तु और वातावरण र्ें फै ली सकारात्र्क ऊजाम से जडु ा िै। र्ंखदर र्ें भगवाि की प्रखतर्ा के चारों ओर सकारात्र्क ऊजाम का घेरा िोता िै, यि र्ंत्रों के उच्चरण, शंि, घंटाल आखद की ध्वखियों से खिखर्म त िोता िै। िर् भगवाि की प्रखतर्ा की पररिर्ा इसखलए करते िैं खक िर् भी थोडी देर के खलए इस सकारात्र्क ऊजाम के बीच रिें और यि िर् पर अपिा असर िाले।इसका एक र्ित्व यि भी िै खक भगवाि र्ें िी सारी सखृ ष्ट सर्ाई िै, उिसे िी सब उत्पन्ि िुए िैं, िर् उिकी पररिर्ा लगाकर यि र्ाि सकते िैं खक िर्िे सारी सखृ ष्ट की पररिर्ा कर ली िै।
नए र्टके की पूजा क्यों किना चाकहए? गर्ी का र्ौसर् आ गया िै। गर्ीयों की खचलखचलाती धपू र्ें ठंिा पािी गर्ी से सबसे ज्यादा खिजात खदलाता िै। आजकल अखधकतर लोग गर्ी र्ें ठंिे पािी के खलए खिज पर खिभम र िै लेखकि कुछ लोग गर्ीयों र्ें ठंिे पािी के खलए खर्ट्टी से बिे र्टकों का उपयोग िी ज्यादा अच्छा र्ािते िैं। शास्त्रों के अिस ु ार घर र्ें लाए गए र्टके का पूजि करिा चाखिए क्योंखक र्टके को कलश र्ािते िैं।
कलश के र्ूल र्ें ब्रह्म का, कं ठ र्ें रूद्र यािी खशव का और र्ि ु र्ें खवष्णु का खिवास र्ािा जाता िै। कलश पूणमता का प्रतीक िोता िे। खजस घर र्ें कलश की पूजा िोती िै। उस घर र्ें सि ु सर्खृ ि और शांखत रिती िै। साथ िी जल को वरूण देवता का रूप र्ािते िैं और जल को प्रत्यक्ष देवता भी किा गया िै। इन्िीं र्ान्यताओं के कारण गर्ीयों र्ें पािी के र्टके को कलश र्ािते िुए उसका पूजि खकया जाता िै ताखक उसका पािी पीिे वाले के खलए अर्तृ के सर्ाि कायम करें। र्टके के पािी के सेवि से गर्ी र्ें कई तरि की बीर्ाररयों से बचा जा सकता िै। जबखक िीज के पािी से गले से संबखं धत परेशाखियां िोिे लगती िै। इसीखलए यि परंपरा बिी रिे और लोग र्टके के पािी का उपयोग िर्ेशा करते रिे। इसी उद्देश्य से िए र्टके की पूजा की जाती िै।
घि पि नहीं पडऩा चाकहए र्कं दि की िाया क्योंकक... र्ंखदर र्ें िोिे वाले िाद यािी शंि और घंखटयों की आवाजें, ये आवाजें वातावरण को शि ु करती िैं। किते िैं र्ंखदर जािे से आखत्र्क शांखत खर्लती िै। विां लगाए जािे वाले धपू -बिी खजिकी सगु ंध वातावरण को शि ु बिाती िै। इस तरि र्ंखदर र्ें लगभग सभी ऐसी चीजें िोती िैं जो वातावरण की सकारात्र्क ऊजाम को संग्रखित करती िैं। िर् जब र्ंखदर र्ें जाते िैं तो इसी सकारात्र्क ऊजाम का प्रभाव िर् पर पडता िै और िर्ें भीतर तक शांखत का अिसास िोता िै। अक्सर लोग अपिी आस्था के कारण र्ंखदर के आसपास घर ढूंढते िैं लेखकि भखवष्यपरु ाण र्ें किा गया िै खक अपिे घर र्ें खकए गए िवि, यज्ञ-अिष्ठु ािों का फल खिखश्चत िी घर के र्खु िया को खर्लता िै। इसके खलए किा गया िै खक देव-वेध से बचािा चाखिए यािी ऐसी जगि घर ििीं लेिा चाखिए खजसके आसपास र्ंखदर िो। र्त्स्यपरु ाण र्ें भी वेध को िर िाल र्ें टालकर वास्तु खिर्ाम ण का खिदेश िै। किा जाता िै खक जो लोग परु ािे देवालय के सार्िे घर या व्यापाररक प्रखतष्ठाि बिवाते िैं, वे धि तो पाते िैं खकं तु
शारीररक आपदाओं से खघर जाते िैं। यखद खशवालय के सार्िे घर बिा िो तो बीर्ारीयां पीछा ििीं छोडती।जैिालय के सार्िे बिा िो तो घर शून्य रिेगा या वैभव से वैराग्य िो जाएगा। भैरव, काखतम केय, बलदेव और देवी र्ंखदर के सार्िे घर बिाया गया तो िोध और कलि की आशंका रिेगी जबखक खवष्णु र्ंखदर के सार्िे घर बिािे पर घर-पररवार को अज्ञात बीर्ाररयां घेरे रिती िैं। इसी तरि र्ंखदर की जर्ीि या अन्य खकसी खिस्से पर कब्जा ििीं करिा चाखिए। र्ंखदर के खकसी टूटे पत्थर को भी खचिाई के कायम र्ें ििीं लेिा चाखिए।यि भी किा गया िै खक घर के आसपास र्ंखदर िोिे पर व्यखक्त इसीखलए परु ािे प्राचीि काल र्ें ऐसा दोि िोिे पर र्ंखदर की दरू ी के बराबर बडा द्वार या पोल बिाकर िई बस्ती को बसाया जाता था।
उन कदनों लडककयों को ककचन र्ें कार् क्यों नहीं किना चाकहए? वैखदक धर्म के अिस ु ार र्ाखसकधर्म के खदिों र्ें र्खिलाओं के खलए सभी धाखर्म क कायम वखजम त खकए गए िैं। साथ िी इस दौराि र्खिलाओं को अन्य लोगों से अलग रििे का खियर् भी बिाया गया िै। ऐसे र्ें खस्त्रयों को धाखर्म क कायों से दरू रििा िोता िै क्योंखक सिाति धर्म के अिस ु ार इि खदिों खस्त्रयों को अपखवत्र र्ािा गया िै।साथ िी इस दौराि र्खिलाओं को का रसोई घर र्ें कार् करिा भी अच्छा ििीं र्ािा जाता िै। लेखकि आजकल के अखधकांश यवु ा इसे अंधखवश्वास र्ािकर उस पर खवश्वास ििीं करते िैं। शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक र्ाखसक धर्म के सर्य र्खिलाओं को रसोई र्ें कायम ििीं करिा चाखिए यािी भोजि ििीं बिािा चाखिए क्योंखक उिके द्वारा बिाया भोजि करिे पर परुु िों का र्ि कार् र्ें ििीं लगता िै। साथ िी अखग्र को िर्ारे धर्म ग्रंथों र्ें बिुत अखधक पखवत्र र्ािा गया िै। इसखलए किा जाता िै खक उि खदिों रसोई घर र्ें कार् करिे से घर र्ें बरकत ििीं रिती। इसका वैज्ञाखिक कारण यि िै खक र्ाखसक धर्म के सर्य र्खिलाओं को अिेक तरि के शारीररक व्याखधयां परेशाि करती िै। खजसके कारण वे आर् खदिों की अपेक्षा अखधक कर्जोर िो जाती
िैं। र्खिलाओं के गभाम शय का र्िंु इि खदिों िल ु ा रिता िै इस कारण वे शारीररक रूप से थोडा कर्जोर र्िसूस करती िै। ऐसे र्ें थकाि और खचडखचडापि िोिा भी सार्ान्य बाज िै। इसीखलए र्खिलाएं उि खदिों र्ें अपिे शरीर को पूरा आरार् दें और अखधक कार् िा करें। इसी सोच के साथ यि परंपरा बिाई गई िै खक उि खदिों र्खिलाओं को खकचि र्ें कार् ििीं करिा चाखिए।
जब आत्र्ा कान र्ें कह जाती है भकवष्य क्या आपिे कभी खकसी ऐसे व्यखक्त के बारे र्ें सिु ा िै या आप खकसी ऐसे व्यखक्त से खर्ले िैं खजसिे आपको देिकर िी यि बता खदया िो खक आपके पररवार र्ें खकतिे सदस्य िैं। आपके खकतिे दोस्त या दश्ु र्ि िैं या आप उस व्यखक्त के पास पिुंचिे से पिले खकतिे लोगों से उस खदि खर्ले, उिसे आपकी क्या बात िुई ? इि सभी प्रश्नों के उिर उसिे आपसे खर्लते िी तरु तं बता खदए िो। उस व्यखक्त िे आपका भखवष्य र्ें क्या िोगा? यि भी बता खदया िो। ऐसे र्ें कोई भी सोचेगा खक वि व्यखक्त चर्त्कारी िै परंतु यि कोई चर्त्कार ििीं िै। दरअसल यि कायम तंत्र साधिा का कर्ाल िै। यि एक तंत्र खवद्या िै खजसे कणम खपशाचिी साधिा किा जाता िै। इस खवद्या को खपशाच खवद्या अथाम त िेिेर्ेंसी भी किा जाता िै। खजसर्ें पराशखक्तयों को बल ु ाकर बात की जाती िैं। कणम खपशाचिी खसखि के बाद र्रे िुए पूवमजों की आत्र्ाओं को बल ु ाकर बात की जा सकती िै। आत्र्ा खकसी भी व्यखक्त के सबंध र्ें और उसके भखवष्य के बारे र्ें बता सकती िै। इस साधिा र्ें तंत्र शास्त्र की वार्र्ागी शखक्तयों की उपासिा की जाती िै। इन्िें प्रसन्ि खकया जाता िै। आत्र्ाएं शरुु आत र्ें साधिा करिे वाले की परीक्षा लेती िैं। यखद वे प्रसन्ि िो जाती िैं, तो उसके आवाह्न पर आकर उसकी र्िचािी इच्छा की पूखतम करती िैं। ऐसी साधिाएं करिे वाले िी आत्र्ाओं को वश र्ें करके लोगों के भखवष्य के सबंध र्ें जाि लेते िैं।
क्यों औि क्या जरूिी है गभावती स्त्री के कलए?
गभम वती खस्त्रयों को शास्त्र पढऩे की सलाि दी जाती िै क्योंखक यि उिके गभम र्ें पल खशशु के ज्ञाि को बढ़ाता िै। खवज्ञाि के अिस ु ार गभम र्ें पल रिा खशशु भी सोचता-सर्झता और सभी आवाजों को सिु ता भी िै। इसीखलए िवजात खशशु र्ें सस ु ंस्कार का खवकास िो इस उद्देश्य से गभम वती र्खिला को धर्म ग्रंथ पढऩा चाखिए।र्ां के गभम र्ें खशशु बािर िो रिी सभी घटिाओं और आवाजों को र्ां के िी काि और खदर्ाग से भलीभांखत सर्झता िै। इसका सबसे अच्छा उदािरण र्िाभारत र्ें देििे को खर्लता िै। र्िाभारत र्ें पांिव पत्रु अजम िु जब उिकी पत्िी सभु द्रा को यि ु र्ें चिव्यूि भेदिे का रिस्य सिु ा रिा रिे थे, तब सभु द्रा के गभम र्ें पल रिा खशशु अखभर्न्यु यि सब बातें ध्याि से सिु रिा था। जब अजम िु चिव्यूि भेदिे की आधी िीखत बता चक ु े थे, उस सर्य सभु द्रा को िींद आ गई। खजससे अखभर्न्यु चिव्यूि को भेदिे का रिस्य तो जाि गया परंतु चिव्यूि से वापस लौटिे का रिस्य ििीं सिु सका क्योंखक उसकी र्ां सभु द्रा सो गई थी। यिी वजि र्िाभारत यि ु र्ें द्रोणाचायम द्वारा रखचत चिव्यूि र्ें अखभर्न्यु के वध का कारण बिी।इसी घटिा से खसि िोता िै खक यखद गभम वती खस्त्रयां अपिी संताि को सस ु ंस्कारी और गणु वाि बिािा चािती िै तो उन्िें धर्म ग्रंथ पढऩे चाखिए और अच्छे बातें िी सोचिा चाखिए।गभम वती र्खिला जैसे खवचार, जैसा िािा िाएगी, जैसा स्वभाव रिेगी, जो भी देिेगीसिु ेगी वैसे से िी सभी गणु उसकी संताि र्ें आ जाते िैं।
क्यों नहीं िखना चाकहए कबस्ति पि झाड़ू? िर्ारा देश खवश्वभर र्ें अपिी संस्कृखत व र्ान्यताओं के कारण पिचािा जाता िै। िर्ारे देश र्ें सबु ि से लेकर शार् तक िर् जो भी कार् करते िैं लगभग िर कायम से जडु ी कोई ि कोई र्ान्यता जरूर िै। जैसे सबु ि जल्दी उठिा, ििािे के बाद िी र्ंखदर जािा या पूजा करिा, शार् के सर्य सफाई ििीं करिा व रात को झूठे बतम ि ििीं छोिऩा आखद। िर्ारे यिां ऐसे िर एक दैखिक कायम से जडु ी कई छोटी-छोटी र्ान्यताएं िै। ऐसी िर एक र्ान्यता के पीछे िर्ारे पूवमजों की कोई ि कोई गिरी सोच और धाखर्म क कारण तो िै िी साथ िी वैज्ञाखिक कारण भी िै। आजकल अखधकतर यवु ा ऐसी परंपराओं को या र्ान्यताओं को अंधखवश्वास
र्ािकर उि पर खवश्वास ििीं करते िैं। ऐसी िी एक र्ान्यता िै खक खबस्तर पर झाड ििीं रििा चाखिए। शास्त्रों के अिस ु ार किा जाता िै खक झाड को खबस्तर पर ििीं रििा चाखिए क्योंखक इससे घर र्ें अलक्ष्र्ी का वास िोता िै या लक्ष्र्ी रूठ जाती िै। इसके पीछे वैज्ञाखिक कारण यि िै खक खजस झाड से िर् रूर् साफ करते िैं उसर्ें धल ू , कचरा व जीवाणु लगे िोते िैं। उसे खबस्तर पर रििे से खबस्तर पर धल ू व जीवाणु पिुंच जाते िैं। खजससे घर वालों को सदी-जक ु ार् और अन्य बीर्ारीयां िोिे की संभाविा बढ़ जाती िै। इसखलए किा जाता िै खक खबस्तर पर झाड ििीं रििा चाखिए।
क्या औि क्यों ध्यान िखे, जब जा िहे हों ककसी खास कार् के कलए? जब भी िर् घर से खकसी िास कायम को लक्ष्य बिाकर खिकलते िैं उस वक्त सीधा पैर पिले बािर रििे से खिखश्चत िी आपको कायों र्ें सफलता प्राि िोती िै। यि परंपरा काफी परु ािी िै खजसे िर्ारे घर के बज ु ूगम सर्य-सर्य पर बताते रिते िैं। इस प्रथा के पीछे र्िोवैज्ञाखिक और धाखर्म क कारण दोिों िी िैं। धर्म शास्त्रों के अिस ु ार सीधा पैर पिले बािर रििा शभु र्ािा जाता िै। सभी धर्ों र्ें दाएं अंग को िास र्ित्व खदया गया िै। सीधे िाथ से खकए जािे वाले शभु कायम िी देवी-देवताओं द्वारा र्ान्य खकए जाते िैं। देवी-देवताओं की कृपा के खबिा कोई भी व्यखक्त खकसी भी कायम र्ें सफलता प्राि ििीं कर सकता। इसी कारण सभी पूजि कायम सीधे िाथ से िी खकए जाते िैं। जब भी घर से बािर जाते िैं तो सीधा पैर िी पिले बािर रिते िैं ताखक कायम की ओर पिला कदर् शभु रिेगा तो सफलता अवश्य प्राि िोगी।इस परंपरा के पीछे एक त्य और िै खक इसका िर् पर र्िोवैज्ञाखिक प्रभाव पडता िै। सीधा पैर पिले बािर रििे से िर्ें सकारात्र्क ऊजाम प्राि िोती िै और र्ि प्रसन्ि रिता िै। इस बात का िर् पर खदिभर प्रभाव रिता िै। बाएं पैर को पिले बािर खिकालिे पर िर्ारे खवचार िकारात्र्क बिते िैं।
आिती के बाद जरूि लेना चाकहए चिणार्तृ क्योंकक.... खिंदू धर्म र्ें भगवाि की आरती के पश्चात भगवाि का चरणार्तृ खदया जाता िै। इस शब्द का अथम िै भगवाि के चरणों से प्राि अर्तृ । खिंदू धर्म र्ें इसे बिुत िी पखवत्र र्ािा जाता िै तथा र्स्तक से लगािे के बाद इसका सेवि खकया जाता िै। चरणार्तृ का सेवि अर्तृ के सर्ाि र्ािा गया िै। किते िैं भगवाि श्रीरार् के चरण धोकर उसे चरणार्तृ के रूप र्ें स्वीकार कर के वट ि के वल स्वयं भव-बाधा से पार िो गया बखल्क उसिे अपिे पूवमजों को भी तार खदया। चरणार्तृ का र्ित्व खसफम धाखर्म क िी ििीं खचखकत्सकीय भी िै। चरणार्तृ का जल िर्ेशा तांबे के पात्र र्ें रिा जाता िै। आयवु ेखदक र्तािस ु ार तांबे के पात्र र्ें अिेक रोगों को िष्ट करिे की शखक्त िोती िै जो उसर्ें रिे जल र्ें आ जाती िै। उस जल का सेवि करिे से शरीर र्ें रोगों से लिऩे की क्षर्ता पैदा िो जाती िै तथा रोग ििीं िोते। इसर्ें तल ु सी के पिे िालिे की परंपरा भी िै खजससे इस जल की रोगिाशक क्षर्ता और भी बढ़ जाती िै। ऐसा र्ािा जाता िै खक चरणार्तृ र्ेधा, बखु ि, स्र्रण शखक्त को बढ़ाता िै। रणवीर भखक्तरत्िाकर र्ें चरणार्तृ की र्ििा प्रखतपाखदत की गई िै-अथाम त पाप और रोग दरू करिे के खलए भगवाि का चरणार्तृ औिखध के सर्ाि िै। यखद उसर्ें तल ु सीपत्र भी खर्ला खदया जाए तो उसके औिखधय गणु ों र्ें और भी वखृ ि िो जाती िै।
दाह सस्ं काि के सर्य क्यों की जाती है कपाल कक्रया? खिंदू धर्म र्ें र्त्ृ यु के उपरांत र्तृ क का दाि संस्कार खकया जाता िै अथाम त र्तृ देि को अखग्ि को सर्खपम त खकया जाता िै। दाि संस्कार के सर्य कपाल खिया भी की जाती िै। दाि संस्कार के सर्य कपाल खिया क्यों की जाती िै? इसका वणम ि गरुडपरु ाण र्ें खर्लता िै। उसके अिस ु ार
जब शवदाि के सर्य र्तृ क के खसर पर घी की आिुखत दी जाती िै तथा तीि बार िंिे से प्रिार कर िोपडी फोडी जाती िै इसी प्रखिया को कपाल खिया किते िैं। इस खिया के पीछे अलगअलग र्ान्यताएं िैं। एक र्ान्यता के अिस ु ार कपाल खिया के पश्चात िी प्राण पूरी तरि स्वतंत्र िोते िैं और िए जन्र् की प्रखिया आगे बढ़ती िै। दस ू री र्ान्यता िै खक िोपडी को फोडकर र्खस्तष्क को इसखलए जलाया जाता िै ताखक वि अधजला ि रि जाए अन्यथा अगले जन्र् र्ें वि अखवकखसत रि जाता िै। िर्ारे शरीर के प्रत्येक अंग र्ें खवखभन्ि देवताओं का वास िोिे की र्ान्यता का खववरण श्राि चंखद्रका र्ें खर्लता िै। चूखं क खसर र्ें ब्रह्मा का वास र्ािा गया िै इसखलए शरीर को पूणम रूप से र्खु क्त प्रदाि करिे के खलए कपाल खिया द्वारा िोपडी को फोडा जाता िै। िोपडी की िि्िी इतिी र्जबूत िोती िै खक उसे अखग्ि र्ें भस्र् िोिे र्ें भी सर्य लगता िै। वि फूट जाए और र्खस्तष्क र्ें खस्थत ब्रह्मरंध्र पंचतत्व र्ें पूणम रूप से खवलीि िो जाए इसखलए कपाल खिया करिे का खवधाि िै।
लडककयों को शादी र्ें नहीं देना चाकहए श्रीगणेश क्योंकक... शादी यािी िाच-गािा उत्साि और उर्ंगो से भरा एक सर्ारोि खजसर्ें दो खदल या दो लोग िी ििीं बखल्क दो पररवार ररश्तों के पखवत्र बंधि र्ें बंध जाते िैं। खिन्दू परंपरा के अिस ु ार बेखटयों की शादी र्ें उसके र्ायके वालों की ओर से अिेक उपिार खववाि के उपलक्ष्य र्ें बेटी को खदए जाते िैं। र्ाता-खपता का यिी सपिा िोता िै खक उिकी बेटी ससरु ाल र्ें िर्ेशा िशु रिे। उसे कभी खकसी तरि की कोई कर्ी र्िसूस िा िो। इसी सोच के कारण अखधकतर लोग शादी र्ें अपिी बेटी को सोिे, चांदी या अन्य तरि के भगवाि की र्खु तम यां भी देते िैं। वतम र्ाि र्ें खगफ्ट के रूप र्ें सबसे ज्यादा चलि र्ें िै गणेशजी की र्ूखतम क्योंखक गणेशजी को ररखि-खसखि के दाता र्ािा जाता िै। इसखलए गणेशजी की र्ूखतम दी जाती िै लेखकि िर्ारे बडेबज ु ूगम लोगों की इस बारे र्ें र्ान्यता िै खक बेटी को शादी र्ें र्ायके वालों की तरफ से उपिार र्ें कभी भी गणेशजी ििीं देिे चाखिए क्योंखक बेखटयां घर की लक्ष्र्ी िोती िै और उन्िे यखद गणेशजी भेंट खकए जाते िैं तो घर की ररखि-खसखि उिके साथ चली जाती िै क्योंखक शास्त्रों के
अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक जिां गणेशजी का खिवास िोता िै विीं लक्ष्र्ीजी का खिवास िोता िै। इसखलए बेखटयों को खववाि र्ें उपिार र्ें गणेशजी ििीं देिे चाखिए।
र्कं दि से लौटने के पहले वहां कुि देि क्यों बैठना चाकहए? र्ािा जाता िै खक र्ंखदरों र्ें ईश्वर साक्षात् रूप र्ें खवराखजत िोते िैं। खकसी भी र्ंखदर र्ें भगवाि के िोिे की अिभु ूखत प्राि की जा सकती िै। भगवाि की प्रखतर्ा या उिके खचत्र को देिकर िर्ारा र्ि शांत िो जाता िै और िर्ें सि ु प्राि िोता िै।िर् इस र्िोभाव से भगवाि की शरण र्ें जाते िैं खक िर्ारी सारी सर्स्याएं ित्र् िो जाएंगी, जो बातें िर् दखु िया से खछपाते िैं वो भगवाि के आगे बता देते िैं, इससे भी र्ि को शांखत खर्लती िै, बेचैिी ित्र् िोती िै दस ू रा कारण िै वास्त,ु र्ंखदरों का खिर्ाम ण वास्तु को ध्याि र्ें रिकर खकया जाता िै।िर एक चीज वास्तु के अिरू ु प िी बिाई जाती िै, इसखलए विां सकारात्र्क ऊजाम ज्यादा र्ात्रा र्ें िोती िै। तीसरा कारण िै विां जो भी लोग जाते िैं वे सकारात्र्क और खवश्वास भरे भावों से जाते िैं सो विां सकारात्र्क ऊजाम िी अखधक र्ात्रा र्ें िोती िै। चौथा कारण िै र्ंखदर र्ें िोिे वाले िाद यािी शंि और घंखटयों की आवाजें, ये आवाजें वातावरण को शि ु करती िैं। पांचवां कारण िै विां लगाए जािे वाले धपू -बिी खजिकी सगु धं वातावरण को शि ु बिाती िै। इस तरि र्ंखदर र्ें लगभग सभी ऐसी चीजें िोती िैं जो वातावरण की सकारात्र्क ऊजाम को संग्रखित करती िैं। िर् जब र्ंखदर र्ें जाते िैं तो इसी सकारात्र्क ऊजाम का प्रभाव िर् पर पडता िै और िर्ें भीतर तक शांखत का अिसास िोता िै। इसखलए र्ंखदर से लौटिे से पिले विां कुछ देर जरूर बैठिा चाखिए।
शकनवाि को ऐसा किना र्ाना जाता है अशुभ क्योंकक...
शखि को िूर ग्रि र्ािा जाता िै और यि खकसी भी दशा र्ें गलत कायम करिे वालों को र्ॉफ ििीं करता। खजसका जैसा कायम िोगा उसे शखि वैसा िी फल प्रदाि करता िै।बज ु ूगों और खवद्वािों द्वारा शखि के कोप से बचिे के खलए ऐसे कई कायम र्िा खकए गए िैं जो शखिवार के खदि िर्ें ििीं करिे चाखिए। इन्िीं कायों र्ें से एक कायम यि वखजम त िै खक शखिवार को घर र्ें िया लोिा लेकर ििीं आिा चाखिए। इस बात खवशेि ध्याि रििा चाखिए खक शखिवार को खकसी प्रकार की लोिा की कोई िई वस्तु घर र्ें ि लेकर आए। लोिा की वस्तु या खजसके खिर्ाम ण र्ें लोिा का उपयोग िोता िै वे सभी शखिवार को घर ििीं लेकर आिा चाखिए। लोिा शखि की धातु िै और शखिवार को लोिा लेकर आिे से िर्ारे घर पर शखि का प्रभाव बढ़ता िै। यखद घर के खकसी सदस्य पर शखि की अशभु दृखष्ट िो तो उसके खलए यि बरु ा फल देिे वाला खसि िोगा। ऐसे उस सदस्य को कई प्रकार की असफलताएं तथा र्ािखसक तिाव का सार्िा करिा पड सकता िै। इसी वजि से शखिवार को घर र्ें लोिा के कोई भी िई वस्तु लेकर आिा शभु ििीं र्ािा जाता।
क्यों औि क्या किें पूवाजों से आशीवााद पाने के कलए? वेदों र्ें पीपल के पेड को पूज्य र्ािा गया िै। पीपल की छाया तप, साधिा के खलए ऋखियों का खप्रय स्थल र्ािा जाता था।र्िात्र्ा बि ु का बोधक्त खिवाम ण पीपल की घिी छाया से जडु ा िुआ िै। शास्त्रों के अिस ु ार पीपल र्ें भगवाि खवष्णु का खिवास र्ािा गया िै और खवष्णु को खपतृ के देवता र्ािा गया िै क्योंखक प्रखसि ग्रन्थ व्रतराज की अश्वत्थोपासिा र्ें पीपल वक्षृ की र्खिर्ा का उल्लेि िै। इसर्ें अथम वणऋखि खपप्पलादर्खु ि को बताते िैं खक प्राचीि काल र्ें दैत्यों के अत्याचारों से पीखित सर्स्त देवता जब खवष्णु के पास गए और उिसे कष्ट र्खु क्त का उपाय पूछा, तब प्रभु िे उिर खदया-र्ैं अश्वत्थ के रूप र्ें भूतल पर प्रत्यक्ष रूप से खवद्यर्ाि िूं। इसखलए यि र्ान्यता िैं खवष्णु भगवाि के स्वरूप पीपल को खपतृ खिखर्ि जो भी चढ़ाया जाता िै। उससे िर्ारे पूवमजों
को तखृ ि खर्लती िै। इसखलए इस पूवमजों की तखृ ि के खलए पीपल को दधू और जल चढ़ाया जाता िै।
शार् के सर्य घि र्ें दीपक जरूि लगाना चाकहए क्योंकक... दीपक र्ें अखग्ि का वास िोता िै। जो प्ृ वी पर सूरज का रूप िै। धर्म की लगभग िर एक प्रखसि पस्ु तक र्ें संध्या पूजि का खवशेि र्ित्व बताया गया िै। साथ िी संध्या के सर्य घर र्ें दीपक लगािा या प्रकाश करिा भी आवश्यक र्ािा जाता िै। संध्या का शाखब्दक अथम संखध का सर्य िै याखि जिां खदि का सर्ापि और रात शरू ु िोती िै, उसे संखधकाल किा जाता िै। ज्योखति के अिस ु ार खदिर्ाि को तीि भागों र्ें बांटा गया िै- प्रात:काल, र्ध्याह्न और सायंकाल।संध्या पूजि के खलए प्रात:काल का सर्य सूयोदय से छि घटी तक, र्ध्याह्न 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जािा जाता िै। एक घटी र्ें 24 खर्िट िोते िैं। प्रात:काल र्ें तारों के रिते िुए, र्ध्याह्न र्ें जब सूयम र्ध्य र्ें िो तथा सायं सूयाम स्त के पिले संध्या करिा चाखिए। संध्या से तात्पयम पूजा या भगवाि को याद करिे से िैं शास्त्रों की र्ान्यता िै खक खियर्पवू म क संध्या करिे से पापरखित िोकर ब्रह्मलोक की प्राखि िोती िै। रात या खदि र्ें िर् से जािे अिजािे जो बरु े कार् िो जाते िैं, वे खत्रकाल संध्या से िष्ट िो जाते िै। घर र्ें संध्या के दीपक जलािा या प्रकाश रििा आवश्यक र्ािा गया िै क्योंखक घर र्ें शार् के सर्य अंधरे ा रििे पर घर र्ें िकारात्र्क ऊजाम का खिवास िोता िै। घर र्ें बरकत ििीं रिती और घर र्ें अलक्ष्र्ी का वास िोता िै। इसखलए शार् को घर र्ें अंधेरा ििीं रििा चाखिए। साथ िी संध्या के सर्य घी का दीपक भी इसी उदेश्य से लगाया जाता िै। किते िैं इस सर्य घर र्ें घी का दीपक लगािे से घर र्ें उपखस्थत िकारात्र्क ऊजाम तो दरू िोती िी िै। घर र्ें सि ु -सर्खृ ि बढ़ती िैऔर घर र्ें लक्ष्र्ी का स्थाई खिवास िोता िै।
कशव र्कं दि के बाहि बैठे नदं ी की र्कू ता क्यों होती है? खशव पररवार के बारे र्ें सबसे अद्भतु बात यि िै खक खशवजी के पररवार के िर एक सदस्य का वािि दस ु रे के वािि का भोजि िै खशव को र्िाकाल र्ािा जाता िै लेखकि उिका वािि बैल िै। खजसे िंदी किते िैं। इसीखलए िर खशव र्ंखदर र्ें खशवजी के सार्िे िंदी बैठा िोता िै। दरअसल खशवजी का वािि िंदी परुु िाथम यािी र्ेिित का प्रतीक िै। अब सवाल यि बिता िै खक िंदी खशवखलंग की ओर िी र्ि ु करके क्यों बैठा िोता िै? जािते िैं दरअसल िंदी का संदेश िै खक खजस तरि वि भगवाि खशव का वािि िै। ठीक उसी तरि िर्ारा शरीर आत्र्ा का वािि िै। जैसे िंदी की िजर खशव की ओर िोती िै, उसी तरि िर्ारी िजर भी आत्र्ा की ओर िो। िर व्यखक्त को अपिे दोिों को देििा चाखिए। िर्ेशा दस ू रों के खलए अच्छी भाविा रििा चाखिए। िंदी का इशारा यिी िोता िै खक शरीर का ध्याि आत्र्ा की ओर िोिे पर िी िर व्यखक्त चररत्र, आचरण और व्यविार से पखवत्र िो सकता िै। इसे िी आर् भािा र्ें र्ि का साफ िोिा किते िैं। खजससे शरीर भी स्वस्थ िोता िै और शरीर के खिरोग रििे पर िी र्ि भी शांत, खस्थर और दृढ़ संकल्प से भरा िोता िै। इस प्रकार संतखु लत शरीर और र्ि िी िर कायम और लक्ष्य र्ें सफलता के करीब ले जाता िै।
पूजा घि र्ें नहीं िखना चाकहए झाड़ू औि डस्टबीन क्योंकक... किते िैं रोज खियखर्त रूप से भगवाि की पूजा व आराधिा से र्ािखसक शांखत खर्लती िै। पूजा से सकारात्र्क ऊजाम खर्लती िै। पूजा से खर्लिे वाली इस ऊजाम से व्यखक्त अपिा कार् और अखधक एकाग्रता से करिे लगता िै लेखकि पूजा का पूरा फल खर्ले इसके खलए यि आवश्यक िै खक पूजि घर वास्तु के अिरू ु प िो। पूजा घर का वास्तु सिी िोिे पर घर र्ें सि ु व सम्पन्िता बढ़ती िै।
वैसे वास्तु के अिस ु ार पूजा घर ईशान्य कोण र्ें िोिा चाखिए क्योंखक ईशाि कोण र्ें बैठकर पूवम खदशा की और र्िंु करके पूजि करिे से स्वगम र्ें स्थाि खर्लता िै क्योंखक उसी खदशा से सारी ऊजाम एं घर र्ें बरसती िै। ईशान्य साखत्वक ऊजाम ओ ं का प्रर्ि ु स्त्रोत िै। खकसी भी भवि र्ें ईशान्य कोण सबसे ठंिा क्षेत्र िै। वास्तु परुु ि का खसर ईशान्य र्ें िोता िै। खजस घर र्ें ईशान्य कोण र्ें दोि िोगा उसके खिवाखसयों को दभु ाम ग्य का सार्िा करिा पडता िै। इसीखलए घर के इस कोिे की साफ-सफाई का खवशेि ध्याि रििा चाखिए ऐसी र्ान्यता िै खक पूजा घर के ईशाि कोण यािी उिर-पूवी कोिे र्ें झािू व कूडेदाि आखद ििीं रििा चाखिए क्योंखक ऐसा करिे से घर र्ें िकारात्र्क ऊजाम बढ़ती िै और घर र्ें बरकत ििीं रिती िै इसखलए वास्तु के अिस ु ार अगर संभव िो तो पूजा घर को साफ करिे के खलए एक अलग से साफ कपडे को रिें।
र्कं दि र्ें लेदि के पसा औि बेल्ट क्यों नहीं ले जाना चाकहए? िर् जब भी र्ंखदर या खकसी धर्म स्थल पर जाते िैं तो अपिे जूते, बैल्ट, पसम इत्याखद बािर िी छोडकर जाते िैं।ये सभी वस्तएु ं अखधकतर चर्डे की बिी िोती िैं। तो क्या कारण िै खक र्ंखदरों व धर्म स्थलों र्ें चर्डा पििकर ििीं जािा चाखिए?र्ंखदरों व धर्म स्थलों र्ें चर्डा वखजम त क्यों िै?चर्डे को धाखर्म क दृखष्ट से अपखवत्र र्ािा जाता िै। चर्डे की वस्तु पििकर कोई भी पूजाअिष्ठु ाि ििीं खकया जा सकता।चखूं क चर्डा जािवरों की िाल से बिाया जाता िै इसखलए अपखवत्र र्ािा जाता िै। इसखलए धर्म की दृखष्ट से चर्डा अपखवत्र िै।वैज्ञाखिक दृखष्ट से भी चर्डे की बिी वस्तओ ु ं को अपखवत्र र्ािा जाता िै। खवज्ञाि भी यि खसि कर चक ु ा िै खक चर्डे र्ें पशओ ु ं की िाल का उपयोग खकया जाता िै। र्रे िुए जािवरों के शरीर से चर्डा उतारकर आज फै शि की उच्चकोखट की वस्तएु ं बिायी जा रिी िैं। खकसी की बखल लेकर उसके शरीर की िाल का यि इस्तेर्ाल कै से पखवत्र र्ािा जा सकता िै?इि वस्तओ ु ं को दगु म न्ध रखित बिािे के खलए के खर्कल्स का प्रयोग करते िैं जो शरीर
के खलए िक ु सािदायक िोता िै। आप िदु िी इस बात को सच र्ािते िैं खक खकसी भी वस्तु को साफ करिे या अच्छा बिािे के खलए उसे पािी से धोया जाता िै।पर चर्डा पािी र्ें िराब िोिे लगता िै और सिऩे लगता िै जो िर्ारे शरीर के खलए िक ु सािदायक िोता िै। इसखलए जिां तक िो सके चर्डे के उपयोग से बचिा चाखिए।
बेकटयों के घि खाली हाि क्यों नहीं जाना चाकहए? बेखटयां तो बाबल ु की राखियां िै। र्ीठी-र्ीठी प्यारी-प्यारी ये किाखियां िै। सबके खदल की सारे घर की ये राखियां िै ये खचखिया एक खदि फुरम से उड जािीयां िै... खजस तरि इस खफल्र्ी गीत की ये पंखक्तयां खदल को छू जाती िै। ठीक उसी तरि बेखटयों के चिकिे से घर का िर त्यौिार िखु शयों से भर जाता िै लेखकि बेखटयों को एक खदि अपिे ससरु ाल जािा िी पडता िै क्योंखक यिी परंपरा िै।।बेखटयां एक िी कुल को ििीं बखल्क दो कुलों को रोशि करती िैं। आपिे बढ़े बज ु ूगों को अक्सर किते सिु ा िोगा खक बेखटयों के ससरु ाल र्ें र्ाता-खपता या अन्य र्ायके वालों को कभी िाली िाथ ििीं जािा चाखिए। दरअसल िर परंपरा के पीछे िर्ारे पूवमजों की कोई गिरी सोच जरूर रिी िै। बेखटयों की शादी र्ें कई रस्र्ें िोती िै। खजिके खबिा शादी िोती िी ििीं िै। उन्िीं रस्र्ों र्ें से एक िै कन्यादाि। कन्यादाि शादी का र्ख्ु य अंग र्ािा गया िै। शास्त्रों के अिस ु ार दाि करिा पण्ु य कर्म िै और इससे ईश्वर की कृपा प्राि िोती िै। दाि के र्ित्व को ध्याि र्ें रिते िुए इस संबंध र्ें कई खियर् बिाए गए िैं ताखक दाि करिे वाले को अखधक से अखधक धर्म लाभ प्राि िो सके । इसी से जडु ी एक परंपरा और भी िै वि यि खक बेखटयों के घर िाली िाथ ििीं जािा चाखिए यािी खबिा खकसी तरि की भेंट खलए बेटी के घर जािा शास्त्रों के अिस ु ार भी उखचत ििीं र्ािा जाता िै। शास्त्रों र्ें किा गया िै बेटी, वैद्य और ज्योखति के घर कभी िाली िाथ ििीं जािा चाखिए क्योंखक शास्त्रों के अिस ु ार इन्िें दाि करिे पर बिुत अखधक पण्ु य फल की प्राखि िोती िै और क न्यादाि के पण्ु य फल र्ें वखृ ि िोती िै। साथ िी यि ज्योखतिीय र्ान्यता या उपाय भी िै खक घर की दररद्रता खर्टािे के खलए बेखटयों को दाि देिा चाखिए किते िैं इससे र्ायके र्ें
सि ु व सम्पन्िता बढ़ती िै। इसीखलए किा जाता िै खक बेखटयों के घर कभी िाली िाथ ििीं जािा चाखिए।
ककताबों की अलर्ािी खल ु ी नहीं िोडऩी चाकहए क्योंकक... किते िैं खकताबें इंसाि की सबसे अच्छी दोस्त और तन्िाई की सबसे अच्छी साथी िोती िैं। कुछ लोग अपिा पूरा िाली वक्त खकताबों के साथ िी खबतािा पसंद करते िैं। खजि लोगों को खकताबों से खवशेि लगाव िोता िै वे लोग अक्सर अपिे घरों र्ें छोटी सी लाइब्रेरी या अलर्ारी र्ें खकताबें एकखत्रत करके रिते िैं। लेखकि वास्तु के अिस ु ार घर र्ें खकताबें रििे वाले को यि ध्याि रििा चाखिए खक खकताबों को िर्ेशा बंद अलर्ारी र्ें रििा चाखिए। कभी भी खकताबों को िल ु ी अलर्ारी र्ें ििीं रिा जािा चाखिए क्योंखक वास्तु के अिस ु ार िल ु ी अलर्ारी र्ें पस्ु तक रििे से पस्ु तकें अशभु ऊजाम उत्पन्ि करती िैं। फें गशईु के अिस ु ार घर र्ें ची ऊजाम का प्रवाि ििीं िो पाता िै। खवशेिकर खजस व्यखक्त के कर्रे र्ें िल ु ी अलर्ारी र्ें ये पस्ु तके रिी जाती िै उसे िकारात्र्क खवचार अखधक आते िैं। वास्तु के अिस ु ार पस्ु तक की अलर्ारी िल ु ी ििीं छोिऩी चाखिए व िल ु ी अलर्ारी र्ें खकताबें ििीं रििा चाखिए।
क्यों औि क्या किें ताकक होने वाला बच्चा औि र्ां दोनों िहें स्वस्ि? र्ाता और उसके गभम र्ें पल रिा खशशु दोिों की सरु क्षा और सेित अच्छी बिी रिे, इसके खलए गभम वती स्त्री के िािे-पीिे का खवशेि ध्याि रिा जाता िै। सभी गभम वती र्खिलाओं को अखिवायम रूप से प्रखतखदि दधू र्ें के सर घोलकर पीिे को खदया जाता िै।ऐसी र्ान्यता िै खक के सर का
दधू पीिे से खशशु का रंग गोरा िोता िै परंतु इसके कई आयवु ेखदक गणु ों की वजि से यि परंपरा प्राचीि काल से िी चली आ रिी िै।के सर एक औिखध िै इसका अंग्रेजी िार् सेफरि िै। इस स्वभाव गर्ी देिे वाला िोता िै। आयवु ेद के अिस ु ार इसके खियखर्त सेवि से खपि, कफ, पेट संबंखधत अिेक परेशाखियों अपच, पेट र्ें ददम , वायु खवकार आखद ििीं िोते। गभम वती स्त्री और उसके बच्चे को इि सभी बीर्ाररयों के प्रभाव से बचािे के खलए उन्िें के सर का सेवि कराया जाता िै। साथ िी के सर सार्ान्य र्खिलाओं के खलए भी बिुपयोगी िै। इससे खस्त्रयों र्ें िोिे वाली अखियखर्त र्ाखसक स्राव एवं इस दौराि िोिे वाले ददम र्ें लाभ खर्लता िै।यखद खकसी स्त्री के गभाम शय की सूजि िै तो उसके खलए के सर का सेवि फायदेर्दं रिता िै।
इस कदन की जाती है कबना र्हु ूता की शादी क्योंकक... र्ान्यता िै खक खकसी की शादी का र्िु ूतम अगर ििीं खिकल रिा िो तो उसकी शादी अक्षय ततृ ीया को खबिा र्िु ूतम देिे खक जा सकती िै क्योंखक शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक वैसे तो सभी बारि र्िीिों की शक्ु ल पक्षीय ततृ ीया शभु िोती िै, लेखकि वैशाि र्ाि की खतखथ स्वयंखसि र्िु ूतो र्ें र्ािी गई िै। भखवष्य परु ाण के अिस ु ार इस खतखथ की यगु ाखद खतखथयों र्ें गणिा िोती िै, सतयगु और त्रेता यगु का प्रारंभ इसी खतखथ से िुआ िै। भगवाि खवष्णु िे िर-िारायण, ियग्रीव और परशरु ार् जी का अवतरण भी इसी खतखथ को खलया था।ब्रह्माजी के पत्रु अक्षय कुर्ार का जन्र् भी इसी खदि िुआ था। किते िैं अक्षय ततृ ीया के खदि ऐसे खववाि भी र्ान्य िोते िैं, खजिका र्िु ूतम साल भर ििीं खिकल पाता िै। दूसरे शब्दों र्ें ग्रिों की दशा के चलते अगर खकसी व्यखक्त के खववाि का खदि ििीं खिकल पा रिा िै, तो अक्षय ततृ ीया के खदि खबिा लग्ि व र्िु ूतम के खववाि िोिे से उसका दांपत्य
जीवि सफल िो जाता िै। यिी कारण िै खक राजस्थाि, र्ध्य प्रदेश, छिीसगढ़, उडीसा, बंगाल आखद र्ें आज भी अक्षय ततृ ीया के खदि िजारों की संख्या र्ें खववाि िोते िैं। र्ािा जाता िै खक खजिके अटके िुए कार् ििीं बि पाते िैं, व्रत उपवास करिे के बावजूद खजिकी र्िोकार्िा की पूखतम ििीं िो पा रिी िो और खजिके व्यापार र्ें लगातार घाटा चल रिा िो तो ऐसे लोगों के कार् की िई शरुु आत के खलए अक्षय ततृ ीया का खदि बेिद शभु र्ािा जाता िै।
अक्षय तृतीया के कदन नया कार् किना शरू ु किना शभ ु क्यों र्ाना जाता है? अक्षय ततृ ीया या आिा तीज वैशाि र्ास र्ें शक्ु ल पक्ष की ततृ ीया खतखथ को किते िैं। इस खतखथ को आिातीज के िार् से भी पक ु ारा जाता िै।पौराखणक ग्रंथों के अिस ु ार इस खदि जो भी शभु कायम खकये जाते िैं, उिका अक्षय फल खर्लता िै।इसी कारण इसे अक्षय ततृ ीया किा जाता िै खक इस खदि शरू ु खकए जािे वाले कार् का अक्षय फल खर्लता िै। ऐसा र्ािा जाता िै खक आज के खदि जािे-अिजािे अपराधों की सच्चे र्ि से ईश्वर से क्षर्ा प्राथम िा करे तो भगवाि उसके अपराधों को क्षर्ा कर देते िैं और उसे सदगणु प्रदाि करते िैं, अतः आज के खदि अपिे दगु म णु ों को भगवाि के चरणों र्ें सदा के खलये अखपम त कर उिसे सदगणु ों का वरदाि र्ांगिा चाखिए।पौराखणक किाखियों के र्तु ाखबक, इसी खदि र्िाभारत की लडाई ित्र् िुई। द्वापर यगु का सर्ापि भी इसी खदि िुआ। इसी खदि भगवाि श्रीकृष्ण िे यखु धखष्ठर के पूछिे पर यि बताया था खक आज के खदि जो भी रचिात्र्क या सांसाररक कायम करोगे, उसका पण्ु य खर्लेगा। कोई भी िया कार्, िया घर और िया कारोबार शरू ु करिे से उसर्ें बरकत और ख्याखत खर्लेगी। र्ािा जाता िै खक अक्षय ततृ ीया के खदि स्िाि, ध्याि, जप तप करिा, िवि करिा, स्वाध्याय खपतृ तपम ण करिा और दाि पण्ु य करिे से पण्ु य खर्लता िै। देवताओं की पूजा
करिे को भी उन्िोंिे पण्ु य बताया िै। इसीखलए इस खदि कोई भी िया कार् शरू ु करिा बिुत शभु र्ािा जाता िै।
क्यों नहीं खिीदना चाकहए शकनवाि को नई गाडी? शखि को न्यायधीश र्ािा गया िै। यि काफी कठोर ग्रि िै। इसकी िूरता से सभी भलीभांखत पररखचत िैं। इसी वजि से सभी का प्रयत्ि रिता िै खक शखि देव खकसी भी प्रकार से रुष्ट िा िो।शखि को िूर ग्रि र्ािा जाता िै और यि खकसी भी दशा र्ें गलत कायम करिे वालों को र्ॉफ ििीं करता। खजसका जैसा कायम िोगा उसे शखि वैसा िी फल प्रदाि करता िै।बज ु ूगों और खवद्वािों द्वारा शखि के कोप से बचिे के खलए ऐसे कई कायम र्िा खकए गए िैं जो शखिवार के खदि िर्ें ििीं करिे चाखिए। इन्िीं कायों र्ें से एक कायम यि वखजम त िै खक शखिवार को घर र्ें िया लोिा लेकर ििीं आिा चाखिए। इस बात खवशेि ध्याि रििा चाखिए खक शखिवार को खकसी प्रकार की लोिा की कोई िई वस्तु घर र्ें ि लेकर आए। लोिा की वस्तु या खजसके खिर्ाम ण र्ें लोिा का उपयोग िोता िै जैसे: खबखल्िंग र्टेररयल र्ें उपयोग िोिे वाला सररया, र्ोटर बाइक, कार, कम्प्यूटर आखद वस्तएु ं खजिर्ें लोिा का प्रयोग िोता िै।वे सभी शखिवार को घर ििीं लेकर आिा चाखिए। लोिा शखि की धातु िै और शखिवार को लोिा लेकर आिे से िर्ारे घर पर शखि का प्रभाव बढ़ता िै। यखद घर के खकसी सदस्य पर शखि की अशभु दृखष्ट िो तो उसके खलए यि बरु ा फल देिे वाला खसि िोगा। ऐसे उस सदस्य को कई प्रकार की असफलताएं तथा र्ािखसक तिाव का सार्िा करिा पड सकता िै। इसी वजि से शखिवार को घर र्ें लोिा के कोई भी िई वस्तु लेकर आिा शभु ििीं र्ािा जाता िै।
क्या होता है दुल्हन के सात वचनों र्ें? शादी एक ऐसा र्ौका िोता िै जब दो इंसािो के साथ-साथ दो पररवारों का जीवि भी पूरी तरि बदल जाता िै। खववाि र्ें सबसे र्ख्ु य रस्र् िोती िै फे रों की।खिन्दू धर्म के अिस ु ार सात फे रों
के बाद िी शादी की रस्र् पूणम िोती िै सात फे रों के बाद सात वचि खलए जाते िैं कन्या द्वारा खलए जािे वाले सातवचि इस प्रकार िै। खववाि के बाद कन्या वर के वार् अंग र्ें बैठिे से पूवम उससे सात वचि लेती िै। 1-तीिाव्रतोद्यापनयज्ञ दानं र्या सह त्वं यकद कान्तकुयाा:। वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद वाक्यं प्रिर्ं कुर्ािी।। कन्या किती िै,स्वाखर्ि् तीथम व्रत ,उद्यापि,यज्ञ,दाि आखद सभी शभु कायम तर्ु र्ेरे साथ करो तो र्ें तम्ु िारे वार् अंग र्ें आऊ।। 2-हव्यप्रदानैिर्िान् कपतृश्चं कव्यं प्रदानैयाकद पूजयेिा:। वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं कितीयकर्।् । यखद तर्ु िव्य देकर देवताओं को और कव्य देकर खपतरों की पूजा करो तो र्ैं तम्ु िारे वार् अंग र्ैं आऊॅ। 3-कुटुम्बिक्षाभिंणं यकद त्वं कुयाा: पशूनां परिपालनं च। वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं तृतीयर्।् । यखद तर्ु र्ेरी तथा पररवार की रक्षा करो तथा पशओ ु ं का पालि करो तो र्ै तम्ु िारे वार् अंग र्ै आऊाँ।यि तीसरी बात कन्या िे किी। 4-आयं व्ययं धान्यधनाकदकानां पृष्टवा कनवेशं प्रगृहं कनदध्या:।। वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं चतुिाकर्।् । यखद तर्ु धि-धान्याखदकों का आय व्यय र्ेरी सम्र्ती से करो तो र्ै तम्ु िारे वाग अंग र्ें आऊाँ।यि चौथा वचि िै। 5-देवालयािार्तडागकूपं वापी कवदध्या:यकद पूजयेिा:। वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं पंचर्र्।् ।
यखद देवालय,बाग,कूप,तालाब,बावली बिवाकर पूजा करो तो र्ैं तम्ु िारे वाग अंग र्ें आऊाँ। 6-देशान्तिे वा स्वपुिान्तिे वा यदा कवदध्या:क्रयकवक्रये त्वर्।् वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं षष्ठर्।् । यखद तर्ु अपिे िगर र्ें या खकसी खवदेश र्ें जाकर व्यापार या िौकरी करो तो र्ैं तम्ु िारे वाग अंग र्ें आऊाँ। 7-न सेवनीया परिकी यजाया त्वया भवेभाकवकन कार्नीश्च। वार्ांगर्ायाकर् तदा त्वदीयं जगाद कन्या वचनं सिर्।् । यखद तर्ु परायी स्त्री को स्पशम ि करो तो र्ैं तम्ु िारे वार् अंग र्ें आऊाँ।यि सातवां वचि िै।
कवधवाओ ं के कलए सहु ागनों सा श्रगृं ाि वकजात क्यों? किते िैं पत्िी-पखत की अद्रध् ांखगिी िोती िै अथाम त जब खववाि िोता िै तब दो लोग एक िो जाते िैं। र्ैं खववाि के बाद िर् बि जाता िै। स्त्री का धि उसका पखत िोता िै। खियखत या दभु ाम ग्य के कारण जब खकसी स्त्री का पखत इस दखु िया को छोड देता िै, तो उस स्त्री को जीवि र्ें असंख्य चिु ौखतयों और कखठिाइयों का सार्िा करिा पडता िै। खवधवा या खविो के रुप र्ें उसे कडे संघिों से िोकर गज ु रिा पडता िै। भारतीय संस्कृखत र्ें दखु िया से अलग अपिी अिोिी िी सोच व र्ान्यताएं िैं। भारतीय िाररयों का गििा प्रेर् सारी दखु िया र्ें खवख्यात िै। इतिा िोिे पर भी यि भारत िी िै, जिां की िाररयां यि सोचती िैं खक स्त्री के खलये उसका पखत िी सवम श्रेष्ठ गििा या आभूिण िै। र्खिलाओं का सजिा-धजिा सबकुछ खसफम अपिे पखत के खलए िै। इसीखलए िर्ारे यिां सिु ागि खस्त्रयों के खलए श्रंगृ ार अखिवायम र्ािा जाता िै। खववाखिता स्त्री का श्रंगृ ार अपिे पखत के प्रखत अटूट और एकखिष्ठ
प्रेर् िी उसे दखु िया से अलग पिचाि और गौरव खदलाता िै। जीवि के िर क्षेत्र र्ें धर्म और अध्यात्र् का गिराई से शाखर्ल िोिा खकसी सर्ाज की र्िाि परंपराओं को दशाम ता िै। इसखलए सिु ागिों के खलए श्रंगृ ार को जरूरी र्ािा गया िै जबखक खवधवाओं के खलए सफे द खलबास को अखधक उपयक्त ु र्ािा गया िै। रंगों के खवज्ञाि की अलग िी दखु िया और अिखर्यत िै। प्रर्ि ु सात रंगों र्ें से िर एक रंग का अपिा िास प्रभाव और र्ित्व िोता िै। सूयम के सात रंगों का आज खचखकत्सा के रुप र्ें प्रयोग िोिे लगा िै। सफे द रंग सवाम खधक पखवत्र और साखत्वक रंग िै। खवधवा या खविो स्त्री का पखत खविीि जीवि कई संघिों से भरा िोता िै। ऐसे र्ें खवधवा स्त्री को ईश्वर की कृपा और सिारे की सबसे ज्यादा जरूरत िोती िै। सफे द रंग का खलबास उसे र्िोबल और साखत्वकता प्रदाि करता िै। जीवि की सभी खजम्र्ेदाररयों और चिु ौखतयों का सफलता से सार्िा करिे र्ें सफे द रंग के पििावे की बडी अिर्् भूखर्का िोती िै। यिी कारण रिा िै खक खवधवा खस्त्रया स्वयं की र्रजी से िी सफे द रंग का खलबास पिििे लगती िैं।
दीपक हर्ेशा कवषर् सख्ं या र्ें लगाने चाकहए क्योंकक... दीपक ज्ञाि और रोशिी का प्रतीक िै। पूजा र्ें दीपक का खवशेि र्ित्व िै। आर्तौर पर खविर् संख्या वाले दीप प्रज्जवखलत करिे की परंपरा चली आ रिी िै। दीप प्रज्जवलि का भाव िै। िर् अज्ञाि का अंधकार खर्टाकर अपिे जीवि र्ें ज्ञाि के प्रकाश के खलए परुु िाथम करें। प्राय: दीपक एक, तीि, पांच और सात की खविर् संख्या र्ें िी जलाए जाते िैं ऐसा र्ाििा िै। खविर् संख्या र्ें दीपों से वातावरण र्ें सकारात्र्क ऊजाम उत्पन्ि िोती िै। दीपक जलािे से वातावरण शि ु िोता िै। दीपक र्ें गाय के दधु से बिा घी प्रयोग िो तो अच्छा अथवा अन्य घी या तेल का प्रयोग भी खकया जा सकता िै। गाय के घी र्ें रोगाणओ ु ं को भगािे की क्षर्ता िोती िै। यि घी जब दीपक र्ें अखग्ि के संपकम से वातावरण को पखवत्र बिा देता िै। प्रदूिण दूर िोता िै। दीपक जलािे से पूरे घर को फायदा खर्लता िै। चािे वि पूजा र्ें सखम्र्खलत
िो अथवा ििीं। दीप प्रज्जवलि घर को प्रदिू ण र्क्त ु बिािे का एक िर् िै। दीपक र्ें अखग्ि का वास िोता िै। जो प्ृ वी पर सूरज का रूप िै।
इस सर्य र्ें नहीं किना चाकहए कोई भी शभ ु कार् क्योंकक... ऐसा र्ािते िैं खक शभु र्िु ूतम र्ें खकया गया कायम सफल व शभु िोता िै। लेखकि भारतीय ज्योखति के अिस ु ार खदि र्ें एक सर्य ऐसा भी आता िै जब कोई शभु कायम ििीं खकया जाता। वि सर्य िोता िै रािुकाल। रािुकाल के बारे र्ें ऐसा किते िैं खक इस दौराि यखद कोई शभु कायम , लेि-देि, यात्रा या कोई िया कार् शरू ु खकया जाए तो वि अशभु फल देता िै। यि बात परु ाति काल से ज्योखतिाचायम िर्ें बता रिे िैं। लेखकि रािुकाल र्ें ऐसा क्या िोता िै खक इसर्ें खकए गए कायम अशभु या असफल िोते िैं? इसका पीछे का तकम यि िै खक ज्योखति के अिस ु ार रािु को पाप ग्रि र्ािा गया िै। खदि र्ें एक सर्य ऐसा आता िै जब रािु का प्रभाव काफी बढ़ जाता िै और उस दौराि यखद कोई भी शभु कायम खकया जाए तो उस पर रािु का प्रभाव पडता िै, खजसके कारण या तो वि कायम अशभु िो जाता िै या उसर्ें असफलता िाथ लगती िै। यिी सर्य रािुकाल किलाता िै।
कब-कब होता है िाहुकाल? प्रत्येक खदि एक खिखश्चत सर्य रािुकाल िोता िै। यि िेढ़ घंटे का िोता िै। वारों के खिसाब से इसका सर्य इस प्रकार िैसोर्वाि सबु ह 7:&0 से 9:00 र्ंगलवाि दोपहि &:00 से 4:&0
बधु वाि दोपहि 12:00 से 1:&0 गरु ु वाि दोपहि 1:&0 से &:00 शक्र ु वाि सबु ह 10:&0 से 12:00 शकनवाि सबु ह 9:00 से 10:&0 िकववाि शार् 4:&0 से 6:00
भगवान के भोग र्ें डाले जाते हैं तल ु सी के पत्ते क्योंकक... भगवाि को भोग लगे और तल ु सी दल ि िो तो भोग अधूरा िी र्ािा जाता िै। तल ु सी को परंपरा से भोग र्ें रिा जाता िै क्योंखक शास्त्रों के अिस ु ार तल ु सी को खवष्णु जी की खप्रय र्ािी जाती िै। शास्त्रों के अिस ु ार तल ु सी िालकर भोग लगािे पर चार भार चांदी व एक भार सोिे के दाि के बराबर पण्ु य खर्लता िै और खबिा तल ु सी के भगवाि भोग ग्रिण ििीं करते उसे अस्वीकार कर देते िैं। भोग र्ें तल ु सी िालिे के पीछे खसफम धाखर्म क कारण ििीं िै बखल्क इसके पीछे अिेक वैज्ञाखिक कारण भी िै।तल ु सी दल का औिधीय गणु िै। एकर्ात्र तल ु सी र्ें यि िबू ी िै खक इसका पिा रोगप्रखतरोधक िोता िै। याखि खक एंटीबायोखटक। संभवत: भोग र्ें तल ु सी को अखिवायम खकया गया खक इस बिािे िी सिी लोग खदि र्ें कर् से कर् एक पिा ग्रिण करें ताखक उिका स्वास््य ठीक रिे। इस तरि तल ु सी स्वास््य देिे वाली िै। तल ु सी का पौधा र्लेररया के कीटाणु िष्ट करता िै। िई िोज से पता चला िै इसर्ें कीिोल, एस्काखबम क एखसि, के रोखटि और एल्के लाइि िोते िैं। तल ु सी पत्र खर्ला िुआ पािी पीिे से कई रोग दरू िो जाते िैं। इसीखलए चरणार्तृ र्ें तल ु सी का पिा िाला जाता िै। तल ु सी के स्पशम से भी रोग दूर िोते िैं। तल ु सी पर खकए गए प्रयोगों से खसि िुआ िै खक रक्तचाप और पाचितंत्र के खियर्ि र्ें तथा र्ािखसक रोगों र्ें यि लाभकारी िै।
इससे रक्तकणों की वखृ ि िोती िै। तल ु सी ब्रह्मचयम की रक्षा करिे एवं यि खत्रदोििाशक िै। रक्तखवकार, वाय,ु िांसी, कृखर् आखद की खिवारक िै तथा हृदय के खलए खितकारी िै।
बजिगं बाण का पाठ क्यों किना चाकहए? ििर्ु ािजी को अष्टखचरंजीवीयों र्ें से एक िै। यिी कारण िै खक िर यगु और काल र्ें श्री ििर्ु ाि का स्र्रण सि ु दायी और संकटिाशक र्ािा गया िै। श्री ििर्ु ाि के प्रखत ऐसी आस्था और खवश्वास के साथ ििर्ु ािजी को र्िािे के खलए सबसे सरल उपाय िै ििर्ु ाि चालीसा का खित्य पाठ। इसके पाठ से भक्त को असीर् आिंद की प्राखि िोती िै। तल ु सीदास द्वारा रखचत ििर्ु ाि चालीसा बिुत प्रभावकारी िै। इसकी सभी चौपाइयां र्ंत्र िी िैं। खजिके खिरंतर जप से ये खसि िो जाती िै और पविपत्रु ििर्ु ािजी की कृपा प्राि िो जाती िै। लेखकि ििर्ु ाि का एक और रूप बजरंगबली की आराधिा भी कई दि ु ों को दरू करिे वाली र्ािी गई िै। इिके बजरंगबली िार् के पीछे भी वज्र शब्द का योगदाि िै। संस्कृत र्ें एक शब्द िै वज्र: या वज्रर्् खजसका अथम िै खबजली, इन्द्र का शस्त्र , िीरा अथवा इस्पात। इससे िी खिन्दी का वज्र शब्द बिा िै। इन्द्र के पास जो वज्र था वि र्िखिम दधीखच की िि्खियों से बिा था। ििर्ु ाि वािरराज के सरी और अंजिी के पत्रु थे। के सरी को ऋखि-र्खु ियों िे अत्यंत बलशाली और सेवाभावी संताि िोिे का आशीवाम द खदया। इसीखलए ििर्ु ाि का शरीर लोिे के सर्ाि कठोर था। इसीखलए उन्िें वज्रांग किा जािे लगा। ऐसी र्ान्यता िै खक बजरंग बाण का पाठ करिे से आत्र्खवश्वास की कर्ी दूर िोती िै। बजरंगबली इसका पाठ करिे वाले को खवपररत पररखस्थतयों र्ें लिऩे की क्षर्ता देते िै। किते िैं यखद खकसी पर कोटम के स चल रिा िो या बीर्ाररयां परेशाि कर रिी िो तो बजरंगबाण का पाठ करिा चाखिए।
र्न की शाकं त के कलए कदनभि र्ें जरूि किें ये पाचं कार्....
खिंदू धर्म र्ें अिेक परंपराएं प्रचखलत िैं। इि परंपराओं के पीछे खसफम धाखर्म क कारण िी ििीं बखल्क वैज्ञाखिक कारण भी िै। इिर्ें से कुछ परंपराएं ऐसी िै खजिका खिवाम ि करिे से र्ािखसक शांखत खर्लती िै। ये पंरपराएं इस प्रकार िै। ब्रह्म र्िु ूतम र्ें उठिे की परंपरा काफी परु ािी िै। इसका कारण इस प्रकार िै-राखत्र के अंखतर् प्रिर को ब्रह्म र्िु ूतम किते िैं। िर्ारे ऋखि र्खु ियों िे इस र्िु ूतम का खवशेि र्ित्व बताया िै। उिके अिस ु ार यि सर्य खिद्रा त्याग के खलए सवोिर् िै। ब्रह्म र्िु ूतम र्ें उठिे से सौंदयम , बल, खवद्या, बखु ि और स्वास््य की प्राखि िोती िै। सबु ि उठते िी सबसे पिले िर्ें िर्ारे िाथों का दशम ि करिा चाखिए। शास्त्रों र्ें कर्म को प्रधाि बताया गया और िाथों से कर्म खकए जाते िैं। साथ िी एक और भी र्ान्यता िै खक िर्ारे िाथों र्ें खवष्ण,ु लक्ष्र्ी और सरस्वती का वास िोता िै। सबु ि-सबु ि इिके दशम ि से खदि अच्छा रिता िै। इससे र्ि को शांखत खर्लती िै। र्ंखदर र्ें िोिे वाले िाद यािी शंि और घंखटयों की आवाजें, ये आवाजें वातावरण को शि ु करती िैं। किते िैं र्ंखदर जािे से आखत्र्क शांखत खर्लती िै। विां लगाए जािे वाले धूप-बिी खजिकी सगु ंध वातावरण को शि ु बिाती िै। इस तरि र्ंखदर र्ें लगभग सभी ऐसी चीजें िोती िैं जो वातावरण की सकारात्र्क ऊजाम को संग्रखित करती िैं। िर् जब र्ंखदर र्ें जाते िैं तो इसी सकारात्र्क ऊजाम का प्रभाव िर् पर पडता िै और िर्ें भीतर तक शांखत का अिसास िोता िै। अष्टांग योग के खवद्वािों के अिस ु ार ध्याि से िर् िदु को खििार सकते िैं। सबु ि के सर्य िर्ारा शरीर और र्ि दोिों स्फूखतम भरे िोते िैं। ताजगी का एिसास िोता िै और खदर्ाग र्ें खकसी प्रकार का दबाव ििीं िोता। सबु ि ध्याि करिे से खकसी तरि की बातें और खवचार िर्ारे खदर्ाग र्ें खदिभर ििीं चलते िैं, खजससे िर्ारे स्वास््य और व्यविार दोिों पर सकारात्र्क प्रभाव पडता िै। रात को सोिे से पिले भगवाि का स्र्रण या र्ंत्र जप करें इससे बिुत गिरी िींद आती िै इससे र्ािखसक शांखत खर्लती िै।
भगवान कृष्ण के हाि र्ें र्िु ली क्यों?
शास्त्रों के अिस ाँ रु ी बजाते थे तो उसर्ें अलौखकक आकिम ण िोता था। कृष्ण ु ार जब कृष्ण बास और र्रु ली एक दस ू रे के पयाम य रिे िैं। र्रु ली के खबिा श्री कृष्ण की कल्पिा भी ििीं की जा सकती । उिकी र्रु ली के िाद रूपी ब्रह्म िे सम्पूणम सखृ ष्ट को आलोखकत और सम्र्ोखित खकया। दरअसल कृष्ण की बांसरु ी उिके स्वभाव की र्धरु ता का प्रतीक िै। कृष्ण के िाथ र्ें बांसरु ी का र्तलब जीवि र्ें कै सी भी घडी आए िर्ें घबरािा ििीं चाखिए। भीतर से शांखत िो तो संगीत जीवि र्ें उतरता िै। ऐसे िी अगर भखक्त पािा िै तो अपिे भीतर शांखत कायर् करिे का प्रयास करें। साथ िी शास्त्रों के अिस ु ार कृष्ण के बचपि के अलावा और किीं उिके बांसरु ी वादि का उल्लेि ििीं खर्लता िै। कृष्ण की बांसरु ी प्रेर्, कलात्र्कता व रचिात्र्कता का प्रतीक िै। इसखलए कृष्ण का बांसरु ी वादि इस तरफ भी इशारा करता िै खक बचपि र्ें बच्चों की कलात्र्कता व रचिात्र्कता पर ज्यादा ध्याि देिा चाखिए क्योंखक इससे उिके र्ि र्ें संवेदिाएं उत्पन्ि िोती िै और उिका सवांखगण खवकास िोता िै।
कतजोिी र्ें जरूि िखना चाकहए पूजा की सुपािी क्योंकक.... किते िैं पूजा से र्ि को शांखत व एकाग्रता खर्लती िै। इसीखलए लोग अपिे घर र्ें अक्सर खकसी त्यौिार या खवशेि उपलक्ष्य पर पूजि का आयोजि करते िैं। पूजि के सर्य सवम प्रथर् श्री गणेश का पूजि खकया जाता िै। गणेशजी की र्खु तम की स्थापिा के साथ िी पूजा की सपु ारी र्ें भी गणेश जी का आवाह्न खकया जाता िै क्योंखक पूजि के सर्य सबसे पिले गौरी व गणेश की स्थापिा जरूरी र्ािी जाती िै। गणेशजी का आवाह्न पूजा की सपु ारी र्ें खकया जाता िै क्योंखक शास्त्रों के अिस ु ार पूजा की सपु ारी को पूणम फल र्ािा जाता िै। पूजा की सपु ारी पूणम व अिंखित िोती िै। इसीखलए इसको पूजा के सर्य गौरी-गणेश का रूप र्ािकर उस पर जिेऊ चढ़ाई जाती िै।
बाद र्ें उस पूजा की सपु ारी का क्या करें अखधकतर लोगों के र्ि र्ें यिी दखु वधा रिती िै? किा जाता िै खक पूजा सपु ारी को पूजि के बाद खतजोरी र्ें रििा चाखिए क्योंखक शास्त्रों के अिस ु ार यि र्ान्यता िै खक जिां गणेशजी यािी बखु ि के स्वार्ी का खिवास िोता िै विीं लक्ष्र्ी का खिवास िोता िै। इसीखलए पूजा सपु ारी को पूजि के बाद खतजोरी र्ें रििा चाखिए क्योंखक इससे घर र्ें सि ु -सर्खृ ि बढऩे के साथ िी घर र्ें लक्ष्र्ी का स्थाई खिवास िोता िै।
ऐसी वस्तओ ु ं को नदी र्ें बहा देना ही शभ ु है क्योंकक... पूजा रूर् से िटाया गया कोई भी सार्ाि चािे वि र्ूखतम िो, खपतृ को या भगवाि को उपले पर लगाए गए भोग की राि िो या फूल घर के खकसी और जगि पर िा रिें। ऐसी वस्तओ ु ं को खकसी िदी र्ें प्रवाखित कर देिा शभु िोता िै लेखकि ये बिुत कर् लोग जािते िैं खक इि सभी चीजों को पूजास्थल से िटािे के बाद घर र्ें क्यों ििीं रििा चाखिए? दरअसल ताजे फूलों को पूजा र्ें िर्ेशा रिा जाता िै। इसका कारण यि िै खक फूल की िश्ु बू और सन्ु दरता पूजि करिे वाले के र्ि को सन्ु दरता और शांखत का एिसास खदलावाती िै। ऐसा र्ािा जाता िै खक जब पज ृ ि ू ा र्ें इिका उपयोग खकया जाता िै, तो फूल अद्भतु ऊजाम का सज पूरे घर र्ें करते िै और इससे घर र्ें िखु शयों का आगर्ि िोता िै। जबखक इसके खवपररत र्रु झाये फूल र्त्ृ यु के सचु क र्ािे जाते िैं। साथ िी िर्ेशा पूजि आखद कर्म करते सर्य यि बात ध्याि रििी चाखिए खक घर र्ें खकसी तरि की िंखित र्ूखतम ििीं रििा चाखिए। वास्तु के अिस ु ार िंखित र्ूखतम की पूजा को अपशकुि र्ािा गया िै।शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्खु तम के पूजि से अशभु फल की प्राखि िोती िै। र्ान्यता िै खक प्रखतर्ा पूजा करते सर्य भक्त का पूणम ध्याि भगवाि और उिके स्वरूप की ओर िी िोता िै। अत: ऐसे र्ें यखद प्रखतर्ा िंखित िोगी तो भक्त का सारा ध्याि उस र्ूखतम के उस िंखित खिस्से पर चले जाएगा और वि पूजा र्ें र्ि ििीं लगा सके गा। इसके अलावा खपतृ या भगवाि को उपले पर लगाए गए भोग की राि को भी घर र्ें रििा शभु ििीं र्ािा जाता िै।तीिों बातों
के पीछे का कारण वास्तु से िी जडु ा िै। वास्तु के अिस ु ार इि तीिों िी चीजों का घर र्ें रििे पर घर की सकारात्र्क ऊजाम का स्तर कर् िोिे लगता िै व िकारात्र्क ऊजाम बढऩे लगती िै। इसखलए इन्िें तरु तं िी िदी र्ें प्रवाखित कर देिा चाखिए।
बेडरूर् र्ें नहीं िखना चाकहए भगवान की तस्वीि या र्कू ता क्योंकक.... किते िैं वास्तु के अिस ु ार बेिरूर् र्ें भगवाि की प्रखतर्ा या फोटो ििीं लगािा चाखिए। साथ िी यि िर्ारी धाखर्म क र्ान्यताओं र्ें से भी एक र्ान्यता िै खक अपिे शयिकक्ष यािी बेिरूर् र्ें भगवाि की कोई प्रखतर्ा या तस्वीर ििीं लगािी चाखिए लेखकि बिुत कर् लोग ये जािते िैं खक आखिर क्यों भगवाि की तस्वीर अपिे शयिकक्ष र्ें ििीं लगाई जा सकती िै? इि तस्वीरों से ऐसा क्या प्रभाव िोता िै खक इन्िें लगािे की र्िािी की गई िै? वास्तव र्ें यि िर्ारी र्ािखसकता को प्रभाखवत कर सकता िै। इस कारण भगवाि की तस्वीरों को र्ंखदर र्ें िी लगािे को किा गया िै, बेिरूर् र्ें ििीं। चूंखक बेिरूर् िर्ारी खितांत खिजी खजंदगी का खिस्सा िै जिां िर् िर्ारे जीविसाथी के साथ वक्त खबताते िैं। बेिरूर् से िी िर्ारी सेक्स लाइफ भी जडु ी िोती िै। अगर यिां भगवाि की तस्वीर लगाई जाए तो िर्ारे र्िोभावों र्ें पररवतम ि आिे की आशंका रिती िै। यि भी संभव िै खक िर्ारे भीतर वैराग्य जैसे भाव जाग जाएं और िर् िर्ारे दाम्पत्य से खवर्ि ु िो जाएं। इससे िर्ारी सेक्स लाइफ भी प्रभाखवत िो सकती िै और गिृ स्थी र्ें अशांखत उत्पन्ि िो सकती िै। इस कारण भगवाि की तस्वीरों को र्ंखदर र्ें िी रििे की सलाि दी जाती िै। जब स्त्री गभम वती िो तो बेिरूर् र्ें बाल गोपाल की तस्वीर लगाई जा सकती िै।
क्यों किें गगं ा सिर्ी को,गगं ा स्नान गंगा करोडों खिंदओ ु ं की आस्था का कें द्र िै। अिेक धर्म ग्रंथों र्ें भी गंगा के र्ित्व का वणम ि खर्लता िै। वैशाि र्ास के शक्ु ल पक्ष की सिर्ी को गंगा सिर्ी किते िैं। ऐसी र्ान्यता िै खक
गंगा की उत्पखि इसी खदि िुई थी। इस खदि गंगा र्े स्िाि करिे और पूजा का खवशेि र्ित्व िै। इस बार गंगा सिर्ी का पवम 28 र्ई, गरुु वार को िै। धर्म ग्रंथों के अिस ु ार जब कखपल र्खु ि के श्राप से सूयमवंशी राजा सगर के 60 िजार पत्रु भस्र् िो गए तब उिके उिार के खलए राजा सगर के वंशज भगीरथ िे घोर तपस्या कर र्ाता गंगा को प्रसन्ि खकया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पशम से िी सगर के 60 िजार पत्रु ों का उिार िो सका। गंगा को र्ोक्षदाखयिी किा जाता िै। खवखभन्ि अवसरों पर गंगा तट पर र्ेले और गंगा स्िाि के आयोजि िोते िैं। इिर्ें कंु भ पवम , गंगा दशिरा, पूखणम र्ा, व्यास पूखणम र्ा, काखतम क पूखणम र्ा, र्ाघी पूखणम र्ा, र्कर संिांखत, गंगा सिर्ी आखद प्रर्ि ु िैं।
क्या वाकई होता है पुनजान्र्? पिु जम न्र् एक अबूझ पिेली िै। खवज्ञाि किता िै खक इस सखृ ष्ट र्ें पिु जम न्र् जैसी कोई व्यवस्था ििीं िै और खचखकत्सा खवज्ञाि किता िै खक पिु जम न्र् िोता िै। अखधकांश धर्ों र्ें भी पिु जम न्र् की व्यवस्था को स्वीकार खकया गया िै। लेखकि कुल खर्लाकर यि अभी भी सर्झिा र्खु श्कल िै खक कोई व्यखक्त र्रिे के बाद खफर से जन्र् ले सकता िै या ििीं? खिंदू र्ान्यताओं के र्तु ाखबक पिु जम न्र् िोता िै लेखकि कोई भी व्यखक्त र्रिे के तरु तं बाद िी दूसरा जन्र् ले यि संभव ििीं िै। अगर खिंदू र्ान्यताओं पर खवश्वास खकया जाए तो र्त्ृ यु के बाद आत्र्ा इस वायु र्ंिल र्ें िी चलायर्ाि िोती िै। स्वगम -िकम जैसे स्थािों पर घूर्ती िै। लेखकि उसे एक ि एक खदि शरीर जरूर लेिा पडता िै। ज्योखति शास्त्र इस बात को ज्यादा र्जबूती से रिता िै। धर्म र्ें खजसे प्रारब्ध किा जाता िै, यािी पूवम कर्ों का फल, वि ज्योखति का िी एक खिस्सा िै। इसखलए ज्योखति की लगभग सारी खवधाएं िी पिु जम न्र् को स्वीकार करती िैं। इस खवद्या का र्ाििा िै खक िर् अपिे जीवि र्ें जो भी कर्म करते िैं उिर्ें से कुछ का फल तो जीवि के दौराि िी खर्ल जाता िै और कुछ िर्ारे प्रारब्ध से जडु जाता िै। इन्िीं कर्ों के फल के र्तु ाखबक जब ब्रह्मांि र्ें ग्रि दशाएं बिती िैं, तब वि आत्र्ा खफर से जन्र् लेती िै। इस प्रखिया र्ें कई साल भी लग सकते िैं और कई दशक भी। खचखकत्सा खवज्ञाि भी इस बात को स्वीकार करता िै खक िर्ारी कई आदतें और परेशाखियां खपछले जन्र्ों से जडु ी िोती िैं। कई
बार िर्ारे सार्िे ऐसी चीजें आती िै या ऐसी घटिाएं घटती िैं, जो िोती तो पिली बार िैं लेखकि िर्ें र्िसस ु र चक ु े िैं। खचखकत्सा ू िोता िै खक इस तरि की पररखस्थखत से िर् पिले भी गज खवज्ञाि इसे िर्ारे अवचेति र्ि की यात्रा र्ािता िै, ऐसी स्र्खृ तयां जो पूवम जन्र्ों से जडु ी िैं। बिरिाल पिु जम न्र् अभी भी एक अबझ ू पिेली की तरि िी िर्ारे सार्िे िै। ज्योखति, धर्म और खचखकत्सा खवज्ञाि िे इसे िल ु े रूप से या दबी जबु ाि से स्वीकारा तो िै लेखकि इसे अभी पूरी तरि र्ान्यता ििीं दी िै।
सफलता के कलए ककन्निों को क्या औि क्यों दान किें? पौराखणक ग्रन्थों, वेदों-परु ाणों और साखित्य तक र्ें खकन्िर खिर्ालय क्षेत्र र्ें बसिे वाली र्ित्वपूणम आखदर् जाखत िै खजसके वंशज वतम र्ाि जिजातीय खजला खकन्िौर के खिवासी र्ािे जाते िैं। खकन्िरों का जीवि बिुत िी संघिों से भरा िै क्योंखक सर्ाज र्ें सार्ान्य र्िष्ु यों की तरि इन्िेंआदर सम्र्ाि ििीं खर्ल पाता िै लेखकि किते िैं कर्ों के अिस ु ार स्त्री-परुु ि या िपंस ु क योखि र्ें जन्र् लेिा पडता िै। इन्िें दाि देिे को शास्त्रों र्ें बिुत र्ित्व खदया गया िै। ज्योखति के अिस ु ार बधु को िपंस ु क ग्रि र्ािा गया िै। र्ािा जाता िै खक खकन्िरों पर बधु का खवशेि प्रभाव िोता िै। इसीखलए खकन्िरों को दाि देिे से बधु प्रसन्ि िोते िैं। इसीखलए बधु यािी व्यापार और कायम क्षेत्र के कारक ग्रि को बलवाि बिािे के खलए और सफलता प्राि करिे के खलए खकन्िरों को पैसों के साथ िी पूजा सपु ारी का दाि देिा चाखिए क्योंखक पूजा सपु ारी को शास्त्रों के अिस ु ार गणपखतजी का रूप र्ािा जाता िै। इसीखलए खकसी भी पूजि के शरू ु आत र्ें गौरी व गणेश का आवाह्न पूजा सपु ारी पर खकया जाता िै। बधु को धि, बखु ि तकम व कर्म का कारक ग्रि र्ािा गया िै। ऐसी र्ान्यता िै खक बधु से संबंखधत दाि करिे से संखचत कर्ों का िाश िोता िै और अगले जन्र् र्ें खकन्िर के रूप र्ें जन्र् ििीं लेिा पडता िै। इसीखलए खकन्िरों को पैसों के साथ िी सपु ारी के दाि करिे को खवशेि र्ित्व खदया गया िै।
क्यों औि क्या ध्यान िखें दान किते सर्य? दाि करिे के संबंध र्ें सबसे र्ित्वपूणम खियर् यि िै खक दाि िर्ेशा सीधे िाथ से िी खकया जािा चाखिए। ऐसी र्ान्यता िै खक सीधे िाथ से खकए गए दाि से परर्ात्र्ा तरु तं िी प्रसन्ि िोते िैं और दािी की र्िोकार्िाओं को पूरा करते िैं। शास्त्रों के अिस ु ार भगवाि के खलए खकए जािे वाले सभी पूजा कर्म सीधे िाथ से िी खकए जािा चाखिए। दाि करिे से िर्ारे र्ोि और अिर् का त्याग िोता िै। दाि से िर्ारे र्ि का र्ोि दरू िोता िै। यखद खकसी व्यखक्त के पास बिुत सारा धि िै तब भी जब तक धि के प्रखत र्ोि का त्याग ििीं करेगा तब तक वि दाि ििीं कर सकता। इसी प्रकार दाि से अिर् भी िर्से दरू िोता िै। इसी के साथ िी दाि से र्ि को शांखत भी खर्लती िै।सीधे िाथ का सभी धाखर्म क कायम र्ें खवशेि र्ित्व िै क्योंखक धर्म शास्त्रों के अिस ु ार ऐसा र्ािा जाता िै खक िर्ारे शरीर का बायां भाग खस्त्रयों का प्रखतखिखधत्व करता िै और दायां भाग परुु िों का। इस बात की पखु ष्ट खशवजी के अद्रध् िारीश्वर स्वरूप से की जा सकती िै। खशवजी के इस रूप र्ें दाएं भाग र्ें स्वयं खशवजी और बाएं भाग र्ें र्ाता पावम ती को दशाम या जाता िै। धर्म से संबखं धत सभी कायम परुु िों से कराए जािे की बात िर्ेशा से िी किी जाती रिी िै। दाि सीधे िाथ से करिा चाखिए इस बात के खलए एक और तकम यि िै खक िर् पखवत्र कायम के खलए सदैव सीधे िाथ का िी उपयोग करते िैं। इसी वजि से बाया िाथ धाखर्म क कायों र्ें उपयोग ििीं खकया जाता।
क्या सचर्चु अर्ि है अश्वत्िार्ा? र्िाभारत के प्रर्ि ु पात्रों र्ें से एक अश्वत्थार्ा भगवाि शंकर के अंशावतार थे। ऐसी र्ान्यता िै खक अश्वत्थार्ा अर्र िै तथा वि आज भी धरती पर िी खिवास करते िैं। भगवाि शंकर का यि अवतार संदेश देता िै खक िर्ें सदैव अपिे िोध पर खियंत्रण रििा चाखिए क्योंखक िोध िी सभी द:ु िों का कारण िै। यि गणु अश्वत्थार्ा र्ें ििीं था। साथ िी एक और बात जो िर्ें अश्वत्थार्ा से सीििी चाखिए वि यि खक जो भी ज्ञाि प्राि करें उसे पूणम करें। अधूरा ज्ञाि सदैव
िाखिकारक रिता िै। अश्वत्थार्ा ब्रह्मास्त्र चलािा तो जािते थे लेखकि उसका उपसंिार करिा ििीं। खफर भी उन्िोंिे अजम िु पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग खकया खजसके कारण संपूणम सखृ ष्ट के िष्ट िोिे का ितरा उत्पन्ि िो गया था। इस त्य से िर्ें यि खशक्षा खर्लती िै खक िोध तथा अपणू म ज्ञाि से कभी सफलता ििीं खर्लती। द्रोणाचायम के पत्रु थे अश्वत्थार्ा अश्वत्थार्ा र्िादेव, यर्, काल व िोध के अंशावतार थे। र्िाभारत के प्रखसि योिा अश्वत्थार्ा द्रोणाचायम के पत्रु थे। अश्वत्थार्ा अत्यंत शरु वीर, प्रचंििोधी स्वभाव के योिा थे। र्िाभारत संग्रार् र्ें अश्वत्थार्ा िे कौरवों की सिायता की थी। ििर्ु ािजी आखद सात खचरंजीखवयों र्ें अश्वत्थार्ा का िार् भी आता िै। इस खविय र्ें एक श्लोक प्रचखलत िैअश्वत्िार्ा बकलव्र्यासो हनूर्ांश्च कवभीषण:।कृप: पिशुिार्श्च सितैते कचिजीकवन:॥ अथाम त अश्वत्थार्ा, राजा बखल, व्यासजी, ििर्ु ािजी, खवभीिण, कृपाचायम और परशरु ार् ये सातों खचरंजीवी िैं। खशवर्िापरु ाण(शतरुद्रसंखिता-37) के अिस ु ार अश्वत्थार्ा आज भी जीखवत िैं और वे गंगा के खकिारे खिवास करते िैं खकं तु उिका खिवास किां िैं, यि ििीं बताया गया िै।
शकन देव को र्नाने के कलए र्कं दि र्ें जूते क्यों िोड कदए जाते हैं? कई लोग शखि र्ंखदरों र्ें जूते छोड जाते िैं और इसे शभु र्ािा जाता िै। आखिर शखिवार को जूते छोड जािे से क्या लाभ िोता िै? क्यों ऐसा र्ािा जाता िै खक चर्डे के जूते छोड जाएं तो सारी परेशािी उसके साथ चली जाती िैं? वास्तव र्ें यि र्ान्यता ज्योखतिीय आधार पर प्रचखलत िै। ज्योखति शास्त्र र्ें शखि को िूर और कठोर न्यायखप्रय ग्रि र्ािा गया िै। शखि जब खकसी के खवपररत िोता िै तो उस व्यखक्त को जी-तोड र्ेिित के बाद भी फल थोडा िी खर्लता िै। खजसकी कंु िली र्ें साढ़े साती, ढैया िो, या खजसकी राखश र्ें शखि अच्छे स्थाि पर ि िो, उसे यि िास परेशािी िोती िै।
शखिवार शखि का खदि र्ािा जाता िै। िर्ारे शरीर के अंग भी ग्रिों से प्रभाखवत िोते िैं। त्वचा (चर्डी) और पैर र्ें शखि का वास र्ािा जाता िै, इिसे संबंखधत चीजें शखि के खलए दाि की जाती िैं और इिकी बीर्ाररयां भी शखि से संबंखधत िोती िैं। चर्डा और पैर दोिों िी शखि से प्रभाखवत िोते िैं, इस कारण चर्डे के जूते अगर शखिवार को चोरी िो जाएं तो र्ाििा चाखिए खक िर्ारी परेशािी कर् िोिे जा रिी िैं। शखि अब ज्यादा परेशाि ििीं करेगा। कई लोग इसी कारण से शखिवार को शखि र्ंखदरों र्ें जूते भी छोडकर आते िैं ताखक शखि उिके कष्ट कर् कर दें।
कई बाि र्ेहनत के बाद भी क्यों नहीं होता भाग्योदय? कुछ लोग अपिे कायम क्षेत्र र्ें र्ि लगाकर कार् करते िैं िर तरि से अपिा बेस्ट देिे की कोखशश करते िैं लेखकि खफर भी उन्िें उखचत पररणार् ििीं खर्ल पाता िै इसके बिुत से कारण िो सकते िैं लेखकि उन्िीं र्ें से एक कारण घर का वास्तु भी िो सकता िै क्योंखक यखद कोई घर वास्तु के अिस ु ार बिा िो तो आप अखधक ऊजाम वाि बि सकते िैं। वास्तु के अिस ु ार यि सकारात्र्क ऊजाम कार् के साथ िी भाग्योदय र्ें भी सिायक िोती िैं। ऐसा र्ािा जाता िै खक यखद घर का िर एक कोिा वास्तु अिरू ु प िो तो घर र्ें आिे वाले िर व्यखक्त को बिुत र्ािखसक शांखत र्िसस ु िोती िै और घर र्ें रििे वाले िर सदस्य की तरक्की िोती िै। इसीखलए घर के खिर्ाम ण के सर्य उसके वास्तु पर बिुत ध्याि रििा चाखिए क्योंखक कई बार घर र्ें वास्तदु ोि िोिे के कारण भी उसर्ें रििे वालों का भाग्योदय ििीं िो पाता इसीखलए घर बिवाते सर्य पूवम खदशा के वास्तु पर सबसे अखधक ध्याि देिा चाखिए क्योंखक ऐसी र्ान्यता िै खक पूवम खदशा ऐश्वयम व ख्याखत के साथ सौर ऊजाम प्रदाि करती िैं।
गृहप्रवेश के सर्य पूजा र्ें क्या औि क्यों किवाना चाकहए?
िए घर र्ें जीवि िखु शयों से भर जाए,िर परेशािी जीवि को अलखवदा कि जाए। इसी सोच के साथ कोई भी अपिा िया घर बिवाता िै। किते िैं खक पूजा से र्ि को शांखत खर्लती िै। गिृ प्रवेश पूजा का ररवाज इसखलए बिाया िै ताखक घर पर िर्ेशा भगवाि की कृपा बिी रिे। इससे िया घर सकारात्र्क उजाम से भर जाता िै।वास्तु शांखत कराएं, खवखधवत वास्तु पूजि कराएं। उसके बाद िी गिृ प्रवेश करें खजससे उन्िखत िोगी एवं सर्खृ ि िोगी।खवखधवत गिृ प्रवेश कराएं, वास्तु जप जरूर कराएं। देवी दगु ाम की अक्षत, लाल पष्ु प, कुर्कुर् से पज ू ा करें। प्रसाद चढ़ाएं, धपू , दीप खदिाएं एवं जप करें। खिखश्चत िी घर र्ें सि ु , शांखत एवं सर्खृ ि िोगी।दगु ाम सिशती का िौ खदि तक पाठ खवखधवत घी का अिंि दीपक लगाकर, उपरांत िौ कन्याओं का भोजि (210 विम की कन्या) करवािे से जीवि सि ु द िोता िै। र्िार्त्ृ यंज ु य र्ंत्र का जप करें, इससे भी लाभ प्राि िोता िै।
आप जानते हैं क्यो नहीं देना चाकहए बुधवाि को कजा? कजम चक ु ािे की खस्थखत आदर्ी को अत्यंत दखु वधा र्ें िाल देती िै। आदर्ी के र्ि र्ें रात-खदि खसफम उसे चक ु ािे के खलए तिावग्रस्त रिता िै। लेखकि जैसी खस्थखत व र्खु श्कलें कजम लेिे वाले के खलए िोती िै कई बार उन्िीं र्स ु ीबतों का सार्िा कजम देिे पर भी करिा पडता िै। ऐसे र्ें कई बार कजम देिे वाले को भी अटके िुए पैसों के कारण आखथम क तंगी या खबजिेस र्ें िक ु साि का सार्िा करिा पडता िै। ज्योखति शास्त्र के अिस ु ार बधु को व्यापार का कारक ग्रि र्ािा गया िै। कोई भी व्यखक्त कजम देता िै तो यि बधु यािी व्यापार के कारक ग्रि का िी प्रभाव िोता िै। बधु को कायम क्षेत्र का ग्रि तो र्ािा िी जाता िै साथ िी इसे िपंस ु क ग्रि भी र्ािा गया िै। इसी वजि से शास्त्रों द्वारा बधु वार को कजम देिा वखजम त खकया गया िै। इस खदि लोि पर बिुत कर् पररखस्थखतयों र्ें कोई व्यखक्त इसे चक ु ा पाता िै।
बधु को कजम लेिे से यि चक ु ा पािा बिुत र्खु श्कल िोता िै। ऐसा किा जाता िै खक इस खदि कजम देने पर व्यखक्त के बच्चों तक को इस कजम से र्स ु ीबतें उठािा पडती िैं। बधु वार को कजम देिे से पैसा िूबता िै और व्यापार र्ें िाखि िोती िै। इसी कारण ज्योखति शास्त्र के अिस ु ार बधु वार के खदि कजम देिा अच्छा ििीं र्ािा गया िै।
ध्यान िखें, कभी भी खाली हाि घि ना लौटे क्योंकक... अखधकतर लोग ऑखफस से या कायम स्थल से जब अपिे घर लौटते िैं तो अपिी व्यस्तता के कारण खबिा कुछ खलए िाली िाथ िी घर लौट आते िैं। लेखकि आपिे अक्सर िर्ारे घर के वि ृ लोगों को यि किते िुए सिु ा िोगा खक कभी शार् को िाली िाथ घर ििीं लौटिा चाखिए क्योंखक िर्ारे शास्त्रों के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक घर लौटते सर्य घर के बूजगु ों या बच्चों के खलए कुछ ि कुछ लेकर जािा चाखिए। घर र्ें कुछ भी िई वस्तु आिे पर बच्चें और बूजगु म िी सबसे ज्यादा िशु िोते िैं। किीं किीं इस परम्परा र्ें घर लौटते वक्त बच्चों के खलए खर्ठाई लािे के बारें र्ें बताया गया िै। बज ु ूगों के आशीवाम द से घर र्ें सि ृ िशु रिते िै ु सर्खृ ि बढऩे लगती िै और खजस घर र्ें बच्चे और वि उस घर र्ें लक्ष्र्ी की कृपा िर्ेशा बिी रिती िै। ऐसा र्ािा जाता िै खक रोज िाली िाथ घर लौटिे पर धीरे धीरे उस घर से लक्ष्र्ी चली जाती िै और उस घर के सदस्यों र्ें िकारात्र्क या खिराशा के भाव आिे लगते िैं।इसके खवपररत घर लौटते सर्य कुछ ि कुछ वस्तु लेकर आएं तो उससे घर र्ें बरकत बिी रिती िै, उस घर र्ें लक्ष्र्ी का वास िो जाता िै। िर रोज घर र्ें कुछ ि कुछ लेकर आिा वखृ ि का सूचक र्ािा गया िै। ऐसे घर र्ें सि ु सर्खृ ि और धि िर्ेशा बढ़ता जाता िै। और घर र्ें रििे वाले सदस्यों की भी तरक्की िोती िै।
कसन्दूि का नहीं चदं न का कतलक लगाना चाकहए क्योंकक... पूजा के सर्य खतलक लगािे का खवशेि र्ित्व िै और भगवाि को स्िाि करवािे के बाद उन्िें चन्दि का खतलक खकया जाता िै।पूजि करिे वाला भी अपिे र्स्तक पर चंदि का खतलक लगाता िै। यि सगु ंखधत िोता िै तथा इसका गणु शीतलता देिे वाला िोता िै। भगवाि को चंदि अपम ण करिे का भाव यि िै खक िर्ारा जीवि आपकी कृपा से सगु ंध से भर जाए तथा िर्ारा व्यविार शीतल रिे यािी िर् ठंिे खदर्ाग से कार् करे। अक्सर उिेजिा र्ें कार् खबगडता िै। चंदि लगािे से उिेजिा काबू र्ें आती िै। खस्त्रयों को र्स्तक पर कस्तूरी का खतलक या खबंदी लगािा चाखिए। गणेशजी, ििर्ु ािजी, र्ाताजी या अन्य र्खु तम यों से खसंदरू खिकालकर ललाट पर ििी लगािा चाखिए। खसंदरू उष्ण िोता िै। चंदि का खतलक ललाट पर या छोटी सी खबंदी के रूप र्ें दोिों भौिों के र्ध्य लगाया जाता िै। वैज्ञाखिक दृखष्टकोण से चंदि का खतलक लगािे से खदर्ाग र्ें शांखत, तरावट एवं शीतलता बिी रिती िै। र्खस्तष्क र्ें सेराटोखिि व बीटाएंिोरखफि िार्क रसायिों का संतल ु ि िोता िै। र्ेघाशखक्त बढ़ती िै तथा र्ािखसक थकावट खवकार ििीं िोता।
बॉडी र्साज से पहले इस बात का ध्यान जरूि िखें क्योंकक... तेल र्ाखलश करिा शरीर के खलए लाभदायक िोता िै लेखकि इसके भी अपिे खियर् िैं, अगर उसे ध्याि र्ें ििीं रिा जाए तो परेशािी िडी िो सकती िै। शास्त्रों और आयवु ेद र्ें बताया गया िै खक रखववार, र्ंगलवार और शि ु वार को तेल की र्ाखलश ििीं करिी चाखिए। इससे शरीर पर खवपररत प्रभाव पडता िै।
शास्त्रों के अिस ु ार रखववार, र्ंगलवार और शि ु वार को तेल से र्ाखलश करिा र्िा िै। इसके पीछे भी खवज्ञाि िै। - िकववाि का कदन सयू ा से संबकं धत है। सयू ा से गर्ी उत्पन्न होती है। अत: इस कदन शिीि र्ें कपत्त अन्य कदनों की अपेक्षा अकधक होना स्वाभाकवक है। तेल से र्ाकलश किने से भी गर्ी उत्पन्न होती है। इसकलए िकववाि को तेल से र्ाकलश किने से िोग होने का भय िहता है। - र्ंगल ग्रह का िंग लाल है। इस ग्रह का प्रभाव हर्ािे िक्त पि पडता है। इस कदन शिीि र्ें िक्त का दबाव अकधक होने से खुजली, फोडे फुन्सी आकद त्वचा िोग या उनसे र्त्ृ यु होने का डि भी िहता है। - इसी तिह शुक्र ग्रह का संबधं वीया तत्व से िहता है। इस कदन र्ाकलश किने से वीया संबधं ी िोग हो सकते हैं। - अगि िोजाना र्ाकलश किना हो तो तेल र्ें िकववाि को फूल, र्ंगलवाि को कर्ट्टी औि शुक्रवाि को गाय का र्त्रू डाल लेने से कोई दष्ु प्रभाव नहीं होता।
पूकणार्ा पि क्या औि क्यों किना चाकहए? किते िैं खकसी भी र्ाि की पूखणम र्ा को दाि करिे से इसका बिुत ज्यादा फल खर्लता िै। आखिर पूखणम र्ा को िी दाि क्यों खकया जाए? इसके पीछे क्या कारण और दशम ि िै? कौि सी बात िै जो पूखणम र्ा को इतिा िास बिाती िै? पूखणम र्ा पर िखदयों र्ें स्िाि के बाद दाि का र्ित्व क्यों िै? इस परंपरा के पीछे दाशम खिक कारण भी और वैज्ञाखिक भी। पूखणम र्ा पर िखदयों र्ें स्िाि और खफर उसके बाद दाि, दोिों अलग-अलग खविय िै। स्िाि सीधे िर्ारे स्वास््य से जडु ा और दाि िर्ारे व्यविार से। पूखणम र्ा पर चंद्रर्ा की रोशिी सबसे ज्यादा िोती िै। इससे कई ऐसी खकरणें खिकलती िैं जो िखदयों के पािी, विस्पखत और भूखर् पर औिधीय प्रभाव िालती िैं। इसखलए पूखणम र्ा पर िखदयों
र्ें स्िाि करिे से उस औिधीय जल का प्रभाव िर् पर भी िोता िै, खजससे िर्ें स्वास््यगत फायदा िोता िै। िदी र्ें स्िाि के बाद दाि का र्ित्व इसखलए िै खक चंद्रर्ा र्ि का अखधपखत िोता िै। चंद्रर्ा की खकरणों से यक्त ु जल र्ें स्िाि करिे से र्ि को शांखत और खिर्म लता आती िै। दाि का र्ित्व इसीखलए रिा गया िै क्योंखक जब िर् शांत और खिर्म ल िोते िैं तो ऐसे सर्य अच्छे कायम करिे चाखिए ताखक िर्ारे व्यखक्तत्व का खवकास िो। दाि करिे से र्ि पर सद्भाव और प्रेर् जैसी भाविाओं का प्रभाव बढ़ता िै। इससे िर्ारे व्यखक्तत्व का सकारात्र्क खवकास िोता िै।
क्यों औि कै से िखें घि र्ें र्कू ताया?ं पूजा घर प्राचीि सर्य र्ें घर के भीतर ििीं बिाया जाता था क्योंखक वास्तु के अिस ु ार इसे उखचत ििीं र्ािा जाता था लेखकि वतम र्ाि र्ें घर के अंदर िी पूजा घर बिाया जाता िै। इसीखलए पूजा घर र्ें र्ूखतम या रिते सर्य कुछ वास्तु खियर्ों का ध्याि अखिवायम रूप से रििा चाखिए क्योंखक पूजास्थल के वास्तु का ध्याि रििे से घर की सकारात्र्क ऊजाम र्ें वखृ ि िोती िै। घर की सि ु व सर्खृ ि बढ़ती िै। साथ िी घर र्ें क्लेश ििीं िोता िै। कै से रिें र्ूखतम यां: वास्तु के अिस ु ार कर् वजि की तस्वीरें और र्ूखतम यााँ िी पूजाघर र्ें रििी चाखिए। इिकी खदशा पूवम, पखश्चर्, उिर र्ि ु ी िो सकती िै, लेखकि दखक्षण र्ि ु ी कभी ििीं। भगवाि का चेिरा खकसी भी वस्तु से ढाँका ििीं िोिा चाखिए, फूल और र्ाला से भी ििीं। इन्िें दीवार से एक इंच दूर रििा चाखिए, एक-दूसरे के सम्र्ि ु ििीं। इिके साथ अपिे पूवमजों की तस्वीर ििीं रििी चाखिए। िंखित र्ूखतम यााँ पूजाघर के अंदर कभी ििीं रििा चाखिए। अगर कोई र्ूखतम िंखित िो जाए तो उसे तरु तं प्रवाखित कर देिा चाखिए। घर के र्ंखदर र्ें शास्त्रों के अिस ु ार बताई गई भगवाि की र्ूखतम यां िी रिें। घर र्ें श्रीगणेश की 3, र्ाताजी की 3 प्रखतर्ाएं और सूयम की दो प्रखतर्ाएं और 2 शंि ििीं िोिा चाखिए। र्ंखदर र्ें दो खशवखलंग ििीं िोिा चाखिए तथा खशवखलंग अंगूठे के आकार का िोिा चाखिए। साथ िी पूजा स्थल की खियखर्त रूप से सफाई की जािी चाखिए। साथ िी प्रखतखदि खवखध-खवधाि से पूजि-
अचम ि भी करिा चाखिए। संगु खधत अगरबिी लगािे से घर का वातावरण भी पखवत्र िोता िै और सकारात्र्क ऊजाम बढ़ती िै।
नई दल्ु हन को शादी र्ें गहने क्यों कदए जाते है? खिन्दू परंपरा के अिस ु ार बेखटयों की शादी र्ें उसके र्ायके वालों की ओर से अिेक उपिार खववाि के उपलक्ष्य र्ें बेटी को खदए जाते िैं। र्ाता-खपता का यिी सपिा िोता िै खक उिकी बेटी ससरु ाल र्ें िर्ेशा िशु रिे। उसे कभी खकसी तरि की कोई कर्ी र्िसस ू ि िो। िववधु को र्ाता-खपता की ओर से आभिु ण खदए जािे का एक र्ख्ु य कारण यि िै खक उिकी खबखटया को खजंदगी र्ें कभी भी अभाव का सार्िा िा करिा पडे। साथ िी इसके पीछे वैज्ञाखिक कारण भी िै। पिले जब वधू को कर्रधिी (तगडी) पििाई जाती थी और गले र्ें भारी िार पििाए जाते थे और भारी-भारी पायल भी पििाई जाती थी तो उसके पीछे त्य शारीररक स्वास््य को बिाए रििा था। ये खवशेि आभूिण भारी िोिे से एक्यप्रु ेशर के पाईन्ट को दबाए रििे का एक र्ित्वपूणम साधि िैं और पायल ररप्रोिेखक्टव ऑगम ि को भी ठीक रिती िै। यिी कारण िै खक आभूिण के वल खस्त्रयााँ िी ििीं पििती थीं बखल्क परू ु ि भी बडे और भारी आभूिण धारण खकया करते थे। आज भारी आभूिणों की जगि िल्के और संदु र आभूिणों िे ले ली िै और इि सबके पीछे काल और पररखस्थखत का बदल जािा िै।
खाना खाते सर्य इस बात का जरूि िखें ध्यान क्योंकक... िािे के संबधं र्ें ऐसी र्ान्यता िै खक पररवार के सभी सदस्यों को एक साथ भोजि करिा चाखिए। घर र्ें िी ििीं बखल्क बािर भी अके ले िािा ििीं चाखिए। घर के बािर खर्त्रों के साथ िािा िािे से खर्त्रता का ररश्ता और र्जबतू बिता िै।अखधकांश बडे-बज ु ूगम अक्सर यिी बात किते िैं खक िािा सभी को एक साथ बैठकर िािा चाखिए। इससे घर के सदस्यों र्ें प्रेर् बढ़ता
िै और ररश्ते र्जबूत बिते िैं। यखद िर् परु ािे सर्य से आज की तल ु िा करें तो यिी बात सार्िे आती िै खक आज अखधकांश घरों र्ें लडाइयां बढ़ रिी िैं। पररवार के सदस्यों र्ें परस्पर प्रेर् की कर्ी आ गई िै और अपिापि घट रिा िै। जबखक परु ािे सर्य र्ें पररवार के सभी सदस्यों र्ें अटूट प्रेर् रिता था और सभी एक-दस ू रे का पूरा-पूरा ध्याि रिते थे। इसकी वजि यिी िै खक उस सर्य खदि र्ें कर् से कर् दो बार पूरा पररवार साथ बैठता था और सभी साथ िािा िाता थे। उस सर्य सभी जीवि की कई परेशाखियों का िल खिकाल लेते थे। जबखक आज सर्य अभाव के कारण घर के सभी सदस्य पयाम ि सर्य ििीं खिकाल पाते। ऐसे र्ें सदस्यों का आपस र्ें संपकम काफी कर् िो जाता िै। धीरे-धीरे इसी वजि से पररवार र्ें कलि आखद की बात सार्िे आिे लगती िै। इन्िीं कारणों से सभी खवद्वाि और वि ृ जि यिी बात किते िैं खक पूरे पररवार को एक साथ िािा चाखिए। ताखक सभी सदस्यों का आपस र्ें संपकम िर्ेशा बिा रिे और प्रेर् र्ें खकसी भी प्रकार की कोई ि आ सके । सभी के साथ िािा िािे से िर् अच्छे से भोजि कर पाते िैं, जबखक अके ले र्ें कई बार ठीक से भोजि ििीं िो पाता। यि स्वास््य के खलए भी िाखिकारक िै। साथ िी पूरा पररवार एक साथ िािा िाएगा तो सभी का िािे का सर्य भी खिखश्चत रिेगा। इससे पररवार के सभी सदस्यों की सेित भी अच्छी रिती िै।
दूल्हा क्यों औि कौन से सात वचन देता है दुल्हन को? वैखदक संस्कृखत के अिस ु ार सोलि संस्कारों को जीवि के सबसे र्ित्वपूणम संस्कार र्ािे जाते िैं। खववाि संस्कार उन्िीं र्ें से एक िै खजसके खबिा र्ािव जीवि पूरम ण् ििीं िो सकता। इसीखलए खववाि से जडु ी अिेक रस्र्ें बिाई गई िैं। उन्िीं र्ें से सबसे र्ित्वपूणम रस्र् र्ािी जाती िै फे रों की। खिन्दू धर्म के अिस ु ार सात फे रों के बाद िी शादी की रस्र् पूणम िोती िै सात फे रों र्ें दूल्िा व दल्ु िि दोिों से सात वचि खलए जाते िैं। वर के द्वारा खदए जािे वाले वचि ऐसे िै खजिर्ें उसे गिृ स्थी का सम्पूणम दाखयत्व सौपा जाता िै ताखक दोिों की गिृ स्थी सि ु पूवमक चले।
वर से वधु द्वारा खलए जािे वाले वचि इस प्रकार िै। गिृ स्थ जीवि र्ें सि ु -द:ु ि की खस्थखतयां आती रिती िैं, लेखकि तर्ु िर्ेशा अपिा स्वभाव र्धरु रिोगे। र्झ ु े बताये खबिा कुआं - बावडी - तालाब का खिर्ाम ण, यज्ञ-र्िोत्सव का आयोजि और यात्रा ििीं करोगे। र्ेरे व्रत, दाि और धर्म कायों र्ें रोक-टोक ििीं करोगे। र्ेिित से जो कुछ भी अखजम त करोगे, र्झ ु े सौंपोगे। र्ेरी राय के खबिा कोई भी चल-अचल सम्पखत का िय-खविय ििीं करोगे। घर की सभी कीर्ती चीजें, गििे, आभूिण र्झ ु े रििे के खलए दोगे। र्ाता-खपता के खकसी आयोजि र्ें र्ेरे र्ायके जािे पर आपखि ििीं लोगे।
उपवास के कदन क्यों औि क्या जरूि ध्यान िखना चाकहए? संकल्प या दृढ़ खिश्चय को िी व्रत या उपवास किा जाता िै। उपवास का अथम ईश्वर या इष्टदेव के सर्ीप बैठिा भारतीय संस्कृखत र्ें व्रत तथा उपवास का इतिा अखधक र्ित्व िै खक िर खदि कोई ि कोई उपवास या व्रत िोता िी िै। सभी धर्ों र्ें व्रत उपवास की आवश्यकता बताई गई िै। इसखलए िर व्यखक्त अपिे धर्म परंपरा के अिस ु ार उपवास या व्रत करता िी िै। वास्तव र्ें व्रत उपवास का संबंध िर्ारे शारीररक एवं र्ािखसक शखु िकरण से िै। इससे िर्ारा शरीर स्वस्थ रिता िै। 1. कनत्य: जो व्रत भगवन को प्रसन्न किने के कलए कनिंति ककया जाता है। 2. नैकर्कत्तक: यह व्रत ककसी कनकर्त्त से ककया जाता है। 3. काम्य: ककसी कार्ना से ककया व्रत काम्य व्रत है। स्वास््य: व्रत उपवास से शरीर स्वस्थ रिता िै। खिरािार रििे, एक सर्य भोजि लेिे अथवा के वल फलािार से वाचितंत्र को आरार् खर्लता िै। इससे कब्ज, गैस, एखसिीटी अजीणम , अरूखच, खसरददम , बि ु ार, आखद रोगों का िाश िोता िै। आध्यखत्र्क शखक्त बढ़ती िै। ज्ञाि, खवचार, पखवत्रता बखु ि का खवकास िोता िै। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पिखत को शाखर्ल खकया गया िै।कौि ि करें: सन्यासी, बालक, रोगी, गभम वती स्त्री, वि ृ ों को उपवास करिे पर
छूट प्राि िै।क्या खियर् िै व्रत का: खजस खदि उपवास या व्रत िो उस खदि इि खियर्ों का पालि करिा चाखिए:खकसी प्रकार की खिंसा ि करें।खदि र्ें ि सोएं।बार-बार पािी ि खपएं।झूठ ि बोलें। खकसी की बरु ाई ि करें।व्यसि ि करें।भ्रष्टाचार ि करिे का संकल्प लें।व्यखभचार ि करें।खसिेर्ा, जआ ु ,ं टीवी आखद ि देिें।
घि र्ें जरुि िखना चाकहए साबूत नर्क क्योंकक.... िर्ारे यिां शादी-ब्याि िो या कोई अन्य रस्र् सार्ाि सबसे पिले घर र्ें िर्क लाया जाता िै क्योंखक साबतु िर्क घर र्ें रििा बिुत शभु र्ािा जाता िै। जब शादी र्ें सबसे पिले गणेश स्थापिा के पवू म भी जो पूजा सार्ग्री रिी जाती िै उसर्ें साबतु िर्क भी जरुर रिा जाता िै। वास्तु के अिस ु ार ऐसी र्ान्यता िै खक साबतु िर्क र्ें पॉखजटीव एिजी को अपिी तरफ आकखिम त करिे की क्षर्ता िोती िै। साथ िी यि िकारात्र्क उजाम को घर से दरू करता िै। इसखलए घर र्ें कोई भी शभु कार् करिे जा रिे िों तो िर्क िालकर पौछा जरूर लगाएं। साथ िी घर र्ें िर्ेशा साबतु िर्क जरुर रििा चाखिए क्योंखक इससे घर से कई तरि के वास्तदु ोि दरू िो जाते िैं। इसीखलए घर के खजस भी कोिे र्ें वास्तदु ोि दूर करिे के खलए विां एक बाऊल र्ें भरकर साबतु िर्क रिा जाता िै। र्ि र्ें खिन्िता, भय, खचंता िोिे से, दोिों िाथों र्ें साबतु िर्क भर कर कुछ देर रिे रिें, खफर वॉशबेखसि र्ें िाल कर पािी से बिा दें। िर्क इधर-उधर ि फें कें । िर्क िाखिकारक चीजों को िष्ट करता िै। फफूंदी भी ििीं लगिे देता।
सत्यवान के प्राण यर्िाज से कै से लाई साकवत्री? ज्येष्ठ शक्ु ल अर्ावस्या को वटसाखवत्री का व्रत खकया जाता िै। इस खदि साखवत्री व सत्यवाि की कथा सिु िे का खवशेि र्ित्व िै। यि कथा इस प्रकार िै-
खकसी सर्य र्द्रदेश र्ें अश्वपखत िार् के राजा राज्य करते थे। उिकी कन्या का िार् साखवत्री था। साखवत्री जब बडी िुई तो उसिे खपता के आज्ञािस ु ार पखत के रूप र्ें राजा द्यर्ु त्सेि के पत्रु सत्यवाि को चिु ा। राजा द्यर्ु त्सेि का राज-पाठ जा चक ु ा था और वे अपिी आंिों की रोशिी भी िो चक ु े थे। वे जंगल र्ें रिते थे। जब यि बात िारदजी को पता चली तो उन्िोंिे अश्वपखत को आकर बताया खक सत्यवाि गणु वाि तो िै लेखकि इसकी आयु अखधक ििीं िै। यि सिु कर अश्वपखत िे साखवत्री को सर्झाया खक वि कोई और वर चिु ले लेखकि साखवत्री िे र्िा कर खदया। तब अश्वपखत िे खवखध का खवधाि र्ािकर साखवत्री का खववाि सत्यवाि से कर खदया। साखवत्री अपिे पखत व सास-ससरु के साथ जंगल र्ें रििे लगी। िारदजी के किे अिस ु ार सत्यवाि की र्त्ृ यु का सर्य खिकट आ गया तो साखवत्री व्रत करिे लगी। िारदजी िे जो खदि सत्यवाि की र्त्ृ यु का बताया था उस खदि साखवत्री भी सत्यवाि के साथ जंगल र्ें गई। जंगल र्ें लकडी काटते सर्य सत्यवाि की र्त्ृ यु िो गई और यर्राज उसके प्राण िर कर जािे लगे। तब साखवत्री भी उिके पीछे चली। साखवत्री के पखतव्रत को देिकर यर्राज िे उसे वरदाि र्ांगिे के खलए किा। तब साखवत्री िे अपिे अंधे सास-ससरु की िेत्र ज्योखत, ससरु का िोया िुआ राज्य आखद सबकुछ र्ांग खलया। इसके बाद साखवत्री िे यर्राज से सत्यवाि के सौ पत्रु ों की र्ाता बििे का वरदाि भी र्ांग खलया। वरदाि देकर यर्राज िे सत्यवाि की आत्र्ा को र्क्त ु कर खदया और सत्यवाि पिु : जीखवत िो गया। इस तरि साखवत्री के पखतव्रत से सत्यवाि खफर से जीखवत िो गया और उसका िोया िुआ राज्य भी वापस खर्ल गया। वतसाखवत्री व्रत के खदि सभी को यि कथा अवश्य सिु िी चाखिए।
पहचानें अपने इस जन्र्जात गुण को... इस दौर र्ें इंसाि र्खु श्कल र्ंखजलों के खिकट से गज ु र जाता िै, लेखकि जिां से गज ु र कर थोडी देर ठिरिा चाखिए विां िर् कभी ििीं जाते। अपिे भीतर की यात्रा ि के वल िर्ें िराती िै बखल्क
कभी-कभी भटका भी देती िै लेखकि यि खस्थखत उिके साथ बिती िै जो पररखस्थखतयों से िर कर भागते िैं। भीतर की यात्रा के सर्य िर्ें खजस सत्य को जाििा और स्वीकार करिा िोता िै उससे भागते िैं। अपिे जन्र्जात गणु ों को ििीं पिचाि पाते, के वल भीतर भी भटक कर लौट आते िैं। खजन्दगी जीते-जीते िर् यि भूल जाते िैं खक िर्ारे जीवि र्ें जो र्ित्वपणू म था वि जन्र्जात था। पैदा िोते वक्त िर् उसे साथ िी लाए थे। अभी गलती यि कर रिे िैं खक इस िास को, र्ित्वपणू म को बािर दखु िया र्ें ढूंढ रिे िैं। भीतर टटोखलए, िोई िुई वस्तु की तरि िर्ारा अपिा िोिा किीं पडा िुआ िै। जन्र् िुआ िै तो संसार र्ें रििा भी पडेगा। संसार खजतिा देता िै उससे ज्यादा ले लेता िै। इसखलए जो िर्ारे जन्र्जात र्ित्वपूणम िै उस पर िजर रिें, िोिे ि दें और दखु िया र्ें जो िो रिे िैं उसके प्रखत जागरूक रिें। एक सवाल उठता िै खक ये जन्र्जात र्ित्वपूणम िै क्या? कौि सी िास बात िर् अपिी पैदाइश के साथ लाए िैं। यि बात िै खकसी परर्शखक्त का अंश िै। जन्र् के साथ िर्ारे भीतर िर्ारा परर्ात्र्ा भी आया िै। उसकी र्ौजूदगी िर्ें यि एिसास कराती िै खक र्ाखलक कोई और िै, िर्ें तो िुक्र् का पालि करिा िै। िर् खसफम र्ाली िैं, बगीचे का र्ाखलक कोई और िै। अपिी पिली पिचाि ईश्वरीय प्रखतखिखध के रूप र्ें रिें। सारे कर्म , सभी ररश्ते इसी दाखयत्व बोध के आसपास रिें। स्वाथम और परर्ाथम का संतल ु ि संसार र्ें बिािा पडता िै। यखद िर् भगवाि के प्रखतखिखध िैं ऐसा जाि लें तो खफर िर खदि बेखफिी से बीतेगा।
िहस्य क्या है पाताल लोक का अद्भुत िहस्य पाताल लोक परु ाणों र्ें वखणम त एक लोक र्ािा जाता रिा िै कई लोग इसे िकारते िैं तो कई लोग इसे र्ािते भी िैं। पाताल लोक को सर्द्रु के िीचे का लोक भी किा जाता िै । आइये
जािते िैं पाताल लोक के बारें र्ें और उसके रिस्यों के बारे र्ें। यि जािकारी िर् खकसी ब्लाग से आपको साझा कर रिे िैं। इस भू-भाग को प्राचीिकाल र्ें प्रर्ि ु रूप से 3 भागों र्ें बांटा गया था- इंद्रलोक, प्ृ वी लोक और पाताल लोक। इंद्रलोक खिर्ालय और उसके आसपास का क्षेत्र तथा आसर्ाि तक, प्ृ वी लोक अथाम त जिां भी जल, जंगल और सर्तल भूखर् रििे लायक िै और पाताल लोक अथाम त रेखगस्ताि और सर्द्रु के खकिारे के अलावा सर्द्रु के अंदर के लोक। पाताल लोक भी 7 प्रकार के बताए गए िैं। जब िर् यि किते िैं खक भगवाि खवष्णु िे राजा बखल को पाताल लोक का राजा बिा खदया था तो खकस पाताल का? यि जाििा भी जरूरी िै। 7 पातालों र्ें से एक पाताल का िार् पाताल िी िै।
कौन िहता है पाताल र्ें? खिन्दू धर्म र्ें पाताल लोक की खस्थखत प्ृ वी के िीचे बताई गई िै। िीचे से अथम सर्द्रु र्ें या सर्द्रु के खकिारे। पाताल लोक र्ें िाग, दैत्य, दािव और यक्ष रिते िैं। राजा बाखल को भगवाि खवष्णु िे पाताल के सतु ल लोक का राजा बिाया िै और वि तब तक राज करेगा, जब तक खक कखलयगु का अंत ििीं िो जाता। राज करिे के खलए खकसी स्थूल शरीर की जरूरत ििीं िोती, सूक्ष्र् शरीर से भी कार् खकया जा सकता िै। परु ाणों के अिस ु ार राजा बखल अभी भी जीखवत िैं और साल र्ें एक बार प्ृ वी पर आते िैं। प्रारंखभक काल र्ें के रल के र्िाबलीपरु र् र्ें उिका खिवास स्थाि था। परु ाणों के अिस ु ार इस ब्रह्मांि र्ें प्ृ वी, वाय,ु अंतररक्ष, आखदत्य (सयू म ), चंद्रर्ा, िक्षत्र और ब्रह्मलोक िैं। धरती शेि पर खस्थत िै। शेि अथाम त िाली स्थाि। िाली स्थाि र्ें भी बचा िुआ स्थाि िी तो िोता िै। खिन्दू इखतिास ग्रंथ परु ाणों र्ें त्रैलोक्य का वणम ि खर्लता िै। ये 3 लोक िैं- 1. कृतक त्रैलोक्य, 2. र्हलोक, 3. अकृतक त्रैलोक्य। कृतक और अकृतक लोक के बीच र्िलोक खस्थत िै। कृतक त्रैलोक्य जब िष्ट िो जाता िै, तब वि भस्र् रूप र्ें र्िलोक र्ें खस्थत िो जाता िै। अकृतक त्रैलोक्य अथाम त ब्रह्म लोकाखद, जो कभी िष्ट ििीं िोते।
खवस्ततृ वगीकरण के र्तु ाखबक तो 14 लोक िैं- 7 तो प्ृ वी से शरू ु करते िुए ऊपर और 7 िीचे। ये िैं- भूलोक, भवु लोक, स्वलोक, र्िलोक, जिलोक, तपोलोक और ब्रह्मलोक। इसी तरि िीचे वाले लोक िैं- अतल, खवतल, सतल, रसातल, तलातल , र्िातल और पाताल। 1. कृतक त्रैलोक्यकृतक त्रैलोक्य खजसे खत्रभवु ि भी किते िैं, परु ाणों के अिस ु ार यि लोक िश्वर िै। गीता के अिस ु ार यि पररवतम िशील िै। इसकी एक खिखश्चत आयु िै। इस कृतक त्रैलोक्य के 3 प्रकार िै- भूलोक, भवु लोक, स्वलोक (स्वगम )। A. भूलोक: खजतिी दूर तक सूयम, चंद्रर्ा आखद का प्रकाश जाता िै, वि प्ृ वी लोक किलाता िै। िर्ारी प्ृ वी सखित और भी कई पखृ ्वयां िैं। इसे भूलोक भी किते िैं। B. भवु लोक: प्ृ वी और सूयम के बीच के स्थाि को भवु लोक किते िैं। इसर्ें सभी ग्रि-िक्षत्रों का र्ंिल िै। C. स्वलोक: सूयम और ध्रवु के बीच जो 14 लाि योजि का अंतर िै, उसे स्वलोक या स्वगम लोक किते िैं। इसी के बीच र्ें सिखिम का र्ंिल िै। अब जाखिए भूलोक की खस्थखत : परु ाणों के अिस ु ार भूलोक को कई भागों र्ें खवभक्त खकया गया िै। इसर्ें भी इंद्रलोक, प्ृ वी और पाताल की खस्थखत का वणम ि खकया गया िै। िर्ारी इस धरती को भूलोक किते िैं। परु ाणों र्ें संपूणम भूलोक को 7 द्वीपों र्ें बांटा गया िै- जम्बू, प्लक्ष, शाल्र्ली, कुश, िौंच, शाक एवं पष्ु कर। जम्बूद्वीप सभी के बीचोबीच िै। सभी द्वीपों र्ें पाताल की खस्थखत का वणम ि खर्लता िै। खिन्दू धर्म ग्रंथों र्ें पाताल लोक से संबखं धत असंख्य घटिाओं का वणम ि खर्लता िै। किते िैं खक एक बार र्ाता पावम ती के काि की बाली (र्खण) यिां खगर गई थी और पािी र्ें िो गई। िूब िोज-िबर की गई, लेखकि र्खण ििीं खर्ली। बाद र्ें पता चला खक वि र्खण पाताल लोक र्ें
शेििाग के पास पिुंच गई िै। जब शेििाग को इसकी जािकारी िुई तो उसिे पाताल लोक से िी जोरदार फुफकार र्ारी और धरती के अंदर से गरर् जल फूट पडा। गरर् जल के साथ िी र्खण भी खिकल पडी। परु ाणों र्ें पाताल लोक के बारे र्ें सबसे लोकखप्रय प्रसंग भगवाि खवष्णु के अवतार वार्ि और राजा बखल का र्ािा जाता िै। बखल िी पाताल लोक के राजा र्ािे जाते थे। रार्ायण र्ें भी अखिरावण द्वारा रार्-लक्ष्र्ण का िरण कर पाताल लोक ले जािे पर श्री ििर्ु ाि के विां जाकर अखिरावण का वध करिे का प्रसंग आता िै। इसके अलावा भी ब्रह्मांि के 3 लोकों र्ें पाताल लोक का भी धाखर्म क र्ित्व बताया गया िै।
पाताल र्ें जाने के िास्ते : आपिे धरती पर ऐसे कई स्थािों को देिा या उिके बारे र्ें सिु ा िोगा खजिके िार् के आगे पाताल लगा िुआ िै, जैसे पातालकोट, पातालपािी, पातालद्वार, पाताल भैरवी, पाताल दगु म , देवलोक पाताल भवु िेश्वर आखद। िर्म दा िदी को भी पाताल िदी किा जाता िै। िदी के भीतर भी ऐसे कई स्थाि िोते िैं, जिां से पाताल लोक जाया जा सकता िै। सर्द्रु र्ें भी ऐसे कई रास्ते िैं, जिां से पाताल लोक पिुंचा जा सकता िै। धरती के 75 प्रखतशत भाग पर तो जल िी िै। पाताल लोक कोई कल्पिा ििीं। परु ाणों र्ें इसका खवस्तार से वणम ि खर्लता िै। किते िैं खक ऐसी कई गफ ु ाएं िैं, जिां से पाताल लोक जाया जा सकता िै। ऐसी गफ ु ाओं का एक खसरा तो खदिता िै लेखकि दस ू रा किां ित्र् िोता िै, इसका खकसी को पता ििीं। किते िैं खक जोधपरु के पास भी ऐसी गफ ु ाएं िैं खजिके बारे र्ें किा जाता िै खक इिका दस ू रा खसरा आज तक खकसी िे ििीं िोजा। इसके अलावा खपथौरागढ़ र्ें भी िैं पाताल भवु िेश्वर गफ ु ाएं। यिां पर अंधेरी गफ ु ा र्ें देवी-देवताओं की सैकडों र्ूखतम यों के साथ िी एक ऐसा िंभा िै, जो लगातार बढ़ रिा िै। बंगाल की िाडी के आसपास िागलोक िोिे का खजि िै। यिां िाग संप्रदाय भी रिता था।
सर्द्रु तटीय औि िेकगस्तानी इलाके िे पाताल :
प्राचीिकाल र्ें सर्द्रु के तटवती इलाके और रेखगस्तािी क्षेत्र को पाताल किा जाता था। इखतिासकार र्ािते िैं खक वैखदक काल र्ें धरती के तटवती इलाके और िाडी देश को पाताल र्ें र्ािा जाता था। राजा बखल को खजस पाताल लोक का राजा बिाया गया था उसे आजकल सऊदी अरब का क्षेत्र किा जाता िै। र्ािा जाता िै खक र्क्का क्षेत्र का राजा बखल िी था और उसी िे शि ु ाचायम के साथ रिकर र्क्का र्ंखदर बिाया था। िालांखक यि शोध का खविय िै। र्ािा जाता िै खक जब देवताओं िे दैत्यों का िाश कर अर्तृ पाि खकया था तब उन्िोंिे अर्तृ पीकर उसका अवखशष्ट भाग पाताल र्ें िी रि खदया था अत: तभी से विां जल का आिार करिे वाली असरु अखग्ि सदा उद्दीि रिती िै। वि अखग्ि अपिे देवताओं से खियंखत्रत रिती िै और वि अखग्ि अपिे स्थाि के आस-पास ििीं फै लती। इसी कारण धरती के अंदर अखग्ि िै अथाम त अर्तृ र्य सोर् (जल) की िाखि और वखृ ि खिरंतर खदिाई पडती िै। सूयम की खकरणों से र्तृ प्राय पाताल खिवासी चन्द्रर्ा की अर्तृ र्यी खकरणों से पिु : जी उठते िैं। परु ाणों के अिस ु ार भू-लोक यािी प्ृ वी के िीचे 7 प्रकार के लोक िैं खजिर्ें पाताल लोक अंखतर् िै। पाताल लोक को िागलोक का र्ध्य भाग बताया गया िै। पाताल लोकों की संख्या 7 बताई गई िै। खवष्णु परु ाण के अिस ु ार पूरे भू-र्ंिल का क्षेत्रफल 50 करोड योजि िै। इसकी ऊंचाई 70 सिस्र योजि िै। इसके िीचे िी 7 लोक िैं खजिर्ें िर् अिस ु ार पाताल िगर अंखतर् िै। 7 पाताल लोकों के िार् इस प्रकार िैं- 1. अतल, 2. खवतल, 3. सतु ल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. र्िातल और 7. पाताल। 7 प्रकार के पाताल र्ें जो अंखतर् पाताल िै विां की भूखर्यां शक्ु ल, कृष्ण, अरुण और पीत वणम की तथा शकमरार्यी (कं करीली), शैली (पथरीली) और सवु णम र्यी िैं। विां दैत्य, दािव, यक्ष और बडे-बडे िागों और र्त्स्य कन्याओं की जाखतयां वास करती िैं। विां अरुणियि खिर्ालय के सर्ाि एक िी पवम त िै। कुछ इसी प्रकार की भूखर् रेखगस्ताि की भी रिती िै। 1. अतल :
अतल र्ें र्य दािव का पत्रु असरु बल रिता िै। उसिे खछयािवे प्रकार की र्ाया रची िै। 2. खवतल : उसके खवतल लोक र्ें भगवाि िाटके श्वर िार्क र्िादेवजी अपिे पािम द भूतगणों सखित रिते िैं। वे प्रजापखत की सखृ ष्ट वखृ ि के खलए भवािी के साथ खविार करते रिते िैं। उि दोिों के प्रभाव से विां िाट की िार् की एक संदु र िदी बिती िै। 3. सतु ल : खवतल के िीचे सतु ल लोक िै। उसर्ें र्िायशश्वी पखवत्रकीखतम खवरोचि के पत्रु बखल रिते िैं। वार्ि रूप र्ें भगवाि िे खजिसे तीिों लोक छीि खलए थे। 4. तलातल : सतु ल लोक से िीचे तलातल िै। विां खत्रपरु ाखधपखत दािवराज र्य रिता िै। र्यदािव खवियों का परर् गरुु िै। 5.र्िातल : उसके िीचे र्िातल र्ें कश्यप की पत्िी कद्रू से उत्पन्ि िुए अिेक खसरों वाले सपों का ‘िोधवश’ िार्क एक सर्दु ाय रिता िै। उिर्ें किुक, तक्षक, काखलया और सिु ेण आखद प्रधाि िाग िैं। उिके बडे-बडे फि िैं। 6. रसातल : उिके िीचे रसातल र्ें पखण िार् के दैत्य और दािव रिते िैं। ये खिवातकवच, कालेय और खिरण्यपरु वासी भी किलाते िैं। इिका देवताओं से सदा खवरोध रिता िै। 7. पाताल : रसातल के िीचे पाताल िै। विां शंि्ि, कुखलक, र्िाशंि्ि, श्वेत, धिंजय, धतृ राष्ि, शंिचूड, कम्बल, अक्षतर और देवदि आखद बडे िोधी और बडे-बडे फिों वाले िाग रिते िैं। इिर्ें वासखु क प्रधाि िै। उिर्ें खकसी के 5, खकसी के 7, खकसी के 10, खकसी के 100 और खकसी के
1000 खसर िैं। उिके फिों की दर्कती िुई र्खणयां अपिे प्रकाश से पाताल लोक का सारा अंधकार िष्ट कर देती िैं।
क्या है कै लाश पवात का िहस्य कै लाश पवम त एक खवशाल पवम त िै। यि प्रकृखत की एक संदु र रचिा िी िै। र्ािा जाता िै यखद कोई खपराखर्ि प्रकृखत िे िदु बिाया िै तो वि कै लाश पवम त िी िै। प्राचीि सिाति ग्रंथों र्ें भगवाि खशव को कै लाश पवम त का स्वार्ी बताया गया िै। परु णों के अिस ु ार भगवाि खशव और र्ाता पावम ती यिीं पर खिवास करते िैं। आज त्यों र्ें िर् आपको कै लाश पवम त के कुध अद्भतु रिस्यों को बतायेंगे। ध्याि से पखढ़ये और जाखिए इस पवम त के बारे र्ें।
कै लाश पवात …….दुकनया का सबसे बडा िहस्यर्यी पवात, अप्राकृकतक शकक्तयों का भण्डािक
एखक्सस र्ंिु ी(कै लाश पवम त) को ब्रह्मांि का कें द्र, दखु िया की िाखभ या आकाशीय ध्रवु और भौगोखलक ध्रवु के रूप र्ें, यि आकाश और प्ृ वी के बीच संबंध का एक खबंदु िै जिााँ चारों खदशाएं खर्ल जाती िैं। और यि िार्, असली और र्िाि, दखु िया के सबसे पखवत्र और सबसे
रिस्यर्य पिाडों र्ें से एक कै लाश पवम त से सम्बंखधत िैं। एखक्सस र्ंिु ी वि स्थाि िै अलौखकक शखक्त का प्रवाि िोता िै और आप उि शखक्तयों के साथ संपकम कर सकते िैं रूखसया के वैज्ञाखिक िे वि स्थाि कै लाश पवम त बताया िै। भूगोल और पौराखणक रूप से कै लाश पवम त र्ित्वपूणम भूखर्का खिभाता िैं। इस पखवत्र पवम त की ऊंचाई 6714 र्ीटर िै। और यि पास की खिर्ालय सीर्ा की चोखटयों जैसे र्ाउन्ट एवरेस्ट के साथ प्रखतस्पधाम ििीं कर सकता पर इसकी भव्यता ऊंचाई र्ें ििीं, लेखकि अपिी खवखशष्ट आकार र्ें खिखित िै। कै लाश पवम त की संरचिा कम्पास के चार खदक् खबन्दओ ु ं के सार्ाि िै और एकान्त स्थाि पर खस्थत िै जिााँ कोई भी बडा पवम त ििीं िै। कै लाश पवम त पर चडिा खिखिि िै पर 11 सदी र्ें एक खतब्बती बौि योगी खर्लारेपा िे इस पर चडाई की थी। कै लाश पवम त चार र्िाि िखदयों के स्त्रोतों से खघरा िै खसंध, ब्रह्मपत्रु , सतलज और कणाम ली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार िैं पिला र्ािसरोवर जो दखु िया की शि ु पािी की उच्चतर् झीलों र्ें से एक िै और खजसका आकर सूयम के सार्ाि िै तथा राक्षस झील जो दखु िया की िारे पािी की उच्चतर् झीलों र्ें से एक िै और खजसका आकार चन्द्र के सार्ाि िै। ये दोिों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदखशम त करते िैं खजसका सम्बन्ध सकारात्र्क और िकारात्र्क उजाम से िै। जब दखक्षण चेिरे से देिते िैं तो एक स्वखस्तक खचन्ि वास्तव र्ें देिा जा सकता िै. कै लाश पवम त और उसके आस पास के बातावरण पर अध्यि कर रिे रखसया के वैज्ञाखिक Tsar Nikolai Romanov और उिकी टीर् िे खतब्बत के र्ंखदरों र्ें धर्ं गरुु ओं से र्ल ु ाकात की उन्िोंिे बताया कै लाश पवम त के चारों ओर एक अलौखकक शखक्त का प्रवाि िोता िै खजसर्े तपस्वी आज भी आध्याखत्र्क गरुु ओं के साथ telepathic संपकम करते िै। ” In shape it (Mount Kailas) resembles a vast cathedral… the sides of the mountain are perpendicular and fall sheer for hundreds of feet, the strata horizontal, the layers of stone varying slightly in colour, and the dividing lines showing up clear and distinct…… which give to the entire mountain the appearance of having been built by giant hands, of huge blocks of reddish stone.”
देििे र्ें तो कै लाश पवम त एक खवशाल कै थेड्रल जैसा िै…..पवम त एक दर् सीधा सा िै इसकी साइि्स भी एक दर् सीधी िैं और िजारों फीट तक की िैं, पवम त की िाल कई जगिों पर खभन्ि िै, पवम त को अलग करिे वाली रेिायें साफ खदिाई देती िैं………इससे ऐसा प्रतीत िोता िै खक इस पूरे पवम त को खकन्िीं बिुत िी खवशाल िाथों िे बिाया िोगा। (G.C. Rawling, The Great Plateau, London, 1905). रखसया के वैज्ञाखिकों का दावा िै की कै लाश पवम त प्रकृखत द्वारा खिखर्म त सबसे उच्चतर् खपराखर्ि िै। खजसको कुछ साल पिले चाइिा के वैज्ञाखिकों द्वारा सरकारी चाइिीज़ प्रेस र्ें िकार खदया था। वे आगे किते िैं ” कै लाश पवम त दखु िया का सबसे बडा रिस्यर्यी, पखवत्र स्थाि िै खजसके आस पास अप्राकृखतक शखक्तयों का भण्िार िै। इस पखवत्र पवम त सभी धर्ों िे अलग अलग िार् खदए िैं। ” रखसया वैज्ञाखिकों की यि ररपोटम UNSpecial! Magzine र्ें January-August 2004 को प्रकाखशत की गयी थी।
जाकनए अर्िनाि गुफा के अद्भुत िहस्य अर्रिाथ गफ ु ा भगवाि खशव से संबखधंत िै। अर्रिाथ गफ ु ा र्ें भगवाि खशव का िर विम प्राकृखतक खशव खलंग बिता िै खजसके दशम ि के खलए भारत िी ििीं सर्चु े खवश्व से लोग आते िैं। जाखिए इस गफ ु ा से के सबसे अद्भतु औऱ अिजािे रिस्य।। शास्त्रों र्ें जगि-जगि पर भगवाि खशव के र्िात्म्य का वणम ि खर्लता िै। ऋग्वेद र्ें भी खशवजी का गणु गाि खर्लता िै। श्री अर्रिाथ धार् एक ऐसा खशव धार् िै खजसके संबंध र्ें र्ान्यता िै खक भगवाि खशव साक्षात श्री अर्रिाथ गफ ु ा र्ें खवराजर्ाि रिते िैं।
बाबा बफाानी से जडु े हैिान कि देने वाले तथ्य – धाखर्म क व ऐखतिाखसक दृष्टी से अखत र्ित्वपूणम श्री अर्रिाथ यात्रा को कुछ खशव भक्त स्वगम की प्राखि का र्ाध्यर् बताते िैं तो कुछ लोग र्ोक्ष प्राखि का। श्री अर्रिाथ यात्रा िर्ारी एकता का भी प्रतीक र्ािा जता िै। पावि गफ ु ा
र्ें बफीली बूंदों से बििे वाला खिर्खशवखलंग ऐसा दैवी चर्त्कार िै खजसे देििे के खलए िर कोई लालाखयत रिता िै और जो देि लेता िै वो धन्य िो जाता िै। भारत के कोिे-कोिे से और खवदेशों से असंख्य खशव भक्त लगभग 14 िजार फुट की ऊंचाई पर खस्थत श्री अर्रिाथ की गफ ु ा र्ें प्रकृखत के इस चर्त्कार के दशम ि करिे के खलए अिेकों बाधाएं पार करके भी पिुंचते िैं। श्री अर्रिाथ गफ ु ा र्ें खस्थत पावम ती पीठ 51 शखक्तपीठों र्ें से एक िै। र्ान्यता िै खक यिां भगवती सती का कं ठ भाग खगरा था। कश्र्ीर घाटी र्ें खस्थत पावि श्री अर्रिाथ गफ ु ा प्राकृखतक िै। यि पावि गफ ु ा लगभग 160 फुट लम्बी, 100 फुट चौडी और काफी ऊंची िै। कश्र्ीर र्ें वैसे तो 45 खशव धार्, 60 खवष्णु धार्, 3 ब्रह्मा धार्, 22 शखक्त धार्, 700 िाग धार् तथा असंख्य तीथम िैं पर श्री अर्रिाथ धार् का सबसे अखधक र्ित्व िै। काशी र्ें खलंग दशम ि एवं पूजि से दस गणु ा, प्रयाग से सौ गणु ा, िैखर्िारण्य तथा कुरुक्षेत्र से िजार गणु ा फल देिे वाला श्री अर्रिाथ स्वार्ी का पूजि िै। देवताओं की िजार विम तक स्वणम पष्ु प र्ोती एवं पट्टआ वस्त्रों से पूजा का जो फल खर्लता िै, वि श्री अर्रिाथ की रसखलंग पूजा से एक िी खदि र्ें प्राि िो जाता िै। श्री अर्रिाथ गफ ु ा र्ें खशव भक्त प्राकृखतक खिर्खशवखलंग के साथ-साथ बफम से िी बििे वाले प्राकृखतक शेििाग, श्री गणेश पीठ व र्ाता पावम ती पीठ के भी दशम ि करते िैं। प्राकृखतक रूप से प्रखत विम बििे वाले खिर्खशवखलंग र्ें इतिी अखधक चर्क खवद्यर्ाि िोती िै खक देििे वालों की आंिों को चकाचौंध कर देती िै। खिर्खशवखलंग पक्की बफम का बिता िै जबखक गफ ु ा के बािर र्ीलों तक सवम त्र कच्ची बफम िी देििे को खर्लती िै। र्ान्यता यि भी िै खक गफ ु ा के ऊपर पवम त पर श्री रार् कंु ि िै। भगवाि खशव िे र्ाता पावम ती को सखृ ष्टआ की रचिा इसी अर्रिाथ गफ ु ा र्ें सिु ाई थी। गुफा की खोज – इस गफ ु ा की िोज बूटा र्खलक िार्क एक बिुत िी िेक और दयालु एक र्स ु लर्ाि गिररए िे की थी। वि एक खदि भेडें चराते-चराते बिुत दरू खिकल गया। एक जंगल र्ें पिुंचकर उसकी
एक साधू से भेंट िो गई। साधू िे बूटा र्खलक को कोयले से भरी एक कांगडी दे दी। घर पिुंचकर उसिे कोयले की जगि सोिा पाया तो वि बिुत िैराि िुआ। उसी सर्य वि साधू का धन्यवाद करिे के खलए गया परन्तु विां साधू को ि पाकर एक खवशाल गफ ु ा को देिा। उसी खदि से यि स्थाि एक तीथम बि गया। एक बार देवखिम िारद कै लाश पवम त पर भगवाि शंकर के दशम िाथम पधारे। भगवाि शंकर उस सर्य वि खविार को गए िुए थे और पावम ती जी विां खवराजर्ाि थीं। पावम ती जी िे देवखिम के आिे का कारण पूछा तो उन्िोंिे किा-देवी! भगवाि शंकर, जो िर् दोिों से बडे िैं, के गले र्ें र्िंु र्ाला क्यों िै? भगवाि शंकर के विां आिे पर यिी प्रश्र पावम ती जी िे उिसे खकया। भगवाि शंकर िे किा-िे पावम ती! खजतिी बार तम्ु िारा जन्र् िुआ िै, उतिे िी र्िंु र्ैंिे धारण खकए िैं। पावाती जी बोलीं – र्ेरा शरीर िाशवाि िै, र्त्ृ यु को प्राि िोता िै परन्तु आप अर्र िैं, इसका कारण बतािे का कष्ट करें। भगवाि शंकर िे किा -यि सब अर्रकथा के कारण िै। इस पर पावम ती जी के हृदय र्ें भी अर्रत्व प्राि करिे की भाविा पैदा िो गई और वि भगवाि से कथा सिु ािे का आग्रि करिे लगीं। भगवाि शंकर िे बिुत विों तक टालिे का प्रयत्ि खकया परन्तु अंतत: उन्िें अर्रकथा सिु ािे को बाध्य िोिा पडा। अर्रकथा सिु ािे के खलए सर्स्या यि थी खक कोई अन्य जीव उस कथा को ि सिु े। इसखलए खशव जी पांच तत्वों (प्ृ वी, जल, वाय,ु आकाश और अखग्र) का पररत्याग करके इि पवम त र्ालाओं र्ें पिुंच गए और श्री अर्रिाथ गफ ु ा र्ें पावम ती जी को अर्रकथा सिु ाई। श्री अर्रकथा गफ ु ा की ओर जाते िुए वि सवम प्रथर् पिलगार् पिुचं े, जिां उन्िोंिे अपिे िंदी (बैल) का पररत्याग खकया। उसके बाद चंदिबाडी र्ें अपिी जटा से चंद्रर्ा को र्क्त ु खकया। शेििाग िार्क झील पर पिुंच कर उन्िोंिे गले से सपों को भी उतार खदया। खप्रय पत्रु श्री गणेश जी को भी उन्िोंिे र्िागणु स पवम त पर छोड देिे का खिश्चय खकया। खफर पंचतरणी िार्क स्थाि पर पिुंच कर खशव भगवाि िे पांचों तत्वों का पररत्याग खकया। इसके पश्चात ऐसी र्ान्यता िै खक खशव-पावम ती िे इस पवम त शंि ृ ला र्ें तांिव खकया था। तांिव ित्ृ य वास्तव र्ें सखृ ष्टआ के त्याग
का प्रतीक र्ािा गया। सब कुछ छोड अंत र्ें भगवाि खशव िे इस गफ ु ा र्ें प्रवेश खकया और पावम ती जी को अर्रकथा सिु ाई। खकं वदंती के अिस ु ार रक्षा बंधि की पूखणम र्ा के खदि जो सार्ान्यत: अगस्त के बीच र्ें पडती िै, भगवाि शंकर स्वयं श्री अर्रिाथ गफ ु ा र्ें पधारते िैं। ऐसा भी ग्रंथों र्ें खलिा खर्लता िै खक भगवाि खशव इस गफ ु ा र्ें पिले पिल श्रावण की पखू णम र्ा को आए थे इसखलए उस खदि को श्री अर्रिाथ की यात्रा को खवशेि र्ित्व खर्ला। रक्षा बंधि की पखू णम र्ा के खदि िी छडी र्बु ारक भी गफ ु ा र्ें बिे खिर्खशवखलंग के पास स्थाखपत कर दी जाती िै। श्री अर्रिाथ गफ ु ा र्ें बफम से बिे खशवखलंग की पूजा िोती िै। इस सम्बन्ध र्ें अर्रेश र्िादेव की कथा भी र्शिूर िै। इसके अिस ु ार आखदकाल र्ें ब्रह्म, प्रकृखत, अिंकार, स्थावर (पवम ताखद) जंगल (र्िष्ु य) संसार की उत्पखि िुई। इस िर्ािस ु ार देवता, ऋखि, खपतर, गंधवम , राक्षस, सपम , यक्ष, भूतगण, दािव आखद की उत्पखि िुई। इस तरि िए प्रकार के भूतों की सखृ ष्टआ िुई परन्तु इंद्राखद देवता सखित सभी र्त्ृ यु के वश र्ें िुए थे। देवता भगवाि सदाखशव के पास आए क्योंखक उन्िें र्त्ृ यु का भय था। भय से त्रस्त सभी देवताओं िे भगवाि भोलेिाथ की स्तखु त कर र्त्ृ यु बाधा से र्खु क्त का उपाय पूछा। भोलेिाथ स्वार्ी बोले-र्ैं आप लोगों की र्त्ृ यु के भय से रक्षा करूंगा। किते िुए सदाखशव िे अपिे खसर पर से चंद्रर्ा की कला को उतार कर खिचोडा और देवगणों से बोले, यि आप लोगों के र्त्ृ यरु ोग की औिखध िै उस चंद्रकला के खिचोिऩे से पखवत्र अर्तृ की धारा बि खिकली। चंद्रकला को खिचोडते सर्य भगवाि सदाखशव के शरीर से अर्तृ खबंबदु प्ृ वी पर खगर कर सूि गए। पावि गफ ु ा र्ें जो भस्र् िै, वि इसी अर्तृ ङ्क्क्षबदु के कण िै। सदाखशव भगवाि देवताओं पर प्रेर् न्यौछावर करते सर्य स्वयं द्रवीभूत िो गए और देवताओं से किा-देवताओ! आपिे र्ेरा बफम का खलंग शरीर इस गफ ु ा र्ें देिा िै। इस कारण र्ेरी कृपा से आप लोगों को र्त्ृ यु का भय ििीं रिेगा। अब आप यिीं अर्र िोकर खशव रूप को प्राि िो जाएं। आज से र्ेरा यि अिाखद खलंग शरीर तीिों लोकों र्ें अर्रेश के िार् से खवख्यात िोगा। भगवाि सदाखशव देवताओं को ऐसा वर देकर
उस खदि से लीि िोकर गफ ु ा र्ें रििे लगे। भगवाि सदाखशव र्िाराज िे देवताओं की र्त्ृ यु का िाश खकया, इसखलए तभी से उिका िार् अर्रेश्वर प्रखसि िुआ िै। र्िष्ु य श्री अर्रिाथ जी की यात्रा करके शखु ि को प्राि करता िै तथा खशवखलंग के दशम िों से भीतर-बािर से शि ु िोकर धर्म , अथम , कार् वचि तथा र्ोक्ष को प्राि करिे र्ें सर्थम िो जाता िै। अर्रिाथ धार् पिुंचिा सौभाग्य की बात िै। विां भगवाि खशव के दशम ि करिे से सवम सि ु की प्राखि िोती िै। बाबा बफाम िी की गफ ु ा र्ें प्रवेश करके भगवाि खशव की साक्षात उपखस्थखत का एिसास िोता िै।
इस सागर जैसी जािकारी को िर्िे खवखभन्ि स्रोंतो से खलया िै और खिखजटल बिाकर के आपको सर्खपम त खकया िै। िर्ारा प्रयास आपको संस्कृखत भारत से जोडिे का रिा िै और िर् इसे खिरंतरता से करते रिेंगे। कृपया इस खिखजटल खकताब को र्फ्ु त र्ें िा बाटें सभी को प्राि करिे के खलए दें।