PAARAD SIDDH SOUNDARYA KANKAN
( ...
)
पारद पर अज हमारे मध्य आतने लेख और पोस्ट अ चक ु े हैं की ऄब कोइ भी आस धातु को जो की जीवित जाग्रत तरल हैं ईसके वदव्य गणु ों के प्रवत ऄवनवभज्ञता नही रख सकता हैं, हमने ऄपने आस ब्लॉग और तंत्र कौमदु ी के माध्यम से साथ ही साथ फे सबक ु के ग्रपु के माध्यम से आस पर ऄत्यंत सरल भाषा मे ऄनेको पोस्ट प्रकावित की हैं .हलावक यह सारा कायय सदगरुु देि जी ने ऄपनी पवत्रका मंत्र तंत्र यंत्र विज्ञानं के माध्यम से बहुत िषों पहले प्रारंभ कर चक ु े हैं.ईन्होंने स्ियं न के बल लेख वलख कर बवकक ईनके द्वारा अयोवजत विविरों मे ईन्होंने स्ियं प्रायोवगक रूप से आन बातो को समझाया बवकक के से संभि हो सकता हैं आनका वनमायण ... यह कर के वदखाया भी . बात ईठती हैं की पारद एक वदव्यतम धातु हैं, और ईसके क्षमताओ की सीमा ही नही पर कहने की ऄपेक्षा जब विविष्ट सस्ं कार करके वबवभन्न मत्रं ात्मक और तत्रं ात्मक प्रवियाओ ं से गजु रने के बाद ही पारा ..पारद मे और वफर विविष्टं गवु टकाओ मे बदलने की वस्तवथ मे अ पाता हैं, वफर ईसे िेधन क्षमता यक्त ु करना पर ... मात्र िेधन क्षमता प्राप्त होने से सभी जन सामान्य का ककयाण संभि नहीं हे, आसी वलए सदाविि ने बद्ध पारद को ऄनंत क्षमता का अिीियचन वदया. आसी वलए यह देिताओ ं के द्वारा भी पवू जत हे. सकलसरु मवु नदरे िवे द सियईपास्य तः िभं ु बीजं सभी ऊवषमवु नयों तथा सरु ऄथायत देिताओ देिगणों के द्वारा पवू जत यह िभं बु ीज ऄथायत वििबीज पारद हे. जो देिताओ के द्वारा ईपास्य हे ईसकी ईपासना भला मनष्ु य को क्या प्रदान नहीं कर सकती हे. अप मे से ऄनेको ने यह विविष्ट गटु ीकाए/विग्रह /कंकण प्राप्त वकये हैं और आनके लाभों को ऄपने वदन प्रवतवदन के जीिन मे देख कर अश्चयय चवकत भी हुये हैं . जब बात सौंदयय की हो तो ..ईसकी पररभाषा मे सारा विश्व ही अ जाता हैं .क्योंवक सत्यम वििम सन्ु दरम की धारणा तो भारतीय मानस मे पहले से हैं .तो सौंदयय तो जीिन का अधार हैं.और वबना सौंदयय के जीिन का कोइ ऄथय नही ..और पारद का संयोग ऄगर आन सब बातों मे हो जाए तो वफर क्या कहना .पर पारद का संयोग साधना क्षेत्र के माध्यम से ही
आस ओर हो सकता हैं, जहााँ बात सौंदयय साधनाओ की अये तब वनश्चय ही िहां पर ऄप्सरा, यवक्षणी, गन्धिय कन्याए , वकन्नरी अवद का वििरण न अये यह के से हो सकता हैं .क्योंवक ऄगर सच मे सौंदयय को समझना हैं, जानना हैं, और ऄनभु ि करना हैं तो आन साधनाओ को देखना पड़ेगा ही अत्मसात करना पड़ेगा ही पर यह ऄत्यन्त सरल सी लगने िाली साधनाए ..िास्ति मे आतनी सरल हैं नही .क्योंवक वकन्ही एक की साधना से हमें जो लाभ प्राप्त हो सकते हैं िायद ईनके ऄलग ऄलग ऄनेको साधनाए करनी पड़े.और यह सत्य भी तो हैं .पर आन सरल सी लगने िाली साधनाओ मे सफलता बहुत कम को वमली हैं ,कारण हैं की आनके गोपनीय सत्रू ों का साधको मे न जानकारी होना और वजनके पास जानकारी भी तो ..ईन्होंने कृपण भाि बनाए रखा . तो साधनाओ के प्रवत क्या रुझान रख जाए .आसी बात को ऄपने मन मे रख कर एक ... एक वदिसीय ऄप्सरा यवक्षणी साधना रहस्य एिं सत्रू पर अधाररत सेमीनार का अयोजन वकया गया .अप सभी के द्वारा वजस ईत्साह पिू यक माहौल मे आसका अयोजन हुअ िह तो एक ऄलग ही तत्ि हैं ...अप सभी के वलए ऄप्सरा यवक्षणी रहस्य खडं वकताब और ईस बहु प्रतीवक्षत पणू य यवक्षणी ऄप्सरा सायज्जु ज्जय षष्ठ मंडल यन्त्र का प्राप्त होना वजस यन्त्र पर कोइ भी ऄप्सरा यवक्षणी की साधना के साथ साथ सौंदयय साधना,सम्मोहन साधना,कुबेर साधना,विि साधना,अकषयण साधना भी असानी से समपन्न की जा सकती हैं .और प्रसन्नता के आन्ही क्षणों मे अररफ भाइ जी द्वारा घोवषत वकया गया की ..ईनकी तरफ से एक ऄदव्् तीय ईपहार जो आस सेमीनार मे भाग लेने िालों सभी व्यवक्तयों के वलए वनिक्ु ल रहा हैं, ईपलब्ध कराया गया .वजसका नाम पारद सौंदयय कंकण हैं . पर पारद गवु टका/या आस कंकण का आतना महत्त्ि हैं ही क्यों ? रस वसवद्ध के ऄंतगयत पारद के दल ु यभ विग्रह तथा गवु टकाओ कंकण का वििरण तो हे लेवकन आनकी प्रावप्त सहज नहीं हे क्योंकी आनके वनमायण से सबंवधत सभी प्रवियाए ऄत्यवधक गढ़ु तथा दस्ु कर रही हे. सदगरुु देि ने ऐसी विविध गवु टकाओ के बारे में विविरण प्रदान वकया तथा ईनके वनमायण पद्धवत को जनसामान्य के मध्य रखा तथा िे ऄपने स्ियं के वनदियन में ऐसी गवु टकाओ तथा विग्रहों का वनमायण कराते थे. मोह्येधः परान बद्धो वजव्येच्छ्मतृ ः परान मवू च्छछय तोबोध्येदन्् यन तं सतु ं कोन सेिते ‚ जो खदु बद्ध हो कर दसू रो को बााँध देता हे ऄथायत ठोस विग्रह या गवु टका रूप में जो पारद बद्ध हो जाता हे, िह दसू रों को बााँध देता हे, ऄथायत वकसी को भी सम्मोवहत करने का,
अकवषयत करना का, ििीभतू करने का गणु धारण कर लेता हे, वकसी भी देिी, देिता या देिगण को प्रत्यक्ष ईपवस्थत कर सकता हे; जो खदु मतृ हो कर दसू रों को जीिन देता हे, ऄथायत भस्म के रूप में या ऄपने अप की गवत को बद्ध कर स्ियं की ईजाय स्ियं के वलए ना ईपयोग कर ऄपने साधक को प्रदान कर नतू न जीिन प्रदान करता हे, जो खदु ही मवू छय त हो कर ऄथायत ऄपनी गवत, मवत को रोक कर ठोस रूप बन कर विविध गढ़ु ज्ञान का साधक को प्रदान करता हे ऐसे दल ु यभ तथा रहस्यमय पारद की प्रावप्त कोन ज्ञानी नहीं करना चाहेगा?‛ आस देि दल ु यभ पारद सौंदयय कंकण के कुछ गणु और लाभ अप सभी के वलए ..आस प्रकार से हैं . ईन्होंने आस कंकण की वििेषता बताते हुये कहा की सबसे पहले तो यह की तंत्र कौमदु ी मे अये हुये यवक्षणी सायज्जु ज्जय गवु टका की जगह आस पारद सौंदयय कंकण का प्रयोग वकया जा सकता हैं .हालावक ईस गवु टका के ऄन्य प्रयोग भी हैं .और िह बहुत ऄवधक मकू यिान भी हैं .पर ईसके लाभ आस कंकण से भी प्राप्त वकये जा सकते हैं .... और जब बात सौंदयय तथा श्गंृ ार की हो तो पारद वसद्ध सौंदयय कंकण का ईकलेख ऄवनिायय ही हे. आसी गवु टका को पारद वसद्ध सौंदयय कंकण, रस वसद्ध सौंदयय कंकण या रसेंद्र सौंदयय कंकण कहा गया हे, दसू री गवु टकाओ के मक ु ाबले भले आस गवु टका में लागत कम लगती हे लेवकन आसका महत्त्ि और साधनात्मक ईपयोवगता को ज़रा सा भी कम अाँका नहीं जा सकता. सौंदयय कंकण पारद गवु टकाओ की श्ेणी में एक ऄवत वििेष गवु टका हे वजसका अकार बड़ा नहीं होता हे, लेवकन वजसके उपर कइ प्रकार के प्रयोग सम्प्पन वकये जा सकते हे. मल ू तः यह सौंदयय तथा अकषयण गवु टकाओ के ऄंतगयत हे. सौंदयय का ऄथय यहााँ पर मात्र व्यवक्त के सौंदयय से नहीं बवकक व्यवक्त के पणू य जीिन तथा ईससे सबवं धत सभी पक्षों के सौंदयय से हे तथा अकषयण का भी ऄथय यहााँ पर देह से वनसतृ होने िाले अकषयण मात्र से ना हो कर वकसी भी व्यवक्त या देियोनी के अकषयण से भी हे. ऄगर व्यवक्त ऄपने जीिन में ऐसी अकषयण क्षमता को प्राप्त कर ले की देिता भी ईससे अकवषयत होने लगे वफर जीिन में रस ईमगं तथा सख ु भोग होना तो स्िाभाविक हे.
साथ ही साथ यह ऄपने अप मे एक पारद वििवलंग का भी कायय करे गी .यह सही हैं की एक पणू य पारद वििवलंग एक पारद वििवलंग ही हैं .पर आसका ईपयोग भी ईस तरह से वकया जा सकता हैं . सौंदयय कंकण के बारे में जेसे कहा गया हे, िह पणू य अकषयण क्षमता से यक्त ु होता हे. ऄतः वकसी भी व्यवक्त वििेष के अकषयण प्रयोग को आस गवु टका के सामने करने पर ईसका वििेष प्रभाि होना स्िाभाविक हे. साथ ही साथ वकसी भी देिी तथा देिता की साधना में आस गवु टका का होना सौभाग्य सचू क हे क्यों की तीव्र अकषयण क्षमता के माध्यम से यह वकसी भी देिी तथा देिता का भी यह गवु टका अकषयण कर सकती हे. या वकसी भी प्रकार के काम्य चाहे िह धनप्रावप्त हो या वफर घर में सख ु िांवत से सबंवधत प्रयोग हो, काम्य प्रयोग का ऄथय ही होता हे की गढ़ु िवक्त का अकषयण कर के साधना में ऄभीष्ट को प्राप्त करना या मनोकामना को पणू य करना, ऄगर ऐसे वकसी भी प्रकार के काम्य प्रयोग में आस गवु टका का ईपयोग वकया जाए तो ऄथायत गवु टका को रख कर मत्रं जप वकया जाए तो प्रयोग में वजस िवक्त का प्रभाि हे, ईस पर अकषयण होता हे तथा मंत्र का प्रभाि कइ गनु ा बढ़ जाता हे. ऄभीष्ट की प्रावप्त की संभािना ऄवत तीव्र हो जाती हे. आसी प्रकार वकसी भी ििीकरण साधना में भी आस गवु टका को ऄपने सामने स्थावपत करने पर साधक को वनश्चय ही लाभ प्रावप्त की और छलांग लगाता हे. वकसी भी प्रकार की सौंदयय साधनाओ में यह देि योनी के साक्षात्कार में साधक को पणू य सहयोग प्रदान करती हे. ऄप्सरा, यवक्षणी, वकन्नरी, गन्धियकन्या अवद की साधना चाहे िह ईनके प्रत्यक्ष साहचयय के वलए हो या वफर ईनके माध्यम से ऄप्रत्यक्ष रूप से धन, ऐश्वयय, भौवतक ईन्नवत को प्राप्त करना, दोनों ही रूप में सौंदयय कंकण साधना... साध्य ऄप्सरा यवक्षणी या दसू री योनी के प्रत्यक्ष ऄप्रत्यक्ष रूप से साधक को तीव्रतम रूप से वनकट लाने के वलए कायय करता हे. आस गवु टका में प्रवतष्ठा तथा स्थापन संस्कार विि िवक्त सायज्जु ज मंत्रो के माध्यम से वकया जाता हे. ऄतः मल ू रूप से यह विि तथा िवक्त का समवन्ित स्िरुप ही हे आस वलए आस पर वकसी भी प्रकार की कोइ भी विि ऄथायत कोइ भी देिगण या देिता की साधना और कोइ भी िवक्त साधना की जा सकती हे. आसके ऄलािा आस गवु टका का सबंध चि देिताओ ं के साथ हे,
कुण्डवलनी से सबंवधत साधनाओ को आस कंकण के सामने करने से वनश्चय ही कइ साधक के लाभों में िवृ द्ध होती ही हे. िेभि प्रावप्त से सबंवधत वििेष लाभ प्राप्त करने के वलए वजन साधनाओ का ईकलेख होता हे िे कुबेर साधना, आद्रं साधना, ऄष्टल्मी साधना जेसे प्रयोग आस कंकण के सामने करने पर साधक को लाभ तीव्रता से प्राप्त होता हे क्यों की कोषाध्यक्ष तथा देिराज स्थापन प्रविया जेसी गढ़ु वियाए आस गवु टका पर प्राणप्रवतष्ठा के समय ही सम्ं पन की जा चक ु ी होती हे. आस गवु टका की सब से बड़ी वििेषता यह भी कही जा सकती हे की यह गवु टका साधक को कोइ भी देिी देिता से सबंवधत कोइ भी प्रयोग को करने पर साधक की सफलता की सभं ािनाओ ं तीव्रता पिू क य बढ़ा देता हे. लेवकन साथ ही साथ एक वििेष तथ्य यह भी हे की साधक आसके माध्यम से जीिन भर लाभ ईठा सकता हे, आसको प्रिावहत या विसवजयत करने की अिश्यकता नहीं होती. या ऐसा भी नहीं हे की वकसी एक वनवश्चत योनी, या देिी देिता की ही साधना आस गवु टका पर हो सकती हे. ऄगर साधक यवक्षणी साधना कर रहा हे तब भी आस गवु टका का ईपयोग िह कइ कइ बार ऄलग ऄलग यवक्षणी साधनाओ के वलए कर सकता हे. सौंदयय कंकण के बारे में उपर वजतने भी तथ्य हे िह चनु े हुिे मख्ु य तथ्य ही हे, आसके ऄलािा भी आसके कइ कइ लाभ साधक को वनत्य जीिन में प्राप्त होते रहते हे, गहृ स्थ सख ु , कायय क्षेत्र में ऄनक ु ू लता, व्यापर अवद में ईन्नवत आत्यावद कइ प्रकार से यह गवु टका साधक को लाभ प्रदान करने में समथय हे. वनश्चय ही ऐसे कइ रहस्यमय पदाथय आस श्वृ ष्ट में हे वजसके माध्यम से व्यवक्त ऄपने जीिन को ईध्ियगामी बनाने के प्रयासों में देि बल तथा देि योग को जोड़ कर ईसी कायय को तीव्रता के साथ सम्प्पन कर लाभ को प्राप्त कर सकता हे. पारद से सबंवधत सभी गवु टकाओ की ऄपनी ऄपनी वििेषता तथा महत्त्ि हे हालााँवक ईनके महत्त्ि को िब्द के माध्यम से ऄवभव्यवक्त वकतनी भी की जाए कम ही पड़ती हे. पारद वसद्ध सौंदयय कंकण के बारे में ऄप्सरा यवक्षणी साधना पर एक वदिसीय सेमीनार में कुछ चचाय हुइ थी तथा आसके रहस्यमय तथा गढ़ु पक्ष और िम के बारे में कुछ तथ्यों के सभी भाइ बवहनों के सामने रखा था.
और यह कंकण के बल मात्र ईस सेमीनार मे भाग वलए हुये व्यवक्तयों के वलए ही ईपलब्ध रही .बाद मे ऄनेको भाइ बवहनों ने आस दल ु यभ सौंदयय कंकण को के से प्राप्त वकया जा सकता हैं ईसके वलए वलखा पर हमारे द्वारा आस विषय मे मौन ही रखा गया .क्योंवक .यह तो ऄवत विविष्ट स्तर की गवु टका/कंकण के वलए जब तक सदगरुु देि जी के सन्यािी विष्य विष्याओ द्वारा ऄनमु वत नही वमल जाये की.. सभी को ईपलब्ध कराइ जा सकती हैं .हम के से ऄपनी ओर से कुछ भी कह सकते हैं . और वजन भी भाइ बवहनों ने जो आस सेमीनार मे भाग नही ले पाए हैं,ईन्होंने आसमें प्रकावित होने िाली वकताब ‚ऄप्सरा यवक्षणी रहस्य खडं ‚ को प्राप्त वकया हैं हम ईन्हें भी यह गवु टका ईपलब्ध नही करा पाए हैं .हालावक ईन सभी ने यह वलखा था की िे वकसी भी कीमत पर आसको प्राप्त करना चाहेंगे . पर यहााँ बात कीमत की नही बवकक ऄनमु वत की हैं . यहााँ सौंदयय कंकण की कीमत पारद की ऄन्य गवु टकाओ की कीमत की तल ु ना मे बहुत कम हैं .और .यह हमारा सौभाग्य हैं की वजन्होंने भी आसके बारे मे पढ़ा हैं, या सनु ा हैं. या जो भी आसको प्राप्त करना चाहते हैं,ईनके वलए यह एक ऄिसर हैं की आस देि दल ु यभ गवु टका को प्राप्त कर सकते हैं . क्योंवक आसके लाभ से अप ऄिगत हो ही चक ु े हैं .यह वसफय आसवलए ईपलब्ध हो पा रही हैं की िस् आसे सौभाग्य कहा जा सकता हैं . अप मे से वजन को भी यह गवु टका प्राप्त करना हो ..वजनको भी ऄप्सरा यवक्षणी साधना मे पणू यता प्राप्त करना हो ईसमे यह सहयोगी कारक कंकण ..और जो भी उपर बताये लाभों को प्राप्त करना चाहते हो ईन्हें यह ऄिसर का लाभ ईठाना ही चावहये . क्योंवक आस तरह से संस्कार यक्त ु कोइ भी पारद विग्रह प्राप्त करना ऄपने अप मे भगिान िंकर का मानो घर पर स्थापन और पारद मे स्ित ही ल्मी तत्ि रहता हैं, ईस ल्मी तत्ि का अपके घर पर स्थापन हैं और साधना समय मे एक आस तरह के ईच्छच कोवट का पारद कंकण अपके सामने रहेगा तो स्ित ही अपके ऄतं : िरीर मे स्ू म पररितयन प्रारंभ होने लगेगे, जो की ...या वजनका प्रारंभ होना मानो जीिन मे साधना सफलता के वलए एक द्वार सा खल ु जाना हैं .
ऄतः ऄब और ऄवधक क्या वलखा जाए .वसफय आतना ही की ...जो समझदार हैं , ज्ञानिान हैं, प्रज्ञा सम्पन्न हैं, समय का मकू य जानते हैं,ईनके वलए तो आिारा काफी हैं .िेष जो ऄवतबवु द्धमान हैं ..ईन्हें क्या और वलखा जाए .. अप मे से जो भी आस गवु टका को प्राप्त करना चाहे िह nikhilalchemy2@yahoo.com पर आ मेल कर और भी जानकारी ले सकते हैं .हााँ आ मेल के विषय मे ...पारद सौंदयय कंकण ऄिश्य वलख दे .. SOME NECESSARY FACTS REGARDING YAKSHINI SADHNA PART 5( 5)
यवक्षणी साधना के पररपेक्ष में ऄब तक हमने जाना की वकस प्रकार अकाि मडं ल की अिश्यकता क्या हे तथा आसमें िोध बीज और िोध मद्रु ा का वकस प्रकार से सयं ोग होता हे. तथा जेन तंत्र पद्धवत में यक्ष तथा यवक्षणी के सबंध में वकस प्रकार ऄनेको तथ्य हे. आसके ऄलािा भगिान मवणभद्र की साधना का यवक्षणी साधना से क्या सबंध हे. ऄब हम यहााँ पर वििेष चचाय करें गे यक्षमडं ल स्थापन प्रयोग की. क्यों की यह प्रयोग जेन तंत्र पद्धवत का गप्तु तथा महत्िपणू य प्रयोग हे. आस प्रयोग के माध्यम से साधक वनवश्चत रूप से यवक्षणी साधना में सफलता की और ऄग्रसर हो सकता हे. यह प्रयोग भी यवक्षणी साधना संयक्त ु ऄथायत िोध बीज यक्त ु िायु मंडल पर वकया जाता हे. आस प्रयोग के ऄतं गयत साधक को सिय प्रथम २४ यक्ष, २४ यवक्षणी तथा २४ तीथंकरों का स्थापन यन्त्र में करना रहता हे. यह स्थापन वििेष मंत्रो के द्वारा होता हे. यह पणू य यक्ष मंडल हे. २४ यक्ष वजनके बारे में जेन तन्त्रो में ईकलेख हे िह सभी यक्ष के बारे में यही धारणा हे की ईन सभी देिो का यक्षलोक में महत्िपणू य स्थान हे. यही बात २४ यवक्षणी के बारे में भी हे. तथा २४ तीथंकर ऄथायत जेन धमय के अवद महापरुु षों के अिीष के वबना यह के से सभं ि हो सकता हे. ऄतः ईनका स्थापन भी वनतातं
अिश्यक हे ही. आसके बाद यक्ष मंडल स्थापन प्रयोग मंत्र का जाप वकया जाता हे वजसके माध्यम से यन्त्र में स्थावपत देिता को स्थान प्राप्त होता हे तथा यन्त्र पणू य चेतन्यता को प्राप्त कर सके . आसके बाद साधक को यवक्षणी वसवद्ध मंत्र का जाप करना रहता हे. आस मंत्र जाप से अकाि मंडल में स्थावपत यक्षमंडल को साधक की ऄवभलाषा का ज्ञान हो जाता हे तथा साधक एक रूप से मंत्रो के माध्यम से यवक्षणी वसवद्ध की कामनापवू तय हेतु प्राथयना करता हे. आस मत्रं जाप के बाद साधक पजू न अवद प्रवियाओ को करता हे तथा आस प्रकार यह प्रयोग पणू य होता हे. या यु कहे की यह िम पणू य होता हे. वजसमे अकािमंडल का वनमायण और स्थापन, आसके बाद मवणभद्र देि प्रिन्न प्रयोग तथा ऄतं में यक्ष मंडल स्थापन प्रयोग वकया जाता हे. यह प्रविया साधक के यवक्षणी साधना के द्वार खोल देती हे. और यह काम्य प्रविया हे ऄथायत जब भी कोइ भी यवक्षणी साधना करनी हो तो आस अकािमंडल के सामने आससे सबंवधत एक वििेष मंत्र का ११ माला ईच्छचारण कर साधना करने से साधक सबंवधत यवक्षणी का ििीकरण करने में समथय हो जाता हे. यवक्षणी साधना से सबंवधत ऐसे कइ दल ु तम विद्धान हे वजनको ऄपना कर ु यभ तथा गह्य साधक ऄपने ल्य की और ऄपनी पणू य क्षमता के साथ गवतिील हो सकता हे. ऐसे कइ विधान जो वसफय गरुु मख ु ी हे तथा ईनका ज्ञान मात्र गरुु मख ु ी प्रणाली से ही हो सकता हे. हमारी सदेि कोविि रही हे की हम वमल कर ईस प्रकार के ज्ञान को सब के सामने ला पाए. और जहां तक बात सेमीनार की हे तो कुछ तथ्य वनवश्चत रूप से हरएक व्यवक्त के सामने रखने के योग्य नहीं होते हे, वजनकी रूवच हो, वजनका ल्य हो ईनके सामने मात्र ही ईन तथ्यों को रखा जाए तब साधक की , ईस साधना की, ईस प्रविया की तथा ईस गरुु मख ु से प्राप्त प्रविया से सबंवधत रहस्यिाद की गररमा बनी रह सकती
हे, क्यों की ऄगर यह महत्िपणू य नहीं होता तो अज कुछ भी गप्तु होता ही नहीं, और ऄगर सब कंु जी या गढ़ु प्रवियाए प्रकाि में होती तो िो भी ईपेक्षा ग्रस्त हो कर एक सामान्य सी प्रविया मात्र बन जाती तथा ईसकी ना कोइ महत्ता होती न ही वकसी भी प्रकार गढू ाथय. रहस्यों को प्रकाि में लाना ईतना ही ज़रुरी हे वजतना की ईनकी प्रवियाओ को समजना और आन सब के मल ू में होता हे योग्य पात्र. वजनमे लोलपु ता हे िह ज्ञान प्राप्त करने के वलए वकसी भी विपरीत पररवस्थवत यो में भी के से भी गवतिील हो कर ज्ञान को ऄवजयत करता ही हे. और ऐसे साधक को रहस्यों की प्रावप्त हो जाती हे तथा िह ऄपना नाम सफल साधको की श्ेणी में ऄंवकत कर लेता हे. लेवकन आन सब के मल ू में भी एक तथ्य हे, ज्ञान प्रावप्त के तष्ृ णा. वजसको वजतनी ज्जयादा प्यास होगी िो ईतना ही ज्जयादा प्रयत्निील रहता हे. और ज्ञान के क्षेत्र में तो ऄनंत ज्ञान हे ऄतः जो अगे बढ़ कर वजतना प्राप्त करने का प्रयत्न करे गा ईसको ईतना ज्ञान ऄिश्य रूप से वमलता ही हे, वफर सदगरुु देि का अिीष तो हम सब पर हे ही. तो साधनामय बन सफलता को प्राप्त कर हम ईनके ऄधरों पर एक मस्ु कान का कारण ही बन जाये तो एक विष्य के वलए ईससे बड़ी वसवद्ध हो भी नहीं सकती. SOME NECESSARY FACTS REGARDING YAKSHINI SADHNA PART 4( 4)
वपछले लेखो में हमने जाना वकस प्रकार साधना में तत्िों का महत्त्ि हे. वकस प्रकार से अकाितत्ि की ऄवनिाययता हे ईसकी प्रवतकृवत स्िरुप मंडल क्यों ऄवनिायय हे, आसके ऄलािा साधक में िीरभाि क्यों होना ज़रुरी हे और िीरभाि में िोध मद्रु ा का ऄथय क्या होता हे. वजस तरह अगम िाश्त्रो में सौंदयय साधनाओ का महत्त्ि हे ईसी प्रकार से दसू रे तंत्र मागय में भी ऄप्सरा तथा यवक्षणी साधनाओ का भी ईतना ही अधार हे. चाहे िह बौद्ध धमं से सबंवधत
यमारी तंत्र हो या जेन तत्रं िाश्त्र. सभी में सौंदयय साधनाओ का ईकलेख हे तथा सौंदयय साधनाओ का ईतना ही महत्िपणू य स्थान सभी जगह वनधायररत हे. जेन तत्रं पद्धवत ऄपने अप में दल ु यभ रहस्यमय तथा गढ़ु पद्धवत हे. और जहां पर हम बात यक्ष लोक के सबंध में कर रहे हो तो जेन तंत्र का नाम ईकलेवखत करना अिश्यक ही नहीं ऄवनिायय कहा जा सकता हे. जेन समाज का एक बहोत ही बड़ा योगदान हे यक्ष लोक से संपकय सत्रू स्थावपत करने तथा ईससे सबंवधत तथ्यों को सब के सामने रखने का. महािीर स्िामी को २४ िे तीथंकर कहा जाता हे तथा ईनसे पहले के सभी तीथंकर के वलए भी यह बात स्िीकार की जाती हे की सभी तीथंकरों के वलए एक यक्ष तथा एक यवक्षणी ने समय समय पर आतं ज़ार वकया हे. आसके ऄलािा परु ातन जेन ग्रथं ो में कइ कइ जगह ऐसे ईदहारण प्राप्त होते हे वजनमे जेन मवु नयों का संपकय यक्ष यवक्षणी तथा यक्ष लोक से रहा हे. जेन मवु नयों तथा तंत्र साधको के बारे में वजन्होंने भी जानने की कोविि की होगी ईन्हें यह तथ्य वनवश्चत रूप से ज्ञात होगा की यक्षों के पथ्ृ िी लोक पर जो गप्तु भिन हे ईनसे जेन मवु नयों तावन्त्रको का बहोत ही वनकटिती सबंध रहा हे. कुछ सालो पिू य ही राजस्थान में ऐसे ही एक गप्तु भिन को एक जेन मवु न ने प्रकाि में लाने का प्रयास वकया था साथ ही साथ ईन्होंने सब के सामने ईस भिन में प्रिेि कर के िहााँ से ऄज्ञात धातओ ु की तथा कीमती रत्नों की मवु तयया बहार वनकाल कर लोगो के सामने दियन हेतु २-३ वदन रखी थी, जब िो भिन में कुछ और अगे गए थे तब ईनको यक्षों ने नम्र विनंती कर रोक वलया था क्यों की िहााँ से ईनके वनगयदद्वार बने हुिे थे वजसके माध्यम से यक्ष लोक में सीधा प्रिेि प्राप्त वकया जा सकता हे. सायद यह बात लोगो को ककपना लग सकती हे लेवकन आस घटना के साक्षी सेकडो लोग रहे हे तथा ऐसे कइ ईदहारण हे जो की परु ातन नहीं हे. यहााँ पे हम यह चचाय आस वलए कर रहे हे की यह ज्ञात हो पाए की अवखर िह कोनसा तथ्य वजसके माध्यम से ईन योवगयो के वलए यह सहज संभि हो जाता हे. जेन तांवत्रक ईपासना पद्धवत में कुछ देिी तथा देिताओ की साधना मख्ु य रूप से होती हे. पद्मािती, पाश्वयनाथ, घटं ाकणय, मवणभद्र आत्यावद. ऄगर जेन आवतहास को योग्य रूप से जाना जाए
तो यह ज्ञात होता हे की आन सभी देिी देिताओ का सबंध यक्ष लोक से बताया जाता हे. तो जब आन देिी तथा देिताओ ं की साधना ईपासना की जाती हे तब आनके वलए यक्ष लोक से सबंध स्थावपत करना ईनके वलए सहज हो जाता हे. क्यों की यक्षलोक के मख्ु य देिी तथा देिताओ के अिीिायद की प्रावप्त िह कर लेते हे. यहााँ पर एक वििेष तथा ईकलेखनीय तथा यह हे की मवणभद्र तांवत्रक साधना कइ प्रकार से जेन पद्धवत में होती रही हे तथा जेन तत्रं साधको के मध्य ईनकी साधना ईपासना हमेिा ही अकषयण का के न्द्र रही हे क्यों की भगिान मवणभद्र की साधना तीव्र रूप से फल प्रदान करती हे. आसके साथ ही साथ गोपनीय तथ्य यह भी हे की भगिान मवणभद्र के साधक को ऄनायास ही धन की प्रावप्त होती रहती हे. आसके पीछे का रहस्य यह हे की मवणभद्र साधना करने िाले साधक को यक्ष तथा यवक्षणी ऄद्रश्य रूप से सहयोग प्रदान करती रहती हे. और ऐसा आस वलए होता हे क्यों की यक्षों की सेना के सेनापवत भगिान मवणभद्र को माना गया हे और जेन तंत्र की धारणा ऄनसु ार मवणभद्र देि का आस प्रकार एक ऄवत महत्िपणू य स्थान यक्ष लोक में हे. आस वलए यवक्षणी साधना से पहले ऄगर मवणभद्र देि से सबंवधत कोइ प्रयोग कर वलया जाए तो वनवश्चत रूप से सफलता की सभं ािना बढ़ जाती हे. याँू भगिान मवणभद्र से सबंवधत कइ प्रयोग हे लेवकन गप्तु रूप से ऐसे प्रयोग भी प्रचलन में रहे हे जो प्रयोग यवक्षणी साधना से सबंवधत हे तथा वजसके माध्यम से साधक को यवक्षणी साधना में सहयोग वमलता हे. ऐसा ही प्रयोग मवणभद्र प्रसन्न प्रयोग हे वजसके माध्यम से साधक न ही वसफय यवक्षणी साधना में सफलता प्राप्त कर सकता हे साथ ही साथ मवणभद्र देि से सबंवधत सभी काम्य प्रयोग में भी पणू य सफलता प्राप्त करता हे. यह प्रयोग मात्र एक ही रावत्र में वसद्ध हो सकता हे. लेवकन क्या जेन तंत्र में यवक्षणी साधना में सफलता के वलए वसफय आतना ही विधान हे? ‘यक्ष मंडल स्थापन प्रयोग’ एक ऐसा प्रयोग हे वजसके माध्यम से व्यवक्त जेन तंत्र के माध्यम से यवक्षणी साधना में पणू य सफलता की प्रावप्त कर सकता हे. क्या हे यह प्रयोग आस पर चचाय करें गे ऄगले लेख में. SOME NECESSARY FACTS REGARDING YAKSHINI SADHNA PART 3( 3)
पररणाम को प्राप्त करने के लिए हम लजस प्रकार मानलसक लिचारों का अधार बनाकर साधना शुरू करने के लिए लजस मानलसक पृष्ठभूलम का लनमााण करते है ईसे ही भाि कहा जाता है.
मुख्य रूप से तंत्र में लतन भाि के बारे में ईल्िेख लमिता है. पशुभाि िीरभाि ददव्यभाि
आन भािो का ऄपना ऄपना लिस्तृत ऄथा है तथा साधक कोइ भी साधना आन लतन भािो में से दकसी एक भाि से युक्त हो कर करता है. आसका सामान्य ऄथा लनकािा जाए तो पशु ऄथाात ऄबोध भाि से या लसर्ा शरीर को ध्यान में रख कर दकसी भी साधना को करना पशुभाि है. लजस साधना में साधक शौया से पररपूणा हो शलक्त को प्राप्त करने का भाि रख कर साधना करता है ईसे िीर भाि कहा जाता है. िीर भाि में साधक मात्र शरीर से ही नहीं अतंररक रूप से शलक्त के संचार के लिए कायारत हो जाता है. ददव्यभाि आन दोनों भाि से उपर है, यह भाि एकीकरण का भाि होता है तथा साधक और आष्ट में कोइ भेद नहीं रहता है. तंत्र में कॉि मागा की साधनाओ को ही ददव्य भाि से युक्त साधना कहा गया है या दर्र कइ बार कॉिमागा तथा लसद्धंताचार में ही ददव्यभाि का प्रयोग हो सकता है ऐसा लििरण लमिता है. साधक क्रमशः पहिे पशुभाि तथा िीरभाि में पूणाता प्राप्त करने पर मात्र ही ईसे ददव्यभाि की और ऄग्रसर दकया जाता है.
यहााँ पर हम प्रथम दो भाि की चचाा करें ग.े जो व्यलक्त यलिणी तथा ऄप्सरा साधनाओ को शारीररक सुख से सबंध में साधना देखता है ईसकी साधना पशुभाि युक्त हो जाती है या जो व्यलक्त खुद को दारुण मानलसकता के साथ या दास हो कर साध्य को सिाश्रेष्ठ मानकर भी आस साधना को करता है िह भी पशुभाि युक्त साधना कही जाती है. यह दोनों को पशुभाि की साधना आस लिए कहा गया है क्यों की यह साधना करते िक्त साधक की मनःलस्थलत पूणा रूप से
शारीररक धराति पर ही लस्थर है. और साधक की मानलसकता लसर्ा शरीर पर ही लस्थर है. िेदकन सौंदया साधना िीर भाि की साधना है. आस लिए ऄगर साधक आसे पशुभाि के साथ सम्पप्पन करता है तो सर्िता लनलित रूप से लमि ही नहीं सकती. यही बात सदगुरुदेि भी कइ बार बता चुके है.
ऄब यहााँ पर हम िीरभाि की चचाा करते है की ऄगर आस साधना को िीर भाि के साथ करना है तो आसका ऄथा क्या हुअ.
यहााँ पर व्यलक्त की दो प्रकार की शलक्तयां काया करती है. शारीररक शलक्त तथा मानलसक शलक्त. हमारे शरीर तथा हमारे मनः दोनों लस्थलतयो में हमारा ध्यान मात्र हमारी साधना ही हो. और साधना को मात्र बाह्य रूप से ना देख कर अतंररक रूप से भी देखा तथा समजा जाए. कै से? यलिणी मात्र भोग्या नहीं है. और सौंदया साधना मूितः सौंदया तत्ि की साधना है. मूि प्रकृ लत की साधना है. आसके बारे में कइ बार लििेचना दी जा चुकी है. दकस प्रकार अतंररक सौंदया तथा बाह्य सौंदया का लमिाप योग्य रूप से होना ज़रुरी है. और सौंदया का ऄथा मात्र खूबसूरती नहीं है. सौंदया का अधार लसर्ा यहााँ पर शरीर नहीं है. यहााँ पर सौंदया का अधार है प्रकृ लत. ऄगर साधक को सौंदया प्राप्त भी हो जाए और ईसके घर में दो समय रोटी नहीं हो तो क्या ऄथा है? साधक के अस पास की प्रकृ लत में साधक को ईस सौंदया का ऄहेसास हो सके , तृलप्त का बोध हो सके . और आस साधना को पशुभाि से नहीं दकया जा सकता आसका कारण भी यही है की सौंदया साधना मात्र शरीर से सबंलधत नहीं है.
ऄब यह दकस प्रकार से संभि होगा की हम मानलसक तथा शारीररक दोनों शलक्तयों को साधना में जोड़ दे ? सिाप्रथम साधक को आस बात से उपर ईठाना होगा की यह भोग्या की साधना नहीं है. साधना प्रदक्रया तो बहोत बाद की बात है. ऄगर साधक आन साधनाओ की गंभीरता को समज सकता है तो लनलित रूप से िह िीरभाि से युक्त हो कर साधना कर सकता है. साधक को कु छ अिश्यक तथ्यों से यहााँ पररलचत कराना चाहाँगा.
शारीररक रूप से अपकी साधना प्रदक्रया होती है, अपका असान, यन्त्र, मंत्रजाप, मुद्राप्रदशान अदद सभी शारीररक रूप से होता है. मानलसक रूप से सिा अिश्यक तत्ि है अपका मनोबि तथा दृढ लिश्वास. अपकी मनः लस्थलत आष्ट साध्य तक पहोचाती है और ऄगर अपका मनोबि टू ट रहा है की में नहीं कर सकता या मुझसे तो ये संभि ही नहीं है तो प्रत्यिीकरण संभि नहीं है. आसके ऄिािा दृढ लिश्वास की साधना में प्रत्यिीकरण होगा ही क्यों की यह अपके मंत्रो की तीव्रता का अधार आस पर ही अधाररत है. िेदकन आन साधनाओ में तीव्रता के लिए एक और लनतांत अिश्यक तथ्य सदगुरुदेि ने बताया है. िह है क्रोधमुद्रा. क्रोध मुद्रा पौरुष का प्रदशान करती है. िेदकन आसके बारे में थोडा समजना होगा. जब हम क्रोध में हो तो मानलसक धराति से शारीररक धराति का प्रदशान होता है. ऄगर हमने मुट्ठी तन कर बैठ भी गए है िेदकन मन में तो यही है की ऐसा होता हे भी की नहीं? तो ये नहीं हो सकता. मतिब की क्रोध है ही नहीं और ना ही क्रोध मुद्रा है. क्रोध सारी शलक्त को मन में एकलत्रत कर एक ही लिचार पर कें दद्रत करने की प्रदक्रया है जहां पर दकसी भी तरह िक्ष्य मात्र ही सब कु छ हो जाता है और तब मुट्ठी बांधने की ज़रूरत नहीं है तब मुट्ठी ऄपने अप तन जाती है. आस प्रकार से यह मानलसक तथा ईसके ऄनुरूप शारीरक अचरण से युक्त होना ही साधना को िीरभाि से युक्त हो कर साधना करना है.
ऄब हम िापस ऄपने कि िािे मुद्दे पर अते है. क्यों की मंडि हमें ईस प्रकार से लनमााण करना है लजससे की हमें यलिणी साधनामें सर्िता लमिे, तो ईसे िीरभाि से संचाररत करने के लिए क्या ईसका लनमााण कै से हो. आसके लिए ज़रुरी है बीज मंत्रो का प्रयोग. हर एक बीज मंत्र की सामथ्या दकतनी हो सकती है यह कल्पना से बाहर का लिषय है िेदकन यहााँ पर में ईल्िेख करना चाहाँगा की ऄगर आस प्रकार का मंडि लिधान क्रोधबीज से युक्त हो तो िह साधक में भी िाही भाि का संचार करे गा. आस लिए आस मंडि लिधान को क्रोधबीज युक्त अकाशमंडि यन्त्र प्रदक्रया कहा जाता है. SOME NECESSARY FACTS REGARDING YAKSHINI SADHNA PART 2( २)
पिछले लेख में हमने जाना की पकस प्रकार अकाशतत्व तथा दूसरे तत्वों में सबंध है तथा अकाशतत्व का साधना से क्या सबंध है. पनपित रूि से अकाशतत्व का सबंध पकसी एक साध्य से नहीं वरन सभी साध्य से है. चाहे वह ऄप्सरा यपिणी हो या कोइ भी दे वी दे वता हो. हााँ
लेपकन सभी से सबंपधत प्रपियाए ऄलग ऄलग है. यहााँ िर हम यपिणी साधना के बारे में चचाा करें गे. सवा प्रथम हमें ये जानना ज़रुरी है की मंडल का तात्पयय क्या है.?? यन्त्र तथा मंडल तांत्ररक पद्धत्रत के दो महत्वपूर्य अंग है. सामान्त्यजन को यंरो के बारे में जानकारी भले ही हो लेत्रकन मंडल त्रवधान की जानकारी बहोत ही कम प्राप्त होती है. यन्त्र एक एसी आकृत्रत होती है त्रजनमे प्रत्रतष्ठा करने पर वह आपकी मांत्ररक उजाय को इष्ट तक या अभीष्ट तक पहोचाने का कायय करती है या सबंत्रधत देवी देवता तक पहोचने का कायय करती है. ईदहारण के पलए एक साधक शत्रु समस्या से मुपि के पलए प्रयोग करता है और ईसके सामने शत्रु गपत स्तम्भन यन्त्त्र है तो ईसके द्वारा की गयी प्रपिया तथा मंत्रो की ईजाा से काया सम्िापदत करने के पलए जो शपि है, जो ईस काया से सबंपधत दे वी या दे वता या आष्ट है ईन तक यह ईजाा िहोचाने का काया यंत्रो के द्वारा होता है. मंडल का तात्िया एसी अकृपत है जो की आष्ट की प्रपतकृपत हो. यन्त्त्र ईजाा को रूिांतररत कर के ईसे सबंपधत दे वी या दे वता तक िहोचाना है जब की मंडल आससे पभन्त्न है. आष्ट साधको के सामने प्रत्यि नहीं है तो साधक ईनकी प्रपतकृपत को ही ऄिने सामने पनमाा ण कर ले और आसके बाद साधक ईसमे प्रपतष्ठा कर दे तो वह आष्ट रूि अकृपत मं डल बन जाती है जो की एक साथ ऄनेक काया कर सकती है या दूसरे शब्दों में मंडल ईस आष्ट से सबंपधत सभी कायों को सम्प्िन कर सकता है पजस के पलए ईसका पनमाा ण हु अ हो. यह सामन्त्य भेद है. लेपकन यह पजतना सामन्त्य पदखता है ईतना ही गुढ़ है और ईतना ही रहस्य से िण ू ा है. कइ मं डलों को बनाने में कइ महीने तथा कइ बार कइ साल लग जाते है. आसके बाद आन मंडलों का लाभ कइ िीपढ ईठा सकती है. पतब्बत के कइ बौद्ध मठो में कइ सपदयों िुराने मंडलयन्त्त्र पवद्यमान है पजन िर आतने साले से साधनाए होती अइ है, ईसे बदलने की या पवसपजा त करने की अवश्यकता नहीं होती. पनिय ही यह पवद्या एक ऄमल्ू य पवद्या है तथा आनकी महत्विण ू ा ता को द्रपष्ट में रखे तो मंडलयंत्र दुलाभ ही कहे जा सकते है. सदगुरुदे व के समय में ऐसे दुलाभ मंडलयन्त्त्र प्रचलन में थे पजनमे वह एक साथ कइ दे वी तथा दे वता का स्थािन सदगुरुदे व खुद ही सम्प्प्न करते थे तथा एक ही ऐसे मंडलयंत्र में कइ यन्त्त्र एक साथ होते थे. कइ बार सदगुरुदे व ने एक साथ ७ – ८ दे वी दे वताओ से सबंपधत यन्त्त्र अकृपत का एक िण ू ा मंडल बना कर ईसे यंत्रो के स्वरुि में साधको को प्रदान पकया है. आन िंपियों की गंभीरता वही समझ सकता है जो ऐसे यंत्रो के सबंध में ज्ञान रखता हो तथा पजन्त्होंने आनकी प्रपतष्ठा होते हु वे दे पख हो या खुद कभी पकसी यन्त्त्र की प्रपतष्ठा की हो. मे ने कुछ िुराने गुरुभाआयो के िास ऐसे दुलाभ यंत्रो को दे खा है तथा ईनका कथन भी यही है की ऐसे दुलाभ मं डल की प्रापि पनपितरूि
से सवा सफलता की प्रापि है. आससे सदगुरुदे व के यंत्रो तथा मं डलों के सबंध में ईनके ज्ञान की पवशालता का िररचय होता है तथा हर प्रयोग से िहले वह यंत्रो की महत्ता ईनसे सबंपधत प्रपिया तथा प्रपतष्ठा िम के बारे में साधको को बताते थे. मंडलयंत्रो के सन्त्दभा में पकतने ही भेद तथा ईिभेद है. ऄब आसको आस प्रकार से समझा जाए की एक सामान्त्य व्यपि के पलए यह कैसे संभव हो की वह महीनो तक या सालो तक एक मंडल बनाये तथा ईसके बाद ईस िर साधना करे . आसी पलए मंडलों तथा यंत्रो से सबंपधत भी कइ गुि पवधान प्रचलन में रहे पजसके माध्यम से व्यपि आनका पनमाा ण कुछ समय में ही कर सकता है तथा ईसका लाभ प्राि कर सकता है. ऄब हम वािस बात करते है अकाशतत्व की. पिछले लेख में हमने जाना की ऄगर हमारा अकाशतत्व से संिका हो जाए तो पनपित रूि से यह संभव है की हम अवाज़ दे तो वह सबंपधत आष्ट तक िहोच जाए क्यों की अकाशतत्व सवा व्यािी है. लेपकन अकाशतत्व तो सवा व्यािी है तो ईसे पकसी एक जगह केसे एकपत्रत पकया जाए? ऐसा केसे संभव हो सकता है की हम अकाश तत्व को ही ऄिने सामने रखे तथा ईसके सन्त्दभा लाभों की प्रापि कर सके. जेसे की मं डलयंत्रो के बारे में कहा गया है की वे आष्ट की प्रपतकृपत होते है. ऄगर एसी अकृपत का पनमाा ण कर के ईसमे सबंपधत दे वी दे वता या साध्य की प्रपतष्ठा कर दी जाये तथा ईनके प्राणों को जोड़ पदया जाये तो वह मंडल आष्ट की प्रपतकृपत बन जाता है. तथा ईसके बाद ईससे सबंपधत सभी प्रपियाओ का लाभ प्राि पकया जा सकता है. साधको के मध्य िञ्चतत्वों के मंडल की कइ पवपध प्रचपलत है. लेपकन अकाशतत्व के मंडल का पवधान गुि रहा है. ऄगर अकाशतत्व का ही मं डलयन्त्त्र का पनमाा ण कर पलया जाये तो यह संभव हो सकता है. साधक को अकाशतत्व से सबंपधत मंडल की अकृपत पमल भी जाए लेपकन ईसका पवधान नहीं हो तो वह मात्र एक अकृपत ही है. आसमें भी कइ भेद तथा ईिभेद है. ऄथाा त यहााँ िर यह बात समजी जा सकती हैकी अकाशमंडल की कइ पवपधयां है पजनमे से एक ऐसा पवधान हो जो की समय ऄनुरूि हो तथा कम समय में मं डल का पनमाा ण हो जाये. ऄब बात यह अती है की अकाशमंडल चाँपू क सवा व्यािी है तथा हमें ईस मंडल से यपिणी से सबंपधत लाभ प्राि करना है तो ईसका ऄंकन केसे पकया जाये तथा ईसमे कोन से मंत्र का ऄंकन पकया जाए. तथा आसका पवधान ऐसा हो की सामान्त्य साधक भी सम्प्िन कर सके. क्या ऐसा संभव है?
हााँ ऐसा संभव है. साधक ऐसे मंडल का पनमाा ण कर एक ही रापत्र में ईसमे यपिणी से सबंपधत प्रपतष्ठा भी कर सकता है क्यों की यपिणी वगा के पलए वह पवशेष रूि से काया शील हो सके. हमने पस्वच बना ली है और पनपित रूि से यह पस्वच पकसी भी िंखे को या बल्ब को या पकसी भी चीज़ को चालू करने में सिम है लेपकन हमें तो आससे िंखा चलाना है तो ईसे िंखे के साथ तारों से जोड़ना िड़े गा. ठीक ईसी तरह अकाशमंडल का पनमाा ण करना है तो आसके साथ ही साथ ईसे यपिणी साधना के प्रयुि करना है. ऄब वह पकस तरह से होगा? यह होता है मंडल का अधार स्तंभ एक बीज मंत्र बना कर और ईसको ऄंपकत कर ईसके ऄनुरूि मंडल बनाया जाए तथा ईसमे प्रपतष्ठा युि संिका मं त्र का जाि करने से. लेपकन ऐसा पवधान करने में तो बहोत समय लग जायेगा? पबलकुल नहीं. यह गुि प्रपिया को करने में साधक को अकृपत बना कर मात्र ११ माला जाि करे तो िण ू ा पवधान सम्प्प्न हो जाता है. और साधक को आसमें सायद एक घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता.
SOME FACTS RELATED TO ONE DAY SEMINAR ON APSARA YAKSHINI…PART 5 ( -5 )
..
यह ऄलत दुिभ ा िेख अपके लिए शीषाक सलहत .....अप सभी आस िेख के माध्यम से समझ सकें गे की सच मे यलिणी साधना करना और ईसमे सर्ि होना असान या मजाक नही हैं. आस ऄलत दुिाभ िेख के माध्यम से अप समझ सकें गे .की यहााँ तक यन्त्र,मािा का लनमााण भी दकतना करठन हैं ....और जो मैंने कि अपको एक लिस्ट अपके सामने रखी ...ऄब अप आस िेख के पढ़ने के बाद अप समझ सकते हैं की दकतने महत्िपूणा ..तथ्य अपके सामने अयेंगे . क्योंदक कलतपय िोग आस बात का माखौि भी ईड़ा सकते हैं की यह सारी दक्रयाए तो मन गढंत हैं और धन कमाने के लिए ..एक नया तररका हैं तो अप सभी आस िेख को पढ़े और स्ियम ऄनुभि करे की दकतनी दक्रयाए ...अिशयक होती हैं एक यलिणी साधना मे ...और ऄब अप पर हैं की ऄभी भी माखौि ईडाये और आस ऄिसर को हाथ से जाने दे ..
ध्यान रखे यह िेख जब सद्गुरु भौलतक िीिा काि मे रहे तब ऄप्रेि १९८५ मे मंत्र तंत्र यन्त्र पलत्रका मे प्रकालशत हुअ .... आसके बाद हीसदगुरुदेि जी के द्वारा ... यलिणी साधना लशलिर का अयोजन हुअ ... अप सभी भाइ बलहन जो सेमीनार मे भाग िे रहे हैं या जो भाग िेने का मन बना रहे हैं िह..या िहभी जो माखौि ईड़ने की कोलशश मे हैं ..िह सभी .अने िािी सेमीनार का ऄथा समझे .ईन सभी के सामने .ऄब यह दुिभ ा िेख .जो ईस पलत्रका मे अया रहा ...... ==================================== ऄब यह दुिभ ा िेख अपके लिए ====================================== कौन कहता हैं की यलिणी लसद्ध नही होती ...........रमौिी बाबा
देिता गन्धिा दकनार मनुष्य से उाँचे स्तर के िगा हैं , आसी प्रकार यि भी देिताओं के समकि िगा के हैं , लजनका सम्पमान लजनकी स्तुलत और लजनकी ऄभ्यथाना हमारे पुराणों एिं धार्ममक ग्रंथो मे भरी हुयी हैं . यूाँ तो भारतीय मंत्र ग्रंथो मे सैकडो यलिणी साधनाए हैं ,परन्तु धनदा यलिणी साधना आससमे महत्िपूणा एिं प्रमुख हैं . “यह सौम्पय और सरि सालत्िक साधना हैं जो साधक गायत्री का ईपासक हैं ,लजसके जीिन मे सदाचार और नैलतकता का बाहुल्य हैं ईसे ऄपने जीबन मे यलिणी साधना ऄिश्य करना चलहये “ ये पंलक्तया जब गुरू देि ने मुझसे कहीं तो मेरी सारी लहचदकचाहट दूर हो गयी और गायत्री का ईपासक होते हुये भी.मैं पूरी िमता के साथ धनदा यलिणी की साधना करने के लिए तैयार हो गया . आसमें कोआ दो राय नही की यलिणी साधना जरटि और पेचीदा होती हैं लबना समथा और योग्य गुरू के यह साधना सम्पपन्न नही हो सकती हैं . क्योंदक एक तरर् यह सारी साधना जहााँ एक तरर् मंत्रात्मक हैं िही दूसरी ओर दक्रयात्मक भी आसलिए आस साधना मे मंत्र और दक्रया का परस्पर घलनष्ठ सबंध हैं . यो तो धनदा यलिणी की साधना लिलध कइ ग्रंथो मे प्रकालशत हैं . मंत्र महाणाि के तीसरे खंड मे जो धनदा यलिणी का लिबरण और यन्त्र ददया हैं िह प्रामालणक नही ठहरता हैं क्योंदक
ईसका अधार शून्य से हैं . जबदक धनदा यलिणी का अधार बबदु से होना चलहये . लशि् प्रोक्त ‘रहस्य साधन “ नामक ग्रन्थ के चौथे पटि मे स्पस्ट लिखा हैं की धनदा यलिणी यन्त्र के बालहबााग दस पत्रात्मक होना चालहए , तभी धनदा यलिणी यन्त्र लनर्ममत होता हैं . पूज्य गुरुदेि जी ने िगभग अठ दस ग्रंथो मे ईल्िेलखत धनदा यलिणी साधना का लििरण देने के बाद बताया की ये सारे िणान लििरण ऄधूरे और ऄप्रामालणक हैं .व्यिहाररक दृष्टी से आस प्रकार साधना करने से सर्िता लमि नही पाती हैं . ऐसा बताकर ईन्होंने सिाथा निीन लिलध के द्वारा धनदा यलिणी साधना सम्पपन्न करिाइ लजससे मुझे पहिी बार मे ही पूणा सर्िता लमि गयी . साधना समय :: िषा मे के बि एक ही बार आस साधना को समपन्न दकया जा सकता हैं. यह समय होिी सेअठ ददन पहिे मतिब होिाष्टक मे ही यह साधना समपन्न होना चलहये . ऄष्टमी से प्रारं भ होने िािे आस प्रयोग मे ऄधोमुखी और ईध्िा मुिी लत्रकोण से युक्त यलिणी यन्त्र का लनमााण दीपाििी की रालत्र को दकया जाता हैं . और दीपाििी की रात को ही धनदा पञ्च दशी मंत्र से ८८ अिृलत युक्त आस यन्त्र का लनमााण दकया जाता हैं आस बात का ध्यान रहे की यंत्र का मध्य बबदु दीपाििी की रालत्र ऄथाात ऄमम्पसस्य की ऄधा रालत्र की लनर्ममत होना चलहये . और धनदा पंचदशी से िोम लबिोम मंत्रा से सम्पपुरटत हो कर प्राण प्रलतष्ठा युक्त होना चालहए . तत्पिात रे शम के धागे से ८८ अिृलत युक्त संजीिनी मंत्र प्रयोग यंत्र पर करते हुये करते हुये ईसे प्राण चैतन्य करना चलहये लजस् से की की ऄनग बबदु और रलत योनी का सबंध बन सके और धनद यलिणी का रूप लनर्ममत हो सके . और ऐसे ही लसद्ध यन्त्र पर होिी के ऄिसर पर प्रयोग दकया जा सकता हैं . प्रथम ददन गुरू पूजन लिलध के साथ कर यंत्र को प्राण चैतन्य दकया जाता हैं . साथ ही साधक मे मनस से सामंजस्य स्थालपत दकया जाता हैं . आसमें कु बेर यलिणी अधार बीज का सहारा लिया जाता हैं . ऐसा होने पर धनदा यलिणी का साधक से पूणा तादाम्पय
स्थालपत हो जाता
हैं . आसमें असन का लिधान ध्यान देने योग्य हैं .र्ाल्गुि शुक्ि ऄष्टमी को जो िार हो ईसी ग्रह का असन साधक को लिछाना चालहए . रलि को गुिाबी , सोमिार को सफ़े द , मगंिार को
िाि ,बुध को हरा ,बृहस्पलत की पीिा , शुक्र की स्िेत तथा शलनिार को कािे रं ग का असन लिछा कर साधना समपन्न की जाती हैं .. आसमें हदकक मािा का प्रयोग दकया जाता हैं .परन्तु आसका भी एक लिशेष तरीका हैं दीपाििी की मध्य रालत्र को रे शम या सूती धागे की ८८ अिृलत िेकर ईसका धागा बनाये और सुमेरु लपरोकर गााँठ िगाये ,गाठ िगते समय महाकािी महािक्ष्मी महासरस्िती का परस्पर िोम लििोम,ध्िलन ऄध्िानी, बबदु और् योनी के शब्द सामंजस्य करते हुये गाठ िगा दें, दर्र दूसरे ददन् मध्य रालत्र को दूसरा हदकक पत्थर आसी प्रकार दक दक्रया करते हुये ,आसतरह लनत्य एक मनका लपरोया जाता हैं औरईसके उपर एक गाठ िगाइ जाती हैं . आस तरह यह मािा होिी तक जा कर तैयार हो पाती हैं .तभी आस मािा मे अिया जनकता और प्राणित्ता अ जाती हैं . यह मािा साधक या गुरू भाइ तैयार् कर सकते हैं . दर्र र्ाल्गुन शुक्ि ऄष्टमी के ददन मैंने रालत्र को आसी प्रकार तैयार की हुयी मािा से प्राण चैतन्यता प्राप्त की और शारीर की तीनोअिृलतयों मे तीनो महाशालक्तयों की स्थापना की .िाणी मे धनदा का समािेश दकया .शारीर मे ऄनंग और रलत की प्रलतष्ठा करते हुये असन पर बैठ कर दीपक प्रज्ज्िलित कर गुरुदेि के बताए हुये तरीके से मंत्र जप प्रारं भ दकया . आसमें प्रत्येक ददन ऄिग ऄिग लिधान संपाददत दकया जाता हैं .प्रथम ददन शरीर मे गुरू पूजन और यंत्र स्थापन दकया जाता हैं तो दूसरे ददन स्िणाा कषाणभैरि मंत्र को प्रस्र्ु रटत दकया जाता हैं .तीसरे ददन धनदा पंचदशी मंत्र की जागृलत की जाती हैं .चौथे ददन धनदा यलिणी यन्त्र चैतन्य और मंत्र सम्पपुरटत दकया जाता हैं .पाचिे ददन भैरब गुरटका पर भैरि मंत्र जप तथा छठे ददन भैरिी गुरटका पर भैरिी धनदा को लसद्ध दकया जाता हैं .सातिे ददन सबंलधत जप और पुणााहुलत समपन्न की जाती हैं . ये सारे मत्र ं गोपनीय और गुरू मुख से ही प्राप्त रहे हैं .ऐसा करने पर मुझ जैसे ऄनाडी साधक को जो ऄनुभि हुये हैं .िे ऄपने अप मे एक ऄिग ही कहानी हैं .मै ऄनुभि करता हाँ की यदद कोइ भी साधना पूणा प्रमालणकता के साथ संपन्न की जाए तो लनिय की ऄनुकूिता प्राप्त होती हैं . मेरे पास तंत्र और् मंत्र से सबंलधत सैकडो ग्रन्थ हैं ,और िगभग सभी ग्रंथो मे धनदा यलिणी साधना का समािेश दकया हैं परन्तु आन सारे ग्रंथो मे लजस प्रकार का प्रयोग ददया हैं.िे ऄपूणा हैं . ईनमे प्रमालणकता ऄनुभि नही हुयी . आसकी ऄपेिा पूज्य गुरू देि ने मुझे जो
लिलध मंत्र जप बताया ईस प्रकार से करने पर प्रत्यि साधना लसद्ध हुयी .और मैं चैिेंज के साथ अज आस बात को लसद्ध करसकता हाँ.यदद पूणा प्रामालणकता के साथ साधना की जाए तो लनिय ही सर्िता प्राप्त होती हैं . आस साधना की समालप्त होिी के ददन होती हैं .धनदा यलिणी के बीज मन्त्र जप से ८८ कमि बीजो को जहााँ होिी प्रज्जलित होती हैं ईसी होिी मे ईन कमि बीजो को एक एक करके डािा जाता हैं और मंत्र जप समपन्न होता होता हैं . और ऐसा करने पर ईसी रात मे ऄत्यंत हो सौम्पय और मधुर रूप मे यलिणी प्रत्यि हुयी आसके बाद अज तक मैं भौलतक और अध्यालत्मक योग एिं साधना िेत्रमे लजस गलत से अगे बढ़ा हाँ . और सर्िता पायी हैं . िह सब कु छ आस साधना की बदौित ही सम्पपन्न हुयी हैं .
मुझे मंत्र तंत्र यन्त्र लिज्ञानं पलत्रका ने धनदा यलिणी साधना पर कु छ पंलक्तया लिखने को कहा था परन्तु यह लिषय गोपनीय और गुरू मुख गम्पय हैं ऄतः लजतना भी स्पस्ट कर सकता था मैंने आस िेख मे साधना लिलध को स्पस्ट दकया ,मैं ऐसा अिश्यकता ऄनुभि करता हाँ के मंत्र और साधनाओ से सबंलधत लजतने भी ग्रथ प्रकालशत हैं ईनका ऄत्यन्त ही योग्य लिद्वान से पुनः संपादन होना चलहये ,मैं चेिेंज के साथ स्पस्ट करता हाँ की कोइ भी मेरे द्वारा संपाददत धनदा को स्पस्ट देख सकता हैं . अर्मथक िैभि धन यश प्रलतष्ठा एिं अगे की समस्त साधनाओ मे ऄलद्वतीय सर्िता के लिए यह अधरभूत और महत्िपूणा साधना हैं . साभार सलहत ..मंत्र तंत्र यन्त्र लिज्ञानं ..ऄप्रेि 1985 तो मेरे लमत्रो आस ऄद्भुत िेख से अप समझ सकते हैं की ..यलिणी ऄप्सरा साधना बहुत गभीरता का लिषय हैं ..और ऄब अप पर हैं की अप आस ऄिसर को समझे ... SOME FACTS RELATED TO ONE DAY SEMINAR ON APSARA YAKSHINI…PART 4 ( -4 )..
-4
मेरे लमत्रो ,
..
अप आस सेमीनार मे होने िािी कु छ लिषयों के बारे मे जानते जा रहे हैं और यह ऄनेक दृष्टी से बहुत ही महत्िपूणा होगा .क्योंदक आन साधनाओ के आष्ट िगा के प्रलत जहााँ हमारे लिचार कु छ ऄजीब सी मानलसकता से भरे हैं सीधे और स्पस्ट रूप से कहाँ तो लसर्ा काम भाि की प्रबिता िािे लिचार ही प्रबि हो जाते हैं ..तो िही ाँ दूसरी ओर आन साधनाओ मान लिया
को कै से करना हैं .हमने आन्हें िस् एक या दो ददन या चार ददन की साधनाए हैं .
दोनों ही बात ऄपने अप मे सही नही हैं. अप लजस ऄिस्था की अशा करते हैं िहप्राप्त करने के लिए अपको मेहनत भी करनी पड़ेगी .यह सही हैं की यह साधना लिधान बड़े नही होते पर आसको ऐसे देखें की IAS की परीिा मात्र कु छ घंटे की िह भी कु छ ददन ही पेपर ही अपको देने पड़ते हैं पर ईसकी तैयारी अप को कहााँ से शुरू करनी पड़ती हैं यह अप कहीं जायदा ऄच्छे तरह से जानते हो .और ऐसा करना ऄलनिाया हैं और अप को कोइ अिया भी नही होता क्योंदक यह तो अप जानते हो की आस परीिा को पास करते ही एक साधारण सा व्यलक्त लजसका कहीं कोइ सम्पमान नही करता हो मानिो बहुत ही कम भाग्यशािी पररलस्थतयों का हो ,जैसे ही ईसने यह परीिा पास की ईसका सारा संसार बदि जाता हैं .बस एक परीिा और जो बजदगी मे हार रहा हो िह ..लिजेता की श्रेणी मे अ जाता हैं .ठीक कु छ ऐसा ही आन साधनाओ मे होता हैं , हम जो िगतार एक सर्िता लमि जाए ईसके पीछे पागि हैं ...ईनको आन साधनाओ मे सर्िता लमि जाना मानिो सारा संसार जीत िेने के सामान हैं एक लिस्बस्त लमत्र ,एक जीिन भर का सच्चा दोस्त , एक ऐसा दोस्त जो जीिन की हर पररलस्थलतओ मे अपके साथ .और हर तरह के सुख और समृलद्ध देने िािा और साथ ही साथ अध्यालत्मक मागा मे अपको ईच्चता तक िे जाने िािा ...कौन नही चाहेगा एक ऐसा दोस्त . और एक ऐसा साथी अपको आन साधना से लमि सकता हैं जो सच मे लनश्च्छि होगा .लजसका ईदेश्य के बि अपको अगे बढ़ाना होगा .िह ऄगर आन साधनाओ से लमि सकता हैं तब कु छ तो मेहनत करनी होगी न . िह ऐसे तो संभि नही .अज अप को हजार िोग लमि जायेगे लजन्होंने यह साधना की होगी पर पूणाता के साथ ऐसी साधना के रहस्य बताने िािा ...कहााँ हैं .???.िोग कहते तो हैं की ईन्होंने की हैं ... पर सच्चाइ भी िही जानते हैं .कोइ भी अपके सामने यह रहस्य नही खोिेगा .
क्या सचमुच ये साधनाए आतनी ज्यादा ऄन्य लिलध लिधान लिए होती हैं . मेरा ईत्तर हैं हााँ ....पूणा रूप से . पर कइ तो कहते हैं की ईन्हें यह साधना तो मात्र .. तो आसका कारण
यह रहा होगा की ऄपने दकसी लिगत जीिन मे या ऄतीत मे आन
साधनाओ को एक ऄच्छे स्तर तक ईन्होंने दकया होगा आसी कारण यह सर्िता ईन्हें लमिी .. क्योंदक तंत्र दकसी संयोग को नही मानता
बल्की एक सुचारू लनलित व्यिस्था हैं .
मैं अपके सामने ऄगिी पोस्ट मे एक यलिणी साधना का लिधान के कु छ ऄंश रखने का प्रयत्न करूाँगा लजसको पढ़ कर ही अपके सामने कु छ नए तथ्य खुि जायेगे की यह हैं..और हम क्या समझे रहे . साधारणत रूप से एक यह भी ऄिस्था बनती हैं दक आनका समलहती करण अपके जीिन साथी मे हो जाए तब िे और भी अकषाक और सिा दृष्टी से अपके ऄनुकूि हो जायेगी, अज अपको मैं कु छ लिलशष्ट दक्रयाओं के नाम से पररलचत कर रहा हाँ ,अप लजनको देख कर यह समझ जायेगे की सच मे ऄगर दकसी को ऄप्सरा यलिणी लसद्ध करना हैं तो आन दक्रयायो को करना ही पड़ेगा और लजन सौभाग्शालियों ने सदगुरुदेि द्वारा अयोलजत आस लिषय के लशलिर मे प्रयोग देखें हैं िह भिी भांती भांलत जानते हैं की आन दक्रयाओं का महत्त्ि क्या हैं . और ऄगर अज भी यही िक्ष्य हैं की एक ददन मे या एक बार मे ही पूणा लसलद्ध लमि जाए तो आन् दक्रयाओं को पहिे से कर के रख िे .तादक जब अप मूि क्रम मे बैठे तो ..सर्िता लमि ही जाए ऐसा हो .तब तो आन सारी बात का ऄथा हैं . पर हमें आन दक्रयाओं का पता कै से चिेगा अज कौन हैं लजसके पास ज्ञान तो हैं पर िह हमारे साथ बाटना चाहता हैं . आस सेमीनार मे अपके सामने जो लिषय होंगे या आस सेमीनार से जब अप िालपस अ रहे होंगे ... लजनका अपके पास ज्ञान होगा िह होगे .
देह ईत्थापन दक्रया देि शलक्त स्थापन नालभ मंत्र संस्कार मािा संस्कारदेि समािेश सुमरु े
पूजन
असन संस्कार िीर स्थापन दक्रया भैरि स्थापन दक्रया भैरि ईत्थापन दक्रया मूिाधार आष्ट स्थापन आष्ट व्यापकता ऄशुद्ध ईच्चारण संस्कार ईत्थापन न्यास यन्त्र ऄंकन यन्त्र ईत्थापन यन्त्र दीपन लत्रिोही मुद्रा काम मुद्रा लसद्ध प्रयोग रलतकाम सौदया बंधन मंत्र
आन्द्र मंडि लसलद्ध सम्पमुलखकरण ईिाशी मंत्र ददव्य प्रत्यिीकरण और हो सकता हैंदक कु छ ओर भी ..........क्योंदक एक अपका और हमारा ईत्साह देख कर हमारे िररष्ठ ना मािूम दकन ओर दक्रयाओं के लिए ..हमें पात्र मान कर और भी कु छ लिशेष देने का मन बना िे .......अप समझ सकते हैं की यह सेमीनार दकतना महत्िपूणा होगा .लजसका का िणान ही नही दकया जा सकता हैं .होंगे अप और हम ही .सब कु छ िैसा ही ..पर ज्ञान की जो धारा हमें प्राप्त हुयी हैं एक भाइ के माध्यम मे ऄपने ऄन्य भाइ बलहनों के साथ , िही अपस मे बाटने को हम सब आकठ्ठा होंगे . और यह भी कम महत्िपूणा बात नही हैं . कलह न कहीं से शुरू अत तो होती हैं और कभी न कभी बजदगी मे कोइ पररितान का िण अता हैं और ऄगर आस भी अप िेसे ही देख सको तो अप पाओगे की यह सेमीनार ..साधनात्मक ज्ञान की दृष्टी से बहुमूल्य होगा ... लनिय ही की अप सभी आस बात का ऄनुभि भी करें गे . पर लजनका काम लसर्ा अिोचना करना हैं ईन्हें तो ऄभी से यह काया चािू कर देना चलहये
और िेसे हो भी गया हैं ......और जब यह सेमीनार हो जाए तो और भी जमकर िे
ऄपने काया मे िग जाए ..पर लजन्हें सही या गित की परख हैं , जो जानते हैं तो जीिन की धारा समझते हैं जो ऄपने स्ि लििेक से लनणाय िेते हैं जो जीिन को सही या गित की तराजू से नही बलल्क .यह देखते हैं की अज आस िण का क्या महत्त्ि हैं ..ईनके लिए यह बहुत मूल्य िान िण होंगे . क्योंदक सर्िता के लिए कोइ हजार दस हज़ार सीक्रेट थोड़ी न होते हैं . जैसे मैं अपके सामने कु छ कु छ तथ्य तो रखता जाउाँगा ही ,तादक अप आस सेमीनार के महत्त्ि को समझ सके .
लमत्रो यहााँ कोइ अरती न कोइ पूजन .न कोइ र्ू ि मािा ऄपाण .न हीकोइ मंत्र जप .....ऐसा कु छ भी नही ..न ही कोइ ऄन्य ताम झाम होने जा रहा हैं .. क्योंदक हम सभी को बहुत र्ूं क र्ूं क कर कदम चिना पड़ता हैं . चारो तरर् कलतपय िोग आं तज़ार मे रहते हैं . हमारी लििशता देलखये की हम चाह कर भी सदगुरुदेि का लचत्र तक नही िगाते क्योंदक िोग बैठे हैं ईधार की देलखये ये िोग भी सदगुरुदेि के नाम पर .... हैं न अिया की लजनका ज्ञान हैं ....लजनके द्वारा ददया गया हैं ..कोइ हमने ऄपने घर मे तो लनमाालणत दकया नही .की यह सब हमारा खुद का बनाया गया हो ..ऄपने ही अध्यालत्मक लपता के ऄनन्त ज्ञान के भण्डार मे से जो कु छ थोड़े हीरे मोती लमिे हैं ...ईसे भी लबना ईनका नाम लिए .... क्योंदक कु छ ऄपने भाइ बलहन हैं लजन्हें यह भी अपलत्त .... ऄब कोइ यह कह दे की .यह तो सदगुरुदेि का ज्ञान हैं तो ..भाइ .और दकसका ज्ञान हमें लमिा हैं ..ईन्ही का ही हैं यह सब ..... िह ही .........और एक भाइ के नाते ही बाटने का मंतव्य रहा हैं .और यह ही हमेशा रहेगा . हमारी कथनी और करनी मे कोइ र्का नही रहा हैं . क्योंदक न हम िोग दकसी पद की दौड़ हैं ..न कभी भी भलिष्य मे होंगे . यह लनलित हैं .हम सदैि लशष्य शब्द के िायक भी बन जाए यही हमारा परम सौभाग्य होगा . हााँ यहचाह
जरुर हैं की यह ज्ञान अपके पास तक भी पहुाँचाना चलहये
पर ..यह यूाँ ही रास्ते मे तो नही र्े का जा सकता न .ऄतः कु छ लनयम कु छ शते हमने रखी हैं लजनका पािन हर व्यलक्त जो आस सेमीनार मे भाग िेने चाहता हो ईसे पहिे पूरी करना पड़ेगी . ..ऄब लजन्हें िह अिोचना के योग्य िगती हो ..तो जी भर कर करें भी अलखर ईन्हें भी तो ऄपना काया करना हैं ... खेर
ऄब बात करूाँ .आस पोस्ट मे अइ एक दक्रया की हम सब ने यह तो पढ़ा होगा .की यलिणी साधना मे सर्िता के लिए ..कु बेर पूजन ऄलनिाया हैं ..क्यों हैं..आस पर मैं ऄगिी पोस्ट पर बात करूाँगा . पर सच सच बताओ की क्या कभी दकसी ने सुना है या पढ़ा हैं की ऄप्सरा साधना मे सर्िताके लिए ..आन्द्र का पूजन दकया जाता हैं . नही सुना न .तो पूजन दकस लिशेष मंत्र और तरीके से .न न .....यह तो सेमीनार मे ही अप जानोगे ... आसका मतिब यह हुअ की उपर जो लिलशट दक्रयाए का नाम मैंने ददए हैं ईनका ऄथा तो हैं .. हैं न तो .जो अने िािे हैं ईनका स्िागत हैं ही .औरजो मानस बना रहे हैं .ईनके लिए आतना ही ..की . SOME NECESSARY FACTS REGARDING YAKSHINI SADHNA PART 1( १)
लमत्रों... साधना जगत रहस्यों का जगत है, जहा पर ऄज्ञानता होती है िहााँ पर रहस्य होता है और जहां िह ज्ञान प्राप्त हो जाता है िहााँ पर िह रहस्य कु तूहि का लिषय नहीं रहता िरन एक अिश्यक प्रदक्रया के रूप में स्थालपत हो जाता है. िेदकन जहां पे एक प्रदक्रया पूणा होती है िही ाँ पर ही दूसरी प्रदक्रया शुरू हो जाती है और आसी लिए रहस्यों का यह लसिलसिा बरकरार रहता है तथा हममे ज्ञान प्रालप्त की तृष्णा को बढाता ही जाता है. आसी लिए रहस्य भी ऄनंत है और ज्ञान भी. एक छोटे से ऄबोध बच्चे को को की मात्र कु छ महीने का है ईसे ऄगर अप मुहं र्ु िा कर ददखाए तो िो ईसके लिए महा रहस्य होता है. ईसके अाँखों में अिया के भाि होते है की ऐसा के से संभि है. िेदकन जेसे जेसे िह बड़ा होता है ईसे आस तथ्य से सबंलधत प्रदक्रया का ज्ञान हो जाता है तो दर्र िह ईसके लिए दर्र िह कोइ रहस्य नहीं रहता.
साधना जगत में भी ठीक ऐसा ही है. दकसी भी साधना से सबंलधत तथ्यों को के बारे में ईसके पररणाम के बारे में हम सुन कर देख कर या पढ़ कर ये अिया करने िगते है की ऐसा के से संभि है िेदकन जब तक ईसकी मूि प्रदक्रया का हमें ज्ञान नहीं होगा तब तक ही मात्र िह एक कु तुहि का लिषय बन कर रह जाता है. जब ईस मूि रहस्य का हमें पता चि जाता है तो दर्र सर्िता लनलित लमिती ही है. यहााँ पर सर्िता का ऄथा पूणा सर्िता को प्राप्त करने से है मात्र ऄनुभि प्राप्त करने से नहीं. हर एक मंत्र लजस का मुख से ईच्चारण दकया गया है िह दकसी न दकसी प्रकार की ईजाा का लनमााण लनलित रूप से करता ही है और िह ईजाा एक लनलित पररणाम देती है आस लिए कहा गया है की हर एक मंत्र का प्रभाि लनलित रूप से होता ही है. िेदकन पररणाम प्राप्त करना और पूणा रूप से सर्ि होने में ऄंतर है.
लिगत ददनों में जो तथ्य अपके सामने ऄप्सरा यलिणी सेमीनार के सबंध में रखे गए है ईनका ईद्देश्य यही है की ईन मूि प्रदक्रयाओ को िो व्यलक्त जान सके लजनमे आस साधना को करने की ििक हो, लपपासा हो तृष्णा हो. और ऄप्सरा तथा यलिणी साधनाओ के सबंध में लिलिध भ्ांलतयां भी है तथा यह लिषय हमेशा से कु तुहि की द्रलष्ट से देखा जाता है. िेदकन आसके मूि रहस्य कभी प्रकाश में नहीं अते है. सदगुरुदेि ने ऄप्सरा यलिणी साधना के सबंध में कइ बार कहा है की यह साधना बहोत ही करठन है और यह साधना बहोत असान भी है. और लजन्होंने सदगुरुदेि के समय में ऄप्सरा तथा यलिणी साधनाओ में भाग लिया होगा ईन्हें ज्ञात होगा की साधना से पूिा सदगुरुदेि कइ प्रकार की प्रदक्रयाए करिाते थे जो की ईन साधनाओ से सबंलधत गोपनीय पि रहे है. आस लिए ये बात तथ्य लहन् है की सदगुरुदेि ने कभी ऐसा नहीं कहा की साधनाओ की गुप्त पूज ाँ ी है या ऐसा कु छ. िरन होता यह है की हम कभी जानने की कोलशश नहीं करते आस लिए िे गुप्त है. जब कोिंबस खोज के लिए लनकिा था तो ऄपने प्रदेश के ऄिािा दकसी जगह मानि होंगे की नहीं यह एक रहस्य था सब के लिए. क्यों की दकसी ने भी ईन रहस्यों को जानने की कोलशश नहीं की थी, िेदकन सदगुरुदेि ने समय समय पर लिलिध तथ्यों को ऄपने लशष्यों के मध्य रखा ही है. आसे कइ गुप्त रहस्य और अिश्यक तथ्य कइ योगी साधू तथा हमारे िररष्ठ सन्यासी भाइ बहेनो के पास सुरलित है लजनके बारे में सेमीनार में चचाा की जाएगी. साथ ही साथ में गुप्त यंत्रो तथा ईनके ईपयोग पर भी लिस्तृत रूप से चचाा की जाएगी. यहााँ पर में यलिणी साधना के सबंध में कु छ
अिश्यक बाते अप सब के मध्य रखना चाहाँगा जो की ऄनुभिगम्पय है तथा जो ऄब तक एक रहस्य मात्र रहे है. अकाश तत्ि का महत्त्ि: महाऊलष कणाद ने पञ्च तत्िों तथा ऄणुओ के बारे में कइ तथ्य प्रकट दकये है. ईनका कथन है की जीि की संरचना में ५ तत्ि ही मुख्य रूप से होते है लजनके प्रमाण के अधार पर ईनके बाह्य शरीर का िगीकरण होता है. मनुष्य सिाश्रष्ठ े संरचना आस लिए है क्यों की आसमें पांचो तत्ि लिद्यमान है तथा आन संयोजन से बनी हुइ ऄणु की संरचना में बदिाि मनुष्य खुद ही कर सकता है. पांच तत्ि अप सब जानते ही है पृथ्िी, ऄलि, जि, िायु और अकाश तत्ि. पृथ्िी ऄलि तत्ि को असरा देती है, पहिे कोइ भी बपड लसर्ा ऄलि के रूप में होता है तथा ठोस होते होते िह पृथ्िी रूप में परािर्मतत होने िगता है. यही तत्ि ऄपने ऄंदर ऄलि को समालहत दकये हुिे रहता है. आसी तत्ि को लजतनी भी ज्यादा ऄलि दी जाए ईसका ईतना ही रूप पररितान होने िगेगा तथा ईसकी घनता, द्रव्यता में परािर्मतत होती जायेगी. मतिब की ईसका रूपांतरण जि तत्ि में होने िगेगा. और रूपांतरण के बाद भी ईसमे ऄलितत्ि रहता ही है क्यों की संरचना में बदिाि होता है िेदकन ईसके मूि तत्ि में नहीं. आस लिए जब ईस द्रव्य या जि तत्ि पर ऄलि तत्ि का प्रभाि होता है तब िह धीरे धीरे िायुिान बनाने िगता है. ऄथाात की ईसका रूपांतरण िायु में होने िगता है.
िेदकन आन सब को समालहत दकये हुए जो मुख्य तत्ि है जो की सिा व्यापी है, जो आन सब को काया करने के लिए अधार भूलम देता है, िह अकाश तत्ि है. पुरे ब्रम्पहांड में चाहे दूसरे कोइ तत्ि हो न हो िेदकन अकाश तत्ि लनलित रूप से होता है क्यों की ऄलि की ईत्पलत से िे कर बपड के लनमााण तथा ईसके पररितान से िेने तक जो भी घटनाये होती है िह अकाश में ही तो होती है. आस लिए तत्िों में यह सिाश्रेष्ठ है.
िेदकन आसका यलिणी या ऄप्सरा साधना से क्या सबंध?
लमत्रों, िोक िोकान्तरो के बारे में एक बात यहााँ जानना ज़रुरी है. की ऄगर हम दकसी ऄन्य िोक या ईससे सबंलधत लजि की साधना करते है तब हमारा तथा ईनके संपका का माध्यम सूत्र क्या होता है. हम कहते है की यलिणी या ऄप्सरा मंत्र बि से हमारे पास अ जाती तो िह मंत्र की उजाा ईन तक पहोचाती के से है? ऐसा कोन सा तथ्य है लजसके माध्यम से यह सारी प्रदक्रया काम करती है?
आन सब के मूि में अकाशतत्ि है. क्यों की अकाशतत्ि सिा व्यापी है आस लिए सभी िोक िोकान्तरो में यह तत्ि लनलित रूप से ईपलस्थत है. तथा हमारी साधना प्रदक्रया से लनर्ममत उजाा ईन तक पहोचाती है तो अकाशतत्ि के माध्यम से ही. और ऄगर हमारा संपका ईनसे होता है तो िो भी अकाश्तत्ि के माध्यम से ही. क्या ऐसा संभि है की दर्र अकाश तत्ि को में सीधे ही हम ऄप्सरा तथा यलिणी को अिाज़ दे? हम ईनको बुिाये तो ईनको अना पड़े? लनलित रूप से ऐसा संभि है. िेदकन आसके लिए भी तो कोइ प्रदक्रया है. क्यों की हमें अकाश तत्ि का एक ऐसा प्रलतक बनाना होगा लजसके माध्यम से हम अकाशतत्ि के साथ ऄपना सामजस्य स्थालपत कर सके और ईसके बाद ईसमे दकसी का भी अिाहन दकया जाए तो ईसके साथ भी हमारा संपका स्थालपत हो सके . मगर यह के से होता है? आस पर चचाा करें गे अने िािे िेख में………… SOME FACTS RELATED TO ONE DAY SEMINAR ON APSARA YAKSHINI…PART 3 ( -3 )
मेरे लमत्रो ,
..
ऄप्सरा या यलिणी कीिन लिधान तो ऄभी तक गोपनीय रहा हैं .(आस सन्दभा मे पहिी बार रोज़ी लनलखि जी ने एक साधना क्रम हमारे सामने रखा हैं िह हमारे ब्िॉग मे भी ईपिब्ध हैं ) ईसके लबना हम सभी दकतनी दकतनी बार साधना कर चुके आस सन्दभा मे .पर हमें मािूम ही नही था .की यह कीिन प्रदक्रया भी एक अिश्यक दक्रया हैं और लबना आसके सर्िता की अशा करना ....?? कीिन का मतिब कीि देना ..सामान्य सा यही ऄथा लनकिता हैं आस शब्द का ...तो ऄप्सरा या यलिणी का हमारे जीिन मे लनलित रूप से प्रिेश हो और न के बि प्रिेश हो बलल्क ईसे हमारे जीिन मे स्थालयत्ि भी एक लमत्र एक दोस्त के रूप मे लमिे आस हेतु आस प्रदक्रया का महत्त्ि तो हैं .लजस तरह हमने ऄनेक योलनयों की साधना मे पढ़ा हैं की ईन्हें एक िषा या पांच िषा या कु छ और समय के लिए ही ऄपने साथ रहने के िचन लिया जाता हैं तो क्या आन साधनाओ मे भी कु छ ऐसा हैं .??? लनिय ही रूप से , कइ बार एक िषा या पांच िषा या जीिन पयंत भर के लिए भी .. पर कै से हो यह संभि ..?? .आसके लिए आसी लिधान मे क्या क्या पररितान करना पड़ेगा .िह भी तो जानना हैं . लमत्रो यहााँ पर जो भी प्रदक्रयाओं की मैं बात कर रहा हाँ ..तो आसका मतिब यह नही की ये प्रदक्रया कइ कइ सािों तक चिती रहेगी और अप मूि साधना तक कभी भी न अ पाओ .ऐसा कु छ नही हैं . यह बात नही हैं ..बलल्क अिश्यक दक्रयाए सीखना और सीख कर भिी भांलत करने पर मानो .सर्िता अपके समि होगी . क्योंदक समथा गुरू का लशष्य होना
तो ऄपने अप मे ईपिलब्ध हैं ही .पर ईससे भी बड़ी
यह ईपिलब्ध हैं की ऄपने गुरू का ज्ञान तेज ओज साधनाबि हम ऄपने अप मे ..जीिन मे पूरी तरह से ईनके अशीिााद रूप मे .....ईन्हें पहिे ह्रदय मे स्थालपत कर पाए तभी तो एक सामन्य साधक ...सर्ि साधक और लसद्ध तक बनने की श्रेणी मे अ जाता हैं .
लशष्य को भी समथा होना ही चलहये तभी तो लशष्य का भी गौरि हैं .और ईसके गुरू की प्रसन्नता की मेरा एक पुत्र पुत्री ने मेरे ज्ञान को सही ढंग से अत्मसात दकया हैं .लसर्ा जय कार िगा ने मे उजाा िगायी नही .बलल्क एक जीलित जाग्रत ग्रन्थ बनने मे .... और ऐसा होना एक सौभाग्य हैं ..नही तो जय कार िगाने तो ..कोइ भी स्ितंत्र हैं ही . पर सदगुरुदेि जी से दीिा प्राप्त करना और ईसके बाद लजज्ञासु ,,,साधक ..लसद्ध...लशष्य क्रमशः आन चारो सीढयों पर चढते जाना .और सदगुरुदेि जी की ऄनन्त किािो मे से दकसी एक भी किा को पूणत ा ा से धारण कर सम्पपूणा लिश्व के सामने .एक ईदाहरण ईपलस्थत करना ...यह होगा हमारी योग्यता का पररचय यह तो ज्ञान सीखने मे होगा न ..के घर बैठे ..लसर्ा सोचते रहे .ऄब आसी कीिन का एक ऄद्भुत लिधान की क्या यह सम्पभि हैं की ये हमारे जीिन मे हमारी जीिन साथी भी बन सके ..?? क्यों नही .यह भी समभि हैं .. मतिब एक सहयोगी नही की ऄदृश्य रूपसे ही .बलल्क .. हााँ भाइ हााँ .....अप ईन्हें एक मनुष्य के रूप मे हरकाि मे ऄपने जीिन के सहयोगी बनाना चाहते हो न
तो ये भी संभि हैं ...
पर लनलित रूप से आसका भी लिधान तो कु छ ऄिग सा होगा .. लबिकु ि होगा , तो लजनकी ईस लिधान मे रूलच हैं तो िह भी यहााँ पर ईस लिधान के बारे मे ज्ञानप्राप्त करसकते हैं . चलिए अज एक अपको ऄद्भुत अिया जनक बात भी बताता हाँ लजसको सुन कर ..अपको .. मैं ऑदर्स मे रहा तो मेरे साथ कायारत रहे लमत्रो को बहुत ही अिया रहता की मैं एक ऄंगूठी पहने करता . ईस काि मे सभी को बहुत ईत्सुकता होती की दकसलिए मैंिह पहना करता था .
ऄरे िह थी ऄष्ट नालगनी मुदद्रका .मुझे तो पहनने मे बहुत ऄच्छी िगती ..क्योंदक जो भी ईस ऄनूठी को देखता ..िह ..सोच मे पड़ जाता .और मैं ईसके सारे प्रशनो का ईत्तरमे मुस्कान से की..पता नही क्यों... हािांदक अज नही पलहनता हाँ ..SMILE कारण ये हैं की जब बड़ी बड़ी साधनाओ मे सर्िता नही लमि पा रही थी तो सोचा की सरि सरि साधनाओ मे भी देख लिया जाए और जो सबसे सरि साधना िगी िह थी ऄष्ट नालगनी साधना . मैंने सोचा की सदगुरुदेि जी के पहिे परलमशन िे िूाँ . ईन्होंने सुनकर कहा की तु करना चाहता हैं..तेरी रूलच हैं आन साधनाओ मे ...तो जा कर कर िे .. की दो बार की भी पर सर्िता ...??(क्योंदक मुझे कोइ भी लिधान अदद तो पता नही थे .तो कहा से सर्िता लमिती ...) भाइ से संपका हुअ और हम सभी प्रथम पारद कायाशािा मे थे शाम और रात के िह िण जो चचाा मे हम िोगों के जो िण गुजरे हैं िह ऄनमोि हैं , तभी एक ददन भाइ ने ऄप्सरा यलिणी की चचाा चिने पर क्योंदक एक भाइ ने आच्छा जालहर कर दी की ईन्हें करना ही करना हैं . मैं ने कहा भाइ ..मैंने भी ऄष्ट नालगनी साधना करने की कोलशश की ..पर हुयी नही . भाइ बोिे िह आतनी असान नही हैं भैया . मैंने कहा .ऄरे छोलडये िह बहुत ही सरि साधना हैं .. भाइ बोिे ऄरे ऄनुभैया .एक नाग कमरे मे अ जाता हैं तो सभी की जान लनकि जाती हैं जब िह साधना काि मे अएगी तब क्या होगा ??बोिो . मैंने कहा भाइ सुलनए ऐसा कु छ नही होता ..िह् मानि रूप मे अएगी .तो कोइ प्रॉब्िम नही .
भाइ बोिे ये कौन ने ....कह ददया की मानि रूप मे ...भैया पहिे िह ऄपने ईलस रूप मे अएगी ,पूणा लसलद्ध के बाद बात ऄिग हैं .. थोडा सा मैं भी सोच मे पड़ा ..बोिा भाइ.... ये तो कहीं लिखा नही .. भाइ बोिे ,,लजन्होंने की हैं यह साधना ..पहिे ईनसे पूंछो .. और मुझे मतिब शाम सभी को यह बताया की सदगुरुदेि जी के एक लशष्य मे सदगुरुदेि जीके सामने जा कर कह ददया की ईसे कोइ परा जगत की योनी मे से जो ईनके योग्य हो क्या िह ईन्हें जीिन साथी के रूपमे लमि सकती हैं .सदगुरुदेि जी ने सीधे एक पि के लिए ईसकी अखों मे ताका ..
और नागकन्या की लिलशष्ट लिलध प्रदान कर दी . (लमत्रो यहााँ आस बात समझ िे हमने नाग और सपा को एक ही मान लिया हैं यह सही नही हैं .महाभारत कािीन योद्धा ऄजुान और भगिान श्री कृ ष्ण की ऄनेक रालनया तो नाग िोक की थी .तब आसका मतिब कोइ ऄन्य योनी होगा न. ठीक आसीतरह हमने ररि राज जामिंत को भािू समझ लिया ..और जामिंत की पुत्री जामिंती से भगिान श्रीकृ ष्ण का लििाह हुअ तो आसका मतिब कहीं हमारे समझने मे ...) और िह भाइ .रात को चि पड़े .नदी दकनारे और् िहां क्या हुअ ....कै से .और क्या .. चलिए आन बातों को छोलडये .अप कहााँ जानना चाहोगे ...??? मुझे नही िगता की अपकी कोइ रूलच .. िालपस ऄपनी बात . तो आन् साधनाओ मे मतिब ऄप्सरा यलिणी साधना का यह ऄद्भुत लिधान भी हैं .
और लमत्रो जब यह साधना पूणा रूप मे अपके जीबन मे कीिन कर दी जाए .तब भिा सर्िता कै से दूर हो सकती हैं .. यह लिधान क्या हैं और आसकी कुं लजया भी जाने समझेंगे हम सभी .. ऄब आसका यह मतिब न लनकाि िे की हज़ारो की संख्यामे अपको गुढ़ रहस्य बताये जायेगे .बलल्क रहस्य तो लसर्ा आसलिए रहस्य हैं क्योंदक ऄभी तक हमने जाना नही हैं और जैसे ही जाना दर्र िह कहा रहस्य ... तो आस सेमीनार को ..लसर्ा प्रचार का माध्यम ना समझ िेना ...क्योंदक कि कोइ और खड़ा हो जायेगा की हम तो बस आतने मे ही ...सेमीनार करिा रहे हैं ...तब क्या .. क्योंदक सब कु छ्संभि हैं ..संसार मे कु छ भी ऄसंभि नही ... अज ददन भर जो बात रही तो मैं भी आतना कहना चाहाँगा की यह सेमीनार कोइ पैसे कमाने का माध्यम नही हैं .पर यह भी सही हैं की जो कु छ भी अपके लिए दकया जा रहा हैं ईसको संभि करने मे धन की अिश्यकता तो पड़ती हैं न .चाहे िह लिलशष्ट यन्त्र हो ..औरकु छ ऄन्य भी ... . यह कोइ ऐसा तो हैं नही की दस हज़ार िोग अ रहे हो तो ..कलतपय िोग गुणा भाग कर परे शां हो जाए की .. बलल्क ..लजनके भाग्य हैं ..लजनमे ििक हैं ...लजनमे सच मे साधना जीने की आच्छा हैं ..लसलद्ध क्या सचमुच प्राप्त की जा सकती हैं िह ऄनुभि करने का मानस हो ....ईन सौभाग्यशालियों के लिए .. ही हैं ऄब दकतने अ पाते हैं दकतने
नही यह हम नही सोचते
..हमारे मानस मे तो सदैि यही रहता हैं जैसा की दकसी काि मे सदगुरुदेि ने कहा था की जब भी िह लशलिर करिाते तो कोइ न कोइ एक या दो साधक ही ऐसे होते लजनके लिए सदगुरुदेि जी ने यह लशलिर अयोलजत करा पर जो ऄन्य अये िह ईनका भी भाग्य बन जाता . ठीक आसी तरह सदगुरुदेि के चरण कमिों से प्राप्त कु छ ऄमृत बुाँदे हैं लजनके एक भी ऄंश हमारे जीिन दक सधानात्मक ऄसर्िता को सर्िता मे बदि दे सकता
है.
ऄब रही बात धन की तो ये बात अपसे छु पी नही हीं हैं की भाइ जो भी पारद लशिबिग बनाते हैं िह संस्कारों,रत्नों,धातुओं और गुणित्ता तथा दक्रया के अधार पर बाज़ार मे ईपिब्ध पारद लशिबिग से कइ कइ कइ गुणा ज्यादा महंगा होता हैं ..और ऐसे कु छ लशिबिग मे ही सारा िोग जो अने िािे हैं ईनसे प्राप्त रालश अ जायेगी .. ऄगर् लसर्ा धन कमाना ही हम सभी का िक्ष्य होता तो ......तब दर्र क्यों .ये सब सेमीनार अयोलजत दकये जाए.हमने ये भी तो कहा है की यदद साधक मंडि यन्त्र की प्राण प्रलतष्ठा स्ियं करना चाहे तो िो अकर पहिे से ही ईस लिधान को स्ियं के व्यय पर कर सकता है,और जब अप स्ियं ही प्राण प्रलतष्ठा और लिधान कर रहे हो तथा अपने ऄपने हाथ से ही व्यय दकया हो तब ईसका दोष रोपण हम पर तो नहीं अएगा...साथ ही आस लिषय के गुप्त रहस्यों से पररचय करिाता सूत्र ग्रन्थ भी ऄपनी िागत िगाने पर प्रकालशत हो सकता था...ईसका क्या........ बस हम और अप अपस मे लमि सके .ज्ञान को गररमााँ के साथ ऄपने ही एक भाइ से सीख सकें और सर्ि हो कर ऄगर अपका साथ हमें ..ऄपने कायोंमे पूणत ा ा के साथ ऄगर लमिता हैं (हािादक यह भी कोइ शता नही हैं .) तो यह हमारा भाग्य होगा . तो अपको सोचना हैं या हमेशा की तरह पि लनकिते जाए औत हम मानस बना ही नही पाए ...
क्रमशः . SOME FACTS RELATED TO ONE DAY SEMINAR ON APSARA YAKSHINI…PART 2 ( -2 )
..
मेरे लमत्रो , ब्रह्मर्मष लिश्वालमत्र एक ऐसा नाम लजसके अगे सारी दुलनया नतमस्तक हैं जो सही ऄथो मे तंत्र के जीलित जाग्रत प्रतीक हैं.एक ऐसा व्यलक्तत्ि लजसने जो ठाना कर ददखाया ......न तो समाज की प्रचलित संक्रीनता की परिाह की ना दकसी के सामने लगडलगडाया . ऄगर सामान्य तरीके से संभि नही हुअ तो पूरी की पूरी साधना लिलध ही नयी रच कर सामने रख दी और समस्त देि
िगा को ऄपने सामने ईपलस्थत होने को बाध्य कर ददया ..दर्र चाहे िह कोइ भी देि रहा हो . और लजसमे कु छ ििक हैं ..अगे बढ़ने की बात हैं . पररलस्थलतयों को बदि डािने का हौसिा हो. जो ऄलडग ऄलिलचलित रूप से ऄपने मागा मे रहे िही तो तंत्र साधना मे एक साधक के गुण रखता हैं जो अगे सर्ि हो गा ही .
क्योंदक तंत्र तो चुनौलतयों का नाम हैं लजन्हें चुनौलतया स्िीकार करना अता हो ..ईनके लिए हैं यह िेत्र और यलिणी ऄप्सरा साधना मे एक बात ऄच्छे से समझ िेना चालहए की लजनमे पौरुषता होगी ईन्ही को लसद्ध हो सकती हैं , यह ध्यान दे की पौरुषता या पुरुष ....शब्द ....यह नर या नारी के प्रतीक नही हैं बलल्क एक भाि के प्रतीक हैं और भिे ही नारी देह हो पर ऄलिचि रूप से आस पथ पर चि सके .तो िह भी पौरुषिान कहिायेगी . पर आसके लिए शारीररक दृढता और प्रबि आच्छा शलक्त का होना बहुत जरुरी हैं , और अज हमारी आस GEN NEXT पीढ़ी के पास .आच्छा तो बहुत हैं पर आच्छा शलक्त का ऄभाि सा हैं. तब कै से संभि हो पायेगा ???,
और कु छ ऐसी लस्थलत शारीररक रूप से हैं .,पुररषोलचत सौंदया और नाररयोलचत सौदया की पररभाषा हम भूि गए ...........की .ऐसे होते थे व्यलक्तत्ि .... सदगुरुदेि जी ने कइ कइ जगह और कइ कइ स्थान पर कै से होना चालहए एक साधक का व्यलक्तत्ि बताया और हमारी कलमया और न्युन्ताये भी हम सबके सामने रखी ..पर ईस पर कौन ध्यान रखना चाहता हैं .
तो क्या तंत्र साधना लजसके बारे मे कहा जाता हैं की िह जीिन के सारे पि से सीधे जुडी हैं की आस बारे मे कोइ लिधान ..क्यों नही .. एक सामान्य सा िोहे का टु कड़ा भी यदद बार बार चुम्पबक से रगडा जाए तो ईसमे भी चुम्पबकत्ि के गुण अ जाते हैं . तो क्या ऐसा मनुष्य के साथ हो सकता हैं यहााँ पर चुम्पबक मतिब साधना और िह भी कोइ आतनी तेजस्िी आतनी तीव्रता लिए हुये लजससे या लजसको संपन्न करने पर हमारे जीिन मे भी एक उजाा एक ईत्साह और एक साधकोलचत गररमा, बि, साहस, तीव्रता अ जाये ऐसी साधना हैं ब्रह्मर्मष लिश्वालमत्र प्रलणत कोइ साधना नही ....बलल्क सीधे ईनकी ही शलक्त ईनकी ही उजाा ......से ही ऄपने जीिन को संस्स्पर्मषत करा लिया जाए तब जब ईनकी ..तेज .. ओज हमारे जीिन मे अ जाये गा तब भिा ऄप्सरा क्या यलिणी क्या ......... जीिन की हर साधना मे सर्िता मानो हमारा हर पि आं तज़ार करने िगेगी .दर्र चाहे महा लिद्या हो या िेताि हो या कोइ और ऄन्य साधना ....यह ध्यान रखने योग्य बात हैं . पर लबना आतनी तीव्र साधना के .सभि कहा ???? की अपका व्यलक्तत्ि आतना तेजस्िी और उजाा िान बन जाए .अज एक िड़की या िड़का या हमााँरे पुत्र या घर के सदस्य भी हमारा कहना नही मानते तब यह सोचना की एक रात कु छ मंत्र जप कर लिया तो सीधे लसद्ध हो जाए गी यह एक ..मृग मरीलचका हैं और मानिो दकसी ने यह कर भी लिया हो तो ईसके दकस जीिन के पुण्य और साधना सर्ि हुयी यह दकसी भी तरीके से समझया नही जा सकता हैं. तो यह ऄलद्वतीयता लिए हुअ लिधान भी अपकी प्रतीिा मे सेमीनार मे होगा जहााँ यह कै से संभि दकया जा सके या संभि हो सके आसके बारे मे भी लिचार लिमशा होगा . और आस बात को अप लसर्ा यलिणी ऄप्सरा तक ही सीलमत न मान िे बलल्क जब महा ऊलष लिश्वालमत्र का िरद हस्त हमारे उपर ..हमारे साथ होगा तब भिा ऄन्य कोइ भी साधना भी हमें लसद्ध होने िगेगी .. क्योंदक सािात् ऄलि स्िरुप ब्रह्मर्मष का ......सािात् तंत्र के प्रतीक...ब्रम्पह ऊलष का अशीिााद हमारे साथ हो तब और कौन सी िाधा हमारे सामने ठहर सकती हैं .
आस प्रयोग को करने से अप स्िय ही समझ सकते हैं की की लजस व्यलक्तत्ि ने मेनका को ऄपनी पत्नी के रूप मे िरण का कोइ कमजोर चररत्र का नही रहा होगा ...बलल्क ईसे साधनामय ता को एक नया अयाम ददिाया ईस सािात् तीव्र तेजस्िी व्यलक्त की ईजाा का अप एक ऄंदर समािेश होने के बाद अपको हर साधना दर्र िह चाहे कोइ भी हो सर्िता तो लमिने ही िगेगी .आस प्रयोग का भी िही ाँ पर आंतज़ार .. ऄब आसके बाद बात ईठती हैं की .पानी मे पानी लमि सकता हैं और तेि मे तेि और ..........पानी और तेि का लमिन तो संभि नही ,,
आसका मतिब ऄप्सरा यलिणी तो चतुभत ुा ात्मक हैं और हम मानि पञ्च भूतात्मक तब अपस मे मेि कै से संभि हो पायेगा ...आसी कारण हम ईन्हें देख नही पाते .सुन नही पाते .तो दकया क्या दकया जाए ऄब ऄप्सरा या यलिणी के तत्ि को चार से पांच तो हम कर नही सकते हैं या यह जरुर हो सकता हैं की हम ऄपने एक तत्ि जो ईनमे नही हैं का िोप कर दे . की ऐसा हो सकता हैं .??
ऄगर हााँ तो मानो हमने प्रकृ लत पर लिजय पाना शुरू कर ददया . क्योंदक आन पाचो तत्िों की साधना कोइ मामूिी साधना नलह हो सकती हैं . एक एक तत्ि को साधते साधते ..सारा जीिन जा सकता हैं क्योंदक लजसने भी आन पाचो तत्िों को साध लिया दर्र ईसे और कौन सी साधना करनी हैं सभी कु छ तो आन पाच तत्ि मे अ जायेगा .
पर क्या आतना बड़ा लिधान कै से करे .यह तो सभि सा नही ददखायी नही देता हैं क्या कोइ ईत्तर हैं . तो आसका ईत्तर लमिेगा लसर्ा एक जगह िह हैं पारद तंत्र लिज्ञानं मे ....सदगुरुदेि जी ने स्ियं ही स्पस्ट दकया हैंदक यदद एक ऄष्ट संस्काररत पारद लशिबिग के सामने ..एक लिशेष मन्त्र का एक लनलित ऄिलध मे जप दकया जाए तो यही ऄत्यन्त श्रम साध्य प्रदक्रया मानो र्ू ि ईठाने जैसे सहज हो जाती हैं . पर क्या हैं यह प्रदक्रया ,लजसके दो िाभ हैं एक ओर तंत्र के प्रिताक भगिान लशि की साधना .और दूसरी ओर एक तत्ि िोप करने की साधना . और कौन सा िह तत्ि होगा .यह तो हम सभी आस सेमीनार मे जानेगे ..क्योंदक लजस तत्ि की बात अएगी.िह तत्ि यदद दकसी का भी िोप या कम हो जाए तो िह ऄनेको लसलद्धयों का तो स्ियं ही स्िामी हो जाता हैं .ऄप्सरा यलिणी साधना के ऄिािा भी कइ कइ साधना ईसे तो यूह ाँ ी ...और आस हेतु ईसे कोइ ऄिग से साधना भी नही करना पडती हैं . तो ईस प्रदक्रया का सरितम लिधान ,जो अप बहुत ही असानी से ऄपने घर पर सम्पपन्न कर .ना के बि यलिणी ऄप्सरा बलल्क हर एक साधना मे सर्ि होने की पात्रता खुद ही बना िोगे..जो की अपका एक सपना रही हो ...
.तो ईस प्रदक्रया का लिधान और ईससे सबंलधत मन्त्र जो सदगुरुदेि के ही अत्म स्िरुप हमारे ही िररष्ठ सन्याशी भाइ बलहनों द्वरा ददया गया हैं .िह लिधान अप सभी का आं तज़ार कर रहा हैं . चलिए आस सन्दभा मे कु छ ओर बाते भी अगे हम करें गे .
तो अज के लिए बस आतना ही लिख दू.ं . अप जानना चाहोगे की अगे क्या ..तो लमत्रो ..ऄप्सरा कीिन का एक लिधान तो अप देख ही चुके हैं .पर यह कीिन दकतने प्रकार से संभि हैं औरक्या क्या अिश्यकता होती हैं..तभी आन साधनाओ मे सर्िता लमि पाती हैं .आससे जुडी हुयी कु छ बातें समझने का प्रयास करें गे .
हााँ यह जरुर हैं की जो भी भाइ बलहन आस सेमीनार मे अयेंगे िह सच मे ऄद्भुत ता से सरा बोर हो जायेंगे की यह और यह भी अिश्यक तथ्य रहे हैं .... आन साधनाओ मे मे सर्िता पाने के लिए .. पर यह सारी बातें और कु छ ओर भी बाते हम अगे देखग ें े .क्योंदक अप मे से ऄभी भी समय हैं की आस ऄलत महत्िपूणा ऄिसर को हाथ से न जाने दें .क्योंदक गया समय हाथ कभी नही अता .और क्या कहा जा सकता हैं जबदक ,एक लनलित समय पर सारे रहस्यों से अपका ही एक भाइ यह अपको पररलचत करा येगा .... क्या ..ऄभी भी सोचना हैं ...??? SOME FACTS RELATED TO ONE DAY SEMINAR ON APSARA YAKSHINI…PART 1 ( -1)
..
मे रे पमत्रो , कुछ समय िहले मैं भाइ के साथ बात कर रहा था , सामान्त्यतः काम की बात के ऄपतररि बहु त कम िण ही ऐसे पमलते हैं जहााँ हम कुछ ऄन्त्य ििों िर भी बात कर सके . मैं ईनसे कह रहा था भाइ अपखर हम सभी आतनी साधनाए करते हैं िर पजस िररणाम को हम िरू ा िाना चाहते हैं ईससे
तो मीलो दूर .... कोसो दूर रहते हैं वश कुछ ऄनुभपू त या हमारे जीवन मे कुछ िररवता न अता हैं और हम खुश िर ......पजस िररणाम की बात ईस साधना मे कहीं गयी होती हैं वह तो होती नही ..ऐसा क्यों . भैया , अि को समझना होगा की हर साधना के कुछ मल ू पबंदु होते हैं ईसके पबना संभव ही नही सफलता िाना ,चाहे अि जैसे या पकसी के पनदेशन मे कर लो ,हााँ पसफा सदगुरुदे व अज्ञा की बात को आसमें न शापमल करें ..क्योंपक वह तो सदगुरुदे व अज्ञा हैं ...ईनकी अज्ञा सारे पवश्व के पलए एक अदे श हैं और मतलब पसपद्ध तो ईसी िल ही पमल गयी होती हैं .पजन्त्हें वह अज्ञा दें . . िर भाइ हम लोग जैसा पदया जाता हैं वैसा करते तो हैं पजतना बनता हैं वह भी .और हमें तो कोइ बताता भी नही की और क्या क्या तथ्य हैं ..तो कहााँ से .हम लोग जाने .... लोग तो वस कहते जाते हैं जिते जाओ जिते जाओ .....िर तो कोइ तो खड़े हो कर समझाए नं..बताये ..न पकक्या करना चापहये ..की ईससे ही िण ू ा सफलता पमलेगी .. भैया अि समझो पजसको प्यास लगी होगी वह बैठा तो नही रहे गा वह हर संभव कोपशश करे गा .कीक्या अि बैठे रहोगे .. िर भाइ अि लोग तो सदगुरुदे व जी के समय सीधे ईनसे ही सीखे हो .अि ऄिने को हम लोग की जगह रख कर बोलो की....... ऄब वैसा तो समय अये संभव सा नही .. क्योंपक नही...... क्या सदगुरुदे व के पलए कोइ भी ज्ञान अिके तक िहु चा िाना कोइ ऄसंभव बात हैं ऄच्छा जाने दीपजए आन बात को .....ये बताए की कैसे करें सफलता से सामना . भैया मल ू भत ू पियाओं को समझना ही िड़े गा भाइ ऄब तो लगता हैं की मल ू भत ू पियाए ही करते रह जायंगे .लगता तो यही हैं ..जबपक पलखा तो कहीं नही जाता की िहले ये ये पिया करो तब ही यह साधना करना .िर जब भी अि लोगों से बात करो तो अि लोग आतने तथ्य पगना दे ते हो की मन मे ईत्साह सा समाि हो जाता हैं . ऄनु भैया समझो पकसी एक साधना मे िण ू ा सफलता का एक बहु त गहन ऄथा हैंअि हर बात को
महापवद्या साधना िर न समझ लेना ,बपल्क ऄप्सरा यपिणी साधना भी ईतने ही स्तर की हैं ....और आसमें भी सफलता पमलना ..वहभी िण ू ा ..... आसका मतलब ऄब ईसने वो सारी कंु जी जान ली जो की सफलता के पलए जरुरी थी तब और क्या जानना शेष रह गया ..आसपलए मे हनत तो करना ही िडे गा न. (मैं कुछ नही बोला .क्योंपक ..हम सब को सफलता िहले चापहये होती हैं मे हनत बाद मे और पसफा ऄंग्रजी शब्दकोश मे work से िहले success अती हैं ऄफ़सोस ऄन्त्य जगह नही ….काश साधना मे ऐसा होता तो .....smile ) और यह हमारा सौभाग्य हैं की भाइ की एक student रोजी पनपखल जी ने आस बात को हम सब के सामने लाना प्रारं भ पकया पकया एक ओर तो मल ू भत ू पियाए जैसे असन पसपद्ध , मनस चेतना स्थरीकरण ,स्वयं का स्वयं के साथ िररचय ......जैसी बहु त ही अवश्यक पियाए सरल पियाए ..को की हर साधनाओ का एक अवश्यक अधार हैं ..पजनको यपद िहले पकया जाए तो सफलता के पलए और पवलम्ब .नही होगा तो........ महा घोर रावा जैसी ईच्च कोपट की पियाए भी .और अि सभी के द्वारा आन को पकये जाने का ईत्साह हमें भी और अशा पदखाता हैं .. यह तो रोजी पनपखल कहती हैं की भले ही ४० लाइक की जगह पसफा एक ही अये िर ईसकी .....जो करने का मन बना रहा हो ....वह भी .भले ही बाद मे अये िर ईसकी पजसने की हो .......ईसने की हो तो भी सारा यह श्रम साथा क होगा .ऄन्त्यथा लाइक करने मात्र से कोइ को ठोस ईिलपब्ध तो पकसी को नही पमल सकती ...) एक ऄन्त्य समय की बात हैं मैं भाइ से पवचार पवमशा कर रहा था .मैंने ईनसे कहा की जब हम िरू ा पवधान जानते हैं तब सफलता क्यों नही जबपक पजतना संभव हो ईतना तो करते हैं ऄब कोइ महा योगी तो हम हैं नही ..और ऄगर होते तो पफर सब हम से बनता ही . भाइ हसने लगे बोले चलो भगवती बगलामुखी साधना का ईदहारण ले लो ..यह तो सदगुरुदे व जी ने कहा हैं पकऔर िपत्रका मे भी अया की .. जब तक मल ू ईत्स जागरण,,नापभ चि स्फोटी करण , ऄथवाा सत्र ू जागरण ,बगलामुखी सियाा , बगलामुखी साधक शरीरस्थ स्थािन ,भगवती बगलामुखी पनपित पसपद्ध , और भगवती बल्गामुखी िण ू ा पसपद्ध सफलता प्रयोग ,बगलामुखी यन्त्त्र का साधक से सीधासबंध ,यन्त्त्र का साधक के प्राण से संिका , अवश्यक पियाये मतलब मुद्राये , अह्वानी करण , हर पदन का कैसे जि समिा ण पकया जाये ,िर ईससे िहले ईस दे व वगा का पवसजा न
, ईनकी अधार शपि के दे व दे वी का िज ू न अदी ,ईस पदन की मंत्र जि या ऄन्त्य गलती का प्रायपित्त कैसे हो ,की शारीररक नन्त्ु ्ताये या मानपसक न्त्युन्त्ताये का दोष समापि करण हो ,और भैया ,भगवती बगलामुखी के भैरव् का स्थािन तो जानना ही िड़े गा पसफा शपि ईिासना से कैसे काम चलेगा भगवान पशव की भी तो अवश्यकता होगी ,पशव और शपि दोनों के सहयोग से ही तो ..... तभी तो पसपद्ध रूिी सज ृ न होगा ,एकांगी ..वस् मंत्र जि से ..तो ...सफलता पसपद्ध कहााँ ?? भाइ ये सुन कर तो लगता हैं की कभी हम मल ू मंत्र तक अ िायेगे या नही .और अि मुझे थोडा सा सच सच बताओ की अि लोगों ने यह सब पकया हैं क्या??? ..या पसफ़ा हम सब के पलए ही ये सब..अि बता दे ते हो .... .एक ऄिने ही भाइ का मैंने मंत्र तंत्र यन्त्त्र पवज्ञानं िपत्रका मे बगलामुखी साधना का ऄनुभव िढ़ा था ईनलोगों ने तो ये सब कुछनही पकया ..ईन्त्होंने तो ऄिने िुरे ऄनुभव पदए थे . भाइ हसने लगे बोले की ..ऄरे भैया ..मैंने कब अिसे झठ ू कहा .अिने सदगरु ु दे व जी द्वारा अयोपजत सात से लेकर दस पदवसीय पसफा एक ही साधना िर केंपद्रत ईन ऄद्भुत पशपवरों मे भाग नही पलया ..ऄन्त्यथा अि जानते की ये सारी पियाए सदगुरुदे व स्वयं करवाते थे और सदगुरुदे व पकतनी असानी से यह करवा दे ते थे ईसका कारण यह था की हर संध्या को वो जब ईस पदन के जि का समािन करवाते तो जो नही कर िाए हैं ईनकी ओर से वह ऄिनी शपि से िरू ा जि या वह सारी पियाए स्वयं ही कर दे ते थे .और .सदगुरुदे व जी के पलए .भला क्या ऄसंभव रहा . और ऄनु भै्या ईस समय के पशपवर मे क्या क्या होता था ईसकी तो िहले से ही हर घंटे की पडटेल की क्या क्या होना हैं या होगा ,साथ ही साथ पकस सामग्री िर ..यह िपत्रका मे िहले से अ जाती थी .सदगुरुदे व समय के बहु त ध्यान रखते थे .....ईन्त्हें क्या क्या पिया करवाना हैं वह सब िहले से ही वह पनपित रखते थे ..ऄन्त्य पियाए तो और भी हो सकती हैं िर जो ईन्त्होंने पलखा हैं वह तो सबसे िहले िरू ी होगीं ..अि ने तो खुद िढ़ी होगी वह सारी बाते .तो पफर ये क्यों ..कहते हो अि . हााँ भाइ िढ़ी तो थी ..िर सोचता था की ये शायद ऄन्त्य पियाये होगी मल ू साधना के ऄपतररि करवायो जा रही होंगी ..... मैं कहााँ जानता था की ये सारी ही सारी अवश्यक पियाये थी ..जो सदगुरुदे व करवा रहे थे .िर ईतना कहााँ समझ िा रहा था की जो काया अज आतने असानी से हो रहा हैं भपवष्य मे ईसके एक एक ,,िल गवांने की कीमत पकतनी न ईठानी िड़े गी . .सच कहाँ तो अज ..जब मैं सोचता हाँ की सदगुरुदे व जी सामने खड़े होकर ईस स्नेह से ....ईस प्यार से ..... दुलार से ..मुस्कुराते हु ये ..हमारे सदगुरुदे व हम सबको पकतना न समझते रहे ...सारा भार
ऄिने िे लेकर यह सब करवाते ........ऄब कहााँ हैं कोइ ओर ...सच मे हम सब ने ऄनमोल िण जो हमारे सामने से जा रहे थे ......नही समझे ईन िणों की महत्वता .. .ओह तभी ईन साधक ने .पसफा ईन्त्होंने क्या क्या पकया यह बताया ..वे सदगुरुदे व ने ऄिनी ओर से ऄन्त्य ऄन्त्य कौन सी पियाए करवाइ ... सभी को सामपू हक कर दी ..वह तो नही बताइ न ... और पमत्रो ...अि माने न माने ..सफलता का रास्ता बहु त असान हैं ऄगर कोइ हमारी ईस पवषय की ईलझने ..और ऄन्त्य अवश्यक बाते ..हमारे िंछ ू ने िर नही ........बपल्क स्वयं ही अगे अकर बता ये तब भला क्या ये भी सदगरु ु दे व की ऄनत पिया का एक कृिा कटाि पिया नही होगी ..नही तो अज कौन हैं ...और जो सफल हैं साधनात्मक रूि से ईसे न तो हमारे जय कार की जरुरत हैं न ही हमारे अिके िैसे की ....न हमारे आसी प्रमाण ित्र की ... पमत्रो बहु त कम हैं जो अज सफल हो कर ....... आस ज्ञान को सही रूि मे सामने लाने का प्रयत्न कर रहे हैं . (लोग भल ू गए की ऄगर सदगुरुदे व जी ने भी आतनी ईदारता न पदखाइ होती तो क्या वे भी अज सफल हो िाते ...??..पकसकी सामथ्या होती की .....सदगुरुदे व की िरीिा िर खरा ईतर िाता ..िर लोग जो सफल हो गए ...ईन्त्होंने सदगुरुदे व की ईस करूणा और स्नेह और ईस ऄद्भुत ईदारता ...को भी शायद कहीं भुला .........) तो अगे अने वाले पसफा कुछ ओर भाग मे ..मैं अिके सामने यह कहना और बताना चाहाँगा .की ..... िमशः . चपलए थोडा सा बता दंू..की क्या महा ऋपष पवस्वापमत्र का अशीवाा द या ईनकी ऄनुकूलता िाये पबना ऄप्सरा यपिणी साधना मे सफलता ....??? कल आसी बात िर और भी ऄन्त्य िर चचाा करें गे . और यह पसफा आसपलए की अि और हम आस सेमीनार के महत्त्व को समझ सके ...आस ऄवसर को न गवाए .क्योंपक .भले ही अि मे री िोस्ट को एक प्रचार सा मान ले .िर मैं तो अिके साथ .अिकी भावनाओ के साथ अिकी मनपस्थपत के साथ खड़ा हाँ .और जहााँ ईपचत समझता हाँ वहां ऄिनी बात रखते अया हाँ ... जाता हाँ ..की शायद अि मे से कोइ एक के पलए मे रे शब्द कुछ सहायता कर दें .. .
और वह आनके कारण यपद आस मे भाग ले कर ..बाद मे स्वयं साधना कर सफल होता हैं तो ईसकी पसपद्ध ..सफलता ईसका ईत्साह ही मे रे आस श्रम का िाररश्रपमक हैं और क्या ...
UTILITY OF YAKSHINI SADHNA…… (
...)
लिगत पोस्ट मे हमने ऄप्सरा साधनाओ के बारे मे कु छ बातों /तथ्यों पर लिचार लिमशा दकया . जो हम मे से सभी जानते ही हैं ,ईनको एक जगह लिखने का यही ऄथा था की एक बार दर्र से ईन साधनाओ के बारे मे हम ऄपना मानस धनात्मक बनाए .. आसी क्रम मे .यलिणी , दकन्नरी और िश्यंकरी िगा की साधनाए सामने अइ . शायद एक प्रश्न ईठता हैंदक जब सदगुरुदेि जी ने सारी बाते सामने रखी तो दर्र ऄब यह सेमीनार का ऄथा क्या ..??? आस प्रश्न के एक भाग के ईत्तर पर हम सभी लिचार कर ही चुके हैं की ...लबना गोपनीय तथ्य जाने ..अिश्यक दक्रयाए समझे ...आन साधनाओ मे सर्िता पाना??? ..एक मृग मरीलचका ही हैं ....एक सामान्य साधक के लिए संभि सा नही हैं ....यह ठीक ऐसे की लबना ऄस्त्र के युद्ध िड़ना ..और जीत जाना ..कहालनयो मे तो शायद संभि हो पर साधना जगत मे ..... पर आसके साथ एक दूसरा पहिु भी हैं .कु छ िगा की साधनाए..सदगुरुदेि जी ने के बि ईल्िेख ही दकया जैसे ऄष्ट यलिणी साधना ...लजसमे एक साधक जो ईज्जैन और कामाख्या मे जा कर .....ईन्होंने कै से की ..पर ईन साधना का के बि ईल्िेख ..लजन भी भाइ बलहनों ने िह साधना पेकेट्स मगिाया ईनमे से कु छ को ही िह साधना और ईसकी लिलध भेजी गयी .पर ईस दुिाभ साधना का लिधान ऄब ... ठीक आसी तरह एक साथ ऄनेको ऄप्सरा एक साथ लसद्ध करने का लिधान अप मे से लजन्होंने सदगुरुदेि रलचत सालहत्य पढ़ा होगा तो जानते होगे की ब्रम्पह ऊलष लिस्िालमत्र द्वारा रलचत िह ऄद्भुत लिधान लजसके माध्यम से एक नही बलल्क ऄनेको ऄप्सराये एक साथ एक ही साधना मे लसद्ध की जा सकती हैं ऄब कहााँ ईपिब्ध हैं ..???क्योंदक ईस लिशेष साधना मे यौिन भ्ंगा के रस मे धूिी हुयी धोती लजसे साधना काि मे पहना जाना ऄलनिाया
हैं, और श्रगाटीका नाम की जड़ी बूटी से भरा हुअ असन और ऄन्य कु छ ओर जड़ी बुरटया ....ऄब कहााँ ईपिब्ध ..?? ठीक आसी तरह लतिोत्त्मा ऄप्सरा साधना लजसमे एक दुिभ ा जड़ी .चंद्रप्रभा ....लजसके पास होती हैं ....ईनके बारे मे सदगुरुदेि लिखते हैं की ऄप्सरा ही नही बलल्क समस्त देि िगा की लस्त्रया ऐसे साधक के पास अने के लिए ईताििी हो जाती हैं .ऄब कहााँ ... ?? आसका मतिब सच मुच आन साधनाओ का कोइ लिशेष ऄथा होगा ही .क्योंदक साधना िगा की ये साधनाए अपको भौलतक दृष्टी से तो पूणाता देने मे समथा हैं .हर दृष्टी से भी ..... जो दकसी ऄन्य साधना के माध्यम से भी संभि नही .और अध्यालत्मक क्या ईचाइ दे सकती हैं .शायद हमने कभी जानने की कोलशश ही नही की .... अज पूरा लिश्व आस बात के लिए पागि सा हैं की की तरह बढती अयु का प्रभाि शरीर या चेहरे पर रोका जा सके .पर तंत्र अचायों ने आन साधनाओ का लनमााण करते समय जो भी भाि ईनके मानस मे थे ईनमे से एक लसर्ा आसी लिए दकया .की यह भी संभि हो सके . अप मेसे लनिय ही ऄनेको ने ईस ऄप्सरा साधना के बारे मे पढ़ा ही होगा लजसमे पहिे ददन एक कौर बादाम का हििा , दूसरे ददन दो तीसरे ददन तीन आस तरह खाने का लिधान हैं और ईन ऄनेको साधको के लििरण भी ..... लजन्होंने यह साधना की और सर्िता पाते ही रातो रात ऄपने जीिन और अयु मे..चेहरे मे ... यह ऄसर देखा . लमत्रो ,यलिणी साधना और ऄप्सरा साधना मे कु छ बातों मे र्का हैं .जैसा की सदगुरुदेि जी कहते हैं की ऄप्सरा साधना कइ कइ बार करना पड़ जाती हैं या सकती हैं ...क्योंदक ईन्हें ऄपने पर गिा होता हैं और िह बहुत यौिन गर्मिता होती हैं िही ाँ यलिणी साधना तो बहुत असानी से लसद्ध हो जाती हैं या हो सकती हैं क्योंदक ये स्ियं मानि मात्र की सहायता करने के लिए व्यग्र होती हैं . पर हम आनकी साधना करे ही क्यों ?? मुझे तो ईच्च तंत्र साधनाओ मेरूलच हैं ... सौदया साधनाओ मे कोइ रूलच नही हैं,तो क्यों मैं आसके बारे मे जानू ???
..अप की बात मान िी ..की अपको और हमको ईच्च तंत्र साधनाओ मे रूलच हैं ..और यह सोंदया साधनाओ खासकर यलिणी साधना ..मे कोइ रूलच नही .....पर क्या हम यह बात जानते हैं की .......यलिणी साधना के ऄनेको पहिुओ मे से एक यह भी हैं की मुख्यतः ६४ यलिणी हैं और ददव्य लिद्याएं और लिज्ञान भी ६४ ही हैं मतिब हर ददव्य लिद्या से एक यलिणी का संबंध हैं .मतिब आसका यह हुअ की कोइ साधक दकसी एक या ऄन्य तंत्रलिधान को सीखना चाहे तो यह ईनके लिए ये ऄत्यंत मददगार हो सकती हैं .क्योंदक यह दकसी ददव्य लिद्या की ऄलधस्ठाथी होती हैं तो ईस लिद्या या लिज्ञानं की सारे गोपनीयता और क्या क्या गोपनीय सूत्र हैं ईस लिज्ञान के ....और कहााँ कहााँ तक ईस लिज्ञान के रहस्यों का लिस्तार हैं ..कहााँ कहााँ ईसके लनष्णात साधक हैं , और कै से ईनसे सपका दकया जा सकता हैं यह सब तो आन साधनाओ के माध्यम से ही संभि हैं . अज के युग मे भी हाि तक हमारे सामने रहे कु छ ऄलत ईच्च कोरट के लसद्ध तांलत्रक लजनका ईल्िेख मैंने अररर् भाइ के साथ िािी श्रंखिा मे और ब्िॉग के कु छ िेखो मे दकया .ईन सभी ने ऄपनी कृ लतयों मे आस बात का ईल्िेख दकया हैं की दकस तरह यलिणी ने ईनके मागा को तंत्र सीखने मे दकतना योगदान दकया .आसका मतिब एक साधक की यात्रा तंत्र सीखने की कइ कइ गुणा तीव्र हो सकती हैं और ईसकी ईन्नलत भी . पर लमत्रो चाहे साधना दकतनी भी न सरि हो .पर जब तक ईसके रहस्य नही मािूम िही सबसे करठन .. (हािादक की ये बात भी सही हैं की रहस्य जानते ही कलतपय यह भी कह सकते हैं की ये हैं ..क्योंदक जैसे ही रहस्य का ऄनािृलतकरण हुअ और हमारा रूलच भी ..जबदक ऄगर िह नही जानते तो ......तो जो भी आस मागा के सच्चे पलथक हैं िह जानते हैं की .... शीश ईतारे भू धरे ..गुरू लमिे तो भी सस्ता जान .. गुरू शब्द का क्या ऄथा हैं ......ज्ञान ही न .....सदगुरुदेि और ज्ञान मे भेद कै सा .. ऄनेको साधनाए हैं ऐसी हैं की जैसे ही हमने ईस साधना के बारे मे पढ़ा तो तत्काि व्यग्र हो ईठे की करना ही हैं यह साधना .....पर जब साधना करने बैठे तो ऄत्यालधक काम भाि मन मे प्रबि हो गया .समझ मे ही नही अ पाता की ऐसा क्यों हो रहा हैं और आसके लनराकरण के लिए क्या करें ..???
और एक ओर साधना काि मे बाधा अती हैं दक जब दकसी साधक को आनका प्रत्यिी करण हुअ भी तो िह आतने ज्यदा काम भाि मे अ जाते हैं की ..ऄलतम मािा भी सम्पपन्न नही कर पाए . तो ऐसे कु छ लिधान सदगुरुदेि जी ने बताये हैंदक लजसके माध्यम से साधक आन सर्िता के दौरान .आस तरह की समस्या से बचा रहता हैं पर ऐसे ऄनेको लिधान हैं तो कौन सा लिधान जयादा ईलचत हैं .यह भी तो जानना हैं .ऄन्यथा सर्िता अ के भी .टा ..टा ..करके चिी गयी .और हम िही ाँ के िही ाँ रह गए .. दकन्ही दकन्ही साधक की प्राण उजाा बहुत तीव्र होती हैं .और ईनके द्वरा दकये गए मंत्र जप और साधना स्थान और कलतपय ददिस के करण ईन्हें प्रारं लभक सर्िता तो लमि जाती हैं पर पूणा सर्िता नही लमिती हैं तो (भिे ही अप कइ कइ बार आन साधनाओ को करते चिो .....तो क्या हैं िह ईपाय .की हमारी सर्िता मे कोइ िाधा ही नही रहे .यह भी तो हमें ज्ञात होना चलहये . तो दकसी दकसी साधना मे सर्िता के ईपरान्त कु छ लिशेष िाक्य ही बोिना पड़ते हैं ईसने मनो िांलछत िरदान पाने मे ...तो क्या हैं ऐसे ईपाय ... क्या पारद लिज्ञानं जैसे ऄलत ईच्च तंत्र मे भी आन यलिणी साधना का कोइ योगदान हैं ?? क्यों नही ऄगर हम सभी आस बात का ... जो की सदगुरुदेि ने हमें लसखाइ हैं की पारद तो ऄंलतम तंत्र हैं , तो भिा आस ऄंलतम तंत्र मे यलिणी का योग दान या आन साधना का योग दान नही होगा ?? एक बार सोचे ..अप सही सोच रहे हैं .महान तम रस लसद्ध अचाया नागाजुान ने १२ िषा तक िट यलिणी साधना समपन्न की तब कहीं जा कर िह आस साधना मे सर्ि हो पाए .ईन्हें क्यों .....आतना समय िगा ..... क्या थी ईनकी साधना लिलध यह एक ऄिग बात हैं .... पर ऄथा तो हैं की ईन्होंने क्यों की .......और अज भी ईनका नाम हम ऄत्यंत अदर से िेते हैं क्योंदक ईन्होंने आस िट यलिणी साधना के माध्यम से ऄद्भुत सर्िता पारद तंत्र जगत मे प्राप्त की .तो आसके पीछे िट यलिणी साधना का ही तो योग दान रहा .और न मािुम दकन दकन साधनाओ को आस िगा की ईन्होंने दकया होगा (और जो भी गोपनीय ऄद्भुत रस लिज्ञानं
.....पारद तंत्र लिज्ञानं के सूत्र ईन्हें िट यलिणी ने समझाए ..जो की कहीं भी ईल्िेलखत नही थे ..यह आस बात का प्रत्यि प्रमाण हैंदक आन साधनाओ को नकारा नही जा सकता हैं .).तो लजन्हें भी पारद तंत्र मे रूलच हैं और िह यलिणी साधना से दूर रहे हैं तो िह स्ियम ही जान सकते हैं ..की ....लबना आन साधनाओ की सर्िता के कै से संभि हैं और पारद तंत्र मे पूणा सर्िता???? ... तो लमत्रो ऄगिे कु छ ओर िेखो मे .....आन साधनाओ की ईपयोलगता और क्यों जरुरी हैं कु छ लिधान सीखना .अपके सामने अयेगे ..लनिय ही आस बात के लिए यह हैंदक हम सभी आन साधनाओ की ईपयोलगता समझे और जो एक ददिसीय सेमीनार होने जा रहा हैं ईसमे भाग िेकर आन साधनाओ के लजतने भी रहस्य संभि हैं िह जाने समझे और ऄपनी लजज्ञासाए भी शांत करें .और कै से आन साधनाओ मे सर्िता प्राप्त करें .ऄब यह ऄिसर हमारे सामने अ रहा हैं तो लमत्रो आसको चूकना नही हैं..क्योंदक आन साधनाओ पर अधाररत दर्र से कोइसेमीनार ... ऐसा ऄिसर अये ..सभि कम से कम अज तो नही हैं और न ही कोइ योजना की आन साधनाओ पर अधाररत ऐसा सेमीनार दर्र संभि हो . मेरा यह कताव्य हैं की मैं एक अपके भाइ/लमत्र /सहयोगी होने लजतना समझता हाँ ईसके अधार पर ऄपनी बात अपके सामने रखूं ..लजससे शायद कु छ प्रश्न की आस सेमीनार मे भाग िेना हैं या नही ..या क्या हो जायेगा आस एक ददन की अपस मे िाताािाप मे .....मुझे अपके सामने कु छ बातें रखना हैं .तादक अप लनणाय असानी से िे सके ... हम सभी आस बात की गंभीरता समझे की यह कोइ रोज रोज होने िािी सेमीनार आस् लिषय पर नही हैं ..हम सब आस ऄिसर का िाभ ईठाये .. ऄलत महत्िपूणा बात की ...मेरे ्ेलहयों .ऄच्छी तरह से ..आस बात को मन मे लबठा िे की यह लसर्ा एक सेमीनार हैं .मतिब एक गोष्ठी .......यहााँ कोइ ****साधना नही होने*** जा रही हैं , तो कोइ भी साधना सामग्री यहााँ िाने की अिश्यकता नही हैं . और ऐसा कु छ नही की बस अप जब िौटोगे तो एक सर्ि साधक ....न न आस बात को समझे ... सर्िता अपके प्रयास और सदगुरुदेि की अप पर अशीिााद पर लनभार हैं ..हम लसर्ा गोपनीय तथ्य /सूत्र /तत्रात्मक मंत्रात्मक लिधान /अिश्यक मुद्राये
जो सदगुरुदेि जी से और
ईनके सन्याशी लशष्य लशष्याओ से हमे प्राप्त हुये हैं अपके सामने रखने जा रहे हैं .
तो जो भी आस एक ददिसीय सेमीनार मे भाग िेगा लनिय ही िह ..सर्िता के और भी करीब ..होता जायेगा ..क्योंदक साधक तो हमेशा सीखने िािे का नाम हैं और जो भी सीखता जाता हैं जो भी आस िेत्र के ज्ञान को अत्मसात करता जाता हैं िह सदगुरुदेि को दकन्ही ऄथी मे और भी ऄपने ऄंदर समालहत करते जाता हैं क्योंदक सदगुरुदेि के लिए ही तो कहा गया हैं की . के बिम् ज्ञान मूर्मत ...तस्मै श्री सद्गुरुदेि नमः || कह कर ही ईनका पररचय ददया जा गया हैं . अप सभी जो आस सेमीनार मे भाग िेने की ऄनुमलत प्राप्त करें गे .. .....ईनका ह्रदय से स्िागत हैं.. क्योंदक आस एक ददिसीय सेमीनार मे भाग िेने के लिए पूिा ऄनुमलत ऄलनिाया
हैं
APSARA YAKSHIN SADHNA FROM ONE OF THE PRESPECTIVE ( .....)
लमत्रों , साधना जीिन का एक अिश्यक भाग हैं ,यूाँ कहाँ तो आतना जरुरी भाग है लजतना की हम स्िास िेते हैं . क्योंदक आसकी के माध्यम से हम जान सकते हैंदक हमारे जीिन का हेतु क्या हैं, हम क्यों अये हैं क्या हमारा यहााँ होना लसर्ा एक चांस की बात हैं या कु छ लिशेष तथ्य भी हैं और हम मे से सभी के जीिन के ना मािूम दकतने पि ....पहिु ऐसे हैं लजनसे हमें तो मतिब हैं पर दकसी दूसरे के लिए शायद महत्िहीन ..पर जीिन का ऄथा तो हैं .और ऄगर हम यह मानते हैं तो जीिन बस दकसी तरह काट िेने का नाम तो नही हैं . पर हम करें क्या ..जीिन की सच्चाइ ऐसी ही हैं .पर हमारे ऊलष ,तंत्र अचायों और मनलस्ियो ने अने िािी समस्याओ को बहुत पहिे समझ लिया था और ईनके लनराकरण की लिलधया भी हमारे सामने रखी हैं .और ईन्होंने यह तथ्य रखा की जीिन का कोइ ऄगर ऄथा हैं तो िह हैं पूणा अनद युक्त होकर जीिन जीना ...... न की रोते पीटते ...लघसट लघसट कर काटना .
सदगुरुदेि कहते हैं की सुख चालहए तो दुःख को भी स्िीकार करना ही पड़ेगा जीिन ऄनेक जगह से लद्व पिीय हैं अप के बि एक ही पि को स्िीकार नही कर सकते हैं . पर यदद अनद अपके जीिन मे अता हैं तो अनंद के बाद अनंद ही अ सकता हैं .ईसके बाद दुःख नही .पर हमारा पररचय तो सुख से नही बलल्क दुःख से ही हैं . हमने तो यह जाना ही नही की अनंद नाम का कोइ तत्ि भी हैं.ऄगर यह कहाँ की साधना मे अनंद हैं तो यह सही हो सकता हैं पर अनंद एक बहुत करठन सरि चीज हैं लजसे समझ पाना शायद सबसे करठन हैं . आसलिए सदगुरुदेि कहते हैं की कु छ लिशेष साधनाए लजन्हें हम ऄप्सरा यलिणी साधना के नाम से जानते हैं आसी अनंद तथ्य का ऄनुभि करने के लिए लनर्ममत हुयी हैं .के बि यही ही अपको जीिन को कै से अनदमय दकया जा सकता हैं ईसका पररचय दे सकती हैं .चाहे या न चाहे हमने ऄपने देिी देिताओ को कु छ लिशेषताओ मे बाट ददया हैं .या यूाँ कहाँ की तंत्र अचाया कहते हैंदक हमने कभी जानने की कोलशश ही नही की लजन देि या देलियों की या ऄन्य की ईपासना करते हैं िह कु छ ऄन्य भी दे सकती हैं ......... हमने देि िगा को भी बााँट ददया हैं .की आनका िश आतना ही काम हैं ईदाहरण के लिए मैं ऄगर ये कहाँ की भोग प्रालप्त के लिए बगिामुखी साधना सिाश्रेष्ठ हैं तो भिा कौन मानेगा .हमने तो यही पढ़ा या सुना हैं की आस साधना मे तो बहुत करठन लनयम हैं और और और ... पर सत्य के ऄनेको पहिु होते हैं सत्य लसर्ा ईतना ही नही लजतना हम जानते हैंबलल्क ऄनेको अयाम लिए हो सकता हैं.ठीक आसी तरह हमने सदगुरुदेि तत्िको लसर्ा पूजा /कु छ मािा मंत्र जप और जय सदगुरुदेि ..पर ऐसा नही हैं .. हमने दस महालिद्या को ही सब कु छ या ऄंत सा मान लिया हैं पर लमत्रो ऐसा नही हैं, सदगुरुदेि ने तो जब ईन्होंने कृ त्या साधना दी तो ईस िषा के महालिशेषांक मे ईन्होने कहा की यह साधना तो जगदम्पबा साधना से भी श्रेष्ठ हैं ..दस महालिद्याओ से भी ईचे स्तर की हैं .....तो लनिय ही कु छ बात होगी . ठीक आसी तरह ईन्होंने सौदया प्रधान साधनाए लजन्हें हम ऄप्सरा यलिणी ,दकन्नरी ,िन्श्यकरी अदद ऄनेको िगों की साधना सामने रखी .अप ही सोलचए सदगुरुदेि जी ने तो स्पस्ट कहा की कोइ साधारण गुरू तो ऄप्सरा या यलिणी की बात भी नही करे गा क्योंदक ईसके लशष्य या
भगत क्या सोचेगे .पर हमारे सदगुरुदेि ने हमें जीिन जीना लसखाया .की दकस तरह अनंद्युक्त हम हर पि रहे और लिपरीत पररलस्थतयों से भागना नही बलल्क ईन्हें ऄपनी शतों पर ऄनुकूि बनाते हुये पूणा ईल्िास मयता अनद मयता के साथ जीिन जीना हैं. आन साधनाओ को काम भाि प्रिधान की साधना समझने की भूि नही करना चालहए ..िास्ति मे िासना और काम मे ऄंतर समझना होगा .सदगुरुदेि जी ने बहुत बहुत बार हमें यह समझाया पर यह आतना कहा असान हैं ... दकसी शब्द को समझ िेना और सही ऄथो मे ईसका भािाथा ऄपने जीिन मे ईतार िेना लबिकु ि दो ऄिग बातें हैं . हम दकतना भी कहें की हम समझते हैं पर .....िास्तलिकता सत्य से कोसों दूर हैं. ये साधनाए जीिन का हेतु हैं .सदगुरुदेि जी ने स्ियं ऄपना ईदहारण सामने रखा एक के सेट्स मे िह कहते हैं की ईन्होंने भी पहिे यह साधना सीखने को मना कर ददया की िह गृहस्थ हैं और यह तो मयाादा के ऄनुकूि नही तब ईनके गुरूजी ने कहा की मैं देख रहा हाँ की अगे तुम्पहेदकतनी लिकट पररलस्थयों का सामना करना पड़ेगा .ईस समय यह ऄलनिाया होगी ...ईन्होंने अगे कहा की नारा यण तुम स्िणा हो पर ईसमे सुगध ं भरने का काम यह साधना करे गी .. पर सदगुरुदेि अगे कहते हैंदक आस साधना को करने के बाद जैसी ही िह ऄप्सरा प्रगट हुयी ..सदगुरुदेि ने बहुत ही मन को हरने िािे स्िर मे िह बात कहीं हैं अप स्ियं सुने तो कहीं जायदा अनन्द अएगा .. जब हमारे सदगुरुदेि ने हमारे लिए आन साधनाओ की ऄलनिायाता बताइ हैं तो भिा ऄब कोइ और संदह े ...?? पर ऐसा कहााँ ?? सन्देह तो हमारे पीढ़ी के खून मे हैं,बस कु छ लगने चुने हैं जो आससे मुक्त हैं बाकी हम सभी को लिश्वास हो या न हो पर संदह े जरुर हो जायेगा . सदगुरुदेि कहते हैं की यह तुम्पहारा दोष नही क्योंदक कइ कइ पीदढ़यों की गुिामी के कारण से यह हमारे खून मे ही समां गया हैं .
सदगुरुदेि जी ने ऄनेको ईदहारण सामने रखे और समझाया और यह भी कहा की यह साधना गृहस्थ जीिन मे दकसी भी तरह से बाधक नही हैं .यह दकसी भी तरह से अपकी पत्नी के कोइ भी ऄलधकार को लछनती नही हैं , यह लसर्ा अपके लिए अपकी मलहिा लमत्र हैं .बस प्रेयसी के रूप मे हैं . यह सही हैं की यह आस रूप मे कहीं जयादा असानी से लसद्ध हो जालत हैं पर आन्हें बलहन या मााँ के रूप मे भी लसद्ध दकया जा सकता हैं और सालधकाओ के लिए यह ईनकी परम लमत्र के रूप मे अती हैं. और आनके अगमन से अपके जीिन का तनाब और परे शानी ईदासी तकिीर् ऄिसाद सब समाप्त सा हो जाता हैं क्योंदक यह जीिन मे ्ेह और प्रेम क्या होता हैं समझाती हैं शब्दों से नही बलल्क ऄपने लनश्छि ्ेह से ... और जीिन का अधार हैं प्रेम ..... जीिन का एक ऄलमट लहस्सा हैं.. ्ेह .......जो की लमत्र से . पलत से पत्नी से, भाइ से .... लपता से.... बेटी से ...बेटे से ....मााँ से .... दकसी से भी हो सकता हैं जहााँ लनश्छिता हैं.... िहां हैं यह ्ेह ..िही ाँ हैं आश्वर और...... आसी लनश्छिता मे ही सदगुरुदेि रहते हैं . ऄब हमारा तो लनश्छिता से कोइ सबंध हैं नही तब ?? ..यह साधनाए ही हमारा पररचय कराती हैं की ्ेह तत्ि हैं क्या ??.यह लनश्छिता हैं क्या ?? और लमत्रो काम भाि की अिोचना भी ईलचत नही क्योंदक यह भी एक अधार हैं .......जीिन मे जो भी प्रसन्नता ईमंगता .अिाह्दद्ता और ईत्साह हैं िह काम भाि के कारण ही हैं ..ऄगर काम भाि नष्ट कर दे तो दर्र शेष बचेगा क्या .. हााँ .......पर हम कै से िासना और ईच्च ्ेह मे ऄंतर समझ पाए ..आसी के लिए तो सदगुरुदेि जी ने दकतनी न अिोचना सहन करते हुये यह परम गोपनीय साधनाए हम सब के सामने रखी . और हम सभी आन साधनाओ के प्रलत अकर्मषत भी हैं ......और हम मे से दकतनो ने बार बार की भी ......पर ऐसा क्यों हममे से अलधकांश के हाथ ऄसर्िता से ही टकराए.
अलखर गिती कहा हुयी .?? क्या कारण रहे ही हम ऄसर्ि िगातार होते रहे .?? हमने सारी लनयम माने दर्र भी हमारे हाथ खािी..... ऐसा क्यों हैं .??? सदगुरुदेि नालभ दशाना ऄप्सरा के सेट्स मे कहते हैं की जब गुरू को ज्ञान नही होता और अप जाओ की मुझे सर्िता नही लमि रही हैं तो िह कोइ न कोइ कारण देगा की....... ददये की ......िौं ठीक नही थी या तुम ऐसे बैठे थे .िेसे जैसे दकसी भी डॉक्टर के पास जाओ तोकोइ न कोइ लबमारी लनकाि ही देगा, यह ठीक नही हैं .. पर हम सभी ने कम से कम एक बार यह साधना की ही होगी .... पर सफ्िता ..??? ऐसा क्यों.??? यूाँ तो कारण लगनने पर अ जाए तो शायद लिस्ट बढती ही जायेगी पर .ऄब क्या करें या तो ऄसर्िता को ही सब कु छ मान कर बैठे रहे ..या दर्र.हम सभी दकतने ईत्साह से साधना करने बैठते हैं पर मन के दकसी न दकसी कोने मे यह रहता हैं की शायद हमें कु छ सेक्रेट नही मािूम और बस यही से ऄसर्िता की शुरुअत हो गयी . पर यह सोचना गित भी तो नही . एक बार मैंने भाइ से कहा की दकसी साधना लिशेष के बारे मे .... साधना तो सरि हैं पर दकसी ने करी हैं क्या.भाइ बोिे मैंने की हैं .मैंने कहा कै से ,जबदक यह तो मात्र एक या दो मािा मंत्रा जप की साधना हैं . ईन्होंने मुझसे कहा की भैया ठीक यही बात हमारे मन मे भी अइ जब सदगुरुदेि जी ने लशलिर मे कहा की आस साधना की बस १ मािा जप करना हैं .और अप असानी से दो घंटे मे कर िोगे. हम सभी अिय मे पड़ गए की आतना सा मंत्र और दो घंटे ..जबदक मात्र दस लमलनट मे ही जप हो जायेगा . पर कोइ ईनसे पूंछने नही गया .मैं गया और कहा की सदगुरुदेि ऐसा क्यों ..आतना समय क्यों.???
सदगुरुदेि ने बहुत ही प्रसन्नता से कहा की मैंने तो बात बस रखी की कोइ तो अ के पुन्छेगा तो ईसके लिधान और ऄन्य तथ्य मैं ईसे व्यलक्तगत रूप से बताउंगा .पर कोइ अया ही नही . और भाइ कहते हैं की ऄनु भैया सच मे दो /तीन घंटे का लिधान हैं भिे ही मािा एक ही करना थी .कइ अिश्यक लिधान और मुद्राये और तंत्रात्मक तथ्य सदगुरुदेि जी ने ईन्हें ईस साधना के स्ियं ही स्पस्ट दकये . तो क्या पलत्रका मे लिधान पुरे नही होते थे ??? भाइ बोिते हैं दक नही ऐसा नही हैं पर स्ियं सदगुरुदेि जी ने कहा की कु छ ऄलत महत्िपूणा तथ्यों को लसर्ा आसलिए नही सामने रखा जा सकता की अपने पलत्रका िी हैं या लशलिर मे अये हैं ....बलल्क अपकी स्ियं की ......दकतना सीखने की आच्छा हैं और क्या अप सच मे ईस साधना को लसद्ध करें के लिए बेताब हैं आतना जनून हैं तब ..ऄगर हैं तो ......अप ईन लिधानों को जानेगे ही .. लमत्रो , परमहंस स्िामी लनग्मानद जी महाराज को स्िपन मे एक बीज् मंत्र लमिा था .पर लिलध नही .......और ईन्होंने ईसकी लिलध जान ने के लिए सारा भारत पैदि छान मरा था ,कभी अप ईनके बारे पढ़े दकक्या क्या नही सहा ईन्होंने .........तो अखों मे असूं अ जायेंगे की यह होती हैं तड़प ..यह होता हैं एक साधक ......दकमुझे सीखना हैं हीं हर हाि मे .. क्योंदक साधक नाम ही हैं जो ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ईसे अत्मसात करने के लिए सदैि तैयार हो .. क्योंदक ऄगर घर बैठे बैठे तो बहुत कु छ संभि हो जाए पर....... सब कु छ.... तो नही संभि हैं. एक भाइ की मेि अइ की ईन्होंने लपछिे सात साि मे ५०० बार िगभग यह साधना की पर सर्िता नही लमिी .ऄब मैं यह नही कह सकता हैं िे सही कह रहे हैं या नही .आस पर मैं कु छ नही कह सकता हाँ पर अप सभी जानते हो की ऄनेको र्ोरम और ग्रुप मे यही बात होती हीं की काश कोइ तो आन साधनाओ के सबंलधत दुिाभ सूत्र .दक्रयाए समझा दे .मुद्राये तःन्त्रत्मक और मंत्रात्मक लिधान समझ दे.पर कहााँ .. पर एक बात ईठती हैं की अलखर हमें आन लिधानों को लसख ने की अिश्यकता हैं ही क्यों.?
आसका ईत्तर यही की एक सर्िता जैसी ही साधना िेत्र मे लमिती हैं .... व्यलक्त की ईन्नलत कइ कइ गुणा बढ़ जालत हैं क्योंदक िह ऄब सर्िता पाना हैं यह जानता हैं िह एक सामान्य साधक से सर्ि साधक की श्रेणी मे अ जाता हैं . और आन साधनाओ के िाभ तो अप सभी जानते हैं ही . पर यह भी बहुत बहुत कठोर तथ्य हैं की जब तक पुरे लबस्िास और सभी तथ्यों के साथ साधना न की जाये तो सर्िता कै से लमिेगी .?? ईऄदहरण भिे हो िोग दे दे की ......ईिटा नाम जप कर भी महा ऊलष िालल्कमी सर्ि हो ऄगये पर िह युग और अज का युग बहुत ऄतर हैं . ऐसा ऄब बहुत मुलश्कि हैं . पर क्यों मुलश्कि हैं.?? आस बात को तो हम सभी समझते हैं .की अज क्या पररलस्थलतयााँ हैं .पर जब सदगुरुदेि जी ने कहा की कह दो ब्रम्पहांड से हमें भलक्त नही बलल्क साधना चलहये . तो कोइ तो ऄथा रहा होगा ,,ईनका यह तो ऄथा नही रहा होगा की हम् साधना करे और बस जीिन भर ऄसर्ि बने रहे यह तो संभि ही नही एक स्थान पर सदगुरुदेि कहते हैं की हम एक बार ऄसर्ि हो तो दुबारा ईसी साधना को करें .दर्र भी ऄसर्ि हो तो पुनः करें पर तीसरी बार मेरा कोइ सन्याशी लशष्य ऄसर्ि हुअ हो यह तो हुअ ही नही और तुम िोग बार बार करके भी ऄसर्ि होते हो तो मैं भी सोच मे पड जाता हाँ की शायद मुझ पर या साधना पर तुम्पहारा भरोषा ही नही होगा . लमत्रो हम सभी हम या जयादा आस बात को तोमानते हैं ही की लजतना सदगुरुदेि तत्ि का स्थान हमारे जीिन मे होना चालहए िह कहीं नही हैं साथ ही साथ हम सब मे दकसी भी साधना कोअत्मसात करने का भाि लजतना होना चालहए िह भी कहीं कु छ तो कम हैं . साथ ही साथ ईस साधना से सबंलधत सारी तथ्य सारी बात जान िेना चालहए तभी ईस साधना को हम पुरे लबस्िास से कर पायेंगे ऄन्यथा कहीं न कहीं मन मे िगा रहेगा की शायद कु छ ओर तथ्य हैं आसलिए हम सर्ि नही हो पाए या पा रहे हैं जब .हम सारे तथ्य जान जाते हैं तो हम लनबित हो जाते हैं की ऄब सर्िता और मुझमे लसर्ा प्रयास की दुरी है ,ऄब कोइ भी बहाना नही क्योंदक एक ओर सद्गुरु देि साथ हैं और ईस
साधना से बंलधत सारे तथ्य ,सारी मुद्राये , अिश्यक दक्रयाए
तो ऄब सर्िता कै से दूर रह
सकती हीं बस ऄब मुझे झपट्टा मार कर साधना मे सर्िता हालसि कर ही िेना हैं . पर क्या आतने मात्र से हो जायेगा ??? नही लमत्रो आसके साथ कु छ लिशेष सामग्री कु छ लिशेष यंत्रो का होना अिश्यक हैं ,लजनके माध्यम से ही सर्िता संभि हो पातीहैं .. क्या हैं िह लिशेष सामग्री?? ...क्या हैं िह लिशेष यन्त्र .जो की अपको सर्िता के द्वार पर िा कर खड़ा ही कर दें ....यह बहुमूल्य साधनात्मक सामग्री हैं क्या .....लजनको बारे मे सदगुरुदेि ने कइ कइ बार बताया .... िह जानकारी अपके सामने ..अने ही िािी हैं ... और अने िािी १२ ऄगस्त के एक ददिसीय सेमीनार मे ऐसी ही ऄनेको बातों को हम सभी लसख्नेगे .....साथ मे समझेंगे और ईन सामग्री को स्ियं प्राप्त करें गे ...... अररर् भाइ ददन रात पररश्रम मे िगे हैं दक .ये दुिाभ सामग्री और दुिाभ यन्त्र ..कै से अपको ईपिब्ध करा सके ......(क्योंदक सदगुरुदेि जी ने स्ियं कहा और देव्योपलनषद से ईदहारण देते हुये समझाया की लबना प्रामालणक सामग्री के साधना मे सर्िता संभि ही नही हैं ....) अररर् भाइ की पूरी कोलशश हैं .........लजससे की हम सभी और भाइ बलहन सर्िता के पास पहुाँच सके . और बस दर्र सर्िता और हमारे मध्य लसर्ा प्रयास की अिश्यकता होगी .और सदगुरुदेि कीकृ पा कटाि से हमसब भी सर्ि होंगे ही .... तो जो भी आस ऄिसर का िाभ ईठाना चाहे ...िह YAKSHINI,APSARA SADHNA KI KUNJI - YAKSHINI APSARA SAAYUJYA SHASHTH MANDAL
सौंदयाितां सा ईध्िोिातां पूणा तंत्रमेि लसन्धुं | ददव्योिातां सा साहचया प्राप्तुम ||
यलिणी ऄप्सरा िै सहचरी सदां सा | रुद्रोमंडि लस्थरां च भिलत िश्य िा || तंत्र जगत की ऄद्भुतता का िणान कर पाना ऄसंभि ही है....तभी तो व्यंजना पद्धलत के कू ट भाष में रलचत “सौंदया कल्पिता बसधु” में ये कहा गया है की तंत्र के सागर में सौंदया और ईध्िारेतस गलत की प्रालप्त सहज संभि नहीं हो पाती है,ऄलपतु ईसके लिए तंत्र रुपी सागर का मंथन करना ऄलनिाया होता है,जो की आतना सहज कम से कम अज तो नहीं है,क्यूंदक चररत्र की शुद्धता और व्यलक्तत्ि की सुदढृ ता तंत्र सागर की गहराइ को मापने का ऄलनिाया गुण होना चालहए साधक में | और लजस साधक में ये गुण होता है िो सहज ही तीव्रता और सौंदया दोनों को ही हस्तगत कर िेता है | और लजसने सौंदया और तीव्रता को ऄपने िश में कर लिया,ईसे ददव्यत्ि तो सहज ही प्राप्त हो जाता है | और आस हेतु यलिणी और ऄप्सरा की साधना ही सिोपरर होती हैं, निीन तथ्यों और गूढ़ रहस्यों से साधक को सतत पररलचत करिाना, ईसका मागादशान करना और सच्चे लमत्र की भााँलत ईसे साहचया और ऄपनी सिाह प्रदान करना ही आनका गुण होता है | शास्त्रों में लिलधयों की कमी नहीं है , मंत्र महाणाि,मंत्र सागरी,मंत्र बसधु, सौन्दयााणि पद्धलत, तंत्र रत्नाकर,भूत डामर तंत्र अदद ग्रन्थ आन साधनाओं से भरे हुए हैं | दकन्तु आनका सहयोग िेने पर भी आन सौंदया कृ लतयों का साहचया क्यूाँ नहीं प्राप्त हो पाता है ? क्या लिधान गित है ? क्या मंत्र में त्रुरट है ? क्या पद्धलत ऄधूरी है ? नहीं .... ऐसा कदालप नहीं है | ऄलपतु हम शायद ये भूि गए हैं की दकसी भी साधना की कु छ गुप्त कुं लजयााँ होती हैं,लजनका ऄनुसरण और प्रयोग करते हुए यदद प्रामालणक लिधान दकया जाए तो सर्िता का प्रलतशत कइ गुना बढ़ जाता है | हमारी कार्ममक गलत के अधार पर भिे ही सर्िता लमिने में लििम्पब हो,दकन्तु पररश्रम करने पर सर्िता ना लमिे ऐसा संभि नहीं है | साधना के लिए लिलभन्न सामलग्रयों की ऄलनिायाता होती ही है, काि, स्थान,िातािरण को ऄनुकूि करते हुए जो अपके लचत्त को िगातार साधनोंमुख करते रहें | और आन सामलग्रयों की ऄलनिायाता को अप नकार भी नहीं सकते | प्रत्येक साधना में दकसी खास द्रव्य या यन्त्र की ऄलनिायाता तो बनी ही रहती है,लजसके ऄभाि में साधना से पररणाम की प्रालप्त दुष्कर ही होती है | साधना जगत में पररणाम प्रालप्त के लिए मंत्र,यन्त्र और तंत्र आन तीनों का ही सहयोग
ऄलनिाया होता है,तदुपरांत ही पररणाम संभि हो पाता है | और ऐसा मात्र महालिद्या साधनाओं में ही नहीं होता है ऄलपतु प्रत्येक साधना के लिए ऐसा ही लिधान है | जबिपुर में १२ ऄगस्त को जो यलिणी ऄप्सरा साधना पर हम गोष्ठी अयोलजत कर रहे हैं, ईसमे आन साधनाओं की अधारभूत सामग्री के रूप में लजस सामग्री को हम गोष्ठी में भाग िेने िािे भाइ-बहनों को प्रदान करने िािे हैं िो है,यत्रिर्ी अप्सरा सायज् ु य षष्ठ मंडल | और आस मंडि की लिशेषता क्या है,आसका िणान मैं नीचे की पंलक्तयों में कर रहा हाँ | हमने पूणा मनोयोग से मात्र गोष्ठी में सहभागी होने िािे भाआयों और बहनों को ही आसे देने का लनिय दकया है,तादक ईपरोक्त साधनाओं से सम्पबंलधत सिाालधक महत्िपूणा सामग्री सम्पपूणा जीिन के लिए ईनके पास हो और िे ईसका प्रयोग कर पूणा िाभ ईठा सके | यन्त्र के प्रयोग का पूणा लिधान गोष्ठी में ही बताया जायेगा | लजन भी भाआयों और बहनों ने सदगुरुदेि के सालनध्य में साधना लशलिरों में भाग लिया है िे ये तथ्य भिी भांलत जानते हैं की यंत्रों और सामलग्रयों की ऄलनिायाता का क्या महत्त्ि होता है | यदद अपको महालिद्या साधना करनी हो तब भी ईस हेतु अपको तीन मंडिों का लनमााण करना ही होता है, तभी ईनका शरीर स्थापन,अत्म स्थापन,सायुज्यीकरण, अकषाण,सर्िता प्रालप्त और पूणा साहचया प्राप्त दकया जा सकता है | यदद मााँ िल्गामुखी का कोइ साधक हो और ईसने मूि ईत्स जागरण और ऄपने ऄथिाासत्र ू का पूणा जागरण और लनमािीकरण ना दकया हो तो ईसे आस महालिद्या का पूणा साहचया नहीं लमि पाता है हााँ ईसके कायों को ऄनुकूिता लमि जाये ये एक ऄिग बात है | क्यूंदक साधना का प्रभाि तो अपको प्राप्त होता ही है....ऐसा हो ही नहीं सकता है की हम कमा करें और ईसका ऄल्प पररणाम भी प्राप्त ना हो | और आस हेतु यदद हम उपर लिखी हुयी श्लोक की पंलक्तयों के भािाथा को समझे तो ईसमे स्पष्ट लिखा हुअ है की यलिणी ऄप्सरा िै सहचरी सदां सा | रुद्रोमंडि लस्थरां च भिलत िश्य िा || यलिणी और ऄप्सरा का साहचया तो सदैि प्राप्त हो सकता है दकन्तु आस हेतु ईसका कीिन और स्थापन रूद्र मंडि में करना होता है | िस्तुतः ये समझना ऄलत अिश्यक है की ये मंडि क्या है ???
ऄप्सरा और यलिणी साधना में पूणा सर्िता प्रालप्त हेतु तीन मंडिों का संयोग कर पूणा यलिणी ऄप्सरा सायुज्य षष्ठ मंडि का लनमााण अिश्यक कमा होता है | आस मंडि की लनमााण प्रदक्रया ही आतनी जरटि है की आसे सामान्य साधक नहीं कर सकता है, सम्पपूणा मंडिों को ३ भागों में लिभक्त दकया गया है | १. रूद्र मंडि २.ऄप्सरा लसलद्ध मंडि ३.यलिणी लसलद्ध मंडि और आन तीनों मंडि में से प्रत्येक मंडि में २-२ ईपमंडि होते हैं लजनके योग से एक पूणा मंडि का लनमााण होता है |और आस प्रकार ३ पूणा मंडिों के लमिने से १ पररपूणा मंडि का लनमााण होता है | और आस प्रकार आस पूणा लसलद्ध मंडि में एक साथ ६ यंत्रों का योग होता है,तभी पूणा सर्िता के दशान साधक को संभि हो पाते हैं | यदद हम आसे समझे तो क्रम आस प्रकार होगा रूद्र मंडि में प्रथम मंडि या यन्त्र लसद्ध लशि कु बेर मंडि होता है, लजसमे भगिान महाकाि का जो तीव्रता और सौंदया के ऄलधपलत हैं और लजनकी कृ पा से साधक को पूणा काम भाि,और काम भाि पर लिजय प्रालप्त का िरदान लमिता है,आन सौंदया साधना में सर्िता के लिए आनका स्थापन पूणा तांत्रोक्त रूप से दकया जाता है लजसकी कु छ लिलशष्ट दक्रयाएाँ हैं लजनके प्रयोग से ऄंग स्थापन,पूजन,ज्यालमतीय ऄंकन,ब्रह्माण्ड चेतना प्रालप्त अदद संभि हो पाती है और साधना में जो पौरुष भाि और ऄलधपत्य का भाि ऄलनिाया है ये ईसे ही प्रदान करने िािे हैं लजससे साधना के समय संयम भाि के िो पूणा लनयंत्रण में होता है,लजससे कामोद्वेग से िो पीलड़त नहीं होगा |ना ही ईसे स्िप्नदोष जैसी बाधा का सामना करना पड़ेगा और ना ही कामुकता की तीव्र िहर ईसकी साधना को ही भंग कर पायेगी | साथ ही भगिान महाकाि के साथ ईनके ही लशष्य यिराज कु बेर और ईनकी शलक्त का ऄंकन भी आस एक यन्त्र में ही संयुक्त रूप से होता है,क्यूंदक आस तथ्य से हम सभी ऄिगत हैं ही की कु बेर यलिलणयों के स्िामी हैं और आनकी कृ पा के बगैर यलिणी का साहचया तो दूर साधक को ऄनुभूलत का ऄनुभि भी दूर दूर तक नहीं हो सकता है | आस रूद्र मंडि का दूसरा यन्त्र कामािी ब्रह्माण्ड अकषाण यन्त्र होता है,लजसमे भगिती काम किा कािी की किाओं का स्थापन दकया जाता है और लजसके द्वारा साधक और ऄप्सरा तथा यलिणी के बीच एक सूत्र का लनमााण होता है | और िे सुगमता से साधक से संपका स्थालपत कर
सकती हैं,ऄपनी सम्पपूणा किाओं और लिद्याओं के साथ िे साधक को ऄपना साहचया प्रदान करती हैं और ईसे प्रलतकू िता से मुक्त रखती हैं | रूद्र मंडि के दोनों यन्त्र साधक को यलिणी और ऄप्सरा दोनों ही साधनाओं में सर्िता प्रदायक होते हैं, ऄब चाहे अप दकसी भी एक िगा की साधना करें तब भी ये एक मंडि तो अपको चालहए ही | ऄब बारी अती है लद्वतीय मंडि की जो की ऄप्सरा लसलद्ध मंडि होता है | आस मंडि में भी दो मंडि होते हैं १.ऄप्सरा मंडि –जो साधक को ऄप्सरा साधन के योग्य बनाता है और ईसकी नकारात्मक ईजाा को साधना काि में दूर रखता है,साधक का शोधन कर ईसे साधना के योग्य बनाना तथा सौंदया को अत्मसात करने की िमता देना,आस मंडि का प्रमुख काया है | सम्पपूणा ऄप्सराओं की आस मंडि में सांकेलतक ईपलस्थलत होती है | लजसके कारण ईनका ऄंकन आसमें सहज हो जाता है और आस प्रकार ये ईनका ब्रह्मांडीय अिास ही हो जाता है | सदगुरुदेि ने १९९३ में आस यन्त्र को ऄप्सरा साधना और तंत्र साधना के लिए ऄलनिाया ही बताया था,और बहुतेरे साधकों ने ईस समय आसका प्रयोग कर सर्िता पायी थी | आसी मंडि का दूसरा ईपमंडि या यन्त्र सौंदया भाग्य िेखन मंडि होता है,आसके सहयोग से साधक सौंदया साधनाओं के द्वारा लजन शलक्तयों की प्रालप्त करता है,ईसे सहेज कर रखता है और ये सौंदया लसर्ा बाह्यागत नहीं होता है ऄलपतु,जीिन के प्रत्येक पि और साधनाओं में आसका प्रभाि िो स्ियं देख सकता है,जब साधक से आस मंडि का पूणा अत्म चैतन्यीकरण हो जाता है तो बरबस ही आन सौंदया बािाओं को ऄपने िोक से आसके पास तक अना पड़ता है | ऄब तीसरा मंडि यलिणी लसलद्ध मंडि होता है,आसमें भी २ ईपमंडि या यन्त्र होते हैं १. षोडशी मंडि आस मंडि का मुख्य काया साधक को ईन १६ मुख्य यलिलणयों का ऄगोचर साहचया प्रदान करना होता है लजनके ऄलधकार में ४-४ यलिणी होती है | आस प्रकार प्रत्येक यलिणी के ऄलधकार में ४ लिद्याएं होती है,लजसकी प्रालप्त िो साधक को साधना के पररणामस्िरूप करािा सकती है |िैसे शास्त्रों में प्रत्येक यलिणी को एक लिद्या या किा प्रदान करने िािा कहा गया है,दकन्तु चार चार के समूह की एक स्िालमनी होती हैं तो ऄपरोि रूप से ४ लिद्याओं पर ईनका ऄलधपत्य सहज होता है | आस प्रकार १६ गुलणत ४=६४ तंत्र या लिद्याओं की ये ऄलधस्िालमनी होती हैं | साधक के लनमााण तत्ि के अधार पर कौन सा िगा ईसे र्िीभूत होगा,आसका संकेत ये १६ यलिणी साधना काि में ही साधक को स्िप्न के माध्यम से दे देती हैं| तथा साधक को और क्या प्रयत्न करना चालहए आसके सूक्ष्म संकेत भी साधक को िे प्रदान करती हैं | आसी मंडि का दूसरा ईपमंडि या यन्त्र होता है पूणा सम्पमोहन िशीकरण मंडि – साधना
काि में बात मात्र अकषाण की ही नहीं होती है ऄलपतु िे पूरी तरह साधक के िशीभूत होकर पूणा ऄनुकूिता भी प्रदान करे ,ये भी ऄलनिाया तथ्य होते हैं | साधक का व्यलक्तत्ि पूणा चुम्पबकीय हो और िो आन शलक्तयों के साहचया से स्ियं भी देि िगा की और ऄग्रसर हो,मात्र मानि िगा ही नहीं ऄलपतु ईसकी सम्पमोहन शलक्त से ऄन्य िगा भी ईससे संपका करने के लिए अतुर हो,ये िमता प्रदान करना आसी मंडि के ऄंतगात अता है | आस प्रकार आन तीन मंडिों का योग करने से यलिणी ऄप्सरा सायुज्य षष्ट मंडि का लनमााण होता है| आस एक यन्त्र में ६ यंत्रों का समािेश होता है,जो आन्ही क्रमों से आस महामंडि में ऄंदकत होते हैं| प्रत्येक ईपमंडि की प्राणप्रलतष्ठा,ऄलभषेक,चैतन्यीकरण और ददलप्तकरण ऄिग ऄिग सामग्री,िनस्पलतयों और मंत्र से होती हैं,दकसी की प्राण-प्रलतष्ठा िज्रमागा से होती है,तो दकसी की शाक्त पद्धलत से,दकसी की मध्य रालत्र में तो दकसी के लिए ब्रह्ममुहता का लिधान है | और जब छहों यन्त्र पर दक्रया पूणा हो जाती है तब आनका योग करिाकर सायुज्यीकरण करिाया जाता है,तभी ये र्िदायक होते हैं | दकसी भी यन्त्र को चेतना देना आतना सहज नहीं होता है,क्यूंदक साधक को ये भिी भांलत ज्ञात होना चालहए की आस यन्त्र का ऄंकन सृलष्ट क्रम से हो रहा है या संहार क्रम से,दकस पद्धलत से आसका अिरण पूजन आत्यादद होगा अदद अदद | आस मंडि की प्रालप्त के बाद साधना काि में अिश्यक सामलग्रयों में अपको अपकी ऄभीष्ट यलिणी ऄप्सरा का मूि यन्त्र,मािा और लिधान ही िगता है,बाकी की गोपनीय दक्रयाएाँ तो ईसका संयोग आस यन्त्र से करने से ही संपन्न होती है... तदुपरांत दकन मुद्राओं का प्रदशान होना चालहए...दकन बातों का ध्यान अिश्यक है...क्या ददनचयाा होनी चालहए अदद बाते ही अिश्यक होती हैं | आस एक यन्त्र के लनमााण पर िागत मूल्य ही बहुत अ जाता है,और जो भी भाइ बहन आसका लनमााण लिधान समझना चाहे और स्ियं आसकी लनमााण लिलध को प्रमालणकता से अत्मसात करना चाहे िो ऄपने बहुमूल्य समय में से मात्र १४ ददन और ईन ददनों के ७-७ घंटे देकर स्ियं ही आस यन्त्र का लनमााण कर सकते हैं...आस की प्राण प्रलतष्ठा लिलध और मन्त्रों तथा मुद्राओं को समझ सकते हैं तथा हेतु आसकी जो भी सामग्री िगेगी,िो अपको ही जुटानी है,ईससे हमारा कोइ िेना देना नहीं है,क्यूंदक लनमााण काि में अप स्ियं ही आस काया को सम्पपाददत करें गे | हम आस काया में सौभाग्यशािी रहे हैं की हमें ऄपने कइ भाइ बहनों का अर्मथक सहयोग लमिा है और ईस सहयोग की िजह से हमारी कइ योजनाओं को गलत भी लमिी है,ईनकी लनस्िाथाता हमें लनरं तर कर करने की और प्रेररत करती है और आसी कारण एक साथ आनकी प्राण प्रलतष्ठा
अदद करने के कारण आनके लनमााण मूल्य में बहुत ऄंतर अ गया है| ईन सभी सहयोलगयों के कारण ही अज पुनः आस कि किलित लिधान को मैं सबके सामने रखने का साहस कर रहा हाँ| जब अप सभी से जबिपुर में लमिने का सौभाग्य लमिेगा तो आस महा मंडि का कै से प्रयोग दकया जाता है,ईस हेतु हम लिधान भी स्पष्ठ करें गे | ईपरोक्त यंत्रों का ऄिग ऄिग समय पर सदगुरुदेि ने प्रयोग कराया है,और ये ईसी महान परं परा से प्राप्त हुए हैं,आनमे से प्रत्येक यन्त्र को लभन्न लभन्न साधनाओं में भी प्रयोग दकया गया है,और प्रत्येक प्रयोग प्रभािी रहे है | ईन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा था की लसद्धों के मध्य ये यन्त्र ऄिग ऄिग नामों से भी प्रचलित रहे हैं | मैंने तो ऄपने ददि की बात कह दी..... ऄब िो अप तक पहुाँचती है या नहीं......ये तो अपके भािों और कािगलत पर ही लनभार है..... SAHCHARYA SOOTRA)
(YAKSHINI-APSARA PRATYAKSH
होरी का आनॊद रगबग सबी ने उठामा होगा, ननश्चम ही हर्ष उल्रास का मे ऩर्ष वर्वर्ध कायणों से हभ सबी के आनॊद का स्रोत है | साधनाओॊ की तीव्रता को जहाॉ हभ कही अधधक र्ेग से अनब ु र् कयते हैं र्ही सौंदमष साधनाओॊ भें सपरता प्राप्तत का बी मे उधचत अर्सय है .... सौंदमष साधनाएॊ अथाषत ऩण ू त्ष र् प्राप्तत की औय एक भहत्र्ऩण ू ष कदभ | कामों भें ,ऐश्र्मष भें ,बार्नाओॊ भें औय इन सफ से फढ़कय मदद जीर्न भें सौंदमष न हो तो व्मथष ही हो जाती है हभायी सपरताएॊ...... जफ कोई हभें दे खे फगैय आगे फढ़ जामे तो फपय आकर्षण यहा ही कहाॉ.... आकर्षण का सही अथष सभझा बी कहाॉ है हभने ? आकर्षण का अथष है फाॉध रेना... फपय र्ो चाहे हभाया मभत्र हो... प्रेभ हो..शत्रु हो....हभाया अधधकायी हो....मक्षऺणी हो....अतसया हो....र्ेतार हो .....मा इन सफसे सर्ोऩरय हभाये ईष्ट ही कमॉू न हो |
साधक होना व्मथष है हभाया मदद हम्भे इतना आकर्षण न हो मा फपय हभें फाॉध दे ने की फिमा के गतु त सत्र ू न ऻात हो ..... र्ैसे बी फकसी ने कमा खफ ू कहा है की – “ जज्फा ए इश्क सऱामत है तो इंशाअल्ऱाह, कच्चे धागे में चऱे आयेंगे सरकार फंधे” तबी तो भैं कहता हूॉ की फाॉधने की करा आना जरुयी है | आऩ अचानक सोच यहे होंगे की आज अचानक मे फाॉधने की फात कैसे आ गमी | फकन्तु मे भहत्र्ऩण ू ष तथ्म आज अननर्ामष था....इसमरए तो आज मे फात कही है | कमा होरी का ऩर्ष कर यॊ ग खेरने के साथ सभातत हो गमा..... सोधचमे ....अये सोधचमे ना.... कमा रगता है .... नहीॊ भेये फॊधओ ु ॊ होरी का ऩर्ष २३ ददनों का होता है अथाषत आठ ददन ऩहरे से अभार्स्मा तक इस ऩर्ष की ऊजाष वर्स्तत ृ होती हैं,औय र्े सबी साधनाएॊ प्जन्हें हभने होरी की यात्री को सॊऩन्न फकमा था फकन्तु फकसी कायण र्श उनभे सपरता नहीॊ मभरती है तो उन साधनाओॊ को ऩन ु ् हभ फाकी के १५ ददनों भें सॊऩन्न कय सकते हैं | फहुत फाय हभ साधनाए कयते हैं औय हभें सपरता प्रातत बी हो जाती है फकन्तु उस सपरता के ऩर् ू ष के साॊकेनतक धचन्ह जैसे अनब ु नू तमाॉ आदद हभें नहीॊ ददखाई दे ते हैं तो ऐसे भें हतोत्सादहत होकय हभ मही भान रेते हैं की साधना सपर नहीॊ हुमी है | फकन्तु मे अधषसत्म है , र्ास्तवर्कता मे है की प्रायब्ध के कायण कबी कबी हभें सपरता मभर जाती है फकन्तु हभ भात्र अनब ु र् की चाह भें फैठे यहते हैं औय अनब ु र् हो गमा तो सपरता का धचन्ह भान रेते हैं नहीॊ तो कुछ हामसर नहीॊ हुआ मे भान कय हाथ ऩय हाथ धये फैठ जाते हैं,फकन्तु माद यखखमे साधना भें सपरता प्राप्तत के फाद फचता ही कमा है....कुछ नहीॊ .... कुछ बी तो नहीॊ... तफ मे ऩयू ी प्रकृनत ही हाथ भें आ जाती है औय आऩके असॊबर् कामष बी सॊबर् हो जाते हैं |
फहुत से साधकों ने मक्षऺणी साधना को सॊऩन्न फकमा होगा होमरका दहन की यात्रत्र भें ,फकन्तु स्थान दोर्,धचॊतन दोर्, र्ास्तु दोर्, भख ु दोर्,मा प्रायब्ध कभष के कायण उनका प्रत्मऺीकयण नहीॊ हुआ होगा, सदगुरुदे र् हभेशा कहते थे की “साधक र्ो नहीॊ होता ही जो असपरता के फाद हाथ ऩय हाथ धये फैठे यहता है ,अवऩतु साधक र्ो है जो साधना भें सपरता प्रातत कयने का औय उन्हें झऩट कय दफोच रेने के सत्र ू ों को खोजकय अऩनी साधनाचमाष का दहस्सा ही फना रेता है औय मसविमों को वर्र्श कय दे ता है हाथ फाॉध कय साभने खड़े होने के मरए”| साधना का ऺेत्र ऐसा नहीॊ है की फस अफ भड ू हुआ औय कयने फैठ गए,मसविमों का प्रकटीकयण र्र्ों के ऩरयश्रभ के फाद होता है, मदद गरु ु मे कहते हैं की अभक ु साधना इतने ददनों भें मसि हो जामेगी तो मे उन साधकों को इॊधगत कय कहा जाता है साधना प्जनका जूनन ू है ना की भौसभी साधकों के मरए मे ननमभ रागू होता है... भझ ु े माद है की कैसे सदगुरुदे र् मे फतामा कयते थे की प्रत्येक साधना के ऩर् ू व यदि गुरु मंत्र का कम से कम ५१,००० जऩ कर लऱया जाये और फपर मऱ ू साधना की जाये तो सपऱता लमऱती ही है | र्ैसे तो साधना भें सपरता प्रातत कयने के वर्वर्ध सत्र ू हैं प्जन्हें गतु त यखा गमा है,फकन्तु महाॉ भैं २ भहत्र्ऩण ू ष सत्र ू ों का वर्र्यण दे यहा हूॉ,प्जनके प्रमोग से मक्षऺणी साधना भें सपरता प्रातत कय उनका प्रत्मऺीकयण फकमा जा सकता है | मदद आऩने होमरका दहन की यात्री को मक्षऺणी मा अतसया साधना की है औय प्रत्मऺीकयण नहीॊ हुआ हो तो इसका अथष मे कदावऩ नहीॊ है की आऩ असपर हो गए हैं,अवऩतु आऩकी सॊकल्ऩ शप्कत की भॊदता के कायण,र्ामभ ु ॊडमरक सॊिाॊत के कायण मा स्थान दोर् के कायण भन्त्र घनत्र् स्थर ू नहीॊ हो ऩता है ऩरयणाभ स्र्रुऩ अणओ ु ॊ का सॊगठन मशधथर यहा जाता है औय प्रत्मऺीकयण नहीॊ हो ऩाता है | अत् ऐसे भें उन अणओ ु ॊ को ऩण ू ष सॊगदठत कय घनत्र्
र्वृ ि हे तु दो भहत्र्ऩण ू ष फिमा मदद की जामे तो उन मक्षऺणी औय अतसयाओॊ का प्रत्मऺ साहचमष प्रातत हो जाता है | १. ऩान के ऩत्ते ऩय ऩय एक छोटा सा गोरा फनाकय उसभें मक्षऺणी मा अतसया का (प्जसकी आऩने होरी की यात्रत्र को साधना की थी) भर ू भन्त्र मरख दे औय उस गोरे के चायो औय उसी भर ू भन्त्र को मरख दे . तत्ऩश्चात उस ऩान का ऩज ू न ऩॊचोऩचाय वर्धध से कयें औय उस भर ू भॊत्र के आगे औय ऩीछे “ॐ” का सम्ऩट ु दे कय ७ भारा भॊत्र अऩनी जऩ भारा से कय रें |इसके फाद उस ऩान के ऩत्ते को फकसी दे र्ी भॊददय भें कुछ दक्षऺणा के साथ सभवऩषत कय दे | मे फिमा भात्र साधना के दस ु ये ददन मदद सपरता ना मभरी हो तफ भात्र एक फाय कयना है | २. मक्षऺणी मा अतसया का जो धचत्र मा मन्त्र आऩके ऩास हो उस ऩय एकाग्रता ऩर् ष दृप्ष्ट ू क यख मथा सॊबर् त्राटक कयते हुए २१ भारा भॊत्र “िे र् प्रत्यऺ लसद्धि मंत्र” का कयना है | दे र् प्रत्मऺ मसवि भॊत्र- ॐ द्धऩग ं ऱ ऱोचने िे र् िशवन लसद्धिं कऱीं हुं इस भॊत्र के ऩहरे औय फाद भें ५-५ भारा उस भर ू भॊत्र की कयनी है प्जसे आऩने उस साधना भें प्रमोग फकमा था | मे फिमा अभार्स्मा तक ननत्म यात्री भें सॊऩन्न कयनी है औय इन दोनों ही फिमा के परस्र्रूऩ आऩके भॊत्र की त्रफखयी हुमी शप्कत एकत्र होने रग जाती है औय सॊगठन के परस्र्रूऩ र्ामु भॊडर से उस मक्षऺणी औय अतसया का सक्ष् ू भ रूऩ बी सॊरनमत होकय आऩके साभने ऩयू ी तयह दृप्ष्टगोचय होने रगता है | सत्र ू आऩके साभने है,कयना औय नहीॊ कयना आऩके हाथ भें है .... कहा बी गमा है की – “उद्मभेन दह मसिमप्न्त कामाषखण ना भनोयथै् | ना दह सतु तस्म मसॊहस्म प्रवर्शप्न्त भख ु े भग ृ ् ||”
Why apsara or yakshini sadhana is necessary
तंत्र कौमुदी का चतुथा ऄंक अप पढ़ ही चुके हैं , अप सभी की प्रलतदक्रया भी हमें लमिती रहती हैं ,यह ऄंक यलिणी साधना महालिशेषांक के रूप मैं प्रकालशत दकया गया था .जो भी संभि था आतने कम समय में हमने अपके सामने रखने का प्रयास दकया, आस ऄंक के प्रकलशत होने के बाद ऄनेको गुरु भाआयों ने हमसे जानना चाह की यह साधनाए ईनके लिए दकसीप्रकार की बंधन तो ईत्पन्न नहीं करेगी.
सदगुरुदेि जी ओर पूज्य पाद गुरुदेि लत्रमूर्मत जी ने पलत्रका के ऄनेको ऄंको में तथा ऄनेको cd में यह बार बार समझाया की यह दकसी भी प्रकार से अपके जीिन / यहांतक के ग्रहस्थ्य जीिनके लिपरीत नहीं हैं . ऄब ईन्होंने तो आतना समझया हैं तो ईसके बाद कु छ ओर आस लिषय पर लिखने को शेष नहीं हैं . पर जो गुरु भाइ नए हैं िे शायद आन तथ्य पर कु छ ज्यादा ही बचलतत हैं ओर िे दकसी कारण िश ईन ऄंको या cd
को देख या सुन नहीं पाए हैं तो आस कारण से में
कु छ तथ्य अप के सामने रख रहा हाँ. पहिी बात तो यह समझ िे की जीिनमें सुख के बाद दुःख ओर दुःख के बाद सुख अता ही रहता हैं यह तो जीिन के गलतशीि होने की ददशा में एक सामान्य सी प्रदक्रया हैं , सुख के बाद हमशा सुख ही हो यह तो संभि ही नहीं हैं, पर एक तत्ि ऐसा भी लजसका पररितान संभि ही नहीं हैं ओर िह हैं अनंद तत्ि . अनंद के बाद अनंद तत्ि ही अएगा आस का िय होना सम्पभि ही नहीं हैं, और सारे मानि जीिनका िक्ष्य तो आस तत्ि को प्राप्त करना ही हैं दर्र िह चाहे िह योगी हो या सामान्य व्यलक्त .
योगी को तो मान लिया हैं की िह आस तत्ि को जानने की ददशा में चि पड़ा हैं पर साधारण मानि तो सुख को ही भिे ही िह शारीररक हो या िस्तु परक हो ईसे ही अनंद मानता हैं और िह भी जब समाप्त हो जाता हैं तो पछताने के ऄिािा क्या शेष रह जाता हैं तो क्या साधरण मानि के लिए यह सब संभि नहीं हैं यह या ईसे ऄयोग्य मानकर छोड़ ददया जाये ऐसा नहीं हैं. तंत्र िेत्र के मनीलषयों ने, तत्ििेत्ताओं ने आस साधनाओ को हमारे सामने रखा की आनके माध्यम से हम लिशुद्ध प्रेम को समझ सकते हैंिह प्रेम लजसमें िासना भी न हो ,कोइ ऄपेिा भी न हो , पर कै से यह्दसंभि हैं, लबना ऄपेिा का प्रेम तो मात्र दकताबो की ही शोभा हैं.सदगुरुदेि जी ने बारम्पबार यह समझाया हैं दक प्रेम तो जीिनका सौन्दया हैं , ईच्चता हैं , साधनाओ में सर्िता का सौपान हैं, ओर गुरुसे जुड़ने की ददशा में एक कदम हैं , जीिनका िसंत हैं , भिा िसंत लबना र्ू िो के सौलभत होता हैं तो भिा मानि जीिनभी लबना ्ेह प्रेम के ... साधनाओ से बि प्रालप्त संभि हैं जीिन की सारी सुलिधाए प्राप्त करना भी संभि हैं ,लसलद्धया भी संभि हैं यहााँ साधनाए अपको ऄलत ईच्चता प्रदान करने में संभि हैं , पर क्या अप जानते हैं की महालिद्या साधना भी अपको अनंद तत्ि नहीं दे सकती हैं . िक्ष्मी साधना भी अपको अनंद तत्ि नहीं दे सकता हैं, तो आस जीिन का आस ईच्चतम सत्य जो की प्रेम / ्ेह के माध्यम से ही संभि हैं ईसे कै से प्राप्त करे तो , अपको आस ऄप्सरा यलिणी साधना को समझना ही होगा
सदगुरुदेि जीने तो यहााँ तक कहा हैं की जगदम्पबा साधना से भी अनंद तत्ि की प्रालप्त संभि नहीं हैं .ऄब अप ही बताये की जीिन की सिोच्चता के लिए तो यह साधना जरुरी हैं ही एक दो नहीं बलल्क सद्गुरुदेसजी ने िगभग २० cd आस लिषय पर तैयार करिाइ हैं पता नहीं दकतने िेख और प्रिचन लशलिर में ईन्होंने आस लिषय पर ददए हैं ऄब अप ही सोचे की यह लिषय आतना हल्का तो नहीं हो सकता हैं .
सदगुरुदेि जी नेस्िणा देहा ऄप्सरा साधना में बहुत लिस्तार से न के बि ऄपना बलल्क ऄनेको देिी देिताओ ओर महायोलगयों का ईदहारण दे कर समझाया हैं की क्यों ये साधनाए जरुरी है लबना प्रेम तत्ि के मानि जीिन रस हीन हैं . साधना लसद्ध होने के बि ये अपको ही दृष्टी गोचर होतीहैं . ओर अपके अिाहन पर ही अपके सामने अती हैं. जीिन में जो ईच्चता प्राप्त करना चाहते हैं, और पौरूषिान बनना चाहते हैं ईनके लिए तो यह िर दान स्िरुप ही हैं. दकसी भी दृष्टी से अपके गृहस्थ जीिन में समस्या कारक नहीं हैं .
जीिन में जीिन का तीसरा पुरुषाथा --- काम तत्ि कोइ आतना घरटया तो नहीं हैं , हााँ हमारी दृष्टी ईसको घरटया या ऄच्छा बनाती हैं , ओर आस साधना से अपको एक मलहिा लमत्र लमि जाती हैं जो की ऄपने ्ेह से अपके जीिन में सभी प्रकार की ऄनुकूिता िाती ही हैं, और यह साधना तो सालधका भी कर सकती हैं ईन्हें जीिन भर के लिए एक लमत्र जो लमि जा ती हैं , जीिनमें एक सच्चे लमत्र की अिश्यकता दकसे नहीं होती हैं. आन साधना से अप ऄपने जीिनसाथी के भौलतक शरीर में आस तत्िही ऄनुकूिता कर सकते हैं लजससे की अपका जीिन सुखदायक हो जाता हैंया लिलशष्ट प्रदक्रया ऄपना कर आन्हें पूणातया से प्राप्त कर सकते हैं. आस साधना के संपन्न होते ही साधक /सालधका के शारीर में आतने पररितान होने िगते हैं की िह मानो नि योिन की ओर ऄग्रसर हो जाता हैं . समस्त शारीररक कलमया
दूर हो कर
व्यलक्त नि योिन िान जाता हैं. अप आन साधनाओ को लबना दकसी बचता के ,बे लहचक करे सदगुरुदेि द्वारा प्रलणत आन साधनाओ में दकसी प्रकार की समस्या नहीं हैं, अप करे तो. यह साधना के बि अपके शरीर से सम्पबंलधत बलल्क अपके अर्मथक पि से सम्पबंलधत समस्याओ न को भी दूर कर देती हैं, जब ये साधक को बचता मुक्त (हर प्रकार की दर्र काहे िह अर्मथक या दकसी भी प्रकार की न हो ) करदेती हैं .
यदद अप पूज्य पाद गुरु देि लत्रमुर्मतजी जी से आस सन्दभा में यदद दीिा भी प्राप्त कर िे साथ ही साथ सदगुरुदेि द्वारा प्रलणत cd भी सुनके देंखे आसके साथ तंत्र कौमुदी का यह हाि का ऄंक भी देखे सर्िता तो मानो अपका ही आं तज़ार कररही हैं..