Swapna Siddhi -
ॐ थ थ ! ! ( , ( ) ) जप , ! ! इ आप ! !ज उ 1100 जप ! ई इ प इ 1100 ! औ थ प ! औ ! 21 21 ! थ प : ! औ ! ( ! ( 22 ) ) ज , ज ! ! उ 10 10 औ , ! !
SWAPNA SIDDHI MANTRA By doing this prayog ,the person gets answer to question in dream . First read the viniyog Viniyog : Om asya shree swapna vaaraahi mantrasya,ishwar rishi,jagathee chanda,swapnavaaraahi devata,om beejam,hreem shakthi,ttah ttah keelakam,mamabheeshtta swapnakadhanarthe jape viniyogah Then ,on the bed itself before sleeping,daily chant the following mantra 1100 times.Then definitely within 11 days the person will get a nswer to his question in dream The mantra is as follows
" OM HREEM NAMO VAARAAHI AGHORE SWAPNAM DARSHAY TTAH TTAH SWAHA "
Mantra to get answer in dream This is a secret Hindu mantra which is said to give you an answer to your questions in your dream. To attain Siddhi [mastery] this mantra has to be repeated 351 times daily for a total period of 21 days. After the period of 21 days when you attain Siddhi, ask your question before you go to sleep, you will get your answer in your dream. Mantra Kaali devi namastubhyam sarvakaamarthi sadhike mama siddhmasiddhim wa swapne sarv pradarshya ll
काल देी नमत भयं सव सवकामार कामार सािधके ुभयं ll मम समसम ा पने सव सव दवय य ll Read more: http://www.prophet666.com/2011/03/mantra-to-get-answer-inmore: http://www.prophet666.com/2011/03/mantra-to-get-answer-indream.html#ixzz2tqxLHLkc Under Creative Commons License: Attribution License: Attribution
Mantra to get answer in dream - 2 This is one more secret Mantra secret Mantra to get answer in dream.This dream. This is a Sadhana which is said to give you an answer to your questions in a dream. The Yakshini [a feminine being with specific powers] answers you questions. To practice this Mantra this Mantra you have to bring some Red Kanheri flowers [a common flower in India].Then Abhimintrit [bind] the flowers by reciting this mantra 108 times while holding the flowers in a plate. Keep the flowers near your pillow. Do this for about 7 day, and then you will start getting results. Mantra Om swapnavalokini siddha lochini swapnen kathan swaha ll
ॐ थ ll Read more: http://www.prophet666.com/2011/04/mantra-to-get-answer-in-dream2.html#ixzz2tqxrXghb Under Creative Commons License: Attribution
Mantra to get answer in dream - 3 This is another Mantra to get answer in dream.This is a Aghori Mantra from the ancient Hindu text the Rudrayamala Tantra.The Sadhak [practitioner] has to first recite this Mantra and take a small root and some seeds of the Katutumbi [Bitter Bottle-Gourd] plant and the root of the Kasundi [Cassia Occidentalis or Negro Coffee] plant and tie these items on his head while reciting this mantra. This has to be done at bedtime while going to sleep. It has been said that the Pishachini [feminine mystical being] will speak to him in his dreams and answer his questions. Mantra Om hreem trichintini pishachini swaha ll
ॐ प ll Note- All this is being for information purposes only. I am not advocating the practice of these methods. Read more: http://www.prophet666.com/2011/07/mantra-to-get-answer-in-dream3.html#ixzz2tqxvckus Under Creative Commons License: Attribution
Mantra to get answer in dream - 3 This is another Mantra to get answer in dream.This is a Aghori Mantra from the ancient Hindu text the Rudrayamala Tantra.The Sadhak [practitioner] has to first recite this Mantra and take a
small root and some seeds of the Katutumbi [Bitter Bottle-Gourd] plant and the root of the Kasundi [Cassia Occidentalis or Negro Coffee] plant and tie these items on his head while reciting this mantra. This has to be done at bedtime while going to sleep. It has been said that the Pishachini [feminine mystical being] will speak to him in his dreams and answer his questions. Mantra Om hreem trichintini pishachini swaha ll
ॐ प ll Note- All this is being for information purposes only. I am not advocating the practice of these methods. Read more: http://www.prophet666.com/2011/07/mantra-to-get-answer-in-dream3.html#ixzz2tqxvckus Under Creative Commons License: Attribution
तबती लम सप ू ण जीवन “ॐ मिणपे ह म” क जप करते ह और जीवन के सभी रहय और ईन से सब ं धत मम त कर लेते ह,ईन सभी रहय क जनक जनकरी एक समय सधक को कभी नह हो सकती है. अखर य वशे षत है आस म ं क जसके र ऄस ंभव को भी स ंभव बनय ज सकत है,तबती पर ं पर म च जगरण क य दो कर से क जती है. १. मशः च क शोधन कर ईनक जगिर और भेदन करके २. सीधे अ च क जग ृ ण य भेदन क णय णणश शय णचणकतस से करके
ह ये दो ही म है क दोन के र अ तरक शरीर क ू ल तरीके,कत ु दोन मे एक सम जयत ं ं चे तन,ऄवचे तन और ऄचे तन क योग कर के प ू ण त क ज सकती है. और भले ही कोइ सधक सीधे ऄपन अ च भे दत कर ले तब भी वो ईपरो म ं क सतत जप करत ही है,और जो मशः शोधन,जगरण और भे दन क य र च य को ू प र करते ह,वे
तो ईस म ा ,बक ये बतने ं क जप करते ही ह. यहा म ईस म ं के उपर बत नह कर रही ह क यस कर रही ाह क वे जो य करते ह,ईसक म ू ल रहय य है,तक हम भी ईस ग ु त को समझ सक ,जसके र ऄगोचर को गोचर कय ज सकत है. जै स क म ने उपर बतय है क वे ईपरो म ं क जप नर ं तर करते ह,और ईनक ये जप सतत चलत ही रहत है,य ू क ं कह भी गय है क जकरो जम णछेदः पकरः पप नशकः | य जप आण ोो जम पप नशकः ||
ऄथत ‘ज’ शद जम वछेदक है,जो सव कम फल से सधक को म ु कर दे त है,कम फल से म ु होते ही जम च से ईसे म ु मल जती है,ठीक वै से ही ‘प’शद सभी कर के पप क नश करत है. आसलए जप क आतनी महम है य ू क ं जप के र ही सव जम के पप क नश होत है. कत प ण वयस को ु हम ईस जप के पीछे क रहय त होन अवयक है,हम म ं के ू समझ और ईसके पीछे क य को भी. वत ु तः लम सधनओ ं मे दो च को धनत दे ते ह,१. अ च २.मणप ु र च और दोन ही च एक वशे ष थत क तनधव करते ह.दोन ही क सबध ऄन तव से है,दोन ही कल न से सबध रखे ह और दोन मे वतर क ऄन ं त मत और थयव है. दोन ही च क महव सधनओ ं से बह त गहर सबध है. हम सभी आस तय से भली भ ं त ऄवगत ह क जब भी बचे क जम होत है तो वो नभ से ही मा के र ज ु ड़ होत है और जीवन क वह व अहर अद पत है . ठीक ईसी कर अप महवओ ं क यन समझ गे तो पय गे क स ृ पथ से ज ु डी ह यी ये महशय ं भगवन शव य भगवन वण यी ह. ु ं क नभ से ईपन ह कत ु ये म तीक है,य ू क ं वतवकत ये है क सधन के चरम तर पर जब सधक वय ं ही ऄपनी स को जन लेत है तब वो वय ं ही शव य वण ु वप हो जत है और
तभी ईसम ईस पत क ऄय प ण कट ् य हो ु दय होत जसके र आन महशय क ू सके. अप आस बत को भी समझ लीजए क सधक क जब तक म ू ल ईस जत नह होग तब तक ईसमे ऐसी कोइ पत कट नह होगी.और म ृ त के लए अपको सबसे ू ल ईस जग यद मे हनत “मिणप ु र च” के जगरण पर करनी होगी.वत ु तः हम जतनी भी सिय क बत करते ह,वे सभी हमरे शरीर के ऄतः ड से ही सरत होती है,आनक कोइ ब ईम थल नह होत है. स लोक क जग ृ त क ऄथ ही ये होत है क हमने मशः एक एक चर के म प व क कर लय है. जब म ने बत ‚मणप ू ल ब ं द ु र च‛ ुओ ं क भे दन सफलत ू क क तो ईसक म यही ऄथ थ क जब तक हमरे ण और हमरी वय प ण ु श क ू जगरण नह होग तब तक वे ऄतः ड म य चे तन क हम ब प से नह हो पएगी. यही एकम ऐस च है जसम ण और वय ु क अपस मे योग होत है तथ ऄन स ं योग से ये ण - वय ु हमरे शरीर मे ईज और उम के तर को बनये रखते ह. ण क ये सर अ च से ण योग कर कल न क श को जत कर दे त है और तब ऄय को जन पन सहज हो पत है . भले ही सधक सीधे अ च क जगरण कर ले को समझने के णलए मिणप तब भी ईसे कल णख डन ु र च क अय ं और स लयन ं लेन ही होग. वत ु तः कल को वभ करन स ंभव ही नह है,ये म मन क दशए ं ह जससे हम आसके बीतने के समय क ऄन ुभव होत है,जै से यद हम हमरी ऄन ु क ू ल परथतओ ं म रह रहे ह,ख ु श ह,कसी यजन के सथ ह,तब समय बीतने क गत कही ती होगी,कत ु यद परथतय ं तक ू ल है,मन द ु खी है तो समय बीतने क गत ऄयधक धीमी होगी. कल वख डन ु खी क ं और स ं लयन क दश क बोध तभी हो पत है जब भगी बगलम ऄयथन य सधन से कल भन योग स ं पन कर लय जए,ये ठीक ईतनी ही भवकरी ह जतनी क भगी महकली क सधन के ऄ ं तग त अने वली कलणधक सधन . कत ु भगवती महकली क वो सधन ऄयधक द ु कर है जबक सवक और रजसक भव से य ु भगवती बगलम ु खी क ये सधन सहज और सरल है,जसक योग सधक समय जीवन जीते ह ए भी कर सकत है. अप यद वचर करगे तो दे ख गे य अपने कही स ु न य पढ़ भी होग क लम म ू लतः सीधे अच क सधन कर लेत े ह,कत ु जो ग ू ढ़ रहय है वो ये क अ च के म ू ल बीज ‚ॐ‛ जसे क ं डीय ि य र बीज भी कह गय है क समवय वो एक
खस िपत से मणप ं‛ बीज नभ च य मणप ु र च से कर दे ते ह. ‚ह ु र च को जत करने क कय करत है,और तबत मे मणप ं‛ बीज नभ ु र को मणप कह जत है. ‚ह च क जग ृ त कर म ू लईस को चै तय कर दे त है, और यद आसके बद वश बीज म क लगतर जप कय जये तो ईस अघत से भगवती बगलम ु खी क कट ् य सहज हो क स ं योग अच के ‚ह ं‛ और ‚ ं‛ जत है.और तब आसी म ृ त ऄथस ू ू ल ईस से नस बीज से ू प ण तय हो जत है तथ अकश बीज से स योग ं होते ही ण क वतर और सर प ूरे ड म हो जत है तथ सधक क आतनी स ूम और थर हो जती है तथ कलभन ण से य ु हो जती है जसके करण वो कल के स ं क ु चन को भली भ ं त ऄपने ने से दे ख सकत है और कल दश न कर सकत है. मणप ृ त के बद ु र च क जग ही ये य स ंभव हो सकती है,आसके पहले के च क जग ृ त से ये सब होन स ंभव नह हो सकत है,य ा ू क आस च के जत होते ही “ लोक” और णमय कोष क जग ृ त हो जती है,और जब सधक क परचय वय ं से हो जत है तभी वो ऄपनी वरटत को समझ कर ड भेदन क य स पन ु ं कर सकत है. ये य पढ़ने मे शयद ुद कर लगे कत करने मे नरपद और सहज सय है. हम म म क यन रखकर ऄयस करन है,महव सधन क ये वो िपतया है,जह ग ु रखने मे ही भलइ समझी जती रही है . कत ु सदग ु दे व न सदै व आन प को सबके समने रख है,तभी हम आन ग ु यओ ं को समझ पए ह. आस योग को कसी भी रववर से र ंभ कय ज सकत है. म ,सय कल ु ह त ं ऄथव मय र मे आस सधन को स पन ं कय ज सकत है. व व असन पीले रह गे. दै नक ू प जन के पत समने बजोट पर पील व बीछ द और ईस पर क ु मक ु म से एक गोल बन कर ईसके मय म वतक चह बन द,गोल ड क तीक है और वतक दश दशओ ं क.
ईस वतक के उपर पीले चवल क ढेरी रख द तथ ईस पर क ं से क एक प य ले ट थपत कर ईस पर एक दीपक क थपन कर द.दीपक म तल क ते ल हो तथ हदी से र ं जत इ क बी हो. सदग ु दे व और भगवन गणपत क प ू जन करने के बद दीपक को वलत कर ईसक भी प प जन कर. ू जन कर,हदी,केसर मत खीर,पीले ऄत,प ु प,ग ु गल य लोहबन ध ु प से ू आसके पत ‚ह ं‛ बीज क जप कर,जप ऐस होन चहए क वन हो तथ वन के सथ नभ ऄ ं दर ध ं से, ं स बहर फेकते ह ए जप वचक प से कर,य ये समझ ल क भक जै से ही आसे स ं पन करन है.ऄथत तीत से वय ु बहर करते ह ए जब हम ह ं क वन करगे तो वतः ही हमर पेट दबत ही है,ग ु द र को उपर खीचे ह ए ये य करन है. आस कर ये य ५ मनट तक करन है. अप वतः ही दे ख गे क कैस े नभ म प ं दन र ंभ हो जत है. आसके बद थर च से यथस ंभव टक करते ह ए अध घ ं ट “ ं ं ‛(HREEM KRAM HLEEM HLEEM HLEEM KRAM HREEM ) क जप कर. कल बीज और मय बीज से स ग ं ु फत म ं सधक को एसी मत दे दे ते ह क वो सहज ही ऄपने ण क वतर ड म कर दे त है,और कल न क मत से य ु हो जत है. जप के बद प ं‛ बीज वल म प ं च मनट तक कर,और समपण के पत असन से ु नः ‚ह ईठ जएा और खीर क भोग वय ं ही हण करे,सधन कल म सधक को बेसन क समी क योग खने म ऄवय करन चहए .सधन सही चल रही है ,आसक पत अपको वय ं ही ऐसे लगे ग क अप जो भी वन दे ख गे,वो अपक अा ख ख ु लने के बद भी अपको मरण रह गे,तथ अप ईनक ग ू ढत को भी ऄयस के सथ धीरे धीरे समझने लग जय गे ईन वन क भष भी अप क समझ म अते जये गी,श ं त च होकर बै ठने पर अप कइ ऐसी अवज को भी स ु न सकते ह जो समयतः स ु नइ नह दे ती है,ऄथत अप वणी के ईस कर को भी वत कर सकते ह जो समय कन से स ु नइ नह दे ते ह.
आस सधन को दन म नह ब ंध ज सकत है,य ू क ं म नय क १ घ ट ं यद अप आसक ऄयस करते ह तो प ं च ं ग ु ली,िकणपशणचनी, िक म ं गी,देयनी सधन क ही भा त अप कल दश न कर ऄतीत व भवय दश न कर सकते ह,आसके ऄलव ईन गतवधय और वनय को भी अप स ु न और दे ख सकते ह,जो ऄगोचर है,ग ु अ न होने के करण म यहा ईस रहय को प नह लख सकती ह ा ,आसलए म ने म स ंकते ही कय है .मने म ईन भइ बहन के णलए आस योग क णिर णदय है,णजनक णच न के रहय को समझने,परणन को अतमस करने और कल दशन करन म है. महव सधनओ ंके बह त से ऐसे अयम ह जनक समयतः ववरण श म नह दय जत है. भगवती बगलम ु खी क सधन क वो कौन स योग है जससे ती मतक,मरण श और वश क कम समय म क ज सकती है,आसक ववे चन ऄगले लेख म...
हे भ ु ! हम जीवन म सधनओ ंके मयम से सभी समयओ ं क समधन कर ल और जीवन को ू प ण स ु खी सफल और स पन ं बनने मे सफल ह | जय सदग ु दे व , भआयो बहन जीवन क सौभय होत है महव सधन . य अप जनते ह सदग ु दे व ने तो हमे श से महव सधन पर ही जोर दय है यक, महव सधन क ऄथ ही है स ं सर कसवच श, महव यन सधक के जीवन से समयओ ं क ू द र ह जन . आन सधनओ ं मे से कोइ एक भी सधन प ू ण त के सथ ह इ नह क जीवन ू प ण नक ु रत होने के सथ ही अथक भौतक और ऄद ्यमक ं टक और स ईनत क ओर ऄसर ह जत है . भआय बहन वत मन समय बड़ी भग दौड और अपधपी वल है . आसके सथ ही एक होड सी लगी अगे बढ़ने क, और आस होड म लोग सब क ु छ भ ू ल भी जते ह , रते नते, दोती भइचर सब क ु छ . और आस होड़ म ही क ु छ लोग ऄपन ववेक खो दे ते ह और ुद सरे क न ु सन भी करने से नह च ू कते . कभी यपर ब ंधन, कभी त ं योग, कभी और स ु न क कल जद ू जै से योग भी कर दे ते ह फलवप आनसे पीड़त य क तथी बद से
बदतर होते चले जते ह और जै स म ने ऄभी अपको त ं बध योग दे ते समय बतय थ क जीवन नरकय होत चल जत है ......... ये क महव ऄपने अपम ू प ण होती ह ये अप सबको पहले भी बत च ु क ह ं ....... मे री ऄत य मा अद श क सबसे ऄधक समोहक, ती श ु ह त ं और समत मनोकमनओ ं को शीऄत शी प ू ण करने म सम है....... वो ह ......... मा बगलम ु खी..... जीवन क समत समयओ ं, बधओ ं को ू द र कर ू प ण स ु ख श ं त और न द, नभ य, और ू प ण सपनत के सथ जीन सखती मा बगल........ मा बगलम ु खी के बरे म कइ ं तय ं ........... जै से----- आनके योग मरण के लए कय जत . आह तभन के लए सध जत है, आनक योग श ु को परेशन करने के लए कय जत है अद अद ..... ऄभी तक क ु छ योग ऐसे दए गए ह जससे ये तो सबत ह गय क मा के ऄनेक ह जै से --- ऄय ं त ती श प ण रक भी ु ह त ं है तो ती दरयह त ं भी यद तभनकरी ह तो ू . और सथ ही सिदत एव ं सधको के लए वय ं मत ृ वप भी ह ..... भआय बहन ! अपम से ऄनेक के मेरे पस ह औए ईन सब समयओ ं क नदन तो करन ही ह . मेरे मन म ऄचनक ये यल अय क समने ही बगल म ु खी जय ती ं है और अप सबको आस श ुभ ऄवसर क लभ तो ईठन ही चहए . ह न तो .......... मै ने जो वय ं ऄन ुभ ू त कय, जसक परण ऄनेक बर सफलत प ू व क कय, और जसने म ु झे ऄनेक कलओ ं म पर ं गत कय, मा अज भी नरतर मे र मग दश न करती है ... तो अआये आस बगल जय ं ती पर समत कमनओ ं को, सभी क को चहे वो रोग ह, दरत ह भय ह, ऄसफलत ह, कवट ह, बधए ं ह क ु छ भी ह.... एक योग एक सधन कत ु स ं कप भन, और रही बत प ू ण सफलत क तो वय ं करये और दे खये .... यक जब तक कोइ चीज ऄन ुभ ू त न कय जये तब तक ईसके ग ु ण क ऄ ं दज नह होत.... ऄतः तै यर ह जआये बगल जय ं ती को से ले ट करने हे त ु..... ह न योग णणध पीले व, पील असन, पीले फ ू ल और हदी म र ं गे पीले ही चवल.....
ईर य ू प व दश बगल य ं य बगल च य वह य आन सबके ऄभव म मा द ु ग क च भी ले सकते ह . पीली हकक मल य हर मल य मल . समय तःकल य म प व. ु ह त से लेकर मयह के ू तः नन अद से नव प ण भ भव से ग ृ होकर असन हण कर एव ं ू ु , गणे श एव ं वण कष ण भै रव क ू प ज स पन ु म क चर मल स पन ं कर ग ं कर और थन कर और ग ु दे व से अशीवद और ऄन ु मत यन स ्- स णथ ु िसन ु कोलणसणन ं, ं ं णनयन ं पीश हैमभागणच ं शश क ु ट ं सचकप - य ु ं | ं - ुम क है ुम र पशब - रसन ं स ण भ ू िषे, ं य ं गी बगलम णचये|| ु ख णजग ं स भन ं वनयोग ॎ ऄय ी बगलम ु खी म य ु खी दे वत, कल ं भै रव ऊषव रट ् छ ं द:, ी बगलम बीजम ् , ऐ ं श:, कलक ं , मम परय मनोभलषत - कय सयथ वनयोग: | ऊयदयस:-- शरस भै रवऊषये नमः | म ु खे वरटछ ं दसे नमः | द बगलम ु खी दे वतये नमः | ग ु े कल बीजय नमः | पदयो: ऐ ं शये नमः | सव गे कलकय नमः | करयस; ॎ ं ऄ ं ग ु य ं नमः | ॎ तज नीयम ं नमः | ॎ ू ं मयययम ं नमः | ॎ ऄनमकय ं नमः | ॎ कन ् कया नमः | ॎ : करतलकर य ं नमः| दयदयस;---ॎ ं दयय नमः | ॎ शरसे वह | ॎ ू ं शखयै वषट ् | ॎ कवचय ह ं | ॎ ने यय वौषट ् | ॎ ः ऄय फट ् | म:---ॐ ऐ ् नशय - नशय ममेयिण देणह ू न ं ल ी बगलनने ! मम रप देणह शीघ ं मनो णछतकय सधय - सधय ह | ं
OM HREEM AING SHREEM KLEEM SHREEM BAGLAANANE MAM RIPUN NAASHAY NAASHAY MAMESHWARYAANI DEHI DEHI SHEEGHRAM MANOVAANCHHIT KARYAM SAADHAY SAADHAY HREEM SWAHA
ईपरो म क ११ मल मजप थर और एक होकर जप . तपत द ु बर मा क यन कर जप समपण कर फर ग ु म क चर मल म जप कर जप समपत कर अशीवद कर ..... आस योग म अप ऄपनी समय से सब ं धत स कप ू ण ि भव से ं ल . और प सधन स पन ुभव कर ...... ं कर..... और रही बत रजट क तो सधन करये और वय ं ऄन
सतम सयपक ं ससौदय मि ं | स स सतमक ं पीबर शण नमणम ||
हा यही ऄथ तो नकलत है ईपरो ोक क क‚सभी जगह,सभी णय म,सभी कर क सदय जो गोचर होत है,य ये कहे क आस ऄखल ड के सदय क एक म मण भगवती वगम ृ प कट म से क ु खी ही तो ह,जनके क ु पत क ऄ ं त होकर ईसक सदय म प ं तरण हो जत है.‛ बह ध सधक क कसी महव य श को म ऄपने भव वचर म बाध ले न ईस श के ू प ण कट ् य से सधक को व चत ं कर दे त है. जै से हम महकली सधन को म
श ु नश क मत से य ु ही मने तो ये हमरी य ू नत ही है,भगवती लमी को म जीवन म ऐय दी ही मन तो ये हमरी कमी है,वतवकत ये है क सभी शय ं सव अयम से य ु ही होती ह,हम जस तव क यन ईस श के सथ करके ईनक सधन करते ह,हम वै से ही परणम क होती है . मनव जीवन क सप ू ण त क ऄथ ही ये है क ईसक जीवन सभी य से भर प ू र हो,धन,धय,स ं तन,श ु पर नय ं ण,समन,अरोय अद से य ु हो...कत ु आसके सथ य के जीवन म ऄ ं तर और ब सदय भी होन अवयक है,तभी वो कलओ ं य ग ु ण से य ु हो पत है. भगवती वगम ु खी वत ु तः प ु र स ु ं दरी क ु ल क श ह, और भल जो प ु र स ु ं दरी क ु ल के ऄ ं तग त अने वली श होगी,वो सदय और ऐय दी कैस े नह होगी. ईपय ु बीज क योग जब म के सथ कय जत है तो वो मनोव छत ं परणम दे त ही है. और जब बगलम ु खी क सधन भगवती पीतबर प म होती है तो वो सधक को ऐय और सदय से परप ू ण करती ही है, यद हम ईह म तभन क ही ऄधी मन तब भी ये तो नव वद सय है क वे कसी भी थत को रोक दे ती ह,थयव दे ती ह, य अप जनते ह क जब लम कलन क य सधन र स पन ू ल म ईस ं क जती है तब भी ईसके म म ं वशे ष म (जसके र भगवती लमी को सधक के जीवन म थयव दय जत है) भगवती बगलम ु खी क स ूम बीज योग समहत होत ही है,ऄयथ लमी क ऄथयव स ंभव नह हो पत है | सधक के मन म स ं शय क भव ऄवय होग क भल ये कैस े स ंभव होग. य अप जनत ह क ख डकल वह म ऄथ त क ु छ वशे ष ण य म ु ह त म ईन बीज वशे ष ं क श नहत होती है,जसके र सधक ऄपन ऄभी प ू र करत है. जै से व कल महकली य कल भै रव क वव श ु होत है और ईस कल वशे ष म यद श ु ं श से य नश य ईचटन क सधन क जए तो ऄभी सि ऄवय होती है. स ह ृ षभ ं लन य व लन हो तो ये भगवती पीतबर क थयव श से य ु समय होते ह, और यद आसम धन
को थयव दे ने क य क जए तो नय ही सधक लमी अिब क य सप ू ण त के सथ कर लेत है. वै से ही मोटे मोटे प म यद ४.३० बजे स प ण सदय दत कल ु बह से स ू यदय तक क समय ू कहलत है,आस कल क यद सधनमक योग यद नह भी कय जए तो भी यद य म आस समय ईठ कर वय क करत ु से वन करे,उष पन करे तो वो नय ही दीघय ु य ही है. और यद आस कल म मय बीज य ु भगवती वगम ु खी बीज क जप कर वो हदी से र ं जत इ क दीपक तल के ते ल से वलत करे तो प ू ण सदय ग ु ण से य ु होत ही है. सदय के नन ऄथ ह : प ू ण पौषत क ,ऄथ त श ु तभन,मे ह से म ु ,श ु ण ुओ ं म चै तयत(आस हे त ु श ु ण ु कमजोर होने पर ही लभ होग,ऐस नह है क श ु ण ु nill हो) भवशली अवज स ु ण शरीर कणशील दय ते जवी चे हर प ू ण अकष ण मत कमजोर दे ह से म ु ी के णलए :-
अकष क चे हर जो ू प री तरह दग धब से म ु हो कमनीय दे ह मध ु र वणी स ु गधत दे ह थ ु लथ ु ल दे ह से म ु मसक धम क नयमतत प ू ण गभ धरण क मत (गभ धरण के बद ईसक प ू ण वकस और गभ पतन दोष से प ू ण म ु ) प ू ण े म क ग ृ हथ स ु ख म ऄन ु क ू लत यहा सदय के व ृ हद ऄथ ह जो आस सधन से शनैः शनैः होते जत है. कोइ जटल वधन नह, सधक क एकत और ू प ण ृि ही सधन को सफलत पथ क ओर ऄसर करती है| रववर क स ु बह म ु ह त म ननद के पत पीली धोती य पीली सड़ी धरण करके,ईर दश क ओर म प जन गणपत ू प जन के पत समने ु ख करके बैठ जएा,ग ु ू बजोट पर तल के ते ल क दीपक वलत करे जसमे हदी से र ं जत और स ु खइ ह यी कपस य इ क योग कय गय हो, ईसी दीपक के समने त प म करीब १ लीटर पनी
रख हो,और ईस प तथ दीपक क म हदी के र “ॐ पीबरशतयै नमः” क ईचरण करते ह ए ू प जन कर, और ऄपने कय क सफलत क थन कर,ततपत “ नमः” (HLEEM HREENG HREEM HREEM HREENG HLEEM NAMAH) म ं क १ घ ं टे तक ईस दीपक क लौ क और दे ख कर जप कर, १०-१५ मनट के बद ही ईस लौ क कश और स ु नहर होत चल जत है,और धीरे धीरे सधक क ऄतव ईस कश म वलीन होते जत है,समय कैस े बीत जत है,पत ही नह चलत है,भव क तमयत बढते चली जती है. जप के बद स ू यदय के बद ईस प के जल क वय ं पन कर ल य घर म यद कोइ बीमर है तो ईसे भी पन करव द, आसी म को ग ु वर तक कर. परणम अप वय ं ही दे ख कर बतआये ग. वे सभी ऄभव जनसे अपके जीवन,वचर,शरीर य यव क स ु ं दरत सम हो गयी हो,सम होकर ुप नः सदय क होती ही है,फर वो चहे अपके जीवन क कोइ भी े हो.
इनव ं ाण तेजसा ो S स पररिता | वम ं तिरे चरस स ू यव ं योतषा ं पत: || ोपनषद म वण त आस ोक क समय ऄथ तो म ये है क ‚हे ण,त ु म आ ू ण बल प म त ु म सत ् वप होकर त ु म स ं हर क ं हो,ऄपने प तीत हो तो ईसी तीत से र करने वले भी हो | त ु म ही तो आस यमन और ऄय ऄ तर म स ू य के प सतत स चरण ं ं करते ह ए सभी कर क योतय क वतर ईनके वमी य ऄधपत के प म करते हो |‛ कत ु त ं श म आस ोक क एक वशे ष ऄथ है. जसे यद समझ कर योग कय जए तो सधक को नय ही ू प ण समोहन मत और ऐय क होती है,सथ ही सथ ईसे वय ं के जीवन म ू प ण स ु र भी होती ही है. जब भी भगवती वगम ु खी क बत होती है तो म हमने ईससे तभन के ग प ण नय ण ु ण क और श ुओ ं पर ू ं क मत को ही ऄ तम ं लय मन लय है,जबक सय ऐस है नह.
य ू क ू ण हो,ऄथत ं भगवती अश क कोइ भी प ऐस नह है जो ऄपने अप म ऄप कसी भी प क ऄयथन और सधन अपको वो सब दन कर सकती है,जसक अपने कभी भी कपन क हो.... “इछा माेण स ृ म ् भवेत ् ” ऄथ त वो सब क ृ ु छ जो कपनीय है य ऄकपनीय है ईस अदश के चहने म से स कर सकत है. य ू ं क हम शयद ये भ ू ल जते ह क हमरी कपन भी हमरी कपन म तब तक द ुभव नह प सकती है जब तक क ईस परश क आछ न हो. महवओ ंके सभी प कसी न कसी तव क तनधव करत ह,यथ भगवती छनमत श ु य तव को दश त करती ह. महकली ऄन तव को दश त करती ह, वै से ही भगवती बगलम ू ल ईतस जब तक ु खी ण तव क ऄधी वमनी ह, सधक क म प ृ प ही कर ू री तरह जत न हो,सधक तब तक म आनक सहचरी शय क क सकत ह,कत प ण अमसमयकरण तभी स ंभव है,जब हम म ु ू ू ल ईस क जगरण कर ईस के नम से जनते ह | आस स स ू को चै तय कर ल जसे अगम श के मम ऄथस ू ू को लेकर बह त ही मक तय सधक के मय फैले ह ए ह. जबक वतवकत ये है क सधक क वो ऄतव जो आस ड म कह भी हो सकत है,जसे वन क भष म सपे ं डीय ऄतव कह जत है, को हमरे भौतक शरीर से जोड़ने क कय म आसी स ृ त और वतर के बद ही स ंभव हो सकत है. ण ू क जग तव के ऄ तग ू ण म आसी महव सधन से जत ं त अने वले सभी वन क प और ऄथव स ू य णन ं क ग ू के र ही तो स ंभव हो पत है,फर वो चहे स ू ढत हो,य फर ि णन क दयत क े , वय ंके ण क आस ऄखल ड म वतर कर प ूि ड भेदन कर दे न आसी सधन से तो स ंभव होत है. मिणप ू र च के वमव म अने वले ४९ मतगण और पा च ण के रहय क भे दन कर ईन पर ू प ण नय ण ु खी सधन से ही तो सभव है. ं म भगवती बगलम ण तव क वतर कर सधक ऄपर और पर दोन ही जगत से स ं पक थपत कर सकत है तथ नवीन तय से नवीन न से परचय कर सकत है.वै से तो म ू ल सधन म और हजर से भी यद म ृ त ं चलत ह सधक के मय आस महव क ईक और दयत को ू प री तरह कर लेने के लए,जसक ववरण आसी म करन क म ृ खल ं मशः यस कागी कत ु यद म ण श के वतर र ईस पर ऄपर जगत से
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मन षय के शरीर से एक णस नकलत है,जसे हम के नम से जनते ह ,च ू क ये णस ण प म होत है,इसलए लौकक प से इसे दे ख पने म हमरी थ ल दृ असमथव रहती है. जस परो श क जह से हमर मन हमरे कसी आमीय के दुख से द र रहकर भी परचत हो जत है, उसी श को हम अथव स के नम से जनते ह. इस श स म आकव ण क बलतम ग ण होत है,ये हजर मील द र से भी कसी को तण आकत कर ले त है. ये क णी के शरीर क अथव स भ ही होत है. जसमे उसक अपनी ण श होती है, यथ कसी भी शे के नख न,बल, आद म उसक ण श सदै तत रहती है. और योय सधक इसके मयम से अपन अभी सध ले ते ह. इसी करण कह जत है क अपने कपडे, न न और केश इधर उधर नह फेकन चहए. इनक कोई भी द पयोग कर सकत है. यही अथव श ‘बगलम खी’ के नम से सधक समज म चलत है. और इनक सधन द सय भी होती है. और सय भी है, जस ण श के करण सप णव हा ड म िक आ है ,ो इतनी आसनी से तो कभी स नह हो सकती है. बते रे सधक जम जमा तर तक इनक सधन करते रहते ह ,परत इनके रहय क उचत न न होने के करण ो इनक शय क उचत नह कर पते ह. इनक सधन म “ मा क महप णव योगदन होत है. एक मह श इनके भै र ह ,और ये तो सभी महओ क स करने क आधरभ त नयम है क, मह क स उनके भै र को स करे बगै र हो ही नह सकती. तपत बगलम खी क शरीर म थपन अनयव होत है, बन दे ह थपन के इनक स हो ही नह सकती. इस सधन के लए कोई भी दो कप आप चयनत कर सकते ह .पहल आप चने क दल से बगलम खी य क नमव ण कर के उस पर णव मयी बगलम खी क तम क थपन कर ले
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