सं सहासन हं ासन बीसी
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सं सहासन हं ासन बीसी
सहासन बीसी अदभु त अदभु त कहानी With the effort of http://books.jakhira.com
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सं सहासन हं ासन बीसी
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पु तली पु तली नाम
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1 पहली पु तली पु तली रमंजरी जरी 2 ूद सरी पु तली पु तली चले खा 3 तीसरी पु तली पु तली चकला
7 9 11
4 चौथी पु तली पु तली कामकंदला दला
13
5 पां चवी पां चवी पु तली पु तली लीलावती
15
6 छटी पु तली पु तली रवभामा
17
7 सातवी पु तली पु तली कौमु दी कौमु दी
19
8 आठवी पु तली पु तली पु वती पु वती
21
9 नौवी पु तली पु तली मधु मालती मधु मालती
23
10 दसवी पु तली पु तली भावती
25
11 ारहवी पु तली लोचना
27
12 बारहवी पु तली पु तली पावती
29
13 ते रहवी ते रहवी पु तली पु तली कतमती
31
14 चौदहवी ं पु ं पु तली सु नयना सु नयना
33
15 पंहवी हवी पु तली सु रवती सु रवती
35
16 सोलहवी पु तली पु तली सवती
37
17 सहवी पु तली पु तली वावती
38
18 अठारहवी पु तली पु तली तारावती
39
19 उीसवी पु तली पु तली परेखा
41
20 बीसवी पु तली पु तली ानवती
43
21 इसवी पु तली पु तली चोत
45
22 बाइसवी पु तली पु तली अनु रोधवती अनु रोधवती
47
23 ते इसवी ते इसवी पु तली पु तली धम वती
49
24 चौवसवी पु तली पु तली कणावती
51
25 पीसवी पु तली पु तली ने ी ने ी
53
26 छीसवी पु तली पु तली मृ गनयनी
55
27 सावसवी पु तली पु तली मलयवती
58
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संहासन बीसी
28 अावसवी पु तली वै देही
61
29 उीसवी पु तली मानवती
65
30 तीसवी पु तली जयली
68
31 इतीसवी पु तली कौशा
71
32 बीसवी पु तली रानी पवती
73
33 उपसंहार
74
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संहासन बीसी
ब त िदनो ं क बात है । उै न नगरी म राजा भो ज ं नाम का एक राजा राज करता था । वह बड़ा दानी और धमा ा था । ाय ऐसा करता िक ूद ध और पानी अलग-अलग हो जाये । उसके राज म शे र और बकरी एक घाट पानी पीते थे । जा सब तरह से सु खी थी । नगरी के पास ही एक खे त था, जसम एक आदमी ने तरह–तरह क बेल और साग-भाजयां लगा रखी थी ं । एक बार क बात हैि क खे त म बड़ी अ फसल ई । खू ब तरकारयां उतरी ं, लेि कन खे त के बीचो ं-बीच थोड़ी-सी जमीन खाली रह गई । बीज उस पर डाले थे , पर जमे नही ं । सो खे त वाले न ा िकया िक वहां खे त क रखवाली के लए एक मचान बना लया । पर उसपर वह जै स ही चढ़ा िक लगा चाने - “कोई है? राजा भोज को पकड़ लाओ ं और सजा दो ।” होते-होते यह बात राजा के कानो ं म पंची । राजा ने कहा, “मु झे उस खे त पर ले चलो । म सारी बात अपनी आं खो ं से देखना और कानो ं से सु नना चाहता ं ।” लोग राजा को ले गये । खे त पर पंचने ही देखते ा ह िक वह आदमी मचान पर खड़ा है और कह रहा है- “राजा भोज को फौरन पकड़ लाओ ं और मे रा राज उससे ले लो । जाओ, जी जाओ ं ।” ं नही ं आयी । ो ं यह सु नकर राजा को बड़ा डर लगा । वह चु पचाप महल म लौटा आया । िफ के मारे उसे रातभर नी द ं ि हसाब लगाकर ो ं रात बताई । सवे रा होते ही उसने अपने रा के ोतषयो ं और पंिडतो ं को इका िकया उो ने बताया िक उस मचान के नीचे धन छपा है । राजा ने उसी समय आा दी िक उस जगह को खु दवाया जाय । खोदते-खोदते जब काफ मी नकल गई तो अचानक लोगो ं ने देखा िक नीचे एक स ं हासन है । उनके अचरज का ि ठकाना न रहा । राजा को खबर मली तो उसने उसे बाहर नकालने को कहा, लेि कन लाखो ं मजद ू रो ंके जोर लगाने पर भी ं ं वह स हासन टस-से मस-न आ । तब एक पंिडत ने बताया िक यह स हासन देवताओ ं का बनाया आ है । अपनी जगह से तब तक नही ं हटेगा जब तक िक इसको ं कोई बल न दी जाय । राजा ने ऐसा ही िकया । बल देते ही सहां सन ऐसे ऊपर उठ आया, मानो ं फूल ंो का हो । राजा बड़ा खु श आ । उसने कहा ं ि क इसे साफ करो । सफाई क गई । वह स हासन ऐसा चमक उठा िक अपने मु ंह देख लो । उसम भां त-भां त के र जड़ थे, जनक चमक से आं ख चौधयाती थी ं । स ं हासन के चारो ं ओर आठ-आठ पु तलयां बनी थी ं । उनके हाथ म कमल का ं एक-एक फूल था । कही -ं कही ं स हासन का रंग बगड़ गया था । कही ं कही ं से र नकल गये थ । राजा ने िदया िक खजाने से पया ले कर उसे ठीक कराओ । स ं हासन को ठीक होने म पां च महीने लगे । अब स ं हासन ऐसा हो गया था । िक जो भी देखता, देखता ही रह जाता । पुतलयां ऐसी लगती ं, मानो अभी बोल उठगी ं ।
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संहासन बीसी
राजा ने पंिडतो ं को बु लाया और कहा, “तु म कोई अा मु त नकालो । उसी िदन म इस स ं हासन पर बैठूंगा ।” एक िदन तय िकया गया । ूद र-द ू र तक लोगो ं को नमंण भे जे गये । तरह-तरह के बाजे बजने लगे, महलो ं म खु शयो ं मनाई जाने लगी ं । ं अपना िदाहना पै र बढ़ाकर स ं हासन सब लोगो ंके सामने राजा स ं हासन के पास जाकर खड़े हो गये । लेि कन जै से ही उो ने पर रखना चाहा िक सब-क-सब पु तलयां खलखला कर हं स पड़ी । लोगो ं को बड़ा अचंभा आ िक ये बे जान पु तलयां ं लया और पुतलयो ं से बोला, “ओ पुतलयो ं! सच-सच बताओ ंि क तुम कैस हंस पड़ी । राजा ने डर के मारे अपना पै र खी च ो ं हंसी?” पहली पुतली का नाम था । रमंजरी । राजा क बात सु नकर वह बोली, ” राजन! आप बड़े ते जी ह, धनी ह, बलवान ह, लेि कन घमंड करना ठीक नही ं । सु नो! जस राजा का यह सहां सन है, उसके यहां तु म जै से तो हजारो ं नौकर-चाकर थे ।” यह सु नकर राजा आग-बबू ला हो गया । बोला, “म अभी इस सहां सन को तोड़कर मी म मला ूद ंगा ।” पु तली ने शां त से कहा, “महाराज! जस िदन राजा विमाद से हम अलग ई उसी िदन हमारे भा फूट गये, हमारे लए स ं हासन धू ल म मल गया ।” ं कहा, “पु तली रानी! तु ारी बात मेरी समझ म नही ं आयी । साफ-साफ कहो ।” राजा का गु ा ूद र हो गया । उो ने पु तली ने कहा, “अा सु नो ।”
(इस कहानी म बीस पु तलया है जनके नाम है 1. रमंजरी 2. चले खा 3. चकला 4. कामकंदला 5. लीलावती 6. रवभामा 7. कौमु दी 8. पु वती 9. मधु मालती 10.भावती 11. लोचना ���� ����� �� ������������������������
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संहासन बीसी
12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32.
पावती कतमती सु नयना सु रवती सवती वावती तारावती परेखा ानवती चोत अनु रोधवती धमवती कणावती ने ी मृ गनयनी मलयवती वै देही मानवती जयली कौशा रानी पवती
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संहासन बीसी
पहली पु तली रमंजरी अं बावती म एक राजा राज करता था । उसका बड़ा रौब-दाब था । वह बड़ा दानी था । उसी रा म धमसे न नाम का एक और बड़ा राजा आ । उसक चार रानयां थी । एक थी ाण द ू सरी य, तीसरी वै और चौथी शू । ाणी से एक पु आ, जसका नाम ाणीत रखा गया । ाणी से तीन बे टे ए । एक का नाम शंख, ूद सरे का नाम विमाद और तीसरे का भतृ हर रखा गया । वै से एक लड़का आ, जसका नाम चं रखा गया । शू ाणी से धार ए । जब वे लड़के बड़े ए तो ाणी का बे टा दीवान बना । बाद म वहां बड़े झगड़े ए । उनसे तंग आकर वह लड़का घर से नकल पड़ा और धारापूर आया । हे राजन्! वहां का राज तु ारा बाप था । उस लड़के नेि कया ा िक राजा को मार डाला और रा अपने हाथ म करके उै न पंचा । संयोग क बात िक उै न म आते ही वह मर गया । उसके मरने पर ाणी का बे टा शं ख गी पर बै ठा । कुछ समय बाद विमाद ने चालाक से शंख को मरवा डाला और यं गी पर बै ठ गया । एक िदन राजा विमाद शकार खे लने गया । बयावान जंगल । राा सू झे नही ं । वह एक पे ड़ चढ़ गया । ऊपर जाकर चारो ं ओर नगाह दौड़ाई तो पास ही उसे एक बत बड़ा शहर िदखाई िदया । अगले ि दन राजा ने अपने नगर म लौटकर उसे बु लवाया । वह आया । राजा ने आदर से उसे बठाया और शहर के बारे म पू छा तो उसने कहा, “वहां बाबल नाम का राजा बत िदनो ं से राज करता है । आपके पता गंधव से न उसके दीवान थे । एक बार राजा को उन पर अवास हो गया और उ नौकरी से अलग कर िदया । गंधब से न अं बावती नगरी म आये और वहां के राजा हो गये । हे राजन्! आपको जग जानता है , लेि कन जब तक राजा बाबल आपका राजतलक नही ं करेगा, तबतक आपका राज अचल नही ं होगा । मे री बात मानकर राजा के पास जाओ ं और ार म भुलाकर उससे तलक कराओ ं।” विमाद ने कहा, “अा ।” और वह लू तवरण को साथ ले कर वहां गया । बाबल ने बड़े आदर से उसका ागत ि कया और बड़ े ार से उसे रखा । पां च िदन बीत गये । लू तवरण ने विमाद से कहा, “जब आप वदा लोगे तो ं बाबल आपसे कुछ मां गने को कहे गा । राजा के घर म एक स हासन ह, जसे महादेव ने राजा इ को िदया था । और इ ने बाबल को िदया । उस स ं हासन म यह गु ण हैि क जो उसपर बै ठेगा । वह सात ीप नवख पृी पर राज करेगा ं । उसम बत-से जवाहरात जड़े ह । उसम सां चे म ढालकर बीस पु तलयां लगाई गई है । हे राजन्! तु म उसी स हासन को मागं ले ना ।” ं ं अगलेि दन ऐसा ही आ । जब विमाद वदा ले ने गया तो उसने वही स हासन मागं लया । स हासन मल गया । बाबल ने विमाद को उसपर वठाकर उसका तलक िकया और बड़े े म से उसे वदा िकया ।
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इससे विमाद का मान बढ़ गया । जब वह लौटकर घर आया तो द ू र-द ू र के राजा उससे मलने आये । विमाद चै न से राज करने लगा । एक िदन राजा ने सभा क और पंिडतो ं को बु लाकर कहा, “म एक अनु ान करना चाहता ं । आप देखकर बताय ि क म इसके यो ं । या नही ं ।” पंिडतो ं ने कहा, “आपका ताप तीनो ं लोको ं म छाया आ है । आपका कोई बै री नही ं । जो करना हो, कजए ।” पंिडतो ं ने यह भी बताया िक अपने कुनबे के सब लोगो ं को बु लाइये, सवा लाख कादान और सवा ं ं का एक साल का लगान माफ कर दीजये ।” लाख गाय दान कजए, ााणो ं को धन दीजय, जमी दारो राजा ने यह सब िकया । एक बरस तक वह घर म बैठा पुराण सु नता रहा । उसने अपना अनु ान इस ढंग से पू रा िकया िक द ु नया के लोग ध –ध करते रहे । ं इतना कहकर पुतली बोली, “हे राजन्! तु म ऐसे हो तो स हासन पर बै ठो ।” पु तली क बात सु नकर राजा भोज ने अपने दीवान को बु लाकर कहा, ” आज का िदन तो गया । अब तै यारी करो, कल ं स हासन पर बै ठग े ।” ं अगलेि दन जै से ही राजा ने स हासन पर बै ठना चाहा िक द ू सरी पु तली, ह जो राजा विमाद जै सा गु णी हो ।” राजा ने पू छा, “विमाद म ा गु ण थे?” पु तली ने कहा, “सु नो ।”
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द ू सरी पु तली चले खा ं वह अं ग एक बार राजा विमाद क इा योग साधने क ई । अपना राजपाट अपने छोटे भाई भतृ हर को सौ पकर म भभू त लगाकर जंगल म चले गये । उसी जंगल म एक ाण तपा कर रहा था । एक िदन देवताओ ं ने स होकर उस ाण को एक फल िदया और कहा, “जो इसे खा ले गा, वह अमर हो जायगा ।” ाण ने उस फल को अपनी ाणी को दे िदया । ााणी ने उससे कहा, “इसे राजा को दे आओ ं और बदले म कुछ धन ले आओ ।” ाण ने जाकर वह फल राजा को दे िदया । राजा अपनी रानी को बु हत ार करता था, उससे कहा, “इसे अपनी रानी का दे िदया । रानी क दोी शहर के कोतवाल से थी । रानी ने वह फल उस दे िदया । कोतवाल एक वे ा के पास जाया करता था । वह फल वे ा के यहां पंचा । वे ा ने सोचा िक, “म अमर हो जाऊंगी तो बराबर पाप करती रंगी । अा होगा िक यह फल राजा को दे द ू ं । वह जीये गा तो लाखो ं का भला करेगा ।” यह सोचकर उसने दरबार म जाकर वह फल राजा को दे िदया । फल को देखकर राजा िचकत रह गया । उसे सब भे द मालू म आ तो उसे बड़ा द ु:ख आ । उसे द ु नया बे कार लगने लगी । एक िदन वह बना िकसी से ं रा क रखवाली के लए एक कहे-सु ने राजघाट छोड़कर घर से नकल गया । राजा इं को यह मालू म आ तो उो ने देव भे ज िदया । उधर जब राजा विमाद का योग पू रा आ तो वह लौटे । देव ने उे रोकां विमाद ने उससे पू छा तो उसने सब हाल बता िदया । विमाद ने अपना नाम बताया, िफर भी देव उ न जानेि दया । बोला, “तु म विमाकद हो तो पहले मुझसे लड़ो ं ।” दोनो ं म लड़ाई ई । विमाद ने उसे पछाड़ िदया । देव बोला, “तु म मु झे छोड़ दो । म तु ारी जान बचाता ं ।” राजा ने पू छा, “कैसे?” देव बोला, “इस नगर म एक तेली और एक कुार तु मारने क िफराक म है । ते जी पाताल म राज करता है । और कुार योगी बना जंगल म तपा करता है । दोनो ं चाहते हि क एक द ू सरे को और तु मको मारकर तीनो ं लोको ं का राज कर। “तु म विमाद हो तो पहले मु झसे’ लड़ो ।” योगी ने चालाक से ते ली को अपने वश म कर लया है । और वह अब सरस के पेड़ पर रहता है । एक िदन योगी तु बु लायगा और छल करके ले जायगा । जब वह देवी को दंडवत करने को कहे तो तुम कह देना िक म राजा ं । दवत करना नही ं जानता । तुम बताओ िं क कैसे कं । योगी जै से ही सर झ ु काये, तु म खां डे से उसका सर काट देना । िफर उसे और तेली को सरस के पे ड़ से उतारकर देवी के आगे खौलते ते ल के कड़ाह म डाल देना ।” ���� ����� �� ������������������������
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राजा ने ऐसा ही िकया । इससे देवी बत स ई और उसने दो वीर उनके साथ भेज िदये । राजा अपने घर आये और राज करने लगे । दोनो ं वीर राजा के बस म रहे और उनक मदद से राजा ने आगे बड़े–बडे काम िकये । इतना कहकर पुतली बोली, “राजन्! ा तु मम इतनी योता है? तु म जै से करोड़ो राजा इस भू म पर हो गये है ।” द ू सरा िदन भी इसी तरह नकल गया । तीसरे िदन जब वह स ं हासन पर बै ठने को आ तो रवभामा नाम क तीसरी पुतली ने उसे रोककर कहा, “हे राजन्! यह ा करते हो? पहले विमाद जै से काम करो ं, तब स ं हासन पर बैठना!” राजा ने पू छा, “विमाद ने कैस े काम िकये थे?” पु तली बोली, “लो, सु नो ।”
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तीसरी पु तली चकला तीसरी पुतली चकला ने जो कथा सु नाई वह इस कार है - एक बार पु षाथ और भा म इस बात पर ठन गई िक कौन बड़ा है । पु षाथ कहता िक बगै र मे हनत के कुछ भी सव नही ं है जिबक भा का मानना था िक जसको जो भी मलता है भा से मलता है परम क कोई भू मका नही ं होती है । उनके ववाद ने ऐसा उ प हण कर लया िक दोनो ं को देवराज इ के पास जाना पड़ा । झगड़ा बत ही पे चीदा था इसलए इ भी चकरा गए । पु षाथ को वे नही ं मानते ज भा से ही सब कुछ ा हो चु का था । द ू सरी तरफ अगर भा को बड़ा बताते तो पु षाथ उनका उदाहरण ु त करता ं मे हनत से सब कु छ अजत िकया था । असमंजस म पड़ गए और िकसी नष पर नही ं पँचे । काफ सोचने के जो ने बाद उ विमाद क याद आई । उ लगा सारे व म इस झगड़े का समाधान सफ वही कर सकते है । ं पु षाथ और भा को विमाद के पास जाने के लए कहा । पु षाथ और भा मानव भे ष म वम के पास उो ने ं अपने झगड़े क बात रखी । विमाद को भी तु र कोई समाधान नही ं सू झा । चल पड़े । वम के पास आकर उो ने ं दोनो ं से छ: महीने क मोहलत मां गी और उनसे छ: महीने के बाद आने को कहा । जब वे चले गए तो विमाद उो ने ं सामा जनता के बीच भे ष बदलकर घूमना शु िकया । ने काफ सोचा । िकसी नष पर नही ं पँ च सके तो उो ने काफ घू मने के बाद भी जब कोई संतोषजनक हल नही ं खोज पाए तो द ू सरे राो ं म भी घू मने का नण य िकया । काफ ं एक ापारी के यहाँ नौकरी कर ली । ापारी ने उ भटकने के बाद भी जब कोई समाधान नही ं नकला तो उो ने नौकरी उनके यह कहने पर िक जो काम द ू सरे नही ं कर सकते ह वे कर दगे, दी । कुछ िदनो ं बाद वह ापारी जहाज पर अपना माल लादकर द ू सरे देशो ं म ापार करने के लए समु ी राे से चल पड़ा । अ नौकरो ं के अलावा उसके साथ विमाद भी थे । जहाज कुछ ही द ू र गया होगा िक भयानक तू फान आ गया । जहाज पर सवार लोगो ं म भय और हताशा क लहर दौड़ गई । िकसी तरह जहाज एक टापू के पास आया और वहाँ लंगर डाल िदया गया । जब तू फान समा आ तो लंगर उठाया जाने लगा । मगर लंगर िकसी के उठाए न उठा । अब ापारी को याद आया िक विमाद ने यह कहकर नौकरी ली थी िक जो कोई न कर सकेगा वे कर दगे । उसने वम से लंगर ू ट उठाने को कहा । लंगर उनसे आसानी से उठ गया । लंगर उठते ही जहाज ऐसी गत से बढ़ गया िक टापू पर वम छ गए । उनक समझ म नही ं आया ा िकया जाए । ीप पर घू मनेि-फरने चल पड़े । नगर के ार पर एक पका टंगी थी जस पर लखा था िक वहाँ क राजकुमारी का ववाह विमाद से होगा । वे चलते-चलते महल तक पँचे । राजकुमारी उनका परचय पाकर खु श ई और दोनो ं का ववाह हो गया । कुछ समय बाद वे कुछ से वको ं को साथ ले अपने रा क ओर चल पड़े । राे म वाम के लए जहाँ डेरा डाला वही ं एक सासी से उनक भ ट ई । सासी ने उ एक माला
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और एक छड़ी दी । उस माला क दो वशे षताएँ थी ं- उसे पहनने वाला अ होकर सब कुछ देख सकता था तथा गले म माला रहने पर उसका हर काय स हो जाता । छड़ी से उसका मालक सोने के पू व कोई भी आभू षण मां ग सकता था । सासी को धवाद देकर वम अपने रा लौटे । एक उान म ठहरकर संग आए से वको ं को वापस भे ज िदया तथा अपनी पी को संदेश भजवाया िक शी ही वे उसे अपने रा बु लवा ल गे । उान म ही उनक भ ट एक ाण और एक भाट से ई । वे दोनो ं काफ समय से उस उान क देखभाल कर रहे थे । ं उ आशा थी िक उनके राजा कभी उनक सु ध ल गे तथा उनक वपता को द ू र करग े । वम पसीज गए । उो ने सासी वाली माला भाट को तथा छड़ी ाण को दे दी । ऐसी अमू चीज पाकर दोनो ं ध ए और वम का गु णगान करते ए चले गए । वम राज दरबार म पँचकर अपने काय म संल हो गए । छ: मास क अवध पू री ई तो पु षाथ तथा भा अपने फैसले के लए उनके पास आए । वम ने उ बताया िक वे एक-द ू सरे के पू रक ह । उ छड़ी और माला का उदाहरण याद आया । जो छड़ी और माला उ भा से सासी से ा ई थी ं उ ाण और भाट ने पुषाथ से ा िकया । पुषाथ और भा पू री तरह संतु होकर वहाँ से चले गए ।
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संहासन बीसी
चौथी पु तली कामकंदला चौथी पुतली कामकंदला क कथा से भी विमाद क दानवीरता तथा ाग क भावना का पता चलता है । वह इस कार है एक िदन राजा विमाद दरबार को सोधत कर रहे थे तभी िकसी ने सू चना दी िक एक ाण उनसे मलना चाहता है । विमाद ने कहा िक ाण को अर लाया जाए । जब ाण उनसे मला तो वम ने उसके आने का योजन पू छा । ाण ने कहा िक वह िकसी दान क इा से नही ं आया है, ब उ कुछ बतलाने आया है । उसने बतलाया ि क मानसरोवर म सू यदय होते ही एक खा कट होता है जो सू य का काश ो ं-ो ंफैलता है ऊपर उठता चला जाता है और जब सू य क गम अपनी पराकाा पर होती है तो सू य को श करता है । ो ं-ो ं सूय क गम घटती है छोटा होता जाता है तथा सू या होते ही जल म वलीन हो जाता है । वम के मन म जासा ई िक ाण का इससे अभाय ा है । ाण उनक जासा को भाँ प गया और उसने बतलाया िक भगवान इ का द ू त बनकर वह आया है िताक उनके आवास क रा वम कर सक । उसने कहा िक सू य देवता को घम हैि क समु देवता को छोड़कर पू रे ा म कोई भी उनक गम को सहन नही ं कर सकता । देवराज इ उनक इस बात से सहमत नही ं ह । उनका मानना हेि क उनक अनु का ा मृ ु लोक का एक राजा सू य क गम क परवाह न करके उनके नकट जा सकता है । वह राजा आप ह । राजा विमाद को अब सारी बात समझ ं सोच लया िक ाणोग करके भी सू य भगवान को समीप से जाकर नमार करगे तथा देवराज के म आ गई । उो ने ं ाण को समु चत दान-दणा देकर वदा िकया तथा अपनी योजना को काय -प आवास क रा करगे । उो ने देन े का उपाय सोचने लगे । उ इस बात क खु शी थी िक देवतागण भी उ यो समझते ह । भोर होने पर द ू सरे िदन वे ं माँ काली ारा द दोनो ं बे तालो ं का रण िकया । दोनो ं बे ताल अपना रा छोड़कर चल पड़े । एका म उो ने तण उपत हो गए । ं बताया िक उ उस खे के बारे म सब कुछ पता है । दोनो ं बे ताल उ मानसरोवर के तट पर लाए । वम को उो ने ं हरयाली से भरी जगह पर काटी और भोर होते ही उस जगह पर नज़र िटका दी जहाँ से खा कट होता । रात उो ने ं मानसरोवर के जल को छ ुआ िक एक खा कट आ । वम तु र तै रकर उस खे तक सू य क िकरणो ं ने ो ि ह ं वम चढ़े जल म हलचल ई और लहर उठकर वम के पाँ व छ ू ने लगी ं । ो -ं ो ं सू य क पँ चे । खे पर ो ि ह गम बढी, खा बढ़ता रहा । दोपहर आते-आते खा सू य के बुल करीब आ गया । तब तक वम का शरीर जलकर बु ल राख हो गया था । सूय भगवान ने जब खे पर एक मानव को जला आ पाया तो उ समझते देर नही ं ं भगवान इ के दावे लगी िक वम को छोड़कर कोई द ू सरा नही ं होगा । उो ने को बु ल सच पाया । ���� ����� �� ������������������������
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संहासन बीसी
ं अमृ त क बू ो ं से वम को जीवत िकया तथा अपने ण कुल उतारकर उ भ ट कर िदए । उन कुलो ं क उो ने वशे षता थी िक कोई भी इत वु वे कभी भी दान कर देते । सूय देव ने अपना रथ अाचल क िदशा म बढ़ाया तो खा घटने लगा । सू या होते ही खा पू री तरह घट गया और वम जल पर तै रने लगे । तै रकर सरोवर के िकनारे आए और दोनो ं बे तालो ं का रण िकया । बे ताल उि फर उसी जगह लाए जहाँ से उ सरोवर ले गए थे । वम पै दल अपने महल क िदशा म चल पड़े । कुछ ही द ू र पर एक ाण मला जसने उनसे वे कुल मां ग लए । वम ने बेि हचक उसे दोनो ंकुल दे िदए । उ बुल मलाल नही ं आ ।
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संहासन बीसी
पां चवी पु तली लीलावती एक बार दो आदमी आपस म झगड़ रहे थे । एक कहता था िक तकदीर बड़ी है, द ू सरा कहता था िक पु षाथ बड़ा है । जब ि कसी तरह मामला न नबटा तो वे इ के पास गये । इ ने उ विमाद के पास भे ज िदया । राजा ने उनक बात सु नी और कहा िक छ: महीने बाद आना । इसके बाद राजा ने ि कया ा िक भे स बदलकर यं यह देखने नकल पड़ा िक तकदीर और पु षाथ म कौन बड़ा ह । घू मते-घू मते उसे एक नगर मला । विमाद उस नगर के राजा के पास पंचा और एक लाख पये रोज पर उसके यहां नौकर हो गया । उसने वचन िदया िक जो काम और कोई नही ं कर सकेगा, उसे वह करेगा, उसे वह करेगा । एक बार क बात है िक उस नगर क राजा बत-सा सामान जहाज पर लादकर िकसी देश को गया । विमाद साथ म था । अचानक बड़े जोर का तू फान आया । राजा ने लंगर डलवाकर जहाज खड़ा कर िदया । जब तु फान थम गया तो राजा ने लंगर उठाने को कहा, लेि कन लंगर उठा ही नही ं । इस पर राजा ने विमाद से कहा, “अब तुारी बारी है ।” विमाद नीचे उतरकर गया और भा क बात िक उसके हाथ लगाते ही लंगर उठ गया, लेि कन उसके चढ़ने से पहले ही जहाज पानी और हवा क ते जी से चल पड़ा । विमाद बहते-बहते ि कनारे लगा । उसे एक नगर िदखाई िदया । ोही ं वह नगर म घुसा, देखता ा है, चौखट पर लखा हैि क यहां क राजकुमारी स ं हवती का ववाह विमाद के साथ होगा । राजा को बड़ा अचरज आ । वह महल ं म गया । अं दर स हवती पलंग पर सो रही थी । विमाद वही ं बै ठ गया । उसने उसे जगाया । वह उठ बै ठी और ं विमाद का हाथ पकड़कर दोनो ं स हासन पर जा बैठे । उ वहां रहते–रहते काफ िदन बीत गये । एक िदन विमाद को अपने नगर लौटने क वचार आया और अबल म से एक ते ज घोड़ी लेकर रवाना हो गया । वह अवी नगर पंचा । वहां नदी के िकनारे एक साधु बै ठा था । उसने राजा को ं , तु फतह मलेगी । द फूलो ं क एक माला दी और कहा, “इसे पहनकर तु म जहां जाओ गे ू सरे, इसे पहनकर तुम सबको देख सकोगे, तु कोई भी नही देख सकेगा ।” उसने एक छड़ी भी दी । उसम यह गुण था िक रात को सोने से पहले जो भी जड़ाऊ गहना उससे मां गा जाता, वही मल जाता । ं राजा से कहा, “हे दोनो ं चीजो ं को ले कर राजा उै न के पास पंचा । वहां उसे एक ाण और एक भाट मले । उो ने राजन्! हम इतनेि दनो ं से तुारे ार पर से वा कर रहे ह, िफर भी हम कुछ नही ं मला ।” यह सु नकर राजा ने ाण को छड़ी दे दी और भाट को माला । उनके गु ण भी उ बता िदये । इसके बाद राजा अपने महल म चला गया ।
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छ: महीने बीत चुके थे । सो वही दोनो ं आदमी आये, जनम पु षाथ और भा को ले कर झगड़ा हो रहा था । राजा ने उनक बात का जवाब देते ए कहा, “सु नो भाई, द ु नया म पु षाथ के बना कुछ नही ं हो सकता । लेि कन भा भी बड़ा बली है ।” दोनो क बात रह गई । वे खु शी-खु शी अपने अपने घर चले गये । इतना कहकर पुतली बोली, “हे राजन्! तु म विमाद जै से तो स ं हासन पर बै ठो ं ।” ं उस िदन का, मु त भी नकल गया । अगलेि दन राजा स हासन क ओर बढ़ा तो कामकंदला नाम क छठी पु तली ने उसे रोक लया । बोली, ” पहले मे री बात सु नो ।”
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छठी पु तली रवभामा छठी पुतली रवभामा ने जो कथा सु नाई वह इस कार है एक िदन विमाद नदी के तट पर बने ए अपने महल से ाकृतक सौय को नहार रहे थे । बरसात का महीना था, इसलए नदी उफन रही थी और अ ते ज़ी से बह रही थी । इतने म उनक नज़र एक पु ष, एक ी और एक बे पर पड़ी । उनके व तार-तार थे और चेहरे पीले । राजा देखते ही समझ गए ये बत ही नध न ह । सहसा वे तीनो ं उस नदी म छलां ग लगा गए । अगले ही पल ाणो ं क रा के लए चाने लगे । वम ने बना एक पल गँवाए नदी म उनक रा ं दोनो ं बे तालो ं का रण िकया । दोनो ं के लए छलां ग लगा दी । अकेले तीनो ं को बचाना सव नही ं था, इसलए उो ने ं जानना चाहा वे बे तालो ं ने ी और बे को तथा वम ने उस पुष को डूबने से बचा लया । तट पर पँ चकर उो ने आहा ो ं कर रहे थे । पु ष ने बताया िक वह उी ं के रा का एक अ नरधन ाण है जो अपनी दरता से तंग आकर जान देना चाहता है । वह अपनी बीवी तथा बे को भू ख से मरता आ नही ं देख सकता और आहा के सवा अपनी समा का कोई अ नही ं नज़र आता । इस रा के लोग इतने आनभ र हैि क सारा काम खु द ही करते ह, इसलए उसे कोई रोज़गार भी नही ं देता । वम ने ाण से कहा िक वह उनके अतथशाला म जब तक चाहे अपने परवार के साथ रह सकता है तथा उसक हर ज़रत पू री क जाएगी । ाण ने कहा िक रहने म तो कोई हज नही ं है, लेि कन उसे डर हैि क कुछ समय बाद आत म कमी आ जाएगी और उसे अपमानत होकर जाना पड़ेगा । वम ने उसे वास िदलाया िक ऐसी कोई बात नही ं होगी और उसे भगवान समझकर उसके साथ हमे शा अा बता व िकया जाएगा । वम के इस तरह वास िदलाने पर ाण परवार अतथशाला म आकर रहने लगा । उसक देख-रेख के लए नौकर-चाकर नयु कर िदए गए । वे मौज से रहते, अपनी मज़ से खाते-पीते और आरामदेह पलंग पर सोते । िकसी चीज़ क उ कमी नही ं थी । लेि कन वे सफ़ाई पर बुल ान नही ं देते । जो कपड़े पहनते थे उ कई िदनो ं तक नही ं बदलते । जहाँ सोते वही ं थू कते और मल-मू ाग भी कर देत े । चारो ं तरफ गंदगी-ही गंदगी फैल गई । द ु ग के मारे उनका ान एक पल भी ठहरने लायक नही ं रहा । नौकर-चाकर कुछ िदनो ं तक तो धीरज से सब कुछ सहते ं पहवाह नही ं क और भाग खड़े ए । राजा ने कई अ रहे लेि कन कब तक ऐसा चलता? राजा के कोप क भी उो ने नौकर भे जे, पर सब के सब एक ही जै से नकले । सबके लए यह काम असंभव साबत आ । तब वम ने खु द ही उनक से वा का बीड़ा उठाया । उठते-बै ठते, सोते -जगते वे ाण परवार क हर इा पू री करते । द ु ग के मारे माथा फटा जाता, िफर भी कभी अपश का वहार नही ं करते । उनके कहने पर वम उनके पाँ व भी दबाते । ाण परवार ने हर सव य िकया िक वम उनके आत से तंग आकर अतथ-सार भू ल जाएँ और अभता से पे श आएँ, मगर उनक कोशश असफल रही । बड़े स से वम उनक से वा म लगे रहे । कभी उ शकायत का कोई मौका ���� ����� �� ������������������������
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नही ंि दया । एक िदन ाण ने जै से उनक परीा ले ने क ठान ली । उसने राजा को कहा िक वे उसके शरीर पर लगी वा साफ कर तथा उसे अ तरह नहला-धोकर साफ़ व पहनाएँ । वम तु र उसक आा मानकर अपने हाथो ं से वा साफ करने को बढ़े । अचानक चमार आ । ाण के सारे गंदे व गायब हो गए । उसके शरीर पर देवताओ ं ारा पहने जाने वाले व आ गए । उसका मु ख मल ते ज से दी हो गया । सारे शरीर से सुग नकलने लगी । वम आय िचकत थे । तभी वह ाण बोला िक दरअसल वह वण है । वण देव ने उनक परीा ले ने के लए यह प धरा था । वम के अतथ-सार क शंसा सु नकर वे सपरवार यहाँ ं सु ना था वैसा ही उो ने ं पाया, इसलए वम को उो ने ं वरदान िदया िक उसके रा म कभी भी आओ थे । जैसा उो ने अनावृ नही ं होगी तथा वहाँ क ज़मीन से तीन-तीन फसल नकलगी । वम को वरदान देकर वे सपरवार अयान हो गए ।
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सातवी पु तली कौमु दी सातवी ं पुतली कौमु दी ने जो कथा कही वह इस कार है - एक िदन राजा विमाद अपने शयन-क म सो रहे थे । ं कण-न सु नकर टूट गई । उो ने ं ान लगाकर सु ना तो रोने क आवाज नदी क तरफ से आ अचानक उनक नी द रही थी और कोई ी रोए जा रही थी । वम क समझ म नही ं आया िक कौन सा द ु ख उनके रा म िकसी ी को इतनी ं तु र राजपरधान पहना और कमर म तलवार लटका कर रात गए बलख-बलख कर रोने को ववश कर रहा है । उो ने आवाज़ क िदशा म चल पड़े । ा के तट पर आकर उ पता चला िक वह आवाज़ नदी के द ू सरे िकनारे पर बसे जंगल ं तु र नदी म छलां ग लगा दी तथा तै रकर ूद सरे िकनारे पर पँ चे । िफर चलते-चलते उस जगह से आ रही है । उो ने ं देखा िक िझाड़यो ं म बै ठी एक ी रो रही है । पँ चे जहाँ से रोने क आवाज़ आ रही थी । उो ने ं उस ी से रोने का कारण पू छा । ी ने कहा िक वह कई लोगो ं को अपनी था सु ना चु क है, मगर कोई फायदा उो ने नही ं आ । राजा ने उसे वास िदलाया िक वे उसक मदद करने का हर संभव य करगे । तब ी ने बताया िक वह एक चोर क पी है और पकड़े जाने पर नगर कोतवाल ने उसे वृ पर उलटा टँगवा िदया है । राजा ने पू छा ा वह इस फैसले से खु श नही ं है । इस पर औरत ने कहा िक उसे फैसले पर कोई आप नही ं है, लेि कन वह अपने पत को भू खा ासा लटकता नही ं देख सकती । चू ँ िक ाय म इस बात क चचा नही िं क वह भू खा-ासा रहे, इसलए वह उसे भोजन तथा पानी देना चाहती है । वम ने पूछा िक अब तक उसने ऐसा िकया ो ं नही ं । इस पर औरत बोली िक उसका पत इतनी ऊँचाई पर टँगा आ है ि क वह बगै र िकसी क सहायता के उस तक नही ं पँ च सकती और राजा के डर से कोई भी दत क मदद को तै यार नही ं होता । तब वम ने कहा िक वह उनके साथ चल सकती है । दरअसल वह औरत पशाचनी क और वह लटकने वाला उसका पत नही ं था । वह उसे राजा के के पर चढ़कर खाना चाहती थी । जब वम उस पे ड़ के पास आए तो वह उस को चट कर गई । तृ होकर वम को उसने मनचाही चीज़ मां गने को कहा । वम ने कहा वह अपू णा दान करे जससे उनक जा कभी भू खी नही ं रहे । इस पर वह पशाचनी बोली िक अपू णा देना उसके बस म नही ं, लेि कन उसक बहन दान कर सकती है । वम उसके साथ चलकर नदी िकनारे आए जहाँ एक झोपड़ी थी । पशाचनी के आवाज़ देने पर उसक बहन बाहर नकली । बहन को उसने राजा का परचय िदया और कहा िक विमाद अपू णा के से अधकारी है, अत: वह उ अपू णा दान करे । उसक बहन ने सहष अपू णा उ दे दी । अपू णा लेकर वम अपने महल क ओर रवाना ए । तब तक भोर हो चु क थी । राे म एक ाण मला । उसने राजा से भा म भोजन माँ गा । वम ने अपू णा पा से कहा िक ाण को पे ट भर भोजन कराए । सचमु च तरह-तरह के ं जन ाण िक सामने आ गए । जब ाण ने पे ट भर खाना खा लया तो राजा ने उसे दणा देना चाहा । ाण ���� ����� �� ������������������������
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अपनी आँ खो ं से अपू णा पा का चमार देख चु का था, इसलए उसने कहा- “अगर आप दणा देना ही चाहते है तो मु झे दणाप यह पा दे द, िताक मु झेि कसी के सामने भोजन के लए हाथ नही ं फैलाना पड़े ।” वम ने बेि हचक उसी ण उसे वह पा दे िदया । ाण राजा को आशीवा द देकर चला गया और वे अपने महल लौट गए ।
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आठवी पु तली पु वती एक िदन राजा विमाद के दरबार म एक बढ़ई आया । उसने राजा को काठ का, एक घोड़ा िदखाया और कहा िक यह ने कुछ खाता है, न पीता है और जहां चाहो ं, वहां ले जाता है । राजा ने उसी समय दीवान को बु लाकर एक लाख पया उसे देन े को कहा ।, “यह तो काठ का है और इतने दाम का नही ं है ।” राजा ने चढ़कर कहां, “दो लाख पये दो ।” दीवान चु प रह गया । पये दे िदये । पये ले कर बढ़ई चलता बना, पर चलते चलते कह गया िक इस घोड़े म ऐड़ लगाना कोड़ा मत मारना । एक िदन राजा ने उस पर सवारी क । पर वह बढ़ई क बात भू ल गया । और उसने घोड़े पर कोड़ा जमा िदया । कोड़ा लगना था िक घोड़ा हवा से बात करने लगा और समु पार ले जाकर उसे जंगल म एक पे ड़ पर गरा िदया । लुढ़कता आ राजा नीचे गरा मु दा जै सा हो गया । संभलने पर उठा और चलते -चलते एक ऐसे बीहड़ वन म पंचा िक नकलना मु ल हो गया । जै से-तै से वह वहां से नकला । दस िदन म सात कोस चलकर वह ऐसे घने जंगल म पंचा, जहां हाथ तक नही ं सू झता था । चारो ं तरफ शे र-चीते दहाड़ते थे । राजा घबराया । उसे राा नही ं सू झता था । आखर पंह िदन भटकने के बाद एक ऐसी जगह पंचा जहां एक मकान था । और उसके बाहर एक ऊंचा पेड़ और दो कुएं थे । पे ड़ पर एक बं दरयां थी । वह कभी नीचे आती तो कभी ऊपर चढ़ती । राजा पे ड़ पर चढ़ गया और छपकर सब हाल देखने लगा । दोपहर होने पर एक यती वहां आया । उसने बाई तरफ के कुएं से एक चु ूपानी लया और उस बं दरया पर छड़क िदया । वह तुर एक बड़ी ही सु र ी बन गई । यती पहरभर ं उस पर डाला िक वह िफर बं दरया बन गई । वह पे ड़ पर जा चढ़ी और उसके साथ रहा, िफर द ू सरे कुएं से पानी खी चकर यती गु फा म चला गया । राजा को यह देखकर बड़ा अचंभा आ । यती के जाने पर उसने भी ऐसा ही िकया । पानी पड़ते ही बंदरयां सु र ी बन गई । राजा ने जब े म से उसक ओर देखा तो वह बोली, “हमारी तरफ ऐसे मत देखो । हम तपी है । शाप दे दगे तो ं ।” तु म भ हो जाओ गे राजा बोला, ” मे रा नाम विमाद है । मे रा कोई कुछ नही ं बगाड़ सकता है ।” राजा का नाम सु नते वह उनके चरणो ं म गर पड़ी बोली, “हे महाराज! तु म अभी यहां से चले जाओ ं, नही ं तो यती आयगा और हम दोनो ं को शाप देकर भ कर देगा ।” राजा ने पू छा, “तु म कौन हो और इस यती के हाथ कैसे पड़ी ं ?”
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वह बोली, “मे रा बाप कामदेव और मां पु ावती ह । जब म बारह बरस क ई तो मे रे मां-बाप ने मु झे एक काम करने को ं गु ा होकर मु झे इस यती को दे डाला । वह मु झे यहां ले आया । और बंदरयां कहा । म ने उसे नही ंि कया । इसपर उो ने बनाकर रखा है । सच है, भा के लखे को कोई नही ं मेट सकता ।” राजा ने कहा, “म तु साथ ले चलू ंगा ।” इतना कहकर उसने ूद सरे कुएं का, पानी छड़ककर उसेि फर बंदरया बना िदया । अगलेि दन वह यती आया । जब उसने बंदरया को ी बना लया तो वह बोली, “मु झे कुछ साद दो ।” यती ने एक कमल का फूल िदया और कहा, ” यह कभी कुलायगा नही ं और रोज एक लाल देगा । इसे संभालकर रखना ।” यती के जाने पर राजा ने बंदरया को ी बना लया । िफर अपने वीरो ं को बुलाया । वे आये और त पर बठाकर उन दोनो ं को ले चले । जब वे शहर के पास आये ता देखते ा हैि क एक बड़ा सु र लड़का खे ल रहा है । अपने घर चला गया । राजा ी को साथ लेकर अपने महल म आ गये । अगलेि दन कमल म एक लाल नकला । इस तरह हर िदन नकलते-नकलते बत से लाल इके हो गये । एक िदन लड़के का बाप उ बाजार म बे चने गया । तो कोतवाल ने उसे पकड़ लया । राजा के पास ले गया । लड़के के बाप ने राजा को सब हाल ठीक-ठीक कह सुनाया । सु नकर राजा को कोतवाल पर बड़ा गु ा आया और उसने िदया िक वह उसे बे कसू र आदमी को एक लाख पया दे । ं इ ़ तना कहकर पुतली बोली, “हे राजन्! जो विमाद जै सा दानी और ायी हो, वही ं इस स हासन पर बै ठ सकता है ।” राजा झ ु ंझलाकर चू प रह गया । अगलेि दन वह पा करके सहां सन क तरफ बढ़ा िक मधु मालती नाम क नंवी पु तली ने उसका राा रोक लया । बोली, “हे राजन्! पहले मे री बात सु नो ।”
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नौवी पु तली मधु मालती नवी ं पु तली मधु मालती ने जो कथा सु नाई उससे विमाद क जा के िहत म ाणोग करने क भावना झलकती है । कथा इस कार है- एक बार राजा विमाद ने रा और जा क सु ख-समृ के लए एक वशाल य का आयोजन ि कया । कई िदनो ं तक य चलता रहा । एक िदन राजा मं-पाठ कर रहे , तभी एक ॠष वहाँ पधारे । राजा ने उ देखा, ं मन ही मन ॠष का अभवादन िकया तथा उ णाम िकया । ॠष ने भी पर य छोड़कर उठना असव था । उो ने ं ॠष से आने का योजन पू छा । रा का अभाय समझकर उ आशीवा द िदया । जब राजा य से उठे, तो उो ने राजा को मालू म था िक नगर से बाहर कुछ ही द ू र पर वन म ॠष एक गुकुल चलाते ह जहाँ बे वा ा करने जाते ह । ॠष ने जवाब िदया िक य के पु नीत अवसर पर वे राजा को कोई असु वधा नही ं देते, अगर आठ से बारह साल तक के छ: बो ं के जीवन का नही ं होता । राजा ने उनसे सब कुछ वार से बताने को कहा । इस पर ॠष ने बताया िक कुछ बे आम के लए सू खी लिकड़याँ बीनने वन म इधर-उधर घू म रहे थे । तभी दो रास आए और उ पकड़कर ऊँची पहाड़ी पर ले गए । ॠष को जब वे उपत नही ं मले तो उनक तलाश म वे वन म बे चै नी से भटकने लगे । तभी पहाड़ी के ऊपर से गज ना जैसी आवाज सु नाई पड़ी जो नत ही उनम से एक रास क थी । रास ने कहा िक उन बो ं क जान के बदले उ एक पु ष क आवकता है जसक वे माँ काली के सामने बल दगे । ं असहमत जताई । उो ने ं कहा िक ॠष बू ढे जब ॠष ने बल के हेतु अपने-आपको उनके हवाले करना चाहा तो उो ने ह और काली माँ ऐसे कमज़ोर बू ढ़े क बल से स नही ं होगी । काली माँ क बल के लए अ य क आवकता है । रासो ं ने कहा हैि क अगर कोई छल या बल से उन बो ं को तं कराने क चे ा करेगा, तो उन बो ं को पहाड़ी से लुढ़का कर मार िदया जाएगा । राजा विमाद से ॠष क परेशानी नही ं देखी जा रही थी । वे तु र तैयार ए और ॠष से बोले- “आप मु झे उस पहाड़ी तक ले चले । म अपने आपको काली के सु ख बल के लए ु त ं कँ गा । म ँ और य भी । रासो ं को कोई आप नही ं होगी ।” ॠष ने सु ना तो हभ रह गाए । उो ने ं कहा आगर राजा के जीवत रहते उसके रा क लाख मनाना चाहा, पर वम ने अपना फैसला नही ं बदला । उो ने जा पर कोई वप आती है तो राजा को अपने ाण देकर भी उस वप को द ू र करना िचाहए । ं अपना घोड़ा छोड़ िदया तथा पै दल ही पहाड़ पर राजा ॠष को साथ ले कर उस पहाड़ी तक पँ चे । पहाड़ी के नीचे उो ने ं िकठनाई क परवाह नही ं क । वे चलते-चलते पहाड़ा क चढ़ने लगे । पहाड़ीवाला राा बत ही िकठन था, पर उो ने चोटी पर पँ चे । उनके पँ चते ही एक रास बोला िक वह उ पहचानता है और पूछने लगा िक उ बो ं क रहाई क ं कहा िक वे सब कुछ जानने के बाद ही यहाँ आए ह तथआ उो ने ं रासो ं से बो ं को शत मालू म हैि क नही ं । उो ने छोड़ देने को कहा । एक रास बो ं को अपनी बाँ हो ं म ले कर उड़ा और नीचे उ सु रत पँचा आया । द ू सरा रास ���� ����� �� ������������������������
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उ लेकर उस जगह आया जहाँ माँ काली क तमा थी और बलवे दी बनी ई थी विमाद ने बलवे दी पर अपना सर बल के हेत ु झ ु का िदया । ं मन ही मन अम बार समझ कर भगवान का रण िकया और वह रास खड्ग वे ज़रा भी वचलत नही ं ए । उो ने ले कर उनका सर धर से अलग करने को तै यार आ । अचानक उस रास ने खड् ग फे क िदया और वम को गले लगा लया । वह जगह एकाएक अ ु त रोशनी तथा खु शबू से भर गया । वम ने देखा िक दोनो ं रासो ं क जगह इ तथा पवन देवता खड़े थे । उन दोनो ं ने उनक परीा ले ने के लए यह सब िकया था वे देखना चाहते थेि क वम सफ ं राजा से कहा िक उ य सां सारक चीज़ो ं का दान ही कर सकता है या ाणोग करने क भी मता रखता है । उो ने ं वम को यशी होने का आशीवा द िदया तथा कहा करता देख ही उनके मन म इस परीा का भाव जा था । उो ने ि क उनक कक चारो ं ओर फैले गी ।
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दसवी पु तली भावती दसवी ं पु तली भावती ने जो कथा सु नाई वह इस कार है- एक बार राजा विमाद शकार खे लते-खे लते अपने सै नको ं ं इधर-उधर काफ खोजा, पर उनके सै नक उ नज़र नही ं क टोली से काफ आगे नकलकर जंगल म भटक गए । उो ने ं देखा िक एक सु दश न यु वक एक पे ड़ पर चढ़ा और एक शाखा से उसने एक री बाँधी । री म आए । उसी समय उो ने ं फंदा बना था उस फे म अपना सर डालकर झ ू ल गया । वम समझ गए िक यु वक आहा कर रहा है । उो ने यु वक को नीचे से सहारा देकर फंदा उसके गले से नकाला तथा उसे डाँ टा िक आहा न सफ पाप और कायरता है, ब अपराध भी है । इस अपराध के लए राजा होने के नाते वे उसे दत भी कर सकते ह । यु वक उनक रोबीली आवाज़ तथा वे शभू षा से ही समझ गया िक वे राजा है, इसलए भयभीत हो गया । राजा ने उसक गदन सहलाते ए कहा िक वह एक और बलशाली यु वक हैि फर जीवन से नराश ो ं हो गया । अपनी मेहनत के बल पर वह आजीवका क तलाश कर सकता है । उस यु वक ने उ बताया िक उसक नराशा का कारण जीवकोपाज न नही ं है और वह वपता से नराश होकर आहा का यास नही ं कर रहा था । राजा ने जानना चाहा िक कौन सी ऐसी ववशता है जो उसे आहा के लए े रत कर रही है । उसने जो बताया वह इस कार है - उसने कहा िक वह काल ं का रहने वाला है तथा उसका नाम वसु है । एक िदन वह जंगल से गु ज़र रहा था िक उसक नज़र एक अ सु र लड़क पर पड़ी । वह उसके प पर इतना िमोहत आ िक उसने उससे उसी समय णय नवे दन कर डाला । ं उसके भा म यही उसके ाव पर लड़क हँस पड़ी और उसने उसे बताया िक वह िकसी से े म नही ं कर सकती ो ि क बदा है । दरअसल वह एक अभागी राजकुमारी है जसका ज ऐसे न म आ िक उसका पता ही उसे कभी नही ं देख सकता अगर उसके पता ने उसे देखा, तो तण उसक मृ ु हो जाएगी । उसके जत ही उसके पता ने नगर से ूद र एक सासी क कुिटया म भे ज िदया और उसका पालन पोषण उसी कु िटया म आ । उसका ववाह भी उसी यु वक से संभव है जो असंभव को संभव करके िदखा दे । उस यु वक को खौलते ते ल के कड़ाह म कूदकर ज़ा नकलकर िदखाना होगा । उसक बात सु नकर वसु उस िकुटया म गया जहाँ उसके नवास था । वहाँ जाने पर उसने कई अ पं देखे जो उस राजकुमारी से ववाह के यास म खौलते कड़ाह के तेल म कूदकर अपनी जानो ं से हाथ धो बै ठे थे । वसु क िहत जवाब दे गई । वह नराश होकर वहाँ से लौट गया । उसने उसे भु लाने क लाख कोशश क, पर उसका प सोते-जागते , उठते ं उड़ गई है । उसे खाना-पीना नही ं अा लगता है । अब णा कर बै ठते- हर आँ खो ंके सामने आ जाता है । उसक नी द ले ने के सवा उसके पास कोई चारा नही बचा है ।
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संहासन बीसी
वम ने उसे समझाना चाहा िक उस राजकुमारी को पाना सचमु च असंभव है, इसलए वह उसे भू लकर िकसी और को ं उसे मर जानेि दया जीवन संगनी बना ले , लेि कन यु वक नही ं माना । उसने कहा िक वम ने उसे थ ही बचाया । उो ने होता, तो अा होता । वम ने उससे कहा िक आहा पाप है, और यह पाप अपने सामने वह नही ं होता देख सकते ं उसे वचन िदया िक वे राजकुमारी से उसका ववाह कराने का हर सव यास करगे । िफर उो ने ं माँ काली थे । उो ने ारा द दोनो बे तालो ं का रण िकया । दोनो ं बेताल पलक झपकते ही उपत ए तथा कुछ ही देर म उन दोनो ं को ले कर उस कुिटया म आए जहाँ राजकुमारी रहती थी । वह बस कहने को िकुटया थी । राजकुमारी क सारी सु वधाओ ं का ाल रखा गया था । नौकर-चाकर थे । राजकुमारी का मन लगाने के लए सखी-सहोलयाँ थी ं । तपी से मलकर विमाद ने वसु के लए राजकुमारी का हाथ मां गा । तपी ने राजा विमाद का परचय पाकर कहा िक अपने ाण वह राजा को सरलता से अपत कर सकता है, पर राजकुमारी का हाथ उसी यु वक को देगा जो खौलते ते ल से सकुशल नकल आए, तो िकसी अ के लए राजकुमारी का हाथ मां ग सकता है या नही ं । इस पर तपी ने कहा िक बस यह शत पू री होनी िचाहए । वह अपने लए हाथ मां ग रहा है या िकसी अ के लए, यह बात मायने नही ं रखती है । उसने राजा को वास िदलाने क कोशश क िक इस राजकुमारी को कु ँ आरी ही रहना पड़ेगा । जब वम ने उसे बताया िक वे खु द ही इस यु वक के हे तु कड़ाह म कूदने को तै यार ह तो तपी का मु ँह वय से खु ला रहा गया । वे बात ही कर रहे थे ि क राजकुमारी अपनी सहे लयो ं के साथ वहाँ आई । वह सचमु च अराओ ं से भी ज़यादा सु र थी । अगर यु वको ं ने खौलते कड़ाह म कूदकर ाण गँवाए, तो कोई गलत काम नही ंि कया । वम ने तपी से कहकर कड़ाह भर ते ल क वा करवाई । जब ते ल एकदम खौलने लगा, तो माँ काली को रण कर वम ते ल म कूद गए । खौलते ते ल म कूदते ही उनके ाण नकल गए और शरीर भु नकर ाह हो गया । माँ काली ं बे तालो ं को वम को जीवत करने क आा दी । बे तालो ं ने अमृ त क बू उनके को उन पर दया आ गई और उो ने ं वसु के लए राजकुमारी का हाथ मां गा । राजकुमारी के पता मु ँह म डालकर उ ज़ा कर िदया । जीवत होते ही उो ने को खबर भे ज दी गई और दोनो ं का ववाह धू म-धाम से स आ ।
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ारहवी ं पु तली लोचना ारहवी ं पु तली लोचनी जो कथा कही वह इस कार है - राजा विमाद बत बड़े जापालक थे । उ हम शा ं एक महाय करने क ठानी । असं राजाअपनी जा क सु ख-समृ क ही चा सताती रहती थी । एक बार उो ने ं नही ं छोड़ा । महाराजाओ ं, पतो ं और ॠषयो ं को आमत िकया । यहाँ तक िक देवताओ ं को भी उो ने ं खु द नमण देने का मन बनाया तथा समु देवता को आमत करने का काम एक यो ाण पवन देवता को उो ने ं । दोनो ं अपने काम से वदा ए । जब वम वन म पँचे तो उो ने ं तय करना शु िकया िताक पवन देव का को सौ पा ं सोचा पताि-ठकाना ात हो । योग-साधना से पता चला िक पवन देव आजकल सु मे पव त पर वास करते ह । उो ने ं दोनो ं बे तालो ं का रण अगर सु मे पव त पर पवन देवता का आवान िकया जाए तो उनके दश न हो सकते है । उो ने ं उ अपना उे बताया । बे तालो ं ने उ आनन-फानन म सु मे पवत क चोटी ि कया तो वे उपत हो गए । उो ने पर पँ चा िदया । चोटी पर इतना ते ज हवा थी िक पाँ व जमाना मु ल था । बड़े-बड़े वृ और चान अपनी जगह से उड़कर ूद र चले जा रहे थे । मगर वम तनक भी वचलत नही ं ए । वे योग साधना म सह थे, इसलए एक जगह अचल होकर बै ठ गए । बाहरी द ु नया को भू लकर पवन देव क साधना म रत हो गए । न कुछ खाना, न पीना, सोना और आराम करना भू लकर साधना म लीन रहे । आखरकार पवन देव ने सु ध ली । हवा का बहना बु ल थम गया । म-म बहती ई वायु शरीर क सारी थकान मटाने लगी । आकाशवाणी ई- “हे राजा विमाद, तु ारी साधना से हम स ए । अपनी इा बता ।” वम अगले ही ण सामा अवा म आ गए और हाथ जोड़कर बोले ि क वे अपने ारा िकए जा रहे महाय म पवन देव क उपत चाहते ह । पवन देव के पधारने से उनके य क शोभा बढ़ेगी । यह बात वम ने इतना भावुक होकर ं जवाब िदया िक सशरीर य म उनक उपत असंभव है । वे अगर सशरीर गए, तो कहा िक पवन देव हँस पड़े । उो ने वम के रा म भयंकर आँधी-तू फान आ जाएगा । सारे लहलहाते खे त, पे ड़-पौधे, महल और झोिपड़याँ- सब क सब उजड़ जाएँगी । रही उनक उपत क बात, तो संसार के हर कोने म उनका वास है, इसलए वे अ प से उस महाय म भी उपत रहगे । वम उनका अभाय समझकर चु प हो गए । पवन देव ने उ आशीवा द देते ए कहा ं ि क उनके रा म कभी अनावृ नही ं होगी और कभी द ु भ का सामना उनक जा नही ं करेगी । उसके बाद उो ने वम को कामधे नु गाय देते ए कहा िक इसक कृपा से कभी भी वम के रा म द ूध क कमी नही ं होगी । जब पवनदेव लु हो गए, तो विमाद ने दोनो ं बेतालो ं का रण िकया और बे ताल उ ले कर उनके रा क सीमा तक आए ।
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ं था, वह काफ िकठनाइयो ं को झेलता आ सागर जस ाण को वम ने समु देवता को आमत करने का भार सौ पा तट पर पँ चा । उसने कमर तक सागर म घुसकर समु देवता का आवान िकया । उसने बार-बार दोहराया िक महाराजा विमाद महाय कर रहे ह और वह उनका द ू त बनकर उ आमंत करने आया है । अं त म समु देवता असीम ं ाण से कहा िक उ उस महाय के बारे म पवन देवता ने सब गहराई से नकलकर उसके सामने कट ए । उो ने कुछ बता िदया है । वे पवन देव क तरह ही विमाद के आमण का ागत तो करते ह, लेि कन सशरीर वहाँ सलत नही ं हो सकते ह । ाण ने समु देवता से अपना आशय करने का सादर नवे दन िकया, तो वे बोलेि क अगर वे य म सलत होने गए तो उनके साथ अथाह जल भी जाएगा और उसके रा म पड़नेवाली हर चीज़ डूब जाएगी । चारो ं ओर लय-सी त पै दा हो जाएगी । सब कुछ न हो जाएगा । जब ाण ने जानना चाहा िक उसके लए उनका ा आदेश ह, तो समु देवता बोलेि क वे वम को सकुशल महाय ं जल क स कराने के लए शुभकामनाएँ देते ह । अ प म य म आोपत वम उ महसूस करगे, ो ि क ं ाण को एक-एक बू म उनका वास है । य म जो जल यु होगा उसम भी वे उपत रह गे । उसके बाद उो ने पाँ च र और एक घोड़ा देते ए कहा- “मे री ओर से राजा विमाद को ये उपहार दे देना ।” ाण घोड़ा और र ले कर वापस चल पड़ा । उसको पै दल चलता देख वह घोड़ा मनु क बोली म उससे बोला िक इस लंबे सफ़र के लए वह उसक पीठ पर सवार ो ं नही ं हो जाता । उसके ना-नुकुर करने पर घोड़े ने उसे समझाया िक वह राजा का द ू त है, इसलए उसके उपहार का उपयोग वह कर सकता है । ाण जब राज़ी होकर बै ठ गया तो वह घोड़ा पवन वे ग से उसे वम के दरबार ले आया । घोड़े क सवारी के दौरान उसके मन म इा जगी- “काश! यह घोड़ा मे रा होता!” जब वम को उसने समु देवता से अपनी बातचीत सवार ं उसे पाँ चो ं र तथा घोड़ा उसे ही ा होने िचाहए, चू बताई और उ उनके िदए ए फुहार िदए, तो उो ने ँ िक राे म आने वाली सारी िकठनाइयाँ उसने राजा क खातर हँसकर झे ली ं । उनक बात समु देवता तक पँ चाने के लए उसने िकठन साधना क । ाण र और घोड़ा पाकर फूला नही ं समाया ।
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बारहवी ं पु तली पावती बारहवी ं पु तली पावती ने जो कथा सु नाई वह इस कार है- एक िदन रात के समय राजा विमाद महल क छत पर बै ठे थे । मौसम बत सु हाना था । पू नम का चाँ द अपने यौवन पर था तथा सब कुछ इतना साफ़-साफ़ िदख रहा था, मानो ं ं गए । िकसी ी क चीख थी । चीख क िदशा ि दन हो । कृत क सु रता म राजा एकदम खोए ए थे । सहसा वे चौ क का अनु मान लगाया । लगातार कोई औरत चीख रही थी और सहायता के लए पुकार रही थी । उस ी को वप से ु टकारा िदलाने के लए वम ने ढाल-तलवार साली और अबल से घोड़ा नकाला । घोड़े पर सवार हो फौरन उस छ ि दशा म चल पड़े । कुछ ही समय बाद वे उस ान पर पँचे । ं देखा िक एक ी “बचाओ बचाओ” कहती ई बे तहाशा भागी जा रही है और एक वकराल दानव उसे पकड़ने के उो ने लए उसका पीछा कर रहा है । वम ने एक ण भी नही ं गँवाया और घोड़े से कूद पड़े । यु वती उनके चरणो ं पर गरती ई बचाने क वनती करने लगी । उसक बाँ ह पकड़कर वम ने उसे उठाया और उसे बहन सोधत करके ढाढ़स बंधाने ं कहा िक वह राजा विमाद क शरणागत है और उनके रहते उस पर कोई आँ च नही ं आ क कोशश क । उो ने सकती । जब वे उसेि दलासा दे रहे थे , तो रास ने अहास लगाया । उसने वम को कहा िक उन जै सा एक साधारण मानव उसका कुछ नही ं बगाड सकता तथा उ वह कुछ ही णो ं म पशु क भाँ त चीड़ फाड़कर रख देगा । ऐसा बोलते ए वह वम क ओर लपका । वम ने उसे चेतावनी देते ए ललकारा । रास ने उनक चे तावनी का उपहास िकया । उसे लग रहा था िक वम को ं वम को पकड़ने के वह पल भर म मसल देगा । वह उनक ओर बढ़ता रहा । वम भी पूरे सावधान थे । वह ो ि ह लए बढ़ा वम ने अपने को बचाकर उस पर तलवार से वार िकया । रास भी अ फुतला था । उसने पतरा बदलकर खु द को बचा लया और भड़ गया । दोनो ं म घमासान यु होने लगा । वम ने इतनी फुत और चतु राई से यु ि कया िक रास थकान से चूर हो गया तथा शथल पड़ गया । वम ने अवसर का पू रा लाभ उठाया तथा अपनी तलवार से रास का सर धड़ से अलग कर िदया । वम ने समझा रास का अ हो चु का है , मगर ूद सरे ही पल उसका कटा सर िफर अपनी जगह आ लगा और रास द ु गु ने उाह से उठकर लड़ने लगा । इसके अलावा एक और समा हो गई । जहाँ उसका र गरा था वहाँ एक और रास पै दा हो गया । राजा विमाद ण भर को तो िचकत ए, िकु वचलत ए बना एक साथ दोनो ं रासो ं का सामना करने लगे । र से जे रास ने मौका देखकर उन पर घू ँ से का ं प तरा बदलकर पहले वार म उसक भु जाएँ तथा ूद सरे वार म उसक टां ग काट डाली ं । रास अस हार िकया तो उो ने पीड़ा से इतना चाया िक पू रा वन गू ंज गया । उसे दद से तड़पता देखकर रास का धै य जवाब दे गया और मौका पाकर वह सर पर पै र रखकर भागा । चू ँ िक उसने पीठ िदखाई थी, इसलए वम ने उसे मारना उचत नही ं समझा । उस रास ं उससे कहा िक उसे के भाग जाने के बाद वम उस ी के पास आए तो देखा िक वह भय के मारे काँ प रही है । उो ने ं दानव भाग चु का है। न हो जाना िचाहए और भय ाग देना िचाहए, ो ि क ���� ����� �� ������������������������
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ं उसे अपने साथ महल चलने को कहा िताक उसे उसके माँ-बाप के पास पँ चा दे । उस ी ने जवाब िदया िक खतरा उो ने ं रास मरा नही ं । वह लौटकर आएगा और उसे ढूंढकर िफर इसी ान पर ले आएगा । जब अभी टला नही ं है , ो ि क ं ीप क रहने वाली है और एक ाण क बे टी है । एक वम ने उसका परचय जानना चाहा, तो वह बोली िक वह स ल ि दन वह तालाब म सखयो ंके साथ तालाब म नहा रही थी तभी रास ने उसे देख लया और िमोहत हो गया । वही ं से वह उसे उठाकर यहाँ ले आया और अब उसे अपना पत मान ले ने को कहता है । उसने सोच लया है िक अपने ाण दे देगी, मगर अपनी पवता न नही ं होने देगी । वह बोलते-बोलते ससकने लगी और उसका गला ँ ध गया । ं रास के िफर से वम ने उसे आासन िदया िक वे रास का वध करके उसक समा का अ कर दगे और उो ने जीवत होने का राज़ पू छा । उस ी ने जवाब िदया िक रास के पे ट म एक िमोहनी वास करती है जो उसके मरते ही उसके ँमुह म अमृत डाल देती है । उसे तो वह जीवत कर सकती है, मगर उसके र से पै दा होने वाले द ू सरे रास को नही ं, इसलए वह ूद सरा रास अपंग होकर दम तोड़ रहा है । यह सु नकर वम ने कहा िक वे ण करते ह िक उस रास ं जब उससे िमोहनी के बारे म का वध िकए बगै र अपने महल नही ं लौटगे चाहेि कतनी भी तीा ो ं न करनी पड़े । उो ने पू छा तो ी ने अनभता जताई । वम एक पेड़ क छाया म वाम करने लगे । तभी एक स ं ह िझाड़यो ं म से नकलकर वम पर झपटा । ं उनक बाँ ह पर घाव लगाता आ चला गया । अब वम भी पू री तरह चू ँ िक वम पू री तरह चौके नही ं थे, इसलए स ह ं उनक ओर झपटा तो उो ने ं उसके पै रो ं को पकड़कर उसे पू रे ज़ोर से हमले के लए तैयार हो गए । द ू सरी बार जब स ह हवा म उछाल िदया । स हं बत ूद र जाकर गरा और ु होकर उसने गज ना क । ूद सरे ही पल स ं ह ने भागने वाले रास का प धर लया । अब वम क समझ म आ गया िक उसने छल से उ हराना चाहा था । वे लपक कर रास से भड़ गए । दोनो ं मि फर भीषण यु शु हो गया । जब रास क साँ स लड़ते-लड़त े फूलने लगी, तो वम ने तलवार उसके पे ट म घुस ड़े दी । रास धरती पर गरकर दद से चीखने लगा । वम ने उसके बाद तलवार से उसका पे ट फाड़ िदया । पे ट फटते ही िमोहनी कूदकर बाहर आई और अमृ त लाने दौड़ी । वम ने बे तालो ं का रण िकया और उ िमोहनी को पकड़ने का आदेश िदया । अमृ त न मल पाने के कारण रास तड़पकर मर गया । िमोहनी ने अपने बारे म बताया िक वह शव क गणका थी जसे िकसी गलती क सज़ा के प म रास क से वका बनना पड़ा । महल लौटकर वम ने ाण का को उसके माता-पता को सौप िदया और िमोहनी से खु द वधवत् ववाह कर लया ।
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तेरहवी ं पु तली कतमती तेरहवी ं पु तली कतमती ने इस कार कथा कही एक बार राजा विमाद ने एक महाभोज का आयोजन िकया । उस भोज म असं वान, ाण, ापारी तथा दरबारी आमत थे । भोज के म म इस बात पर चचा चली िक संसार म सबसे बड़ा दानी कौन है । सभी ने एक र से विमाद को द ु नया का सवे दानवीर घोषत िकया । राजा विमाद लोगो ं के भाव देख रहे थे । तभी उनक नज़र एक ाण पर पड़ी जो अपनी राय नही ं दे रहा था । लेि कन उसके चे हरे के भाव से तीत होता था िक वह सभी लोगो ंके वचार से सहमत नही ं है । वम ने उससे उसक चु ी का मतलब पूछा तो वह डरते ए बोला िक सबसे अलग राय देने पर कौन उसक बात सु नेगा । राजा ने उसका वचार पू छा तो वह बोला िक वह असमंजस क त म पड़ा आ है । अगर वह सच नही ं बताता, तो उसे झ ू ठ का पाप लगता है और सच बोलने क त म उसे डर हैि क राजा का कोपभाजन बनना पड़ेगा । ं उसक िवादता क भर-भू र शंसा क तथा उसे नभ य होकर अपनी अब वम क जासा और बढ़ गई । उो ने बात कहने को कहा । तब उसने कहा िक महराज विमाद बत बड़े दानी ह- यह बात स है पर इस भूलोक पर सबसे बड़े दानी नही ं । यह सु नते ही सब चौ कं े । सबने वत होकर पूछा ा ऐसा हो सकता है? उस पर उस ाण ने कहा िक समु पार एक रा है जहाँ का राजा ककज जब तक एक लाख ण मु ाएँ ितदन दान नही ं करता तब तक अ-जल भी हण नही ं करता है । अगर यह बात अस माणत होती है, तो वह ाण कोई भी द पाने को तै यार था । राजा के वशाल भोज क म नता छा गई । ाण ने बताया िक ककज के रा म वह कई िदनो ं तक रहा और ितदन ण मु ा ले ने गया । सचमु च ही ककज एक लाख ण मु ाएँ दान करके ही भोजन हण करता है । यही कारण हैि क भोज म उपत ं उसे सारे लोगो ं क हाँ-म-हाँ उसने नही ं मलाई । राजा विमाद ाण क िवादता से स हो गए और उो ने पारतोषक देकर सादर वदा िकया । ाण के जाने के बाद राजा विमाद ने साधारण वे श धरा और दोनो ं बेतालो ं का ं उ समु पार राजा ककज को रा म पँचा देने को कहा रण िकया । जब दोनो ं बेताल उपत ए तो उो ने ं अपना परचय । बे तालो ं ने पलक झपकते ही उ वहाँ पँ चा िदया । ककज के महल के ार पर पँ चकर उो ने उयनी नगर के एक साधारण नागरक के प म ि दया तथा ककज से मलने क इा जताई । कुछ समय बाद ं उसके यहाँ नौकरी क माँ ग क । ककज ने जब पू छा िक वे जब ने ककज के सामने उपत ए, तो उो ने ं का जो कोई नही ं कर सकता वह काम वे कर िदखाएँगे । कौन सा काम कर सकते ह तो उो ने राजा ककज को उनका जवाब पसंद आया और विमाद को उसके यहाँ नौकरी मल गई । वे ारपाल के प म ं देखा िक राजा ककज सचमु च हर िदन एक लाख ण मु ाएँ जब तक दान नही ं कर लेता नयु ए । उो ने ���� ����� �� ������������������������
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ं यह भी देखा िक राजा ककज रोज़ शाम म अकेला कही ं नकलता है और अ-जल हण नही ं करता है । उो ने ं छपकर जब लौटता है, तो उसके हाथ म एक लाख ण मु ाओ ं से भरी ई थै ली होती है । एक िदन शाम को उो ने ं देखा िक राजा ककज समु म ान करके एक मर म जाता है और एक ककज का पीछा िकया । उो ने तमा क पू जा-अच ना करके खौलते ते ल के कड़ाह म कूद जाता है । जब उसका शरीर जल-भु न जाता है, तो कुछ जोगनयाँ आकर उसका जला-भु ना शरीर कड़ाह से नकालकर नोच-नोच कर खाती ह और तृ होकर चली जाती ह । जोगनयो ं के जाने के बाद तमा क देवी कट होती है और अमृ त क बू डालकर ककज को जीवत करती है । अपने हाथो ं से एक लाख ण मु ाएँ ककज क झोली म जाल देती है और ककज खु श होकर महल लौट जाता है । ात:काल वही ण मु ाएँ वह याचको ं को दान कर देता है । वम क समझ म उसके न एक लाख ण मु ाएँ दान करने का रह आ गया । अगलेि दन राजा ककज के ण मु ाएँ ा कर चले जाने के बाद वम ने भी नहा-धो कर देवी क पू जा क और ते ल के कड़ाह म कूद गए । जोगनयाँ जब उनके जले-भु ने शरीर को नोचकर ख़ाकर चली ग तो देवी ने उनको जीवत ं यह कहकर मना कर िदया िक देवी क कृपा ही ि कया । जीवत करके जब देवी ने उ ण मु ाएँ देनी चाही ं तो उो ने ं सात बार द उनके लए सवपर है । यह िया उो ने ु हराई । सातवी ं बार देवी ने उनसे बस करने को कहा तथा उनसे कुछ ं देवी से वह थै ली ही मां ग ली जससे ण मु ाएँ भी मां ग ले ने को कहा । वम इसी अवसर क ताक म थे । उो ने ं देवी ने वह थै ली उ सौ पी ं चमार आ । नकलती थी ं । ो ि ह मर, तमा- सब कुछ गायब हो गया । अब द ू र तक केवल समु तट िदखता था । द ू सरे िदन जब ककज वहाँ आया तो बत नराश आ । उसका वष का एक लाख ण मु ाएँ दान करने का नयम टूट गया । अ-जल ाग कर अपने क म असहाय पड़ा रहा । उसका शरीर ीण होने लगा । जब उसक हालत बत अधक बगड़ने लगी, तो वम उसके पास गए और उसक उदासी का कारण जानना चाहा । उसने वम को जब सब कुछ खु द बताया तो वम ने उसे ं देवी से देवी वाली थै ली देते ए कहा िक रोज़-रोज़ कडाह म उसे कूदकर ाण गँवाते देख वे वत हो गए, इसलए उो ने वह थै ली ही सदा के लए ा कर ली । ं उस वचन क भी रा कर ली, जो देकर उ ककज के दरबार म वह थै ली राजा ककज को देकर उो ने ं सचमु च वही काम कर िदखाया जो कोई भी नही ं कर सकता है । राजा ककज ने उनका नौकरी मली थी । उो ने ं उो ने ं इतनी िकठनाई परचय पाकर उ सीने से लगाते ए कहा िक वे सचमु च इस धरा पर सवे दानवीर ह, ो ि क के बाद ा ण मु ा दान करने वाली थै ली ही बे झझक दान कर डाली जै से कोई तु चीज़ हो ।
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चौदहवी ं पु तली सु नयना चौदहवी ं पु तली सु नयना ने जो कथा क वह इस कार है - राजा विमाद सारे नृ पोचत गु णो ं के सागर थे। उन जै सा ायय, दानी और ागी और कोई न था। इन नृ पोचत गु णो ं के अलावा उनम एक और गु ण था। वे बत बड़े शकारी ं सेि ह सक ं जानवरो ं का वध कर सकते थे। उ पता चला िक एक िह सक ं स ह ं बत उात मचा थे तथा नहे भी िह सक ं के शकार क योजना बनाई और आखे ट को ं उस स ह रहा है और कई लोगो ं का भण कर चु का है, इसलए उो ने ं िदखाई पड़ा और उो ने ं के पीछे अपना घोड़ा डाल िदया। वह स ह ं कुछ ूद र ं स ह नकल पड़े। जंगल म घु सते ही उ स ह ं क तलाश करने लगे। अचानक स ह ं उन पर झपटा, तो पर एक घनी झाड़ी म घु स गया। राजा घोड़े से कूदे और उस स ह ं घायल होकर दहाड़ा ं उस पर तलवार का वार िकया। झाड़ी क वजह से वार पू रे ज़ ोर से नही ं हो सका, मगर स ह उो ने और पीछे हटकर घने वन म गायब हो गया। ं िफर िझाड़यो ं म छ ु प गया। राजा ने वे स ं ह के पीछे इतनी ते ज़ी से भागेि क अपने साथयो ं से काफ ूद र नकल गए। स ह िझाड़यो ं म उसक खोज शु क। अचानक उस शे र ने राजा के घोड़े पर हमला कर िदया और उसे गहरे घाव दे िदए। घोड़ा भय और दद सेि हिनहनाया, तो राजा पलटे। घोड़े के घावो ं से खू न का फारा फूट पड़। राजा ने ूद सरे हमले से घोड़े को तो ं से उसक रा के लए उसेि कसी सुरत जगह ले बचा लया, मगर उसके बहते खू न ने उ चत कर िदया। वे स ह ं एक जाना चाहते थे, इसलए उसे ले कर आगे बढ़े। उ उस घने वन मि दशा का बुल ान नही ं रहा। एक जगह उो ने छोटी सी नदी बहती देखी। वे घोड़े को ले कर नदी तक आए ही थेि क घोड़े ने र अधक बह जाने के कारण दम तोड़ ि दया। ं आगे न बढ़ना ही बु मानी समझा। वे एक उसे मरता देख राजा द ु ख से भर उठे। संा गहराने लगी थी, इसलए उो ने वृ सेि टककर अपनी थकान उतारने लगे। कुछ ही णो ं बाद उनका ान नदी का धारा म हो रहे कोलाहल क ओर गया ं देख दो एक तै रते ए शब को दोनो ं ओर से पकड़ े झगड़ रहे ह। लड़ते-लड़ते वे दोनो ं शव को िकनारे लाए। उो ने ं देख िक उनम से एक मानव मु ो ं क माला पहने वीभ िदखने वाला कापालक है तथा ूद सरा एक बे ताल है उो ने जसक पाठ का ऊपरी िहा नदी के ऊपर उड़ता-सा िदख रहा था। वे दोनो ं उस शव पर अपना-अपना अधकार जता रहे थे। कापालक का कहना था िक यह शव उसने तां क साधना के लए पकड़ा है और बेताल उस शव को खाकर अपनी भू ख मटाना चाहता था। ं उन पर ाय का भार सौ पना ं दोनो ं म से कोई भी अपना दावा छोड़ने को तै यार नही ं था। वम को सामने पाकर उो ने चाहा तो वम ने अपनी शतç रखी। पहली यह िक उनका फैसला दोनो ं को मा होगा और द ू सरी िक उ वे ाय के लए शु अदा करगे। कापालक ने उ शु के प म एक बटुआ िदया जो चमारी था तथा मां गने पर कुछ भी दे सकता था। बे ताल ने उ िमोहनी का का टुकड़ा िदया जसका चंदन घस कर लगाकर अ आ जा सकता था। ���� ����� �� ������������������������
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ं बेताल को भू ख मटाने के लए अपना मृ त घोड़ा दे िदया तथा कापालक को तं साधना के लए शव। इस ाय से उो ने दोनो ं बत खु श ए तथा सु होकर चले गए। ं बटुए से भोजन मां गा। तरह-तरह के ं जन रात घर आई थी और राजा को ज़ोरो ं क भू ख लगी थी, इसलए उो ने ं िमोहनी का के टुकड़े को घसकर उसका चंदन लगा लया उपत ए और राजा ने अपनी भू ख मटाई। िफर उो ने ं व जु से खतरा नही ं रहा। अगली सु बह उो ने ं काली ारा द दोनो ं और अ हो गए। अब उ ि कसी भी िह सक बे तालो ं का रण िकया तथा अपने रा क सीमा पर पँच गए। उ महल के रा म एक भखारी मला, जो भू खा था। राजा ने तु र कापालक वाला बटुआ उसे दे िदया िताक ज़गी भर उसे भोजन क कमी न हो।
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पहवी ं पु तली सु रवती ू ने लगी पहवी ं पु तली क कथा इस कार है- राजा विमाद के शासन काल म उैन रा क समृ आकाश छ थी। ापारयो ं का ापार अपने देश तक ही सीमत नही ं था, ब ूद र के देशो ं तक फैला आ था। उन िदनो ं एक सेठ आ जसका नाम पालाल था। वह बड़ा ही दयालु तथा परोपकारी था। चारो ं ओर उसका यश था। वह दीन-द ु खयो ं क सहायता के लए सतत तै यार रहता था। उसका पु था हीरालाल, जो पता क तरह ही ने क और अे गु णो ं वाला था। वह जब ववाह यो आ, तो पालाल अे रो ं क तलाश करने लगा। एक िदन एक ाण ने उसे बताया िक समु पार एक नामी ापारी है जसक का बत ही सु शील तथा गु णवती है। पालाल ने फौरन उसे आने-जाने का खच देकर का प वालो ं के यहाँ रा पा करने के लए भे जा। का के पता को रा पसंद आया और उनक शादी प कर दी गई। ववाह का िदन जब समीप आया, तो मू सलाधार बारश होने लगी। नदी-नाले जल से भर गए और ीप तक पँचने का माग अव हो गया। बत ला एक माग था, मगर उससे ववाह क तथ तक पँ चना असव था। सेठ पालाल के लए यह बुल अाशत आ। इस त के लए वह तै यार नही ं था, इसलए बे चै न हो गया। उसने सोचा िक शादी क सारी तै यारी का प वाले कर ल गे और िकसी कारण बारात नही ं पँची, तो उसको ताने सु नने पड़ेग े और जगहँसाई होगी। जब कोई हल नही ं सूझा, तो ववाह तय कराने वाले ाण ने सु झाव िदया िक वह अपनी समा राजा विमाद के सम रखे। उनके अबल म पवन वेग से उड़ने वाला रथ है और उसम यु होने वाले घोड़े ह। उस रथ पर आठ-दस लोग वर िसहत चले जाएँगे और ववाह का काय शु हो जाएगा। बाक लोग ले राे से होकर बाद म सलत हो जाएँगे। से ठ पालाल तु र राजा के पास पँ चा और अपनी समा बताकर िहिचकचाते ए रथ क माँ ग क। वम ने ं अबल के बक को बु लाकर मु राकर कहा िक राजा क हर चीज़ जा के िहत क रा के लए होती है और उो ने ताल उसे घोड़े िसहत वह रथ िदलवा िदया। सता के मारे पालाल को नही ं सू झा िक वम को कैसे धवाद दे। जब वह रथ और घोड़े िसहत चला गया, तो वम को चा ई िक जस काम के लए सेठ ने रथ लया है, कही ं वह काय भीषण वषा क वजह से बाधत न हो जाए। ं माँ काली ारा द बे तालो ं का रण िकया और उ सकुशल वर को ववाह ल तक ले जाने तथा ववाह उो ने स कराने क आा दी। जब वर वाला रथ पवन वे ग से दौड़न े को तै यार आ, तो दोनो ं बे ताल छाया क तरह रथ के साथ चल पड़े। याा के म म सेठ ने देखा िक राा कही ं भी नही िं दख रहा है, चारो ं ओर पानी ही पानी है तो उसक चा बत बढ़ गई। उसे सू झ नही ं रहा था ा िकया जाए। तभी अवसनीय घटना घटी। घोड़ो ं िसहत रथ ज़मीन के ऊपर उड़ने लगा।
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रथ जल के ऊपर ही ऊपर उड़ता आ नत िदशा म बढ़ रहा था। दरअसल बेतालो ं ने उसे थाम रखा था और ववाह ल क ओर उड़े जा रहे थे। नत मु म से ठ के पु का ववाह स हो गया। का को साथ ले कर जब सेठ पालाल उै न लौटा, तो घर के बदले सीधा राजदरबार गया। विमाद ने वर-वधु को आशीवा द िदया। सेठ पालाल घोड़े और ं अ तथा रथ उसे उपहार प रथ क शंसा म ही खोया रहा। राजा विमाद उसका आशय समझ गए और उो ने दे िदया।
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सोलहवी ं पु तली सवती सोलहवी ं पुतली सवती ने जो कथा कही वह इस कार है - राजा विमाद के शासन काल म उै न नगरी का यश चारो ं ओर फैला आ था। एक से बढ़कर एक वान उनके दरबार क शोभा बढ़ाते थे और उनक नौ जानकारो ं क एक समत थी जो हर वषय पर राजा को परामश देते थे, तथा राजा उनके परामश के अनु सार ही राज-काज सी नण य लया करते थे। एक बार ऐय पर बहस छड़ी, तो मृ ु लोक क भी बात चली। राजा को जब पता चला िक पाताल लोक के राजा शे षनाग का ऐय देखने लायक है और उनके लोक म हर तरह क सु ख-सु वधाएँ मौजू द है। चू ँ िक वे भगवान वु के खास से वको ं म से एक ह, इसलए उनका ान देवताओ ं के समक है। उनके दश न से मनु का जीवन ध हो जाता है। ं दोनो ं बे तालो का रण िकया। जब वे विमाद ने सशरीर पाताल लोक जाकर उनसे भ ट करने क ठान ली। उो ने ं उनसे पाताल लोक ले चलने को कहा। बेताल उ जब पाताल लोक लाए, तो उो ने ं पाताल लोक उपत ए, तो उो ने के बारे म दी गई सारी जानकारी सही पाई। सारा लोक साफ-सुथरा तथा सु नयोजत था। हीरे-जवाहरात से पूरा लोक जगमगा रहा था। जब शे षनाग को ख़ बर मली िक मृु लोक से कोई सशरीर आया है तो वे उनसे मले। राजा विमाद ने पू रे आदर तथा नता से उ अपने आने का योजन बताया तथा अपना परचय िदया। उनके वहार से शे षनाग इतने ं चलते वDत उ चार चमारी र उपहार म ि दए। पहले र से ँहमाँ स हो गए िक उो ने मु गा धन ा िकया जा सकता था। द ू सरा र माँ गने पर हर तरह के व तथा आभू षण दे सकता था। तीसरे र से हर तरह के रथ, अ तथा पालक क ा हो सकती थी। चौथा र धम -काय तथा यश क ा करना सकता था। काली ारा द दोनो ं बे ताल रण करने पर उपत ए तथा वम को उनके नगर क सीमा पर पँ चा कर अ हो गए। चारो ं र ले कर अपने नगर म व ं राजा से उनक पाताल लोक क याा तथा र ा ए ही थेि क उनका अभवादन एक परचत ाण ने ि कया। उो ने करने क बात जानकर कहा िक राजा क हर उपल म उनक जा क सहभागता है । राजा विमाद ने उसका अभाय समझकर उससे अपनी इा से एक र ले ले ने को कहा। ाण असमंजस म पड़ गया और बोला िक अपने परवार के हर सद से वमश करने के बाद ही कोई फैसला करेगा। जब वह घर पँचा और अपनी पी बे टे तथा बे टी से सारी बात बताई, तो तीनो ं ने तीन अलग तरह के रो ं म अपनी च जताई। ाण िफर भी िकसी नष पर नही ं पँच सका और इसी मानसक दशा म राजा के पास पँ च गया। वम ने हँसकर उसे चारो ंके चारो ं र उपहार मि दए.
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सहवी ं पु तली वावती वावती नामक सहवी ं पुतली ने जो कथा कही वह इस कार है- महाराजा विमाद क जा को कोई कमी नही ं थी ं। सभी लोग संतु तथा स रहते थे। कभी कोई समा ले कर ियद कोई दरबार आता था उसक समा को ताल हल कर िदया जाता था। जा को िकसी कार का क देने वाले अधकारी को दत िकया जाता था। इसलए कही ं से भी िकसी तरह क शकायत नही ं सु नने को मलती थी। राजा खु द भी वे श बदलकर समय-समय पर रा क त के ं े बारे म जानने को नकलते थे। ऐसे ही एक रात जब वे वेश बदलकर अपने रा का मण कर रहे थे तो उ एक झो पड़ से एक बातचीत का अं श सुनाई पड़ा। कोई औरत अपने पत को राजा से साफ़-साफ़ कुछ बताने को कह रही थी और उसका पत उसे कह रहा था िक अपने ाथ के लए अपने महान राजा के ाण वह संकट म नही ं डाल सकता है। वम समझ गए िक उनक समा से उनका कुछ स है। उनसे रहा नही ं गाया। अपनी जा क हर समा को हल ं ार खटखटाया, तो एक ाण द ने दरवाजा खोला। वम ने अपना करना वे अपना क समझते थे। उो ने ं नभ य होकर उ सब कुछ परचय देकर उनसे उनक समा के बारे म पू छा तो वे थर-थर काँ पने लगे। जब उो ने बताने को कहा तो ाण ने उ सारी बात बता दी। ाण द ववाह के बारह साल बाद भी नं तान थे । ं काफ़ य िकए। त-उपवास, धम-कम, पू जा-पाठ हर तरह क चे ा क पर इन बारह सालो ं म संतान के लए उो ने कोई फायदा नही ं आ। ाणी ने एक सपना देखा है। म एक देवी ने आकर उसे बताया िक तीस कोस क द ू री पर पू वि दशा म एक घना जंगल है जहाँ कुछ साधु सासी शव क ु त कर रहे ह। शव को स करने के लए हवन कु म अपने अं ग काटकर डाल रहे ह। अगर उी ं क तरह राजा विमाद उस हवन कु म अपने अं ग काटकर फ क , तो शव स होकर उनसे उनक इत चीज़ माँ गने को कह गे। वे शव से ाण द के लए संतान क माँ ग कर सकते ह और उ सान ा हो जाएगी। ं बेतालो ं को रण कर बु लाया वम ने यह सु नकर उ आासन िदया िक वे यह काय अव करगे। रा म उो ने तथा उस हवन ल तक पँ चा देने को कहा। उस ान पर सचमु च साधु-सासी हवन कर रहे थे तथा अपने अं गो ं को काटकर अ-कु म फ क रहे थे। वम भी एक तरफ बै ठ गए और उी ं क तरह अपने अं ग काटकर अ को अपत करने लगे। जब वम िसहत वे सारे जलकर राख हो गए तो एक शवगण वहाँ पँचा तथा उसने सारे तपओ ं को अमृ त डालकर ज़ा कर िदया, मगर भू ल से वम को छोड़ िदया। ं राख ए वम को देखा। सभी तपओ ं ने मलकर शव क ु त क तथा उनसे सारे तपी ज़ा ए तो उो ने वम को जीवत करने क ाथ ना करने लगे। भगवान शव ने तपओ ं क ाथ ना सु न ली तथा अमृत डालकर वम को जीवत कर िदया । वम ने जीवत होते ही शव के सामने नतमक होकर ाण द को संतान सुख देने के लए ाथ ना क। शव उनक परोपकार तथा ाग क भावना से काफ़ स ए तथा उनक ाथ ना ीकार कर ली। कुछ िदनो ं बाद सचमु च ाण द को पु लाभ आ। ���� ����� �� ������������������������
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संहासन बीसी
अठारहवी ं पु तली तारावती अठारहवी ं पु तली तारामती क कथा इस कार है- राजा विमाद क गु णािहता का कोई जवाब नही ं था। वे वानो ं तथा कलाकारो ं को बत सान देते थे। उनके दरबार म एक से बढ़कर एक वान तथा कलाकार मौजू द थे, िफर भी अ राो ं से भी यो आकर उनसे अपनी योता के अनुप आदर और पारतोषक ा करते थे । एक िदन वम के दरबार म दण भारत के िकसी रा से एक वान आशय था िक वासघात व का सबसे नीच कम है। उसने राजा को अपना वचार करने के लए एक कथा सु नाई। उसने कहा- आयाव म बत समय पहले एक राजा था। उसका भरा-पू रा परवार था, िफर भी सर वष क आयु म उसने एक पवती का से ववाह िकया। वह नई रानी के प पर इतना िमोहत हो गया िक उससे एक पल भी अलग होने का उसका मन नही ं करता था। वह चाहता था िक हर वDत उसका चे हरा उसके सामने रहे । वह नई रानी को दरबार म भी अपने बगल म बठाने लगा। उसके सामने कोई भी कुछ बोलने का साहस नही ं करता, मगर उसके पीठ पीछे सब उसका उपहास करते । राजा के महामी को यह बात बु री लगी। उसने एकां त म राजा से कहा िक सब उसक इस क आलोचना करते ह। अगर वह हर ं पल नई रानी का चे हरा देखता रहना चाहता है तो उसक अ-सी तीर बनवाकर राजस हासन के सामने रखवा दे। चू ँ िक इस रा म राजा के अकेले बै ठने क पररा रही है , इसलए उसका रानी को दरबार म अपने साथ लाना अशोभनीय है। महामी राजा का यु वाकाल से ही म जै सा था और राजा उसक हर बात को गंभीरतापू व क लेता था। उसने महामी से ं को कही। महामी ने एक बड़े ही यो चकार ि कसी अे चकार को छोटी रानी के च को बनाने का काम सौ पने को बु लाया। चकार ने रानी का च बनाना शु कर िदया। जब च बनकर राजदरबार आया, तो हर कोई चकार का शंसक हो गया। बारीक से बारीक चीज़ को भी चकार ने उस च म उतार िदया था। च ऐसा जीवंत था मानो छोटी रानी िकसी भी ण बोल पड़ेगी। राजा को भी च बत पसं द आया। तभी उसक नज़र चकार ारा बनाई गई रानी क जंघा पर गई, जस पर चकार ने बड़ी सफ़ाई से एक तल िदखा िदया था। राजा को शं का ई िक रानी के गु अं ग भी चकार ने देख े ह और ोधत होकर उसने चकार से साई बताने को कहा। चकार ने पू री शालीनता से उसे वास िदलाने क कोशश क िक कृत ने उसे सू दी है जससे उसे छपी ई बात भी पता चल जाती है। तल उसी का एक माण है और उसने तल को खू बसू रती बढाने के लए िदखाने क कोशश क है। राजा को उसक बात का ज़रा भी वास नही ं आ। उसने जादो ं को बु लाकर ताल घने जंगल म जाकर उसक गदन उड़ा देने का िदया तथा कहा िक उसक आँ ख नकालकर दरबार म उसके सामने पे श कर। महामी को पता था िक चकार क बात सच ह। उसने राे म उन जादो ं को धन का लोभ देकर चकार को मु करवा लया तथा उि कसी िहरण को मारकर उसक आँ खे नकाल लेने को कहा िताक राजा के वास हो जाए िक कलाकार को ख ���� ����� �� ������������������������
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सं सहासन हं ासन बीसी
कर िदया गया है। चकार को लेकर महामी अपने भवन भवन ले आया आया तथा चकार वे श वे श बदलकर उसी के साथ रहने लगा। कुछ िदनो ं बाद बाद राजा का पु पु शकार खे लने खे लने गया, गया, तो एक शे र शे र उसके पीछे पड़ गया। राजकुमार मार जान बचाने के लए एक पेड़ पर चढ़ गया। तभी उसक नज़ न ज़र पे ड़ पे ड़ पर पहले से मौजूद मौजूद एक भालू पर पर पड़ी। भालू से जब जब वह भयभीत आ तो भालू ने उससे न न रहने को को कहा। भालू ने ने कहा कहा िक वह भी उसी क तरह शे र र से डरकर पे ड़ पे ड़ पर चढ़ा आ है और और शेर के जाने क तीा कर रहा है। शेर भू खा था और उन दोनो ं पर ं पर आँ ख जमाकर उस पेड़ के नीचे बै ठा बै ठा था। राजकुमार मार को बै ठे बै ठे-बै ठे ं आने लगी नी द लगी और जगे रहना रहना उसे मु ल मु ल िदख पड़ा। भालू ने ने अपनी अपनी ओर उसे बु ला बु ला िदया एक घनी शाखा श ाखा पर कुछ देर सो ले ने ले ने को को कहा। भालू ने ने कहा िक जब वह सोकर उठ जाएगा तो वह जागकर रखवाली करेगा और भालू सोएगा भालू सोएगा जब राजकुमार मार सो गया तो शे र शे र ने भालू को को फुसलाने क कोशश क। उसने कहा कहा िक वह और भालू व व ाणी ह, इसलए दोनो ं ं को एक ूद सरे का भला सोचना िचाहए। मनु मनु कभी भी व ाणयो ं का ं का दो नही ं हो ं हो सकता। उसने भालू से राजकुमार मार को गरा देने को को कहा जससे िक वह उसे अपना उसे अपना ास ा स बना सके । मगर भालू ने उसक उसक बात नही ं ं ं पू री करने के बाद जब मानी तथा कहा िक वह वासघात नही ं कर ं कर सकता। शे र शे र मन मसोसकर रह गया। चार घं टो टो ं क ं क नी द राजकुमार मार जागा, तो भालू क बारी आई और वह सो गया। शे र शे र ने अब अब राजकुमार को फुसलाने क क कोशश क। उसने कहा िक ो ं वह वह भालू के लए द को गरा देता हो तो शे र शे र क भू ख मट जाएगी और वह ु ख भोग रहा है । वह अगर भालू को आराम से राजमहल राजमहल लौट जाएगा। राजकुमार उसक बातो ं म ं म आ आ गया। उसने धा धा देकर भालू को को गराने क क कोशश क। मगर भालू न न जाने कैसेसे जाग जाग गया और राजकुमार को वासघाती कहकर खू ब ब धारा। राजकुमार मार क अराा अरा ा ने उसे उसे इतना कोसा िक वह गू ं गा गा हो गया। जब शे श रे भू ख के मारे जंगल गल म अ अ शकार क खोज म नकल नकल गया तो वह राजमहल पँ पँ चा। चा। िकसी को भी उसके गू ं गा गा होने क क बात समझ म नही नही ं आई। ं आई। कई बड़े वै वै आए, मगर राजकुमार मार का रोग िकसी क समझ म नही नही ं आया। ं आया। आखरकार महामी के घर छपा आ वह कलाकार क लाकार वै वै का प धरकर राजकुमार मार के पास आया। उसने गू ं गेग राजकु े राजकुमार मार के चे हरे चे हरे का भाव पढ़कर सब कुछ जान लया। उसने राजकु राजकुमार मार को संके कते क भाषा म पूछ पूछ िक ा आान से िपीड़ िपीड़त होकर वह अपनी वाणी खो चु का चु का है, तो राजकुमार मार फूट-फू ट-फूट कर रो पड़ प ड़ा। रोने से उस पर मनोवै ानक मनोवै ानक असर पड़ा और उसक खोई वाणी लौट आई। राजा को बड़ा आय आ िक उसने राजकुमार मार के चे हरे चे हरे को देखकर साई कैसेस जान े जान ली तो चकार ने जवाब जवाब िदया िक जस तरह कलाकार ने उनक उनक रानी क जाँ घ जाँ घ का तल देख लया था। राजा तु र तु र समझ गया िक वह वही कलाकार था जसके वध क उसने आा आा दी थी। वह चकार से अपनी अपनी भू ल क माफ माँ गने माँ गने लगा लगा तथा ढेर सारे इनाम देकर उसे सानत सानत िकया। ं उसे एक उस दण के वान क कथा से विमाद विमाद बत स ए तथा उसके पा का सान करते ए ए उो ने एक लाख ण मु ाएँ मु ाएँ दी। ���� ����� �� ������������������������
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उीसवी ं ं पु पु तली परेखा परेखा नामक उीसवी ं पु तली ं पु तली ने जो जो कथा सु नाई सु नाई वह इस कार है राजा विमाद के दरबार म लोग लोग अपनी समाएँ ले कर ले कर ाय के लए तो आते ही ही थे कभी-कभी कभी-कभी उन ो ं को ं को ले कर ले कर भी उपत होते थे जनका कोई समाधान उ नही ं सू झता था। वम उन ो ं ं का ऐसा सटीक हल नकालते थे िक ं वम का पू पू ण सु स ु हो जाता था। ऐसे ही ही एक टेढ़े को ले कर ले कर एक िदन दो तपी दरबार म आए आए और उो ने वम सो अपने का उर देने क क वनती क। उनम से से एक एक का मानना था िक मनु का मन ही उसके सारे िया-कलाप पर नयंण ण रखता है और और मनु कभी भी अपने मन मन के व कुछ भी नही ं कर ं कर सकता है। द सहमत नही ं ं ू सरा उसके मत से सहमत था। उसका कहना था िक मनु मनु का ान उसके सारे िया-कलाप नयंत त करता है। मन भी ान का दास है और और वह भी ान ारा िदए गए नदशो ं का का पालन करने को को बा है। राजा विमाद ने उनके उनके ववाद के वषय को गौर से सु ना सु ना पर तु र तु र उस वषय पर अपना कोई नण य नण य नही ं दे दे पाए। ं उन उो ने उन दोनो ं तपयो तपयो ं को को कुछ समय बाद आने को को कहा। जब वे चले चले गए गए तो वम उनके के बारे म सोचने सोचने लगे लगे ं ं एक जो सचमु च सचमु च ही बत टेढ़ा था। उो ने एक पल सोचा िक मनु मनु का मन सचमु च सचमु च बत चंचल चल होता है और और उसके वशीभू त होकर मनु मनु सां सारक सां सारक वासना के अधीन हो जाता है। मगर ूद सरे ही पल उ ान ान क याद आई। उ लगा लगा िक ान सचमु च सचमु च मनु मनु को मन का कहा करने से से पहले पहले वचार कर ले ने ले ने को को कहता है और और िकसी नण य नण य के लए े रत े रत करता है। वम ऐसे उलझे सवालो ं का जवाब सामा लोगो ं ं क ज़गी म खोजते थे, इसलए वे साधारण नागरक का वे श वे श बदलकर अपने रा म नकल नकल पड़े। उ कई कई िदनो ं तक ं तक ऐसी कोई बात देखने को को नही ं मली ं मली जो को हल करने म सहायता करती। एक िदन उनक नज़र एक ऐसे नौजवान नौजवान पर पड़ी जसके कपड़ो ं और और भावो ं म म उसक उसक वपता झलकती थी। वह एक पेड़ के नीचे थककर थककर आराम कर रहा था। बगल म एक एक बैलगाड़ी खड़ी थी जसक वह कोचवानी करता था। राजा ने उसके उसके नकट जाकर देखा तो वे उसे एक एक झलक म ही ही पहचान गए. वह उनके अभ म से ठ से ठ गोपाल दास का ं ापार छोटा बे टा बे टा था। सेठ गोपाल दास बत बड़े ापारी थे और और उो ने ापार से बत बत धन कमाया था। उनके बे टे बे टे क यह ं उससे द को उु क उु क हो गये। उो ने उससे पू छा िक ु दशा देखकर उनक जासा बढ़ गई। उसक बदहाली का कारण जानने को उसक यह दशा कै सेसे ई ई जिबक मरते समय समय गोपाल दास ने अपना अपना सारा धन और ापार अपने दोनो दोनो ं पु ो पु ो ं म म समान समान प से बाँ ट बाँ ट िदया था। एक के िहे का धन इतना था िक दो द ो पुो ं तक ं तक आराम से ज़गी गु ज़ गु ज़ारी जा सकती थी। वम व म ने ि फर ि फर उसके भाई के बारे म भी जानने क क जासा कट क। यु वक यु वक समझ गया िक पू छने वाला वाला सचमु च सचमु च उसके परवार के बारे म सारी सारी जानकारी रखता है । उसने वम वम को अपने और और अपने भाई भाई के बारे म सब सब कुछ बता िदया। उसने बताया बताया िक जब उसके पता ने उसके उसके और उसके भाई के बीच सब कुछ ���� ����� �� ������������������������
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सं सहासन हं ासन बीसी
बाँ ट बाँ ट िदया तो उसके भाई नेन े अपने अपनेि हे ि हे के धन का उपयोग बड़े ही समझदारी से ि कया। ि कया। उसने अपनी अपनी ज़रतो ं को को सीमत रखकर सारा धन ापार म लगा लगा िदया और िदन-रात मेहनत करके अपने ापार ापार को कई गु णा गु णा बढ़ा लया। अपने बु मान बु मान और संयमी भाई से उसने उसने कोई े रणा े रणा नही ं ली ली और अपनेि हे ि हे म मले मले अपार अपार धन को देखकर घम से चू र हो गए। शराबखोरी, रंडीबाजी जुआ खे लना खे लना समे त समे त सारी बु री बु री आदत डाल डाल ली ं ।ं ये सारी सारी आदत उसके उसके धन के भार के ते ज़ ते ज़ी से खोखला करने लगी लगी ं। बड़े भाई ने समय समय रहते उसे उसे चे त चे त जाने को को कहा, लेि कन लेि कन उसक बात उसे उसे वष वष समान तीत । ये बु री बु री आदत उसे उसे बत ते ज़ ते ज़ी से बरबादी बरबादी क तरफ ले ग ग और एक वष के अर वह कंगाल गाल हो गया। वह अपने नगर नगर के एक स और तत सेठ का पु था, इसलए उसक बदहाली का सब उपहास करने लगे लगे। इधर भू खो ं मरने मरने क क नौबत, ु पाने उधर शम से ँमुह छ पाने क क जगह नही। उसका जीना द भर हो गया। अपने नगर म मजद है सयत से गु ज़ गु ज़ारा करना ूभर ू र क है सयत उसे असं असंभव लगा तो वहाँ से से द द मे हनत-मजद पे ट भरता है तथा तथा अपने भव के लए ू र चला आया। मे हनत-मजद ू री करके अब अपना पे ट भी कुछ करने क सोचता है। धन जब उसके पास चु र चु र माा म था था तो मन क चंचलता पर वह अं कु कुश नही ं लगा ं लगा सका। धन बरबाद हो जाने पर पर उसे स आ ई और ठोकर खाने खान े के बाद अपनी भू ल का एहसास आ। जब राजा ने पूछा छा ा ु आई वह धन आने पर पर िफर से मन मन का कहा करेगा तो उसने कहा कहा िक ज़माने क क ठोकरो ं ने न उसे े उसे सा ान दे िदया है और अब उस ान के बल पर वह अपने मन मन को वश म रख रख सकता है। वम ने तब जाकर उसे अपना अपना असली परचय िदया तथा उसे कई ण मु ाएँ मु ाएँ देकर होशयारी से ापार ापार करने क क सलाह ं उसे दी। उो ने उसे भरोसा भरोसा िदलाया िक ल शीलता उसे ि फर पहले वाली वाली समृ समृ वापस िदला देगी। उससे वदा वदा ले कर ले कर वे अपने अपने ं अब उनके पास उन तपओ ं के ववाद का समाधान था। कुछ समय बाद उनके दरबार म वे महल लौट आए ो ि क दोनो ं तपी तपी समाधान क इा लए हाज़र ए। वम ने उ उ कहा कहा िक मनु मनु के शरीर पर उसका मन बार-बार बार -बार नयंण ण करने क क चे ा चे ा करता है पर पर ान के बल पर ववेकशील मनु मनु मन को अपने पर पर हावी नही ं होने ं होने दे देता है। मन और ान म अोनाय अोनाय स है तथा दोनो ं का ं का अपना-अपना मह है । जो पूरी तरह अपने मन मन के वश म हो जाता ं से ठ है उसका उसका सव नाश सव नाश अवावी है। मन अगर रथ है तो तो ान सारथ। बना सारथ रथ अधू रा रा है। उो ने से ठ पु पु के साथ जो कुछ घटा था उ वारपू वारपू व क व क बताया तो उनके मन म कोई कोई संशय नही ं रहा। ं रहा। उन तपयो ं ं ने उ एक एक चमारी िखड़या िदया जससे बनाई बनाई गई तीर रात म सजीव सजीव हो सकती थी ं और ं और उनका वाालाप भी सु ना सु ना जा सकता था। वम ने कु कुछ तीर बनाकर िखड़या क सता जानने क क कोशश क तो सचमुच िखड़या म वह वह गु ण गु ण था। अब राजा तीरे बना-बना कर अपना मन बहलाने लगे ल गे। अपनी रानयो ं क ं क उ बु बुल सु ध सु ध नही ं रही। ं रही। जब रानयाँ कई कई िदनो ं ं के बाद उनके पास आ तो राजा को िखड़या ने च च बनाते ए ए देखआ। रानयो ं ं ने आकर आकर उनका ान बँटाया तो राजा को ं ं कहा हँसी सी आ गई और उो ने कहा वे भी भी मन के आधीन हो गए थे। अब उ अपने अपने क क का ान हो चु का चु का है।
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संहासन बीसी
बीसवी ं पु तली ानवती बीसवी ं पुतली ानवती ने जो कथा सु नाई वह इस कार है- राजा विमाद से ान के बत बड़े पारखी थे तथा ं अपने दरबार म चु न-चु न कर वानो ,ं पंिडतो ं, ले खको ं और कलाकारो ं को जगह दे ानयो ं क बत क करते थे। उो ने रखी थी तथा उनके अनुभव और ान का भरपू र सान करते थे। एक िदन वे वन म िकसी कारण वचरण कर रहे थे तो उनके कानो ं म दो आदमयो ं क बातचीत का कुछ अं श पड़ा। उनक समझ म आ गया िक उनम से एक ोतषी है तथा ं चंदन का टीका लगाया और अयान हो गए। ोतषी अपने दो को बोला- म ने ोतष का पू रा ान उो ने अजत कर लया है और अब म तु ारे भू त, वत मान और भव के बारे म सब कुछ बता सकता ँ। द ू सरा उसक बातो ं म कोई च न ले ता आ बोला- तु म मे रे भू त और वतमान से पू री तरह परचत हो इसलए सब कुछ बता सकते हो और अपने भव के बारे म जानने क मेरी कोई इा नही ं है। अा होता तुम अपना ान अपने तक ही सीमत रखते। मगर ोतषी कने वाला नही ं था। वह बोला- इन बखरी ई हयो ं को देख रहे है। म इन हयो ं को देखते ए बता सकता ँ िक ये हयाँि कस जानवर क ह तथा जानवर के साथ ा-ा बीता। लेि कन उसके दो ने ि फर भी उसक बातो ं म अपनी च नही ं जताई। तभी ोतषी क नज़र ज़मीन पर पड़ी पद चो ं पर गई। उसने कहाये पद च िकसी राजा के ह और सता क जाँ च तु म खु द कर सकते हो। ोतष के अनुसार राजा के पाँ वो ं म ही ाकृतक प से कमल का च होता है जो यहाँ नज़र आ रहा है। उसके दो ने सोचा िक सता क जाँ च कर ही ली जाए, अथा यह ोतषी बोलता ही रहे गा। पद चो ं का अनु सरण करते-करते वे जंगल म अर आते गए। जहाँ पद च समा होते थे वहाँ कुाड़ी लए एक लकड़हारा खड़ा था तथा कुाड़ी से एक पे ड़ काट रहा था। ोतषी ने उसे अपने पाँ व िदखाने को कहा। लकड़हारे ने अपने पाँ व िदखाए तो उसका ि दमाग चकरा गया। लकड़हारे के पाँ वो ं पर ाकृतक प से कमल के च थे। ोतषी ने जब उससे उसका असली परचय पू छा तो वह लकड़हारा बोला िक उसका ज ही एक लकड़हारे के घर आ है तथा वह कई पु ो ं से यही काम कर रहा है। ोतषी सोच रहा था िक वह राजकुल का है तथा िकसी परतवश लकड़हारे का काम कर रहा है । अब उसका वास अपने ोतष ान से उठने लगा। उसका दो उसका उपहास करने लगा तो वह चढ़कर बोलाचलो चलकर राजा विमाद के पाँ व देखते ह। अगर उनके पाँ वो ं पर कमल च नही ं आ तो म समू चे ोतष शा को झ ू ठा समझ ू ंगा और मान लू ंगा िक मे रा ोतष अयन बे कार चला गया। वे लकड़हारे को छोड़ उैन नगरी को ं विमाद से मलने क इा जताई। जब चल पड़े। काफ चलने के बाद राजमहल पँ चे। राजकमल पँच कर उो ने ं उनसे अपना पै र िदखाने क ाथ ना क। वम का पै र देखकर ोतषी स रह गया। वम सामने आए तो उो ने उनके पाँ व भी साधारण मनु ो ंकेके पाँ व जै से थे। उन पर वै सी ही आड़ी-तरछ रेखाएँ थी ं। कोई कमल च नही ं था।
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संहासन बीसी
ोतषी को अपने ोतष ान पर नही, ब पू रे ोतष शा पर संदेह होने लगा। वह राजा से बोला- ोतष शा कहता हैि क कमलच जसके पाँ वो ं म मौजू द हो ं वह राजा होगा ही मगर यह सरासर अस है । जसके पाँ वो ं पर मै न ये च देखे वह पु नी ै लकड़हारा है । द ू र-द ू र तक उसका स िकसी राजघराने से नही ं है। पेट भरने के लए जी तोड़ मे हनत करता है तथा हर सु ख-सु वधा से वंचत है। ूद सरी ओर आप जै सा चवी ं साट है जसके भा म भोग करने वाली हर चीज़ है। जसक कक द ू र-द ू र तक फैली ई है । आपको राजाओ ं का राजा कहा जाता है ं पू छा- ा आपका वास मगर आपके पाँ वो ं म ऐसा कोई च मौजू द नही ं है। राजा को हँसी आ गई और उो ने अपने ान तथा वा पर से उठ गया? ोतषी ने जवाब िदया- बुल। मु झे अब री भर भी वास नही ं रहा। उसने राजा से नतापू व क वदा ले ते ए अपने म से चलने का इशारा िकया। जब वह चलने को आ तो राजा ने उसे कने को कहा। दोनो ंि ठठक कर क गए। वम ने एक चाकू मंगवाया तथा पै रो ंके तलवो ं को खु रचने लगे। खु रचने पर तलवो ं क चमड़ी उतर गई और अर से कमल के च हो गए। ोतषी को हतभ देख वम ने कहा- हे ोतषी महाराज, ं हाँ क गे आपके ान म कोई कमी नही ं है। लेि कन आपका ान तब तक अधू रा रहे गा, जब तक आप अपने ान क डी ग और जब-तब उसक जाँ च करते रहगे। म ने आपक बात सु न ली ं थी ं और म ही जंगल म लकड़हारे के वे श म आपसे मला था। म ने आपक वता क जाँ च के लए अपने पाँ वो ं पर खाल चढ़ा ली थी, िताक कमल क आकृत ढ् ँक जाए। आपने सब कमल क आकृत नही ं देखी तो आपका वास ही अपनी वा से उठ गया। यह अ बात नही ं ह। ं तरीको ं से बचेगा ोतषी समझ गया राजा ा कहना चाहते ह। उसने तय कर लया िक वह से ान क जाँ च के भौ डे तथा बड़बोले पन से परहे ज करेगा।
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इसवी ं पु तली चोत चोत नामक इसवी ं पु तली क कथा इस कार है- एक बार विमाद एक य करने क तै यारी कर रहे थे । वे उस य म च देव को आमत करना चाहते थे। चदेव को आमण देने कौन जाए- इस पर वचार करने लगे। ं महामंी को बुलाकर उनसे काफ सोच वचार के बाद उ लगा िक महामंी ही इस काय के लए सवम रह गे। उो ने वमश करना शु िकया। तभी महामंी के घर का एक नौकर वहाँ आकर खड़ा हो गया। महामंी ने उसे देखा तो समझ ं राजा से मा मां गी और गए िक अव कोई बत ही गंभीर बात है अथा वह नौकर उसके पास नही ं आता। उो ने नौकर से अलग जाकर कुछ पू छा। जब नौकर ने कुछ बताया तो उनका चेहरा उतर गया और वे राजा से वदा ले कर वहाँ से चले गए। महामंी के अचानक द ु खी और चत होकर चले जाने पर राजा को लगा िक अव ही महामंी को कोई क है। ं नौकर से उनके इस तरह जाने का कारण पू छा तो नौकर िहिचकचाया। जब राजा ने आदेश िदया तो वह हाथ उो ने ं कहा था िक साई जानने के बाद जोड़कर बोला िक महामंी जी ने मु झे आपसे साई नही ं बताने को कहा था। उो ने राजा का ान बँट जाएगा और जो य होने वाला है उसम वधान होगा। राजा ने कहा िक महामंी उनके बड़े ही ामभ से वक ह और उनका भी क हैि क उनके क का हर संभव नवारण कर। ं उसक बीमारी एक से बढ़कर तब नौकर ने बताया िक महामंी जी क एकमा पुी बत ले समय से बीमार है। उो ने एक वै को िदखाई, पर कोई भी िचका कारगर नही ं साबत ई। द ु नया क हर औषध उसे दी गई, पर उसक हालत बगड़ती ही चली गई। अब उसक हालत इतनी खराब हो चु क हैि क वह िहल-डु ल नही ं सकती और मरणास हो गई है। ं राजवै को बु लवाया और जानना चाहा िक उसने महामंी क विमाद ने जब यह सु ना तो ाकुल हो गए। उो ने पु ी क िचका क है या नही। राजवै ने कहा िक उसक िचका केवल ां ग बू टी से क जा सकती है। द ु नया क अ कोई औषध कारगर नही ं हो सकती। ां ग बू टी एक बत ही द ु लभ औषध है जसे ँढूढ़कर लाने म कई महीने लग जाएँगे। राजा विमाद ने यह सु नकर कहा- तु उस ान का पता है जहाँ यह बू टी मलती है? राज वै ने बताया िक वह ू तथा बू टी नीलरगर क िघाटयो ं म पाई जाती है लेि कन उस तक पँ चना बत ही िकठन है । राे म भयंकर सपं, ब ं जानवर भरे बड़े ह। राजा ने यह सु नकर उससे उस बू टी क पहचान बताने को कहा। राज वै ने बताया िक वह ि ह सक पौधा आधा नीला आधा पीला फूल लए होता है तथा उसक पयाँ लाजवी के पो ं क तरह श से सकुचा जाती ह।
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संहासन बीसी
ं तु र काली के िदए गए दोनो ं बे तालो ं वम य क बात भू लकर ां ग बू टी क खोज म जाने का नण य कर बै ठे। उो ने का रण िकया। बे ताल उ आनन-फानन म नीलरगर क ओर ले चले। पहाड़ी पर उ उतारकर बे ताल अ हो गए। राजा िघाटयो ं क ओर बढ़ने लगे। िघाटयो ं म एकदम अंधे रा था। चारो ं ओर घने जंगल थे। राजा बढ़ते ही रहे। ं क दहाड़ पड़ी। वे सल पाते इसके पहले ही स ह ं ने उन पर आमण कर िदया। एकाएक उनके कानो ं म स ह राजा ने बजली जै सी फुत िदखाकर खु द को तो बचा लया, मगर स ं ह उनक एक बाँ ह को घायल करने म कामयाब हो ं द ं भरपू र हार से उसके ाण ले लए। उसे मारकर जब वे आगे बढ़े तो राे गया। स ह ु बारा जब उन पर झपटा तो उो ने ं परो ं क वषा करके साँ पो ं को राे से हटा िदया। पर सै कड़ो ं वषधर िदखे । वम तनक भी नही ं घबराए और उो ने उसके बाद वे आगे क ओर बढ़ चले। राे म एक जगह इ लगा िक वे हवा म तै र रहे है। ान से देखने पर उ एक ं वे अजगर के पे ट म पँचे िक दैाकार अजगर िदखा। वे समझ गए िक अजगर उ अपना ास बना रहा है । ो ि ह ं अपनी तलवार से अजगर का पे ट चीर िदया और बाहर आ गए। तब तक गम और थकान से उनका बु रा हाल हो उो ने ं एक वृ पर चढ़कर वाम िकया। ो ि ह ं सु बह ई वे ां ग बू टी क खोज म गया। अंध राे भी घर आया था। उो ने इधर-उधर घू मने लगे। उसक खोज म इधर-उधर भटकते न जाने कब शाम हो गई और अंध राे छा गया। ं कहा- काश, चदेव मदद करते! इतना कहना था िक मानो ं चमार हो गया। िघाटयो ं म ूद ध अधीर होकर उो ने जै सी चाँ दनी फैल गई। अकार न जाने कहाँ गायब हो गया। सारी चीज़े ऐसी साफ िदखने लगी ं मानो िदन का उजाला हो। ं पयाँ छ ू ई थोड़ी ूद र बढ़ने पर ही उ ऐसे पौधे क झाड़ी नज़र आई जस पर आधे नीले आधे पीले फूल लगे थे। उो ने ं ां ग बू टी का बड़ा-सा िहा काट लया। वे बूटी ले कर तो लाजवंती क तरह सकुचा गई। उ संशय नही ं रहा। उो ने चलने ही वाले थेि क िदन जै सा उजाला आ और च देव सशरीर उनके सुख आ खड़े ए। वम ने बड़ी ा से उनको णाम िकया। चदेव ने उ अमृ त देते ए कहा िक अब सफ अमृत ही महामंी क पु ी को जला सकता है। ं जाते-जाते वम को उनक परोपकार क भावना से भावत होकर वे खुद अमृत ले कर उपत ए ह। उो ने समझाया िक उनके सशरीर य म उपत होने से व के अ भागो ं म अंधकार फैल जाएगा, इसलए वे उनसे अपने ं वम को य अ तरह स कराने का आशीवा द िदया और य म उपत होने क ाथ ना नही ं कर। उो ने ं अमृत क बू टपकाकर महामंी क बे टी अयान हो गए। वम ां ग बू टी और अमृ त लेकर उै न आए। उो ने को जीवत िकया तथा ां ग बू टी जनहीत के लए रख लया। चारो ं ओर उनक जय-जयकार होने लगी।
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बाइसवी ं पु तली अनु रोधवती अनु रोधवती नामक बाइसवी ं पु तली ने जो कथा सु नाई वह इस कार है- राजा विमाद अ ु त गु णाही थे। वे से कलाकारो ं का बत अधक सान करते थे तथा िवादता पसंद करते थे। उनके दरबार म योता का सान िकया जाता था। चापलू सी जै से द ु गु ण क उनके यहाँ कोई क नही ं थी। यही सु नकर एक िदन एक यु वक उनसे मलने उनके ार तक आ पँ चा। दरबार म मिहफल सजी ई थी और संगीत का दौर चल रहा था। वह यु वक ार पर राजा क अनुमत का इंतज़ार करने लगा। वह युवक बत ही गु णी था। बत सारे शाो ं का ाता था। कई राो ं म नौकरी कर चु का था। वा होने के कारण उसके आयदाताओ ं को वह धृ नज़र आया, अत: हर जगह उसे नौकरी से नकाल िदया गया। इतनी ठोकरे खाने के बाद भी उसक कृत तथा वहार म कोई परवत न नही ं आ सका। वह ार पर खड़ा था तभी उसके कान म वादन का र पड़ा और वह बड़बड़ाया- मिहफल म बै ठे ए लोग मू ख ह। संगीत का आन उठा रहे है, मगर संगीत का जरा भी ान नही ं है। साज़ा गलत राग बजाए जा रहा है , लेि कन कोई भी उसे मना नही ं कर रहा है। उसक बड़बड़ाहट ारपाल को सु नाई पड़ी। उसका चे हरा ोध से लाल हो गया। उसने उसको सालकर िटणी करने को कहा। उसने जब उस यु वक को कहा िक महाराज विमाद खु द मिहफल म बैठे है और वे बत बड़े कला पारखी है तो ं साजे का यु वक ने उपहास िकया। उसने ारपाल को कहा िक वे कला े मी हो सकते ह, मगर कला पारखी नही ं, ो ि क दोषपू ण वादन उनक समझ म नही ं आ रहा है। उस यु वक ने यह भी बता िदया िक वह साज़ा िकस तरफ बै ठा आ है। अब ारपाल से नही ं रहा गया। उसने उस यु वक से कहा िक उसे राजद मलेगा, अगर उसक बात सच साबत नही ं ई। उस यु वक ने उसे साई का पता लगाने के लए कहा तथा बड़े ही आवास से कहा िक वह हर द भु गतने को तै यार है अगर यह बात सच नही ं साबत ई। ारपाल अर गया तथा राजा के कानो ं तक यह बात पँची। वम ने तु र आदेश िकया िक वह यु वक मिहफल म पे श िकया जाए। वम के सामने भी उस युवक ने एक िदशा म इशारा करके कहा ि क वहाँ एक वादक क ऊँगली दोषपू ण है। उस ओर बैठे सारे वादको ं क ऊँगलयो ं का नरीण िकया जाने लगा। सचमु च एक वादक के अँ गू ठे का ऊपरी भाग कटा आ था और उसने उस अँ गू ठे पर पतली खाल चढ़ा रखी थी। ं उस यु वक से उसका परचय ा िकया और अपने दरबार राजा उस यु वक के संगीत ान के कायल हो गए। तब उो ने म उचत सान देकर रख लया। वह यु वक सचमु च ही बड़ा ानी और कला मम था। उसने समय-समय पर अपनी योता का परचय देकर राजा का िदल जीत लया। एक िदन दरबार म एक अंत पवती न क आई। उसके नृ का आयोजन आ और कुछ ही णो ं म मिहफल सज गई। वह यु वक भी दरबारयो ं के बीच बै ठा आ नृ और संगीत का आन उठाने लगा। वह नक बत ही सधा आ नृ ु त कर रही थी और दश क मु होकर रसाादन कर रहे थे। तभी न जाने कहाँ से एक भंवरा आ कर उसके व पर बै ठ गया। नक नृ नही ं रोक सकती थी और न ही अपने हाथो ं ं भंगमाएँ गड़बड़ हो जाती ं। उसने बड़ी चतुरता से साँ स अर क ओर खी ची ं तथा पू रे से भंवरे को हटा सकती थी, ो ि क ���� ����� �� ������������������������
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वे ग से भंवरे पर छोड़ दी। अनायास नकले साँ स के झौ ंके से भंवरा डर कर उड़ गया। ण भर क इस घटना को कोई भी न ताड़ सका, मगर उस यु वक क आँ खो ं ने सब कुछ देख लया। वह वाह! वाह! करते उठा और अपने गले क मोतयो ं क माला उस न क के गले म डाल दी। सारे दरबारी रह गए। अनु शासनहीनता क पराकाा हो गई। राजा क उपत म दरबार मि कसी और के ारा कोई पु रार िदया जाना ं उस यु वक को इस धृ ता के राजा का सबसे बड़ा अपमान माना जाता था। वम को भी यह पसंद नही ं आया और उो ने लए कोई ठोस कारण देने को कहा। तब यु वक ने राजा को भंवरे वाली सारी घटना बता दी। उसने कहा िक बना नृ क एक भई भंगमा को न िकए, लय ताल के साथ सामंज रखते ए इस न क ने जस सफ़ाई से भंवरे को उड़ाया वह पु रार यो चेा थी। उसे छोड़कर िकसी और का ान गया ही नही ं तो पु रार कैसे मलता। वम ने न क से पू छा तो उसने उस यु वक क ं न क तथा उस यु वक- दोनो ं क बत तारीफ क। बातो ं का समथ न िकया। वम का ोध गायब हो गया और उो ने अब उनक नज़र म उस यु वक का मह और बढ़ गया। जब भी कोई समाधान ढू ँढना रहता उसक बातो ं को ान से सु ना जाता तथा उसके परामश को गंभीरतापू वक लया जाता। एक बार दरबार म बु और संार पर चचा छड़ी। दरबारयो ं का कहना था िक संार बु से आते है, पर वह यु वक उनसे सहमत नही ं था। उसका कहना था िक सारे संार वंशानु गत होते ह। जब कोई मतै नही ं आ तो वम ने एक ं नगर से ूद र हटकर जंगल म एक महल बनवाया तथा महल म गू ंगी और बहरी नौकरानयाँ नयु क ं। हल सोचा। उो ने एक-एक करके चार नवजात शशुओ ं को उस महल म उन नौकरानयो ं क देखरेख म छोड़ िदया गया। उनम से एक उनका, एक महामंी का, एक कोतवाल का तथा एक ाण का पु था। बारह वष पात् जब वे चारो ं दरबार म पे श िकए गए तो वम ने बारी-बारी से उनसे पू छा- कुशल तो है? चारो ं ने अलग-अलग जवाब िदए। राजा के पु ने सब कुशल है कहा जिबक महामं ी के पु ने संसार को नर बताते ए कहा आने वाले को जाना है तो कुशलता कैसी? कोतवाल के पु ने कहा िक चोर चोरी करते है और बदनामी नरपराध क होती है। ऐसी हालत म कुशलता क सोचना बे मानी है। सबसे अ म ाण पु का जवाब था िक आयु जब िदन-बि-दन घटती जाती है तो कुशलता कैसी। चारो ं के जवाबो ं को सु नकर उस यु वक क बातो ं क साई सामने आ गई। राजा का पु न भाव से सब कुछ कु शल मानता था और मंी के पु ने तक पू ण उर िदया। इसी तरह कोतवाल के पु ने ाय वा क चचा क, जिबक ाण पु ने दाश नक उर िदया। सब वंशानु गत संारो ं के कारण आ। सबका पालन पोषण एक वातावरण म आ, लेि कन सबके वचारो ं म अपने संारो ंके अनुसार भता आ गई। सभी दरबारयो ं ने मान लया िक उस यु वक का मानना बुल सही है।
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तेइसवी ं पु तली धमवती ते इसवी ं पुतली जसका नाम धम वती था, ने इस कार कथा कही- एक बार राजा विमाद दरबार म बैठे थे और दरबारयो ं से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के म म दरबारयो ं म इस बात पर बहस छड़ गई िक मनु ज से बड़ा ं दरबारयो ंके दो गु ट हो चुके थे। एक कहता था िक मनु ज होता है या कम से। बहस का अ नही ं हो रहा था, ो ि क ं मनु का ज उसके पू व जो ं का फल होता है । अे संार मनु म वंशानु गत होते ह जै से से बड़ा होता है ो ि क राजा का बे टा राजा हो जाता है । उसका वहार भी राजाओ ं क तरह रहता है। कुछ दरबारयो ं का मत था िक कम ही धान है। अे कुल म जे भी द ु सनो ंके आदी हो जाते ह और मया दा के व कम म लीन होकर पतन क ओर चले जाते ह। अपने द ु म और द ु राचार के चलते कोई सामाजक ता ा नही ं करते और सव तरार पाते ह । इस पर पहले गु ट ने तक िदया िक मूल संार न नही ं हो सकते ह जै से कमल का पौधा कचड़ म रहकर भी अपने गु ण नही ं खोता। गु लाब काँ टो ं पर पै दा होकर भी अपनी सु ग नही ं खोता और चन के वृ पर सप का वास होने से भी चन अपनी सु ग घ और शीतलता बरकरार रखता है, कभी भी वषै ला नही ं होता। दोनो ं प अपने-अपने तक ारा अपने को सही स करने क कोशश करते रहे। कोई भी अपना वचार बदलने को राज़ी नही ं था। वम चु पचाप उनक बहस का मज़ा ले रहे थे। जब उनक बहस बत आगे बढ़ गई तो राजा ने उ शा रहने का आदेश िदया और कहा िक वे उदाहरण ारा करगे। ं का बा पकड़कर लाया जाए। तु र कुछ शकारी जंगल गए और एक स ह ं ं आदेश िदया िक जंगल से एक स ह उो ने ं एक गड़ेरये को बु लाया और उस नवजात शावक को बकरी के बो ं के का नवजात शावक उठाकर ले आए। उो ने साथ-साथ पालने को कहा। गड़ेरये क समझ म कुछ नही ं आया, लेि कन राजा का आदेश मानकर वह शाषक को ले गया। शावक क परवरश बकरी के बो ंके साथ होने लगी। वह भी भू ख मटाने के लए बकरयो ं का ूद ध पीने लगा जब बकरी के बे बड़ ए तो घास और पयाँ चरने लगे। शावक भी पयाँ बड़े चाव से खाता। कुछ और बड़ा होने पर द ूध तो वह पीता रहा, मगर घास और पयाँ चाहकर भी नही ं खा पाता। एक िदन जब वम ने उसे शावक का हाल बताने के लए बु लाया तो उसने उ बताया िक शे र का बा एकदम बकरयो ं क तरह वहार करता है। ं शावक को अब घास और पयाँ उसने राजा से वनती क िक उसे शावक को मां स खलाने क अनुमत दी जाए, ो ि क अ नही ं लगती ह। वम ने साफ़ मना कर िदया और कहा िक सफ द ूध पर उसका पालन पोषण िकया जाए। गड़ेरया उलझन म पड़ गया। उसक समझ म नही ं आया िक महाराज एक मां सभी ाणी को शाकाहारी बनाने पर ो ं तु ले ह। वह घर लौट आया। शावक जो िक अब जवान होने लगा था सारा िदन बकरयो ं के साथ रहता और द ूध पीता। कभी-कभी बत अधक भू ख लगने पर घास-पयाँ भी खा लेता। अ बकरयो ं क तरह जब शाम म उसे दरबे क तरफ हाँ का ���� ����� �� ������������������������
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जाता तो चु पचाप सर झ ु काए बढ़ जाता तथा ब होने पर कोई तरोध नही ं करता। एक िदन जब वह अ बकरयो ं के ं म ब एक स ं ह को लाया गया। स ह ं को देखते ही सारी बकरयाँ डरकर भागने लगी ं तो वह भी साथ चर रहा था तो प जरे उनके साथ द ु म दबाकर भाग गया। उसके बाद राजा ने गड़ेरय को उसे तं प से रखने को कहा। भू ख लगने पर उसने खरगोश का शकार िकया और अपनी भू ख मटाई। ं म कुछ िदन तं प से रहने पर वह छोटे-छोटे जानवरो ं को मारकर खाने लगा। लेि कन गड़ेरये के कहने पर प जरे शापू व क ब हो जाता। कुछ िदनो ं बाद उसका बकरयो ं क तरह भी भाव जाता रहा। एक िदन जब िफर से उसी शे र को जब उसके सामने लाया गया तो वह डरकर नही ं भागा। शे र क दहाड़ उसने सु नी तो वह भी पू रे र से दहाड़ा। ं दरबारयो ं को कहा िक इ ान म मू ल वृ तयाँ शे र के राजा अपने दरबारयो ंके साथ सब कुछ गौर से देख रहे थे। उो ने बे क तरह ही ज से होती ह। अवसर पाकर वे वृ तयाँ त: उजागर हो जाती ह जै सेि क इस शावक के साथ आ। बकरयो ं के साथ रहते ए उसक स ं ह वाली वृ त छप गई थी, मगर तं प से वचरण करने पर अपने-आप कट हो गई। उसे यह सब िकसी ने नही ं सखाया। लेि कन मनु का सान कम के अनु सार िकया जाना िचाहए। सभी सहमत हो गए, मगर एक मी राजा क बातो ं से सहमत नही ं आ। उसका मानना था िक वम राजकुल म पै दा होने के कारण ही राजा ए अथा सात जो ं तक कम करने के बाद भी राजा नही ं होते। राजा मुराकर रह गए। समय बीतता रहा। एक िदन उनके दरबार म एक नावक सु र फूल ले कर उपत आ। फूल सचमु च वलण था और लोगो ं ने पहली बार इतना सु र लाल फूल देखा था। राजा फूल के उ म ल का पता लगाने भे ज िदया। वे दोनो ं उस िदशा म नाव से बढ़ते गए जधर से फूल बहकर आया था। नदी क धारा कही ं अधक सँकरी और ती हो जाती थी, कही ं चानो ं के ऊपर से बहती थी। काफ द ु ग म राा था। बहते-बहते नाव उस जगह पँ ची जहाँ ि कनारे पर एक अ ु त था। एक बड़े पे ड़ पर जंज़ीरो ं क रगड़ से उसके शरीर पर कई गहरे घाव बन गए थे। उन घावो ं से र चू रहा था जो नदी म गरते ही रवण पुो ं म बदल जाता था। कुछ द ू री पर ही कुछ साधु बै ठे तपा म लीन थे। जब वे कुछ और फूल ले कर दरबार म वापस लौटे तो मंी ने राजा को सब कुछ बताया। तब वम ने उसे समझाया िक उस उलटे लटके योगी को राजा समझो और अ साधनारत सासी उसके दरबारी ए। पू व ज का यह कम उ राजा या दरबारी बनाता है । अब मी को राजा क बात समझ म आ गई। उसने मान लया िक पू व ज के कम के फल के प म ही िकसी को राजगी मलती है।
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चौबीसवी ं पु तली कणावती चौबीसवी ं पु तली कणावती ने जो कथा कही वह इस कार है- राजा विमाद का सारा समय ही अपनी जा के द ु खो ं का नवारण करने म बीतता था। जा क िकसी भी समा को वे अनदेखा नही ं करते थे। सारी समाओ ं क जानकारी उ रहे, इसलए वे भे ष बदलकर रात म पू रे रा म, आज िकसी िहे म, कल िकसी और म घूमा करते थे। उनक इस आदत का पता चोर-डाकुओ ं को भी था, इसलए अपराध क घटनाएँ छट-पु ट ही आ करती थी ।ं वम चाहते थेि क ं सो सक । ऐसे अपराध बुल मट जाए िताक लोग नभ य होकर एक ान से ूद सरे ान क याा कर तथा चै न क नी द ही वम एक रात वे श बदलकर रा के एक िहे म घू म रहे थेि क उ एक बड़े भवन से लटकता एक कम नज़र आया। इस कम के सहारे ज़र कोई चोर ही ऊपर क मं ज़ल तक गया होगा, यह सोचकर वे कम के सहारे ऊपर पँ चे। ं अपनी तलवार हाथो ं म ले ली िताक सामना होने पर चोर को मौत के घाट उतार सक । तभी उनके कानो ं म ी क उो ने धीमी आवाज़ पड़ी तो चोर कोई ी है, यह सोचकर वे उस कमरे क दीवार से सटकर खड़े हो गए जहाँ से आवाज़ आ रही थी। कोई ी िकसी से बगल वाले कमरे म जाकर िकसी का वध करने को कह रही थी। उसका कहना था िक बना उस आदमी का वध िकए ए िकसी अ के साथ उसका स रखना असव है। तभी एक पु ष र बोला िक वह लु टेरा अव है, मगर िकसी नरपराध क जान ले ना उसके लए सव नही है। वह ी को अपने साथ िकसी सुद ू र ान जाने के लए कह रहा था और उसके वास िदलाने क कोशश कर रहा था िक उसके पास इतना अधक धन है ि क बाक ं उसे धन बची ज़गी वे दोनो ं आराम से बसर कर ल गे। वह ी अ म उससे ूद सरे िदन आने के लए बोली, ो ि क बटोरने म कम से कम चौबीस घंटे लग जाते। राजा समझ गए िक पु ष उस ी का े मी है तथा ी उस से ठ क पी है जसका यह भवन है । सेठ बगल वाले कमरे म सो रहा है और से ठानी उसके वध के लए अपने े मी को उकसा रही थी। राजा कम पकडकर नीचे आ गए और उस े मी का इज़ार करने लगे। थोड़ी देर बाद से ठानी का े मी कम से नीचे आया तो राजा ने अपनी तलवार उसक गदन पर रख दी तथा उसे बता िदया िक उसके सामने वम खड़े ह। वह आदमी डर से थर-थर काँ पने लगा और ाण द के भय से उसक घ घी बँध गई। जब राजा ने उसे सच बताने पर मृ ु द न देने का वायदा िकया तो उसने अपनी कहानी इस कार बताई“म बचपन से ही उससे े म करता था तथा उसके साथ ववाह के सपने संजोए ए था। मे रे पास भी बत सारा धन था ं मे रे पता एक बत ही बड़े ापारी थे। लेि कन मे रे सु खी भव के सारे सपने धरे-के-धरे रह गए। एक िदन मेरे ो ि क पताजी का धन से भरा जहाज समु ी डाकुओ ं ने लू ट लया। लू ट क खबर पाते ही मेरे पताजी के िदल को ऐसा धा लगा ि क उनके ाण नकल गए। हम लोग कंगाल हो गाए। म अपनी तबाही का कारण उन समु ी डाकुओ ं को मानकर उनसे ���� ����� �� ������������������������
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बदला ले ने नकल पड़ा। कई वष तक ठोकर खाने के बाद मु झे उनका पता चल ही गया। म ने बत मु ल से उनका वास जीता तथा उनके दल म शामल हो गया। अवसर पाते ही मि कसी एक का वध कर देता। एक-एक करके म ने पू रे ं एक िकया था वह ले कर अपने घर वापस चला आया। दल का सफाया कर िदया और लू ट से जो धन उो ने घर आकर मुझे पता चला िक एक धनी से ठ से मे री े मका का ववाह हो गया और वह अपने पत के साथ चली गई। मे रे सारे सपने बखर गए। एक िदन उसके मायके आने क खबर मु झे मली तो म खु श हो गया। वह आकर मु झसे मलने लगी और म ने सारा वृता उसे बता िदया। एक िदन वह मु झसे मली तो उसने कहा िक उसे मे रे पास बत सारा धन होने क बात पर तभी वास होगा जब म नौलखा हार उसके गले म डाल ँ ूद । म नौलखा हार ले कर गया। तब तक वह पत के पास चली गई थी। म ने नौलखा हार लाकर उसे पत के घर म पहना िदया तो उसने अपने पत क हा करने को मु झे ं िकसी नरपराध क हा अपने हाथो ं से करना म भयानक पाप समझता उकसाया। म ने उसका कहने नही ं माना ो ि क ँ । राजा विमाद ने सच बोलने के लए उसक तारीफ क और समु ी डाकुओ ं का सफाया करने के लए उसका कंधा ं उसे या चर नही ं समझ पानेि क लए डाँ टा। उो ने ं कहा िक सी े मकाएँ े मी से े म करती ह थपथपाया। उो ने उसके धन से नही ।ं उसक े मका ने उसक तीा नही ं क और स से शादी कर ली। द ु बारा उससे भ ट होने पर पत से ोह करने से नही िं हिचकचाई। नौलखा हार ा कर ले ने के बाद भी उसका वास करके उसके साथ चलने को तै यार नही ं ई। उलटे उसके मना करने पर भी उससे नरपराध पत क हा करवाने को तै यार बैठी है। ऐसी न ु र तथा चरहीन ी से े म सफ वनाश क ओर ले जाएगा। वह आदमी रोता आ राजा के चरणो ं म गर पड़ा तथा अपना अपराध मा करने के लए ाथ ना करने लगा। राजा ने मृ ु द के बदले उसे वीरता और सिवादता के लए ढेरो ं पु रार िदए। उस आदमी क आँ ख खु ल चु क थी ं। द ू सरे िदन रात को उस े मी का भे ष धरकर वे कम के सहारे उसक े मका के पास पँ चे। उनके पँ चते ही उस ी ने णाभ षणो ू ं क बड़ी सी थै ली उ अपना े मी समझकर पकड़ा दी और बोली िक उसने वष खलाकर से ठ को मार िदया और सारे णाभ षण ू और हीरे जवाहरात चु नकर इस थै ली म भर लए। जब राजा कुछ नही ं बोले तो उसे शक आ और उसने नकली दाढ़ी-मू ँ छ नोच ली। िकसी अ पु ष को पाकर चोर-चोर चाने लगी तथा राजा को अपने पत का हारा बताकर वलाप करने लगी। राजा के सपाही और नगर कोतवाल नीचे छपे ए थे। वे दौड़कर आए और राजा के आदेश पर उस हारी चरहीन ी को गर ार कर लया गया। उस ी को समझते देर नही ं लगी िक भे ष बदलकर आधा आ पु ष खु द वम थे। उसने झट से वष क शीशी नकाली और वषपान कर लया।
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पीसवी ं पु तली ने ी ने ी नामक पीसवी ं पु तली क कथा इस कार है- राजा विमाद अपनी जा के सु ख द ु ख का पता लगाने के लए कभी-कभी वे श बदलकर घूमा करते थे तथा खु द सारी समा का पता लगाकर नदान करते थे। उनके रा म एक दर ाण और भाट रहते थे। वे दोनो ं अपना क अपने तक ही सीमत रखते ए जीवन-यापन कर रहे थे तथा कभी िकसी के त कोई शकायत नही ं रखते थे। वे अपनी गरीबी को अपना ार समझकर सदा खु श रहते थे तथा सीमत आय से संतु थे। सब कु छ ठीक-ठाक चल रहा था, मगर जब भाट क बे टी ववाह यो ई तो भाट क पी को उसके ववाह क चा सताने लगी। उसने अपने पत से कहा िक वह पुै नी पे शे से जो कमाकर लाता है उससे दैनक खच तो आराम से चल जाता है, मगर बे टी के ववाह के लए कुछ भी नही ं बच पाता है। बे टी के ववाह म बत खच आता है, अत: उसे कोई और य करना होगा। भाट यह सु नकर हँस पड़ा और कहने लगा िक बेटी उसे भगवान क इा से ा ई है, इसलए उसके ववाह के लए भगवान कोई राा नकाल ही दगे । अगर ऐसा नही ं होता तो हर द को के वल पु क ही ा होती या कोई दत संतानहीन न रहते। सब ईर क इा से ही होता है । िदन बीतते गए, पर भाट को बे टी के ववाह म खच लायक धन नही ं मल सका। उसक पी अब द ु खी रहने लगी। भाट से उसका द ु ख नही ं देखा गया तो वह एक िदन धन इका करने क नीयत से नकल पड़ा। कई राो ं का मण कर उसने सै कड़ो ं रााधकारयो ं तथा बड़े-बड़े से ठो ं को हँसाकर उनका मनोरंजन िकया तथा उनक शंसा म गीत गाए। खु श होकर उन लोगो ं ने जो पुरार िदए उससे बे टी के ववाह लायक ं धन हो गया। जब वह सारा धन ले कर लौट रहा था तो राे म न जाने चोरो ं को कैसे उसके धन क भनक लग गई। उो ने सारा धन लू ट लया। अब तो भाट का वास भगवान पर और चाहगे उसके पास बे टी के ाह के लए धन नही ं होगा। वह जब लौटकर घर आया तो उसक पी को आशा थी िक वह ाह के लए उचत धन लाया होगा। भाट क पी को बताया िक उसके बार-बार कहने पर वह ववाह के लए धन अजत करने को कई देश गया और तरह तरह को लोगो ं से मला। लोगो ं से पया धन भी एक कर लाया पर भगवान को उस धन से उसक बे टी का ववाह होना मंज रू नही ं था। राे म सारा धन लु टेरो ं ने लू ट लया और िकसी तरह ाण बचाकर वह वापस लौट आया है । भाट क पी गहरी चा म डूब गई। उसने पत से पू छा िक अब बे टी का ाह कैसे होगा। भाट नेि फर अपनी बात द ु हराई िक जसने बे टी दी है वही ईर उसके ववाह क वा भी कर देगा। इस पर उसक पी नराशा भरी खीझ के साथ बोली िक ईर लगता है महाराजा वम को ववाह क ���� ����� �� ������������������������
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वा करने भे ज गे। जब यह वातालाप हो रहा था तभी महाराज उसके घर के पास से गु ज़र रहे थे। उ भाट क पी क िटणी पर हँसी आ गई। द ू सरी तरफ ाण अपनी आजीवका के लए पुै नी पे शा अपनाकर जै से-तै से गुज़र-बसर कर रहा था। वह पू जा-पाठ करवाकर जो कुछ भी दणा के प म ा करता उसी से आनपू व क नवा ह कर रहा था। ाणी को भी तब तक सब कुछ सामा िदख पड़ा जब तक िक उनक बे टी ववाह यो नही ं ई। बे टी के ववाह क चा जब सताने लगी तो उसने ाण को कुछ धन जमा करने को कहा।मगर ाण चाहकर भी नही ं कर पाया। पी के बार-बार याद िदलाने पर उसने अपने यजमानो ं को घु मा िफरा कर कहा भी, मगर िकसी यजमान ने उसक बात को गंभीरतापू व क नही ं लया। एक िदन ं अब और कोई वक नही ं है। ाणी तंग आकर बोली िक ववाह खच महाराजा विमाद से मां गकर देखो, ो ि क कादान तो करना ही है। ाण ने कहा िक वह महाराज के पास ज़र जाएगा। महाराज धन दान करगे तो सारी ं उसी समय वे उसके घर के पास गु ज़र वा हो जाएगी। उसक भी पी के साथ पू री बातचीत वम ने सु न ली, ो ि क रहे थे। ं सिपाहयो ं को भे जा और भाट तथा ाण दोनो ं को दरबार म बु लवाया। विमाद ने अपने हाथो ं से सु बह म उो ने भाट को दस लाख ण मु ाएँ दान क। िफर ाण को राजकोष से कुछ सौ मु ाएँ िदलवा दी। वे दोनो ं अत स हो वहाँ से वदा हो गए। जब वे चले गए तो एक दरबारी ने महाराज से कुछ कहने क अनु मत मां गी। उसने जासा क िक भाट और ाण दोनो ं का दान के लए धन चाहते थे तो महाराज ने पपात ो ंि कया। भाट को दस लाख और ाण को सफ कुछ सौ ण मु ाएँ ो ं दी। वम ने जवाब िदया िक भाट धन के लए उनके आसरे पर नही ं बै ठा था। ं उसे ईर का तनध बनकर वह ईर से आस लगाये बैठा था। ईर लोगो ं को कुछ भी दे सकते ह, इसलए उो ने अाशत दान िदया, जिबक ाण कुलीन वंश का होते ए भी ईर म पू री आा नही ं रखता था। वह उनसे सहायता ं उसे उतना ही धन िदया जतने म क अपेा रखता था। राजा भी आ मनु है, ईर का ान नही ं ले सकता। उो ने ववाह अ तरह सं प हो जाए। राजा का ऐसा गू ढ़ उर सु नकर दरबारी ने मन ही मन उनक शंसा क तथा चु प हो गया।
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छीसवी ं पु तली मृ गनयनी मृ गनयनी नामक छीसवी ं पु तली ने जो कथा सु नाई वह इस कार है- राजा विमाद न सफ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, ब ाग, दानवीरता, दया, वीरता इािद अने क े गु णो ंके धनी थे। वेि कसी तपी क भाँ त अ-जल का ाग कर ले समय तक तपा म लीन रहे सकते थे। ऐसा कठोर तप कर सकते थेि क इासन डोल जाए। एक बार उनके दरबार म एक साधारण सी वे शभू षा वाले एक यु वक को पकड़कर उनके सै नक लाए। वह रात म बत सारे धन के साथ संिद अवा म कही ं जा रहा था। उसक वे शभू षा से नही ं लग रहा था िक इस धन का वह मालक होगा, इसलए सिपाहयो ं को लगा शायद वह चोर हो और चोरी के धन के साथ कही ं चंपत होने क िफराक म हो। राजा ने जब उस यु वक से उसका परचय पू छा और जानना चाहा िक यह धन उसके पास कैसे आया तो उस यु वक ने बताया िक वह एक ं जानना धना ी के यहाँ नौकर है और सारा धन उसी ी का िदया आ है। अब राजा क जासा बढ़ गई और उो ने चाहा िक उस ी ने उसे यह धन ो ंि दया और वह धन ले कर कहाँ जा रहा था। इस पर वह युवक बोला िक अमु क जगह क कर ी ने तीा करने को कहा था। दरअसल उस ी के उससे अनै तक स ह और वह उससे पत क हा करके आकर मलने वाली थी। दोनो ं सारा धन ले कर कही ं द ू र चले जाते और आराम से जीवन तीत करते। वम ने उसक बातो ं क सता क जाँ च करने के लए तु र उसके बताये पते पर अपने सिपाहयो ं को भे जा। सिपाहयो ं ने आकर खबर दी िक उस ी को अपने नौकर के गर ार होने क सू चना मल चु क है। अब वह वलाप करके कह रही हैि क लु टेरो ं ने सारा धन लू ट लया और उसके पत क हा करके भाग गए। उसने पत क च ं ता सजवाई है और खु द को पतता साबत करने के लए सती होने क योजना बना रही है। सु बह यु वक को साथ ले कर सिपाहयो ंके साथ वम उस ी के घर पँ चे तो देखकर सचमु च ं गए। ी अपने पत क चता पर बै ठ चु क थी और चता को अ लगने वाली थी। राजा ने चता को अ देने वाले चौ क ं सारा धन उसेि दखाया तथा नौकर को आगे लाकर बोलेि क को रोक िदया तथा उस ी से चता से उतरने को कहा। उो ने ं उस ी को या चर का ाग करने को कहा तथा राजद भु गतने को सारी साई का पता उ चल गया है। उो ने तै यार हो जाने क आा दी। ी कुछ णो ं के लए तो भयभीत ई, मगर द ू सरे ही पल बोली िक राजा को उसके चर पर ऊँगली उठाने के पहले अपनी छोटी रानी के चर क जाँ च करनी िचाहए। इतना कहकर वह बजली सी फुत से चता पर कूदी और उसम आग लगाकर सती हो गई। कोई कुछ करता वह ी जलकर राख हो गई। राजा सिपाहयो ं िसहत अपने महल वापस लौट गए। ं छोटी रानी पर नगाह रखनी शु कर दी। एक रात उ सोता उ उस ी के अं तम श अभी तक जला रहे थे। उो ने समझकर छोटी रानी उठी और पछले दरवाजे से महल से बाहर नकल गई। राजा भी दबे पाँ व उसका पीछा करने लगे। ���� ����� �� ������������������������
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चलकर वह कुछ द ू र पर धू नी रमाए एक साधु के पास गई। साधु ने उसे देखा तो उठ गया और उसे लेकर पास बनी एक कुिटया के अर दोनो ं चले गए। वम ने िकुटया म जो देखा वह उनके लए असहनीय था। रानी नव होकर उस साधु ं करने लगी तथा दोनो ं पत-पी क तरह बे झझक संभोगरत हो गए। राजा ने सोचा िक छोटी रानी को वे का आल गन ं िकुटया म घु सकर इतना ार करते हि फर भी वह वासघात कर रही है। उनका ोध सीमा पार कर गया और उो ने उस साधु तथा छोटी रानी को मौत के घाट उतार िदया। जब वे महल लौटे तो उनक मानसक शां त जा चु क थी। वे हमे शा बे चै न तथा ख रहने लगे। सां सारक सु खो ं से उनका मन उचाट हो गया तथा मन म वै रा क भावना ने ज ले लया। उ लगता था िक उनके धम-कम म ज़र कोई कमी ं थी जसके कारण भगवान ने उ छोटी रानी के वासघात का िदखाकर दत िकया। यही सब सोचकर उो ने ं िदया और खु द समु तट पर तपा करने को चल पड़े। समु तट पर पँ चकर राज-पाट का भार अपने मंयो ं को सौ प ं सबसे पहले एक पै र पर खड़ े होकर समु देवता का आवान िकया। उनक साधना से स होकर जब समु उो ने ं समु देवता से एक छोटी सी मां ग पू री करने क वनती क। उो ने ं कहा िक उनके तट देवता ने उ दश न िदए तो उो ने पर वे एक िकुटया बनाकर अख साधना करना चाहते ह और अपनी साधना नव पू रा करने का उनसे आशीवा द चाहते ह। समु देवता ने उ अपना आशीवा द िदया तथा उ एक शंख दान िकया। समु देवता ने कहा िक जब भी कोई दैवीय वप आएगी इस शंख क न से ूद र हो जाएगा। समु देव से उपहार ले कर वम ने उ धवाद िदया तथा णाम ं समु तट पर एक कुिटया बनाई और साधना करने लगे। उो ने ं ले समय तक कर समु तट पर लौट आए। उो ने इतनी िकठन साधना क िक देव लोक म हड़क सच गया। सारे देवता बात करने लगे िक अगर वम इसी कार ं ं ं साधना म लीन रहे तो इ के स हासन पर अधकार कर ल गे। इ को अपना स हासन खतरे म ि दखाई देने लगा। उो ने अपने सहयोगयो ं को साधना ल के पास इतनी अधक वृ करने का आदेश िदया िक पू रा ान जलम हो जाए और वम कुिटया िसहत पानी म बह जाएँ । बस आदेश क देर थी। बत भयानक वृ शु हो गई। कुछ ही घ ो ं म सचमुच सारा ान जलम हो जाता और वम कुिटया िसहत जल म समा गए होते। ं पी लया तथा साधना ल पहले क लेि कन समु देव ने उ आशीवा द जो िदया था। उस वषा का सारा पानी उो ने ं अपने से वको ं को बु लाकर भाँ त सू खा ही रहा। इ ने जब यह अ ु त चमार देखा तो उनक चा और बढ़ गई. उो ने आँधी-तू फान का सहारा ले ने का आदेश िदया। इतने भयानक वे ग से आँधी चली िक कुिटया तनके-तनके होकर बखर गई। सब कुछ हवा म ई क भाँ त उड़ने लगा। बड़े-बड़े वृ उखड़कर गरने लगे। वम के पाँ व भी उखड़त े ए मालूम पड़े। लगा िक आँधी उ उड़ाकर साधना ल से बत ूद र फ क देगी। वम को समु देव ारा िदया गया शंख याद ं शंख को ज़ोर से फू ंका। शंख से बड़ी ती न नकली। शंख न के साथ आँधी-तू फान का पता नही ं आया और उो ने रहा। वहाँ ऐसी शा छा गई मानो कभी आँ धी आई ही न हो। अब तो इ देव क चा और अधक बढ़ गई। ���� ����� �� ������������������������
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उ सू झ नही ं रहा था िक वम क साधना कैसे भंग क जाए। अब वम क सधना को केवल अराओ ं का आकष ण ं तलोमा नामक अरा को बुलाया तथा उसे जाकर वम क साधना भंग करने को ही भंग कर सकता था। उो ने कहा। तलोमा अनु पम सुरी थी और उसका प देखकर कोई भी कामदेव के वाणो ं से घायल ए बना नही ं रह सकता था। तलोमा साधना ल पर उतरी तथा मनमोहक गायन-वादन और नृ ारा वम क साधना म व डालने क चे ा करने लगी। मगर वै रागी वम का ा बगाड़ पाती। वम ने शंख को फूँक मारी और तलोमा को ऐसा लगा जै सेि कसी ने उसे आग क ाला म ला पटका हो। भयानक ताप से वह िउ हो उठी तथा वहाँ से उसी ण अ हो ं खु द ाण का वे श धरा गई। जब यह यु भी कारगर नही ं ई तो इ का आवास पू री तरह डोल गया। उो ने और साधना ल आए। वे जानते थेि क वम याचको को कभी नराश नही ं करते ह तथा सामा नु सार दान देते ह। जब इ वम के पास वे पँचे तो वम ने उनके आने का योजन पू छा। ं वम से भा देने को कहा तथा भा के प म उनक िकठन साधना का सारा फल मां ग लया। वम ने अपनी उो ने ं कट साधना का सारा फल उ सहष दान कर िदया। साधना फल दान ा था- इ को अभयदान मल गया। उो ने ं कहा िक वम के रा म अतवृ और होकर वम क महानता का गु णगान िकया और आशीवा द िदया। उो ने ं इतना कहकर इ अनावृ नही ं होगी। कभी अकाल या सू खा नही ं पड़ेगा सारी फसल समय पर और भरपू र हो गी। अयान हो गए।
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सताइसवी ं पु तली मलयवती मलयवती नाम क सताइसवी ं पु तली ने जो कथा सु नाई वह इस कार है- विमाद बड़े यशी और तापी राजा था और राज-काज चलाने म उनका कोई मानी था। वीरता और वता का अ ु त संगम थे। उनके श ान और शा ान ं क कोई सीमा नही ं थी। वे राज-काज से बचा समय अकसर शाो ं के अयन म लगाते थे और इसी े य से उो ने राजमहल के एक िहे म वशाल पु कालय बनवा रखा था। वे एक िदन एक धा मक पढ़ रहे थे तो उ एक जगह ं राजा बल वाला सारा संग पढ़ा तो पता चला िक राजा बल बड़े दानवीर और वचन के राजा बल का संग मला। उो ने पे थे। वे इतने परामी और महान राजा थे ि क इ उनक श से डर गए। देवताओ ं ने भगवान वु से ाथ ना क ि क वे बल का कुछ उपाय कर तो वु ने वामन प धरा। वामन प धरकर उनसे सब कुछ दान म ा कर लया और उ पाताल लोक जाने को ववश कर िदया। ं वचार िकया िक जब उनक कथा वम ने पढ़ी तो सोचा िक इतने बड़े दानवीर के दश न ज़र करने िचाहए। उो ने भगवान वु क आराधना करके उ स िकया जाए तथा उनसे दैराज बल से मलने का माग पू छा जाए। ऐसा ं राज-पाट और मोह-माया से अपने आपको अलग कर लया तथा महामी को राजभार वचार मन म आते ही उो ने ं जंगल क ओर ान कर गए। जं गल म उो ने ं घोर तपा शु क और भगवान वु क ु त करने लगे। सौ पकर ं वह भी ाग िदया उनक तपा बत ली थी। शु म वे केवल एक समय का भोजन करते थे। कुछ िदनो ं बाद उो ने तथा फल और क-मू ल िआद खाकर रहने लगे। कुछ िदनो ं बाद सब कुछ ाग िदया और केवल पानी पीकर तपा करते रहे। इतनी कठोर तपा से वे बत कमज़ोर हो गए और साधारण प से उठने-बै ठने म भी उ काफ मु ल होने लगी। धीरे-धीरे उनके तपा ल के पास और भी बत सारे तपी आ गए। कोई एक पै र पर खड़ा होकर तपा करने लगा तो कोई एक हाथ उठाकर, कोई काँ टो ं पर ले टकर तपा म लीन हो गया तो कोई गरदन तक बालू म धँसकर। चारो ं ओर सफ ईर के नाम क चचा होने लगी और पव वातावरण तै यार हो गया। वम ने कुछ समय बाद जल भी ले ना छोड़ िदया और बलकुल नराहार तपा करने लगे। अब उनका शरीर और भी कमज़ोर हो गया और सफ हयो ं का ढाँ चा न आने लगा। कोई देखता तो दया आ जाती, मगर राजा विमाद को कोई चा नही ं थी। वु क आराधना करते-करते ियद उनके ाण नकल जाते तो सीधे ग जाते और ियद वु के दशन हो जाते तो दैराज बल से मलने का माग श होता। वे पू री लगन से अपने अभी क ा के लए तपारत रहे। जीवन और शरीर का उ कोई मोह नही ं रहा। राजा विमाद का लया ऐसा हो गया था िक कोई भी देखकर नही ं कह सकता था िक वे महातापी और सवे ह। राजा के समीप ही तपा करने वाले एक योगी ने उनसे पू छा िक वे इतनी घोर तपा ो ं कर रहे ह। वम का जवाब था- इहलोक से मु और परलोक सुधार के लए। तपी ने उ कहा िक तपा राजाओ ं का काम नही ं है।राजा को ���� ����� �� ������������������������
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राजकाज के लए ईर ारा ज िदया जाता है और यही उसका कम है। अगर वह राज-काज से ँमुह मोड़ता है तो अपने कम से ँमुह मोड़ता है। शाो ं म कहा गया हैि क मनु को अपने कम से मु ँह नही ं मोड़ना िचाहए। वम ने बड़े ही गंभीर ं जब उससे पू छा िक ा शाो ं म र म उससे कहा िक कम करते ए भी धम से कभी ँमुह नही ं मोड़ना िचाहए। उो ने ि कसी भी त म धम से वमु ख होने को कहा गया है तो तपी एकदम चुप हो गया। उनके तक पू ण उर ने उसे आगे कुछ पू छने लायक नही ं छोड़ा। राजा ने अपनी तपा जारी रखी। अधक नब लता के कारण एक िदन राजा बे होश हो गए और काफ देर के बाद होश म आए। वह तपी एक बार िफर उनके पास आया और उनसे तपा छोड़ देने को बोला। उसने कहा िक चू ँ िक राजा गृ ह ह, इसलए तपयो ं क भाँ त उ तप नही ं करना िचाहए। गृ ह को एक सीमा के भीतर ही रहकर तपा करनी िचाहए। जब उसने राजा को बार-बार गृ ह धम क याद िदलाई और गृ ह कम के लए े रत िकया तो राजा ने कहा िक वे मन क शा के लए तपा कर रहे ह। तपी कुछ नही ं बोला और वेि फर तपा करने लगे। कमज़ोरी तो थी ही- एक बार ं पाया िक उनका सर भगवान वु क गोद म है। ि फर वे अचे त हो गए। जब कई घ ो ं बाद वे होश म आए तो उो ने उ भगवान वु को देखकर पता चल गया िक तपा से रोकने वाला तपी और कोई नही ं यं भगवान वु थे। वम ने उठकर उ साां ग णाम िकया तो भगवान ने पू छा वे ो ं इतना कठोर तप कर रहे ह। वम ने कहा िक उ राजा बल से भ ट का राा पता करना है। भगवान वु ने उ एक शंख देकर कहा िक समु के बीचो ं-बीच पाताल ं और वही उ राजा बल लोक जाने का राा है। इस शंख को समु तट पर फूँकने के बाद उ समु देव के दश न हो गे तक पँ चने का माग बतलाएँगे। शंख देकर वु अं तयान हो गए। वु के दश न के बाद वम नेि फर से तपा के पहले वाला ा ा कर लया और वै सी ही असीम श ा कर ली। शंख ले कर वे समु के पास आए और पू री श से शंख फूँकने लगे। समु देव उपत ए और समु का पानी दो भागो ं म वभ हो गया। समु के बीचो ं-बीच अब भू म मागि दखाई देने लगा। उस माग पर राजा आगे बढ़त े रहे। काफ चलने के बाद वे पाताल लोक पँच गए। जब वे राजा बल के महल के ार पर पँ चे तो ारापालो ं ने उनसे आने का योजन पू छा। वम ने उ बताया िक राजा बल के दश न के लए मृ ुलोक के यहाँ आए ह। एक सै नक उनका संदेश ं बार-बार राजा से ले कर गया और काफ देर बाद उनसे आकर बोला िक राजा बल अभी उनसे नही ं मल सकते ह। उो ने मलने का अनुरोध िकया पर राजा बल तै यार नही ं ए। राजा ने ख और हताश होकर अपनी तलवार से अपना सर काट लया। जब हरयो ं ने यह खबर राजा बल को दी तो ं अमृत डलवाकर वम को जीवत करवा िदया। जीवत होते ही वम नेि फर राजा बल के दश न क इा उो ने जताई। इस बार हरी संदेश ले कर लौटा िक राजा बल उनसे महा शवरा के िदन मल गे। वम को लगा िक बल ने ं ि फर तलवार से अपनी गदन काट ली। सफ़ टालने के लए यह संदेश भजवाया है । उनके िदल पर चोट लगी और उो ने ं राजा बल तक वम के बलदान क खबर पँचाई। राजा बल समझ गए िक हरयो ं म खलबली सच गई और उो ने ���� ����� �� ������������������������
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ं ि फर नौकरो ं ारा अमृ त भजवाया और उनके वह ढ़ नयी है और बना भ ट िकए जाने वाला नही ं है। उो ने लए संदेश भजवाया िक भट करने को वे राज़ी ह। नौकरो ं ने अमृत छड़ककर उ जीवत िकया तथा महल म चलकर बल से भे ट करने को कहा। जब वे राजा बल से मले तो राजा बल ने उनसे इतना क उठाकर आने का कारण पू छा। वम ने कहा िक धा मक ो ं म उनके बारे म बत कुछ वणत है तथा उनक दानवीरता और ाग क चचा सव होती है, इसलए वे उनसे मलने को उुक थे। राजा बल उनसे बत स ए तथा वम को एक लाल मू ंगा उपहार म िदया और बोले ि क वह मू ंगा माँ गने पर हर वु दे सकता है। मू ंगे के बल पर असंभव काय भी संभव हो सकते ह। वम राजा बल से वदा लेकर स च होकर मृ ु लोक क ओर लौट चले। पाताल लोक के वे श ार के बाहर िफर ं भगवान वु का िदया आ शंख फूँका तो समु िफर से दो भागो ं म वही अन गहराई वाला समु बह रहा था। उो ने बँट गया और उसके बीचो ं-बीच वही भू मवाला माग कट हो गया। उस भू म माग पर चलकर वे समु तट तक पँ च गये। वह माग गायब हो गया तथा समु िफर पू ववत होकर बहने लगा। वे अपने रा क ओर चल पड़े। राे म उ एक ी वलाप करती मली। उसके बाल बखरे ए थे और चे हरे पर गहरे वषाद के भाव थे। पास आने पर पता चला िक उसके पत क मृ ु हो गई है और अब वह बुल बे सहारा है । वम का िदल उसके द ु ख को देखकर पसीज गया तथा ं उसे सां ना दी। बल वाले मू ंगे से उसके लए जीवन दान माँ गा। उनका बोलना था िक उस वधवा का मृ त पत ऐसे उो ने ं से जागा हो। ी के आन क सीमा नही ं रही। उठकर बैठ गया मानो गहरी नी द
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अाइसवी ं पु तली वै देही अाइसवी ं पु तली का नाम वै देही था और उसने अपनी कथा इस कार कही- एक बार राजा विमाद अपने शयन क ं एक सपना देखा। एक ण महल है जसम र, माणक इािद जड़े ह। महल म बड़े म गहरी ना म लीन थे। उो ने बड़े कमरे ह जनम सजावट क अिलौकक चीज़े ह। महल के चारो ं ओर उान ह और उान म हज़ारो ं तरह के सु र सु र फूलो ं से लदे पौधे ह। उन फूलो ं पर तरह-तरह क ततलयाँ मँडरा रही और भंवरो ं का गु ंजन पू रे उान म ा है। फूलो ं क सुग चारो ं ओर फैली ई है और सारा बड़ा ही मनोरम है । और शीतल हवा बह रही है और महल से कुछ द ू री पर एक योगी साधनारत है । योगी का चे हरा गौर से देखने पर वम को वह अपना हमशDल मालू म पड़ा। यह ं कोई अा सपना देखा है। सब देखते-देखते ही वम क आँ ख खु ल ग। वे समझ गए िक उो ने जगने के बाद भी सपने मि दखी हर चीज़ उ याद थी। उ अपने सपने का मतलब समझ म नही ं आया। सारा अिलौकक अव था, मगर मन क उपज नही ं माना जा सकता था। राजा ने बत सोचा पर उ याद नही ं आया िक कभी ं ऐसा कोई महल देखा हो चाहे इस तरह के िकसी महल क क ना क हो। उो ने ं पतो ं और अपने जीवन म उो ने ोतषयो ं से अपने सपने क चचा क और उ इसक ाा करने को कहा। सारे वान और पत इस नतीजे पर पँ चेि क महाराजाधराज ने सपने म ग का दश न िकया है तथा सपने का अिलौकक महल ग के राजा इ का महल है। देवता शायद उ वह महल िदखाकर उ सशरीर ग आने का नमण दे चुके है। ं कभी भी न सोचा था िक उ ग आने का इस तरह नमंण मले गा। वम यह सु नकर बड़े आय म पड़ गए। उो ने वे पतो ं से पू छने लगे ि क ग जाने का कौन सा माग होगा तथा ग याा के लए ा-ा आवकता हो सकती है। काफ मंथन के बाद सारे वानो ं ने उ वह िदशा बताई जधर से ग रोहण हो सकता था तथा उ बतलाया िक कोई पु ाा जो सतत् भगवान का रण करता है तथा धम के पथ से वचलत नही ं होता है वही ग जाने का अधकारी है। राजा ने कहा िक राजपाट चलाने के लए जानबू झकर नही तो भू ल से ही अव कोई धम व आचरण उनसे आ होगा। इसके अलावा कभी-कभी रा क समा म इतने उलझ जाते हि क उ भगवान का रण नही ं रहता है। इस पर सभी ने एक र से कहा िक ियद वे इस यो नही ं होते तो उ ग का दश न ही नही ं आ होता। सबक सलाह ं राजपु िरोहत को अपने साथ लया और ग क याा पर नकल पड़े। पतो ं के कथन के अनु सार उ याा पर उो ने के दौरान दो पु कम भी करने थे। यह याा ली और िकठन थी। वम ने अपना राजसी भे ष ाग िदया था और अ साधारण कपड़ो ं म याा कर रहे थे। राे म एक नगर म रात म वाम के लए क गए। जहाँ के थे वहाँ उ एक बू ढी औरत रोती ई मली। उसके माथे पर चा क लकर उभरी ई थी ं तथा गला रोते-रोते ँ धा जा रहा था। वम ने वत होकर उससे उसक चा का कारण पू छा तो उसने बताया िक उसका एकमा जवान बे टा सु बह ही जंगल गया, लेि कन अभी तक नही ं लौटा है। वम ने जानना चाहा िक वह जंगल िकस योजन से गया। बू ढ़ी औरत ने बताया ���� ����� �� ������������������������
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ि क उसका बे टा रोज़ सु बह म जंगल से सू खी लिकड़याँ लाने जाता है और लिकड़याँ लाकर नगर म बे चता है। लिकड़याँ बे चकर जो पासा मलता है उसी से उनका गु ज़ारा होता है। वम ने कहा िक अब तक वह नही ं आया हे तो आ जाएगा। बू ढ़ी औरत ने कहा िक जंगल बत घना है और नरभी ं जानवर ने उसे अपना ास न बना लया हो। उसने यह भी जानवरो ं से भरा पड़ा है। उसे शंका हैि क कही िं कसी िह सक बताया िक शाम से वह बत सारे लोगो ं से वनती कर चुक हैि क उसके बे टे का पता लगाए, लेि कन कोई भी जं गल जाने को तै यार नही ं आ। उसने अपनी ववशता िदखाई िक वह बू ढ़ी और नबल है, इसलए खु द जाकर पता नही ं कर सकती है। वम ने उसे आासन िदया िक वे जाकर उसे ढू ँढग।े ं वाम का वचार ाग िदया और तु र जं गल क ओर चल पड़े। थोड़ी देर बाद उो ने ं जंगल म वे श िकया तो उो ने ं देखा िक एक नौजवान कुाड़ी लेकर पे ड़ देखा िक जंगल सचमु च बत घना हो। वे चौके होकर थोड़ी ूद र आए तो उो ने पर द ु बका बै ठा है और नीचे एक शे र घात लगाए बै ठा है। वम ने कोई उपाय ँढूढकर शे र को वहाँ से भगा िदया और उस यु वक को ले कर नगर लौट आए। बुि ढया ने बे टे को देखकर वलाप करना छोड़ िदया और वम को ढेरो ं आशीवा द िदए। ं एक पु का काम िकया। इस तरह बुि ढया को चामु करके उो ने ं सु बह िफर से अपनी याा शु कर दी। चलते-चलते वे समु तट पर आए तो उो ने ं रात भर वाम करने के बाद उो ने एक ी को रोते ए देखा। ी को रोते देख वे उसके पास आए तो देखा िक एक मालवाहक जहाज खड़ा है और कुछ लोग ं उस ी से उसके रोने का कारण पू छा तो उसने बताया िक बस तीन महीने पहले उस जहाज पर सामान लाद रहे ह। उो ने उसक ववाह आ और वह गभ वती है। उसका पत इसी जहाज पर कम चारी है तथा जहाज का माल लेकर द ू र देश जा रहा है। वम ने जब उसे कहा िक इसमे परेशानी क कोई बात नही ं है और कुछ ही समय बाद उसका पत लौट आएगा तो उसने अपनी चा का कारण कुछ और ही बताया। उसने बताया िक उसने कल सपने म देखा िक एक मालवाहक जहाज समु के बीच म ही और भयानक तू फान म घर जाता है। तू फ़ान इतना ते ज है ि क जहाज के टुकड़े-टुकड़े हो जाते है और उस पर सारे सवार समु म डूब जाते ह। वह सोच रही है ि क अगर वह सपना सच नकला तो उसका ा होगा। खु द तो िकसी कार जी भी ले गी मगर उसके होने वाले बे क ं समु देवता ारा द शंख उसे देते ए कहा- यह परवरश कैसे होगी। वम को उस पर तरस आया और उो ने अपने पत को दे दो। जब भी तू फान या अ कोई ाकृतक वपदा आए तो इसे फूँक देग ा। उसके फूँक मारते ही सारी वप हल जाएगी। औरत को उन पर वास नही ं आ और वह शंकालु से उ देखने लगी। वम ने उसके चे हरे का भाव पढ़कर शंख क फूँक मारी। शंख क न ई और समु का पानी कोसो ं ूद र चला गया। उस पानी के साथ वह जहाज और उस पर के ���� ����� �� ������������������������
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सारे कम चारी भी कोसो ं ूद र चले गए। अब द ू र-द ू र तक सफ समु तट फैला न आता था। वह ी और कु छ अ लोग जो वहाँ थे है रान रह गए। उनक आँ ख फटी रह गई। जब वम ने द ु बारा शंख फूँका तो समु का पानी िफर से वहाँि हलोड़ मारने लगा। समु के पानी के साथ वह जहाज भी कम चारयो ं िसहत वापस आ गया। अब यु वती को उस शंख क चमारक श के त कोई शंका नही ं रही। उसने वम से वह शंख लेकर अपनी कृतता िजाहर क। वम उस ी को शंख देकर अपनी याा पर नकल पड़े। कु छ ूद र चलने के बाद उ एक ान पर कना पड़ा। आकाश म काली घटाएँ छा ग थी। बजलयाँ चमकने लगी थी ं। बादल के गज न से समू चा वातावरण िहलता तीत होता था। उन बजलयो ंके चमक के बीच वम को एक सफेद घोड़ा ज़मीन क ओर उतरता िदख। वम ने ान से उसक ओर देखा तभी आकाशवाणी ई“महाराजा विमाद तुारे जै सा पु ाा शायद ही कोई हो। तु मने राे म दो पु ि कए। एक बूढ़ी औरत को चामु िकया और एक ी को सफ शंका ूद र करने के लए वह अनमोल शं ख दे िदया जो समु देव ने तु तु ारी साधना से स होकर उपहार िदया था। तु ले ने के लए एक घोड़ा भे जा जा रहा है जो तु े इ के महल तक पँ चा देगा। वम ने कहा- म अकेला नही ं ँ । मे रे साथ राजपु िरोहत भी ह। उनके लए भी कोई वा हो। इतना सु नना था िक राजपु िरोहत ने कहा-राजन्, मु झे मा कर। सशरीर ग जाने से म डरता ँ। आपका सा रहा तो मरने पर ग जाऊँगा और अपने को ध समझ ँ ूगा। घोड़ा उनके पास उतरा तो सवारी के लए सब कुछ से लै स था। राजपु िरोहत से वदा ले कर वम उस पर बैठ गए। एड़ लगाते ही घोड़ा ते ज़ी से भागा और घने जंगल म पँच गया। जंगल म पँचकर उसने धरती छोड़ दी और हवा म दौड़ने लगा। यह घु ड़सवारी अाकृतक थी, इसलए काफ िकठन थी, मगर वम पू री ढ़ ता से उस पर बै ठे रहे । हवा म कुछ देर उड़ने के बाद वह घोड़ा आकाश म दौड़न े लगा। दौड़ते-दौड़ते वह इपुरी आया। ं सपने म देखा था ठीक वैसा ही सब इपु री पँ चते ही वम को वही सपनो ं वाला सोने का महल िदख पड़ा। जै सा उो ने कुछ था। चलते-चलते वे इसभा पँचे। इसभा म सारे देवता वराजमान थे । अराएँ नृ कर रही थी ।ं इ देव पी ं के साथ अपने स हासन पर वराजमान थे। देवताओ ं क सभा म वम को देखकर खलबली मच गई। वे सभी एक मानव के सशरीर ग आने पर आय िचकत थे। वम को देखकर इ खु द उनक अगवानी करने आ गए और उ अपने आसन पर बै ठने को कहा। वम ने यह कहते ए मना कर िदया िक इस आसन के यो वे नही ं ह। इ उनक नता ं कहा िक वम ने सपने म अव एक योगी को इस महल म देखा होगा। उनका और सरलता से स हो गए। उो ने ���� ����� �� ������������������������
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ं इतना पु अजत कर लया है ि क इ के महल म उ ायी वह हमश और कोई नही ं ब वे खु द ह। उो ने ान मल चु का है। इ ने उ एक मुकुट उपहार मि दया। इलोक म कुछ िदन बताकर मुकुट लेकर वम अपने रा वापस आ गए।
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उीसवी ं पु तली मानवती उीसवी ं पु तली मानवती ने इस कार कथा सु नाई- राजा विमाद वे श बदलकर रात म घू मा करते थे। ऐसे ही एक ि दन घू मते-घू मते नदी के िकनारे पँ च गए। चाँ दनी रात म नदी का जल चमकता आ बड़ा ही ारा ु त कर रहा था। वम चु पचाप नदी तट पर खड़े थे तभी उनके कानो ं म बचाओ-बचाओ क ते ज आवाज पड़ी। वे आवाज क ि दशा म दौड़े तो उ नदी क वे गवती धारा से जू झते ए दो आदमी िदखाई पड़े । गौर से देखा तो उ पता चला िक एक यु वक और एक यु वती तै रकर िकनारे आने क चे ा म ह, मगर नदी क धाराएँ उ बहाकर ले जाती ह। वम ने बड़ी फुत से नदी म छलां ग लगा दी और दोनो ं को पकड़कर िकनारे ले आए। युवती के अं ग-अं ग से यौवन छलक रहा था। वह हो जाती ं। कोई तपी भी उसे पास पाकर अपनी तपा अ पसी थी। उसका प देखकर अराएँ भी ल त छोड़ देता और गृह बनकर उसके साथ जीवन गु ज़ारने क कामना करता। दोनो ं कृत होकर अपने ाण बचाने वाले को देख रहे थे। यु वक ने बताया िक वे अपने परवार के साथ नौका से कही जा रहे थे। नदी के बीच म वे भंवर को नही ं देख सके और उनक नौका भंवर म जा फँसी। भंवर से नकलने क उन लोगो ं ने लाख कोशश क, पर सफल नही ं हो सके। उनके परवार के सारे सद उस भंवर म समा गए, लेि कन वे दोनो ंि कसी तरह यहाँ तक तै रकर आने म कामयाब हो गए। राजा ने उनका परचय पू छा तो यु वक ने बताया िक दोनो ं भाई-बहन है और सारंग देश के रहने वाले ह। वम ने कहा िक ं उ अपने साथ चलने को कहा और अपने महल क ओर उ सकुशल अपने देश भे ज िदया जाएगा। उसके बाद उो ने चल पड़े। राजमहल के नजदीक जब वे पँचे तो वम को हरयो ं ने पहचानकर णाम िकया। यु वक-यु वती को तब जाकर मालू म आ िक उ अपने ाणो ं क परवाह िकए बना बचाने वाला आदमी यं महाराजाधराज थे । अब तो वे और कृतताभरी नज़रो ं से महाराज को देखने लगे। ं नौकर-चाकरो ं को बु लाया तथा सारी सु वधाओ ं के साथ उनके ठहरने का इंतजाम करने का नदश महल पँचकर उो ने ि दया। अब तो दोनो ं का मन महाराज के त और अधक आदरभाव से भर गया। वह यु वक अपनी बहन के ववाह के लए काफ चत रहता था। उसक बहन राजकुमारयो ं से भी सु र थी, इसलए वह चाहता था िक िकसी राजा से उसक शादी हो। मगर उसक आ थक हालत अ नही ं थी और वह अपने इरादे म कामयाब नही ं हो पा रहा था। जब संयोग से राजा विमाद सो उसक भ ट हो गई तो उसने सोचा िक ो ं न वम को उसक बहन से शादी का ाव िदया जाए। यह वचार आते ही उसने अपनी बहन को ठीक से तै यार होने को कही तथा
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उसे साथ लेकर राजमहल उनसे मलने चल पड़ा। उसक बहन जब सजकर नकली तो उसका प देखने लायक था। उसके प पर देवता भी िमोहत हो जाते मनु क तो कोई बात ही नही ।ं जब वह राजमहल आया तो वम ने उससे उसका हाल-चाल पू छा तथा कहा िक उसके जाने का समु चत ब कर िदया ं जो उपकार उस पर िकये उसे आजीवन वह नही ं गया है। उसने राजा क कृतता िजाहर करते ए कहा िक उो ने भू ले गा। उसके बाद उसने वम से एक छोटा-सा उपहार ीकार करने को कहा। राजा ने मु ुराकर अपनी अनु मत दे दी। राजा को स देखकर उसने सोचा िक वे उसक बहन पर िमोहत हो गए ह। उसका हौसला बढ़ गया। उसने कहा िक वह अपनी बहन उनको उपहार देना चाहता है। वम ने कहा िक उसका उपहार उ ीकार है। अब उसको पूरा वास हो गया िक वम उसक बहन को रानी बना लगे। तभी राजा ने कहा िक आज से तु ारी बहन राजा विमाद क बहन के प म जानी जाएगी तथा उसका ववाह वह कोई यो वर ढू ँ ढकर पू रे धू म-धाम से करगे। वह वम का मु ँ ह ताकता रह गया। उसे सपने म भी नही ं भान था िक उसक बहन क सु रता को अनदेखा कर वम उसे बहन के प म ीकार करगे। ा कोई ऐय शाली राजा वषय-वासना से इतना ऊपर रह सकता है । छोड़ी देर बाद उसने संयत होकर कहा िक उदयगर का राजकुमार उदयन उसक बहन क सु रता पर िमोहत है तथा उससे ववाह क इा भी कर चु का है। राजा ने एक पंिडत को बु लाया तथा बत सारा धन भ ट के प म देकर उदयगर रा ववाह का ाव ले कर भे जा। पंिडत उसी शाम लौट गया और उसके चे हरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी ं। पू छने पर उसने बताया िक राह म कुछ डाकुओ ं ने घे रकर सब कु छ लू ट लया। सु नकर राजा रह गए। उ आय ं पंिडत को कुछ आ िक इतनी अ शासन-वा के बावजू द भी डाकू लु टेरे कैस े िसय हो गए। इस बार उो ने अािरहयो ंके साथ धन ले कर भे जा। उसी रात वम वे श बदलकर उन डाकुओ ं का पता लगाने नकल पड़े। वे उस नज न ान पर पँचे जहाँ पंिडत को लू ट लया गया था। एक तरफ उ चार आदमी बैठे िदख पड़े। राजा समझ गए िक वे लु टेरे ह। वम को कोई गुचर ं समझा। राजा ने उनसे भयभीत नही ं होने को कहा और अपने आपको भी उनक तरह एक चोर ही बताया। इस पर उो ने कहा िक वे चोर नही ं ब इ ज़तदार लोग ह और िकसी खास मसले पर वचार-वमश के लए एकां त क खोज म यहाँ पँ चे ह। राजा ने उनसे बहाना न बनाने के लए कहा और उ अपने दल म शामल कर ले ने को कहा। तब चोरो ं ने खु लासा िकया िक उन चारो ं म चार अलग-अलग खु बयाँ ह। एक चोरी का शुभ मु नकालता था, ूद सरा परे-जानवरो ं क ज़बान समझता था, तीसरा अ होने क कला जानता था तथा चौथा भयानक से भयानक यातना पाकर भी उफ़ तक
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ं यह नही ं करता था। वम ने उनका वास जीतने के लए कहा- म कही ं भी छपाया धन देख सकता ँ। जब उो ने वशे षता सु नी तो वम को अपनी टोली म शामल कर लया। ं अपने ही महल के एक िहे म चोरी करने क योजना बनाई। उस जगह पर शाही खज़ाने का कुछ माल उसके बाद उो ने ं खु शी-खु शी सारा माल झोली म डाला और छपा था। वे चोरो ं को वहाँ ले कर आए तो चारो ं चोर बड़े ही खु श ए। उो ने बाहर नकलने लगे। चौकस हरयो ं ने उ पकड़ लया। ं अपने सु बह म जब राजा के दरबार म बंदी बनाकर उ पे श िकया गया तो वे डर से पे क तरह काँ पने लगे। उो ने पाँ चवे साथी को स ं हासन पर आढ़ देखा। वे गु मसु म खड़े राजद क तीा करने लगे। मगर वम ने उ कोई द ं उनसे अपराध न करने का वचन लया और अपनी खू बयो ं का इे माल लोगो ं क नही ंि दया। उ अभयदान देकर उो ने भलाई के लए करने का आदेश िदया। चारो ं ने मन ही मन अपने राजा क महानता ीकार कर ली और भले आदमयो ं क तरह जीवन यापन का फैसला कर लया। राजा ने उ से ना म बहाल कर लया। उदयन ने भी राजा वम क मु ँहबोली बहन से शादी का ाव स होकर ीकार कर लया। शु भ मु म वम ने उसी धू म-धाम से उसक शादी उदयन के साथ कर दी जस तरह िकसी राजकु मारी क होती है।
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तीसवी ं पु तली जयली तीसवी ं पुतली जयली ने जो कथा कही वह इस कार है - राजा विमाद जतने बड़े राजा थे उतने ही बड़े तपी। ं अपने तप से जान लया िक वे अब अधक से अधक छ: महीने जी सकते ह। अपनी मृ ु को आस समझकर उो ने ं वन म एक िकुटया बनवा ली तथा राज-काज से बचा आ समय साधना म बताने लगे। एक िदन राजमहल से उो ने कुिटया क तरफ आ रहे थेि क उनक नज़र एक मृग पर पड़ी। मृ ग अ ु त था और ऐसा मृ ग वम ने कभी नही ं देखा था। ं धनु ष हाथ म ले कर द उो ने ू सरा हाथ तरकश म डाला ही था िक मृग उनके समीप आकर मनु क बोली म उनसे अपने ाणो ं क भीख माँ गने लगा। वम को उस मृग को मनुो ं क तरह बोलते ए देख बड़ा आय आ और उनका हाथ त: थम गया। वम ने उस मृ ग से पू छा िक वह मनुो ं क तरह कैसे बोल ले ता है तो वह बोला िक यह सब उनके दश न के भाव से ं उस मृ ग को पू छा िक ऐसा ो ं आ तो उसने बताना शु िकया। आ है। वम क जासा अब और बढ़ गई। उो ने “म जजात मृग नही ं ँ। मे रा ज मानव कुल म एक राजा के यहाँ आ। अ राजकुमारो ं क भाँ त मुझे भी शकार खे लने का बत शौक था। शकार के लए म अपने घोड़े पर बत ूद र तक घने जंगलो ं म घु स जाता था। एक िदन मु झे कुछ द ू री पर मृ ग होने का आभास आ और म ने आवाज़ को ल करके एक वाण चलाया। दरअसल वह आवाज़ एक ू ता साधनारत योगी क थी जो बत धीम र म मंोार कर रहा था। तीर उसे तो नही ं लगा, पर उसक कनपटी को छ आ पू रो वे ग से एक वृ के तने म घु स गया। म अपने शकार को खोजते-खोजते वहाँ तक पँचा तो पता चला मु झसे कैसा अन होने से बच गया। योगी क साधना म व पड़ा था. इसलए वह काफ ु हो गया था। उसने जब मुझे अपने सामने खड़ा पाया तो समझ गया िक वह वाण म ने चलाया था। उसने लाल आँ खो ं से घू रते ए मु झे ाप दे िदया। उसने कहा- ओ मृ ग का शकार पसंद करने वाले मू ख यु वक, आज से खु द मृ ग बन जा। आज के बाद से आखे टको ं से अपने ाणो ं क रा करता रह। उसने ाप इतनी जी दे िदया िक मु झे अपनी सफ़ाई म कुछ कहने का मौका नही ं मला। ाप क क ना से ही म भय से सहर उठा। म योगी के पैरो ं पर गर पड़ा तथा उससे ाप मु करने क ाथ ना करने लगा। म ने रो-रो कर उससे कहा ि क उसक साधना म व उ करने का मे रा कोई इरादा नही ं था और यह सब अनजाने म मु झसे हो गया। मे री आँ खो ं म पाताप के आँ सू देखकर उस योगी को दया आ गई। उसने मु झसे कहा िक ाप वापस तो नही ं लया जा सकता, लेि कन वह उस ाप के भाव को सीमत ज़र कर सकता है। म ने कहा िक जतना अधक संभव है उतना वह ाप का भाव कम कर दे तो उसने कहा- तु म मृग बनकर तब तक भटकते रहोगे जब तक महान् यशी राजा विमाद के दश न नही ं हो जाएँ। विमाद के दश न से ही तु म मनु ो ं क भाँ त बोलना शु कर दोगे। ���� ����� �� ������������������������
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ं उससे वम को अब जासा ई िक वह मनु ो ं क भाँ त बोल तो रहा है मगर मनु म परवतत नही ं आ है। उो ने पू छा- तु मृ ग प से कब मु मलेगी? कब तु म अपने वावक प को ा करोगे? वह ापत राजकुमार बोला- इससे भी मु झे मु बत शी मल जाएगी। उस योगी के कथनानु सार म अगर आपको साथ ले कर उसके पास जाऊँ तो मे रा वावक प मु झे तुर ही वापस मल जाएगा। वम खु श थेि क उनके हाथ से शाप राजकुमार क हा नही ं ई अथा उ नरपराध मनु क हा का पाप ं मृ गपी राजकुमार से पू छा- ा तु उस योगी लग जाता और वे ान तथा पाताप क आग म जल रहे होते। उो ने के नवास के बारे म कुछ पता है? ा तु म मु झे उसके पास ले कर चल सकते हो? उस राजकुमार ने कहा- हाँ, म आपको उसक िकुटया तक अभी लए चल सकता ँ। संयोग से वह योगी अभी भी इसी जंगल म थोड़ी ूद र पर साधना कर रहा है । वह मृ ग आगे-आगे चला और वम उसका अनुसरण करते -करते चलते रहे। थोड़ी ूद र चलने के पात उ एक वृ पर उलटा होकर साधना करता एक योगी िदखा। उनक समझ म आ गया िक राजकुमार इसी योगी क बात कर रहा था। वे जब समीप आए तो वह योगी उ देखते ही वृ से उतरकर सीधा खड़ा हो गया। उसने वम का अभवादन िकया तथा दश न देने के लए उ नतमक होकर धवाद िदया। वम समझ गए िक वह योगी उनक ही तीा कर रहा था। लेि कन उ जासा ई िक वह उनक तीा ो ं कर रहा था। पू छने पर उसने उ बताया िक सपने म एक िदन इ देव ने उ दश न देकर कहा था िक महाराजा विमाद ने अपने कम से देवताओ ं-सा ान ा कर लया है तथा उनके दश न ा करने वाले को इ देव या अ देवताओ ं के दश न का फल ा होता है। म इतनी िकठन साधना सफ आपके दश न का लाभ पाने के लए कर रहा था।- उस योगी ने कहा। वम ने पू छा िक अब तो उसने उनके दश न ा कर लए, ा उनसे वह कुछ और चाहता है। इस पर योगी ने उनसे उनके गले म पड़ी इ देव के मू ंगे वाली माला मां गी। राजा ने खु शी-खु शी वह माला उसे दे दी। योगी ने उनका आभार ू ए। कट िकया ही था िक ापत राजकुमार िफर से मानव बन गया। उसने पहले वम के िफर उस योगी के पाँ व छ राजकुमार को ले कर वम अपने महल आए। द ू सरे िदन अपने रथ पर उसे बठा उसके रा चल िदए। मगर उसके रा म वे श करते ही सै नको ं क टुकड़ी ने उनके रथ को चारो ं ओर से घे र लया तथा रा म वे श करने का उनका योजन पू छने लगे। राजकुमार ने अपना परचय िदया और राा छोड़ने को कहा। उसने जानना चाहा िक उसका रथ रोकने क ���� ����� �� ������������������������
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सै नको ं नेि हत कैसे क। सै नको ं ने उसे बताया िक उसके माता-पता को बी बनाकर कारागार म डाल िदया गया है और अब इस रा पर िकसी और का अधकार हो चु का है। चू ँ िक रा पर अधकार करते व राजकुमार का कुछ पता नही ं चला, इसलए चारो ं तरफ गु चर उसक तलाश म फैला िदए गये थे। अब उसके खु द हाज़र होने से नए शासक का माग और श हो गया है। राजा विमाद ने उ अपना परचय नही िं दया और खु द को राजकुमार के ूद त के प म पे श करते ए कहा िक उनका ं उस टुकड़ी के नायक को कहा िक नये शासक के सामने दो वक ह- या एक संदेश नये शासक तक भे जा जाए। उो ने ं चला जाए या यु क तै यारी करे। तो वह असली राजा और रानी को उनका रा सौ पकर उस से नानायक को बड़ अजीब लगा। उसने वम का उपहास करते ए पूछा िक यु कौन करेगा। ा वही दोनो ं यु ं तलवार नकाली और उसका सर करग।े उसको उपहास करते देख उनका ोध साँ तव आसमान पर पँच गया। उो ने धड़ से अलग कर िदया। से ना म भगदड़ मच गई। िकसी ने दौड़कर नए शासक को खबर क। वह तु र से ना ले कर उनक ओर दौड़ा। ं दोनो ं बे तालो ं का रण िकया तथा बे तालो ं ने उनका आदेश पाकर रथ को वम इस हमले के लए तै यार बै ठे थे। उो ने ं वह तलक लगाया जससे अ हो सकते थे और रथ से कूद गये। अ रहकर उो ने ं हवा म उठ लया। उो ने द ु नो ं को गाजर-मू ली क तरह काटना शु कर िदया। जब सैकड़ो सै नक मारे गए और द ु न नज़र नही ं आया तो सै नको ं म भगदड़ मच गई और राजा को वही ं छोड़ अधकां श सै नक रणे से भाग खड़ े ए। उ लगा िक कोई पै शाचक श उनका मु क़ ाबला कर रही है। नए शासक का चे हरा देखने लायक था। वह आय िचकत और भयभीत था ही, हताश भी िदख रहा था। ं उस शासक उसे हतभ देख वम ने अपनी तलवार उसक गदन पर रख दी तथा अपने वावक प म आ गए। उो ने से अपना परचय देते ए कहा िक या तो वह इसी ण यह रा छोड़कर भाग जाए या ाण द के लए तै यार रहे। वह शासक विमाद क श से परचत था तथा उनका शौय आँ खो ं से देख चु का था, अत: वह उसी ण उस रा से भाग गया। वावक राजा-रानी को उनका रा वापस िदलाकर वे अपने रा क ओर चल पड़े। राे म एक जंगल पड़ा। उस ं से अपने को बचाने को बोला। मगर महाराजा विमाद ने उसक जंगल म एक मृग उनके पास आया तथा एक स ह मदद नही ं क। वे भगवान के बनाए नयम के व नही ं जा सकते थे । स ं ह भू खा था और मृ ग िआद जानवर ही उसक ं सहं को मृ ग का शकार करने िदया। ुधा शा कर सकते थे। यह सोचते ए उो ने
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इकीसवी ं पु तली कौशा इकीसवी ं पु तली जसका नाम कौशा था, ने अपनी कथा इस कार कही- राजा विमाद वृ हो गए थे तथा अपने ं यह भी जान लया िक उनका अ अब काफ नकट है। वे राज-काज और धम काय दोनो ं म अपने को योगबल से उो ने ं वन म भी साधना के लए एक आवास बना रखा था। एक िदन उसी आवास म एक रात उ लगाए रखते थे। उो ने ं गौर से देखा तो पता चला िक सारा काश सामने वाली पिहाड़यो ं अिलौकक काश कही ं ूद र से आता मालू म पड़ा। उो ने से आ रहा है। इस काश के बीच उ एक दमकता आ सु र भवन िदखाई पड़ा। उनके मन म भवन देखने क जासा ं काली ारा द दोनो ं बे तालो ं का रण िकया। उनके आदेश पर बे ताल उ पहाड़ी पर ले आए और ई और उो ने ं बताया िक उस भवन के चारो ं ओर एक योगी ने तं उनसे बोलेि क वे इसके आगे नही ं जा सकते। कारण पू छने पर उो ने का घे रा डाल रखा है तथा उस भवन म उसका नवास है। उन घे रो ं के भीतर वही वे श कर सकता है जसका पु उस योगी से अधक हो। वम ने सच जानकर भवन क ओर कदम बढ़ा िदया । वे देखना चाहते थेि क उनका पु उस योगी से अधक है या नही ं। चलते-चलते वे भवन के वे श ार तक आ गए। एकाएक कही ं से चलकर एक अ प आया और उनके पास र हो गया। उसी समय भीतर सेि कसी का आाभरा र सु नाई पड़ा। वह अप सरककर पीछे चला गया और वे श ार साफ़ हो गया। वम अर घुसे तो वही आवाज़ उनसे उनका परचय पू छने लगी। उसने कहा िक सब कुछ साफ़-साफ़ बताया जाए नही ं तो वह आने वाले को ाप से भ कर देगा। ं देखा िक योगी उठ खड़ा आ। उो ने ं जब उसे बताया िक वे विमाद वम तब तक क म पँ च चुके थे और उो ने ं यह आशा उसे नही ं थी। योगी ने ह तो योगी ने अपने को भाशाली बताया। उसने कहा िक विमाद के दश न हो गे उनका खू ब आदर-सार िकया तथा वम से कुछ माँ गने को बोला। राजा विमाद ने उससे तमाम सु वधाओ ं िसहत वह भवन माँ ग लया। ं योगी उसी वन म कही ं चला गया। चलते-चलते वह काफ द वम को वह भवन सौ पकर ू र पँ चा तो उसक भ ट अपने गु से ई। उसके गु ने उससे इस तरह भटकने का कारण जानना चाहा तो वह बोला िक भवन उसने राजा विमाद को दान कर िदया है। उसके गु को हँसी आ गई। उसने कहा िक इस पृ ी के सव े दानवीर को वह ा दान करेगा और उसने उसे विमाद के पास जाकर ाण प म अपना भवन िफर से माँ ग ले ने को कहा। वह वे श बदलकर उस कुिटया म वम से मला जसम वे साधना करते थे। उसने रहने क जगह क याचना क। वम ने उससे अपनी इत जगह माँ गने को कहा तो उसने वह भवन माँ गा। वम ने मु ुराकर कहा िक वह भवन ो ं का ो ं छोड़कर वे उसी ं बस उसक परीा ले ने के लए उससे वह भवन लया था। समय आ गए थे। उो ने
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इस कथा के बाद इकीसवी ं पु तली ने अपनी कथा ख नही ं क। वह बोली- राजा विमाद भले ही देवताओ ं से बढ़कर गु ण वाले थे और इासन के अधकारी माने जाते थे, वे थे तो मानव ही। मृु लोक म ज लया था, इसलए एक ं इहलीला ाग दी। उनके मरते ही सव हाहाकार मच गया। उनक जा शोकाकुल होकर रोने लगी। जब ि दन उो ने उनक चता सजी तो उनक सभी रानयाँ उस चता पर सती होने को चढ़ ग। उनक चता पर देवताओ ं ने फूल ंो क वषा क। उनके बाद उनके सबसे बड़े पु को राजा घोषत िकया गया। उसका धू मधाम से तलक आ। मगर वह उनके स ं हासन पर ं नही ं बै ठ सका। उसको पता नही ं चला िक पता के स हासन पर वह ो ं नही ं बै ठ सकता है। वह उलझन म पड़ा था िक एक ं ं पु को उस स हासन ं ि दन म वम खु द आए। उो ने पर बै ठने के लए पहले देव ा करने को कहा। उो ने उसे कहा िक जस िदन वह अपने पु -ताप तथा यश से उस स ं हासन पर बै ठने लायक होगा तो वे खु द उसे म आकर बता दगे। मगर वम उसके सपने म नही ं आए तो उसे नही ं सू झा िक स ं हासन का िकया ा जाए। पं िडतो ं और ं उससे उस वानो ं के परामश पर वह एक िदन पता का रण करके सोया तो वम सपने म आए। सपने म उो ने ं स हासन को ज़मीन म गड़वा देने के लए कहा तथा उसे उै न छोड़कर अावती म अपनी नई राजधानी बनाने क ं ं कहा िक जब भी पृ ी पर सव गु ण स कोई राजा कालार म पै दा होगा, यह स हासन सलाह दी। उो ने खुद-ब-खु द उसके अधकार म चला जाएगा। पता के वाले आदेश को मानकर उसने सु बह म मजद ू रो ं को बुलवाकर एक खू ब गहरा ग ा खु दवाया तथा उस ं स हासन को उसम दबवा िदया। वह खु द अावती को नई राजधानी बनवाकर शासन करने लगा।
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बीसवी ं पु तली रानी पवती ं बीसवी ं पुतली रानी पवती ने राजा भोज को स हासन पर बै ठने क कोई च नही िं दखाते देखा तो उसे अचरज आ। उसने जानना चाहा िक राजा भोज म आज पहले वाली ता ो ं नही ं है। राजा भोज ने कहा िक राजा विमाद के देवताओ ं वाले गु णो ं क कथाएँ सु नकर उ ऐसा लगा िक इतनी वशे षताएँ एक मनु म असव ह और मानते ह िक ं ं सोचा हैि क स हासन उनम बत सारी कमयाँ है। अत: उो ने को िफर वैसे ही उस ान पर गड़वा दगे जहाँ से इसे नकाला गया है। ं हषत होकर राजा भोज को उनके राजा भोज का इतना बोलना था िक सारी पु तलयाँ अपनी रानी के पास आ ग। उो ने नण य के लए धवाद िदया। पुतलयो ं ने उ बताया िक आज से वे भी मु हो ग। आज से यह स ं हासन बना ं राजा भोज को विमाद के गु णो ं का आं शक ामी होना बतलाया तथा कहा िक इसी पु तलयो ं का हो जाएगा। उो ने ं ं ं यह भी बताया िक आज से इस स हासन योता के चलते उ इस स हासन के दश न हो पाये । उो ने क आभा कम पड़ जाएगी और धरती क सारी चीजो ं क तरह इसे भी पु राना पड़कर न होने क िया से गु ज़रना होगा। इतना कहकर उन पु तलयो ं ने राजा से वदा ली और आकाश क ओर उड़ ग। पलक झपकते ही सारी क सारी पु तलयाँ आकाश म वलीन हो गई। पु तलयो ंके जाने के बाद राजा भोज ने कम चारयो ं को बु लवाया तथा ग ा खु दवाने का नदश िदया। जब मजद ू र बु लवाकर ं गड़ढा खोद डाला गया तो वेद मो ं का पाठ करवाकर पू री जा क उपत म स हासन को ग े म दबवा िदया। मी डालकर िफर वै सा ही टीला न मत करवाया गया जस पर बै ठकर चरवाहा अपने फैसले देता था। लेि कन नया टीला वह चमार नही ंि दखा सका जो पु राने वाले टीले म था।
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उपसंहार ं कुछ भताओ ंके साथ हर लोकय सं रण म उपसंहार के प म एक कथा और मलती है। उसम स हासन के साथ पु न: दबवाने के बाद ा गुज़रा- यह वणत है। आधकारक संृत संरण म यह उपसंहार पी कथा नही ं भी मल सकती है, मगर जन साधारण म काफ चलत है। कई साल बीत गए। वह टीला इतना स हो चु का था िक सु द ू र जगहो ं से लोग उसे देखने आते थे। सभी को पता था िक ं इस टीले के नीचे अिलौकक गु णो ं वाला स हासन दबा पड़ा है। एक िदन चोरो ं के एक गरोह ने फैसला िकया िक उस ं ं टीले से मीलो ं पहले एक ग ा खोदा और कई स हासन को नकालकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर बे च देना चाहते थे। उो ने ं महीनो ं क मे हनत के बाद सुरंग खोदकर उस स हासन तक पँ चे। स ं हासन को सु रंग से बाहर लाकर एक नज न ान पर ं नकलती थी िक तोड़ने वाले को जलाने ं हथौड़ो ं के हार से उसे तोड़ना चाहा। चोट पड़ते ही ऐसी भयानक च गारी उो ने ं लगती थी। स ं हासन म इतने सारे बमू र-माण जड़े ए थेि क चोर उ स हासन से अलग करने का मोह नही ं ाग रहे थे। ं स हासन पू री तरह सोने से न मत था, इसलए चोरो ं को लगता था िक सारा सोना बेच देने पर भी कई हज़ार ण मु ाएँ मल जाएगी ं और उनके पास इतना अधक धन जमा हो जाएगा िक उनके परवार म कई पु रखो ं तक िकसी को कुछ करने क ज़रत नही ं पड़ गी। े वे सारा िदन यास करते रहे मगर उनके हारो ं से स ं हासन को री भर भी त नही ं पँची। उ े उनके हाथ च ं गारयो ं से झ ु खने लगी ं। वे थककर बैठ गए और ु लस गए और च ं गारयो ं को बार-बार देखने से उनक आँ ख द सोचते-सोचते इस नतीजे पर पँचेि क स ं हासन भु तहा है। भु तहा होने के कारण ही राजा भोज ने इसे अपने उपयोग के ं ं ऐसे मूवान स हासन लए नही ं रखा। महल म इसे रखकर ज़र ही उ कुछ परेशानी ई होगी, तभी उो ने को द ु बारा ज़मीन म दबवा िदया। वे इसका मोह राजा भोज क तरह ही ागने क सोच रहे थे। तभी उनका मु खया बोला िक ं स हासन को तोड़ा नही ं जा सकता, पर उसे इसी अवा म उठाकर ूद सरी जगह ले जाया जा सकता है। चोरो ं ने उस स ं हासन को अ तरह कपड़े म लपे ट िदया और उस ान से बत ूद र िकसी अ रा म उसे उसी प म ं ले जाने का फैसला कर लया। वे स हासन को ले कर कुछ महीनो ं क याा के बाद दण के एक रा म पँचे। वहाँ ं ं जौहरयो ं का वे श धरकर उस रा के राजा से मलने क ि कसी को उस स हासन के बारे म कुछ पता नही ं था। उो ने ं ं राजा को वह र िजड़त ण स हासन ं तै यारी क। उो ने िदखाते ए कहा िक वे बत ूद र के रहने वाले ह तथा उो ने ं अपना सारा धन लगाकर यह स हासन तै यार करवाया है। राजा ने उस स ं हासन क शु ता क जाँ च अपने रा के बड़े-बड़े सु नारो ं और जौहरयो ं से करवाई। सबने उस स ं हासन क ं सु रता और शु ता क तारीफ करते ए राजा को वह स हासन खरीद ले ने क सलाह दी। राजा ने चोरो ं को उसका मु ँहमाँ गा मू िदया और स ं हासन अपने बै ठने के लए ले लया। जब वह स ं हासन दरबार म लगाया गया तो सारा दरबार ���� ����� �� ������������������������
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संहासन बीसी
अिलौकक रोशनी से जगमगाने लगा। उसम जड़ े हीरो ं और माणो ं से बड़ी मनमोहक आभा नकल रही ं थी। राजा का ं ं मन भी ऐसे स हासन को देखकर अधक स आ। शुभ मु देखकर राजा ने स हासन क पू जा वान पंिडतो ं से करवाई और उस स ं हासन पर न बै ठने लगा। ं ं स हासन क चचा द को देखने के लए आने लगे। सभी आने ू र-द ू र तक फैलने लगी। बत ूद र-द ू र से राजा उस स हासन ं उसे ऐसा अ वाले उस राजा के भा को ध कहते, ो ि क ु त स ं हासन पर बै ठने का अवसर मला था। धीरे-धीरे यह स राजा भोज के रा तक भी पँची। स ं हासन का वण न सु नकर उनको लगा िक कही ं विमाद का स ं हासन न ं ताल अपने कम चारयो ं को बुलाकर वचार-वमशि कया और मज़द ू र बु लवाकर टीले को िफर से खु दवाया। हो। उो ने ं खु दवाने पर उनक शंका स नकली और सु रंग देखकर उ पता चल गया िक चोरो ं ने वह स हासन चु रा लया। अब ं उ यह आय आ िक वह राजा विमाद के स हासन पर आढ़ कैस े हो गया। ा वह राजा सचमु च विमाद के समक गु णो ं वाला है? ं कुछ कम चारयो ं को ले कर उस रा जाकर सब कु छ देखने का फैसला िकया। काफ िदनो ं क याा के बाद वहाँ उो ने पँ चे तो उस राजा से मलने उसके दरबार पँ चे। उस राजा ने उनका पू रा सार िकया तथा उनके आने का योजन पू छा। ं राजा भोज ने उस स हासन के बारे म राजा को सब कुछ बताया। उस राजा को बड़ा आय आ। उसने कहा िक उसे ं स हासन पर बै ठने म कभी कोई परेशानी नही ं ई। राजा भोज ने ोतषयो ं और पंिडतो ं से वमशि कया तो वे इस नष पर पँचेि क हो सकता है ि क स ं हासन अब अपना ं ं कहा िक हो सकता है िक स हासन सारा चमार खो चु का हो। उो ने अब सोने का न हो तथा र और माण काँ च के टुकड़े मा हो ं। उस राजा ने जब ऐसा सु ना तो कहा िक यह असव है । चोरो ं से उसने उसे खरीदने से पहले पू री जाँ च करवाई थी। लेि कन ं जब जौहरयो ं नेि फर से उसक जाँ च क तो उ घोर आय आ। स हासन क चमक फक पड़ गई थी तथा वह एकदम ं पीतल का हो गया था। र-माण क जगह काँ च के रंगीन टुकड़े थे। स हासन पर बै ठने वाले राजा को भी बत आय ं काफ अयन करने आ। उसने अपने ोतषयो ं और पतो ं से सलाह क तथा उ गणना करने को कहा। उो ने ं के बाद कहा िक यह चमारी स हासन अब मृत हो गया है। इसे अपव कर िदया गया और इसका भाव जाता रहा। ं ं कहा- अब इस मृ त स हासन उो ने का शाो वध से अं तम संार कर िदया जाना िचाहए। इसे जल म िवाहत कर िदया जाना िचाहए।
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