रामचरतमानस
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गोःवामी तुलसीदास लसीदास वरचत
उरकाड
Sant Tulsidas’s
Rāmcharitmānas Uttar Kānd
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रामचरतमानस
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2-
RAMCHARI TMANA S : AN I NTRODUCTION NTRODUCTION
Ramayana, considered part of Hindu Smriti, was written originally in Sanskrit by Sage Valmiki (3000 BC). Contained in 24,000 verses, this epic narrates Lord Ram of Ayodhya and his ayan (journey of life). Over a passage of time, Ramayana did not remain confined to just being a grand epic, it became a powerful symbol of India's social and cultural fabric. For centuries, its characters represented ideal role models - Ram as an ideal man, ideal husband, ideal son and a responsible ruler; Sita as an ideal wife, ideal daughter and Laxman as an ideal brother. Even today, the characters of Ramayana including Ravana (the enemy of the story) are fundamental to the grandeur cultural consciousness of India. Long after Valmiki wrote Ramayana, Goswami Tulsidas (born 16th century) wrote Ramcharitamanas in his native language. With the passage of time, Tulsi's Ramcharitmanas, also known as Tulsi-krita Ramayana, became better known among Hindus in upper India than perhaps the Bible among the rustic population in England. As with the Bible and Shakespeare, Tulsi Ramayana’s phrases have passed into the common speech. Not only are his sayings proverbial: his doctrine actually forms the most powerful religious influence in present-day Hinduism; and, though he founded no school and was never known as a Guru or master, he is everywhere accepted as an authoritative guide in religion and conduct of life. Tulsi’s Ramayana is a novel presentation of the great theme of Valmiki, but is in no sense a mere translation of the Sanskrit epic. It consists of seven books or chapters namely Bal Kand, Ayodhya Kand, Aranya Kand, Kiskindha Kand, Sundar Kand, Lanka Kand and Uttar Kand containing tales of King Dasaratha's court, the birth and boyhood of Rama and his brethren, his marriage with Sita - daughter of Janaka, his voluntary exile, the result of Kaikeyi's guile and Dasaratha's rash vow, the dwelling together of Rama and Sita in the great central Indian forest, her abduction by Ravana, the expedition to Lanka and the overthrow of the ravisher, and the life at Ayodhya after the return of the reunited pair. Ramcharitmanas is written in pure Avadhi or Eastern Hindi, in stanzas called chaupais, broken by 'dohas' or couplets, with an occasional sortha and chhand. Here, you will find the text of Uttar Kand, the 7 th and final chapter of Ramcharitmanas.
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रामचरतमानस
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ौीगणेशाय शाय नम
केककठाभनील ककठाभनील शोभाय पीतव पाण नाराचचाप नमीय जानकश
ोक सुरवर रवर वलसूपादाजच सरसजनयन सवदा दा सुूसनम ूसनम । कपनकरयुत त बधुना ना सेयमान यमान रघुवरमनश वरमनश पुंपकाढरामम ंपकाढरामम ॥१॥
कोसलेि पदकज मजुल ल कोमलावजमहेशवदत । जानक करसरोज लालत चतकःय मनभृगसगन गसगन ॥२॥ कुदइददरगरसु दइददरगरसु दर दर ु काणीककलकजलोचन
अबकापतमभीसदम नम शकरमन करमनगमोचनम गमोचनम
दोहा रहा एक दन अवध कर अत आरत पुर र लोग जहँ तहँ सोचह नार नर कृस स तन राम बयोग सगुन न होह सु दर दर सकल मन ूसन सब केर र ूभु आगवन जनाव जनु नगर रय चहँ ु फेर र कसयाद मातु सब मन अनद द अस होइ आयउ ूभु ौी अनुज ज जुत त कहन चहत अब कोइ भरत नयन भुज ज दछन फरकत बारह बार जान सगुन न मन हरष अत लागे करन बचार
। ॥३॥ । ॥ । ॥ । ॥ । ॥
रहेउ एक दन अवध अधारा । समुझत झत मन दख भयउ अपारा ॥ ु कारन कवन नाथ नह आयउ । जान कुटल टल कध मोह बसरायउ ॥१॥ अहह धय लछमन बड़भागी । राम पदारबद द ु अनुरागी रागी ॥ कपट कुटल टल मोह ूभु चीहा । ताते नाथ सग ग नह लीहा ॥२॥ ज करनी समुझै झै ूभु मोर । नह नःतार कलप सत कोर ॥ जन अवगुन न ूभु मान न काऊ । दन बधु धु अत मृदल द ुल सुभाऊ भाऊ ॥३॥ मोर जयँ भरोस ढ़ सोई । मलहह राम सगुन न सुभ भ होई ॥ बीत अवध रहह ज ूाना । अधम कवन जग मोह समाना ॥४॥
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रामचरतमानस
राम बू बैठ ठ राम
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दोहा बरह सागर महँ भरत मगन मन होत । प धर पवन सुत त आइ गयउ जनु पोत ॥१(क )॥ देख कुसासन सासन जटा मुकु कट टु कृस स गात । राम रघुपत पत जपत वत नयन जलजात ॥१(ख )॥
देखत हनमान मान अत हरषेउ उ । पुलक लक गात लोचन जल बरषेउ उ ॥ मन महँ बहत त सुख ख मानी । बोलेउ उ ौवन सुधा धा सम बानी ॥१॥ ु भाँत जासु बरहँ सोचह न गन पाँती ॥ ु दन राती । रटह ु नरतर गुन रघुकु कल ल ु तलक सुजन जन सुखदाता खदाता । आयउ कुसल सल देव मुन न ाता ॥२॥ रपु रन जीत सुजस जस सुर र गावत । सीता सहत अनुज ज ूभु आवत ॥ सुनत नत बचन बसरे सब दखा । तृषाव षावत त जम पाइ पयषा षा ॥३॥ को तुह ह तात कहाँ ते आए । मोह परम ूय बचन सुनाए नाए ॥ मात सुत त म कप हनुमाना माना । नामु मोर सुनु नु कृपानधाना पानधाना ॥४॥ दनबधु धु रघुपत पत कर क क कर । सुनत नत भरत भटेटउे उठ सादर ॥ मलत ूेम म नह दयँ समाता । नयन वत जल पुलकत लकत गाता ॥५॥ कप तव दरस सकल दख बीते । मले आजु मोह राम परते ॥ ु बार बार बझी झी कुसलाता सलाता । तो कहँ ु देउँ का ह सुनु नु ॅाता ॥६॥ एह सदेदस े सरस जग माह । कर बचार देखउे ँ कछु नाह ॥ नाहन तात उरन म तोह । अब ूभु चरत सुनावह नावह ु मोह ॥७॥ तब हनुम मत त नाइ पद माथा । कहे सकल रघुपत पत गुन न गाथा ॥ कह ु ु कप कबहँ ु कृपाल पाल गोसा । सुमरह मरह मोह दास क ना ॥८॥ ु ु छद द नज दास य रघुबबसभ स भषन षन कबहँ ु मम सुमरन मरन कर यो सुन न भरत बचन बनीत अत कप पुलकत लकत तन चरनह पर यो रघुबीर बीर नज मुख ख जासु गुन न गन कहत अग जग नाथ जो काहे न होइ बनीत परम पुनीत नीत सदगुन न सधु धु सो दोहा राम ूान ूय नाथ तुह ह सय बचन मम तात । पुन न पुन न मलत भरत सुन न हरष न दयँ समात ॥२(क )॥ सोरठा भरत चरन स नाइ तुरत रत गयउ कप राम पह । कह कुसल सल सब जाइ हरष चलेउ ूभु जान चढ़ ॥२(ख )॥ www.swargarohan.org
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हरष भरत कोसलपुर र आए । समाचार सब गुरह रह सुनाए नाए ॥ पुन न मदर दर महँ बात जनाई । आवत नगर कुसल सल रघुराई राई ॥१॥ सुनत नत सकल जननी उठ धा । कह ूभु कुसल सल भरत समुझाई झाई ॥ समाचार पुरबासह रबासह पाए । नर अ नार हरष सब धाए ॥२॥ दध दबा रोचन फल फला । नव तुलसी लसी दल मगल गल मला ला ॥ ु भर भर हेम थार भामनी । गावत चल सधु धु सधु धरगामनी रु गामनी ॥३॥ जे जैसे से ह तैसे सह े ह उट धावह । बाल बृ कहँ सग ग न लावह ॥ एक एकह कहँ बझह भाई । तुह ह देखे दयाल रघुराई राई ॥४॥ अवधपुर र ूभु आवत जानी । भई सकल सोभा कै खानी ॥ बहइ सुहावन हावन बध समीरा । भइ सरज अत नमल ल नीरा ॥५॥ दोहा हरषत गुर र परजन अनुज ज भसु सर रु बृ द द समेत त । चले भरत मन ूेम अत समुख ख कृपान पानके केत त ॥३(क )॥ बहतक चढ़ अटारह नरखह गगन बमान । ु देख मधुर र सुर र हरषत करह सुम मगल ग ल गान ॥३(ख )॥ राका सस रघुपत पत पुर र सधु धु देख हरषान । बढ़यो कोलाहल करत जनु नार तरग समान ॥३(ग )॥ इहाँ भानुकु कुल ल कमल दवाकर । कपह देखावत नगर मनोहर ॥ सुनु नु कपीस अगद गद लके कसा स े ा । पावन पुर र चर यह देसा ॥१॥ जप सब बैकु क ठ ु बखाना । बेद द पुरान रान बदत जगु जाना ॥ अवधपुर र सम ूय नह सोऊ । यह ूसग ग जानइ कोउ कोऊ ॥२॥ जमभम म मम पुर र सुहावन हावन । उर दस बह सरज पावन ॥ जा मजन ते बनह ूयासा । मम समीप नर पावह बासा ॥३॥ अत ूय मोह इहाँ के बासी । मम धामदा पुर र सुख ख रासी ॥ हरषे सब कप सुन न ूभु बानी । धय अवध जो राम बखानी ॥४॥ दोहा आवत देख लोग सब कृपास पासधु धु भगवान । नगर नकट ूभु ूेरेरउे उतरेउ भम म बमान ॥४(क )॥ उतर कहेउ ूभु पुंपकह ंपकह तुह ह कुबेबरे पह जाह ु । ूेरत रत राम चलेउ सो हरषु बरह ु ु अत ताह ु ॥४(ख )॥ ु ु आए
भरत
सग ग
सब
लोगा
।
कृस स
तन
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ौीरघुबीर बीर
बयोगा
॥
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बामदेव बस मुननायक ननायक । देखे ूभु मह धर धनु सायक ॥१॥ धाइ धरे गुर र चरन सरोह । अनुज ज सहत अत पुलक लक तनोह ॥ भट कुसल सल बझी झी मुनराया नराया । हमर कुसल सल तुहारह हारह दाया ॥२॥ सकल जह मल नायउ माथा । धम धुररध र रघुकु कलनाथा ल ु नाथा ॥ गहे भरत पुन न ूभु पद पकज कज । नमत जहह सुर र मुन न सकर कर अज ॥३॥ परे भम म नह उठत उठाए । बर कर कृपास पासधु धु उर लाए ॥ ःयामल गात रोम भए ठाढ़े । नव राजीव नयन जल बाढ़े ॥४॥ छद द राजीव लोचन वत जल तन ललत पुलकावल लकावल बनी । अत ूेम म दयँ लगाइ अनुजह जह मले ूभु भुअन अन धनी ॥ ूभु मलत अनुजह जह सोह मो पह जात नह उपमा कह । जनु ूेम अ सगार गार तनु धर मले बर सुषमा षमा लह ॥१॥ बझत झत कृपानध पानध कुसल सल भरतह बचन बेग ग न आवई । सुनु नु सवा सो सुख ख बचन मन ते भन जान जो पावई ॥ अब कुसल सल कसलनाथ आरत जान जन दरसन दयो । ब ड़त बरह बारस कृपानधान पानधान मोह कर गह लयो ॥२॥ पुन न ूभु हरष लछमन भरत मले
दोहा सुहन हन भटेटे दयँ तब परम ूेम म दोउ
लगाइ । भाइ ॥५॥
भरतानुज ज लछमन पुन न भटे । दसह ु ु बरह सभव भव दख ु मेटेटे ॥ ु ु सीता चरन भरत स नावा । अनुज ज समेत परम सुख ख पावा ॥१॥ ूभु बलोक हरषे पुरबासी रबासी । जनत बयोग बपत सब नासी ॥ ूेमातु मातुर र सब लोग नहार । कतुक क कह कृपाल पाल खरार ॥२॥ अमत प ूगटे तेह ह काला । जथाजोग मले सबह कृपाला पाला ॥ कृपा पा रघुबीर बीर बलोक । कए सकल नर नार बसोक ॥३॥ छन मह सबह मले भगवाना । उमा मरम यह काहँ ु न जाना ॥ एह बध सबह सुखी खी कर रामा । आग चले सील गुन न धामा ॥४॥ कसयाद मातु सब धाई । नरख बछ जनु धेनु नु लवाई ॥५॥ जनु दन
धेनु अत त
छद द बालक बछ तज गृहँहँ चरन बन पुर र ख वत थन ुहकार कर
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परबस धावत
ग भई
। ॥
रामचरतमानस
अत ूेम म गइ बषम
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सब मातु बयोग भव
उरकाड
7-
भेट ट बचन तह हरष
मृद द ु सुख ख
बहबध ु अगनत
कहे लहे
। ॥
दोहा भेटेउ तनय सुमाँ माँ राम चरन रत जान । रामह मलत कैके कई ईे दयँ बहत सकुचान चान ॥६(क )॥ ु लछमन सब मातह मल हरषे आसष पाइ । कैके कइ इे कहँ पुन न पुन न मले मन कर छोभु न जाइ ॥६(ख )॥ सासुह ह सबन मली बैदेदहे । चरनह लाग हरषु अत तेह ह ॥ देह असीस बझ झ कुसलाता सलाता । होइ अचल तुहार हार अहवाता ॥१॥ सब रघुपत पत मुख ख कमल बलोकह । मगल गल जान नयन जल रोकह ॥ कनक थार आरत उतारह । बार बार ूभु गात नहारह ॥२॥ नाना भाँत त नछावर करह । परमानद द हरष उर भरह ॥ कसया पुन न पुन न रघुबीरह बीरह । चतवत कृपास पासधु धु रनधीरह ॥३॥ दयँ बचारत बारह बारा । कवन भाँत लकापत कापत मारा ॥ अत सुकु कमार म ु ार जुगल गल मेरेरे बारे । नसचर सुभट भट महाबल भारे ॥४॥ लछमन परमानद द
अ सीता मगन मन
दोहा सहत ूभुह ह बलोकत मातु । पुन न पुन न पुलकत लकत गातु ॥७॥
लकापत कापत कपीस नल नीला । जामवत त अगद गद सुभसीला भसीला ॥ हनुमदाद मदाद सब बानर बीरा । धरे मनोहर मनुज ज सररा ॥१॥ भरत सनेह ह सील ॄत नेमा । सादर सब बरनह अत ूेमा ॥ देख नगरबासह कै रती । सकल सराहह ूभु पद ूीती ॥२॥ पुन न रघुपत पत सब सखा बोलाए । मुन न पद लागह ु सकल सखाए ॥ गुर र बस कुलप लपय य हमारे । इह क कृपाँ पाँ दनुज ज रन मारे ॥३॥ ए सब सखा सुनह न ुह मुन न मेरेरे । भए समर सागर कहँ बेरेरे ॥ मम हत लाग जम इह हारे । भरतह ु ते मोह अधक पआरे ॥४॥ सुन न ूभु बचन मगन सब भए । नमष नमष उपजत सुख ख नए ॥५॥ दोहा कसया के चरनह पुन न तह नायउ माथ ॥ आसष दहे हरष तुह ह ूय मम जम रघुनाथ नाथ ॥८(क )॥ सुमन मन बृ नभ सकु कल ल ु भवन चले सुखक खक द ।
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रामचरतमानस
चढ़
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अटारह
देखह
उरकाड
8-
नगर
नार
नर
बृ द द
॥८(ख )॥
कचन कलस बच सँवारे वारे । सबह धरे सज नज नज ारे ॥ बदनवार दनवार पताका केत त । सबह बनाए मगल गल हेत ॥१॥ बीथी सकल सुग गध ध सचाई चाई । गजमन रच बह राई ॥ ु चक पुराई नाना भाँत त सुम मगल ग ल साजे । हरष नगर नसान बह ु बाजे ॥२॥ जहँ तहँ नार नछावर करह । देह असीस हरष उर भरह ॥ कचन थार आरती नाना । जुबती बती सज करह सुभ भ गाना ॥३॥ करह आरती आरतहर क । रघुकु कल ल ु कमल बपन दनकर क ॥ पुर र सोभा सपत पत कयाना । नगम सेष ष सारदा बखाना ॥४॥ तेउ उ यह चरत देख ठग रहह । उमा तासु गुन न नर कम कहह ॥५॥ दोहा नार कुमु मदनी ु दनी अवध सर रघुपत पत बरह दनेस । अःत भएँ बगसत भ नरख राम राके स स ॥९(क )॥ होह सगुन न सुभ भ बबध बध बाजह गगन नसान । पुर र नर नार सनाथ कर भवन चले भगवान ॥९(ख )॥ ूभु जानी कैके कई ईे लजानी । ूथम तासु गृह ह गए भवानी ॥ ताह ूबोध बहत ख दहा । पुन न नज भवन गवन हर कहा ॥१॥ ु सुख कृपास पासधु धु जब मदर दर गए । पुर र नर नार सुखी खी सब भए ॥ गुर र बस ज लए बुलाई लाई । आजु सुघर घर सुदन दन समुदाई ॥२॥ सब ज दे ुह हरष अनुसासन सासन । रामचि ि बैठह ठह सघासन घासन ॥ मुन न बस के बचन सुहाए हाए । सुनत नत सकल बूह अत भाए ॥३॥ कहह बचन मृद द ु बू अनेका का । जग अभराम राम अभषेका ॥ अब मुनबर नबर बलब ब नह कजे । महाराज कहँ तलक करजै ॥४॥ दोहा तब मुन न कहेउ सुम म सन सुनत नत चलेउ उ हरषाइ । रथ अनेक क बह रत सँवारे वारे जाइ ॥१०(क )॥ ु बाज गज तुरत जहँ तहँ धावन पठइ पुन न मगल गल िय मगाइ । हरष समेत त बस पद पुन न स नायउ आइ ॥१०(ख )॥ ,
अवधपुर र
अत
चर
बनाई
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देवह
सुमन मन
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बृ
झर
लाई ॥
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उरकाड
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राम कहा सेवकह वकह बुलाई लाई । ूथम सखह अहवावह ु जाई ॥१॥ सुनत नत बचन जहँ तहँ जन धाए । सुीवाद ीवाद तुरत रत अहवाए ॥ पुन न कनानध भरतु हँकारे । नज कर राम जटा नआरे ॥२॥ अहवाए ूभु तीनउ भाई । भगत बछल कृपाल पाल रघुराई राई ॥ भरत भाय ूभु कोमलताई । सेष कोट सत सकह न गाई ॥३॥ पुन न नज जटा राम बबराए । गुर र अनुसासन सासन माग नहाए ॥ कर मजन ूभु भषन षन साजे । अग ग अनग ग देख सत लाजे ॥४॥ दोहा सासुह ह सादर जानकह मजन तुरत रत कराइ । दय बसन बर भषन षन अँग ग अँग ग सजे बनाइ ॥११(क )॥ राम बाम दस सोभत रमा प गुन न खान । देख मातु सब हरषी जम सुफल फल नज जान ॥११(ख )॥ सुनु नु खगेस स तेह ह अवसर ॄा सव मुन न बृ द द । चढ़ बमान आए सब सुर र देखन सुखक खक द ॥११(ग )॥ ूभु बलोक मुन न मन अनुरागा रागा । तुरत रत दय सघासन घासन मागा ॥ रब सम तेज सो बरन न जाई । बैठेठे राम जह स नाई ॥१॥ जनकसुता ता समेत रघुराई राई । पेख ख ूहरषे मुन न समुदाई दाई ॥ बेद द म तब जह उचारे । नभ सुर र मुन न जय जयत पुकारे कारे ॥२॥ ूथम तलक बस मुन न कहा । पुन न सब बूह आयसु दहा ॥ सुत त बलोक हरषी महतार । बार बार आरती उतार ॥३॥ बूह दान बबध बध दहे । जाचक सकल अजाचक कहे ॥ सघासन घासन पर भुअन अन साई । देख सुरह रह द ुदु भी बजा ॥४॥ छद द नभ द ुदु भी बाजह बपुल ल गधब धब नाचह अपछरा बृ द द परमानद द सुर र भरताद अनुज ज बभीषनागद हनुमदाद मदाद गह छ चामर यजन धनु अस चम
क क नर गावह मुन न पावह समेत ते स बराजते
। ॥ । ॥१॥
ौी सहत दनकर बस स बषन षन काम बह छब सोहई । ु नव अबुबधर ध ु र बर गात अबर बर पीत सुर र मन मोहई ॥ मुकु कटा टु ागदाद बच भषन षन अग ग अगह गह ूत सजे । अभोज भोज नयन बसाल उर भुज ज धय नर नरखत त जे ॥२॥
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10 -
दोहा वह सोभा समाज सुख ख कहत न बनइ खगेस । बरनह सारद सेष ष ौुत त सो रस जान महेस ॥१२(क )॥ भन भन अःतुत त कर गए सुर र नज नज धाम । बद द बेष बेद तब आए जहँ ौीराम ॥१२(ख )॥ ूभु सबय य कह अत आदर कृपानधान पानधान । लखेउ न काहँ मरम कछु लगे करन गुन न गान ॥१२(ग )॥ छद द जय सगुन न नगुन न प अनप प भप प दसक धराद ूचड ड नसचर ूबल खल भुज ज अवतार नर ससार सार भार बभज ज दान जय ूनतपाल दयाल ूभु सजु ज ु स तव भव जे भव
सरोमने । बल हने ॥ दख दहे । ु नमामहे ॥१॥
बषम माया बस सुरासु रासुर र नाग नर अग जग हरे । पथ थ ॅमत अमत दवस नस काल कम गुनन नन भरे ॥ नाथ कर कना बलोके बध दख ते नबहेहे । ु खेद छेदन दछ हम कहँ ु रछ राम नमामहे ॥२॥
जे यान मान बम तव भव हरन भ न आदर । ते पाइ सुर र दल भ पदादप परत हम देखत हर ॥ ु भ बःवास कर सब आस परहर दास तव जे होइ रहे । जप नाम तव बनु ौम तरह भव नाथ सो समरामहे ॥३॥ जे चरन सव अज पय य रज सुभ भ परस मुनपतनी नपतनी तर । नख नगता ता मुन न बदता दता ेलोक पावन सुरसर रसर ॥ वज कुलस लस अकु कस स ु कज जुत त बन फरत कटक कन लहे । पद कज द मुकु क द ु राम रमेस नय भजामहे ॥४॥ अयमलमनाद लमनाद त वच चार नगमागम भने । षट कध साखा पच च बीस अनेक क पन सुमन मन घने ॥ फल जुगल गल बध कट ु मधुर र बेल ल अकेल ल जेह ह आौत रहे । पलवत फलत नवल नत ससार सार बटप नमामहे ॥५॥ जे ते
ॄ अजमैतमनुभवगय भवगय कहहँ ु ु ु ु जानहँ ु नाथ हम तव
मनपर सगुन न जस
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यावह नत गावह
। ॥
रामचरतमानस
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कनायतन मन बचन
ूभु कम
सदगुनाकर नाकर बकार तज
उरकाड
11 -
देव तव
यह चरन
बर मागह हम अनुरागह रागह
। ॥६॥
दोहा सब के देखत बेदह बनती कह उदार । अतधा तधान न भए पुन न गए ॄ आगार ॥१३(क )॥ बैनते नतेय य सुनु नु सभु भु तब आए जहँ रघुबीर बीर । बनय करत गदगद गरा परत रत पुलक लक सरर ॥१३(ख )॥ छद द जय राम रमारमन समन । भव ताप भयाकु ल ल पाह जन ॥ अवधेस स सुरेरस े रमेस बभो । सरनागत मागत पाह ूभो ॥१॥ दससीस बनासन बीस भुजा जा । कृत त दर महा मह भर र जा ॥ रजनीचर बृ द द पतग ग रहे । सर पावक तेज ज ूचड ड दहे ॥२॥ मह मडल डल मडन डन चातर । धृत त सायक चाप नषग ग बर ॥ मद मोह महा ममता रजनी । तम पु पुज ज दवाकर तेज ज अनी ॥३॥ मनजात करात नपात कए । मृग ग लोग कुभोग भोग सरेन हए ॥ हत नाथ अनाथन पाह हरे । बषया बन पावँर र भल ल परे ॥४॥ बह ु रोग बयोगह लोग हए । भवद नरादर के फल ए ॥ भव सधु धु अगाध परे नर ते । पद पकज कज ूेम म न जे करते ॥५॥ अत दन मलीन दखी नतह । जह के पद पकज कज ूीत नह ॥ ु अवलब ब भवत त कथा जह के ॥ ूय सत त अनत त सदा तह क ॥६॥ नह राग न लोभ न मान मदा ॥ तह क सम बैभव भव वा बपदा ॥ एह ते तव सेवक होत मुदा दा । मुन न यागत जोग भरोस सदा ॥७॥ कर ूेम म नरतर नेम लएँ । पद पकज कज सेवत वत सु हएँ ॥ सम मान नरादर आदरह । सब सत त सुखी खी बचरत मह ॥८॥ मुन न मानस पकज कज भृ ग ग भजे । रघुबीर बीर महा रनधीर अजे ॥ तव नाम जपाम नमाम हर । भव रोग महागद मान अर ॥९॥ गुन न सील कृपा पा परमायतन । ूनमाम नरतर ौीरमन ॥ रघुन नद द नक दय घन । महपाल बलोकय दन जन ॥१०॥ दोहा बार बार बर मागउँ हरष दे ुह ौीरग । पद सरोज अनपायनी भगत सदा सतसग ग ॥१४(क )॥ बरन उमापत राम गुन न हरष गए कैलास लास । तब ूभु कपह दवाए सब बध सुखूद खूद बास ॥१४(ख )॥ www.swargarohan.org
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12 -
उरकाड
सुनु नु खगपत यह कथा पावनी । बध ताप भव भय दावनी ॥ महाराज कर सुभ भ अभषेका । सुनत नत लहह नर बरत बबेका ॥१॥ जे सकाम नर सुनह नह जे गावह । सुख ख सपत पत नाना बध पावह ॥ सुर र दल भ सुख ख कर जग माह । अतकाल तकाल रघुपत पत पुर र जाह ॥२॥ ु भ सुनह नह बमु बरत अ बषई । लहह भगत गत सपत पत नई ॥ खगपत राम कथा म बरनी । ःवमत बलास ास दख हरनी ॥३॥ ु बरत बबेक क भगत ढ़ करनी । मोह नद कहँ सु दर दर तरनी ॥ नत नव मगल गल कसलपुर र । हरषत रहह लोग सब कुर र ॥४॥ नत नइ ूीत राम पद पकज कज । सबक जहह नमत सव मुन न अज ॥ मगन गन बह ु ूकार पहराए । जह दान नाना बध पाए ॥५॥ दोहा ॄानद द मगन कप सब क ूभु पद ूीत । जात न जाने दवस तह गए मास षट बीत ॥१५॥ बसरे गृह ह सपने ुहँहँ सुध ध नाह । जम पिरोह सत त मन माह ॥ तब रघुपत पत सब सखा बोलाए । आइ सबह सादर स नाए ॥१॥ परम ूीत समीप बैठारे ठारे । भगत सुखद खद मृद द ु बचन उचारे ॥ तुह ह अत कह मोर सेवकाई वकाई । मुख ख पर केह ह बध कर बड़ाई ॥२॥ ताते मोह तुह ह अत ूय लागे । मम हत लाग भवन सुख ख यागे ॥ अनुज ज राज सपत पत बैदेदहे । देह गेह ह परवार सनेह ॥३॥ सब मम ूय नह तुहह हह समाना । मृषा षा न कहउँ मोर यह बाना ॥ सब के ूय सेवक वक यह नीती । मोर अधक दास पर ूीती ॥४॥ अब गृह ह जाह ु ु सखा ु ु सदा सबगत गत सबहत हत
दोहा सब भजेह ह ु मोह ढ़ नेम । जान करे ुह अत ूेम ॥१६॥
सुन न ूभु बचन मगन सब भए । को हम कहाँ बसर तन गए ॥ एकटक रहे जोर कर आगे । सकह न कछु कह अत अनुरागे ॥१॥ परम ूेम तह कर ूभु देखा । कहा बबध बध यान बसेषा ॥ ूभु समुख ख कछु कहन न पारह । पुन न पुन न चरन सरोज नहारह ॥२ ॥ तब ूभु भषन षन बसन मगाए । नाना रग अनप प सुहाए हाए ॥ सुीवह ीवह ूथमह पहराए । बसन भरत नज हाथ बनाए ॥३॥ ूभु ूेरत रत लछमन पहराए । लकापत कापत रघुपत पत मन भाए ॥
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रामचरतमानस
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अगद गद बैठ ठ रहा नह
डोला ।
उरकाड
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ूीत देख ूभु
ताह न बोला ॥४॥
दोहा जामवत त नीलाद सब पहराए रघुनाथ नाथ । हयँ धर राम प सब चले नाइ पद माथ ॥१७(क )॥ तब अगद गद उठ नाइ स सजल नयन कर जोर । अत बनीत बोलेउ उ बचन मनहँ ु ूेम रस बोर ॥१७(ख )॥ सुनु नु सबय य कृपा पा सुख ख सधो धो । दन दयाकर आरत बधो धो ॥ मरती बेर र नाथ मोह बाली । गयउ तुहारे हारेह कछ घाली ॥१॥ असरन सरन बरद भार । मोह जन तजह ु सभार ु भगत हतकार ॥ मोर तुह ह ूभु गुर र पतु माता । जाउँ कहाँ तज पद जलजाता ॥२॥ तुहह हह बचार कहह ु नरनाहा । ूभु तज भवन काज मम काहा ॥ बालक यान बु बल हना । राखह ु सरन नाथ जन दना ॥३॥ नीच टहल गृह ह कै सब करहउँ । पद पकज कज बलोक भव तरहउँ ॥ अस कह चरन परेउ ूभु पाह । अब जन नाथ कहह ह जाह ॥४॥ ु गृह दोहा अगद गद बचन बनीत सुन न रघुपत पत कना सीव । ूभु उठाइ उर लायउ सजल नयन राजीव ॥१८(क )॥ नज उर माल बसन मन बालतनय पहराइ । बदा कह भगवान तब बह झाइ ॥१८(ख )॥ ु ूकार स मुझाइ भरत अनुज ज सम समेता ता । पठवन चले भगत कृत त चेता ता ॥ अगद गद दयँ ूेम नह थोरा । फर फर चतव राम क ओरा ॥१॥ बार बार कर दड ूनामा । मन अस रहन कहह मोह रामा ॥ राम बलोकन बोलन चलनी । सुमर मर सुमर मर सोचत हँस मलनी ॥२॥ ूभु ख देख बनय बह उ दयँ पद पकज कज राखी ॥ ु भाषी । चलेउ अत आदर सब कप पहँ ु चाए । भाइह सहत भरत पुन न आए ॥३॥ तब सुीव ीव चरन गह नाना । भाँत त बनय कहे हनुमाना माना ॥ दन दस कर रघुपत पत पद सेवा वा । पुन न तव चरन देखहउँ देवा ॥४॥ पुय य पु ज ज तुह ह पवनकु मारा । सेवह व ुह जाइ कृपा पा आगारा ॥ अस कह कप सब चले तुररत ा । अगद गद कहइ सुनह न ुह हनुम मता त ा ॥५॥ कहे ुह
दडवत
ूभु
स
दोहा तुहह हह
कहउँ
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कर
जोर
।
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उरकाड
बार बार रघुनायकह नायकह सुरत रत कराएह मोर ॥१९(क )॥ ु अस कह चलेउ बालसुत त फर आयउ हनुम मत त । तासु ूीत ूभु सन कह मगन भए भगवत त ॥ १९(ख )॥ कुलसह लसह चाह कठोर अत कोमल कुसु समह म ु ुह चाह । ु च खगेस राम कर समुझ झ परइ कह ु काह ॥१९(ग )॥ पुन न कृपाल पाल लयो बोल नषादा । दहे भषन षन बसन ूसादा ॥ जाह भवन मरन करेह । मन म बचन धम अनुसरे सरे ह ॥१॥ ु ु ु ु मम सुमरन तुह ह मम सखा भरत सम ॅाता । सदा रहे ुह पुर र आवत जाता ॥ बचन सुनत नत उपजा सुख ख भार । परेउ चरन भर लोचन बार ॥२॥ चरन नलन उर धर गृह ह आवा । ूभु सुभाउ भाउ परजनह सुनावा नावा ॥ रघुपत पत चरत देख पुरबासी रबासी । पुन न पुन न कहह धय सुखरासी खरासी ॥३॥ राम राज बठ ेलोका लोका । हरषत भए गए सब सोका ॥ बय न कर काह सन कोई । राम ूताप बषमता खोई ॥४॥ दोहा बरनाौम नज नज धरम बनरत बेद द पथ लोग । चलह सदा पावह सुखह खह नह भय सोक न रोग ॥२०॥ दैहक दैवक भतक तापा । राम राज नह काहह यापा ॥ ु सब नर करह परःपर ूीती । चलह ःवधम नरत ौुत त नीती ॥१॥ चारउ चरन धम जग माह । पर र रहा सपने ुहँहँ अघ नाह ॥ राम भगत रत नर अ नार । सकल परम गत के अधकार ॥२॥ अपमृयु यु नह कवनउ पीरा । सब सु दर दर सब बज सररा ॥ नह दिर कोउ दखी न दना । नह कोउ अबुध ध न लछन हना ॥३॥ ु सब नदभ धमरत रत पुनी नी । नर अ नार चतुर र सब गुनी नी ॥ सब गुनय नय पडत डत सब यानी । सब कृतय तय नह कपट सयानी ॥४॥ राम काल
दोहा राज नभगेस स सुनु नु सचराचर जग माह ॥ कम सुभाव भाव गुन न कृत त दख काहह नाह ॥२१॥ ु ु
भम म स सागर मेखला खला । एक भप प रघुपत पत कोसला ॥ भुअन अन अनेक रोम ूत जास । यह ूभुता ता कछु बहत न तास ॥१॥ ु सो महमा समुझत झत ूभु केर र । यह बरनत हनता घनेर र ॥ सोउ महमा खगेस जह जानी । फर एह चरत तहहँ ु रत मानी॥२॥
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उरकाड
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सोउ जाने कर फल यह लीला । कहह महा मुनबर नबर दमसीला ॥ राम राज कर सुख ख सपदा पदा । बरन न सकइ फनीस सारदा ॥३॥ सब उदार सब पर उपकार । बू चरन सेवक वक नर नार ॥ एकनार ॄत रत सब झार । ते मन बच म पत हतकार ॥४॥ दोहा दड जतह कर भेद द जहँ नतक क जीतह मनह सुनअ नअ अस रामचि ि ु
नृय य समाज । क राज ॥२२॥
फलह फरह सदा त कानन । रहह एक सँग ग गज पचानन चानन ॥ खग मृग ग सहज बय बसराई । सबह परःपर ूीत बढ़ाई ॥१॥ कजह खग मृग ग नाना बृ दा दा । अभय चरह बन करह अनदा दा ॥ सीतल सुरभ रभ पवन बह मदा दा । ग जत जत अल लै चल मकरदा ॥२॥ लता बटप माग मधु चवह । मनभावतो धेनु नु पय वह ॥ सस सपन पन सदा रह धरनी । ेताँ ताँ भइ कृतजु तजुग ग कै करनी ॥३॥ ूगट गरह बबध मन खानी । जगदातमा भप प जग जानी ॥ सरता सकल बहह बर बार । सीतल अमल ःवाद सुखकार खकार ॥४॥ सागर नज मरजादाँ रहह । डारह र तटह नर लहह ॥ सरसज सकु कल ल ु सकल तड़ागा । अत ूसन दस दसा बभागा ॥५॥ बधु माग
दोहा मह पर र मयखह खह रब तप जेतने तनेह ह काज । बारद देह जल रामचि ि के राज ॥२३॥
कोटह बाजमेध ध ूभु कहे । दान अनेक जह कहँ दहे ॥ ौुत त पथ पालक धम धुररध र । गुनातीत नातीत अ भोग पुररद र ॥१॥ पत अनुक ल सदा रह सीता । सोभा खान सुसील सील बनीता ॥ जानत कृपास पासधु धु ूभुताई ताई । सेवत वत चरन कमल मन लाई ॥२॥ जप गृहँहँ सेवक वक सेवकनी वकनी । बपुल ल सदा सेवा वा बध गुनी नी ॥ नज कर गृह ह परचरजा करई । रामचि ि आयसु अनुसरई सरई ॥३॥ जेह बध कृपास पासधु धु सुख ख मानइ । सोइ कर ौी सेवा वा बध जानइ ॥ कसयाद सासु गृह ह माह । सेवइ सबह मान मद नाह ॥४॥ उमा रमा ॄाद बदता दता । जगदबा सततमन ततमनदता दता ॥५॥ जासु
कृपा पा
कटाछु
दोहा सुर र चाहत
चतव
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न
सोइ
।
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राम
पदारबद द
रत
उरकाड
16 -
करत
सुभावह भावह
खोइ
॥२४॥
सेवह सानकल सब भाई । राम चरन रत अत अधकाई ॥ ूभु मुख ख कमल बलोकत रहह । कबहँ ु कृपाल पाल हमह कछु कहह ॥१॥ राम करह ॅातह पर ूीती । नाना भाँत त सखावह नीती ॥ हरषत रहह नगर के लोगा । करह सकल सुर र दल भ भोगा ॥२॥ ु भ अहनस बधह मनावत रहह । ौीरघुबीर बीर चरन रत चहह ॥ दइ सुत त सुदर दर सीताँ जाए । लव कुस स बेद द पुरानह रानह गाए ॥३॥ ु दोउ बजई बनई गुन न मदर दर । हर ूतबब ब मनहँ ु अत सु सुदर दर ॥ दइ ु ु ु ु दइ ु सुत त सब ॅातह केरेरे । भए प गुन न सील घनेरे ॥४॥ दोहा यान गरा गोतीत अज माया सोइ सचदानद द घन कर नर
मन गुन न पार । चरत उदार ॥२५॥
ूातकाल सरऊ कर मजन । बैठह ठह सभाँ सग ग ज सजन ॥ बेद द पुरान रान बस बखानह । सुनह नह राम जप सब जानह ॥१॥ अनुजह जह सजु जत त ु भोजन करह । देख सकल जननी सुख ख भरह ॥ भरत सुहन हन दोनउ भाई । सहत पवनसुत त उपबन जाई ॥२॥ बझह झह बैठ ठ राम गुन न गाहा । कह हनुमान मान सुमत मत अवगाहा ॥ सुनत नत बमल गुन न अत सुख ख पावह । बहर ु ु ु ु बहर ु कर बनय कहावह॥३॥ सब क गृह ह गृह ह होह पुराना राना । रामचरत पावन बध नाना ॥ नर अ नार राम गुन न गानह । करह दवस नस जात न जानह ॥४॥ दोहा अवधपुर र बासह कर सुख ख सपदा पदा समाज । सहस सेष ष नह कह सकह जहँ नृप प राम बराज ॥२६॥ नारदाद सनकाद मुनीसा नीसा । दरसन लाग कोसलाधीसा ॥ दन ूत सकल अजोया आवह । देख नग बरागु बसरावह ॥१॥ जातप मन रचत अटार । नाना रग चर गच ढार ॥ पुर र चहँ ु पास कोट अत सु दर । रचे कँग गरा र ा रग रग बर ॥२॥ नव ह नकर अनीक बनाई । जनु घेर र अमरावत आई ॥ मह बह चा । जो बलोक मुनबर नबर मन नाचा ॥३॥ ु रग रचत गच काँचा धवल धाम ऊपर नभ चु बत बत । कलस मनहँ ु रब सस दत नदत दत ॥ ु बह ह गृह ह ूत मन दप बराजह ॥४॥ ु मन रचत झरोखा ॅाजह । गृह
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मन मन सु सुदर दर ूत
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उरकाड
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छद द दप राजह भवन ॅाजह देहर िबम ु खभ भ भीत बरच बरची कनक मन मरकत मनोहर मदरायत दरायत अजर चर फटक ार ार कपाट पुरट रट बनाइ बह बळह ु
रची खची रचे खचे
। ॥ । ॥
दोहा चा चसाला गृह ह गृह ह ूत लखे बनाइ । राम चरत जे नरख मुन न ते मन लेह ह चोराइ ॥२७॥ सुमन मन बाटका सबह लगाई । बबध भाँत कर जतन बनाई ॥ लता ललत बह हाई । फलह सदा बसत सत क नाई ॥१॥ ु जात सुहाई गु गुजत जत मधुकर कर मुखर खर मनोहर । मात बध सदा बह सु सुदर दर ॥ नाना खग बालकह जआए । बोलत मधुर र उड़ात सुहाए हाए ॥२॥ मोर हस सारस पारावत । भवनन पर सोभा अत पावत ॥ जहँ तहँ देखह नज परछाह । बह य कराह ॥३॥ ु बध कजह नृय सुक क सारका पढ़ावह बालक । कहह पत जनपालक ॥ ु राम रघुपत राज दआर सकल बध चा । बीथी चहट चर बजा ॥४॥ ु छद द बाजार चर न बनइ बरनत बःतु बनु गथ पाइए जहँ भप प रमानवास तहँ क सपदा पदा कम गाइए बैठेठे बजाज सराफ बनक अनेक क मनहँ ु कुबेबेर र ते सब सुखी खी सब सचरत सु दर दर नार नर ससु जरठ जे
। ॥ । ॥
दोहा उर बाँधे
दस सरज घाट मनोहर
बह ःवप
नमल ल पक क
जल गभीर भीर । नह तीर ॥२८॥
दर फराक चर सो घाटा । जहँ जल पअह बाज गज ठाटा ॥ पनघट परम मनोहर नाना । तहाँ न पुष ष करह अःनाना ॥१॥ राजघाट सब बध सु दर दर बर । मजह तहाँ बरन चारउ नर ॥ तीर तीर देवह के मदर दर । चहँ ु दस तह के उपबन सु दर दर ॥२॥ कहँ ु ु ु ु कहँ ु सरता तीर उदासी । बसह यान रत मुन न सयासी यासी ॥ तीर तीर तुलसका लसका सुहाई हाई । बृ द द बृ द द बह नह लगाई ॥३॥ ु मुनह
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उरकाड
18 -
पुर र सोभा कछु बरन न जाई । बाहेर नगर परम चराई ॥ देखत पुर र अखल अघ भागा । बन उपबन बापका तड़ागा ॥४॥ छद द बापी तड़ाग अनप प क प मनोहरायत सोपान सु दर दर नीर नमल ल देख सुर र मुन न बह रग कज अनेक खग कजह मधुप प ु आराम रय पकाद खग रव जनु पथक
सोहह मोहह गु गुजारह जारह हकारह
। ॥ । ॥
दोहा रमानाथ जहँ राजा सो पुर र बरन क जाइ । अनमादक सुख ख सपदा पदा रह अवध सब छाइ ॥२९॥ जहँ तहँ नर रघुपत पत गुन न गावह । बैठ ठ परसपर इहइ सखावह ॥ भजह न धामह ॥१॥ ु ूनत ूतपालक रामह । सोभा सील प गुन जलज बलोचन ःयामल गातह । पलक नयन इव सेवक वक ातह ॥ धृत त सर चर चाप तनीरह नीरह । सत त कज बन रब रनधीरह ॥२॥ काल कराल याल खगराजह । नमत राम अकाम ममता जह ॥ लोभ मोह मृगज गजथ थ करातह । मनसज कर हर जन सुखदातह खदातह ॥३॥ ससय सय सोक नबड़ तम भानुह ह । दनुज ज गहन घन दहन कृसानु सानुह ह ॥ जनकसुता ता समेत रघुबीरह बीरह । कस न भजह जन भव भीरह ॥४॥ ु भजन बह ु बासना मसक हम रासह । सदा एकरस अज अबनासह ॥ मुन न रजन भजन जन मह भारह । तुलसदास लसदास के ूभुह ह उदारह ॥५॥ दोहा एह बध नगर नार नर करह राम गुन न गान । सानुक ल सब पर रहह सतत तत कृपानधान पानधान ॥३०॥ जब ते राम ूताप खगेसा । उदत भयउ अत ूबल दनेसा सा ॥ पर र ूकास रहेउ तहँ ु लोका । बहतेह ु ु ह ु ु सुख ख बहतन ु म न सोका ॥१॥ जहह सोक ते कहउँ बखानी । ूथम अबा नसा नसानी ॥ अघ उलक क जहँ तहाँ लुकाने काने । काम ोध कैरव रव सकुचाने चाने ॥२॥ बबध कम गुन न काल सुभाऊ भाऊ । ए चकोर सुख ख लहह न काऊ ॥ मसर मान मोह मद चोरा । इह कर हनर ु ु ु ु न कवनहँ ु ओरा ॥३॥ धरम तड़ाग यान बयाना । ए पकज कज बकसे बध नाना ॥ सुख ख सतोष तोष बराग बबेका । बगत सोक ए कोक अनेका का ॥४॥
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उरकाड
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दोहा यह ूताप रब जाक उर पछले बाढ़ह ूथम जे कहे
जब करइ ूकास । ते पावह नास ॥३१॥
ॅातह सहत रामु एक बारा । सग ग परम ूय पवनकु मारा ॥ सु सुदर दर उपबन देखन गए । सब त कुसु समत ु मत पलव नए ॥१॥ जान समय सनकादक आए । तेज पु ज ज गुन न सील सुहाए हाए ॥ ॄानद द सदा लयलीना । देखत बालक बहकालीना ॥२॥ ु प धर जनु चारउ बेदा । समदरसी मुन न बगत बभेदा दा ॥ नह ॥३॥ आसा बसन यसन यह तहह । रघुपत पत चरत होइ तहँ सुनह तहाँ रहे सनकाद भवानी । जहँ घटसभव भव मुनबर नबर यानी ॥ राम कथा मुनबर नबर बह ु बरनी । यान जोन पावक जम अरनी ॥४॥ देख राम मुन न ःवागत प ँछ छ पीत
दोहा आवत हरष दडवत कह । पट ूभु बैठन ठन कहँ दह ॥३२॥
कह दडवत तीनउँ भाई । सहत पवनसुत त सुख ख अधकाई ॥ मुन न रघुपत पत छब अतुल ल बलोक । भए मगन मन सके न रोक ॥१॥ ःयामल गात सरोह लोचन । सु दरता दरता मदर दर भव मोचन ॥ एकटक रहे नमेष ष न लावह । ूभु कर जोर सीस नवावह ॥२॥ तह कै दसा देख रघुबीरा बीरा । वत नयन जल पुलक लक सररा ॥ कर गह ूभु मुनबर नबर बैठारे ठारे । परम मनोहर बचन उचारे ॥३॥ आजु धय म सुनह न ुह मुनीसा । तुहर हर दरस जाह अघ खीसा ॥ बड़े भाग पाइब सतसगा गा । बनह ूयास होह भव भगा गा ॥४॥ दोहा सत त सग ग अपबग कर कामी कहह सत त कब कोबद ौुत त सुन न जय जय जय यान
ूभु बचन हरष मुन न चार भगवत त अनत त अनामय । नगुन न जय जय गुन न सागर इदरा रमन जय भधर धर । नधान अमान मानूद ।
भव पुरान रान
कर पथ थ । सदथ थ ॥३३॥
। पुलकत लकत तन अःतुत त अनुसार सार ॥ अनघ अनेक एक कनामय ॥१॥ । सुख ख मदर दर सु दर दर अत नागर ॥ अनुपम पम अज अनाद सोभाकर ॥२॥ पावन सुजस जस पुरान रान बेद बद ॥
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उरकाड
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तय कृतय तय अयता भजन जन । नाम अनेक क अनाम नरजन ॥३॥ सब सबगत गत सब उरालय । बसस सदा हम कहँ ु परपालय ॥ द बपत भव फद बभजय जय । ॑द बस राम काम मद गजय जय ॥४॥ दोहा परमानद द कृपायतन पायतन मन ूेम म भगत अनपायनी दे ुह दे ुह भगत ूनत काम भव बारध मन सभव भव आस ास भप प मल मुन न मन रघुकु कल ल ु केतु तु तारन तरन बार ॄ
परपरन रन काम । हमह ौीराम ॥३४॥
रघुपत पत अत पावन । बध ताप भव दाप नसावन ॥ सुरधे रधेनु कलपत । होइ ूसन दजै ूभु यह ब ॥१॥ वत सुलभ लभ सकल सुख ख दायक ॥ कु भज रघुनायक नायक । सेवत दान दख दारय । दनबधु धु समता बःतारय ॥२॥ ु इरषाद नवारक । बनय बबेक बरत बःतारक ॥ मन मडन डन धरनी । देह भगत ससृ सत ृ त सर तरनी ॥३॥ मानस हस नरतर । चरन कमल बदत दत अज सकर कर ॥ सेतु ौुत त रछक । काल करम सुभाउ भाउ गुन न भछक ॥४॥ हरन सब दषन । तुलसदास लसदास ूभु भुवन वन भषन षन ॥५॥ दोहा बार अःतुत त कर ूेम सहत स नाइ । भवन सनकाद गे अत अभी बर पाइ ॥३५॥
सनकादक बध लोक सधाए । ॅातह राम चरन स नाए ॥ पछत छत ूभुह ह सकल सकुचाह चाह । चतवह सब मातसुत त पाह ॥१॥ सुन न चहह ूभु मुख ख कै बानी । जो सुन न होइ सकल ॅम हानी ॥ अतरजामी तरजामी ूभु सभ जाना । बझत झत कहह माना ॥२॥ ु काह हनुमाना जोर पान कह तब हनुम मता ता । सुनह न ुह दनदयाल भगवता ता ॥ नाथ भरत कछु प ँछन छन चहह । ूःन करत मन सकुचत चत अहह ॥३॥ तुह ह जानह भाऊ । भरतह मोह कछु अतर तर काऊ ॥ ु कप मोर सुभाऊ सुन न ूभु बचन भरत गहे चरना । सुनह न ुह नाथ ूनतारत हरना ॥४॥ नाथ न मोह केवल वल कृपा पा करउँ
कृपानध पानध
एक
दोहा सदेदहे कछु सपने ुहँहँ सोक न तुहारह हारह कृपान पानद द सदोह दोह ढठाई
।
म
सेवक
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तुह ह
मोह । ॥३६॥ जन
सुखदाई खदाई
॥
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उरकाड
21 -
सतह तह कै महमा रघुराई राई । बह द पुरानह रानह गाई ॥१॥ ु बध बेद ौीमुख ख तुह ह पुन न कह बड़ाई । तह पर ूभुह ह ूीत अधकाई ॥ सुना ना चहउँ ूभु तह कर लछन । कृपास पासधु धु गुन न यान बचछन ॥२॥ सत त असत त भेद द बलगाई । ूनतपाल मोह कहह झाई ॥ ु बुझाई सतह तह के लछन सुनु नु ॅाता । अगनत ौुत त पुरान रान बयाता ॥३॥ सत त असतह तह कै अस करनी । जम कुठार ठार चदन दन आचरनी ॥ काटइ परसु मलय सुनु नु भाई । नज गुन न देइ सुग गध ध बसाई ॥४॥ ताते अनल
सुर र दाह
दोहा सीसह चढ़त जग बलभ पीटत घनह परसु बदन यह
ौीखड ड । दड ॥३७॥
बषय अलपट पट सील गुनाकर नाकर । पर दख ख सुख ख देखे पर ॥ ु ु ु ु दख ु सुख सम अभतरपु तरपु बमद बरागी । लोभामरष हरष भय यागी ॥१॥ कोमलचत दनह पर दाया । मन बच म मम भगत अमाया ॥ सबह मानूद आपु अमानी । भरत ूान सम मम ते ूानी ॥२॥ बगत काम मम नाम परायन । सात बरत बनती मुदतायन दतायन ॥ सीतलता सरलता मयी । ज पद ूीत धम जनयी ॥३॥ ए सब लछन बसह जासु उर । जाने ुह ह तात सत त सतत तत फुर र ॥ सम दम नयम नीत नह डोलह । पष बचन कबहँ नह बोलह ॥४॥ दोहा नदा दा अःतुत त उभय सम ममता मम पद कज । ते सजन मम ूानूय गुन न मदर दर सुख ख पु पुज ज ॥३८॥ सनह र सुभाऊ भाऊ । ु असतह केर तह कर सग ग सदा दखदाई ु खलह दयँ अत ताप बसेषी षी जहँ कहँ ु नदा दा सुनह नह पराई । काम ोध मद लोभ परायन बय अकारन सब काह स । झठइ ठइ लेना झठइ ठइ देना । बोलह मधुर र बचन जम मोरा पर
िोह
पर
दार
भले ल ुहे ँ सगत गत करअ न काऊ ॥ । जम कलपह घालइ हरहाई ॥१॥ । जरह सदा पर सपत पत देखी ॥ हरषह मनहँ ु पर नध पाई ॥२॥ । नदय कपट कुटल टल मलायन ॥ जो कर हत अनहत ताह स ॥३॥ झठइ ठइ भोजन झठ ठ चबेना ना ॥ । खाइ महा अत दय कठोरा ॥४॥
दोहा रत पर
धन
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पर
अपबाद
।
रामचरतमानस
-
ते
नर
पाँवर
पापमय
उरकाड
22 -
देह
धर
मनुजाद जाद
॥३९॥
लोभइ ओढ़न लोभइ डासन । सोदर पर जमपुर र ास न ॥ काह नह बड़ाई । ःवास लेह ह जनु ज ड़ आई ॥१॥ क ज सुनह जब काह खी भए मानहँ ु जग नृपती पती ॥ कै देखह बपती । सुखी ःवारथ रत परवार बरोधी । लपट पट काम लोभ अत ोधी ॥२॥ मातु पता गुर र बू न मानह । आपु गए अ घालह आनह ॥ करह मोह बस िोह परावा । सत त सग ग हर कथा न भावा ॥३॥ अवगुन न सधु धु मदमत दमत कामी । बेद बदषक परधन ःवामी ॥ बू िोह पर िोह बसेषा । दभ कपट जयँ धर सुबेबषा षे ा ॥४॥ ऐसे ापर
अधम कछुक क
दोहा मनुज ज खल कृतजु तजुग ग ेता ता नाह । बृ द द बह ग माह ॥४०॥ ु होइहह कलजुग
पर हत सरस धम नह भाई । पर पीड़ा सम नह अधमाई ॥ ननय य सकल पुरान रान बेद द कर । कहेउँ तात जानह कोबद नर ॥१॥ नर सरर धर जे पर पीरा । करह ते सहह महा भव भीरा ॥ करह मोह बस नर अघ नाना । ःवारथ रत परलोक नसाना ॥२॥ कालप तह कहँ म ॅाता । सुभ भ अ असुभ भ कम फल दाता ॥ अस बचार जे परम सयाने । भजह मोह ससृ सत त ृ दख जाने ॥३॥ ु यागह कम सुभासु भासुभ भ दायक । भजह मोह सुर र नर मुन न नायक ॥ सत त असतह तह के गुन न भाषे । ते न परह भव जह लख राखे ॥४॥ दोहा सुनह न ुह तात माया कृत त गुन न अ दोष अनेक । गुन न यह उभय न देखअह देखअ सो अबबेक क ॥४१॥ ौीमुख ख बचन सुनत नत सब भाई । हरषे ूेम न दयँ समाई ॥ करह बनय अत बारह बारा । हनमान मान हयँ हरष अपारा ॥१॥ पुन न रघुपत पत नज मदर दर गए । एह बध चरत करत नत नए ॥ बार बार नारद मुन न आवह । चरत पुनीत नीत राम के गावह ॥२॥ नत नव चरन देख मुन न जाह । ॄलोक सब कथा कहाह ॥ सुन न बरच अतसय सुख ख मानह । पुन न पुन न तात करह न गानह ॥३॥ ु गुन सनकादक नारदह सराहह । जप ॄ नरत मुन न आहह ॥ सुन न गुन न गान समाध बसार ॥ सादर सुनह नह परम अधकार ॥४॥
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23 -
उरकाड
दोहा जीवनमु ॄपर चरत सुनह नह तज यान । जे हर कथाँ न करह रत तह के हय पाषान ॥४२॥ एक बार रघुनाथ नाथ बोलाए । बैठेठे गुर र मुन न अ ज सजन सनह रजन मम बानी । ु सकल पुरजन नह अनीत नह कछु ूभुताई ताई । सोइ सेवक वक ूयतम मम सोई ज अनीत कछु भाष भाई । बड़ भाग मानुष ष तनु पावा । साधन धाम मोछ कर ारा । सो पर दख ु कालह कमह ह
गुर र ज पुरबासी रबासी सब आए ॥ । बोले बचन भगत भव भजन जन ॥१॥ कहउँ न कछु ममता उर आनी ॥ सुनह नह ु ु ु ु करह ु जो तुहह हह सोहाई ॥२॥ । मम अनुसासन सासन मानै जोई ॥ त मोह बरजह ु भय बसराई ॥३॥ सुर र दल भ सब थह थह गावा ॥ ु भ पाइ न जेह परलोक सँवारा वारा ॥४॥
दोहा पावइ सर धुन न धुन न पछताइ । ईःवरह मया दोष लगाइ ॥४३॥
एह तन कर फल बषय न भाई । ःवगउ उ ःवप अत त दखदाई ॥ ु नर तनु पाइ बषयँ मन देह । पलट सुधा धा ते सठ बष लेह ॥१॥ ताह कबहँ ु भल कहइ न कोई । गु जा जा हइ परस मन खोई ॥ आकर चार लछ चरासी । जोन ॅमत यह जव अबनासी ॥२॥ फरत सदा माया कर ूेरा । काल कम सुभाव भाव गुन न घेरा रा ॥ कबहँ ु क कर कना नर देह । देत ईस बनु हेतु सनेह ह ॥३॥ नर तनु भव बारध कहँ ु बेरो रो । समुख ख मत अनुह ह मेरो ॥ करनधार सदगुर र ढ़ नावा । दल भ साज सुलभ लभ कर पावा ॥४॥ ु भ जो सो
दोहा न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ । कृत त नदक दक मदमत दमत आमाहन गत जाइ ॥४४॥
ज परलोक इहाँ सुख ख चहह न मम बचन ृ॑दयँ ढ़ गहह ॥ । सुन सुलभ लभ सुखद खद मारग यह भाई । भगत मोर पुरान रान ौुत त गाई ॥१॥ यान अगम ूयह ह अनेका का । साधन कठन न मन कहँ ु टेका ॥ करत क बह ु पावइ कोऊ । भ हन मोह ूय नह सोऊ ॥२॥ भ सुत त सकल सुख ख खानी । बनु सतसग ग न पावह ूानी ॥
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उरकाड
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पुय य पु ज ज बनु मलह न सता ता । सतसगत गत ससृ सत ृ त कर अता ता ॥३॥ पुय य एक जग महँ ु नह दजा । मन म बचन बू पद पजा जा ॥ सानुक ल तेह पर मुन न देवा । जो तज कपट ु करइ ज सेवा ॥४॥ औरउ एक गुपुपत त ु सकर कर भजन बना
दोहा मत सबह कहउँ कर जोर । नर भगत न पावइ मोर ॥४५॥
कहह ु भगत पथ कवन ूयासा । जोग न मख जप तप उपवासा ॥ सरल सुभाव भाव न मन कुटलाई टलाई । जथा लाभ सतोष तोष सदाई ॥१॥ मोर दास कहाइ नर आसा । करइ त कहह ु कहा बःवासा ॥ बहत कहउँ का कथा बढ़ाई । एह आचरन बःय म भाई ॥२॥ ु बैर र न बह आस न ासा । सुखमय खमय ताह सदा सब आसा ॥ अनारभ अनके त अमानी । अनघ अरोष दछ बयानी ॥३॥ ूीत सदा सजन ससगा सगा । तृन न सम बषय ःवग अपबगा ॥ भगत पछ हठ नह सठताई । द ु ु तक तक ु ु सब दर बहाई ॥४॥ मम ता
गुन न कर
दोहा ाम नाम रत गत ममता सुख ख सोइ जानइ परानद द
मद मोह । सदोह दोह ॥४६॥
सुनत नत सुधासम धासम बचन राम के । गहे सबन पद कृपाधाम पाधाम के ॥ जनन जनक गुर र बधु धु हमारे । कृपा पा नधान ूान ते यारे ॥१॥ तनु धनु धाम राम हतकार । सब बध तुह ह ूनतारत हार ॥ अस सख तुह ह बनु देइ न कोऊ । मातु पता ःवारथ रत ओऊ ॥२॥ हेतु रहत जग जुग ग उपकार । तुह ह तुहार हार सेवक वक असुरार रार ॥ ःवारथ मीत सकल जग माह । सपने ुहँहँ ूभु परमारथ नाह ॥३॥ सबके बचन ूेम रस साने । सुन न रघुनाथ नाथ दयँ हरषाने ॥ नज नज गृह ह गए आयसु पाई । बरनत ूभु बतकह सुहाई हाई ॥४॥ उमा ॄ
अवधबासी सचदानद द
नर घन
दोहा नार रघुनायक नायक
कृतारथ तारथ प । जहँ भप प ॥४७॥
एक बार बस मुन न आए । जहाँ राम सुखधाम खधाम सुहाए हाए ॥ अत आदर रघुनायक नायक कहा । पद पखार पादोदक लीहा ॥१॥
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उरकाड
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राम सुनह न ुह मुन न कह कर जोर । कृपास पासधु धु बनती कछु मोर ॥ देख देख आचरन तुहारा हारा । होत मोह मम दयँ अपारा ॥२॥ महमा अमत बेद नह जाना । म केह ह भाँत त कहउँ भगवाना ॥ उपरोहय कम अत मदा दा । बेद द पुरान रान सुमृ मत ृ त कर नदा दा ॥३॥ जब न लेउँउँ म तब बध मोह । कहा लाभ आग सुत त तोह ॥ परमातमा ॄ नर पा । होइह रघुकु कल ल ु भषन षन भपा पा ॥४॥ दोहा तब म दयँ बचारा जोग जय ॄत दान । जा कहँ ु करअ सो पैहउँ हउँ धम न एह सम आन ॥४८॥ जप तप नयम जोग नज धमा । ौुत त सभव भव नाना सुभ भ कमा ॥ यान दया दम तीरथ मजन । जहँ लग धम कहत ौुत त सजन ॥१॥ आगम नगम पुरान रान अनेका । पढ़े सुने ने कर फल ूभु एका ॥ तब पद पकज कज ूीत नरतर । सब साधन कर यह फल सु दर दर ॥२॥ छ टइ मल क मलह के धोएँ । घृत त क पाव कोइ बार बलोएँ ॥ ूेम म भगत जल बनु रघुराई राई । अभअतर तर मल कबहँ ु न जाई ॥३॥ सोइ सबय य तय सोइ पडत डत । सोइ गुन न गृह ह बयान अखडत डत ॥ दछ सकल लछन जुत त सोई । जाक पद सरोज रत होई ॥४॥ दोहा नाथ एक बर मागउँ राम कृपा पा कर दे ुह । जम जम ूभु पद कमल कबहँ ु ु घटै ु ु जन नेह ु ॥४९॥ अस कह मुन न बस गृह ह आए । कृपास पासधु धु के मन अत भाए ॥ हनमान मान भरतादक ॅाता । सग लए सेवक सुखदाता खदाता ॥१॥ पुन न कृपाल पाल पुर र बाहेर गए । गज रथ तुरग रग मगावत भए ॥ देख कृपा पा कर सकल सराहे । दए उचत जह जह तेइ इ चाहे ॥२॥ हरन सकल ौम ूभु ौम पाई । गए जहाँ सीतल अवँराई राई ॥ भरत दह नज बसन डसाई । बैठेठे ूभु सेवह वह सब भाई ॥३॥ मातसुत त तब मात करई । पुलक लक बपुष ष लोचन जल भरई ॥ हनमान मान सम नह बड़भागी । नह कोउ राम चरन अनुरागी रागी ॥४॥ गरजा जासु ूीत सेवकाई । बार बार ूभु नज मुख ख गाई ॥५॥ तेह
अवसर
मुन न
दोहा नारद आए
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करतल
बीन
।
रामचरतमानस
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गावन
लगे
राम
कल
उरकाड
26 -
करत
सदा
नबीन
॥५०॥
मामवलोकय पकज कज लोचन । कृपा पा बलोकन सोच बमोचन ॥ नील तामरस ःयाम काम अर । दय कज मकरद मधुप प हर ॥१॥ जातुधान धान बथ बल भजन जन । मुन न सजन रजन अघ गजन जन ॥ भसु सर रु सस नव बृ द द बलाहक । असरन सरन दन जन गाहक ॥२॥ भुज ज बल बपुल ल भार मह खडत डत । खर दषन बराध बध पडत डत ॥ रावनार सुखप खप भपबर पबर । जय दसरथ कुल ल कुमु मद दु सुधाकर धाकर ॥३॥ सुजस जस पुरान रान बदत नगमागम । गावत सुर र मुन न सत त समागम ॥ कानीक यलीक मद खडन डन । सब बध कुसल सल कोसला मडन डन ॥४॥ कल मल मथन नाम ममताहन । तुलसीदास लसीदास ूभु पाह ूनत जन ॥५॥ दोहा ूेम म सहत मुन न नारद बरन राम गुन न ाम । सोभासधु धु दयँ धर गए जहाँ बध धाम ॥५१॥ गरजा सुनह न ुह बसद यह कथा । म सब कह मोर मत जथा ॥ राम चरत सत कोट अपारा । ौुत त सारदा न बरनै पारा ॥१॥ राम अनत त अनत त गुनानी नानी । जम कम अनत त नामानी ॥ जल सीकर मह रज गन जाह । रघुपत पत चरत न बरन सराह ॥२॥ बमल कथा हर पद दायनी । भगत होइ सुन न अनपायनी ॥ उमा कहउँ सब कथा सुहाई हाई । जो भुसु स ड ु ड खगपतह सुनाई नाई ॥३॥ कछुक क राम गुन न कहेउँ बखानी । अब का कह सो कहह ु भवानी ॥ सुन न सुभ भ कथा उमा हरषानी । बोली अत बनीत मृद द ु बानी ॥४॥ धय धय म धय पुरार रार । सुने नउँेउँ राम गुन न भव भय हार ॥५॥ दोहा अब
तुहर हर कृपाँ पाँ कृपायतन पायतन कृतकृ तकृय य न मोह । जानेउँउँ राम ूताप ूभु चदानद द सदोह दोह ॥५२(क )॥ नाथ तवानन सस ॐवत कथा सुधा धा रघुबीर बीर । ौवन पुटह टह मन पान कर नह अघात मतधीर ॥५२(ख )॥ राम चरत जे सुनत नत अघाह । रस बसेष ष जाना तह नाह ॥ जीवनमु महामुन न जेऊ ऊ । हर गुन न सुनह नह नरतर तेऊ ऊ ॥१॥ भव सागर चह पार जो पावा । राम कथा ता कहँ ढ़ नावा ॥ बषइह कहँ पुन न हर गुन न ामा । ौवन सुखद खद अ मन अभरामा ॥२॥
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रामचरतमानस
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27 -
उरकाड
ौवनवत त अस को जग माह । जाह न रघुपत पत चरत सोहाह ॥ ते जड़ जीव नजामक घाती । जहह न रघुपत पत कथा सोहाती ॥३॥ हरचर मानस तुह ह गावा । सुन न म नाथ अमत सुख ख पावा ॥ तुह ह जो कह यह कथा सुहाई हाई । कागभसु कागभसुड ड गड़ ूत गाई ॥४॥ बरत बायस
दोहा यान बयान ढ़ राम चरन अत नेह ह । तन रघुपत पत भगत मोह परम सदेदहे ॥५३॥
नर सह महँ सुनह न ुह पुरार रार । कोउ एक होइ धम ॄतधार ॥ धमसील सील कोटक महँ कोई । बषय बमुख ख बराग रत होई ॥१॥ कोट बर मय ौुत त कहई । सयक यान सकृत त कोउ लहई ॥ यानवत त कोटक महँ कोऊ । जीवनमु सकृत त जग सोऊ ॥२॥ तह सह महँ ु सब सुख ख खानी । दल भ ॄलीन बयानी ॥ ु भ धमसील सील बर अ यानी । जीवनमु ॄपर ूानी ॥३॥ सब ते सो दल भ सुरराया रराया । राम भगत रत गत मद माया ॥ ु भ सो हरभगत काग कम पाई । बःवनाथ मोह कहह ु बुझाई ॥४॥ राम नाथ
दोहा परायन यान रत गुनागार नागार मत धीर । कहह केह ह कारन पायउ काक सरर ॥५४॥ ु
यह ूभु चरत पव सुहावा हावा । कहह पाल काग कहँ पावा ॥ ु कृपाल तुह ह केह ह भाँत सुना ना मदनार । कहह क भार ॥१॥ ु मोह अत कतुक गड़ महायानी गुन न रासी । हर सेवक वक अत नकट नवासी ॥ तेह ह केह ह हेतु काग सन जाई । सुनी नी कथा मुन न नकर बहाई ॥२॥ कहह बादा । दोउ हरभगत काग उरगादा ॥ ु कवन बध भा सबादा गर गरा सुन न सरल सुहाई हाई । बोले सव सादर सुख ख पाई ॥३॥ धय सती पावन मत तोर । रघुपत पत चरन ूीत नह थोर ॥ सुनह न ुह परम पुनीत नीत इतहासा । जो सुन न सकल लोक ॅम नासा ॥४॥ उपजइ राम चरन बःवासा । भव नध तर नर बनह ूयासा ॥५॥ ऐसअ ूःन बहगपत सो सब सादर कहहउँ
दोहा कह काग सन जाइ । सुनह न ुह उमा मन लाइ ॥५५॥
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रामचरतमानस
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उरकाड
28 -
म जम कथा सुनी नी भव मोचन । सो ूसग ग सुनु नु सुमु मुख ख सुलोचन लोचन ॥ ूथम दछ गृह ह तव अवतारा । सती नाम तब रहा तुहारा हारा ॥१॥ दछ जय तब भा अपमाना । तुह ह अत ोध तजे तब ूाना ॥ मम अनुचरह चरह कह मख भगा गा । जानह ह सो सकल ूसगा गा ॥२॥ ु तुह तब अत सोच भयउ मन मोर । दखी भयउँ बयोग ूय तोर ॥ ु सु सुदर दर बन गर सरत तड़ागा । कतुक क देखत फरउँ बेरागा ॥३॥ गर सुमे मर रे उर दस दर । नील सैल ल एक सुदर दर भर र ॥ तासु कनकमय सखर सुहाए हाए । चार चा मोरे मन भाए ॥४॥ तह पर एक एक बटप बसाला । बट पीपर पाकर रसाला ॥ सैलोपर लोपर सर सु दर दर सोहा । मन सोपान देख मन मोहा ॥५॥ सीतल कजत
दोहा अमल मधुर र जल जलज कल रव हस गन गु गुजत जत
बपुल ल बहर ु ग । मजु मजुल ल भृ ग ग ॥५६॥
तेह ह गर चर बसइ खग सोई । तासु नास कपात त न होई ॥ माया कृत त गुन न दोष अनेका का । मोह मनोज आद अबबेका का ॥१॥ रहे याप समःत जग माह । तेह ह गर नकट कबहँ ु नह जाह ॥ तहँ बस हरह भजइ जम कागा । सो सुनु नु उमा सहत अनुरागा रागा ॥२॥ पीपर त तर यान सो धरई । जाप जय पाकर तर करई ॥ आँब ब छाहँ कर मानस पजा जा । तज हर भजनु काजु नह दजा ॥३॥ बर तर कह हर कथा ूसगा गा । आवह सुनह नह अनेक बहगा ॥ राम चरत बची बध नाना । ूेम सहत कर सादर गाना ॥४॥ सुनह नह सकल मत बमल मराला । बसह नरतर जे तेह ह ताला ॥ जब म जाइ सो कतुक क देखा । उर उपजा आनद द बसेषा षा ॥५॥ दोहा तब कछु काल मराल तनु धर तहँ कह नवास । सादर सुन न रघुपत पत गुन न पुन न आयउँ कैलास लास ॥५७॥ गरजा कहेउँ सो सब इतहासा । म जेह समय अब सो कथा सुनह न ुह जेह हेत । गयउ काग पह जब रघुनाथ नाथ कह रन ड़ा । समुझत झत चरत इिजीत कर आपु बँधायो धायो । तब नारद मुन न बधन धन काट गयो उरगादा । उपजा दयँ ूभु बधन धन समुझत झत बह ती । करत बचार ु भाँती www.swargarohan.org
गयउँ खग पासा ॥ खग कुल ल केत त ॥१॥ होत मोह ॄीड़ा ॥ गड़ पठायो ॥२॥ ूचड ड बषादा ॥ उरग आराती ॥३॥
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उरकाड
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यापक ॄ बरज बागीसा । माया मोह पार परमीसा ॥ सो अवतार सुने नउँउे ँ जग माह । देखउँउे ँ सो ूभाव कछु नाह ॥४॥ भव खच
बधन धन ते नसाचर
छटह बाँधे धउे
दोहा नर जप जा नागपास सोइ
कर नाम । राम ॥५८॥
नाना भाँत त मनह समुझावा झावा । ूगट न यान दयँ ॅम छावा ॥ खेद द खन मन तक तक बढ़ाई । भयउ मोहबस तुहरह हरह नाई ॥१॥ याकु ल ल गयउ देवरष पाह । कहेस जो ससय सय नज मन माह ॥ नु खग ूबल राम कै माया ॥२॥ सुन न नारदह लाग अत दाया । सुनु जो यानह कर चत अपहरई । बरआई बमोह मन करई ॥ जेह बह ु बार नचावा मोह । सोइ यापी बहगपत तोह ॥३॥ महामोह उपजा उर तोर । मटह न बेग ग कह कह खग मोर ॥ चतुरानन रानन पह जाह सा । सोइ करे ुह जेह होइ नदेसा ॥४॥ ु खगेसा दोहा अस कह चले देवरष करत राम गुन न गान । हर माया बल बरनत पुन न पुन न परम सुजान जान ॥५९॥ तब खगपत बरच पह गयऊ । नज सदेदहे सुनावत नावत भयऊ ॥ सुन न बरच रामह स नावा । समुझ झ ूताप ूेम म अत छावा ॥१॥ मन महँ ु करइ बचार बधाता । माया बस कब कोबद याता ॥ हर माया कर अमत ूभावा । बपुल ल बार जेह ह मोह नचावा ॥२॥ अग जगमय जग मम उपराजा । नह आचरज मोह खगराजा ॥ तब बोले बध गरा सुहाई हाई । जान महेस राम ूभुताई ताई ॥३॥ बैनते नतेय सकर कर पह जाह छह ु ु जन काह ॥ । तात अनत पछह ु ु तहँ होइह तव ससय सय हानी । चलेउ उ बहग सुनत नत बध बानी ॥४॥ परमातुर र बहगपत जात रहेउँ कुबेबर रे
दोहा आयउ तब मो पास । गृह ह रहह उमा कैलास लास ॥६०॥ ु
तेह ह मम पद सादर स नावा । पुन न आपन सदेदहे सुनावा नावा ॥ सुन न ता कर बनती मृद द ु बानी । परेम सहत म कहेउँ भवानी ॥१॥ मले ुह ह गड़ मारग महँ मोह । कवन भाँत त समुझाव झाव तोह ॥
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तबह होइ सब ससय सय भगा गा । सुनअ नअ तहाँ हर कथा सुहाई हाई जेह महँ ु आद मय अवसाना नत हर कथा होत जहँ भाई जाइह सुनत नत सकल सदेदहे ा ।
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जब बह गा ॥२॥ ु काल करअ सतसगा । नाना भाँत त मुनह नह जो गाई ॥ । ूभु ूतपा राम भगवाना ॥३॥ । पठवउँ तहाँ सुनह नह तुह ह जाई ॥ राम चरन होइह अत नेहा ॥४॥
दोहा बनु सतसग ग न हर कथा तेह ह बनु मोह न भाग । मोह गएँ बनु राम पद होइ न ढ़ अनुराग राग ॥६१॥ मलह न रघुपत पत बनु अनुरागा रागा । कएँ जोग तप यान बरागा ॥ उर दस सु दर दर गर नीला । तहँ रह काकभुसु सुड ड सुसीला ॥१॥ राम भगत पथ परम ूबीना । यानी गुन न गृह ह बह ु कालीना ॥ राम कथा सो कहइ नरतर । सादर सुनह नह बबध बहगबर ॥२॥ जाइ सुनह न ुह तहँ हर गुन न भर र । होइह मोह जनत दख ु ु ु ु दर ॥ म जब तेह ह सब कहा बुझाई झाई । चलेउ उ हरष मम पद स नाई ॥३॥ ताते उमा न म समुझावा झावा । रघुपत पत कृपाँ पाँ मरमु म पावा ॥ होइह कह कबहँ ु अभमाना । सो खवै चह कृपानधाना पानधाना ॥४॥ कछु तेह ते पुन न म नह राखा । समुझइ झइ खग खगह कै भाषा ॥ ूभु माया बलवत त भवानी । जाह न मोह कवन अस यानी ॥५॥ दोहा यान भगत सरोमन भुवनपत वनपत ताह मोह माया नर पावँर र करह
कर जान । गुमान मान ॥६२(क )॥
,
सव बरच कहँ ु मोहइ को है बपुरा रा आन । अस जयँ जान भजह मुन न माया पत भगवान ॥६२(ख )॥ गयउ देख कर बृ कथा आवत
गड़ जहँ बसइ भुसु स डा डु ा । सैल ल ूसन मन भयऊ । तड़ाग मजन जलपाना । बृ बहग तहँ आए । अरभ करै सोइ चाहा । देख सकल खगराजा ।
मत अकु ठ हर भगत अखडा डा ॥ माया मोह सोच सब गयऊ ॥१॥ बट तर गयउ दयँ हरषाना ॥ सुनै नै राम के चरत सुहाए हाए ॥२॥ तेह समय गयउ खगनाहा ॥ हरषेउ बायस सहत समाजा ॥३॥
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उरकाड
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अत आदर खगपत कर कहा । ःवागत पछ छ सुआसन आसन दहा ॥ कर पजा जा समेत अनुरागा रागा । मधुर र बचन तब बोलेउ कागा ॥४॥ दोहा नाथ कृतारथ तारथ भयउँ म तव दरसन खगराज । आयसु दे ुह सो कर अब ूभु आयह ह काज ॥६३(क )॥ ु केह सदा कृतारथ तारथ प तुह ह कह मृद द ु बचन खगेस । जेह कै अःतुत त सादर नज मुख ख कह महेस ॥६३(ख )॥ सुनह न ुह तात जेह ह कारन आयउँ । सो सब भयउ दरस तव पायउँ ॥ देख परम पावन तव आौम । गयउ मोह ससय सय नाना ॅम ॥१॥ अब ौीराम कथा अत पावन । सदा सुखद खद दख पु पुज ज नसावन ॥ ु सादर तात सुनावह नावह ु मोह । बार बार बनवउँ ूभु तोह ॥२॥ सुनत नत गड़ कै गरा बनीता । सरल सुूेूम म े सुखद खद सुपुपुनीता नीता ॥ भयउ तासु मन परम उछाहा । लाग कहै रघुपत पत गुन न गाहा ॥३॥ ूथमह अत अनुराग राग भवानी । रामचरत सर कहेस बखानी ॥ पुन न नारद कर मोह अपारा । कहेस बहर रावन अवतारा ॥४॥ ु ूभु अवतार कथा पुन न गाई । तब ससु चरत कहेस मन लाई ॥५॥ बालचरत कह रष आगवन
दोहा बबध बध मन महँ परम उछाह । कहेस पुन न ौी रघुबीर बीर बबाह ॥६४॥
बहर राम अभषेक ूसगा गा । पुन न नृप प बचन राज रस भगा गा ॥ ु पुरबासह रबासह कर बरह बषादा । कहेस राम लछमन सबादा बादा ॥१॥ बपन गवन केवट वट अनुरागा रागा । सुरसर रसर उतर नवास ूयागा ॥ बालमीक ूभु मलन बखाना । चकट जम बसे भगवाना ॥२॥ सचवागवन नगर नृप प मरना । भरतागवन ूेम बह ु बरना ॥ कर नृप प या सग ग पुरबासी रबासी । भरत गए जहँ ूभु सुख ख रासी ॥३॥ पुन न रघुपत पत बह झाए । लै पादका अवधपुर र आए ॥ ु ु बध समुझाए भरत रहन सुरपत रपत सुत त करनी । ूभु अ अ भट पुन न बरनी ॥४॥ दोहा कह बराध बध जेह बध बरन सुतीछन तीछन ूीत पुन न ूभु
देह तजी सरभग ग ॥ अगःत सतसग ग ॥६५॥
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कह दडक बन पावनताई । गीध मइी पुन न तेह ह गाई ॥ पुन न ूभु पचवट चवट कृत त बासा । भजी जी सकल मुनह नह क ासा ॥१॥ पुन न लछमन उपदेस अनपा पा । सपनखा पनखा जम कह कुपा पा ॥ खर दषन बध बहर बखाना । जम सब मरमु दसानन जाना ॥२॥ ु दसक धर मारच बतकह । जेह बध भई सो सब तेह ह कह ॥ पुन न माया सीता कर हरना । ौीरघुबीर बीर बरह कछु बरना ॥३॥ पुन न ूभु गीध या जम कह । बध कबध ध सबरह गत दह ॥ बहर बरह बरनत रघुबीरा बीरा । जेह ह बध गए सरोबर तीरा ॥४॥ ु दोहा ूभु नारद सबाद बाद कह मात मलन ूसग ग । पुन न सुीव ीव मताई बाल ूान कर भग ग ॥६६((क )॥ कपह तलक कर ूभु कृत त सैल ल ूबरषन बास । बरनन बषा सरद अ राम रोष कप ास ॥६६(ख )॥ जेह बबर सुन न लकाँ काँ बन आए सेन मला
बध कपपत कस पठाए । सीता खोज सकल दस धाए ॥ ूबेस कह जेह भाँती ती । कपह बहोर मला सपाती पाती ॥१॥ सब कथा समीरकु मारा । नाघत भयउ पयोध अपारा ॥ कप ूबेस स जम कहा । पुन न सीतह धीरजु जम दहा ॥२॥ उजार रावनह ूबोधी । पुर र दह नाघेउ बहर पयोधी ॥ ु कप सब जहँ रघुराई राई । बैदेदहे क कुसल सल सुनाई नाई ॥३॥ समेत त जथा रघुबीरा बीरा । उतरे जाइ बारनध तीरा ॥ बभीषन जेह बध आई । सागर नह कथा सुनाई नाई ॥४॥ दोहा सेतु बाँध कप सेन न जम उतर सागर पार । गयउ बसीठ बीरबर जेह ह बध बालकु मार ॥६७(क )॥ नसचर कस लराई बरनस बबध ूकार । कु भकरन घननाद कर बल पष सघार घार ॥६७(ख )॥
नसचर नकर मरन बध नाना । रघुपत पत रावन समर बखाना ॥ रावन बध मदोदर दोदर सोका । राज बभीषण देव असोका ॥१॥ सीता रघुपत पत मलन बहोर । सुरह रह कह अःतुत त कर जोर ॥ पुन न पुंपक ंपक चढ़ कपह समेता ता । अवध चले ूभु कृपा पा नके ता ॥२॥ जेह बध राम नगर नज आए । बायस बसद चरत सब गाए ॥ कहेस बहोर राम अभषैका का । पुर र बरनत नृपनीत पनीत अनेका का ॥३॥ www.swargarohan.org
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कथा समःत भुसु स ड डु बखानी । जो म तुह ह सन कह भवानी ॥ सुन न सब राम कथा खगनाहा । कहत बचन मन परम उछाहा ॥४॥ सोरठा गयउ मोर सदेदहे सुने नउे ँ सकल रघुपत पत चरत । भयउ राम पद नेह ह तव ूसाद बायस तलक ॥६८(क )॥ मोह भयउ अत मोह ूभु बधन धन रन महँ ु नरख । चदानद द सदोह दोह राम बकल कारन कवन ।६८(ख )॥ देख चरत अत नर अनुसार सार । भयउ दयँ मम ससय सय भार ॥ सोइ ॅम अब हत कर म माना । कह अनुह ह कृपानधाना पानधाना ॥१॥ जो अत आतप याकु ल ल होई । त छाया सुख ख जानइ सोई ॥ ज नह होत मोह अत मोह । मलतेउँउँ तात कवन बध तोह ॥२॥ सुनते नतेउँउँ कम हर कथा सुहाई हाई । अत बच बह ह गाई ॥ ु बध तुह नगमागम पुरान रान मत एहा । कहह स मुन न नह सदेदहे ा ॥३॥ सत त बसु मलह पर तेह ह । चतवह राम कृपा पा कर जेह ॥ राम कृपाँ पाँ तव दरसन भयऊ । तव ूसाद सब ससय सय गयऊ ॥४॥ दोहा सुन न बहगपत बानी सहत बनय अनुराग राग । पुलक लक गात लोचन सजल मन हरषेउ उ अत काग ॥६९(क )॥ ौोता सुमत मत सुसील सील सुच च कथा रसक हर दास । पाइ उमा अत गोयमप सजन करह ूकास ॥६९(ख )॥ बोलेउ काकभसु ड ड बहोर । नभग नाथ पर ूीत न थोर ॥ सब बध नाथ पय य तुह ह मेरेरे । कृपापा पापा रघुनायक नायक केरेरे ॥१॥ तुहह हह न ससय सय मोह न माया । मो पर नाथ कह तुह ह दाया ॥ पठइ मोह मस खगपत तोह । रघुपत पत दह बड़ाई मोह ॥२॥ तुह ह नज मोह कह खग सा । सो नह कछु आचरज गोसा ॥ नारद भव बरच सनकाद । जे मुननायक ननायक आतमबाद ॥३॥ मोह न अध ध कह केह ह केह ह । को जग काम नचाव न जेह ह ॥ तृःनाँ ःनाँ केह ह न कह बराहा । केह ह कर दय ोध नह दाहा ॥४॥ दोहा यानी तापस सर र कब कोबद गुन न आगार । केह ह कै लभ बडबना कह न एह ससार सार ॥७०(क )॥
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ौी मद ब न कह केह ह ूभुता ता बधर न काह । मृगलोचन गलोचन के नैन न सर को अस लाग न जाह ॥७०(ख )॥ गुन न कृत त सयपात नह केह ह । कोउ न मान मद तजेउ नबेह ह ॥ जोबन वर केह ह नह बलकावा । ममता केह ह कर जस न नसावा ॥१॥ मछर काह कलक क न लावा । काह न सोक समीर डोलावा ॥ चता ता साँपन पन को नह खाया । को जग जाह न यापी माया ॥२॥ कट मनोरथ दा सररा । जेह न लाग घुन न को अस धीरा ॥ सुत त बत लोक ईषना तीनी । केह ह के मत इह कृत त न मलीनी ॥३॥ यह सब माया कर परवारा । ूबल अमत को बरनै पारा ॥ सव चतुरानन रानन जाह डेराह । अपर जीव केह ह लेखे माह ॥४॥ दोहा याप रहेउ ससार सार महँ ु माया कटक ूचड ड ॥ सेनापत नापत कामाद भट दभ कपट पाषड ड ॥७१(क )॥ सो दासी रघुबीर बीर कै समुझ झ मया सोप । छ ट न राम कृपा पा बनु नाथ कहउँ पद रोप ॥७१(ख )॥ जो माया सब जगह नचावा । जासु चरत लख काहँ ु न पावा ॥ सोइ ूभु ॅ बलास खगराजा । नाच नट इव सहत समाजा ॥१॥ सोइ सचदानद द घन रामा । अज बयान पो बल धामा ॥ यापक याय अखड ड अनता ता । अखल अमोघस भगवता ता ॥२॥ अगुन न अदॅ गरा गोतीता । सबदरसी अनव अजीता ॥ नमम म नराकार नरमोहा । नय नरजन सुख ख सदोहा दोहा ॥३॥ ूकृत त पार ूभु सब उर बासी । ॄ नरह बरज अबनासी ॥ इहाँ मोह कर कारन नाह । रब समुख ख तम कबहँ ु क जाह ॥४॥ भगत कए जथा सोइ
दोहा हेतु भगवान ूभु राम धरेउ तनु भप प । चरत पावन परम ूाकृत त नर अनुप प ॥७२(क )॥ अनेक बेष ष धर नृय य करइ नट कोइ । सोइ भाव देखावइ आपुन न होइ न सोइ ॥७२(ख )॥
अस रघुपत पत लीला उरगार । दनुज ज बमोहन जन सुखकार खकार ॥ जे मत मलन बषयबस कामी । ूभु मोह धरह इम ःवामी ॥१॥ नयन दोष जा कहँ जब होई । पीत बरन सस कहँ ु कह सोई ॥
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जब जेह ह दस ॅम होइ खगेसा सा । सो कह पछम उयउ दनेसा सा ॥२॥ नकाढ़ चलत जग देखा । अचल मोह बस आपुह ह लेखा खा ॥ बालक ॅमह न ॅमह गृहाद हाद । कहह परःपर मयाबाद ॥३॥ हर बषइक अस मोह बहगा । सपनेह ुँ नह अयान ूसगा गा ॥ मायाबस मतमद द अभागी । दयँ जमनका बहबध लागी ॥४॥ ु ते सठ हठ बस ससय सय करह । नज अयान राम पर धरह ॥५॥ दोहा काम ोध मद लोभ रत गृहास हास दखप । ु ते कम जानह रघुपतह पतह म ढ़ परे तम क प ॥७३(क )॥ नगुन न प सुलभ लभ अत सगुन न जान नह कोइ । सुगम गम अगम नाना चरत सुन न मुन न मन ॅम होइ ॥७३(ख )॥ सुनु नु जेह राम ताते सुनह न ुह ससृ सत त ृ ताते जम
खगेस स रघुपत पत ूभुताई ताई । कहउँ जथामत कथा सुहाई हाई ॥ बध मोह भयउ ूभु मोह । सोउ सब कथा सुनावउँ नावउँ तोह ॥१॥ कृपा पा भाजन तुह ह ताता । हर गुन न ूीत मोह सुखदाता खदाता ॥ नह कछु तुहह हह दरावउँ । परम रहःय मनोहर गावउँ ॥२॥ ु राम कर सहज सुभाऊ भाऊ । जन अभमान न राखह काऊ ॥ मल ल सलूद लूद नाना । सकल सोक दायक अभमाना ॥३॥ करह कृपानध पानध दर । सेवक वक पर ममता अत भर र ॥ ससु तन ॄन होइ गोसाई । मातु चराव कठन क ना ॥४॥ दोहा जदप ूथम दख पावइ रोवइ बाल अधीर । ु याध नास हत जननी गनत न सो ससु पीर ॥७४(क )॥ तम रघुपत पत नज दासकर हरह मान हत लाग । तुलसदास लसदास ऐसे ूभुह ह कस न भजह ु ॅम याग ॥७४(ख )॥
राम कृपा पा आपन जड़ताई । कहउँ खगेस स सुनह न ुह मन लाई ॥ जब जब राम मनुज ज तनु धरह । भ हेतु लील बह ु करह ॥१॥ तब तब अवधपुर र म ज़ाऊँ । बालचरत बलोक हरषाऊँ ॥ जम महोसव देखउँ जाई । बरष पाँच च तहँ रहउँ लोभाई ॥२॥ इदेव मम बालक रामा । सोभा बपुष ष कोट सत कामा ॥ नज ूभु बदन नहार नहार । लोचन सुफल फल करउँ उरगार ॥३॥ लघु बायस बपु धर हर सगा गा । देखउँ बालचरत बहर ु गा ॥४॥
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दोहा लरका जहँ जहँ फरह तहँ तहँ सग ग उड़ाउँ । जठन ठन परइ अजर महँ सो उठाइ कर खाउँ ॥७५(क )॥ एक बार अतसय सब चरत कए रघुबीर बीर । सुमरत मरत ूभु लीला सोइ पुलकत लकत भयउ सरर ॥७५(ख )॥ कहइ भसु भसुड ड सुनह न ुह खगनायक । रामचरत सेवक वक सुखदायक खदायक ॥ नृपम पमदर दर सु दर दर सब भाँती । खचत कनक मन नाना जाती ॥१॥ बरन न जाइ चर अँगनाई गनाई । जहँ खेलह लह नत चारउ भाई ॥ बालबनोद करत रघुराई राई । बचरत अजर जनन सुखदाई खदाई ॥२॥ मरकत मृदल द ुल कलेवर ःयामा । अग ग अग ग ूत छब बह ु कामा ॥ नव राजीव अन मृद द ु चरना । पदज चर नख सस दत हरना ॥३॥ ु ललत अक क कुलसादक लसादक चार । नपुपुर र चा मधुर र रवकार ॥ चा पुरट रट मन रचत बनाई । कट क क कन कल मुखर खर सुहाई हाई ॥४॥ दोहा रेखा य उर आयत
सुदर दर ॅाजत
उदर बबध
नाभी चर गँभीर भीर । बाल बभषन षन चीर ॥७६॥
अन पान नख करज मनोहर । बाह षन सु दर दर ॥ ु बसाल बभषन कध बाल केहर हर दर ीवा । चा चबुक क आनन छब सीवा ॥१॥ कलबल बचन अधर अनारे । दइ ु ु ु ु दइ ु दसन बसद बर बारे ॥ ललत कपोल मनोहर नासा । सकल सुखद खद सस कर सम हासा ॥२॥ नील कज लोचन भव मोचन । ॅाजत भाल तलक गोरोचन ॥ बकट भृकु कट ु ट सम ौवन सुहाए हाए । कु चत कच मेचक चक छब छाए ॥३॥ पीत झीन झगुली ली तन सोह । कलकन चतवन भावत मोह ॥ प रास नृप प अजर बहार । नाचह नज ूतबब ब नहार ॥४॥ मोह सन करह बबध बध ड़ा । बरनत मोह होत अत ॄीड़ा ॥ कलकत मोह धरन जब धावह । चलउँ भाग तब पप प देखावह ॥५॥ दोहा आवत नकट हँसह ूभु भाजत दन कराह । जाउँ समीप गहन पद फर फर चतइ पराह ॥७७(क )॥ ूाकृत त ससु इव लीला देख भयउ मोह मोह । कवन चर करत ूभु चदानद द सदोह दोह ॥७७(ख )॥
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एतना मन आनत खगराया । रघुपत पत ूेरत यापी माया ॥ सो माया न दखद मोह काह । आन जीव इव ससृ सत त ृ नाह ॥१॥ ु नाथ इहाँ कछु कारन आना । सुनह न ुह सो सावधान हरजाना ॥ यान अखड ड एक सीताबर । माया बःय जीव सचराचर ॥२॥ ज सब क रह यान एकरस । ईःवर जीवह भेद द कहह ु कस ॥ माया बःय जीव अभमानी । ईस बःय माया गुनखानी नखानी ॥३॥ परबस जीव ःवबस भगवता ता । जीव अनेक एक ौीक ता ॥ मुधा धा भेद द जप कृत त माया । बनु हर जाइ न कोट उपाया ॥४॥ दोहा रामचि ि के भजन बनु जो चह पद नबान न । यानवत त अप सो नर पसु बनु प ँछ छ बषान ॥७८(क )॥ राकापत षोड़स उअह तारागन समुदाइ दाइ ॥ सकल गरह दव लाइअ बनु रब रात न जाइ ॥७८(ख )॥ ऐसेह ह हर बनु भजन खगेसा । मटइ न जीवह केर र कलेसा ॥ हर सेवकह वकह न याप अबा । ूभु ूेरत रत यापइ तेह बा ॥१॥ ताते नास न होइ दास कर । भेद भगत भाढ़इ बहगबर ॥ ॅम ते चकत राम मोह देखा । बहँसे सो सुनु नु चरत बसेषा ॥२॥ तेह ह कतुक क कर मरमु न काहँ । जाना अनुज ज न मातु पताहँ ॥ जानु पान धाए मोह धरना । ःयामल गात अन कर चरना ॥३॥ तब म भाग चलेउँउँ उरगामी । राम गहन कहँ भुजा जा पसार ॥ जम जम दर ज हर देखउँ नज पासा ॥४॥ उड़ाउँ अकासा । तहँ भुज दोहा ॄलोक लग गयउँ म चतयउँ पाछ उड़ात । जुग ग अगु गल ल ु कर बीच सब राम भुजह जह मोह तात ॥७९(क )॥ साबरन भेद कर जहाँ लग गत मोर । गयउँ तहाँ ूभु भुज ज नरख याकु ल ल भयउँ बहोर ॥७९(ख )॥ मदेदउे ँ नयन सत जब भयउँ । पुन न चतवत कोसलपुर र गयऊँ ॥ मोह बलोक राम मुसु सकाह क ु ाह । बहँसत तुरत रत गयउँ मुख ख माह ॥१॥ उदर माझ सुनु नु अडज डज राया । देखउँउे ँ बह ड नकाया ॥ ु ॄाड अत बच तहँ लोक अनेका । रचना अधक एक ते एका ॥२॥ कोटह चतुरानन रानन गरसा । अगनत उडगन रब रजनीसा ॥ अगनत लोकपाल जम काला । अगनत भधर धर भम म बसाला ॥३॥ www.swargarohan.org
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सागर सर सर बपन अपारा । नाना भाँत सृ बःतारा ॥ सुर र मुन न स नाग नर क क नर । चार ूकार जीव सचराचर ॥४॥ जो सो एक एह
दोहा नह देखा नह सुना ना जो मनहँ सब अ त देखउँउे ँ बरन कवन बध ुत एक ॄाड महँ ु रहउँ बरष बध देखत फरउँ म अड ड कटाह
न जाइ सत अनेक क
समाइ । ॥८०(क )॥ एक । ॥८०(ख )॥
लोक लोक ूत भन बधाता । भन बंनु सव मनु दसाता ॥ नर गधब धब भत त बेताला ताला । क क नर नसचर पसु खग याला ॥१॥ देव दनुज ज गन नाना जाती । सकल जीव तहँ आनह भाँती ती ॥ मह सर सागर सर गर नाना । सब ूपच च तहँ आनइ आना ॥२॥ अडकोस डकोस ूत ूत नज पा । देखउँउे ँ जनस अनेक अनपा पा ॥ अवधपुर र ूत भुवन वन ननार । सरज भन भन नर नार ॥३॥ दसरथ कसया सुनु नु ताता । बबध प भरतादक ॅाता ॥ ूत ॄाड ड राम अवतारा । देखउँ बालबनोद अपारा ॥४॥ दोहा भन भन मै दख सबु अत बच हरजान । अगनत भुवन वन फरेउँ ूभु राम न देखउे ँ आन ॥८१(क )॥ सोइ ससुपन पन सोइ सोभा सोइ कृपाल पाल रघुबीर बीर । भुवन वन भुवन वन देखत फरउँ ूेरत रत मोह समीर ॥८१(ख ) ॅमत मोह ॄाड ड अनेका । बीते मनहँ ु कप सत एका ॥ फरत फरत नज आौम आयउँ । तहँ पुन न रह कछु काल गवाँयउँ यउँ ॥१ ॥ नज ूभु जम अवध सुन न पायउँ । नभर र ूेम हरष उठ धायउँ ॥ देखउँ जम महोसव जाई । जेह बध ूथम कहा म गाई ॥२॥ राम उदर देखउे ँ जग नाना । देखत बनइ न जाइ बखाना ॥ तहँ पुन न देखउे ँ राम सुजाना जाना । माया पत कृपाल पाल भगवाना ॥३॥ करउँ बचार बहोर बहोर । मोह कलल यापत मत मोर ॥ उभय घर महँ म सब देखा । भयउँ ॅमत मन मोह बसेषा षा ॥४॥ देख कृपाल पाल बकल बहँसतह मुख ख बाहेर
दोहा मोह बहँसे आयउँ सुनु नु
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तब रघुबीर बीर । मतधीर ॥८२(क )॥
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सोइ कोट
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लरकाई मो सन करन लगे पुन न भाँत त समुझावउँ झावउँ मनु न लहइ बौाम
राम । ॥८२(ख )॥
देख चरत यह सो ूभुताई ताई । समुझत झत देह दसा बसराई ॥ धरन परेउँ मुख ख आव न बाता । ाह ाह आरत जन ाता ॥१॥ ूेमाकु माकु ल ल ूभु मोह बलोक । नज माया ूभुता ता तब रोक ॥ कर सरोज ूभु मम सर धरेऊ । दनदयाल सकल दख हरेऊ ॥२॥ ु कह राम मोह बगत बमोहा । सेवक सुखद खद कृपा पा सदोहा दोहा ॥ ूभुता ता ूथम बचार बचार । मन महँ होइ हरष अत भार ॥३॥ भगत बछलता ूभु कै देखी । उपजी मम उर ूीत बसेषी षी ॥ सजल नयन पुलकत लकत कर जोर । कहउँ बह ु बध बनय बहोर ॥४॥ दोहा सुन न सूेम मम बानी देख दन नज दास । बचन सुखद खद गभीर भीर मृद द ु बोले रमानवास ॥८३(क )॥ काकभसु ड ड मागु बर अत ूसन मोह जान । अनमादक सध अपर रध मोछ सकल सुख ख खान ॥८३(ख )॥ यान बबेक बरत बयाना । आजु देउँ सब ससय सय नाह । सुन न ूभु बचन अधक अनुरागे रागेउँउँ ूभु कह देन सकल सुख ख सह भगत हन गुन न सब सुख ख ऐसे भजन हन सुख ख कवने काजा ज ूभु होइ ूसन बर दे ह मन भावत बर मागउँ ःवामी
मुन न दल भ गुन न जे जग नाना ॥ ु भ मागु जो तोह भाव मन माह ॥१॥ । मन अनुमान मान करन तब लागेऊँ ऊँ ॥ । भगत आपनी देन न कह ॥२॥ । लवन बना बह जन जैसे से ॥ ु बजन । अस बचार बोलेउँ खगराजा ॥३॥ । मो पर करह ु ु कृपा प ु ु ा अ नेह ह ॥ । तुह ह उदार उर अतरजामी तरजामी ॥४॥
दोहा अबरल भगत बसुद द तव ौुत त पुरान रान जेह खोजत जोगीस मुन न ूभु ूसाद कोउ भगत कपत ूनत हत कृपा पा सधु धु सोइ नज भगत मोह ूभु दे ुह दया कर
जो पाव सुख ख राम
गाव । ॥८४(क )॥ धाम । ॥८४(ख )॥
एवमःतु कह रघुकु कलनायक ल ु नायक । बोले बचन परम सुखदायक खदायक ॥ सुनु नु बायस त सहज सयाना । काहे न मागस अस बरदाना ॥१॥ सब सुख ख खान भगत त मागी । नह जग कोउ तोह सम बड़भागी ॥
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जो मुन न कोट जतन नह लहह । जे जप जोग अनल तन दहह ॥२॥ रझेउँ देख तोर चतुराई राई । मागे ुह भगत मोह अत भाई ॥ सुनु नु बहग ूसाद अब मोर । सब सुभ भ गुन न बसहह उर तोर ॥३॥ भगत यान बयान बरागा । जोग चर रहःय बभागा ॥ जानब त सबह कर भेदा । मम ूसाद नह साधन खेदा ॥४॥ माया जानेसु सु मोह कायँ
दोहा सभव भव ॅम सब अब न यापहह ॄ अनाद अज अगुन न गुनाकर नाकर मोह भगत ूय सतत तत अस बचार सुनु नु बचन मन मम पद करेसु अचल अनुराग राग
तोह । ॥८५(क )॥ काग । ॥८५(ख )॥
अब सुनु नु परम बमल मम बानी । सय सुगम गम नगमाद बखानी ॥ नज सात सुनावउँ नावउँ तोह । सुनु नु मन ध सब तज भजु मोह ॥१॥ मम माया सभव भव ससारा सारा । जीव चराचर बबध ूकारा ॥ सब मम ूय सब मम उपजाए । सब ते अधक मनुज ज मोह भाए ॥२॥ तह महँ ज ज महँ ौुतधार तधार । तह महँ ु नगम धरम अनुसार सार ॥ तह महँ ूय बर पुन न यानी । यानह ु ते अत ूय बयानी ॥३॥ तह ते पुन मोह ूय नज दासा । जेह ह गत मोर न दसर आसा ॥ पुन न पुन न सय कहउँ तोह पाह । मोह सेवक सम ूय कोउ नाह ॥४॥ भगत हन बरच कन होई । सब जीवह ु सम ूय मोह सोई ॥ भगतवत त अत नीचउ ूानी । मोह ूानूय अस मम बानी ॥५॥ दोहा सुच च सुसील सील सेवक वक सुमत मत ूय कह ु काह न लाग । ौुत त पुरान रान कह नीत अस सावधान सुनु नु काग ॥८६॥ एक पता के बपुल ल कुमारा मारा । होह पृथक थक गुन न सील अचारा ॥ कोउ पड डत कोउ तापस याता । कोउ धनवत त सर र कोउ दाता ॥१॥ कोउ सबय य धमरत रत कोई । सब पर पतह ूीत सम होई ॥ कोउ पतु भगत बचन मन कमा । सपने ुहँहँ जान न दसर धमा ॥२॥ सो सुत त ूय पतु ूान समाना । जप सो सब भाँत अयाना ॥ एह बध जीव चराचर जेते ते । जग देव नर असुर र समेते ॥३॥ अखल बःव यह मोर उपाया । सब पर मोह बराबर दाया ॥ तह महँ जो परहर मद माया । भजै मोह मन बच अ काया ॥४॥
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दोहा पुष ष नपु सक सक नार वा जीव चराचर कोइ । सब भाव भज कपट तज मोह परम ूय सोइ ॥८७(क )॥ सोरठा सय कहउँ खग तोह सुच च सेवक वक मम ूानूय । अस बचार भजु मोह परहर आस भरोस सब ॥८७(ख )॥ कबहँ काल न यापह तोह । सुमरे मरेसु भजेसु नरतर मोह ॥ ूभु बचनामृत त सुन न न अघाऊँ । तनु पुलकत लकत मन अत हरषाऊँ ॥१॥ सो सुख ख जानइ मन अ काना । नह रसना पह जाइ बखाना ॥ ूभु सोभा सुख ख जानह नयना । कह कम सकह तहह नह बयना ॥२॥ बह ख देई । लगे करन ससु कतुक क तेई ॥ ु बध मोह ूबोध सुख सजल नयन कछु मुख ख कर खा । चतइ मातु लागी अत भखा खा ॥३॥ देख मातु आतुर र उठ धाई । कह मृद द ु बचन लए उर लाई ॥ गोद राख कराव पय पाना । रघुपत पत चरत ललत कर गाना ॥४॥ सोरठा जेह सुख ख लाग पुरार रार असुभ भ बेष कृत त सव अवधपुर र नर नार तेह ह सुख ख महँ ु सतत तत मगन सोइ सुख ख लवलेस स जह बारक सपनेह ुँ ते नह गनह खगेस ॄसुखह खह सजन सुमत मत
सुखद खद । ॥८८(क )॥ लहेउ । ॥८८(ख )॥
म पुन न अवध रहेउँ कछु काला । देखउँउे ँ बालबनोद रसाला ॥ राम ूसाद भगत बर पायउँ । ूभु पद बद द नजाौम आयउँ ॥१॥ तब ते मोह न यापी माया । जब ते रघुनायक नायक अपनाया ॥ यह सब गु चरत म गावा । हर मायाँ जम मोह नचावा ॥२॥ नज अनुभव भव अब कहउँ खगेसा । बनु हर भजन न जाह कलेसा सा ॥ राम कृपा पा बनु सुनु नु खगराई । जान न जाइ राम ूभुताई ताई ॥३॥ जान बनु न होइ परतीती । बनु परतीत होइ नह ूीती ॥ ूीत बना नह भगत दढ़ाई । जम खगपत जल कै चकनाई ॥४॥ सोरठा बनु गुर र होइ क यान यान क होइ बराग बनु । गावह बेद द पुरान रान सुख ख क लहअ हर भगत बनु ॥८९(क )॥
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रामचरतमानस
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उरकाड
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कोउ बौाम क पाव तात सहज सतोष तोष बनु । चलै क जल बनु नाव कोट जतन पच पच मरअ ॥८९(ख )॥ बनु सतोष तोष न काम नसाह । काम अछत सुख ख सपने ुहँहँ नाह ॥ राम भजन बनु मटह क कामा । थल बहन त कबहँ ु क जामा ॥१॥ बनु बयान क समता आवइ । कोउ अवकास क नभ बनु पावइ ॥ ौा बना धम नह होई । बनु मह गध ध क पावइ कोई ॥२॥ बनु तप तेज क कर बःतारा । जल बनु रस क होइ ससारा सारा ॥ सील क मल बनु बुध ध सेवकाई वकाई । जम बनु तेज ज न प गोसाई ॥३॥ नज सुख ख बनु मन होइ क थीरा । परस क होइ बहन समीरा ॥ कवनउ स क बनु बःवासा । बनु हर भजन न भव भय नासा ॥४॥ दोहा बनु बःवास भगत नह तेह ह बनु िवह न रामु । राम कृपा पा बनु सपने ुहँहँ जीव न लह बौामु ॥९०(क )॥ सोरठा अस बचार मतधीर तज कुतक तक ससय सय सकल । भजह राम रघुबीर बीर कनाकर सु दर दर सुखद खद ॥९०(ख )॥ ु नज मत सरस नाथ म गाई । ूभु ूताप महमा खगराई ॥ कहेउँ न कछु कर जुगु गत ु त बसेषी । यह सब म नज नयनह देखी ॥१॥ महमा नाम प गुन न गाथा । सकल अमत अनत त रघुनाथा नाथा ॥ नज नज मत मुन न हरगुन न गावह ।नगम सेष सव पार न पावह॥२॥ तुहह हह आद खग मसक ूजता ता । नभ उड़ाह नह पावह अता ता ॥ तम रघुपत पत महमा अवगाहा । तात कबहँ ु कोउ पाव क थाहा ॥३॥ रामु काम सत कोट सुभग भग तन । दगा कोट अमत अर मदन ॥ ु स कोट सत सरस बलासा । नभ सत कोट अमत अवकासा ॥४॥ दोहा मत कोट सत बपुल ल बल रब सत कोट सस सत कोट सुसीतल सीतल समन सकल भव ास काल कोट सत सरस अत दःतर दग ु ु ु ु ु धमके मकेतु तु सत कोट सम दराधरष भगवत त ु अगाध
सत
कोट
पताला
।
समन
कोट
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सत
ूकास । ॥९१(क )॥ दरु त । ॥९१(ख )॥
सरस
कराला
॥
रामचरतमानस
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उरकाड
तीरथ अमत कोट सम पावन । नाम अखल अघ पग ग नसावन ॥१॥ हमगर कोट अचल रघुबीरा बीरा । सधु धु कोट सत सम गभीरा भीरा ॥ कामधेनु नु सत कोट समाना । सकल काम दायक भगवाना ॥२॥ सारद कोट अमत चतुराई राई । बध सत कोट सृ नपुनाई नाई ॥ बंनु कोट सम पालन कता । ि कोट सत सम सहता हता ॥३॥ धनद कोट सत सम धनवाना । माया कोट ूपच च नधाना ॥ भार धरन सत कोट अहसा । नरवध नपम ूभु जगदसा ॥४॥ छद द नपम न उपमा आन राम समान रामु नगम कहै जम कोट सत खोत सम रब कहत अत लघुता ता लहै एह भाँत त नज नज मत बलास मुनस नस हरह बखानह ूभु भाव गाहक अत कृपाल पाल सूेम सुन न सुख ख मानह
। ॥ । ॥
दोहा रामु अमत गुन न सागर थाह क पावइ कोइ । सतह तह सन जस कछु सुने नउे ँ तुहह हह सुनायउँ सोइ ॥९२(क )॥ सोरठा भाव बःय भगवान सुख ख नधान कना भवन । तज ममता मद मान भजअ सदा सीता रवन ॥९२(ख )॥ सुन न भुसु स ड ु ड के बचन सुहाए हाए । हरषत खगपत पख ख फुलाए लाए ॥ नयन नीर मन अत हरषाना । ौीरघुपत पत ूताप उर आना ॥१॥ पाछल मोह समुझ झ पछताना । ॄ अनाद मनुज ज कर माना ॥ पुन न पुन न काग चरन स नावा । जान राम सम ूेम बढ़ावा ॥२॥ गुर र बनु भव नध तरइ न कोई । ज बरच सकर कर सम होई ॥ ससय सय सप सेउ मोह ताता । दखद लहर कुतक तक बह ु ु ॄाता ॥३॥ तव सप गाड़ रघुनायक नायक । मोह जआयउ जन सुखदायक खदायक ॥ तव ूसाद मम मोह नसाना । राम रहःय अनपम पम जाना ॥४॥ दोहा ताह ूसस स बबध बध सीस नाइ कर जोर । बचन बनीत सूेम म मृद द ु बोलेउ उ गड़ बहोर ॥९३(क )॥ ूभु अपने अबबेक क ते बझउँ झउँ ःवामी तोह । कृपास पासधु धु सादर कहह ु जान दास नज मोह ॥९३(ख )॥
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रामचरतमानस
तुह ह यान कारन राम नाथ मुधा धा अग अड ड
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उरकाड
सबय य तय तम पारा । सुमत मत सुसील सील सरल आचारा ॥ बरत बयान नवासा । रघुनायक नायक के तुह ह ूय दासा ॥१॥ कवन देह यह पाई । तात सकल मोह कहह झाई ॥ ु बुझाई चरत सर सु सुदर दर ःवामी । पायह ु ु कहाँ कहह ु नभगामी ॥२॥ ु ु सुना ना म अस सव पाह । महा ूलयहँ ु नास तव नाह ॥ बचन नह ईःवर कहई । सोउ मोर मन ससय सय अहई ॥३॥ जग जीव नाग नर देवा । नाथ सकल जगु काल कलेवा ॥ कटाह अमत लय कार । कालु सदा दरतम भार ॥४॥ ु सोरठा तुहह हह न यापत काल अत कराल कारन कवन । मोह सो कहह पाल यान ूभाव क जोग बल ॥९४(क )॥ ु कृपाल दोहा ूभु तव आौम आएँ मोर मोह ॅम भाग । कारन कवन सो नाथ सब कहह राग ॥९४(ख )॥ ु सहत अनुराग
गड़ गरा सुन न हरषेउ उ कागा । बोलेउ उमा परम अनुरागा रागा ॥ धय धय तव मत उरगार । ूःन तुहार हार मोह अत यार ॥१॥ सुन न तव ूःन सूेम सुहाई हाई । बहत जनम कै सुध ध मोह आई ॥ ु सब नज कथा कहउँ म गाई । तात सुनह न ुह सादर मन लाई ॥२॥ जप तप मख सम दम ॄत दाना । बरत बबेक क जोग बयाना ॥ सब कर फल रघुपत पत पद ूेमा मा । तेह ह बनु कोउ न पावइ छेमा ॥३॥ एह तन राम भगत म पाई । ताते मोह ममता अधकाई ॥ जेह त कछु नज ःवारथ होई । तेह पर ममता कर सब कोई ॥४॥ सोरठा पनगार अस नीत ौुत त समत मत सजन कहह । अत नीचह ु सन ूीत करअ जान नज परम हत ॥९५(क )॥ पाट कट त होइ तेह त पाटबर चर । कृम म पालइ सबु कोइ परम अपावन ूान सम ॥९५(ख )॥ ःवारथ साँच जीव कहँ ु एहा । मन म बचन राम पद नेहा ॥ सोइ पावन सोइ सुभग भग सररा । जो तनु पाइ भजअ रघुबीरा बीरा ॥१॥ राम बमुख ख लह बध सम देह । कब कोबद न ूससह सह तेह ह ॥
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राम तजउँ ूथम नाना कवन देखउँउे ँ सुध ध
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उरकाड
भगत एह तन उर जामी । ताते मोह परम ूय ःवामी ॥२॥ न तन नज इछा मरना । तन बनु बेद द भजन नह बरना ॥ मोहँ मोह बहत ख सुख ख कबहँ ु न सोवा ॥३॥ ु बगोवा । राम बमुख जनम कम पुन न नाना । कए जोग जप तप मख दाना ॥ जोन जनमेउँउँ जहँ नाह । म खगेस ॅम ॅम जग माह ॥४॥ कर सब करम गोसाई । सुखी खी न भयउँ अबह क नाई ॥ मोह नाथ जम बह र । सव ूसाद मत मोहँ न घेर ॥५॥ ु केर दोहा ूथम जम के चरत अब कहउँ सुनह न ुह बहगेस । सुन न ूभु पद रत उपजइ जात मटह कलेस ॥९६(क )॥ पब ब कप एक ूभु जुग ग कलजुग ग मल मल ल ॥ नर अ नार अधम रत सकल नगम ूतकल ॥९६(ख )॥
तेह ह कलजुग ग कोसलपुर र जाई । जमत भयउँ सि ि तनु पाई ॥ सव सेवक वक मन म अ बानी । आन देव नदक दक अभमानी ॥१॥ धन मद म परम बाचाला । उबु उर दभ बसाला ॥ जदप रहेउँ रघुपत पत रजधानी । तदप न कछु महमा तब जानी ॥२॥ अब जाना म अवध ूभावा । नगमागम पुरान रान अस गावा ॥ कवने ुहँहँ जम अवध बस जोई । राम परायन सो पर होई ॥३॥ अवध ूभाव जान तब ूानी । जब उर बसह रामु धनुपानी पानी ॥ सो कलकाल कठन उरगार । पाप परायन सब नर नार ॥४॥ दोहा कलमल से धम सब लु भए सदथ थ । दभह नज मत कप कर ूगट कए बह थ ॥९७(क )॥ ु पथ भए लोग सब मोहबस लोभ से सुभ भ कम । सुनु नु हरजान यान नध कहउँ कछुक क कलधम ॥९७(ख )॥ बरन धम नह आौम चार । ौुत त बरोध रत सब नर नार ॥ ज ौुत त बेचक चक भप प ूजासन । कोउ नह मान नगम अनुसासन सासन ॥१॥ मारग सोइ जा कहँ ु जोइ भावा । पडत डत सोइ जो गाल बजावा ॥ मयारभ दभ रत जोई । ता कहँ ु सत त कहइ सब कोई ॥२॥ सोइ सयान जो परधन हार । जो कर दभ सो बड़ आचार ॥ ज कह झ ँठ ठ मसखर जाना । कलजुग ग सोइ गुनव नवत त बखाना ॥३॥ नराचार जो ौुत त पथ यागी । कलजुग ग सोइ यानी सो बरागी ॥ www.swargarohan.org
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जाक
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नख अ जटा बसाला ।
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सोइ तापस ूस कलकाला ॥४॥
दोहा असुभ भ बेष ष भषन षन धर भछाभछ जे खाह । तेइ जोगी तेइ इ स नर पय य ते कलजुग ग माह ॥९८(क )॥ सोरठा जे अपकार चार तह कर गरव माय तेइ । मन म बचन लबार तेइ बकता कलकाल महँ ु ॥९८(ख )॥ नार बबस नर सकल गोसाई । नाचह नट मक मक ट क नाई ॥ सि ि जह उपदेसह याना । मेल ल जनेऊ ऊ लेह ह कुदाना दाना ॥१॥ सब नर काम लोभ रत ोधी । देव बू ौुत त सत त बरोधी ॥ गुन न मदर दर सु दर दर पत यागी । भजह नार पर पुष ष अभागी ॥२॥ सभागनी बभषन षन हना । बधवह के सगार गार नबीना ॥ गुर र सष बधर अध ध का लेखा खा । एक न सुनइ नइ एक नह देखा ॥३॥ हरइ संय धन सोक न हरई । सो गुर र घोर नरक महँ ु परई ॥ मातु पता बालकह बोलाबह । उदर भरै सोइ धम सखावह ॥४॥ दोहा ॄ यान बनु नार नर कहह न कड़ लाग लोभ बस करह बू गुर र बादह सि ि जह सन हम तुह ह ते जानइ ॄ सो बूबर आँख ख देखावह
दसर बात । घात ॥९९(क )॥ कछु घाट । डाट ॥९९(ख )॥
पर य लपट पट कपट सयाने । मोह िोह ममता लपटाने ॥ तेइ इ अभेदबाद यानी नर । देखा म चर कलजुग ग कर ॥१॥ आपु गए अ तहह घालह । जे कहँ ु सत मारग ूतपालह ॥ कप कप भर एक एक नरका । परह जे दषह ौुत त कर तरका ॥२॥ जे बरनाधम तेल ल कुहारा हारा । ःवपच करात कोल कलवारा ॥ नार मुई ई गृह ह सपत पत नासी । म ड़ मु ड़ाइ होह सयासी ॥३॥ ते बूह सन आपु पुजावह जावह । उभय लोक नज हाथ नसावह ॥ बू नरछर लोलुप प कामी । नराचार सठ बृषली षली ःवामी ॥४॥ सि ि करह जप तप ॄत नाना । बैठ ठ बरासन कहह पुराना राना ॥ सब नर कपत करह अचारा । जाइ न बरन अनीत अपारा ॥५॥
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भए करह ौुत त तेह
उरकाड
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दोहा बरन सकर कर कल भनसेतु सब पाप पावह दख भय ज सोक बयोग ु समत मत हर भ पथ सजु जत त ु बरत न चलह नर मोह बस कपह पथ थ अनेक
लोग । ॥१००(क )॥ बबेक । ॥१००(ख )॥
छद द बह वारह धाम जती । बषया हर लीह न रह बरती ॥ ु दाम सँवारह तपसी धनवत त दिर गृह ह । कल कतुक क तात न जात कह ॥१॥ कुलव लवत त नकारह नार सती । गृह ह आनह चेर नबेर र गती ॥ सुत त मानह मातु पता तब ल । अबलानन दख नह जब ल ॥२॥ ससुरार रार पआर लगी जब त । रपप कु ुटटब भए तब त ॥ नृप प पाप परायन धम नह । कर दड बडब ूजा नतह ॥३॥ धनवत त कुलीन लीन मलीन अपी । ज चह जनेउ उ उघार तपी ॥ नह मान पुरान रान न बेदह जो । हर सेवक वक सत त सह कल सो ॥४॥ कब बृ द द उदार दनी न सुनी नी । गुन न दषक ॄात न कोप गुनी नी ॥ ु कल बारह बार दकाल परै । बनु अन दखी सब लोग मरै ॥५॥ ु ु दोहा सुनु नु खगेस स कल कपट हठ दभ ेष पाषड ड । मान मोह माराद मद याप रहे ॄड ड ॥१०१(क )॥ तामस धम करह नर जप तप ॄत मख दान । देव न बरषह धरनी बए न जामह धान ॥१०१(ख )॥ छद द अबला कच भषन षन भर र छु धा । धनहन दखी ममता बहधा ॥ ु ु सुख ख चाहह म ढ़ न धम रता । मत थोर कठोर न कोमलता ॥१॥ नर पीड़त रोग न भोग कह । अभमान बरोध अकारनह ॥ लघु जीवन सबतु बतु पच च दसा । कलपात त न नास गुमानु मानु असा ॥२॥ कलकाल बहाल कए मनुजा जा । नह मानत व अनुजा जा तनुजा जा । नह तोष बचार न सीतलता । सब जात कुजात जात भए मगता ॥३॥ इरषा पषाछर लोलुपता पता । भर पर र रह समता बगता ॥ सब लोग बयोग बसोक ुहए । बरनाौम धम अचार गए ॥४॥ दम दान दया नह जानपनी । जड़ता परबचनतात चनतात घनी ॥ तनु पोषक नार नरा सगरे । परनदक दक जे जग मो बगरे ॥५॥
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उरकाड
दोहा सुनु नु यालार काल कल मल अवगुन न आगार । गुनउँ नउँ बहत कलजुग ग कर बनु ूयास नःतार ॥१०२(क )॥ ु कृतजु तजुग ग ेता ता ापर पजा जा मख अ जोग । जो गत होइ सो कल हर नाम ते पावह लोग ॥१०२(ख )॥ कृतजु तजुग ग सब जोगी बयानी । कर हर यान तरह भव ूानी ॥ ेताँ बबध जय नर करह । ूभुह ह समप कम भव तरह ॥१॥ ापर कर रघुपत पत पद पजा जा । नर भव तरह उपाय न दजा ॥ कलजुग ग केवल वल हर गुन न गाहा । गावत नर पावह भव थाहा ॥२॥ कलजुग ग जोग न जय न याना । एक अधार राम गुन न गाना ॥ सब भरोस तज जो भज रामह । ूेम म समेत त गाव गुन न ामह ॥३॥ सोइ भव तर कछु ससय सय नाह । नाम ूताप ूगट कल माह ॥ कल कर एक पुनीत नीत ूतापा । मानस पुय य होह नह पापा ॥४॥ दोहा कलजुग ग सम जुग ग आन नह ज नर कर बःवास । गाइ राम गुन न गन बमलँ भव तर बनह ूयास ॥१०३(क )॥ ूगट चार पद धम के कलल महँ ु एक ूधान । जेन केन न बध दह दान करइ कयान ॥१०३(ख )॥ नत जुग ग धम होह सब केरेरे । दयँ राम माया के ूेरे ॥ सु सव समता बयाना । कृत त ूभाव ूसन मन जाना ॥१॥ सव बहत रज कछु रत कमा । सब बध सुख ख ेता ता कर धमा ॥ ु बह ु रज ःवप सव कछु तामस । ापर धम हरष भय मानस ॥२॥ तामस बहत रजोगुन न थोरा । कल ूभाव बरोध चहँ ु ओरा ॥ ु बुध ध जुग ग धम जान मन माह । तज अधम रत धम कराह ॥३॥ काल धम नह यापह ताह । रघुपत पत चरन ूीत अत जाह ॥ नट कृत त बकट कपट खगराया । नट सेवकह वकह न यापइ माया ॥४॥ दोहा हर माया कृत त दोष गुन न बनु हर भजन न जाह । भजअ राम तज काम सब अस बचार मन माह ॥१०४(क )॥ तेह कलकाल बरष बह बसेउँ अवध बहगेस स । ु परेउ दका ु ल बपत बस तब म गयउँ बदेस ॥१०४(ख )॥
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उरकाड
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गयउँ उजेनी नी सुनु नु उरगार । दन मलीन दिर दखार ॥ ु गएँ काल कछु सपत पत पाई । तहँ पुन न करउँ सभु भु सेवकाई वकाई ॥१॥ बू एक बैदक दक सव पजा जा । करइ सदा तेह ह काजु न दजा ॥ परम साधु परमारथ बदक दक । सभु भु उपासक नह हर नदक दक ॥२॥ तेह ह सेवउँ वउँ म कपट समेता ता । ज दयाल अत नीत नके ता ॥ बाहज नॆ देख मोह सा । बू पढ़ाव पु क ना ॥३॥ सभु भु म मोह जबर दहा । सुभ भ उपदेस बबध बध कहा ॥ जपउँ म सव मदर दर जाई । दयँ दभ अहमत अधकाई ॥४॥ दोहा म खल मल सकु कल ल ु मत नीच जात बस मोह । हर जन ज देख जरउँ करउँ बंनु कर िोह ॥१०५(क )॥ सोरठा गुर र नत मोह ूबोध दखत देख आचरन मम । ु मोह उपजइ अत ोध दभह नीत क भावई ॥१०५(ख )॥ एक बार गुर र लीह बोलाई । मोह नीत बह त सखाई ॥ ु भाँत सव सेवा वा कर फल सुत त सोई । अबरल भगत राम पद होई ॥१॥ रामह भजह तात सव धाता । नर पावँर र कै केतक तक बाता ॥ जासु चरन अज सव अनुरागी रागी । तातु िोहँ सुख ख चहस अभागी ॥२॥ हर कहँ ु हर सेवक वक गुर र कहेऊ । सुन न खगनाथ दय मम दहेऊ ॥ अधम जात म बा पाएँ । भयउँ जथा अह दध पआएँ ॥३॥ मानी कुटल टल कुभाय भाय कुजाती जाती । गुर र कर िोह करउँ दनु राती ॥ अत दयाल गुर र ःवप न ोधा । पुन न पुन न मोह सखाव सुबोधा बोधा ॥४॥ जेह ते नीच बड़ाई पावा । सो ूथमह हत ताह नसावा ॥ धम म अनल सभव भव सुनु नु भाई । तेह बुझाव झाव घन पदवी पाई ॥५॥ रज मग पर नरादर रहई । सब कर पद ूहार नत सहई ॥ मत उड़ाव ूथम तेह ह भरई । पुन न नृप प नयन करटह परई ॥६॥ सुनु नु खगपत अस समुझ झ ूसगा गा । बुध ध नह करह अधम कर सगा गा ॥ कब कोबद गावह अस नीती । खल सन कलह न भल नह ूीती ॥७॥ उदासीन नत रहअ गोसा । खल परहरअ ःवान क ना ॥ म खल दयँ कपट कुटलाई टलाई । गुर र हत कहइ न मोह सोहाई ॥८॥ एक
बार
हर
मदर दर
दोहा जपत
रहेउँ
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सव
नाम
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उरकाड
गुर र आयउ अभमान त उठ नह कह ूनाम ॥१०६(क )॥ सो दयाल नह कहेउ कछु उर न रोष लवलेस । अत अघ गुर र अपमानता सह नह सके महेस ॥१०६(ख )॥ मदर दर माझ भई नभ बानी । रे हतभाय अय अभमानी ॥ जप तव गुर र क नह ोधा । अत कृपाल पाल चत सयक बोधा ॥१॥ तदप साप सठ दैहउँ तोह । नीत बरोध सोहाइ न मोह ॥ ज नह दड कर खल तोरा । ॅ होइ ौुतमारग तमारग मोरा ॥२॥ जे सठ गुर र सन इरषा करह । ररव नरक कोट जुग ग परह ॥ जग जोन पुन न धरह सररा । अयुत त जम भर पावह पीरा ॥३॥ बैठ ठ रहेस अजगर इव पापी । सप होह खल मल मत यापी ॥ महा बटप कोटर महँ ु ु जाई ॥ रह ु अधमाधम अधगत पाई ॥४॥ ु ु दोहा हाहाकार कह गुर र दान सुन न सव साप ॥ कपत मोह बलोक अत उर उपजा परताप ॥१०७(क )॥ कर दडवत सूेम म ज सव समुख ख कर जोर । बनय करत गदगद ःवर समुझ झ घोर गत मोर ॥१०७(ख )॥ ोक नमामीशमीशान नवाणप णप । वभु भु यापक ॄ वेदःवप दःवप नज नगुण ण नवकप कप नरह । चदाकाशमाकाशवास भजेऽह ऽह नराकारमकारमल ल तुरय रय । गरा यान गोतीतमीश गरश कराल महाकाल काल कृपाल पाल । गुणागार णागार ससारपार सारपार नतोऽह तुषाराि षाराि सकाश काश गर गभीर । मनोभत त कोट ूभा ौी शरर ःफुरमल रमल कलोलनी चा गगा गा । लसालबालेद द जगा गा ु कठे भुज चलकु डल ॅ सुने ने वशाल । ूसनानन नीलक ठ दयाल मृगाधीशचमा गाधीशचमाबर बर मुडमाल डमाल । ूय शकर कर सवनाथ नाथ भजाम ूचडड ूकृ ूगभ परेश । अखडड अज भानुकोटूकाश कोटूकाश यशल ल नमलन ल न शलपाण लपाण । भजेऽह भवानीपत भावगय कलातीत कयाण कपातकार । सदा सजनाददाता पुरार रार चदानदस दसदोह दोह मोहापहार । ूसीद ूसीद ूभो ममथार न यावद उमानाथ पादारवद । भजतीह तीह लोके परे वा नराणा न तावसुख ख शात सतापनाश । ूसीद ूभो सवभ भताधवास त ाधवास न जानाम योग जप नैव व पजा जा । नतोऽह सदा सवदा दा शभु भु तुय य जरा जम दखघ तातयमान । ूभो पाह आपनमामीश शभो भो ु www.swargarohan.org
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रामचरतमानस
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िाकमद ये पठत सुन न पुन न ज नज तव तेह सकर कर साप
उरकाड
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ोक ूो वूेण नरा भया तेषा
हरतोषये शभु ूसीदत
। ॥
दोहा बनती सबय य सव देख ॄू अनुरागु रागु । मदर दर नभबानी भइ जबर बर मागु ॥१०८(क )॥ ूसन ूभु मो पर नाथ दन पर ने ुह । पद भगत देइ ूभु पुन न दसर बर देहु ॥१०८(ख )॥ माया बस जीव जड़ सतत तत फरइ भुलान लान । पर ोध न करअ ूभु कृपा पा सधु धु भगवान ॥१०८(ग )॥ दनदयाल अब एह पर होह कृपाल पाल । ु अनुह ह होइ जेह नाथ थोरेह काल ॥१०८(घ )॥
एह कर होइ परम कयाना । सोइ करह पानधाना ॥ ु अब कृपानधाना बूगरा सुन न परहत सानी । एवमःतु इत भइ नभबानी ॥१॥ जदप कह एह दान पापा । म पुन न दह कोप कर सापा ॥ तदप तुहार हार साधुता ता देखी । करहउँ एह पर कृपा पा बसेषी षी ॥२॥ छमासील जे पर उपकार । ते ज मोह ूय जथा खरार ॥ मोर ौाप ज यथ न जाइह । जम सहस अवःय यह पाइह ॥३॥ जनमत मरत दसह ु ु दख ु होई । अह ःवपउ नह यापह सोई ॥ कवनेउँउँ जम मटह नह याना । सुनह नह सि ि मम बचन ूवाना ॥४॥ रघुपत पत पुर र जम तब भयऊ । पुन न त मम सेवाँ वाँ मन दयऊ ॥ पुर र ूभाव अनुह ह मोर । राम भगत उपजह उर तोर ॥५॥ सुनु नु मम बचन सय अब भाई । हरतोषन ॄत ज सेवकाई ॥ अब जन करह बू अपमाना । जाने ुह सत त अनत त समाना ॥६॥ इि कुलस लस मम सल ल बसाला । कालदड हर च कराला ॥ जो इह कर मारा नह मरई । िबूोह पावक सो जरई ॥७॥ अस बबेक क राखे ुह ह मन माह । तुह ह कहँ जग दल भ कछु ना ह ॥ ु भ औरउ एक आसषा मोर । अूतहत गत होइह तोर ॥८॥ दोहा सुन न सव बचन हरष गुर र एवमःतु इत भाष । मोह ूबोध गयउ गृह ह सभु भु चरन उर राख ॥१०९(क )॥ ूेरत रत काल बध गर जाइ भयउँ म याल । www.swargarohan.org
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पुन न ूयास बनु सो तनु जोइ तनु धरउँ तजउँ जम नतन तन पट पहरइ सवँ राखी ौुत त नीत एह बध धरेउँ बबध तनु
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उरकाड
जजेउँ गएँ कछु काल ॥१०९(ख )॥ पुन न अनायास हरजान । नर परहरइ पुरान रान ॥१०९(ग )॥ अ म नह पावा लेस स । यान न गयउ खगेस ॥१०९(घ )॥
जग देव नर जोइ तनु धरउँ । तहँ तहँ राम भजन अनुसरऊँ सरऊँ ॥ एक सल ल मोह बसर न काऊ । गुर र कर कोमल सील सुभाऊ भाऊ ॥१॥ चरम देह ज कै म पाई । सुर र दल भ पुरान रान ौुत त गाई ॥ ु भ खेलउँ लउँ तहँ बालकह मीला । करउँ सकल रघुनायक नायक लीला ॥२॥ ूढ़ भएँ मोह पता पढ़ावा । समझउँ सुनउँ नउँ गुनउँ नउँ नह भावा ॥ मन ते सकल बासना भागी । केवल वल राम चरन लय लागी ॥३॥ कह स अस कवन अभागी । खर सेव व सुरधे रधेनु नह ुह यागी ॥ ु खगेस ूेम म मगन मोह कछु न सोहाई । हारेउ पता पढ़ाइ पढ़ाई ॥४॥ भए कालबस जब पतु माता । म बन गयउँ भजन जनाता ॥ जहँ जहँ बपन मुनीःवर नीःवर पावउँ । आौम जाइ जाइ स नावउँ ॥५॥ बझत झत तहह राम गुन न गाहा । कहह सुनउँ नउँ हरषत खगनाहा ॥ सुनत नत फरउँ हर गुन न अनुबादा बादा । अयाहत गत सभु भु ूसादा ॥६॥ छ ट बध ईषना गाढ़ । एक लालसा उर अत बाढ़ ॥ राम चरन बारज जब देख । तब नज जम सफल कर लेख ॥७॥ जेह प ँछउँ छउँ सोइ मुन न अस कहई । ईःवर सब भतमय तमय अहई ॥ नगुन न मत नह मोह सोहाई । सगुन न ॄ रत उर अधकाई ॥८॥ दोहा गुर र के बचन सुरत रत कर राम चरन मनु लाग । रघुपत पत जस गावत फरउँ छन छन नव अनुराग राग ॥११०(क )॥ मे सखर बट छायाँ मुन न लोमस आसीन । देख चरन स नायउँ बचन कहेउँ अत दन ॥११०(ख )॥ सुन न मम बचन बनीत मृद द ु मुन न कृपाल पाल खगराज । मोह सादर प ँछत छत भए ज आयह ह काज ॥११०(ग )॥ ु केह तब म कहा कृपानध पानध तुह ह सबय य सुजान जान । सगुन न ॄ अवराधन मोह कहह ु भगवान ॥११०(घ )॥ तब मुनष नष रघुपत पत ॄयान रत मुन न लागे करन ॄ
गुन न गाथा । कहे कछु क सादर खगनाथा ॥ बयान । मोह परम अधकार जानी ॥१॥ उपदेसा । अज अेत अगुन न दयेसा सा ॥ www.swargarohan.org
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उरकाड
अकल अनीह अनाम अपा । अनुभव भव गय अखड ड अनपा पा ॥२॥ मन गोतीत अमल अबनासी । नबकार कार नरवध सुख ख रासी ॥ सो त ताह तोह नह भेदा । बार बीच इव गावह बेदा दा ॥३॥ बबध भाँत त मोह मुन न समुझावा झावा । नगुन न मत मम दयँ न आवा ॥ पुन न म कहेउँ नाइ पद सीसा । सगुन न उपासन कहह नीसा ॥४॥ ु मुनीसा राम भगत जल मम मन मीना । कम बलगाइ मुनीस नीस ूबीना ॥ सोइ उपदेस कहह राया ॥५॥ ु कर दाया । नज नयनह देख रघुराया भर लोचन बलोक अवधेसा सा । तब सुनहउँ नहउँ नगुन न उपदेसा ॥ मुन न पुन न कह हरकथा अनपा पा । खड ड सगुन न मत अगुन न नपा ॥६॥ तब म नगुन न मत कर दर । सगुन न नपउँ कर हठ भर र ॥ उर ूतउर म कहा । मुन न तन भए ोध के चीहा ॥७॥ सुनु नु ूभु बहत अवया कएँ । उपज ोध यानह के हएँ ॥ ु अत सघरषन घरषन ज कर कोई । अनल ूगट चदन दन ते होई ॥८॥ दोहा बारबार सकोप मुन न करइ नपन यान । म अपन मन बैठ ठ तब करउँ बबध अनुमान मान ॥१११(क )॥ ोध क ेतबु बनु ैत क बनु अयान । मायाबस परछन जड़ जीव क ईस समान ॥१११(ख )॥ कबहँ ु क दख ु सब कर हत ताक । तेह क दिर परस मन जाक ॥ पिरोह क होह नसका का । कामी पुन न क रहह अकलका का ॥१॥ बस स क रह ज अनहत कह । कम क होह ःवपह चीह ॥ काह मत क खल सँग ग जामी । सुभ भ गत पाव क परय गामी ॥२॥ सुमत भव क परह परमामा बदक दक । सुखी खी क होह कबहँ ु हरनदक दक ॥ राजु क रहइ नीत बनु जान । अघ क रहह हरचरत बखान ॥३॥ पावन जस क पुय य बनु होई । बनु अघ अजस क पावइ कोई ॥ लाभु क कछु हर भगत समाना । जेह ह गावह ौुत त सत त पुराना राना ॥४॥ हान क जग एह सम कछु भाई । भजअ न रामह नर तनु पाई ॥ अघ क पसुनता नता सम कछु आना । धम क दया सरस हरजाना ॥५॥ एह बध अमत जुगु गुत त मन गुनऊँ नऊँ । मुन न उपदेस न सादर सुनऊँ नऊँ ॥ पुन न पुन न सगुन न पछ म रोपा । तब मुन न बोलेउ उ बचन सकोपा ॥६॥ म ढ़ परम सख देउँ न मानस । उर ूतउर बह ु आनस ॥ सय बचन बःवास न करह । बायस इव सबह ते डरह ॥७॥ सठ ःवपछ तब दयँ बसाला । सपद होह पछ चडाला डाला ॥
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लीह ौाप म
सीस चढ़ाई ।
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नह
कछु
भय न दनता आई ॥८॥
दोहा तुरत रत भयउँ म काग तब पुन न मुन न पद स नाइ । सुमर मर राम रघुबबस स मन हरषत चलेउँउँ उड़ाइ ॥११२(क )॥ उमा जे राम चरन रत बगत काम मद ोध ॥ नज ूभुमय मय देखह जगत केह ह सन करह बरोध ॥११२(ख )॥ सुनु नु खगेस नह कछु रष दषन । उर ूेरक रघुबबस स बभषन षन ॥ कृपास पासधु धु मुन न मत कर भोर । लीह ूेम परछा मोर ॥१॥ मन बच म मोह नज जन जाना । मुन न मत पुन न फेर र भगवाना ॥ रष मम महत सीलता देखी । राम चरन बःवास बसेषी ॥२॥ अत बसमय पुन न पुन न पछताई । सादर मुन न मोह लीह बोलाई ॥ मम परतोष बबध बध कहा । हरषत रामम तब दहा ॥३॥ बालकप राम कर याना । कहेउ मोह मुन न कृपानधाना पानधाना ॥ सु सुदर दर सुखद खद मह अत भावा । सो ूथमह म तुहह हह सुनावा नावा ॥४॥ मुन न मोह कछुक क काल तहँ राखा । रामचरतमानस तब भाषा ॥ सादर मोह यह कथा सुनाई नाई । पुन न बोले मुन न गरा सुहाई हाई ॥५॥ रामचरत सर गु सुहावा हावा । सभु भु ूसाद तात म पावा ॥ तोह नज भगत राम कर जानी । ताते म सब कहेउँ बखानी ॥६॥ राम भगत जह क उर नाह । कबहँ ु न तात कहअ तह पाह ॥ मुन न मोह बबध भाँत समुझावा झावा । म सूेम म मुन न पद स नावा ॥७॥ नज कर कमल परस मम सीसा । हरषत आसष दह मुनीसा नीसा ॥ राम भगत अबरल उर तोर । बसह सदा ूसाद अब मोर ॥८॥ दोहा सदा राम ूय होह ह सुभ भ गुन न भवन अमान । ु तुह कामप इधामरन यान बराग नधान ॥११३(क )॥ जह आौम तुह ह बसब पुन न सुमरत मरत ौीभगवत त । यापह तहँ न अबा जोजन एक ूजत त ॥११३(ख )॥ काल राम बनु जो सुन न
कम गुन न दोष सुभाऊ भाऊ । कछु दख तुहह हह न यापह काऊ ॥ ु रहःय ललत बध नाना । गु ूगट इतहास पुराना राना ॥१॥ ौम तुह ह जानब सब सोऊ । नत नव नेह राम पद होऊ ॥ इछा करहह भ नाह ॥२॥ ु भ ु मन माह । हर ूसाद कछु दल मुन न आसष सुनु नु मतधीरा । ॄगरा भइ गगन गँभीरा भीरा ॥ www.swargarohan.org
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उरकाड
एवमःतु तव बच मुन न यानी । यह मम भगत कम मन बानी ॥३॥ सुन न नभगरा हरष मोह भयऊ । ूेम म मगन सब ससय सय गयऊ ॥ कर बनती मुन न आयसु पाई । पद सरोज पुन न पुन न स नाई ॥४॥ हरष सहत एह आौम आयउँ । ूभु ूसाद दल भ बर पायउँ ॥ ु भ इहाँ बसत मोह सुनु नु खग ईसा । बीते कलप सात अ बीसा ॥५॥ करउँ सदा रघुपत पत गुन न गाना । सादर सुनह नह बहग सुजाना जाना ॥ जब जब अवधपुर र रघुबीरा बीरा । धरह भगत हत मनुज ज सररा ॥६॥ तब तब जाइ राम पुर र रहऊँ । ससुलीला लीला बलोक सुख ख लहऊँ ॥ पुन न उर राख राम ससुपा पा । नज आौम आवउँ खगभपा पा ॥७॥ कथा सकल म तुहह हह सुनाई नाई । काग देह जेह ह कारन पाई ॥ कहउँ तात सब ूःन तुहार हार । राम भगत महमा अत भार ॥८॥ ताते नज
यह ूभु
दोहा तन मोह ूय भयउ राम पद नेह । दरसन पायउँ गए सकल सदेदहे ॥११४(क )॥ ,
भगत पछ हठ कर मुन न दल ु भ बर पायउँ
रहेउँ दह महारष साप । देख ुह भजन ूताप ॥११४(ख )॥
जे अस भगत जान परहरह । केवल वल यान हेतु ौम करह ॥ ते जड़ कामधेनु नु गृहँहँ यागी । खोजत आकु फरह पय लागी ॥१॥ सुनु नु खगेस हर भगत बहाई । जे सुख ख चाहह आन उपाई ॥ ते सठ महासधु धु बनु तरनी । पैर र पार चाहह जड़ करनी ॥२॥ सुन न भसु भसुड ड के बचन भवानी । बोलेउ गड़ हरष मृद द ु बानी ॥ तव ूसाद ूभु मम उर माह । ससय सय सोक मोह ॅम नाह ॥३॥ सुने नउँउे ँ पुनीत नीत राम गुन न ामा । तुहर हर कृपाँ पाँ लहेउँ बौामा ॥ एक बात ूभु प ँछउँ छउँ तोह । कहह झाइ कृपानध पानध मोह ॥४॥ ु बुझाइ कहह सत त मुन न बेद पुराना राना । नह कछु दल भ यान समाना ॥ ु भ सोइ मुन न तुह ह सन कहेउ गोसा । नह आदरे ुह भगत क ना ॥५॥ यानह भगतह अतर तर केता ता । सकल कहह पा नके ता ॥ ु ूभु कृपा सुन न उरगार बचन सुख ख माना । सादर बोलेउ उ काग सुजाना जाना ॥६॥ भगतह यानह नह कछु भेदा दा । उभय हरह भव सभव भव खेदा दा ॥ नाथ मुनीस नीस कहह कछु अतर तर । सावधान सोउ सुनु नु बहगबर ॥७॥ यान बराग जोग बयाना । ए सब पुष ष सुनह न ुह हरजाना ॥ www.swargarohan.org
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पुष ष ूताप ूबल सब भाँती ती ।
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अबला अबल सहज जड़ जाती ॥८॥
दोहा पुष ष याग सक नारह जो बर मत धीर ॥ न तु कामी बषयाबस बमुख ख जो पद रघुबीर बीर ॥११५(क )॥ सोरठा सोउ मुन न याननधान मृगनयनी गनयनी बधु मुख ख नरख । बबस होइ हरजान नार बंनु माया ूगट ॥११५(ख )॥ इहाँ न पछपात कछु राखउँ । बेद पुरान रान सत त मत भाषउँ ॥ मोह न नार नार क पा । पनगार यह रत अनपा पा ॥१॥ माया भगत सुनह न ुह तुह ह दोऊ । नार बग जानइ सब कोऊ ॥ पुन न रघुबीरह बीरह भगत पआर । माया खलु नतक क बचार ॥२॥ भगतह सानुक ल रघुराया राया । ताते तेह डरपत अत माया ॥ राम भगत नपम नपाधी । बसइ जासु उर सदा अबाधी ॥३॥ तेह ह बलोक माया सकुचाई चाई । कर न सकइ कछु नज ूभुताई ताई ॥ अस बचार जे मुन न बयानी । जाचह भगत सकल सुख ख खानी ॥४॥ दोहा यह रहःय रघुनाथ नाथ कर बेग ग न जानइ कोइ । जो जानइ रघुपत पत कृपाँ पाँ सपने ुहँहँ मोह न होइ ॥११६(क )॥ औरउ यान भगत कर भेद द सुनह न ुह सुूबीन ूबीन । जो सुन न होइ राम पद ूीत सदा अबछन ॥११६(ख )॥ सुनह न ुह तात यह अकथ कहानी । समुझत झत बनइ न जाइ बखानी ॥ ईःवर अस स जीव अबनासी । चेतन तन अमल सहज सुख ख रासी ॥१॥ सो मायाबस भयउ गोसा । बँयो यो कर मरकट क नाई ॥ जड़ चेतनह तनह थ थ पर गई । जदप मृषा षा छटत कठनई ॥२॥ तब ते जीव भयउ ससार सार । छ ट न थ थ न होइ सुखार खार ॥ ौुत त पुरान रान बह ु कहेउ उपाई । छ ट न अधक अधक अझाई ॥३॥ जीव दयँ तम मोह बसेषी । थ थ छ ट कम परइ न देखी ॥ अस सजोग जोग ईस जब करई । तबहँ ु कदाचत सो नअरई ॥४॥ सावक ौा धेनु नु सुहाई हाई । ज हर कृपाँ पाँ दयँ बस आई ॥ जप तप ॄत जम नयम अपारा । जे ौुत त कह सुभ भ धम अचारा ॥५॥ तेइ इ तृन न हरत चरै जब गाई । भाव बछ ससु पाइ पेहाई हाई ॥
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उरकाड
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नोइ नबृ पा बःवासा । नमल ल मन अहर नज दासा ॥६॥ परम धममय मय पय दह भाई । अवटै अनल अकाम बहाई ॥ ु तोष मत तब छमाँ जु ड़ावै । धृत त सम जावनु देइ जमावै ॥७॥ मुदताँ दताँ मथ बचार मथानी । दम अधार रजु सय सुबानी बानी ॥ तब मथ काढ़ लेइ इ नवनीता । बमल बराग सुभग भग सुपुपनीता न ु ीता ॥८॥ जोग बु तब च तीन तल ल
दोहा अगन कर ूगट तब कम सुभासु भासुभ भ सराव यान घृत त ममता मल जर जाइ बयानपन बु बसद घृत त दआ भर धरै ढ़ समता दअट बनाइ अवःथा तीन गुन न तेह कपास त तुरय रय सँवार वार पुन न बाती करै सुगाढ़ गाढ़
एह बध जातह जासु
लाइ । ॥११७(क )॥ पाइ । ॥११७(ख )॥ काढ़ । ॥११७(ग )॥
सोरठा लेसै दप तेज रास बयानमय ॥ समीप जरह मदादक सलभ सब ॥११७(घ )॥
सोहमःम इत बृ अखडा डा । दप सखा सोइ परम ूचडा डा ॥ आतम अनुभव सुख ख सुूकासा ूकासा । तब भव मल ल भेद द ॅम नासा ॥१॥ ूबल अबा कर परवारा । मोह आद तम मटइ अपारा ॥ तब सोइ बु पाइ उँजआरा । उर गृहँहँ बैठ ठ थ थ नआरा ॥२॥ छोरन थ थ पाव ज सोई । तब यह जीव कृतारथ तारथ होई ॥ छोरत थ थ जान खगराया । बन अनेक करइ तब माया ॥३॥ र स ूेरइ बह ह लोभ दखावह आई ॥ ु भाई । बुह कल बल छल कर जाह समीपा । अचल चल बात बुझावह झावह दपा ॥४॥ होइ बु ज परम सयानी । तह तन चतव न अनहत जानी ॥ ज तेह बन बु नह बाधी । त बहोर सुर र करह उपाधी ॥५॥ इि ार झरोखा नाना । तहँ तहँ सुर र बैठेठे कर थाना ॥ आवत देखह बषय बयार । ते हठ देह कपाट उघार ॥६॥ जब सो ूभजन जन उर गृहँहँ जाई । तबह दप बयान बुझाई झाई ॥ थ थ न छट मटा सो ूकासा । बु बकल भइ बषय बतासा ॥७॥ इिह सुरह रह न यान सोहाई । बषय भोग पर ूीत सदाई ॥ बषय समीर बु कृत त भोर । तेह ह बध दप को बार बहोर ॥८॥ दोहा www.swargarohan.org
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तब फर जीव बबध बध पावइ ससृ सत ृ त लेस स । हर माया अत दःतर तर न जाइ बहगेस स ॥११८(क )॥ ु कहत कठन समुझत झत कठन साधन कठन बबेक । होइ घुनाछर नाछर याय ज पुन न ूयह ह अनेक क ॥११८(ख )॥ यान पथ थ कृपान पान कै धारा । परत खगेस स होइ नह बारा ॥ जो नबन न पथ थ नबहई हई । सो कैवय वय परम पद लहई ॥१॥ अत दल भ कैवय वय परम पद । सत त पुरान रान नगम आगम बद ॥ ु भ राम भजत सोइ मुकु कुत त गोसाई । अनइछत आवइ बरआई ॥२॥ जम थल बनु जल रह न सकाई । कोट भाँत त कोउ करै उपाई ॥ तथा मोछ सुख ख सुनु नु खगराई । रह न सकइ हर भगत बहाई ॥३॥ अस बचार हर भगत सयाने । मु नरादर भगत लुभाने भाने ॥ भगत करत बनु जतन ूयासा । ससृ सत ृ त मल ल अबा नासा ॥४॥ भोजन करअ तृपत पत हत लागी । जम सो असन पचवै जठरागी ॥ अस हरभगत सुगम गम सुखदाई खदाई । को अस म ढ़ न जाह सोहाई ॥५॥ दोहा सेवक सेय य भाव बनु भव न तरअ उरगार ॥ भजह कज अस सात त बचार ॥११९(क )॥ ु राम पद पकज जो चेतन तन कहँ ज़ड़ करइ ज़ड़ह करइ चैतय तय । अस समथ रघुनायकह नायकह भजह जीव ते धय ॥११९(ख )॥ कहेउँ यान सात बुझाई झाई । सुनह न ुह भगत मन कै ूभुताई ताई ॥ राम भगत चतामन तामन सु दर दर । बसइ गड़ जाके उर अतर तर ॥१॥ परम ूकास प दन राती । नह कछु चहअ दआ घृत त बाती ॥ मोह दिर नकट नह आवा । लोभ बात नह ताह बुझावा झावा ॥२॥ ूबल अबा तम मट जाई । हारह सकल सलभ समुदाई दाई ॥ खल कामाद नकट नह जाह । बसइ भगत जाके उर माह ॥३॥ गरल सुधासम धासम अर हत होई । तेह मन बनु सुख ख पाव न कोई ॥ यापह मानस रोग न भार । जह के बस सब जीव दखार ॥४॥ ु राम भगत मन उर बस जाक । दख लवलेस स न सपनेहँहु ँ ताक ॥ ु चतुर र सरोमन तेइ जग माह । जे मन लाग सुजतन जतन कराह ॥५॥ सो मन जदप ूगट जग अहई । राम कृपा पा बनु नह कोउ लहई ॥ सुगम गम उपाय पाइबे केरेरे । नर हतभाय देह भटमेरे ॥६॥ पावन पबत त बेद पुराना राना । राम कथा चराकर नाना ॥ मम सजन सुमत मत कुदार दार । यान बराग नयन उरगार ॥७॥ www.swargarohan.org
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भाव मोर राम सब अस
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सहत खोजइ जो ूानी । पाव भगत मन सब सुख ख खानी ॥ मन ूभु अस बःवासा । राम ते अधक राम कर दासा ॥८॥ सधु धु घन सजन धीरा । चदन दन त हर सत त समीरा ॥ कर फल हर भगत सुहाई हाई । सो बनु सत त न काहँ पाई ॥९॥ बचार जोइ कर सतसगा गा । राम भगत तेह सुलभ लभ बहगा ॥१०॥ दोहा ॄ पयोनध मदर दर यान सत त सुर र आह । कथा सुधा धा मथ काढ़ह भगत मधुरता रता जाह ॥१२०(क )॥ बरत चम अस यान मद लोभ मोह रपु मार । जय पाइअ सो हर भगत देखु खगेस स बचार ॥१२०(ख )॥
पुन न सूेम म बोलेउ उ खगराऊ । ज कृपाल पाल मोह ऊपर भाऊ ॥ नाथ मोह नज सेवक जानी । स ूःन कहह ु बखानी ॥१॥ ूथमह कहह भ कवन सररा ॥ ु भ ु नाथ मतधीरा । सब ते दल बड़ दख कवन कवन सुख ख भार । सोउ सछे छपे ह कहह ु ु बचार ॥२॥ सत त असत त मरम तुह ह जानह भाव बखानह ु । तह कर सहज सुभाव ु ॥ कवन पुय य ौुत त बदत बसाला । कहह ु कवन अघ परम कराला ॥३॥ मानस रोग कहह समुझाई झाई । तुह ह सबय य कृपा पा अधकाई ॥ ु तात सुनह न ुह सादर अत ूीती । म सछे छप पे कहउँ यह नीती ॥४॥ नर तन सम नह कवनउ देह । जीव चराचर जाचत तेह ह ॥ नरग ःवग अपबग नसेनी । यान बराग भगत सुभ भ देनी ॥५॥ सो तनु धर हर भजह न जे नर । होह बषय रत मद द मद द तर ॥ काँच करच बदल ते लेह ह । कर ते डार परस मन देह ॥६॥ नह दिर सम दख जग माह । सत त मलन सम सुख ख जग नाह ॥ ु पर उपकार बचन मन काया । सत त सहज सुभाउ भाउ खगराया ॥७॥ सत त सहह दख परहत लागी । परदख हेतु असत त अभागी ॥ ु ु भज ज त सम सत त कृपाला पाला । परहत नत सह बपत बसाला ॥८॥ सन इव खल पर बधन धन करई । खाल कढ़ाइ बपत सह मरई ॥ खल बनु ःवारथ पर अपकार । अह मषक षक इव सुनु नु उरगार ॥९॥ पर सपदा पदा बनास नसाह । जम सस हत हम उपल बलाह ॥ द उदय जग आरत हेत । जथा ूस अधम ह केत त ॥१०॥ ु सत त उदय सतत तत सुखकार खकार । बःव सुखद खद जम इद ु तमार ॥ परम धम ौुत त बदत अहसा । पर नदा दा सम अघ न गरसा ॥११॥ हर गुर र नदक दक दादर होई । जम सह पाव तन सोई ॥ ु
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ज नदक दक बह ु नरक भोग कर । जग जनमइ बायस सरर धर ॥१२॥ सुर र ौुत त नदक दक जे अभमानी । ररव नरक परह ते ूानी ॥ होह उलक क सत त नदा दा रत । मोह नसा ूय यान भानु गत ॥१३॥ सब के नदा दा जे जड़ करह । ते चमगादर होइ अवतरह ॥ ु सुनह न ुह तात अब मानस रोगा । जह ते दख पावह सब लोगा ॥१४॥ ु मोह सकल याधह कर मला ला । तह ते पुन न उपजह बह ला ॥ ु सला काम बात कफ लोभ अपारा । ोध प नत छाती जारा ॥१५॥ ूीत करह ज तीनउ भाई । उपजइ सयपात दखदाई ॥ ु बषय मनोरथ दग म नाना । ते सब सल ल नाम को जाना ॥१६॥ ु म ममता दाद कड ु इरषाई । हरष बषाद गरह बहताई ॥ ु ु पर सुख ख देख जरन सोइ छई । कु दता मन कुटलई टलई ॥१७॥ ु अहकार अत दखद डमआ । दभ कपट मद मान नेहआ ॥ ु तृःना ःना उदरबृ अत भार । बध ईषना तन तजार ॥१८॥ जुग ग बध वर मसर अबबेका का । कहँ लाग कह कुरोग रोग अनेका का ॥१९॥ दोहा एक याध बस नर मरह ए असाध बह ु याध । पीड़ह सतत तत जीव कहँ ु सो कम लहै समाध ॥१२१(क )॥ नेम म धम आचार तप यान जय जप दान । भेषज पुन न कोटह नह रोग जाह हरजान ॥१२१(ख )॥ एह बध सकल जीव जग रोगी । सोक हरष भय ूीत बयोगी ॥ मानक रोग कछुक क म गाए । हह सब क लख बरलेह पाए ॥१॥ जाने ते छजह कछु पापी । नास न पावह जन परतापी ॥ बषय कुपय पय पाइ अकु करेरु े । मुनह नह ु दयँ का नर बापुरेरे ॥२॥ राम कृपाँ पाँ नासह सब रोगा । ज एह भाँत बनै सयोगा योगा ॥ सदगुर र बैद द बचन बःवासा । सजम जम यह न बषय कै आसा ॥३॥ रघुपत पत भगत सजीवन मर र । अनपान पान ौा मत पर र ॥ एह बध भलेह ह सो रोग नसाह । नाह त जतन कोट नह जाह ॥४॥ जानअ तब मन बज गोसाँई ई । जब उर बल बराग अधकाई ॥ सुमत मत छुधा धा बाढ़इ नत नई । बषय आस दब लता गई ॥५॥ ु लता बमल यान जल जब सो नहाई । तब रह राम भगत उर छाई ॥ सव अज सुक क सनकादक नारद । जे मुन न ॄ बचार बसारद ॥६॥ सब कर मत खगनायक एहा । करअ राम पद पकज कज नेहा ॥ ौुत त पुरान रान सब थ थ कहाह । रघुपत पत भगत बना सुख ख नाह ॥७॥
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कमठ पीठ जामह ब बारा । बया या सुत त ब काहह मारा ॥ ु फलह नभ ब बहबध फला । जीव न लह सुख ख हर ूतकला ॥८॥ ु तृषा षा जाइ ब मृगजल गजल पाना । ब जामह सस सीस बषाना ॥ अधका धका ब रबह नसावै । राम बमुख ख न जीव सुख ख पावै ॥९॥ हम ते अनल ूगट ब होई । बमुख ख राम सुख ख पाव न कोई ॥१०॥ दोहा बार मथ घृत त होइ ब सकता ते ब तेल । बनु हर भजन न भव तरअ यह सात अपेल ल ॥१२२(क )॥ मसकह करइ बरर च ूभु अजह मसक ते हन । अस बचार तज ससय सय रामह भजह ूबीन ॥१२२(ख )॥ ोक वनौत वदाम ते न अयथा वचास मे । हर नरा भजत येऽतदःतर तरत ते ॥१२२(ग )॥ ु कहेउँ नाथ हर चरत अनपा पा । यास समास ःवमत अनुपा पा ॥ ौुत त सात इहइ उरगार । राम भजअ सब काज बसार ॥१॥ ूभु रघुपत पत तज सेइअ इअ काह । मोह से सठ पर ममता जाह ॥ तुह ह बयानप नह मोहा । नाथ कह मो पर अत छोहा ॥२॥ पछहँ छहँ ु राम कथा अत पावन । सुक क सनकाद सभु भु मन भावन ॥ सत सगत गत दल भ ससारा सारा । नमष दड भर एकउ बारा ॥३॥ ु भ देखु गड़ नज दयँ बचार । म रघुबीर बीर भजन अधकार ॥ सकुनाधम नाधम सब भाँत अपावन । ूभु मोह कह बदत जग पावन ॥४॥ आजु नज नाथ चरत
दोहा धय म धय अत जप सब बध हन । जन जान राम मोह सत त समागम दन ॥१२३(क )॥ जथामत भाषेउँउँ राखेउँउँ नह कछु गोइ । सधु धु रघुनायक नायक थाह क पावइ कोइ ॥१२३(ख )॥
सुमर मर राम के गुन न गन नाना । पुन न पुन न हरष भुसु स ड ु ड सुजाना जाना ॥ महमा नगम नेत त कर गाई । अतुलत लत बल ूताप ूभुताई ताई ॥१॥ सव अज पय य चरन रघुराई राई । मो पर कृपा पा परम मृदलाई द ुलाई ॥ अस सुभाउ भाउ कहँ ु सुनउँ नउँ न देखउँ । केह ह खगेस स रघुपत पत सम लेखउँ खउँ ॥२॥ साधक स बमु उदासी । कब कोबद कृतय तय सयासी यासी ॥
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जोगी सर र सुतापस तापस यानी । धम नरत पडत डत बयानी ॥३॥ तरह न बनु सेएँ एँ मम ःवामी । राम नमाम नमाम नमामी ॥ सरन गएँ मो से अघ रासी । होह सु नमाम अबनासी ॥४॥ दोहा जासु नाम भव भेषज हरन घोर य सल ल । सो कृपालु पालु मोह तो पर सदा रहउ अनुक ल ॥१२४(क )॥ सुन न भुसु स ड ु ड के बचन सुभ भ देख राम पद नेह ह । बोलेउ ूेम म सहत गरा गड़ बगत सदेदहे ॥१२४(ख )॥ मै कृकृ कृय य भयउँ तव बानी । सुन न रघुबीर बीर भगत रस सानी ॥ राम चरन नतन तन रत भई । माया जनत बपत सब गई ॥१॥ मोह जलध बोहत तुह ह भए । मो कहँ नाथ बबध सुख ख दए ॥ मो पह होइ न ूत उपकारा । बदउँ दउँ तव पद बारह बारा ॥२॥ परन रन काम राम अनुरागी रागी । तुह ह सम तात न कोउ बड़भागी ॥ सत त बटप सरता गर धरनी । पर हत हेतु सबह कै करनी ॥३॥ सत त दय नवनीत समाना । कहा कबह पर कहै न जाना ॥ नज परताप िवइ नवनीता । पर दख िवह सत त सुपुपुनीता नीता ॥४॥ ु जीवन जम सुफल फल मम भयऊ । तव ूसाद ससय सय सब गयऊ ॥ जाने ुह सदा मोह नज क क कर । पुन न पुन न उमा कहइ बहगबर ॥५॥ दोहा तासु चरन स नाइ कर ूेम म सहत मतधीर । गयउ गड़ बैकु क ठ ु तब दयँ राख रघुबीर बीर ॥१२५(क )॥ गरजा सत त समागम सम न लाभ कछु आन । बनु हर कृपा पा न होइ सो गावह बेद पुरान रान ॥१२५(ख )॥ कहेउँ परम पुनीत नीत इतहासा । ूनत कपत कना पु पुजा जा । मन म बचन जनत अघ जाई तीथाटन टन साधन समुदाई दाई । नाना कम धम ॄत दाना । भत त दया ज गुर र सेवकाई जहँ लग साधन बेद बखानी । सो रघुनाथ नाथ भगत ौुत त गाई
सुनत नत ौवन छटह भव पासा ॥ उपजइ ूीत राम पद कजा ॥१॥ । सुनह नह जे कथा ौवन मन लाई ॥ जोग बराग यान नपुनाई नाई ॥२॥ सजम जम दम जप तप मख नाना ॥ । बा बनय बबेक क बड़ाई ॥३॥ सब कर फल हर भगत भवानी ॥ । राम कृपाँ पाँ काहँ एक पाई ॥४॥
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दोहा मुन न दल भ हर भगत नर पावह बनह ूयास । ु भ जे यह कथा नरतर सुनह नह मान बःवास ॥१२६॥ सोइ सबय य गुनी नी सोइ याता धम परायन सोइ कुल ल ाता । नीत नपुन न सोइ परम सयाना सोइ कब कोबद सोइ रनधीरा धय देस सो जहँ सुरसर रसर धय सो भपुपु नीत जो करई । सो धन धय ूथम गत जाक धय घर सोइ जब सतसगा गा । सो कुल ल धय ौीरघुबीर बीर परायन
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सोइ मह मडत डत पडत डत दाता ॥ राम चरन जा कर मन राता ॥१॥ । ौुत त सात त नीक तेह ह जाना ॥ । जो छल छाड़ भजइ रघुबीरा बीरा ॥२॥ । धय नार पतॄत अनुसर सर ॥ धय सो ज नज धम न टरई ॥३॥ । धय पुय य रत मत सोइ पाक ॥ धय जम ज भगत अभगा गा ॥४॥
दोहा उमा सुनु नु जगत पय य सुपुपुनीत नीत । जेह नर उपज बनीत ॥१२७॥
मत अनुप प कथा म भाषी । जप ूथम गु कर राखी ॥ तव मन ूीत देख अधकाई । तब म रघुपत पत कथा सुनाई नाई ॥१॥ यह न कहअ सठह हठसीलह । जो मन लाइ न सुन न हर लीलह ॥ कहअ न लोभह ोधह कामह । जो न भजइ सचराचर ःवामह ॥२॥ ज िोहह न सुनाइअ नाइअ कबहँ । सुरपत रपत सरस होइ नृप प जबहँ ॥ राम कथा के तेइ इ अधकार । जह क सतसगत गत अत यार ॥३॥ गुर र पद ूीत नीत रत जेई । ज सेवक वक अधकार तेई ई ॥ ता कहँ यह बसेष सुखदाई खदाई । जाह ूानूय ौीरघुराई ॥४॥ दोहा राम चरन रत जो चह अथवा पद नबान न । भाव सहत सो यह कथा करउ ौवन पुट ट पान ॥१२८॥ राम कथा गरजा म बरनी । ससृ सत ृ त रोग सजीवन मर र । एह महँ चर स सोपाना अत हर कृपा पा जाह पर होई मन कामना स नर पावा । कहह सुनह नह अनुमोदन मोदन करह ।
कल मल समन मनोमल हरनी ॥ राम कथा गावह ौुत त सर र ॥१॥ । रघुपत पत भगत केर र पथाना थाना ॥ । पाउँ देइ एह मारग सोई ॥२॥ जे यह कथा कपट तज गावा ॥ ते गोपद इव भवनध तरह ॥३॥
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सुन न सब कथा दयँ अत भाई । गरजा बोली गरा सुहाई हाई ॥ नाथ कृपाँ पाँ मम गत सदेदहे ा । राम चरन उपजेउ उ नव नेहा हा ॥४॥ म कृतकृ तकृय य भइउँ उपजी राम भगत
दोहा अब तव ूसाद बःवेस । ढ़ बीते सकल कलेस ॥१२९॥
यह सुभ भ सभु भु उमा सबादा बादा । सुख ख सपादन पादन समन बषादा ॥ भव भजन जन गजन जन सदेदहे ा । जन रजन सजन ूय एहा ॥१॥ राम उपासक जे जग माह । एह सम ूय तह के कछु नाह ॥ पत कृपाँ पाँ जथामत गावा । म यह पावन चरत सुहावा हावा ॥२॥ रघुपत एह कलकाल न साधन द जा । जोग जय जप तप ॄत पजा जा ॥ जा रामह सुमरअ मरअ गाइअ रामह । सतत तत सुनअ नअ राम गुन न ामह ॥३॥ जासु पतत पावन बड़ बाना । गावह कब ौुत त सत त पुराना राना ॥ ताह भजह मन तज कुटलाई टलाई । राम भज गत केह ह नह पाई ॥४॥ छद द पाई न केह ह गत पतत पावन राम भज सुनु नु सठ मना । गनका अजामल याध गीध गजाद खल तारे घना ॥ आभीर जमन करात खस ःवपचाद अत अघप जे । कह नाम बारक तेप प पावन होह राम नमाम ते ॥१॥ रघुबबस स भषन षन चरत यह नर कहह सुनह नह जे गावह । कल मल मनोमल धोइ बनु ौम राम धाम सधावह ॥ सत पच च चपा मनोहर जान जो नर उर धरै । दान अबा पच च जनत बकार ौीरघुबर बर हरै ॥२॥ सु दर दर सुजान जान कृपा पा नधान अनाथ पर कर ूीत जो । सो एक राम अकाम हत नबानूद नूद सम आन को ॥ जाक कृपा पा लवलेस ते मतमद द तुलसीदासहँ लसीदासहँ । पायो परम बौामु राम समान ूभु नाह कहँ ॥३॥ दोहा मो सम दन न दन हत तुह ह समान रघुबीर बीर । अस बचार रघुबबस स मन हरह ु बषम भव भीर ॥१३०(क )॥ कामह नार पआर जम लोभह ूय जम दाम ।
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तम रघुनाथ नाथ नरतर ूय
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लागह ु मोह राम ॥१३०(ख )॥
ोक यपवव ूभुणा णा कृत त सुकवना कवना ौीशभुना ना दग म ु म ौीिमामपदाज भमनश ूायै तु रामायणम । मवा ितघुनाथमनरत नाथमनरत ःवातःतम शातये भाषाबमद चकार तुलसीदासःतथा लसीदासःतथा मानसम ॥१॥ पुय य पापहर सदा शवकर वान भूद मायामोहमलापह सुवमल वमल ूेमाबुप परर शुभम भम । ौीिमामचरमानसमद भयावगाहत ये ते ससारपतगघोरकरणै सारपतगघोरकरणैदद त नो मानवा ॥२॥ ,
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इत ौीिमामचरतमानसे सकलकलकलुषववसने सने सम सोपान समा ।
उरकाड समा
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