SARV BADHA NIVARAK BHAGVATI CHAMUNDA PRAYOG
ॎ सत्यं च श्रिये िद्धे जन्मश्रन व्रते कायय कायायती प्रवद्धे हः| तस्मै िी गुरुवै नमः, तस्मै िी गुरुवै नमः ||
“जो ईश्वर मानव गर्भ से जन्म लेकर नर रूप धारण कर सर्ी प्रकार के घातप्रततघातों को सहन करते हुए यह स्पष्ट करते हैं तक मनष्ु य जीवन संघषों में ही तखलता है, हे गरुु देव मझ ु े इन संघषों पर तवजय प्राप्त करने की शति प्रदान करें .” र्ाइयो बहनों जीवन उतना सरल नहीं है तजतना हम सोचते हैं. दरअसल हम जैसा चाहते हैं प्रकृतत वैसा होने नहीं देती, उसका तवपरीत होता है. क्यों ? क्यों हम जीवन को सहज और सरलता से जी नहीं पाते ? कर्ी धन है तो स्वास््य नहीं और स्वास््य और धन है तो संतान नहीं . संतान है तो वह स्वास््य नहीं या दगु भ णु ी है.क्यों ? दरअसल प्रकृतत हमें हमारे पूवभ जीवन कृत इह जीवन कृत पाप दोष का आर्ास कराती है , जो तक हम समझ ही नहीं पाते और कर्ी तकस्मत को या कर्ी तकसी को दोष देते रहते हैं ....... र्ाइयो बहनों प्रकृतत कौन ? अरे र्ाई प्रकृतत यातन मा आतद शति ही न.... तो तिर कै सी तचंता जब मााँ है तो .... और मााँ को मनाना सबसे सरल है न! यतद सच में तबलकुल तनश्छलता औए पूणभ समपभ ण के साथ मााँ को याद र्ी करले तो ऐसा हो ही नहीं सकता की वो प्रसन्न होकर वरदान देने के तलए बाध्य न हो......
र्ाइयो बहनों नवराति के पहले अमावस्य आती है और यतद इस अमावस्या को ही हम अपने दर्ु ाभ ग्य को दूर करने का प्रयास करें, और तिर तनतिन्त होकर मााँ आतद शति के इन नव तदनों में जो शति के प्रततक माने गए हैं तसति के प्रतीक माने गए हैं, हतषभ त मन से न के वल साधना की जाये अतपतु तसति र्ी हातसल की जाये तजससे मााँ का वरद हस्त सदैव आपके शीश पर हो और आप जीवन के प्रत्येक क्षेि में पूणभ सिलता के साथ सवोपरर रह सको ..... तो इस साधना के तलए तैयार हो जाओ, क्योंतक इससे यतद ----ग्रह बाधा, तांतिक बाधा, तकसी कारणवश हरेक कायभ में बाधा आ रही हो, साधना में बाधा आ रही हो, समस्त बाधाओं को तमटा कर पूणभ अनक ु ू लता देने वाली दल ु भ र् साधना है और अत्यंत सहज र्ी....... तकसी र्ी अमावश को राति में १० बजे के बाद स्नान कर उत्तर तदशा की और महु कर बैठ जाए ाँ और सामने ही मााँ दगु ाभ का सन्ु दर तचि हो या दगु ाभ यंि हो या तवग्रह हो, साथ ही गरुु तचि र्ी आवश्यक है ही, जो की आप जानते ही हैं पीला आसन, पीली धोती और घी का दीपक जो साधना काल में जलना चातहए, सबसे पहले गरुु , गणपतत और र्गवन र्ैरव का संतक्षप्त पूजन करें तिर एक माला गणपतत मन्ि (ॐ ग्लौं गं गणपतये नमः) की एक माला गरुु मन्ि की और एक गायिी मन्ि की जपना चातहए जो शाप तवमोचन हेतु है.... अब इसके पिात् एक कागज पर अपनी मनोकामना तलख कर सामने रख लें और संकल्प लेकर तिर एक माला गरुु मंि की संपन्न करे, तथा उसके पिात्
रुद्राक्ष या मूंगा माला से पांच माला तनम्न मन्ि की करें, ॎ ऐं ह्रीं क्लीं चामुड ं ायै श्रवच्चे | ॎ ग्लौं ग्लौं हूँ हूँ क्लीं क्लीं जूं जूं सः सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुड ं ायै श्रवच्चे |
अब इसके बाद तिर एक माला गरुु मन्ि की संपन्न कर दबु ारा गरुु , गणपतत और र्ैरव का पूजन संपन्न कर क्षमा याचना कर गरुु देव को मन्ि समतपभ त करे ..... र्ाइयों बहनों उि साधना में चार से पांच घंटे लग सकते हैं तकन्तु दर्ु ाभ ग्य और बाधाओं को पणू भ रूप से तमटाने वाली साधना है जो की पहली बार में ही अपना पूणभ प्रर्ाव तदखाती है .... तो कीतजये इस साधना को और रही बात अनर्ु व की तो वो स्वयं कररए और देतखये PARAM DURLABH SOUBHAGYA VAASTU KRITYA MAHAYANTRA
स्त्रीपुत्रादि भोगसौरव्यजनन धर्ममाार्ाकामप्रिम | जन्तनामयनम सुखास्पिमदमिं शीतार्मबुिाद्यमाायहम || वादपिेवगृहादिपुण्यमदखलं गेहात्सस्मुत्सपि््ते | गेह पूवामश ु दन्ततेन दवबध ु ााःश्रीदवस्वर्ममााियाः || स्त्री, पत्रु अदद के भोग,सख ु ,धमम,ऄथम,काम अदद देने वाला प्रादणयों का सख ु स्थल,सदी,गमी,वायु से रषा ा करने वाला गहृ ही,दनयमानसु ार गहृ दनमामणकताम को देवस्थान और बाबड़ी अदद दनमामण का भी पण्ु य प्राप्त होता हैं.ऄतः दवश्वकमाम अदद देव दिदपपयों ने सवमप्रथम गहृ दनमामण का ही दनदेि ददया हैं.
यह श्लोक ही ऄपने अप में गहृ की महत्वता को समझाने दलए पयामप्त हैं पर अज के समय में एक पणू म रूप से दोष मक्त ु गहृ का दनमामण क्या हो सकता हैं? ,और आस पररपेषा में दजस दवज्ञानं से हम पररदित हुए हैं वह हैं वास्तु दवज्ञान . पहले हम देखते हैं की की वास्तु दोषः यक्त ु दनवास में रहने वाले व्यदक्तयों पर दकन दकन दोष का अरोपण सभं व हैं . हर समय घर में ऊणात्मक उजाम का कहीं जयादा ऄसर व्यापत होना. पररवार के सदस्यों में अपसी स्नेह का लगातार कम होते जाना और तनाब यक्त ु वातावरण का हमेिा बने रहना. पाररवार के सदस्यों की अदथमक ईन्नदत में लगातार वाधा अना. साधना करने के दलए अधा ऄधरू ा मन और साधना को बीि में ही छोड़ देने की प्रवदृ ि का लगतार होना. पररवार में ऄसमय मत्ृ यु हो जाना. पररवार के सदस्यों का नैदतक और सममदजक दनयम का पालन नहीं करना. पररवार में योग्य सदस्यों के दववाह में वाधा. पदत पत्नी के अपसी व्यदक्तगत सबंधो में तनाव. लगातार बीमाररयों का बने रहना. अत्महत्या जैसी हीन प्रवदृ तयों की और लगातार झक ु ाव. जीवन के प्रदत ईत्साह हीन,ईमंगरदहत दृष्टी कोण. मानदसक ऄवसाद का लगातार बने रहना. साधना करने पर भी यथोदित मनोकुल पररणाम का न दमलना. आस तरह से देखा जाए तो सभी समस्याओ ं के मल ू में कहीं न कहीं यह वास्तु दोष होता ही हैं.और यही ही नहीं,एक ओर महत्वपणू म तथ्य हैं की आस कारण स्वत ही ग्रह वाधाएं भी दनमामदणत होने लगती हैं कारण स्पस्ट हैं दक हमारे अवास स्थान में भी समस्त नवग्रहों का अवास भी तो माना जाता हैं ,यह दबलकुल वैसा ही हैं जैसा की हमारे िरीर में नवग्रह का वास होना.ऄतः ग्रह वाधा भी एक कारण बन जाता हैं.
िोष पूर्ा घर में रहने पर स्वत ही पञ्च महाभुतो की दस्र्दत में असतं ुलन होने लगता हैं और जो सारे सृष्टी का आधार हैं जब उनमे ही असतं ुलन होगा तो आप ही सोचें की दिर कहााँ से सौभाग्य आएगा? आप कै से साधना कर पायेंगे.? साधना करने के दलए तो एक मनोकुल वातावरण होना भी तो अवश्यक हैं,दबना ईसके साधना करना कै से संभव होगा?,और मान लीदजये दृढ दनश्चय से संपन्न कर ली भी यी तो भीईनको जो साधनात्मक ईजाम प्राप्त हुयी भी हैं तो ईस वातावरण की ऊणात्मक उजाम से नष्ट हो जाएगी और बहुत कम ही अपको पररणाम दमलेगा. यह एक सदु विाररत और वैज्ञादनक दृष्टी से यक्त ु कथन हैं की वातावरण व्यदक्त के मनोबल से कहीं जयादा प्रभाव करता हैं. उपर दलखे कुछ मल ू भतु तथ्यों से अप जान सकते हैं की घर वास्तु दृष्टी से दोषयक्त ु हैं या नहीं .. और जहााँ तक जन्म कंु डली की बातअती हैं तो वहां भी दकसी व्यदक्त की तरह, ईस अवास स्थान की भी कंु डली बनायीं जा सकती हैं.ईस पर से भी दकतना दोष हैं यह पता लगाया जा सकता हैं, एक सामान्य सी बात हैं की ितथु म भाव व्यदक्त की ऄिल संपदि या ईसके अवास का भी पररिायक होता हैं हैं ,वहां पर राहू ,िदन,मगं ल जैसे ग्रहों का दस्थत होना या ईनकी दृष्टी पढ़ना या ईनका योग होना भी आस बात का पररिायक हैं की आस ओर से व्यदक्त को वाधाये होगी ही . यह नहीं तो गोिर के काल में भी ऄनेको ऄिभु ता वाली दस्थदत ईत्पन्न हो सकती हैं . और यह ऄवस्था िभु तो नहीं कहीं जा सकती हैं . एक व्यदक्त जीवन भर की पंजू ी सदं ित करके ऄपने दलए एक अवास का दनमामण करवाता हैं और कइ कइ बार तो ईनके घर प्रवेि या कुछ ऐसे नषा त्रो का योग भी हो जाता हैं दजस कारण ईनके दलए एक से एक बढ़कर समस्याए ईत्पन्न होती रहती हैं वह एक ज्योदतष से दसु रे ज्योदतष के पास भागता रहता हैं पर सतं ोष जनक हल भी कहााँ ईसे दमलता हैं .ऄगर दमले भी तो आतना व्यय करना पड़ता हैं की. ऄब आसका एक सरल सा ईपाय सामने अय हैं की फें गसइु जैसे दवधाओ का प्रयोग ,याँू तो हर दकसी को ऄपने दहसाब से ईसे दजसमे ऄनक ु ू लता दमले ईस दवज्ञानं का प्रयोग करना ही िादहये, यह दवज्ञानं बहुत ज्यादा ईपयोगी ईन देिो में हुअ हैं, जहााँ से यह अया हैं कारण ईन देि की जलवायु और ऄन्य भौगोदलक कारण ..जैसे हमारे दलए दहमालय ईिर में हैं तो हमारे
दलए ईिर ददिा का जो महत्त्व हैं वह क्या िीन देि या ईन देिों में भी होगा जो दहमालय के दसू री और हैं.?? पर दनराकरर् के दलए दकया क्या जाए?? एक तरफ तो वास्तु िादस्त्रयों द्वारा जो तोड़ फोड़ की दवधा ऄपनाइ जाती हैं ईसका तो सदगरुु देव जी भी ऄपनी ऄसहमदत दे िक ु े हैं की यह भवन बनबाने के बाद ईदित नहीं हैं.और वैसे भी आन ईपायों में जो धन रादि लगती हैं वह आतनी ऄदधक होती हैं की एक सामान्य मध्यम वगीय पररवार ईस व्यवय को वहन करने की सोि भी नहीं सकता हैं .वही ाँ फ्लेट में रहने वालों के दलए तो यह भी संभव नही हैं की वह तोड़फोड़ ऄपनी मजी से कर सकें . तब एक सामान्य सा सरल सा ईपाय सा अमने अता हैं दजसके बारे में सदगरुु देव जी ने भी बताया हैं वह हैं एक “अष्ट सस्ं काररत पारि दशवदलगं ” का स्र्ापन जो की आवश्यक समस्त तांदत्रकऔर अन्य उपयोगी दियाओ ं द्वारा आपके दलए उपयोगी हो सकें पर इस पारि दशवदलगं पर इतनी अदधक लागत आ जाती हैं की यह भी सभ ं व नहीं हैं दक हर व्यदि इसे प्राप्त भी कर सकें . तो ऄब क्या व्यदक्त दसफम हाथ पर हाथ धरे बैठा ही रहे?? ऐसा नहीं हैं सदगरुु देव जी ने आन दवषमताओ को देखकर १९९१ की नवरादत्र में एक ऄदत दवदिष्ट प्रयोग दजसे “वास्तु सौभाग्य कृत्या साधना” के बारे में बताया और आस साधना के यन्त्र का दनमामण तो कदठन हैं ही पर आसके पणू म रूप से फलीभतु होने के दलए जो भी अवश्यक जड़ी बदू टयों के साथ ऄन्य बहुमपू य पदाथो सदममश्रण का हवन भी तो करना पड़ता हैं,आसके साथ अवश्यक मत्रं जप करना पड़ता हैं.आस सभी को देखा जाए तो ईस पर एक यन्त्र की लागत में 22 से 25 हज़ार का का खिम बैठता हैं . ऄभी हाल ही में अररफ भाइ जी और मेरे साथ रघु भाइ जी भी आसी बात पर, अपसी दविार दवमिम कर रहे थे, दक कै से कोइ एक ऐसा यन्त्र ऄपने भाइ बदहनों को ईपलब्ध कराया जाए , जो दसफम ईस यन्त्र ईपलब्ध कराने के नाम पर कोइ तामबे का टुकड़ा नहीं बदपक जब वह ईसे ऄपने हाथ में लें तो ईसकी ईजाम स्वयम भी ऄनभु व कर सकें , ऄपने भौदतक और अध्यादत्मक जीवन में ऄसर स्वयम भी ऄनभु तू कर सकें .तब तो ऄथम हैं.और हम सभी ने दनश्चय दकया की क्यों न आस ऄद्भुत वास्तु सौभाग्य कृत्या यन्त्र को अपने भाइ बदहनों के दलए ईपलब्ध कराया जाए,और आस हेतु दजतना भी व्यव हो वह हम ही वहन करें क्योंदक लक्ष्मी
का स्थापन होना ऄगर जरुरी हैं तो सौभाग्य भी तो लक्ष्मी का ही एक रूप हैं और जब तक सौभाग्य ही न बने, तब क्या ऄथम रखता हैं जीवन की ऄन्य ऄवस्था का??? पर जब सौभाग्य की बात हो रही हो, तब दकसी एक व्यदक्त के दलए नहीं बदपक ईसके सारे पररवार के दलए ही कोइ ऐसा दवधान हो तब न ऄथम हैं ऄन्यथा जदटल कादममक दनयमो के कारण दकसी एक का भाग्य भी दकसी ऄन्य ईसके दनकट पाररवार जनो के खराब भाग्य के कारण भी तो प्रभादवत होगा ही.क्योंदक पाररवार तो एक आकाइ हैं तो ईसके सारे भागों का ,सारे ऄगं ो का सौभाग्य यक्त ु होना भी अवश्यक हैं,तभी तो जीवन का एक ऄथम हैं और दफर साधना ऄसर ईन्हें दमलेगा . ऄतः यह जब दनदश्चत हो गया की आस यन्त्र का दनमामण करना हैं,पर आस यन्त्र के दनमामण में यह अवश्यक हैं की व्यदक्त दविेष के नाम से ईसके पाररवार के दलए संकदपपत करके आसकी समस्त तांदत्रक और मादन्त्रक दियाओ ं के साथ ऄदत दवदिष्ट हवानात्मक जो भी प्रदिया हैं वह भी पणू तम ा के साथ समपन्न की जाए . यह भाग ऄथामत यन्त्र का पणू मता के साथ समष्ट दियाओ ं यक्त ु दनमामण और प्राण प्रदतष्ठा अदद कायम तो हम कर लेंगे पर दजसके पास यह यन्त्र होगा ईसे 21 अप्रैल 2013 को ही यह आस यन्त्र पर प्रयोग भी करना हैं और यह प्रयोग प्राताः काल ही होगा .इसमें मात्र तीन घंटे का आदधकतम समय लगेगा.यह दसिा एक दिवसीय प्रयोग हैं. २१ ऄप्रैल की महत्वता हम सभी जानते हैं ही .आस जैसा दल ु मभ और ऄदत महत्वपणू म समय, एक दिष्य के दलए दफर कहााँ . इस बार २१ अप्रैल को “कामिा एकािशी दिवस” हैं, इसका नाम ही आपको इसका अर्ा समझाने के दलए पयााप्त हैं दक समस्त मनोकामना पूदता दिवस . वह भी शुक्ल पक्ष अर्ाात दजसमे चन्र कलाओ ं में लगातार बढ़ोत्तरी होती हैं, इस तरह से शक्ु ल पक्ष का यह गुर् भी इस दिवस पर सगं ुदित हो गया .अप्रेल मॉस में इस समय, सयू ा जो आत्समा का प्रतीक हैं, जो जीवन में आगे बढ़ने का प्रतीक है जो नवग्रहों के प्रार् भी कहे जा सकते हैं, जो नव ग्रहों को दनयदं त्रत भी करने में समर्ा हैं वह अपनी उच्च रादश में होंगे.और भवन, भूदम के प्रतीक मंगल ग्रह का भी अपनी ही रादश में होना अत्सयंत हो सौभाग्यिायक हैं . ऄगर आन षा णों का प्रयोग करके मात्र तीन घटें का यह एक ददवसीय प्रयोग संपन्न कर दलया जाए तो अपके पररवार के दलए यह साधना परू ी होती हैं और यह सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र पणू म फलदायी हो जाता हैं .
आस ददन के ऄलावा कोइ और ददवस आस प्रयोग के दलए नहीं हैं . और जब हम यह यन्त्र दनिक्ु ल ईपलब्ध करवा रहे हैं तो कुछ दनयम भी हैं . पहला तो यह की आस हेतु अपको आ मेल
[email protected] पर अप भेज दें और subject /दवषय में स्पष्ट दलखे की “ सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र हेतु “. अप ऄपना परू ा नाम और पता दपन कोड के साथ ईसी आ मेल में भेज दें . हमने आस हेतु जो ऄंदतम समय सीमा रखी हैं वह हैं 1 ऄप्रैल 2013.आस ददन के बाद अने वाली दकसी भी प्रकार की कोइ भी request आस यन्त्र के दलए दकसी भी हाल में स्वीकायम नहीं होगी . यह यन्त्र पणू मतया दनिपु क हैं आसके दलए अपसे भी दकसी भी प्रकार का कोइ भी िपु क नहीं दलया जा रहा हैं यह NPRU पररवार की ओर से अप सभी स्नेदहयों को ईपहार स्वरुप हैं. हमारे द्वारा आसे रदजस्टडम डॉक से भेजा जायेगा ,यह सारा खिम भी हम वहन करें गे .और ऄगर दकसी को कोररयर से यह यंत्र ऄपने पते पर मगवाना िाहता हैं तो ईस हेतु अपको कोररयर िाजम लगेगा .(यह स्वाभादवक सी बात हैं ) आस यन्त्र के दनमामण/प्राण प्रदतष्ठा /और हवानात्मक,मादन्त्रक तांदत्रक प्रदियाओ ं में आतना ऄदधक व्यव अता हैं की आसे दकसी भी हालत में दबु ारा नहीं भेजा जायेगा. दमत्रो, अपका स्नेह और सहयोग हमारे आस पररवार के प्रदत आतना ऄदधक हैं ,ईस स्नेह की ईष्मा के कारण, हम भी यह संभव कर पाते हैं . और ऄतं में आतना सदवनय दनवेदन हैं ही. दकसी ऄदत बदु िमान को आस यन्त्र के बारे में कोइ सदं हे हो तो वह कृपया आसे न मगवाये .वह ऄन्यत्र ऄपने दहसाब से योग्य जगह से प्राप्त कर लें तो ईनके दलए दलए भी कहीं ज्यादा ईदित रहेगा . CHANDRINI PRAYOG
नवग्रह की साधना ईपासना हमारी संस्कृदत का एक ऄदभन्न ऄंग है, तथा सभी ग्रह का ऄपना एक ऄलग ही महत्त्व है. ज्योदतष गणना तथा तत्रं ज्योदतष जैसी ईच्ितम दवद्याओ का अधार
ग्रह ही तो है. हमारे जीवन की दनत्य दिया कलापों का अधार भी आन ग्रहों की दस्थदत ही है यह एक दनदवमवाददत सत्य है, सभी व्यदक्तयो के जीवन िम का अधार आन ग्रहों की द्रदष्ट एवं स्थान से प्रमाण से होता है यही ज्योदतष दवज्ञान का भी दसिांत है. कइ बार दवदवध कारणों से आन ग्रहों से सबंदधत नकारात्मक ईजाम के कारण व्यदक्त के जीवन में सबंदधत ग्रह जन्य कइ प्रकार की समस्याओ का सामना भी करना पड़ सकता है यह तथ्य ज्यादातर व्यदक्त अज स्वीकार करने लगे है. तांदत्रक वाग्मय में कइ प्रकार के ऐसे दल ु मभ दवधान है दजसके माध्यम से ग्रहों के कारण होने वाली समस्याओ का दनराकरण दकया जा सकता है तथा ईससे भी अगे, आन ग्रहों तथा ईनकी िदक्तयों से सबंदधत साधनाओ का सहारा ले कर ईनकी कृपा प्राप्त कर दवदवध लाभ को प्राप्त दकया जा सकता है. आस द्रदष्ट से सयू म तथा िदन ग्रह से सबंदधत साधनाओ का बहोत ही प्रिार प्रसार रहा है. लेदकन आसका ऄथम यह नहीं है की दसू रे ग्रह तथा ईनसे सबदं धत दवधान का प्रिलन में नहीं है, भले ही जनमानस के मध्य यह दवधान प्रस्ततु न हो लेदकन तंत्र दसिो के मध्य आस प्रकार के दल ु मभ दवधानों का प्रिलन ज़रूर रहा है. आसी िम में एक दल ु मभ िम है िदन्द्रदण साधना. पौरादणक द्रदष्ट से िन्द्र की कइ पदत्नयों का दववरण प्राप्त होता है तथा ईनकी दवदवध कला िदक्तयों के बारे में भी ज्ञात होता है. िदन्द्रदण िन्द्र ग्रह की एक एसी ही कला िदक्त है जो की ऄपने अप में मनष्ु य के जीवन को पणू म रूप से परावदतमत करने में समथम है. जल गमन जेसी दल ु मभतम साधना भी देवी िदन्द्रदण के माध्यम से सम्पन की जाती है. कुछ दवद्वान तादन्त्रको का यह मत है की िदन्द्रदण देवी वस्ततु ः भगवती काली की ही खडं ऄंि िदक्त है. आस द्रदष्ट से ईनको योदगनी स्वरुप में भी देखा जाता है तथा कइ बार भगवती की सेवा में सतत रत देवी के स्वरुप में भी. परु ातन काल में देवी से सबंदधत कइ तीक्ष्ण प्रयोग जलगमन की दसदि प्रादप्त के दलए दकये जाते थे, लेदकन प्रस्ततु प्रयोग राजदसक भाव से यक्त ु प्रयोग है दजसको सम्पन करने के बाद साधक कइ लाभों की प्रादप्त कर सकता है. साधक ऄपने दलए या दफर दसू रे दकसी व्यदक्त के दलए यह प्रयोग सम्पन कर सकता है.
दजन व्यदक्तयो का िन्द्र कमजोर हो या यथायोग्य पररणाम न देता हो यह प्रयोग करने पर ईनको ऄनक ु ू लता की प्रादप्त होती है. जो भी व्यदक्त को मानदसक प्रताडना होती हो, मानदसक रोग है तथा दहन् भावना से ग्रस्त है, ईनके दलए यह प्रयोग श्रेष्ठ है. ऄगर व्यदक्त िाहे तो संकपप ले कर यह प्रयोग ऄपने दकसी भी सपु ररदित व्यदक्त के दलए भी सम्पन कर सकता है. मानदसक तदु ष्ट तथा पाररवाररक िांदत के दलए यह प्रयोग ईिम है. कपपनायोग के ऄभ्यासी साधको के दलए यह एक ऄमपू य प्रयोग है दजसे सम्पन करने के बाद योगाभ्यास में तीव्रता अती है. भावनात्मक ऄसतं ल ु न से बिने के दलए तथा िोध अदद ऊण भावो का नकारात्मक पररणाम से भदवष्य को बिाने के दलए भी यह साधना ऄत्यंत ईपयोगी है. यह साधना साधक दकसी भी पदू णममा को सम्पन करे ऄगर यह संभव न हो तो िक्ु ल पषा के सोमवार से िरू ु करे . समय सयू ामस्त के बाद का रहे. आस साधना में साधक सफ़े द वस्त्र तथा सफ़े द असन का प्रयोग करे . साधक स्नान अदद से दनवतृ हो कर ईिर की तरफ मख ु कर बैठ जाए. आसके बाद साधक एक बड़ा सा तेल का दीपक स्थादपत करे . साधक गरुु पजू न, गणेि पजू न सम्पन कर सवम प्रथम न्यास करे . 1 माला मल ू िन्द्र मंत्र की करे . आस साधना के दलए साधक रुद्राषा , या स्फदटक की माला का प्रयोग करे . करन्यास श्रां अङ्गुष्ठाभयां नमाः
श्रीं तजानीभयां नमाः श्रूं मध्यमाभयां नमाः श्रैं अनादमकाभयां नमाः श्रौं कदनष्टकाभयां नमाः श्राः करतल करपृष्ठाभयां नमाः अंगन्यास श्रां हृियाय नमाः श्रीं दशरसे स्वाहा श्रूं दशखायै वषट् श्रैं कवचाय हूम श्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् श्राः अस्त्राय िट् मन्त्र ॎ िां िीं िौं सः चन्राय नमः
(OM SHRAAM SHREEM SHRAUM SAH CHANDRAAY NAMAH) आसके बाद साधक दनमन िंदद्रदण मन्त्र का 11 माला जाप करे . ॎ िीं चश्रन्रश्रण चारुमुश्रख श्रवद्यामाश्रलश्रन ह्रीं ॎ
(OM SHREEM CHANDRINI CHAARUMUKHI VIDYAAMAALINI HREEM OM) जाप पणू म होने पर साधक िन्द्र तथा देवी िंदद्रनी को श्रिा सह वंदन करे तथा सफलता की प्रादप्त के दलए प्राथमना करे . साधक माला का दवसजमन न करे आसको भदवष्य में भी िन्द्र समबंदधत साधना के दलए प्रयोग में लाया जा सकता है. CHANDRA GRAH ANUKOOL YANTRA SADHNA
नवग्रह में चन्द्र का स्थान बहोत ही महत्वपर् ू ण है. व्यक्ति पर चंर का प्रभाव मानस, भावनाये, मातभ ृ ाव एवं मातस ृ ुख, तथा कल्पना शक्ति पर क्तवशेष रूप से होता है. ऄगर व्यक्ति पर चन्द्र ग्रह का प्रभाव क्तवपरीत है तो एसी क्तस्थक्तत में व्यक्ति को क्तन्न समस्या का सामना क्तवशेष रूप से करना पतता है. मातस ृ ुख का क्षय और मातपृ क्ष में रोग मानक्तसक संतुलन का ऄयोग्य संचार तथा क्तहन् भावना मानक्तसक रोगों से ग्रक्तसत होना क्तनष्ठु रता का प्रवेश और मानव समुदाय से घर् ृ ा
ऄज्ञात अशंका
से ग्रक्तसत रहना
अज के यग ु में व्यक्ति के जीवन में मानक्तसक समस्या का सामना कइ प्रकार से करना ही पतता है लेक्तकन कइ बार आस प्रकार के प्रभाव कइ प्रकार के मानक्तसक रोग को जन्द्म दे ता है. मानक्तसक रोग कइ प्रकार के मानक्तसक क्तवकास को रोक दे ता है और व्यक्ति का तथा ईसके पररवार का जीवन कष्टमय बन जाता है. ऄगर व्यक्ति आससे सबंक्तधत प्रयोग स््पन करता है तो चन्द्र ग्रह की कृपा प्राप्त होती है तथा आससे सबंक्तधत पक्षों में व्यक्ति को ऄनक ु ू लता क्तमलती है. यह प्रयोग साधक क्तकसी भी ग्रहर्काल या सोमवार को कर सकता है यन्द्र क्तकसी भी सफ़ेद कागज़ या भोजपर पर बनाया जा सकता है साधक सय ू ाण स्त के बाद यह प्रयोग करे तो ईत्तम है; वैसे साधक सोमवार को क्तदन में भी यह प्रयोग कर सकता है. सवण प्रथम साधक स्नान करे तथा सफ़ेद वस्त्र धारर् कर सफ़ेद असान पर ईत्तर क्तदशा की तरफ मुख कर बैठ जाए. ईसके बाद साधक कागज़ या भोजपर पर मल ू ऄंक यन्द्र का क्तनमाण र् ऄष्टगंध से करे . ऄगर यह संभव ना हो तो साधक को हल्दी में पानी क्तमला कर ईस स्याही से यह यन्द्र बनाए. आसमें क्तकसी भी प्रकार की कलम का ईपयोग क्तकया जा सकता है. यन्द्र को धुप दे या ऄगरबत्ती प्रज्वक्तलत करे . आसके बाद साधक यन्द्र को ऄपने सामने रख कर क्तन्न ध्यान का ११ बार ईच्चारर् करे . ध्यान : श्वेत श्वेतांबरधरः श्वेताश्व: श्वेतवाहन | गदापाक्तर्क्तिबाहु श्च कतण व्यो वरद शशी. ध्यान के बाद व्यक्ति को चंर मंर की ११ माला मंर जाप सफ़ेद हकीक माला से स््पन करे . मन्त्र : ॐ श्वेत शुभ्राय शशश चन्त्राय सर्ााभीष्ट साधन कुरु कुरु नमः प्रयोग के बाद साधक भोज पर या कागज को पज ू ा स्थान में स्थाक्तपत कर दे तथा माला को भी रख दे. ऄगर साधक चाहे तो आस माला से व्यक्ति भक्तवष्य में आस यंर के सामने यही प्रयोग कइ बार कर सकता है. ऱ
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सफलता पाने के श्रलए जीवन मे अत्म श्रवश्वास एक सबसे बडी अवश्यकता हैं , ऄब यह सफलता चाहे अध्याश्रत्मक क्षेत्र मे हो या भौश्रतक क्षेत्र मे ...पर श्रबना अत्मश्रवश्वास के .... बडे बडे वाक्य कह देने से तो अत्म श्रबश्वास
नही बन जाता हैं जब सब कु छ सही
चल रहा हो तब बात ऄलग हैं तब जो कहें सब ठीक हैं, पर जब सब ....नष्ट हो रहा हो जीवन के प्रश्रत श्रनराशा सी
टू ट रहा हो
अ रही हो तब ..
आस समय साधना ही एक ऐसा मागय सामने रखती हैं जो जीवन मे पुनः अशा का संचार कर देती हैं . साधक सामान्य रूप से नव ग्रह का महत्त्व श्रजतना होना चाश्रहए जीवन
मे.....खासकर
साधना
हैं आसे बस मात्र ज्योश्रतष तक ही सीश्रमत रख वस्तु श्रस्थश्रत
बहुत ही श्रवपरीत हैं .
ग्रह राज्यं प्रयच्छनश्रत ग्रहा राज्यं हरश्रन्त च | ग्रहेस्तु व्याश्रपतम सवय जगदेतच्चराचराम ||
क्षेत्र ईतना नही देते
ईनके समझते
हैं जबकक
ग्रह ही राज्य देते
हैं और ग्रह ही राज्य का हर ण कर लेते हैं ,आन ग्रहों के प्रभाव
मे सम्पूणय चर और ऄचर हैं , सभी ओर आनका प्रभाव व्याप्त हैं . नव ग्रह ही हमारे जीवन मे सुख दुःख , लाभ हाश्रन और अशा , ईमंग और अत्मश्रवश्वास का का रण होते हैं या बनते हैं. सदगुरुदेव जी ने एक साधक का ऄनुभव पश्रत्रका मे कदया था श्रजन्होंने ककसी श्रवशेष साधना मे छ या सात बार ऄसफल होने पर ऄपने गुरु से पूछ ं कर नव ग्रह शांश्रत का ऄनुष्ठान ककया और साधना मे सफलता पायी .आस बात का पररचायक हैं कक नव ग्रहो का महत्त्व ककतना हैं . ठीक आसी तरह
जीवन मे जब भी कु छ ऐसे श्रवपरीत ग्रहो का समय अये या
गोचर वत ऄवस्था श्रजनकी श्रस्थश्रत साधक की कुं डली मे ठीक नही हैं तब स्वाभाश्रवक रूप से मन मे गहन श्रनराशा का अश्रवभायव होना स्वाभाश्रवक सा हैं . ज्योश्रतष मे सूयय को नव ग्रहो मे ग्रह राज की ईपाश्रध से श्रवभूश्रषत कर रखा हैं और यह ईश्रचत भी हैं सूयय देव की ईपयोश्रगता को ध्यान मे रखने पर . साथ ही साथ सूयय देव अत्मा के भी प्रतीक हैं ऊग्वेद कहते हैं .. “सूयय अत्मा जगतस्तस्थषचश ||” सूयय सबकी अत्मा हैं . श्रजनकी भी कुं डली मे यह सूयय तत्व कमजोर हैं स्वाभाश्रवक हैं कक ईनमे जल्दी ही श्रनराशा का बार बार अगमन होना , और यह श्रस्थश्रत ककसी भी दृष्टी से ठीक नही हैं . शांकर भाष्य कहता हैं ..
“रश्मीना प्राणां ना रसानां च स्वीकर णा त सूयःय ||” सूयय रश्रश्म ही समस्त प्राश्रणयों की शश्रि हैं . पर यह भी सच भी हैं कक जब अत्मा मे ही ईमंगयुि नही होगी तो शरीर तो ऄनुचर मात्र हैं ऄके ले शरीर कु छ भी नही कर सकता हैं . “ अरोग्यम भास्कराकदच्छेत “ मानश्रसक और बाह्य दोनों रोगों की श्रनवृश्रत सूयय ईपासना से हो जाती हैं . ऄगर सूयय से संबश्रं धत रत्न पश्रहने जाए तो कु छ और नयी समस्याए सामने अ सकती हैं कक वह ककस भाव के माश्रलक हैं या ईनको श्रस्थश्रत कै सी हैं आन सब बातों मे न जा कर यकद सूयय देव के तांश्रत्रक मंत्रो का सहारा श्रलया जाए तो पररश्रस्तश्रथयाूँ बहुत ही जल्दी ऄनुकूल मे अ सकती हैं यह अवश्यक भी हैं क्योंकक जीवन के हर क्षेत्र मे अत्मश्रवश्वास और ईत्साह ईमंग की अवश्यकता होती हैं और जीवन मे भी वही ूँ लोग ज्यादा सफल होंगे
जो की गहन
अत्मश्रवश्वास से युि होंगे .दुखी और श्रनराश लोगों के साथ कोइ भी नही रहना चाहता हैं . सूयय तत्व प्रधान व्यश्रि जीवन मे श्रनश्चय ही ईचाइया छू ते जाते हैं ,भगवान हनुमान , अकद शंकराचायय , सदगुरुदेव , भगवान राम अकद सभी व्यश्रि सूयय
प्रधान ही रहे हैं और
आनका अज तक क्या प्रभाव और योग दान रहा हैं वह ककसी से छु पा नही हैं , नही कोइ पररचय का मोहताज हैं . सूयोपश्रनषद स्पस्ट करता हैं की
सूयायद भवश्रन्त भूताश्रन सूयण े पाश्रलतानी च | सूयं लयं प्रापुयु य: सूयःय सो sमेव च || सूयय ही जगत की ईत्पश्रि पालन और नाश के का रण बनते हैं . आन सूयय देव को ऄनुकूल करने के श्रलए यन्त्र श्रवज्ञानं मे भी एक प्रयोग हैं ईसे
ईपयोग
मे लाया जा सकता हैं . भोज पत्र मे लाल चन्दन से आस यंत्र का लेखन करना हैं , और कदन श्रनश्चय हीकदन सूयय वार मतलब रश्रववार होगा ,और ताम्बे के ताबीज मे आसे रखकर धारण ककया जा सकता हैं .यन्त्र की पहले पूजा ऄचयन जरुर कर ले धूप अकद से और पुरुष वगय आसे दाश्रहनी भुजा मे और स्त्री वगय आसे बायीं भुजा मे धारण कर ले .. यंत्र ऄतः
श्रनमायण
के सभी सामान्य श्रनयम
कइ
कइ
बार पोस्ट
मे बताये गए हैं .
पुनः ईल्लेख ठीक नही हैं . अप सभी के जीवन मे सूयय तत्व प्रबल हो श्रजससे कक
अप अत्मश्रवश्वास से लबालब
भरे
हो और एक योग्य
साधक
बन कर जीवन
मे लाभ ईठाए .
-
(BEEJOKT TANTRAM- ANU
PARIVARTAN SOUBHAGYA TARINI PRAYOG) “राश्रज्ञ चामात्यजो दोषः पत्नीपापं स्वभियरर |
तथा श्रशष्यार्जजतम् पापं गुरु: प्राप्नोश्रत श्रनश्रश्चतं ||” सार संग्रह में कहा गया है की मंश्रत्रयों के द्वारा की गयी त्रुरटयों का फल राजा को भोगना पडता है,पत्नी के पाप से पश्रत ऄछू ता नहीं रह सकता ईसी प्रकार श्रशष्य श्रजस भी पाप में संलग्न होता है ईसके प्रश्रतफलों का भुगतान गुरु को भी करना पडता है |
ईपरोि ईश्रि को सदैव ही हृदयंगम करके तदनुरूप श्रवचार और व्यवहार करना ही श्रशष्यत्व की साथयकता कहलाती है | ककन्तु ये सब आतना सहज नहीं है,मनुष्य गलश्रतयों का पुतला होता है और लाख प्रयास करने पर भी प्रारब्ध,संश्रचत कमों से वो ऄछू ता नहीं रह सकता है | रही बात कयमायमाण ऄथायत वतयमान के कमों की तो शायद ईसे हम बेहतर तरीके से सम्पाकदत करने का प्रयास कर सकते हैं ककन्तु ऄन्य दो पर ऄंकुश लगा पाना सरल कायय नहीं है | ईन्ही कमों की भुश्रि हेतु कालाश्रग्न हमारा क्षय करती है और ईसकी ऄश्रग्न में हमारा क्षरण होते होते एक ऐसा समय अता है जब हम समाप्त हो जाते हैं | ऄथायत हमारे प्रयत्नों की चरम पराकाष्ठा के बाद भी हम श्रजन पाप फलों को भोगते हैं हमारे ईन्ही पाप फलों को नष्ट करने में सद्गुरु की तपस्या का बडा श्रहस्सा लग जाता है | वस्तुतः हमारे शरीर का श्रजन ऄणुओं से या कणों से श्रनमायण होता है,ईपरोि तीन प्रकार के कमों की वजह से आन ऄणुओं का एक बडा भाग श्रवकृ त अवरण से ढका रहता है और आस अवरण रुपी मल को नष्ट करने में हमारे पुण्य कमय लगातार कायय करते रहते हैं और यकद भाग्य ऄच्छा रहा और आसी जीवन में सद्गुरु की प्राश्रप्त हो गयी तो वे ऄपनी साधना शश्रि या प्राण ईजाय से श्रशष्य या साधक की ज्ञानाश्रग्न को प्रज्वश्रलत कर देते हैं और श्रशष्य ईस ज्ञानाश्रग्न में श्रनरंतर मंत्र का ग्रास देता हुअ ईस ऄश्रग्न की तीव्रता को बढा कर श्रवकृ त अवरण को भस्मीभूत करने की और ऄग्रसर हो जाता है और यकद ईस ऄश्रग्न को वो सतत तीव्र रख पाया तो वो ऄपने लक्ष्य को प्राप्त ही कर लेता है,तब शेष रह जाते हैं तो ईसकी श्रवशुद्धता और श्रवशुद्धता का श्रनमायण करने वाले श्रवशुद्ध ऄणु |
“यत् पपडे तत् ब्रह्ांड”े की ईश्रि पर क्या कभी श्रवचार ककया है,ऄरे भाइ ईसी में तो सारा रहस्य श्रनश्रहत है,बस अवश्यकता है ईस ईश्रि के गूढाथय को समझने की | और श्रजस कदन हम आस ऄथय को समझ गए तब हमें ज्ञात हो जायेगा की अश्रखर मनुष्य को इश्वर की सवोिम कृ श्रत क्यूूँ कहा जाता है | जी हाूँ मनुष्य ही तो सवोिम कृ श्रत है नहीं तो ईपरोि ईश्रि की जगह “यत् देवे तत् ब्रह्ांडे” भी कहा जा सकता था, क्योंकक मनुष्य की दृश्रष्ट में देव वगय सवोिम योश्रन हैं| ककन्तु ये पूणय सत्य नहीं है वस्तुतः देव योश्रन भोग योश्रन है,ईन्हें श्रजन कायों के श्रलए ईस परम तत्व ने श्रनर्जमत ककया है वे मात्र ईन्ही कायों के श्रलए ईकिष्ट होते हैं कभी भी ईससे कम या ज्यादा कायय वो सम्पाकदत नहीं कर सकते हैं,ऄथायत जल का कायय मात्र श्रभगोना है वो दहन करने या सुखाने का कायय नहीं कर सकता है,प्राकृ श्रतक शश्रि का रूप होने के कारण ईनकी आच्छा शश्रि,कयमाया शश्रि और ईनकी ज्ञान शश्रि श्रनश्रश्चत होती है | सम्पूणय ब्रह्ाण्ड श्रशव और शश्रि के सश्रम्मश्रलत रूप से ईपजा है और आसके प्रत्येक कण और ईस कण का श्रनमायण करने वाले सभी ऄणुओं में ईनकी ही तो ईपश्रस्थश्रत है क्यूंकक वे ही सत्य हैं और हैं श्रवशुद्ध भी | जीवन की तीन ही तो ऄवस्था हैं सृजन,पालन और संहार | जन्म का कायय सृजन तत्व का है श्रजसे ज्ञान शश्रि श्रनष्पाकदत करती है और ब्रह्ा आसे गश्रत देते है,सृजन के पश्चात पालन तत्व की ऄवस्था की ईत्प्रेरणा आच्छाशश्रि प्रदान करती है और संहार तत्व की ईपश्रस्थश्रत पररणाम है कयमाया शश्रि का | मात्र मनुष्य में ही ये क्षमता है की वो आन तीनों शश्रि की मात्र प्रचुर से प्रचुरतम कर सके ,क्योंकक ईसकी देह ऄथायत पपड का श्रनमायण
श्रजन ऄणुओं से होता है वे ऄणु आन्ही त्रयी शश्रियों से पररपूणय होते हैं,ककन्तु मात्र मल अवरण से ढके होने के कारण मनुष्य ईन शश्रियों का समुश्रचत प्रयोग नहीं कर पाता है,देव वगय भी आन्ही कणों से बनते हैं ककन्तु श्रजस कायय के श्रलए वे ईकिष्ट हैं ईससे कम या ज्यादा की न तो ईनमे कयमाया शश्रि ही होती है न आच्छा शश्रि ही | वस्तुतः कुं डश्रलनी की गुप्तता के कारण ही देव वगय की शश्रि की सीमा होती है, वे ऄपनी आच्छाओं को ना ही बढा सकते हैं और ना ही कयमाया को तीव्रता दे सकते हैं,हाूँ ये ऄवश्य है की जो शश्रि ईनमे होती है वो श्रवशुद्ध रूप में होती है और रूप भी कमय गत मल से मुि होता है |मात्र हम में ही कुं डश्रलनी का स्वरुप प्रकट ऄवस्था में होता है और हम ज्ञान,आच्छा और कयमाया शश्रि की तीव्रता या मात्र को बढा या घटा सकते हैं,आसी कारण ईस परम तत्व को भी ऄवतार के श्रलए नर देह ही चुनना पडता है |मनुष्य का सम्पूणय शरीर आन्ही ईजाय और शश्रि कणों से श्रनर्जमत होता है | अवशयकता है आन शश्रि ऄणुओं द्वारा श्रनर्जमत कणों को कमयगत मलावरण से मुि कर देने की |तब मात्र श्रवशुद्ध ता ही शेष रह जायेगी और आसके बाद सफलता,ऐश्वयय, सौभाग्य और पूणयत्व की प्राश्रप्त तो होगी ही| श्रजस दुभायग्य के कारण पग पग पर ऄपमान,श्रनधयनता,ऄवसाद,ऄवनश्रत और ऄपूणयता की प्राश्रप्त होती है यकद ईस दुभायग्य को ही भस्मीभूत कर कदया जाये तो श्रशवत्व की प्रखरता और श्रनखर कर हमारे सामने दृश्रष्टगोचर होती है | तब ना तो पग पग पर कोइ ऄपमान होता है और न श्रतल श्रतल कर मरना ही,तभी “मृत्योमाय ऄमृतं गमय” का वाक्य साथयक होता है | होली का पवय ऐसा ही पवय होता है जो श्रवश्रवध सफलतादायक योगों से श्रनर्जमत होता है और आस रात्री को जब होश्रलका दहन का मुहतय होता है तो वस्तुतः वो मुहतय दुभायग्य दहन का मुहतय है,सदगुरुदेव बताते थे की ये संयमाांश्रत काल है,ये मुहतय है ब्रह्ांडीय जागृश्रत और ब्रह्ांडीय चेतना प्राश्रप्त का,आस काल श्रवशेष में साधनाओं के द्वारा जहाूँ मनोकामना पूती में सफलता पायी जा सकती है वही यकद गुरु कृ पा हो तो ईन रहस्यों का भी ज्ञान प्राप्त ककया जा सकता है श्रजनके द्वारा ऄणुओं को मलावरणों से मुि कर ईनकी नकारात्मकता को हटाया जा सकता है और ईन का पररवतयन सकारात्मकता में करके पूणय चेतना और श्रवशुद्धता की प्राश्रप्त की जा सकती है | आस संयमाांत काल में पररवतयन से सम्बंश्रधत साधनाओं को कही ऄश्रधक सरलता से संपन्न कर सफल हुअ जा सकता है | भगवती तारा का एक स्वरुप ऐसा भी है श्रजसे सहस्त्रश्रन्वत्देहा तारा या सौभाग्य ताररणी कहा जाता है और ये स्वरुप श्रशवऄवतार जगद्गुरु अद्य शंकराचायय जी द्वारा प्रणीत है,आस स्वरुप का ऄथय है श्रजनकी सहस्त्र देह हो और जो ऄपनी ऄनंत वेधन कयमाया द्वारा साधक के ऄणु-ऄणु में पूणय पररवतयन कर देती है चाहे ईसका कै सा भी दुभायग्य हो प्रारब्ध कमय जश्रनत दोष और िाप से वो शाश्रपत हो तब भी ये प्रयोग ईसके दोषों को श्रनमूयल कर ईसे पूणयत्व,सौभाग्य,सम्मोहन,ऐश्वयय और सफलता की प्राश्रप्त करवाता ही है.आसे संपन्न करने के दो तरीके मुझे मास्टर से श्रमले हैं और ईन्होंने सदगुरुदेव से प्राप्त दोनों पद्धश्रतयों का प्रयोग कर स्वयं ऄनुभव ककया हैं ईनमे से जो ऄत्यश्रधक सरल और मात्र एक कदवसीय पद्धश्रत को मैं यहाूँ
दे रही हूँ,श्रजसके द्वारा मात्र होश्रलका दहन के मुहतय का प्रयोग कर आसे पूणयता दी जा सकती है | जो दीघय पद्धश्रत है वो करठन भी है और ईसमे सामश्रग्रयों की बहुलता भी प्रयुि होती है |ककन्तु एक कदवसीय प्रयोग में ऐसा नहीं है | होली की प्रातः सदगुरुदेव का पूणय पूजन संपन्न कर १६ माला गुरु मंत्र की संपन्न करे और ईनके चरणों में प्राथयना करे की वे हमें आस ऄश्रद्वय्तीय और गुप्त श्रवधान को करने की ऄनुमश्रत और सफलता प्राश्रप्त का अशीवायद प्रदान करे, और संकल्प ले की “जबसे मेरा जन्म हुअ है तबसे श्रजन भी कमों के पररणाम स्वरुप श्रजन न्यूनता को मैं आस जीवन में भोग रहा हूँ, और श्रजस भी पररश्रस्थश्रतयों की वजह से मैं ऄभाव और दुभायग्य को जीता हुअ ऄपूणयता युि जीवन जी रहा हूँ,ईन सभी पररश्रस्थश्रतयों और दोषों का श्रनमूल य न हो और मैं श्रवशुद्ध देह की प्राश्रप्त का देव्यत्व पथ की और ऄग्रसर हो पूणयत्व प्राप्त करू,यही अप मुझे आस साधना के प्रश्रतफल में वरदान दे” | तत्पश्चात पूरे कदन भर साश्रत्वक भाव का पालन करते हुए सदगुरुदेव और भगवती तारा का पचतन करे और होश्रलका दहन के ४५ श्रमनट पहले ही सणे द असन पर सणे द या गुलाबी वस्त्र पहन कर पूवायश्रभमुख होकर बैठ जाये सामने बाजोट पर गुलाबी वस्त्र श्रबछा हुअ हो,और ईस वस्त्र पर कु मकु म से रंश्रजत चावलों की ढेरी पर सदगुरुदेव का श्रचत्र और यन्त्र स्थाश्रपत हो,सदगुरुदेव के श्रचत्र के सामने कु मकु म से एक ऄधोमुखी श्रत्रकोण (ऄथायत श्रजसका मुख नीचे की तरफ हो) का श्रनमायण कर ईसमे “ह्रीं” बीज ऄनाश्रमका उूँगली से ऄंककत करे | और ईस बीज पर पंचमुखी रुराक्ष,गोमती चयमा या कफर एक साबुत सुपारी की स्थापना कर दे |आसके बाद सदगुरुदेव और भगवान गणपश्रत का पूजन संपन्न करे और गुरु मंत्र की ५ माला तथा “गं िीं गं”(GAM SHREEM GAM) की ५ माला संपन्न करे और ईसके बाद सदगुरुदेव को पुनः भगवती तारा का स्वरुप मानकर पूजन संपन्न करे,पूजन कु मकु म श्रमश्रित ऄक्षत,गुलाब पुष्प,के सर श्रमश्रित खीर,पान और लौंग से करे तथा दश्रक्षणा के रूप में कु छ धनराशी ऄर्जपत कर दे,याद रखे दश्रक्षणा राश्रश आतनी ना हो की ईसे गुरुधाम भेजने में हमें खुद शमय अ जाये,गुरु,मंत्र और मंत्र देवता में कोइ ऄंतर नहीं होता है,ऄतः पूणय समपयण भाव से पूजन करे औए घृत दीपक को ईस श्रत्रकोण के दाश्रहने ऄथायत ऄपने लेफ्ट (बाएूँ) हाथ की तरफ स्थाश्रपत करना है, ईस सुपारी और दीपक का पूजन भी ईपरोि सामश्रग्रयों से ही करना है ,तत्पश्चात स्फरटक,सणे द हकीक,रुराक्ष,कमल गटे े या मूग ं ा माला से २१ माला मंत्र जप श्रस्थर भाव से करे | आस मंत्र में कोइ ध्यान मंत्र नहीं है मात्र सदगुरुदेव का पचतन करते हुए ही आस मंत्र को करना है,आस मंत्र में मात्र ईन्ही का ध्यान ही सवोपरर है,वे ही पूणयत्व देने वाले हैं | जप काल में होने वाली भाव तीव्रता को अप स्वयं ही ऄनुभव करेंगे,ऄणुओं में हो रहे संलयन और श्रवखंडन से शरीर का ताप बढ जाता है और दो तीन कदन तक बुखार हो जाता है,ऐसे में घृत श्रमला दूध का सेवन करे | आस कयमाया में श्रजस ऄश्रद्वय्तीय मंत्र का प्रयोग होता है वो श्रनम्नानुसार है,आस मंत्र को ऄणु पररवतयन सहस्त्रश्रन्वत्देहा तारा या सौभाग्य
ताररणी मंत्र कहा जाता है |
ओम ह्रीं ह्लीं ह्लीं औं औं ह्रीं ह्रीं ह्रीं यमाीं यमाीं हुं हुं हुं फट्
OM HREENG HLEEM HLEEM OUNG OUNG HREENG HREENG HREENG KREENG KREENG HUM HUM HUM PHAT आस कयमाया को संपन्न करने के बाद स्वतः ही कुं डश्रलनी में स्पंदन,ऐश्वयय,त्रयी शश्रियों की तीव्रता,सम्मोहन और ईपरोि वर्जणत तथ्यों की प्राश्रप्त होते जाती है और सबसे महत्वपूणय तथ्य ये है की हमारे देह ऄणु दोष मुि हो जाते हैं श्रजसके कारण हमारे कमय फल हमारे गुरु को नहीं भोगने पडते हैं, आसी प्रयोग के बाद सद्गुरु कृ पा करके साधक को आस साधना का ऄगला चरण “स्वतः भाग्यलेखन साधना” का रहस्य प्रदान कर देते हैं श्रजससे वो ऄपना भाग्य स्वयं श्रलख कर ब्रह्म्भावी हो जाता है | होली के पावन पवय पर आससे ईत्कृ ष्ट रहस्य भला और क्या हो सकता है और वो भी मात्र एक कदन का प्रयोग | हाूँ हम श्रनश्चय ही आस साधना को संपन्न कर श्रवशुद्ध हो जाते है ककन्तु अगे जान बूझ कर पाप कमय करना तो न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है,समझदार को संकेत मात्र पयायप्त है |
ब ब र य य ब (Beejokt Tantra- Vaagbeej dwara poorn Shani Kripa Prapti Abhyuday Prabodh Vidhaan )g
शश्रन......भय,पीडा,ऄभाव और ऄसंतष्ठ ु ी क्या यही पहचान है शश्रन देव की ?? जो तथाकश्रथत पोंगापंश्रथयों ने श्रनरुश्रपत कर कदया है शश्रन देव के श्रलए. नहीं ,ऐसा नहीं है.अलोचना तभी स्वीकायय होती है जब वस्तुतः हम कु छ क़दमों की गश्रत ईस और कर चुके हों, बगैर पररक्षण ककये ककसी भी तथ्य को श्रनधायररत करना सदैव त्रुश्रतयोि और भ्रामक ही होता है, सदगुरूदेव ने शश्रन देव के रूप को पररभाश्रषत करते हुए कहा था की ये रूप ऄश्रभव्यश्रि है ज्ञान की,न्याय की और जीवन में सदैव और संतश्रु लत गश्रत का. ऄबोध बच्चों या व्यश्रियों को ऄपने न्याय क्षेत्र से बरी रखना,क्या आसी तथ्य को श्रनरुश्रपत नहीं करता है. ककसी की नक़ल करना और समझदार मश्रष्तष्क के होते हुए भी श्रनरं तर गलश्रतयों को करते रहना ऄपराध की िेणी में अ जाता है. क्यूकं क श्रवकश्रसत मश्रष्तष्क ऄच्छे –बुरे का भली भांश्रत ज्ञान रखता है और ईसे ये पता होता है की हम जो कर रहे हैं वो ककतना हाश्रनकारक हो सकता है समाज के श्रलए,स्वयं के श्रलए,पररवार के श्रलए या कफर राष्ट्र के श्रलए. और आन कमों को सकारात्मक तो नहीं श्रलया जा सकता. ऐसे में ऄपनी न्याय दृश्रष्ट से सत्य न्याय प्रदान करना मात्र शश्रन के ही ऄश्रधकार क्षेत्र में अता है, यहाूँ तक तो सभी जानते हैं,हैं ना.....
ककन्तु कभी सोचा है की आस तठस्थ न्याय दृश्रष्ट का ऄनुपालन करने के श्रलए श्रजस ज्ञान और श्रववेक की अवश्यकता होती है ईसका कारण पबदु कहाूँ होता है ,ऄथायत कहा से ईस ज्ञान का ऄभ्युदय होता है श्रजससे सत्य न्याय का बोध हो और तदनुरूप ही न्याय ककया जा सके . हम में से सभी ने ये सुना ही होगा की जब िी हनुमान जी ने लंकेश रावण के कारागार से शश्रन देव की मुश्रि कराइ थी,तब ईन्होंने शश्रन देव से ये वचन श्रलया था की मंगलवार या शश्रनवार को जो भी मन,वचन,कमय से मेरी या मेरे हृदयाराध्य प्रभु राम की अराधना करे गा अप ईसे त्रास नहीं दोगे.परन्तु समय साक्षी है की श्रजतने भी लोग आन दोनों कदवसों में पूजन यमाम करते हैं वो लोग ज्यादा परे शां होते हैं. क्या वो वचन गलत थे?? नहीं,वास्तश्रवकता ये है की हमने ईस पूणय वाक्य पर ध्यान ही नहीं कदया है,ईसमे कहा तो गया है की मन,वचन,कमय से पूणय पूजन करने पर......... ऄब खुद ही सोश्रचये घर से नहा-धोकर मंकदर के श्रलए श्रनकलते हैं ..पर मागय में ककसे देख कर क्या पचतन करते हैं...कभी सोचा है,और तो और ऄसत्य भाषण,धोखा देना,ऄशुश्रचता युि जीवन जीना अकद कमय और श्रवचारों से क्या अप मुि रह पाते हैं ,नहीं ना. वस्तुतः हमारा पचतन तो होता है पूजन का और ईससे प्राप्त लाभ के रूप में सम्पूणय सुखों की प्राश्रप्त का परन्तु जानते बूझते ऄशुश्रचता पूणय व्यव्हार से क्या हम लाभ पा पाएंगे ..नहीं,ऄश्रपतु दंड की १० गुनी मार अप पर ज्यादा पडेगी .क्यूकं क ज्ञान का प्रबोध तो था,ककन्तु ऄशुद्ध ज्ञान का. तब ऄसत्य ज्ञान से ईत्पन्न श्रववेक दूश्रषत ही होगा ना. और एक महत्वपूणय पबदु हमेशा ध्यान रश्रखयेगा की ९ ग्रह और माता मुथ ं ा की ईत्पश्रि का मूल कारण भी बीज मन्त्रों में ही छु पा हुअ है ,ऄथायत प्रत्येक ग्रह की ईत्पश्रि और शश्रि का रहस्य ककसी श्रवशेष बीज मन्त्र में ही श्रवद्यमान होता है . जैसे शश्रन देव “ऐं” बीज से ईत्पन्न हैं. ईनकी न्याय दृश्रष्ट आसी “वाग्बीज” से ईत्पन्न होती है. और स्मरण रखने योग्य तथ्य ये है की जब भी िृश्रष्ट का यमाम सृश्रजत करना हो तब हमें आसी “वाग्बीज” का सहयोग लेना ही होगा. कहा भी गया है की “ऐंकारी सृश्रष्टरुपायै” ऄथायत “वाग्बीज” सृश्रष्टकताय है.और सृजन के श्रलए ज्ञान और बोध की अवश्यकता होती है ,याद रश्रखये सत्य बोध के द्वारा ही पूणय सत्य और श्रचरस्थायी सुख की प्राश्रप्त संभव है ,भगवान शश्रन के श्रवश्रवध मन्त्रों का तांश्रत्रक ग्रंथों में वणयन है ,ककन्तु ककस यमाम द्वारा कै सा लाभ प्राप्त ककया जा सकता है,प्रायः आसका ऄभाव ही दृश्रष्टत होता है.तब ऐसे में सद्गुरु प्रदि मागय का ऄनुसरण करना ही ईश्रचत है,श्रजससे मागय भटकने और हाश्रन का भय नहीं होता है. ईत्पश्रि रहस्य तो बहुत
श्रवस्तृत है है,परन्तु यहाूँ पर मात्र ईस प्रयोग को ऄंककत करने का प्रयास कर रही हूँ श्रजसके द्वारा शश्रन देव के वास्तश्रवक रूप का तो हमें बोध होता ही है साथ ही ईस रूप को समझकर हम ईनके वरदायी प्रभावों से ऄपने जीवन को ऄपराधऔर त्रुरट मुि करके जीवन सुखों को ऄक्षुण रख सकते हैं और ऄपना सम्मान,संपश्रि,प्रेम,पररवार को स्थाश्रयत्व दे सकते हैं और स्थाश्रयत्व दे सकते हैं ऄपनी श्रस्थरप्रज्ञा को ,श्रजसके सदुपयोग से अत्म शश्रि को मजबूत ककया जा सकता है और ऄभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त ककया जा सकता है. बुधवार की सुबह सूयोदय के बाद श्वेत वस्त्र पहन कर सणे द असन पर बैठकर सामने ताम्बे की थाली में सणे द चन्दन से ऄनाश्रमका ऄंगल ु ी के द्वारा “ऐं” ऄंककत करे और ईसका पूजन,ऄक्षत, धुप,अटे के चौमुखे दीप,पुष्प, खीर और लॉन्ग से करे . कदशा पूवय होगी. आस पूजन के पूव,य सदगुरुदेव,सूयय और भगवान गणपश्रत का पंचोपचार पूजन और गुरु मंत्र का जप कर लीश्रजए. ये प्रत्येक साधना में ऄश्रनवायय यमाम है. तत्पश्चात स्फरटक माला या रुराक्ष माला से “ऐं” “AING” मंत्र की ११ माला करे . ये यमाम शश्रनवार तक करना है,शश्रनवार को आस यमाम के बाद काले वस्त्र धारण कर या स्वच्छ वस्त्र धारण कर सामने ७ कील,काले श्रतल,काजल,सरसों के तेल,काले वस्त्र को सामने रखकर ईनका पूजन सरसों के तेल का दीपक,गुग्गल धुप,श्रतल लड्डू ,लौंग,काले श्रतलों से करके ११ माला काले हकीक या रुराक्ष माला से श्रनम्न मंत्र की करे . मंत्र के पहले श्रनम्न ध्यान मंत्र ९ बार ईच्चाररत करें . ध्यान मंत्र“नीलांजन समाभासं सूयय पुत्र यमाग्रजम | छाया मातयण्ड संभत ू ं तं नमाश्रम शनैश्चरम् ||” आसमें श्रजस मंत्र का प्रयोग जप करने के श्रलए होता है ,वो वाग्पीज से ही ईत्प्रेररत है और माया से मुि कर िी का ऄभ्युदय जीवन में करवाता ही है और ईश्रचत तथा सत्य ज्ञान का प्रबोध करवाकर न्यायाश्रयक श्रववेक भी प्रदान करता है,श्रजससे बुश्रद्ध कु शाग्र होती है और चररत्र की शुद्धता के साथ पूणय यश,सम्मान और धन की प्राश्रप्त होती है तथा भगवन शश्रन का वरदायक प्रभाव जीवन में प्राप्त होता है. मन्त्र“ऐं ह्रीं िीं शनैश्चराय नमः” “AING HREEM SHREEM SHANAISHCHARAAY NAMAH”
आस यमाम को करने के बाद पुनः रश्रववार,सोमवार,मंगलवार और बुधवार को मूल वाग्बीज मंत्र का ईपरोि यमाम ही करना है और प्रयोग की समाश्रप्त पर ककसी भी कन्या को माूँ वाग देवी मानकर पूण,य भोजन,ईपहार और दान दश्रक्षणा से तृप्त कर प्रयोग को पूणत य ा दे. प्रयोग श्रसफय संचय करने के श्रलए नहीं है ऄश्रपतु आसे संपन्न कर आस प्रयोग का लाभ लेकर दुखों को दूर भाग्य जाये,आसी में साथयकता है.