गजे मो ीमागवत के अम कध म गजे मो क कथा है । तीय अयाय म ाह के साथ गजे के यु का वणन है, तृतीय तीय अयाय म गजेकृ कृत भगवान के तवन और गजे मो का संग है और चतुथ थ अयाय म गज ाह ा ह के पूवव जम का िइतहास है । ीमागवत म गजे मो आयान के पाठ का माहाय बतलाते ुहए इसको वग तथा यशदायक , िकलयुग के समत पाप का नाशक , दःवन नाशक और ेयसाधक यसाधक कहा ु गया है। तृतीय तीय अयाय का तवन बहत त ु ह उपादेय है । इसक भाषा और भाव िसां त के ितपादक और बहत ु ह मनोहर ह । (सामी - गीताेस गोरखपुर ारा िकाशत गजे मो पुतका तका से साभार)
ीमागवतातग गजे कत भगवान का तवन ********************************
ी शुक उवाच - ी शुकदे कदेव जी ने कहा एवं यिवसतो बुया या समाधाय मनो द । जजाप परमं जायं ाजमयनुिशतम िशतम ॥१॥ बु के ारा पछले अयाय म वणत रित से िनय करके तथा मन को दय देश म थर करके वह गजराज अपने पूवव जम म सीखकर कठथ कये ुहए सवे एवं बार बार दोहराने योय िनिनलखत तो का मन ह मन पाठ करने लगा ॥१॥
गजे उवा वाच गजराज गजराज ने (मन ह ह मन) कहा कहा नमो भगवते तमै यत एतचदामकम । पुषायादबीजाय षायादबीजाय परेशाियाभधीमह ॥१॥ जनके वेश करने पर ( (ज जनक नक चे तना तना को पाकर) ये जड शरर और मन आद भी चे तन तन बन जाते ह (चेचेतन तन क भांित ित यवहार करने लगते ह), 'ओम ' शद के ारा लत तथा सपूण शरर म कृित ित एवं पुष ष प से व ुहए उन सव समथ परमेर र को हम मन ह मन नमन करते ह ॥२॥
यमनदं यतेदंदं येने नदंदे ं य इदं वयं योमापरमाच परतं पे वयभुवम वम ॥३॥ जनके सहारे यह व टका है, जनसे यह िनकला है , जहोने इसक रचना क है और जो वयं ह इसके प म कट ह - फर भी जो इस य जगत से एवं इसक कारणभूता ता कृित ित से सवथा था परे (वलण ) एवं े ह - उन अपने आप - बना कसी कारण के - बने ुहए भगवान क म शरण लेता ता ू हं ॥३॥
यः वामनीदं िनजमाययाप िकचभातं क च तरोहतम । अवक सायुभयं भयं तदते स आममूलोवतु लोवतु मां परापरः ॥४॥ अपने संकप कप श के ार अपने ह वप म रचे ुहए और इिसीलये सृकाल काल म कट और लयकाल म उसी कार अकट रहने वाले इस शा िस काय कारण प जगत को जो अकुठत ठत होने के कारण साी प से देखते रहते ह उनसे िल नह होते, वे चु आद काशक के भी परम काशक भु मेर र रा कर ॥४॥
कालेन पंचिवमते चिवमतेषुषु कनशो लो षु पालेषषुु च सव हेतषुषु ु तमतदा सीद गहनं गभीरं यतय पारे िभवराजते वभुः ॥५॥ sss
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समय के वाह से सपूण ण लोक के एवं ाद लोकपाल के पंचभूत म वेश कर जाने पर तथा पंचभू चभूत त से लेकर कर महवपयत सपूण ण कारण के उनक परमकणाप कृित ित म लीन हो जाने पर उस समय द य तथा अपार अंधकारप धकारप कृित ित ह बच रह थी। उस ु य अंधकार धकार के परे अपने परम धाम म जो सवयापक यापक भगवान सब ओर िकाशत रहते ह वे भु मेर र रा कर ॥५॥
न यय देवा ऋषयः पदं वद तुः पुनः नः को हित गतुमीरतु मीरतुम । s
यथा नटयािकितभवचे चतो े तो दरययानुमणः मणः स मावतु ॥६॥ िभन िभन प म नाय करने वाले िअभनेता ता के वातवक वप को जस कार साधारण दशक नह जान पाते , उसी कार सव धान देवता तथा ऋष भी जनके वप को नह जानते , फर दसरा ू साधारण जीव तो कौन जान अथवा वण न कर सकता है - वे दग म चर वाले भु मेर र रा कर ॥६॥ ु म
दवो यय पदं सुमं मगलम ग ं लम वमु संगा मुनयः नयः सुसाधवः साधवः । चरयलोकतमणं वने भूतमभूता सुदः सुदः स मे िगतः ॥७॥ आस से सवदा छूटे ुहए , सपूण ाणय म आमबु रखने वाले , सबके अकारण हतू एवं िअतशय साधु वभाव मुिनगण िनगण जनके परम मंगलमय गलमय वप का सााकार करने क इछा से वन म रह कर अखड चाय आद अलौकक त का पालन करते ह , वे भु ह मेर र िगत ह ॥७॥
न वते यय न जम कम वा न नाम पे गुण णदोष दोष एव वा । तथाप लोकाययाभवाय यः वमायया तायुलाकमृ लाकमृिछत िछत ॥८॥ जनका हमार तरह कमवश ना तो जम होता है और न जनके जनके ारा अहंकार े रत रत कम ह होते ह, जनके िनगु ण वप का न तो कोई नाम है न प ह , फर भी समयानुसार जगत क सृ एवं लय (सं हार) हार) के िलये वेछा छा से जम आद को वीकार करते ह ॥८॥
तमै नमः परेशाय ाणे नतशये अपायोपाय नम आय कमणे ॥९॥ s
उन अनतश संपन पन परं परमेर र को नमकार है । उन ाकृत आकाररहत एवं
अनेको को आकारवाले अतकमा भगवान को बारंबार नमकार है ॥९॥ ु
नम आम दपाय साणे परमामने नमो िगरां वदराय मनसेतसामप तसामप ॥१०॥ वयं काश एवं सबके साी परमामा को नमकार है । उन भु को जो नम , वाणी एवं िचवृय य से भी सवथा परे ह , बार बार नमकार है ॥१०॥
सवेन ितलयाय नैकय कयण वपता । नमः वयनाथाय िनवाणसु णसुखसं खसंवदे वदे ॥११॥ ववेक क पुष ष के ारा सवगुणिवश णिवश िनवृधम धम के आचरण से ा होने योय , मो सुख क अनुभू भूित ित प भु को नमकार है ॥११॥
नमः शाताय घोराय मूढाय ढाय गुण िधम िनवशे शेषाय षाय सायाय नमो ानघनाय च ॥१२॥ सवगुण को वीकार करके शात , रजोगुण को वीकर करके घोर एवं तमोगुण को वीकार करके मूढ से तीत होने वाले, भेद रहत , अतएव सदा समभाव से थत ानघन भु को नमकार है ॥१२॥
ेाय ाय नमतुयं यं सवायाय याय साणे पुषायाममू षायाममूलय लय मूलकतये लकतये नमः ॥१३॥ शरर इय आद के समुदाय दाय प सपूण ण पड के ाता , सबके वामी एवं साी प आपको नमकार है । सबके अतयामी मी , कृित ित के भी परम कारण , कतु वयं कारण रहत भु को नमकार है ॥१३॥
सवयगु यगुणे णे सवययहे ययहेतवे असताछाययोाय सदाभासय ते नमः ॥१४॥ सपूण इय एवं उनके वषय के ाता , समत ितीतय के कारण प , सपूण जडपंच एवं सबक मूलभू लभूता ता अवा के ारा सूिचत िचत होने वाले तथा सपूण ण वषय म अवाप से भासने वाले आपको नमकार है ॥१४॥
नमो नमते खल कारणाय िनकारणायत कारणाय । सवागमामायमहाण गमामायमहाणवाय वाय नमोपवगाय परायणाय ॥१५॥ सबके कारण कंतु तु वयं कारण रहत तथा कारण होने पर भी परणाम रहत होने के कारण , अय कारण से वलण कारण आपको बारबार नमकार है । सपूण वेद द एवं शा के परम तापय , मोप एवं े पुष ष क परम िगत भगवान को नमकार है ॥१५॥ ॥
गुणारणछन णारणछन िचदमपाय तोभवफजत मासाय । नैकय कयभावे भावेन ववजतागमतागमवयंकाशाय काशाय नमकिरोम ॥१६॥ जो गुणप णप का म िछपे ुहए ानप अन ह , उ गुण ण म हलचल होने पर जनके मन म सृ रचने क बा वृ जागृत हो उठती है तथा आम तव क भावना के ारा िवध िनषेध प शा से ऊपर उठे ुहए ानी महामाओं म जो वयं िकाशत हो रहे ह उन भु को म नमकार करता हँ ू ॥१।६॥
मापनपशुपाशवमोणाय पाशवमोणाय मुाय ाय भूरकणाय रकणाय नमो लयाय । s
वांशे शन े सवतनु तनुभृ भृमिनस मिनस तीतयशे भगवते बृहते हते नमते ॥१७॥ मुझ जैसे से शरणागत पशुतु तय ु य (अव (अवात) ात) जीव क अवा अवाप प फाँसी सी को सदा के िलये पूण णप प से काट देने वाले अियाधक दयालू एवं दया करने म कभी आलय ना करने वाले िनयमु भु को नमकार है । अपने अंश से संपू पूण ण जीव के मन म अतयामी मी प से कट रहने वाले सव िनयता अनत परमामा आप को नमकार है ॥१७॥
आमामजागृहवजने हवजनेषुषु स
दापणाय गुणसं णसंगववज गववजताय ताय । ािमभः वदये परभावताय ानामने भगवते नम ईराय ॥१८॥ शरर , पु , िम , घर , संपंपी ं ी एवं कु ुटंटं बय म आस लोग के ारा कठनता से ा होने वाले तथा मु पुष ष के ारा अपने दय म िनरतर िचतत ानवप , सवसमथ समथ भगवान को नमकार है ॥१८॥
धमकामाथ कामाथवमु वमुकामा कामा भजत इां िगतमानुवत वत । िवाशषो रायप देहमययं करोतु मेददयो वमोणम ॥१९॥ जहे धम धम, िअभलाषत भोग , धन तथा मो क कामना से भजने वाले लोग अपनी मनचाह िगत पा लेते ते ह अपतु जो उहे अय कार के अियाचत भोग एवं अवनाशी पाषद शरर भी देते ह वे िअतशय दयालु भु मुझे झे इस वपी से सदा के िलये उबार ल ॥१९॥
एकातनो यय न चनाथ वांछत छत ये वै भगवपनाः ।