भारत क लोक कथाएं
राजथान क लोककथाएं चोर और राजा / लमीनवास बडला बुआजी क आंख / भागीरथ कानो डया बुदे लखड क लोककथाए ब"ु # बडी या पैसा / &शवसहाय चतव ु ) द+ पंछ- बोला चार पहर / रामका.त द+/0त मालवा क लोककथाएं सवा मन कंचन / च.1शेखर सब समान / "व3म कुमार जैन बघेलखड क लोककथा सब समान / "व3म कुमार जैन गडकल क लोककथा फयंल ू + / गो"व.द चातक ज क लोककथाएं चतुर+ चमार / यशपाल जैन &संहल6वीप क प7नी / आदश8 कुमार+
मगध क लोककथा खंजडी क खनक / भगवानच.1 "वनोद नगाड़ क लोककथाएं वाता8कार और हुंकारा दे नेवाला / &शवनारायण उपा;याय सेवा का फल / यण उपा<याय बडा कौन? / अ?ात सरै सा क लोककथा सोने का चूहा / नागे@वर &सहं ‘शशी.1’ कांगडा क लोककथा करम का फल / मनोहर लाल छ!तीसगढ क लोककथा भाAय बात / @यामचरण दब ु े ह&रयाणा क लोककथा बद+ का फल / श&शBभा गोयल उ!तर *दे श क लोककथाएं च.दन वन / &शवान.द
नर"वक का दायCव / आन.द महाकाल क DिFट / &शव गुजरात क लोककथा महाकाल क DिFट / &शव महारा,- क लोककथा चार &मH / मुरल+धर जगताप
राजथान क लोककथाएं
चोर और राजा / लमीनवास बडला Jकसी जमाने म एक चोर था। वह बडा ह+ चतुर था। लोगL का कहना था Jक वह आदमी क आंखL का काजल तक उडा सकता था। एक Mदन उस चोर ने सोचा Jक जबतक वह राजधानी म नह+ं जायगा और अपना करतब नह+ं Mदखायगी, तबतक चोरL के बीच उसक धाक नह+ं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी क ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर उसने यह दे खने के &लए नगर का चOकर लगाया Jक कहां कया कर सकता है । उसने तय Jक Jक राजा के महल से अपना काम शुP करे गा। राजा ने रातMदन महल क रखवाल+ के &लए बहुतसे &सपाह+ तैनात कर रखे थे। बना पकडे गये पQर.दा भी महल म नह+ं घुस सकता था। महल म एक बहुत बडी घडीं लगी थी, जो Mदन रात का समय बताने के &लए घंटे बजाती रहती थी।
चोर ने लोहे क कुछ कल इकठट+ कं ओर जब रात को घडी ने बारह बजाये तो घंटे क हर आवाज के साथ वह महल क द+वार म एकएक कल ठोकता गया। इसतरह बना शोर Jकये उसने द+वार म बारह कल लगा द+ं, Jफर उ.ह पकड पकडकर वह ऊपर चढ गया और महल म दाWखल हो गया। इसके बाद वह खजाने म गया और वहां से बहुत से ह+रे चुरा लाया। अगले Mदन जब चोर+ का पता लगा तो मंHयL ने राजा को इसक खबर द+। राजा बडा है रान और नाराज हुआ। उसने मंHयL को आ?ा द+ Jक शहर क सडकL पर ग@त करने के &लए &सपाMहयL क संXया दन ू ी कर द+ जाय और अगर रात के समय Jकसी को भी घूमते हुए पाया जाय तो उसे चोर समझकर Zगरफतार कर &लया जाय। िजस समय दरबार म यह ऐलान हो रहा था, एक नागQरक के भेष म चोर मौजद ू था। उसे सार+ योजना क एक एक बात का पता चल गया। उसे फौरन यह भी मालूम हो यगा Jक कौन से छ]बीस &सपाह+ शहर म ग@त के &लए चुने गये ह^। वह सफाई से घर गया और साधु का बाना धारण करके उन छ]बीसL &सपाMहयL क बी"वयL से जाकर &मला। उनम से हरे क इस बात के &लए उCसुक थी Jक उसक पत ह+ चोर को पकडे ओर राजा से इनाम ले।
एक एक करके चोर उन सबके पास गया ओर उनके हाथ दे ख दे खकर बताया Jक वह रात उसके &लए बडी शुभ है । उसक पत क पोशाक म चोर उसके घर आयेगा; लेJकन, दे खो, चोर क अपने घर के अंदर मत आने दे ना, नह+ं तो वह तु`ह दबा लेगा। घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ह+ वह पत क आवाज म बोलता सुनाई दे , उसके ऊपर जलता कोयला फकना। इसका नतीजा यह होगा Jक चोर पकड म आ जायगा। सार+ िaHयां रात को चोर के आगमन के &लए तैयार हो गb। अपने पतयL को उ.हLने इसक जानकार+ नह+ं द+। इस बीच पत अपनी ग@त पर चले गये और सवेरे चार बजे तक पहरा दे ते रहे । हालांJक अभी अंधेरा था, लेJकन उ.ह उस समय तक इधर उधर कोई भी Mदखाई नह+ं Mदया तो उ.हLने सोचा Jक उस रात को चोर नह+ं आयगा, यह सोचकर उ.हLने अपने घर चले जाने का फैसला Jकया। cयLह+ वेघर पहुंचे, िaHयL को संदेह हुआ और उ.हLने चोर क बताई कार8 वाई शुP कर द+। फल वह हुआ Jक &सपाह+ जल गये ओर बडी मुि@कल से अपनी िaHयL को "व@वास Mदला पाये Jक वे ह+ उनके असल+ पत ह^ और उनके &लए दरवाजा खोल Mदया जाय। सारे पतयL के जल जाने के
कारण उ.ह अaपताल ले जाया गया। दस ू रे Mदन राजा दरबार म आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया। सुनकर राजा बहुत Zचंतत हुआ और उसने कोतवाल को आदे श Mदया Jक वह aवयं जाकर चोर पकड़े। उस रात कोतवाल ने तेयार होकर शहर का पहरा दे ना शP ु Jकया। जब वह एक गल+ म जा रहा रहा था, चोर ने जवाब Mदया, ‘म^ चोर हूं।″ कोतवाल समझा Jक लड़क उसके साथ मजाक कर रह+ है । उसने कहा, ″मजाक छाड़ो ओर अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ। म^ तु`ह काठ म डाल दं ग ू ा।″ चोर बाला, ″ठ-क है । इससे मेरा Oया बगड़ेगा!″ और वह कोतवाल के साथ काठ डालने क जगह पर पहुंचा। वहां जाकर चोर ने कहा, ″कोतवाल साहब, इस काठ को आप इaतेमाल कैसे Jकया करते ह^, मेहरबानी करके मुझे समझा द+िजए।″ कोतवाल ने कहा, तु`हारा Oया भरोसा! म^ तु`ह बताऊं और तुम भाग जाओं तो ?″ चोर बाला, ″आपके बना कहे म^ने अपने को आपके हवाले कर Mदया है । म^ भाग OयL जाऊंगा?″ कोतवाल उसे यह Mदखाने के &लए राजी हो गया Jक काठ कैसे डाला जाता है । cयL ह+ उसने अपने हाथ-पैर
उसम डाले Jक चोर ने झट चाबी घुमाकर काठ का ताला बंद कर Mदया और कोतवाल को राम-राम करके चल Mदया। जाड़े क रात थी। Mदन नकलते-नकलते कोतवाल मारे सदg के अधमरा हो गया। सवेरे जब &सपाह+ बाहर आने लगे तो उ.हLने दे खा Jक कोतवाल काठ म फंसे पड़े ह^। उ.हLने उनको उसम से नकाला और अaपताल ले गये। अगले Mदन जब दरबार लगा तो राजा को रात का सारा Jकaसा सुनाया गया। राजा इतना है रान हुआ Jक उसने उस रात चोर क नगरानी aवयं करने का न@चय Jकया। चोर उस समय दरबार म मौजूद था और सार+ बातL को सुन रहा था। रात होने पर उसने साधु का भेष बनाया और नगर के &सरे पर एक पेड़ के नीचे धूनी जलाकर बैठ गया। राजा ने ग@त शुP क और दो बार साधु के सामने से गुजरा। तीसर+ बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा Jक, ″Oया इधर से Jकसी अजनबी आदमी को जाते उसने दे खा है ?″ साधु ने जवाब Mदया Jक “वह तो अपने ;यान म लगा था, अगर उसके पास से कोई नकला भी होगा तो उसे पता नह+ं। यMद आप चाह तो मेरे पास बैठ जाइए और दे खते रMहए Jक कोई आता-जाता है या नह+ं।″ यह सुनकर
राजा के Mदमाग म एक बात आई और उसने फौरन तय Jकया Jक साधु उसक पोशाक पहनकर शहर का चOकर लगाये और वह साधु के कपड़े पहनकर वहां चोर क तलाश म बैठे। आपस म काफ बहस-मब ु ाMहसे और दो-तीन बार इंकार करने के बाद आWखर चोर राजा क बात मानने को राजी हो गया ओर उ.हLने आपस म कपड़े बदल &लये। चोर तCकाल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल म पहुंचा ओर राजा के सोने के कमरे म जाकर आराम से सो गया, बेचारा राजा साधु बना चोर को पकड़ने के &लए इंतजार करता रहा। सवेरे के कोई चार बजने आये। राजा ने दे खा Jक न तो साधु लौटा और कोई आदमी या चोर उस राaते से गज ु रा, तो उसने महल म लौट जाने का न@चय Jकया; लेJकन जब वह महल के फाटक पर पहुंचा तो संतQरयL ने सोचा, राजा तो पहले ह+ आ चुका है , हो न हो यह चोर है , जो राजा बनकर महल म घुसना चाहता है । उ.हLने राजा को पकड़ &लया और काल कोठर+ म डाल Mदया। राजा ने शोर मचाया, पर Jकसी ने भी उसक बात न सुनी। Mदन का उजाला होने पर काल कोठर+ का पहरा दे ने वाले संतर+ ने राजा का चेहरा पहचान &लया ओर मारे डर के थरथर कांपने लगा। वह राजा के पैरL पर Zगर पड़ा। राजा ने सारे &सपाMहयL को बुलाया
और महल म गया। उधर चोर, जो रात भर राजा के hप म महल म सोया था, सरू ज क पहल+ Jकरण फूटते ह+, राजा क पोशाक म और उसी के घोड़े पर रफूचOकर हो गया। अगले Mदन जब राजा अपने दरबार म पहुंचा तो बहुत ह+ हतरश था। उसने ऐलान Jकया Jक अगर चोर उसके सामने उपिaथतत हा जायगा तो उसे माफ कर Mदया जायगा और उसके Wखलाफ कोई कार8 वाई नह+ं कह जायगी, बिiक उसक चतुराई के &लए उसे इनाम भी &मलेगा। चोर वहां मौजूद था ह+, फौरन राजा के सामने आ गया ओर बोला, “महाराज, म^ ह+ वह अपराधीह हूं।″ इसके सबूत म उसने राजा के महल से जो कुछ चरु ाया था, वह सब सामने रख Mदया, साथ ह+ राजा क पोशाक और उसका घोड़ा भी। राजा ने उसे गांव इनाम म Mदये और वादा कराया Jक वह आगे चोर+ करना छोड़ दे गा। इसके बाद से चोर खूब आन.द से रहने लगा। बुआजी क आंख / भागीरथ कानो डया B6यु`न&संह नाम का एक राजा था। उसके पास एक हं स था। राजा उसे मोती चुगाया करता और बहुत लाड़-jयार से उसका पालन Jकया करता। वह हं स नCय Bत सायंकाल राजा के महल से उड़कर कभी
Jकसी Mदशा म और कभी Jकसी Mदशा म थोड़ा चOकर काट आया करता। एक Mदन वह हं स उड़ता हुआ नीवनजी क छत पर जा बैठा। उक पH ु वधु गभ8वती थी। उसने सुन रखा था Jक गभा8वaथा म यMद Jकसी aHी को हं स का मांस खाने को &मल जाय तो उसक होने वाल+ संतान अCयंत मेधावी, तेजaवी और भाAयशाल+ होती है । अनायास ह+ छत पर हं स आया दे खकर उसके मुंह म पानी भर आया। उसने हं स को पकड़ &लया ओर रसोईघर म ले जाकर उसे पकाकर खा गई। इस बात का पता न उसने अपनी सास को लगने Mदया, न ससुर को और न पत को ह+, OयLJक उसे भय था Jक अगर राजा को इस बात का सरु ाग लग गया तो बड़ा अनFट हो जायगा। उधर जब रात होने पर हं स राजमहल म नह+ं पहुंचा तो राजा-रानी को बहुत Zचंता हुई। उनका मन आकुल-kयाकुल होगया। चारL ओर उसक खोज म आदमी दौड़ाये गए। लेJकन हं स कह+ं हो तब &मले न! राजा ने अड़ोस-पड़ोस के शहरL-कaबL म भी सूचना कराई Jक अगर कोई हं स का पता लगा सके तो राcय क ओर से उसे बहुत बड़ा पुरaकार Mदया जायगा।
दस-बीस Mदन नकल गये। कुछ भी पता नह+ं लग सका। चंJू क वह हं स राजा ओर रानी को बहुत "Bय था, अत: वे उदास रहने लगे। एक Mदन एक कुटटनी राजा के पास आई और बोल+ Jक वह हं स का पता लगा सकती है , लेJकन उसे थोड़ा-सा समय चाMहए। राजा ने कहा, “मेरे राcय के पं डत-जयोतषी, हाJकम-हुOकाम और मेरे इतने सारे गुjतचरL म कोई भी पता नह+ं लगा सका, तुम कैसे पता लगा सकोगी?” कुटटनी ने कहा, “मुझे अपनी योAयता पर "व@वास है । अगर अ.नदाता का हुOम हो तो एक बार आकश के तारे भी तोड़कर ले आऊं। आप मुझे थोड़ा-सा समय द+िजए और आव@यक धन दे द+िजय। उसे वापस ला सकंू या नह+ं, लेJकन म^ आपको "व@वास Mदलाती हूं Jक उसका अता-पता आव@य ले आऊंगी।” राजा ने aवीकार कर &लया और कुटअनी अपने उmे@य क &स6"व के &लए चल पड़ी। सबसे पहले कुटटुनी ने यह पता लगाया Jक शहर के धनक घरL म कौन-कौन aHी गभ8वती ह^। उसे पता था Jक गभा8वaथा म Jकसी aHी को यMद हं स का मांस &मल जाय तो वह बना खाये नह+ं रहे गी। साथ
ह+ यह भी जनती थी Jक साधारण घर क कोई aHी राजा का हं स पकड़ने का साहस नह+ं कर सकती। खोजते-खोजते उसे पता लगा Jक द+वान क पुHवधू गभ8वती है । अत: उसके मन म संदेह हो गया Jक हो सकता है , राजा का हं स उड़ते-उड़ते Jकसी Mदन इनके घर क छत पर आ गया हो और गभा8वaथा म होने के कारण लोभवश यह aHी उसे खा गई हो। कुटटनी ने सोचा, Jकसी भी aHी के साथ नकटaथ मैHी करने के &लए उसके पीहर के हालचाल जानना आव@यक है । इस&लए कुटटनी उसके पीहर के गांव पहुंची। वहां जाकर उसने पहरवाले सारे लोगL के नाम-धाम तथा उनके घर म बीती हुई खास-खास पुरानी घटनाओं क जानकार+ ल+। उसे पता लगा Jक द+वानजी क पुHवधू क बूआ छोट+ उn म ह+ Jकसी साधु के साथ चल+ गई थी और आज तक लौटकर नह+ं आई है । उसने सोचा, अब द+वानजी के घर जाकर उनक पH ु वधू क बुआ बनकर भेद लेने का अoछा अaH अपने हाथ आ गया। वह द+वनजी के घर गई। उनक पुHवधू के साथ बहुत aनेह-ममCव क बात करने लगी और बोल+; “बेट+, म^ तेर+ बुआ हूं। हम दोनL आज पहल+ बार &मल+ ह^। तुम जानती ह+ हो Jक म^ तो बहुत पहले घर छोड़कर एक साधु के साथ चल+ गई थी। हल ह+ म घर लौटकर
आयी और भाई से &मल+ तो उसने बताया Jक तुम यहां ]याह+ गई हो और तु`हारे ससरु राcय के द+वान ह^। यह जानकर मन म तुमसे &मलने क बहुत उCकंठा हुई तो यहां चल+ आई। तु`ह दे खकर मेरे मन म बहुत ह+ हष8 हुआ। भगवान तु`ह सुखी रख और तु`हार+ कोख से एक कांतवान तेजaवी पुH पैदा हो। म^ परसL वापस जा रह+ हूं और तु`हारे लड़का होने के बाद भाई-भाभी को साथ लेकर बoचे को दे खने और उसका लाड़-चाव करने यहां आऊंगी।” द+वान क पुHवधू ने अपने भोलपन के कारण उसक बातL का "व@वास कर&लया और बोल+, “बुआजी, आप आई ह^ तो दस-बीस Mदन तो यहां रMहए। जाने क इतनी जiद+ भी Oया पड़ी है !” बुआ बनी हुई कुटअनी को और Oया चाMहए था ! उसने वहां रहना aवीकार कर &लया। थोड़े ह+ MदनL म बुआ-भतीजी खूब Mहल-&मल गb। एक Mदन बातL-ह+ बातL म बुआजी ने कहा, “बेट+, गभा8वaथा म Jकसी aHी को अगर हं स का मांस खाने को &मल जाय तो बहुत अoछा पQरणाम नकलता है । उसके Bभाव से होनेवाल+ संतानबहुत ह+ तेजaवी और कांतवान होती है ; Jकंतु हं स तो मानसरोवर छोड़कर और कह+ं होते नह+ं, इस&लए यह काम पार पड़े तो कैसे पड़े !”
यह सुनकर उसने अपने हं स खाने क बात बुआजी को सहजभाव से बता द+। सुनकर बुआ ने कहा, “बेट+, यह अचरज क बात है Jक तु`हारे यहां राजा के पास हं स था ! तुमने जो कुछ Jकया, वह बहुत अoछा Jकया; Jक.तु तु`ह Jकसी के सामने इस घटना का िज3 नह+ं करना चाMहए। मेरे सामने भी नह+ं करना था। लेJकन खैर, मुझसे कह+ हुई बात तो कह+ं जाने वाल+ नह+ं है , इस&लए िज3 कर Mदया तो भी कोई बात नह+ं!˝ कुछ Mदन और बती गये, तब कुटटनी ने कहा, “बेट+, अगर भगवान के सामने तुम हं स खाने क बात aवीकार कर लो तो हं स क हCया का पाप तो &सर से उतर ह+ जायगा, सप ु Qरणाम भी 6"वगWु णत होगा। मंMदर के पज ु ार+ से कहकर म^ ऐसी kसवaथा कर दं ग ू ी Jक िजस वOत वहां तुम सार+ घटना बताकर अपराध aवीकार करो, उस वOत पुजार+ भी वहां नह+ं रहे तथा और भी कोई न रहे , हम दो ह+ रह गी।˝ उसने ऐसा करना aवीकार कर &लया। कुटटनी लुक-छपकर राजा के पास पहुंची और बोल+, “आपसे वायदा Jकया था, उसके अनस ु ार हं स का अता-पता लगा लाई हूं।˝ ऐसा कहकर उसने सार+ घटना राजा को बताई। राजा ने कहा, “इसका Bमाण Oया है ?˝
वह बोल+, “फलां Mदन आप मंMदन म आ जायं और हं स खाने वाल+ aHी क aवीकारोिOत aवयं अपने कानL सुन ल ।˝ राजा ने ऐसा करने क ‘हां’ भर ल+। नयत Mदनसमय से कुछ पहले पूव-8 योजना के अनुसार कुटटनी ने राजा को एक जरा ऊंचे aथान पर रखे हुए एक बड़े-से ढोल म छपा Mदया और बुआ-भतीजी मंMदर पहुंचीं। मंMदर का पट खुला था। पुजार+ या और दस ू रा कोई भी kयिOत वहां नह+ं था। अब बुआजी ने शुP Jकया, “हां, तो बेट+ Oया बात हुई थी उस Mदन?˝ द+वानक पुHवधू ने घटना आर`भ क। वह थोड़ी-सी घटना ह+ कह पाई थी Jक कुटटनी ने सोचा, राजा ;यानपूवक 8 सुन तो रहा है न, इस&लए वह ढोल क तरफ इशारा करके बोल+, “ढोल रे ढोल, सुन रे बहू का बोल।˝ उसका इतना कहना था Jक भतीजी का माथा ठनका। उसे वहम हो गया Jक हो न हो, दाल म कुछ काला है । मालूम होता है , म^ तो ठगी गई हूं। वह चप ु हो गई। बुआ बोल+; “हां तो बेट+, आगे Oया हुआ ?˝
इस पर भतीजी बोल+, “उसके बाद तो बुआजी मेर+ आंख खुल गयी, सपना टूट गया।” cयLह+ भतीजी क आंख खुल+, CयLह+ बुआजी क आंख भी खुल+-कखल ु + रह गb। उसके पांव तो भतीजी से भी भार+ हो गये और उसके &लए उठकर खड़े होना भी मिु @कल हो गया। बुदेलखड क लोककथाएं बु6"व बड़ी या पैसा / &शव सहाय चतुव)द+ Jकसी दे श म एक राजा राज करता था। उसके &लए पैसा ह+ सबकुछ था। वह सोचता था Jक पैसे के बल पर दु नया के सब काम-काज चलते ह^। ‘तांबे क मेख तमाशा दे ख6, कहावत झूठ नह+ं है । मेरे पास अटूट धन है , इसी&लए म^ इतने बड़े दे श पर राज करता हूं। लोग मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े रहते ह^। चाहूं तो अभी hपयL क सड़क तैयार करा दं ।ू आसमान म &सर उठाये खड़े इन पहाड़L को खद ु वाकर Jफकवा दं ।ू पैसे के बत ू े पर मेरे पास एक जबरदaत फौज है । उसके 6वारा Jकसी भी दे श को 0ण-भर म कुचल सकता हूं। वह सबसे यह+ कहता था Jक इस संसार म धम8-कम8, aHी-पुH, &मH-सखा सब पैसा ह+ है ।
राजा &सर से पैर तक पैसे के मद म डूबा था; परं तु उसक रानी बड़ी ब6"वमती थी। वह पैसे को तo ु छ और ब6"व को pेFठ समझती थी। रानी क चतुराई के कारण राज का सब काम-काज ठ-क र+त से चलता था। उसका कहना था Jक दु नया पैसे के बूते उतनी नह+ं चलती, िजतनी बु6"व के बूते पर। लेJकन राजा के सामने साफ बात कहने म संकोच करती थी। एक Mदन राजा ने पूछा, “रानी, सच कहो, दु नया म बु6"व बड़ी या पैसा?” रानी बड़े असमंजस म पड़ी। सोचने लगी, सCय का मुख Pखा होता है । राजा के मन म जो पैसे का मूiय बसा था, उसे वह अoछ- तरह जानती थी। कुछ उCतर तो दे ना ह+ था। वह बोल+, “महाराज, यMद आप सच पूछते ह^ तो म^ बु6"व को बड़ा समझती हूं। बु6"व से ह+ पैसा आता है । और ब6 ु "व से ह+ सब काम चलते ह^। ब6 ु "व न हो तो सब खजाने यLह+ लट ु जाते ह^-राजपाट चौपट हो जाते ह^।” पैसे क इस Bकार नंदा सुनकर राजा को बहुत गुaसा आया। बोला,
“रानी तु`ह अपनी ब6 ु "व का बड़ा घमंड है । म^ दे खना चाहता हूं Jक तुम बना पैसे के ब6 ु "व के सहारे कैसे काम चलाती हो।˝ ऐसा कहकर उसने रानी को नगर के बाहर एक मकान म रख Mदया। सेवा के &लए
दो-चार नौकर भेज Mदये। खच8 के &लए न तो एक पैसा Mदया और न Jकसी तरह का कोई सामान रानी के शर+र पर जो जेवर थे, वे भी उतरवा &लये। रानी मन-ह+-मन कहने लगी Jक म^ एक Mदन राजा को Mदखा दं ग ू ी Jक संसार म बु6"व भी कोई चीज है , पैसा ह+ सब कुछ नह+ं है । नये मकान म पहुंचकर रानी ने नौकर 6वारा कु`हार के अवे से दो bट मंगवाb और उ.ह सफेद कपड़े म लपेटकर ऊपर से अपने नाम क मुहर लगा द+। Jफर नौकर को बुलाकर कहा, “तुम मेर+ इस धरोहर को ध.नू सेठ के घर ले जाओ। कहना, रानी ने यह धरोहर भेजी है , दस हजार hपये मंगाये ह^। कुछ MदनL म तु`हारा hपया मय सद ू के लौटा Mदया जायगा और धरोहर वापस कर ल+ जायगी।” नौकर सेठ के यहां पहुंचा। धरोहर पर रानी के नाम क मुहर दे खकर सेठ समझा Jक इसम कोई कमती जवाहर हLगे। उवसे दस हजार hपया चप ु चाप दे Mदया। hपया लेकर नौकर रानी के पास आया। रानी ने इन hपयL से kयापार शुP Jकया। नौकर-चाकर लगा Mदये। रानी दे ख-रे ख करने लगी। थोड़े ह+ MदनL म उसने इतना पैसा पैदा कर &लया Jक सेठ का hपया चुक गया और काफ पैसा बच रहा। इस hपये से उसने गर+बL के &लए मुफत दवाखाना, पाठशाला तथा
अनाथालय खुलवा Mदये। चारL ओर रानी क जय-जयकार होने लगी। शहर के बाहर रानी के मकान के आसपास बहुत-से मकान बन गये और वहां अoछ- रौनक रहने लगी। इधर रानी के चले जाने पर राजा अकेला रहा गया। रानी थी तब वह मौके के कामL को संभाले रहती थी। रालकाज म उZचत सलाह दे ती थी। धूतq क दाल उसके सामने नह+ं गलने पाती थी। अब उसके चले जाने पर धूतq क बन आई। धत8 लोग आ-आकर रजा को लूटने लगे। अंधेरगदg बढ़ गई। नतीजा यह हुआ Jक थोड़े ह+ MदनL म खजाना खाल+ हो गया। aवाथs कम8चार+ राcय क सब आमदनी हड़प जाते थे। अब नौकरL का वेतन चक ु ाना कMठन हो गया। राcय क ऐसी दशा दे ख राजा घबरा गया। वह अपना मन बहलाने के &लए राजकाज मंHयL को सtपकर दे शाटन के &लए नकल पड़ा। जाते समय नगर के बाहर ह+ उसे कुछ ठग &मले। उनम से एक काना आदमी राजा के पास आकर बोला, “महाराज, मेर+ आंख आपके यहां दो हजार म Zगरवी रखी थी। वादा हो चुका है । अब आप अपने hपये लेकर मेर+ आंख मुझे वापस किजये।” राजा बोला, “भाई, मेरे पास Jकसी क आंख-वांख नह+ं है । तुम मंHी के पास जाकर पूछो।”
ठग बोला, “महाराज, म^ मंHी को Oया जानंू? म^ने तो आपके पास आंख Zगरवी रखी थी, आप ह+ मेर+ आंख द । जब बाड़ ह+ फसल खाने लगी तब र0ा का Oया उपाय? आप राजा ह^, जब आप ह+ इंसाफ न कर गे तो दस ू रा कौन करे गा? आप मेर+ आंख न द गे तो आपक बड़ी बदनामी होगी।˝ राजा बड़ा परे शान हुआ। बदनामी से बचने के &लए उसने जैसे-तैसे चार हजार hपये दे कर उसे "वदा Jकया। कुछ दरू आगे चला था Jक एक बूचा आदमी उसके सामने आकर खड़ा हो गया। पहले के समान वह भी कहने लगा, “महाराज, मेरा एक कान आपके यहां Zगरवी रखा था। hपया लेकर मेरा कान मुझे वापस किजये।” राजा ने उसे भी hपया दे कर "वदा Jकया। इस Bकार राaते म कई ठग आये और राजा से hपया ऐंठकर चले गये। जो कुछ hपया-पैसा साथ लाये थे, वह ठगL ने लूट &लया। वह खाल+ हाथ कुमार+ चौबोला के दे श म पहुंचे। कुमार+ चौबोला उस दे श क राजक.या थी। उसका Bण था Jक जो आदमी मुझे जुए म हरा दे गा उसी के साथ "ववाह कPंगी। राजकुमार+ बहुत सु.दर थी। दरू -दरू के लोग उसके साथ जुआ खेलने आते थे और हार कर जेल क हवा खाते थे। सैकड़L राजकुमार जेल म पड़े थे।
मस ु ीबत के मारे यह राजा साहब भी उसी दे श म आ पहुंचे। चौबोला क सु.दरता क खबर उनके कानL म पड़ी तो उनके मंह ु म पानी भर आया। उनक इoछा उसके साथ "ववाह करने क हुई। राजकुमार+ ने महल से कुछ दरू + पर एक बंगला बनवा Mदया था। "ववाह क इoछा से आनेवाले लोग इसी बंगले म ठहरते थे। राजा भी उस बंगले म जा पहुंचा। पहरे दार ने तुरंत बेट+ को खबर द+। थोड़ी दे र बाद एक तोता उड़कर आया और राजा क बांह पर बैठ गया। उसके गले म एक Zचटठ- बंधी थी, िजसम "ववाह क शतu &लखी थीं। अंत म यह भी &लखा था Jक यMद तुम जुए म हार गये तो तु`ह जेल क हवा खानी पड़ेगी। राजा ने Zचटठ- पढ़कर जेब म रख ल+। थोड़ी दे र बाद राजा को राजकुमार+ के महल म बल ु ाया गया। जुआ शुP हुआ और राजा हार गया। शत8 के अनुसार वह जेल भेज Mदया गया। राजा क हालत बगड़ने और नगर छोड़कर चले जाने का समाचार जब रानी को मालूम हुआ तो उसे बहुत द:ु ख हुआ। राजा का पता लगाने वह भी पददे श को नकल+। कुछ ह+ दरू चल+ थी Jक वह+ पुराने ठग Jफर आ गये। सबसे पहले वह+ काना आया। कहने लगा,
“रानी साहब, आपके पास मेर+ आंख दो हजार म Zगरवी रखी थी। आप अपना hपया लेकर मेर+ आंख वापस द+िजये।” रानी बोल+, “बहुत ठ-क, मेरे पास बहुत-से लोगL क आंख Zगरवी रखी ह^, उ.ह+ं म तु`हार+ भी होगी। एक काम करो। तुम अपनी दस ू र+ आंख नकालकर मझ ु े दो। उसके तौल क जो आंख होगी, वह तु`ह दे द+ जायगी।” रानी का जवाब सुनकर ठग क नानी मर गई। वह बहुत घबराया। रानी बोल+, “दे र मत करो। दस ू र+ आंख जiद+ नकालो। उसी के तौल क आंख दे द+ जायगी।” ठग हाथ-पैर जोड़कर माफ मांगने लगा। बोला, “सरकार, मझ ु े आंखवांख कुछ नह+ं चाMहए। मुझे जाने क आ?ा द+िजये।” रानी बोल+, “नह+ं, म^ Jकसी क धरोहर आपनेपास रखना उZचत नह+ं समझती। तुम जiद+ अपनी आंख नकालकर मुझे दो, नह+ं तो &सपाMहयL से कहकर नकलवा लंग ू ी।” अंत म ठग ने "वनती करके चार हजार hपया दे कर अपनी जान बचायी। यह+ हाल बच ू े का हुआ। जब उसने दे खा Jक रानी का नौकर
दस ू रा कान काटने ह+ वाला है तो उसने भी चार हजार hपया दे कर रानी से अपना "पंड छुड़ाया। ठगL से नपटकर रानी आगे बढ़+ और पता लगाते-लगाते कुमार+ चौबाला के दे श म जा पहुंची। राजा के जेल जाने का समाचार सुनकर उसे द:ु ख हुआ। अब वह राजा को जेल से छुड़ाने का उपाय सोचने लगी। उसने पता लगाया Jक रानी चौबीला Jकस Bकार जुआ खेलती है । सारा भेद समझकर उसने पुhष का भेष बनाया और बंगले पर जा पहुंची। पहरे दार ने खबर द+। थोड़ी दे र म तोता उड़कर आया। रानी ने उसके गले से Zचटठ- खोलकर पढ़+। कुछ समय बाद बुलावा आया। रानी पुhF?-वेश म कुमार+ चौबोला के महल म पहुंची। इ.ह दे खकर चौबोला का मन न जाने OयL Zगरने लगा। उसे ऐसा मालूम होने लगा Jक म^ इस राजकुमार को जीत न सकंू गी। खेलने के &लए चौसर डाल+ गई। कुमार+ चौसर खेलते समय बiल+ के &सर पर द+पक रखती थी। बiल+ को इस Bकार &सखाया गया था Jक कुमार+ का दांव जब ठ-क नह+ं पड़ता था और उसे मालूम होता था Jक वह हार रह+ है , तब वह बiल+ के &सर Mहलाने से द+पक क cयोत डगमगाने लगती थी। इसी बीच वह अपना पासा बल दे ती थी। रानी यह बात पहले ह+ सुन चुक थी। बiल+ का ;यान आक"ष8त करने के &लए
उसने एक चूहा पाल &लया था और उसे अपने कुत) क बांह म छपा रखा था। चौसर का खेल खलने लगा। खेलते खेलते कुमार+ जब हारने लगी तब उसने बiल+ को इशारा Jकया। रानी तो पहले से ह+ सजग थी। इसके पहले ह+ उसने अपनी आaतीन से चूहा नकालकर बाहर कर &लया। बiल+ क नगाह अपने &शकार पर जम गई। राजकुमार+ के इशारे का उस पर कोई असर नह+ं हुआ। राजकुमार+ के बार-बार इशारा दे ने पर भी बiल+ टस-से-मस न हुई। नदान राजकुमार+ हार गई। तरु ं त सारे नगर म खबर फैल गयी। राजकुमार+ के "ववाह क तैयाQरयां होने लगीं। रानी बोल+, “"ववाह तो शत8 पूर+ होते ह+ हो गया। रहा भांवर पड़ने का दaतूर, वह घर चलकर कर &लया जायगा। वह+ं से धूम-धाम के साथ शाद+ क जायगी।” चौबोला राजी हो गई। पुhष वेशधार+ रानी बोल+, “एक बात और है । यहां से चलने से पहले उनसब लोगL को, िज.ह जेल म डाल रखा है , छोड़ दो। लेJकन पहले एक बार उन सबको मेरे सामने बुलाओ।” कैद+ सामने लाये गए। हरे क कैद+ क नाक छे दकर कौड़ी पहनाई गई थी। सबके हाथ म कोiहू हांकने क हं कनी और गले म चमड़े का खल+ता पड़ा था। इस खल+ते म उनके खाने के &लए खाल+ रखी जाती थी। खल+ते पर हर कैद+ का नाम दज8 था। इ.ह+ं कैMदयL के बीच
रानी के पत (राजासाहब) भी थे। रानी ने जब उक दशा दे खी तो उसका जी भर आया। उसने अपने मन के भाव को तरु ं त छपा &लया। सब कैMदयL क नाक से कौड़ी नकाल+ गइ। नाई बल ु ाकर हजामत बनवाई गई। अoछे कपड़े पहनाकर उCतम भोजन कराके उनको छुटट+ दे द+ गई। राजा ने राजकुमार क जय बोलकर सीधी घर क राह पकड़ी। दस ू रे Mदन सवेरे रानी राजकुमार+ चौबोला को "वदा कराकर हाथी-घोड़े, दास-दासी और धन-दहे ज के साथ अपने नगर को चल+। रानी पुhषवेश म घोड़े पर बैठ- आगे-आगे चल रह+ थी। पीछे -पीछे चौबोला क पालक चलरह+ थी। कुछ Mदन म वह अपने नगर म आ पहुंची और नगर के बाहर अपने बंगले म ठहर गई। राजा जब लौटकर अपने नगर म आये तो दे खते Oया ह^ Jक रानी के मकान के पास औषधालय, पाठशाला, अनाथालय आMद कई इमारत बनी ह^, दे खकर राजा अचंभे म आ गया। सोचने लगा, रानी को म^ने एक पैसा तो Mदया नह+ं था, उसने ये लाखL क इमारत कैसे बनवा ल+ं। पैसे का महCव उसक नजरL म अभी तक वैसा ह+ बना हुआ था।
सं;या-समय उसने रानी को बुलवाया, पछ ू ा, “कहो रानी, अब भी तु`हार+ समझ म आया Jक बु6"व बड़ी होती या पैसा?” रानी कुछ नह+ं बोल+। चुपचाप उसने राजा के नाक क कौड़ी, खल+ता, हं कन और खल+ का टुकड़ा सामने रख Mदया। राजा "विaमत होकर रह गया। सोचने लगा, ये चीज इसे कहां से &मल+ं। इतने म रानी कुमार+ चौबोला को बुलाकर उनके सामने खड़ा कर Mदया। अब राजा क आंख खुल+ं। वह समझ गये Jक चौबोला क कैद से छुड़ाने वाला राजकुमार और कोई नह+ं, उसक बु6"वमती रानी ह+ थी। राजा ने लिcजत होकर &सर नीचा कर &लया। Jफर कुछ दे र सोचकर कहने लगा, “रानी, अभी तक म^ बड़ी भूल म था। तुमने मेर+ आंख खोल द+ं। अभी तक म^ पैसे को ह+ सब कुछ समझता था, पर आज मेर+ मसझ म आया Jक बु6"व के आगे पैसा कोई चीज नह+ं है ।” शुभ मुहूत8 म चौबोला का "ववाह राजा के साथ धूमधाम के साथ हो गया। दोनL रानयां Mहल-&मलकर आनंदपूवक 8 रहने लगीं। पंछ- बोला चार पहर / रामकांत द+/0त परु ाने समय क बात है । एक राजा था। वह बड़ा समझदार था और हर नई बात को जानने को इoछुक रहता था। उसके महल के
आंगनम एक बकौल+ का पेड़ था। रात को रोज नयम से एक प0ी उस पेड़ पर आकर बैठता और रात के चारL पहरL के &लए अलगअलग चार तरह क बात कहा करता। पहले पहर म कहता :
“Jकस मख ु दध ू "पलाऊं, Jकस मुख दध ू "पलाऊं” दस ू रा पहर लगते बोलता :
“ऐसा कहूं न द+ख, ऐसा कहूं न द+ख !” जब तीसरा पहर आता तो कहने लगता :
“अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” जब चौथा पहर शुP होता तो वह कहता :
“सब ब`मन मर जाय, सब ब`मन मर जाय !”
राजा रोज रात को जागकर प0ी के मख ु से चारL पहरL क चार अलग-अलग बात सुनता। सोचता, प0ी Oया कहता ?पर उसक समझ म कुछ न आता। राजा क Zच.ता बढ़ती गई। जब वह उसका अथ8 नकालने म असफल रहा तो हारकर उसने अपने पुरोMहत को बुलाया। उसे सब हाल सुनाया और उससे प0ी के BशनL का उCतर पूछा। पुरोMहत भी एक साथ उCतर नह+ं दे सका। उसने कुछ समय क मल ु त मांगी और Zचंतत होकर घर चला आया। उसके &सर म राजा क पछ ू - गई चारL बात बराबर चOकर काटती रह+ं। वह बहुतेरा सोचता, पर उसे कोई जवाब न सूझता। अपने पत को है रान दे खकर xाyणी ने पूछा, “तुम इतने परे शान OयL द+खते हो ? मुझे बताओ, बात Oया है ?” xाyाणी ने कहा, “Oया बताऊं ! एक बड़ी ह+ कMठन समaया मेरे सामने आ खड़ी हुई है । राजा के महल का जो आंगन है , वहां रोज रात को एक प0ी आता है और चारL पहरL मे नतय नयम से चार आलग-अलग बात कहता है । राजा प0ी क उन बातL का मतलब नह+ं समझा तो उसने मुझसे उनका मतलब पूछा। पर प0ी क पहे &लयां मेर+ समझ म भी नह+ं आतीं। राजा को जाकर Oया जवाब दं ,ू बस इसी उधेड़-बुन म हूं।”
xाyाणी बोल+, “प0ी कहता Oया है ? जरा मुझे भी सुनाओ।” xाyाणी ने चारL पहरL क चारL बात कह सुनायीं। सुनकर xाyाणी बोल+। “वाह, यह कौन कMठन बात है ! इसका उCतर तो म^ दे सकती हूं। Zचंता मत करो। जाओ, राजा से जाकर कह दो Jक प0ी क बातL का मतलब म^ बताऊंगी।” xाyाण राजा के महल म गया और बोला, “महाराज, आप जो प0ी के B@नL के उCतर जानना चाहते ह^, उनको मेर+ aHी बता सकती है ।” पुरोMहत क बात सुनकर राजा ने उसक aHी को बुलाने के &लए पालक भेजी। xाyाणी आ गई। राजा-रानी ने उसे आदर से बठाया। रात हुई तो पहले पहर प0ी बोला:
“Jकस मुख दध ू "पलाऊं, Jकस मुख दध ू "पलाऊं ?” राजा ने कहा, “पं डतानी, सुन रह+ हो, प0ी Oया बोलता है ?” वह बोल+, “हां, महाराज ! सुन रह+ं हूं। वह अधकट बात कहता है ।” राजा ने पूछा, “अधकट बात कैसी ?” पं डतानी ने उCतर Mदया, “राजन,् सुनो, परू + बात इस Bकार है -
लंका म रावण भयो बीस भज ु ा दश शीश, माता ओ क जा कहे , Jकस मुख दध ू "पलाऊं। Jकस मख ु दध ू "पलाऊं ?” लंका म रावण ने ज.म &लया है , उसक बीस भज ु ाएं ह^ और दश शीश ह^। उसक माता कहती है Jक उसे उसके कौन-से मख ु से दध ू "पलाऊं?” राज बोला, “बहुत ठ-क ! बहुत ठ-क ! तुमने सह+ अथ8 लगा &लया।” दस ू रा पहर हुआ तो प0ी कहने लगा : ऐसो कहूं न द+ख, ऐसो कहूं न द+ख। राजा बोला, ‘पं डतानी, इसका Oया अथ8 है ?” प डतानी नेसमझाया, “महाराज ! सनो, प0ी बोलता है :
“घर ज`ब नव द+प बना Zचंता को आदमी, ऐसो कहूं न द+ख,
ऐसो कहूं न द+ख !” चारL Mदशा, सार+ प| ृ वी, नवख}ड, सभी छान डालो, पर बना Zचंता का आदमी नह+ं &मलेगा। मनुFय को कोई-न-कोई Zचंता हर समय लगी ह+ रहती है । कMहये, महाराज! सच है या नह+ं ?” राजा बोला, “तुम ठ-क कहती हो।” तीसरा पहर लगा तो प0ी ने रोज क तरह अपी बात को दोहराया :
“अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” xyाणी राजा से बोल+, “महाराज, इसका मम8 भी म^ आपको बतला दे ती हूं। सुनये: पांच वष8 क क.या साठे दई ]याह, बैठ- करम बसूरती, अब हम करबू का, अब हम करबू का। पांच वष8 क क.या को साठ वष8 के बढ़ ू े के गले बांध दो तो बेचार+ अपना करम पीट कर यह+ कहे गी-‘अब हम करबू का, अब हम करबू का ?” सह+ है न, महाराज !”
राजा बोला, “पं डतानी, तु`हार+ यह बात भी सह+ लगी।” चौथा पहर हुआ तो प0ी ने चLच खोल+ :
“सब ब`मन मर जाय, सब ब`मन मर जाय !” तभी राज ने xyाणी से कहा, “सुनो, पं डतानी, प0ी जो कुछ कह रहा है , Oया वह उZचत है ?” xहाणी मुaकायी और कहने लगी, “महाराज ! म^ने पहले ह+ कहा है Jक प0ी अधकट बात कहता है । वह तो ऐसे सब xyाणL के मरने क बात कहता है : "व@वा संगत जो कर सुरा मांस जो खाय, बना सपरे भोजन कर , वै सब ब`मन मर जाय वै सब ब`मन मर जाय। जो xाyाणी वे@या क संगत करते ह^, सुरा ओर मांस का सेवन करते ह^ और बना aनान Jकये भोजन करते ह^, ऐसे सब xyाणL का मर जाना ह+ उZचत है । जब बो&लये, प0ी का कहना ठ-क है या नह+ं ?”
राजा ने कहा, “तु`हार+ चारL बात बावन तोला, पाव रCती ठ-क लगीं। तु`हार+ ब6 ु "व ध.य है !” राजा-रानी ने उसको बMढ़या कपड़े और गहने दे कर मान-स`मान से "वदा Jकया। अब परु ोMहत का आदर भी राजदरबार म पहले से अZधक बढ़ गया। मालवा क लोककथाएं सवा मन कंचन / च.दशेखर Jकसी जमाने क बात है । एक आदमी था। उसका नाम था सूयन 8 ारायण। वह aवयं तो दे वलोक म रहता था, Jकंतु उसक मां और aHी इसी लोक म रहती थीं। सूयन 8 ारापयण सवा मन कंचन इन दोनL को दे ता था और सवा मन सार+ Bजा को। Bजा चैन से Mदन काट रह+ थी, Jकंतु मां-बहू के Mदन बड़ी मुि@कल से गुजर रहे थे। दोनL MदनLMदन सख ू ती जा रह+ थीं। एक Mदन बहू ने अपनी सास से कहा, “सासूजी, और लोग तो आराम से रहते ह^, पर हम भूखL मरे जा रहे ह^। अपने बेटे से जाकर कहो न, वे कुछ कर ।”
बMु ढ़या को बहू क बात जंच गई। वह लाठ- टे कती-टे कती दे वलोक पहुंची। सूयन 8 ारायण दरबार म बैठे हुए थे। 6वारपाल ने जाकर उ.ह खबर द+, “महाराज! आपक माताजी आई ह^।” सय 8 ारायण ने पछ ू न ू ा “कैसे हाल ह^ ?” 6वारपाल ने कहा, “महाराज ! हाल तो कुछ अoछे नह+ं ह^। फटे -पुराने, मैले-कुचैले कपड़े पहने ह^। साथ म न कोई नौकर है , न चाकर।” सूयन 8 ारायण ने हुOम Mदया, “आओ, बाग म ठहरा दो।” ऐसा ह+ Jकया गया। सय 8 ारायण काम-काज से नबटकर मां के पास ू न गये, पूछा, “कहो मां, कैसे आb?” बMु ढ़या बोल+, “बेटा, तू सारे जग को पालता है । मगर हम भख ू L मरती है !” सूयन 8 ारायण को बड़ा अचरज हुआ। उसने पूछा, “OयL मां ! भूखL OयL मरती हो ? िजतनी कंचन तुम को दे ता हूं, उतना बाक क दु नया का दे ता हूं। दु नया तो उतने कंचन म चैन कर रह+ है । तुम उसका आWखर करती Oया हो?” बMु ढ़या बाल+, “बेटा ! हम कंचन को हांडी म उबाल लेती ह^। Jफर वह उबला हुआ पानी पी लेती ह^।˝
सय 8 ारायण हं सते हुए बाला, “मेर+ भोल+ मां ! कंचन कह+ं उबालकर ू न पीने क चीज है ! इसे तुम बाजार म बेचकर बदले म अपनी मनचाह+ चीज ले आया करो। तु`हारा सारा द:ख दरू हो जायगा।˝ बMु ढ़या खुश होती हुई वापस लौट+। इस बीच बहू शहद क मOखी बकर दे वलोक म आ गई थी। उसने मां-बेटे क सार+ बातचीत सुन ल+ थी। चचा8 खCम होने पर वह बुMढ़या से पहले ह+ घर पहुंच गई और सूयन 8 ारायण ने जैसा कहा था, कंचन को बाजार म बेचकर घीशOकर, आटा-दाल सब ले आई। बुMढ़या जब लाठ- टे कती-टे कती वापस आयी तो बहू ने भोल+ बनकर पूछा, ‘सासू जी ! Oया कहा उ.हLने ?” सास घर के बदले रं ग-ढं ग दे खकर बोल+, “जो कुछ कहा था, वह तो तूने पहले ह+ कर डाला।˝ सास-बहू के Mदन आराम से कटने लगे। इनके घर म इतनी बरकत हो गयी Jक दानL से लमी समेट+ नह+ं जाती थी। दोनL घबरा गb। एक Mदन बहू ने सास से कहा, “सासूजी, तु`हारे बेटे ने पहले तो Mदया नह+ं, अब Mदया तो इतना Jक संभाला ह+ नह+ं जाता, उनके पास Jफर जाओ, वे ह+ कुछ तरकब बतायगे।˝
बMु ढ़या बहू के कहने से Jफर चल+। इस बार बMु ढ़या ने नौकर-चाकर, लाव-ल@कर साथ ले &लया। पालक म बैठकर ठाठ से चल+। बहू शहद क मOखी बनकर पहले ह+ वहां पहुंच गई। बMु ढ़या के पहं चने पर 6वारपाल ने सूयन 8 ारायण को खबर द+, “महाराज ! आपक मां आई ह^।˝ सूयन 8 ारायण ने पूछा, “कैसे हाल आई ह^?” 6वारपाल ने कहा, “महाराज ! बड़े ठाठ-बाठ से। नौकर-चाकर, लावल@कर सभी साथ ह^।˝ सूयन 8 ारायण ने कहा, “महल म ठहरा दो।˝ बMु ढ़या को महल म ठहरा Mदया गया। काम-काज से नबटकर सूयन 8 ारायण महल म आया। मां से पूछा,
“कहो मां ! अभी भी पूरा नह+ं पड़ता ?˝ मां बोल+, “नह+ं बेटा ! अब तो तूने इतना दे Mदया Jक उसे संभालना मुि@कल हो गया है । हम तंग आ गb ह^। अब हम बता Jक हम उस धन का Oया कर ?”
सय 8 ारायण ने हं सते हुए कहा, “मेर+ भोल+ मां ! यह तो बड़ी आसान ू न बात है । खाते-खरचते जो बचे, उससे धम8-प} ु य करो, कंु ए-बावड़ी खुदवाओ। परोपकार के ऐसे बहुत-से काम ह^।˝ शहद क मOखी बनी बहू पहले ह+ मौहूद थी। उसने सब सुन &लया और फौरन घर लौटकर सदा~त बठा Mदया। कुआ, बावड़ी, धम8शाला आMद का काम शुP कर Mदया। बुMढ़या जब लौट+ तो उसने भोल+ बनकर पूछा, “उ.हLने Oया कहा, सासूजी?” बMु ढ़या ने घर के बदले रं ग-ढं ग दे खकर कहा, “बहू जो कुछ उसने कहा था, वह तो तूने पहले ह+ कर डाला।˝ इसी तरह कई Mदन बीत गये। एक Mदन सय 8 ाराया को अपने घर क ू न सZु ध आई। उसने सोचा Jक चल , दे ख तो सह+ Jक दोनL के Oया हालचाल ह^। इधर मां कई MदनL से आई नह+ं। यह सोच सूयन 8 ारायण साधु का Pप धर कर आया। आते ह+ इनके दावाजे पर आवाज लगाई,
“अलख नरं जन। आवाज सुनते ह+ बुMढ़या मुटठ- म आटा लेकर साधु को दे ने आई। साधु ने कहा, “माई ! म^ आटा नह+ं लेता। म^ तो आज तेरे यहां ह+ भोजन कPंगा। तेर+ इoछा हो तो भोजन करा दे , नह+ं तो म^ शाप दे ता हूं।˝
शाप का नाम सुनते ह+ बMु ढ़या ने Zगड़Zगड़ाकर कहा, “नह+ं-नह+ं, बाबा ! शाप मत दो। म^ भोजन कराऊंगी।” साधु नेकहा, “माई, हमार+ एक शत8 ओर सुन लो। हम तु`हार+ बहू के हाथ का ह+ भोजन कर गे।” बहू ने छCतीस तरह के पकवान, बCतीस तरह क चटनी बनाइ। बुMढ़या साधु को बुलाने गई। साधु ने कहा, “माई ! हम तो उसी पाट पर बैठगे, िजस पर तेरा बेटा बैठता था; उसी थाल+ म खायगे, िजसम तेरा बेटा खाता था। जबतक हम भोजन कर गे तब तक तेर+ बहू को पंखा झलना पड़ेगा। तेर+ इoछा हो तो बोल, नह+ं तो म^ शाप दे ता हूं।” बMु ढ़या शाप के नाम से कांपने लगी। उसने कहा, “ठहरो ! म^ बहू से पछ ू लं।ू ” बहू से सास ने पूछा तो वह बोल+, “म^ कया जानूं? जैस तुम कहो, वैसा करने को तैयार हूं।” बुMढ़या बोल+, “बेट+ ! बड़ा अ ड़यल साधु है । पर अब Oया कर ?” आWखर सूयन 8 ारायण िजस पाट पर बैठता था, वह पाट बछाया गया, उसक खान क थाल+ म भोजन परोसा गया। बहू सामने पंखा झलने बैठ-। तब साधु महाराज ने भोजन Jकया।
बMु ढ़या ने सोचा-चलो, अब महाराज से पीछा छूटा। मगर महाराज तो बड़े "वZचH नकले ! भोजन करने के बाद बोले, “माई ! हम तो यह+ं सोयंगे और उस पलंग पर िजस पर तेरा बेटा सोता था। और दे ख, तेर+ बहू को हमारे पैर दबाने हLगे। तेर+ राजी हो तो बोल, नह+ं तो म^ शाप दे ता हूं।” बुMढ़या बड़ी घबराई। बहू से Jफर सलाह लेने गई। बहू ने कह Mदया, म^ Oया जानूं। तुम जानो।” साधु ने दे र+ होती दे खी तो कहा, “अoछा माई, चल Mदये।” बुMढ़या हाथ जोड़कर बोल+, “नह+ं-नह+ं, महाराज। आप जाइए मत। आप जैसा कह गे वैसा ह+ होगा। बड़ी मिु @कल से हमारे Mदन बदले ह^। शाप मत द+िजए।” सूयन 8 ारायण िजस पलंग पर सोता था; पलंग बछाया गया। साधु महाराज ने शयन Jकया। बहू उनके पैर दबाने लगी। तभी छ: मह+ने क रात हो गई। सार+ दु नया HाMह-HाMह करने लगी। अब बुMढ़या समझी Jक यह तो मेरा ह+ बेटा है । उसने कहा, “बेटा ! कभी तो आया ह+ नह+ं और आया तो यL अपने को छपाकर OयL
आया ? जा, अपना काम-काज संभाल। दु नया म हा-हाकार मचा हुआ है ।” सूयन 8 ारायण वापस दे वलोक लौट गया। इधर सूयन 8 ारायण क पCनी ने नौ मह+ने बाद एक स. ु दर तेजaवी पH ु को ज.म Mदया। वह बालक MदनLMदन बड़ा होने लगा। एक Mदन वह अपने दोaतL के साथ गुiल+-डंडा खेल रहा था। खेल-ह+खेल म उसने दस ू रे लड़कL क तरह बाप क सौगंध खाई। उसके साथी उसे Zचढ़ाने लगे, “तेरे बाप है कहां? तूने कभी उ.ह दे खा है ? तू बना बाप का है ?” लड़का रोता-रोता अपनी दाद+ के पास आया, बोला, “मां ! मुझे बता Jक मेरे "पताजी कहां है । ? “ बुMढ़या ने सूयन 8 ारायण क ओर उं गल+ से संकेत कर कहा, “वे रहे बेटा। तरे "पता को तो सार+ दु नया जानती है ।” बालक ने मचलते हुए कहा, “नह+ं मां ! सचमुच के "पता बता।” बालक ने िजद ठान ल+। बुMढ़या उसे लेकर दे वलोक चल+। नौकरचाकर साथ म लेकर पालक म सवार होकर वहां पहुंचे। महलम
ठहराये गए। सूयन 8 ारायण काम-काज से नबटकर महल म आये। बMु ढ़या ने उनक ओर संकेत कर कहा, “ये ह^ तेरे "पता” सूयन 8 ारायण ने बालक को गोद+ म लेकर jयार Jकया। बालक का रोना बंद हो गया। उस Mदन से वे सब चैन से रहने लगे। सब समान / "व3म कुमार जैन एकबार क बात है । सरू ज, जवा, पानी और Jकसान के बीच अचानक तनातनी हो गई। बात बड़ी नह+ं थी, छोट+-सी थी Jक उनम बड़ा कौन ् है ? सूरज ने अपने को बड़ा बताया तो हवा ने अपने को, पानी और Jकसान भी पीछे न रहे । उ.हLने अपने बड़े होने का दावा Jकया। आWखर तल का ताड़ बन गया। खूब बहस करने पर भी जब वे Jकसी नतीजे पर न पहुंचे तो चारL ने तय Jकया Jक वक कल से कोई काम नह+ं कर गे। दे ख, Jकसके बना दु नया का काम hकता है । पशु-प/0यL को जब यह मालूम हुआ तो वे दौड़े आये। उनह ने उनके मेल का राaता खोजने का BयCन Jकया, पर उ.ह सफलता नह+ं &मल+।
दस ू रे Mदन सरू ज नह+ं नकला, हवा ने चलना बंद कर Mदया, पानी सूख गया और Jकसान हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ गया। चारL ओर हाहकार मच गया। लोग Bाथ8ना करने लगे Jकवे अपना-अपना काम कर ; लेJकन वे टस-से-मस न हुए। अपनी आप पर डटे रहे । लोग है रान होकर चुप हो गये। पर दु नया का काम hका नह+ं। जहां मुगा8 नह+ं बोलता, वहां Oया सवेरा नह+ं होता ? चारL बड़े ह+ कमेरे थे खाल+ बैठे तो उ.ह थोड़ी ह+ दे र म घबराहट होने लगी। समय काटना भार+ हो गया। उनका अ&भमान गलने लगा। अWखर बड़ा कौन है ? छोटा कौन है ? सबके अपने-अपने काम ह^। बड़ा कोई आन से नह+ं, काम से होता है । सबसे cयादा छटपटाहट हुई सूरज को। अपने ताप से aवयं जलने लगा। उसने अपनी Jकरण बखेरनी शुP कर द+ं। नक`मे बैठे होने से हवा कर दम घुटने लगा तो वह भी चल पड़ी। इसी तरह पानी और Jकसान भी अपने-अपने काम म लग गये। वे अoछ- तरह समझ गये Jक संसार म न कोई छोटा है , न कोई बड़ा है । सब समान ह^। छोटे -बड़े का भेद तो ऊपर+ है । बघेलखड क लोककथा
मनFु य का मोल / लखनBताप &संह "व3माजीत नाम के एक राजा थे। वह बड़े .यायी थे। उनके .याय क Bशंसा दरू -दरू तक फैल+ थी। एक बार दे वताओं के राजा इं1 ने "व3मा◌ीत क पर+0ा लेनी चाह+, OयLJक उ.ह डर था Jक कह+ं ऐसा न हो Jक अपनी .याय"Bयता के कारण राजा "व3माजीत उनका पद छ-न ल। इसके &लए उनहLने आदमी के तीन कटे हुए &सर भेजकर कहला भेजा Jक यMद राजा इनका मूiय बतला सकगे तो उनके राज म सब जगह सोने क वषा8 होगी। यMद न बता सके तो गाज Zगरे गी ओर राcय म आद&मयL का भयंकर संहार होगा। राजा ने दरबार म तीनL &सर रखते हुए सारे दरबार+ पं डतL से कहा, “आप लोग इन &सरL का मi ू य बतलाइये।” पर कोई भी उनका मi ू य न बतला सका, OयLJक तीनL &सर दे खने म एक समान थे और एक ह+ आदमी के जान पड़ते थे। उनम राई बराबर भी फक8 न था। सारे सभास6 मौन थे। राज-दरबार म स.नाटा छाया हुआ था, सब एक-दस ू रे का मुंह ताक रहे थे। पं डतL का यह हाल दे खकर राजा Zचंतत हुए। उ.हLने परु ोMहत को बुलाकर कहा, “तु`ह तीन Mदन क छुटट+ द+ जाती है । जो तुम इन तीन MदनL म इनका मi ू य बता सकोगे तो मंह ु मांगा परु aकार Mदया जायगा, नह+ं तो फांसी पर लटका Mदये जाओगे।”
दो Mदन तक परु ोMहतजी ने बहुत सोचा, परं तु वह Jकसी भी फैसले पर न पहुंच। तब तीसरा Mदन शh ु हुआ, तो वह बहुत kयाकुल हो उठे । खाना-पीना सब भूल गये। Zचंता के मारे चmरओढ़कर लेटे रहे । पं डताइन से न रहा गया। वह उनके पास गई और चmर खींचकर कहने लगी, “आप आज यL कैसे पड़े ह^ ? च&लये, उMठये, नहाइये, खाइये।”पं डत ने उन तीनL &सरो का सब Jकaसा पं डताइन को कह सुनाया। सुनते ह+ पं डताइन होश-हवास भल ू गई, बड़े भार+ संकट म पड़ गयी। मन म कहने लगी-हे भगवान, अब म^ Oया कPं ? कहां जाऊं ? कुछ भी समझ म नह+ं आता। उसने सोचा Jक कल तो पं डत को फांसी हो ह+ जायगी, तो म^ पहले ह+ OयL न Bाण Cयाग दं ?ू पं डत क मौत अपनी आंखL से दे खने से तो अoछा है । यह सोचकर मरने क ठान आधी रात के समय पं डताइन शहर से बाहर तालाब क ओर चल+। इधर पाव8ती ने भगवान शंकर से कहा Jक एक सती के ऊपर संकट आ पड़ा है , कुछ करना चाMहए। शंकर भगवानने कहा, “यह संसार है । यहां पर यह सब होता ह+ रहता है । तुम Jकस-Jकसक Zचंता करोगी ?” पर पाव8ती ने एक न मानी। कहा, “नह+ं, कोई-न-कोई उपाय तो करना ह+ होगा।” शंकर भगवान ् ने
कहा, “अगर तुम नह+ं मानती हो तो चलो।” दोनL &सयार और &सयाQरन का भेष बनाकर तालाब क मेड़ पर पहुंचे, जहां पं डताइन तालाब म डूबकर मरने को आई थी। पं डताइन जब तालाब क मेड़ के पास पहुंची तो उसने सुना Jक एक &सयार पागल क तरह जोरजोर से हं स रहा है । कभी वह हं सता है और कभी “हूके-हुके, हुवा-हुआ” करता है । &सयार क यह दशा दे खकर &सयाQरन ने पूछा, “आज तुम पागल हो गये हो Oया? OयL बेमतलब इस तरह हं स रहे हो ?” &सयार बालो, “अरे , तू नह+ं जानती। अब खब ू खाने को &मलेगा, ,खब ू खायगे और मोटे -ताजे हो जायगे।” &सयाQरन ने कहा, “कैसी बात करते हो? कुछ समझ म नह+ं आती; जो कुछ समझूं तो "व@वास कPं।” &सयार ने कहा, “राजा इ.1 ने राजा "व3माजीत के यहां तीन &सर भेजे ह^ और यह शत8 रखी है जो राजा उनका मोल बता सकेगा तो राcय भर म सोना बरसेगा; जो न बता सकेगा तो गाज Zगर गी। तो सुनो, &सरL का मi ू य तो कोई बता न सकेगा Jक सोना बरसेगा। अब राcय म हर जगह गाज ह+ Zगरे गी। खूब आदमी मर गे। हम खूब खायगे और मोटे हLगे।” इतना कहकर &सयार Jफर “हुके-हुके, हुवा-हुआ” कहकर हं सने लगा। &सयारQरन ने पूछा, “Oया तुम इन &सरL का मूiय जानते हो ? ” &सयार बोला, “जानता तो हूं, Jकंतु बतलाऊंगा नह+ं, OयLJक यद ि◌ Jकसी ने सुन &लया तो सारा खेल ह+ बगड़ जायगा।” &सयाQरन
बोल+, “तब तो तुम कुछ नह+ं जानते, kयथ8 ह+ डींग मारते हो। यहां आधी रात कौन बैठा है , जो तु`हार+ बात सुन लेगा और भेद खल ु जायगा!” &सयार को ताव आ गया। वह बोला, “तू तो मरा "व@वास ह+ नह+ं करती ! अoछा तो सुन, तीनL &सरL का मूiय म^ बतलाता हूं। तीनL &सरL म एक &सर ऐसा है Jक यMद सोने क सलाई लेकर उसके कान म से डाल और चारL ओर Mहलाने-डुलाने से सलाई मुंह से न नकले तो उसका मi ू य अमi ू य है । दस ू रे &सर म सलाई डालकर चारL ओर Mहलाने-डुलाने से यMद मंह ु से नकल जाय तो उसका मi ू य दस हजार hपया है । तीसरा &सर लेकर उसके कान से सलाई डालने पर यMद वह मुंह, नाक, आंख सब जगह से पार हो जाय तो उसका मूiय है , दो कौड़ी।” पं डताइन यह सब सुन रह+ थी। चुपचाप दबे पांच घर क ओर चल पड़ी। पं डताइन खुशी-खुशी घर पहुंची। पं डत अब भी मंह पर चादर डाले पहले के समान Zचंता म डूब पड़े थे। पं डताइन ने चादर उठाई और कहा, “पड़े-पड़े Oया करते हो? चलो उठो, नहाओ-खाओ। OयL kयथ8 Zचंता करते हो ! म^ बतमाऊंगी उन &सरL का मूiय।” सवेरा होते-होते पं डत उठे तो दे खा, दरवाजे पर राजा का &सपाह+ खड़ा है । पं डत ने ठाठ के साथ &सपाह+ को फटकारते हुए कहा, “सवेरा नह+ं
होने पाया और बल ु ाने आ गये ! जाओ, राजा साहब से कह दे ना Jक नहा ल , पज ू ा-पाठ कर ल , खा-पी-ल, तब आयंगे।” &सपाह+ चला गया। पं डत आराम से नहाये-धोये, परू ा-पाठ और भोजन Jकया, Jफर पं डताइन से भेद पूछकर राज-दरबार कओर चले। पं डत ने पहुंचते ह+ कहा, “राजन, मंगवाइये वे तीनL &सर कहां ह^ ?” राजा ने तीनL &सर मंगवा Mदये। पं डत ने उ.हे चारL ओर इधर-उधर उलट-पलटकर दे खा और कहा, “एक सोने क सलाई मंगवा द+िजये।” सलाई मंगवायी गई। पं डत ने एक &सर को उठाकर उसके कान म सलाई डाल+। चारL ओर Mहलाई-धुलाई, पर वहकह+ं से न नकल+। पं डत कहने लगा, “यह आदमी बड़ा गंभीर है , इसका भेद नह+ं &मलता। दे Wखये महाराज, इसका मi ू य अमi ू य है ।” Jफर दस ू रा उठाकर उसके कान म सलाई डाल+। Mहलाई-डुलाई तो सलाई उसके मुंह से नकल आई। वह कहने लगा, “आदमी कानका कुछ कoचा है , जो कान से सुनता है , वह मुंह से कह डालता है । &लWखये, महाराज, इसका मूiय दस हजार Pपया।” पं डत ने तीसरा &सर उठाया, उसके कान से सलाई डालते ह+ उसके मंह ु , नाक, आंख सभी जगह से पार हो गई। उसने मुंह बनाकर कहा, “अरे , यह आदमी Jकसी काम का नह+ं। यह कोई भेद नह+ं छपा सकता। &लWखये, महाराज, इकस मूiय दो कौड़ी।
ऐसे कान के कoचे तथा चुगलखोर आदमी का मi ू य दो कौड़ी भी बहुत है ।” पं डत का उCतर सुनकर राजा Bस.न हुआ। उसने पं डत को बहुत-सा धन, ह+रा-जवाहारात दे कर "वदा Jकया। इधर राजा ने तीनL &सरL का मूiय &लखकर राजा इ.1 के दरबार म &भजवा Mदया। इं1 Bस.न हुए। सारे राcय म सोना बरसा। Bजा खुशहाल हो गयी। गढ़वाल क लोककथा फयूंल+ / गो"व.द चातक पहाड़ क चोट+ पर, खेतL क मेड़L पर, एक पीला फूल होता है । लोग उसे ‘फयंल ू +’ कहते ह^। कह+ं एक घना जंगल था। उस जंगल म एक ताल था और उस ताल के पास नर+-जैसी एक वन-क.या रहती थी। उसका नाम था फयंल ू +। कोसL तक वहां आदमी का नाम न था। वह अकेल+ थी, बस उसके पास वनके जीव-ज.तु और प0ी रहते थे। वे उसके भाई-बहन थे-बस jयार से पाले-पोसे हुए। यह+ उसका कुटु`ब था। वह उन सबक अपनी-जैसी थी। Mहरनी उसके गीतL म अपने को भूल जाती थी। फूल
उसे घेरकर हं सते थे, हर+-भर+ दब ू उसके पैरL के नीचे बछ जाती और भोर के पंछ- उसे जगाने को चहचहा उठते थे। वहउनसबक jयार+ थी। वह बहुत खुश थी। स. ु दर भी थी। उसके चेहरे पर चांद उतर आया था। उसके गालL म गुलाब Wखले थे। उसके बालL पर घटाएं घर+ थीं। ताल के पानी क तरह उसक जवानी भरती जा रह+ थी। उस Pप को न Jकसी ने आंखL से दे खा था, न हाथL से छुआ था। उस धरती पर कभी आदमी क काल+ छाया न पड़ी थी। पाप के हाथL ने कभी फूलL क प"वHता को मैला न Jकया था। इसी&लए िज.दगी म कह+ं लोभ न था, शोक न था। सब ओर शांत और प"वHता थी। फयूंल+ नडर होरक वनL म घूमती, कंु जL म पेड़L के नये पCते बछाकर लेटती, लेटकर पंछयL के सुर म अपना सुर &मलाती, Jफर फूलL क माला बनाती और नMदयL क कल-कल के साथ नाचने लगती। थी तो अकेल+, पर उसक िज.दगी अकेल+ न थी। एक Mदन वह यL ह+ बैठ- थी। पास ह+ झरझर करता एक पहाड़ी झरना बह रहा था वहां एक बड़े पCथर का सहारा &लए वह जलम पैर डाले एक Mहरन के बoचे को दल ु ार रह+ थी। आंख पानी क उठती तरं गL पर लगी थीं, पर मन न जाने Jकस मनसूबे पर चांदनी-सा
मa ु करा रहा था। तभी Jकसी के आने क आहट हुई। Mहरनका बoचा डर से चtका। फयल ू + नेमुड़कर दे खा तो एक राजकुमार खड़ा था। कमलके फल जैसा कोमल और Mहमालय क बरफ जैसा गोरा। फयंल ू + ने आज तक Jकसी आदमी को नह+ं दे खा था। उसे दे खकर वह चांदसी शरमा गई, फूल-सी कु`हला गई। राजकुमार jयासा था। मन उसका पानी म था, पर फयूल+ को दे खते ह+ वह पानी पीला भूल गया। फयंूल+ अलग सरक गयी। राजकुमार ने अंज&ु ल बनायी और पानी पीने लगा। पानी "पया तो फयंल ू + ने राजकुमार से पछ ू ा, “&शकार करने आये हो ?” राजकुमार ने कहा, “हां।” फयूंल+ बोल+, “तो आप चले जाइये। यह मेरा आpम है । यहां सब जीव-ज.तु मेरे भाई-बहन ह^। यहां कोई Jकसी को नह+ं मारता। सब एक-दस ू रे को jयार से गले लगाते ह^।” राजकुमार हं सा। बोला, “म^ भी नह+ं माPंगा। यहां खेल-खेल म चला आया था। खैर, न &शकार &मला, न अब &शकार करने क इoछा है । इतनी दरू भटक गया हूं Jक…..” इतना कहकर राजकुमार चुप हो गया। Jफर कुछ समय के &लए कोई कोई Jकसी से नह+ं बोला। फयूंल+ ने आंखL क कोर से उसे Jफर एक
बार दे खा। वह सोच न पाई Jक आगे उससे Oया कहे , Oया पूछे, पर न जाने वह OयL उसे अoछा लगा। यL ह+ उसके मुख से नकल पड़ा, “आप थके ह^। आराम कर ल+िजये।” राजकुमार एक पCथर के ऊपर बैठ गया। सं;या हाने लगी थी। आसमान लाल हुआ। वन म लौटते हुए पश-प/0यL का कोलाहल गूंज उठा। दे खते-ह+-दे खते फयूल+ के सामने कंद-मूल और जंगल+ फलL का ढे र लग गया। यह रोज क ह+ बात थी। रोज ह+ तो वन के पशुप0ी-उसके वे भाई-बहन-उसके &लए फल-फूल लेकर आते थे। वह उन सबक रानी जो थी। राजकुमार ने यह दे खा तो बाला, “वनदे वी, तुम ध.य हो! Jकतना सख ु है यहां ! Jकतना अपनापन है ! काश, म^ यहां रह पाता !” फयूंल+ ने टोका, “बड़L के मुंह से छोट+ बात शोभा नह+ं दे तीं। तुम यहां रहकर Oया करोगे ? राजकुमार को वनL से कया लेना-दे ना। उ.ह तो अपनेमहल चाMहए, बड़े-बड़े शहर चाMहए, जहां उ.ह राज करना होता है ।” राजकुमारने कहा, “जंगल म ह+ मंगल है , तुम भी तो राज ह+ कर रह+ हो यहां।”
फयंल ू + मa ु करा उठ-। बोल+, “नह+ं।” अंधेरा हो चुका था। फयूंल+ ने राजकुमार का फूलL से अ&भन.दन Jकया ओर Jफर वह अपनी गुफा म चल+ गई। राजकुमार भी पेड़ के नीचे लेट गया। सांझ का अaत होता सूरज Jफर सुबह को पहाड़ क चोट+ पर आ झांका। राजकुमार जागा तो उसे घर का Xयाल आया। वह उदास हा उठा। फयंल ू + उसके BाणL म Wखलनेको आकुल हो उठ-। अब उसका जाने का जी नह+ं कर रहा था। सब ु ह कलेवा लेकर फयंूल+ आई तो राजकुमार मन क बात न रोक सका, बाला, “एक बात कहना चाहता हूं। सुनोगी ?” फयंल ू + ने पछ ू ा, “Oया ?” राजकुमार कुछ Wझझका, पर Mह`मत करके बोला, “मेरे साथ चलोगी ? म^ तु`ह राजरानी बनाकर पज ू ंग ू ा।” फयूंल+ ने कहा, “नह+ं, रानी बनकर म^ Oया कPंगी।” राजकुमार ने कहा, “म^ तु`ह jयार करता हूं। तु`हारे बना जी नह+ं कसता।”
फयंल ू + ने जवाब Mदया, “पर वहां यह वन, ये पेड़, ये फूल, ये नMदयां और ये प0ी नह+ं हLगे।” राजकुमार ने कहा, “वहां इससे भी अoछ--अoछ- चीज ह^। मेरे राजमहल म हर तरह से सख ु से रहोगी। यहां वन म Oया रखा है !” फयूंल+ ने कहा, “आदमी ने अपने &लए एक बनावट+ िज.दगी बना रखी है । उसे म^ सुख नह+ं मानती।” राजकुमार इसका Oया जवाब दे ता ! फयूंल+ ने सोचा-इतनी सुंदरता, इतना jयार, सचमुच मुझे आद&मयL के बीच कहां &मलेगा ? आदमी एक-दस ू रे को सुखी बनाने के &लए संगMठत जPर हुआ है , पर वह+ सहं गठन उसके द:ु खL का कारण भी है । आज म^ अकेल+ हूं, पर मेरे Mदल म डाह नह+ं है , कसक नह+ं है । पर वहां? वहां इतना खुलापन कहां होगा। पर उसके भीतर बैठा कोई उससे कुछ और भीकह रहा था। आWखर नार+ को सुहाग भी तो चाMहए। यौवन म लालसा हाती ह+ है । वह एकदम कांप उठ-; पर अंत म उसक भावना उसे राजकुमार के साथ खींच ले ह+ गई।उसने राजकुमार क बात मान ल+।
Jफर Oया था ! वे दोनL उसी Mदन चल पड़े। पशु-प0ी आये। सबने उ.ह "वदा द+। उनक आंखL म आंसू थे। राजकुमार उसे लेकर अपने राcय म पहुंचा। दानL बेहद खुश थे। वह अब रानी थी। राजकुमार उसे BणL से cयादा jयार करता था। वहां वन से भी cयादा सख ु था। राजमहल म भला Jकस बात क कमी हो सकती थी ! खाने के &लए तरह-तरह के भोजन थे, सेवा के &लए दा&सयां ओर Mदल बहलाने Jक &लए नत8Jकयां। यह+ नह+ं, Mदखाने के &लए ऐ@वय8 और जताने के &लए अZधकार था। Mदन बीतते गये। सुबह का सूरज शाम को ढलता रहा। कई MदनL तक उसके भाई-बहन उसे याद करते रहे । पर वह+ तो गई थी, बाक जो जहां था, वह+ं था। कुछ Mदन बाद पंछ- पहले क तरह बोलने लगे, फूल फूलने लगे। पर एक Mदन फयूंल+ को लगा, जैसे उसके जीवन क उमंग खो गई हो। राजमहल म ह+रे ओर मोतयL क चमक जPर थी, पर न फूलL कासा भोलापन ,था और न पंछयL क-सी प"वHता थी। अब राजमहलक द+वार जैसे उसक सांस घोटे दे रह+ थीं।उसे लगता, जैसे वह वनउसे पुकार रहा है । अब उसके पास उसके भाई-बहन कहां थे?
आदमी थे, डाह थी, लोभ था, लालच था। पर वह तो नम8ल jयार क भख ू ी थी। Jफर उस जीवन म उसके &लए कोई रस न रहा। वह उदास रहने लगी। उसे एकांत अoछा लगने लगा। राजकुमार नेउसे खुश करने क लाख को&शश कं, पर उसका कु`हलाया मन हरा न हो सका। कुछ Mदन म उसक तबीयत खराब हो गई और वह बaतर पर जा पड़ी। थोड़ी ह+ MदनL म उसका चमकता चेहरा पीला पड़ गया। वह मरु झा गई। Jकसी पौधे को एक जगह से उखाड़कर दस ू र+ जगह लगा दे ने क को&शश बेकार गई। उसके जीने क अब कोई आशा न रह+। एक Mदन उसने राजकुमार से कहा, “म^ अब नह+ं जीऊंगी। मेर+ एक आWखर+ चाह है । परू + करोगे?” राजकुमार ने कहा, “जPर।” फयूंल+ ने ल`बी सांस लेते हुए कहा, “कभी अगर &शकार को जाओ तो मेरे वन के उन भाई-बहनL को मत मारना और जब म^ मर जाऊं तो मुझे पहाड़ क उसी चोट+ पर गाड़ दे ना, जहां वे रहते ह^।” इसके बाद, उसके Bाण पखेP उड़ गये।
राजकुमार ने उसे उसी पहाड़ क चोट+ पर गाड़कर उसक आWखर+ इoछा परू + क। वन के पशु-प/0यL ने-उसके उन भाई-बहनL ने-सुना तो बड़े द:ु खी हुए। हवा ने &ससक भर+, फल Zगर गये और लताएं कु`हला उठ-ं। राजकुमार मन मसोसकर रह गया। आदमी ह+ मरते ह^। धरती सदा अमर है । एक ओर पेड़ सख ू ता है , दस ू र+ ओर अंकुर फूटते ह^। इसी का नाम िज.दगी है । कुछ Mदन बाद Jफर BाणL क एक &ससक सुनाई द+। पहाड़ क चोट+ पर, जहां फयूंल+ गाड़ द+ गई थी, वहां पर एक पौधा और उस पर एक सु.दरसा फूल उग आया और लोग उसे फयूंल+ कहने लगे। ज क लोककथाएं चतरु + चमार / यशपाल जैन Jकसी गांव म एक चमार रहता था। वह बड़ा ह+ चतुर था। इसी&लए सब उसे ‘चतरु + चमार’ कहा करते थे। घर म वह और उसक aHी थी। उनक गज ु र-बसर जैसे-तैसे होती थी, इससे वे लोग है रान रहते थे। एक Mदन चतुर+ ने सोचा Jक गांव म रहकर तो उनक हालत सुधरने से रह+, तब OयL न वह कुछ Mदन के &लए शहर चला जाय और वहां से थोड़ी कमाई कर लाय ? aHी से सलाह क तो उसने भी जाने कह अनुमत दे द+। वह शहर पहं च गया।
मेहनती तो वह था ह+। सूझबझ ू भी उसम खब ू थी। कुछ ह+ MदनL म उसने सौ hपये कमा &लये। इसके बाद वह गांव को रवाना हो गया। राaते म घना जंगल पड़ता था। जंगल म डाकू रहते थे। चतरु + ने मन-ह+-मन कहा Jक वह hपये ले जायगा तो डाकू छ-न लगे। उसने उपाय खोजा। एक घोड़ी खर+द+ ओर कुछ hपये उसक पूंछ म बांधकर चल Mदया। दे खते-दे खते डाकुओं ने उसे घेरा। बोले, “बड़ी कमाई करके लाया है चतुQरया। ला, नकाल hपये।” चतुर+ ने कहा, “hपये मेरे पास कहां ◌ै◌ं, जो थे उससे यह घोड़ी खर+द लाया हूं। इस घोड़ी क बड़ी करामात है । मुझे यह रोज पचास hपये दे ती है ।” इतना कहकर उसने मारा पंछ ू म डंडा Jक खन-खन करके पचास hपये नकल पड़े। डछाकुओं का सरदार बोला, “सुन भाई, यह घोड़ी तुमने Jकतने म खर+द+ है ?” चतरु + ने कहा, “OयL ? उससे तु`ह Oया ?” वह बोला, “हम hपये नह+ं चाMहए। यह घोड़ी दे दो।”
“नह+ं,” चतुर+ ने ग`भीरता से कहा, “म^ ऐसा नह+ं कर सकता, मेर+ रोजी क आमदनी बंद हो जायेगी।” सरदार बोला, “ये ले, घोड़ी के &लए सौ hपये।”
चतरु + ने और आह करना ठ-क नह+ं समझा। hपये लेकर घोड़ी उ.ह दे द+ और गांव क ओर चल पड़ा। घर आकर सारा Jकaसा अपनी aHी को सुना Mदया। उसने कहा, “हो-न-हो, दो-चार Mदन म डाकू यहां आये बना नह+ं रह गे। हम तैयार रहना चाMहए।” अगले Mदन वह खरगोश के दो एक-से बoचे ले आया। एक उसने aHी को Mदया। बोला, “म^ रात को बाहर क कोठर+ म बैठ जाया कPंगा। जैसे ह+ डाकू आय, इस खरगोश के बoचे को यह कहकर छोड़ दे ना Jक जा, चतुर+ को &लवा ला। आगे म^ संभाल लूंगा।” डाकुओं का सरदार घोड़ी को लेकर अपने घर गया और रात को आंगन म खड़ा करके पूंछ मे डंडा मारा और बोला, “ला, hपये।” hपये कहां से आते? उसने कस-कसकर कई डंडे पहले तो पूंछ म मारे , Jफर कमर म । घोड़ी ने ल+द कर द+, पर hपये नह+ं Mदये। सरदार समझ गया Jक चतरु + ने बदमाशी क है , पर उसने अपने साZथयL से कुछ भी नह+ं कहा। घोड़ी दस ू ू रे के यहां गई, तीसारे के यहां गई, उसक खब मर`मत हुई, पर रपये बेचार+ कहां से दे ती? चतुर+ ने उ.ह मूख8 बना Mदया, ◌ेJकन इस बात को अपने साथी से कहे तो कैसे? उसकं हं साई जो होगी। आWखर पांचव डाकू के यहां जाकर घोड़ी ने दम तोड़ Mदया। तब भेद खुला।
Jफर सारे डाकू &मलकर एक रात को चतरु + के घर पहुंच गये। दरवाजा खटखआया। चतरु + क घरवाल+ नेखोल Mदया। सरदार ने पूछा, “कहां है चतुर+ का बoचा?” aHी बोल+, “वह खेत पर गये ह^। आप लोग बैठ। म^ अभी बुला दे ती हूं।” इतना कहकर उसने खरगोश के बoचे को हाथ म लेकर दरवाजे के बाहर छोड़ Mदया और बोल+, “जा रे चतुर+ को फौरन &लवा ला।” 0ण भर बाद ह+ डाकुओं ने दे खा Jक चतुर+ खरगोश के बoच ्◌े को हाथ म &लए चला आ रहा है । आते ह+ बोला, “आप लोगL ने मझे बलाया है । इसके पहुंचते ह+ म^ चला आया। वाह रे खरगोश! “ डाकू गुaसे म भरकर आये थे, पर खरगोश को दे खते ह+ उनका गुaसा काफूर हो गया। सरदार ने अचरज म भरकर पूछा, “यह तु`हारे पास पहुंचा कैसे ?” चतुर+ बोला, “यह+ तो इसक तार+फ है । म^ सातव आसमान पर होऊं, तो वहां से भी &लवा ला सकता है ।”
सरदार ने कहा, “चतरु +, यह खरगोश हम दे दे । हमलोग इधर-उधर घूमते रहते ह^ और हमार+ घरवाल+ परे शान रहती है । वह इसे भेजकर हम बुलवा &लया करे गी।” दस ू रा डाकू बोला, “तूने हमारे साथ बड़ा धोखा Jकया है । hपये ले आया और ऐसी घोड़ी दे आया Jक िजसने एक पैसा भी नह+ं Mदया और मर गई। खैर, जो हुआ सो हुआ। अब यह खरगोश दे ।” चतरु + ने बहुत मना Jकया तो सरदार ने सौ hपये नकाले। बोला, “यह ले। ला, दे खरगोश को।” चतुर+ ने hपये ले &लये और खरगोश दे Mदया। डाकू चले गये। चतुर+ ने आगे के &लए Jफर एक चाल सोची। उधर डाकुओं के सरदार ने खरगोश को घर ले जाकर अपनी aHी को Mदया ओर उससे कह MदयाJक जब खाना तैयार हो जाय तो इसे भेज दे ना। और वह बाहर चला गया। दोaतL के बीच बैठा रहा। राह दे खते-दे खते आधी रात हो गई, पर खरगोश नह+ं आया, तो वह झiलाकर घर पहुंचा और aHी पर उबल पड़ा। aHी ने कहा, “तुम नाहक नाराज होते हो। म^ने तो घंटL पहले खरगोश को भेज Mदया था।”
सरदार समझ गया Jक यह चतरु +क शैतानी है । वे लोग तीसरे Mदन रात को Jफर चतरु + के घर पहुंच गये। उ.ह दे खते ह+ चतुर+ ने अपनी aHी से कहा, “इनके hपये लाकर दे दे ।” aHी बोल+, “म^ नह+ं दे ती।”
“नह+ं दे ती ?” चतरु + गरजा और उसने कुiहाड़ी उठाकर अपनी aHी पर वार Jकया। aHी लहुलुहान होकर धरती पर Zगर पड़ी और आंख मुंद गb। डाकू दं ग रह गये। उ.हLने कहा, “अरे चतुर+, तूने यह Oया कर डाला ?” चतुर+ बोला, “तुम लोग Zचंता न करो। यह तो हम लोगL क रोज क बात है । म^ इसे अभी िजंदा Jकये दे ता हूं।” इतना कहकर वह अंदर गया और वहां से एक सारं गी उठा लाया। जैसे ह+ उसे बजाया Jक aHी उठ खड़ी हुई। चतरु + ने उसे पहले से ह+ &सखा रखा था ओर खून Mदखाने के &लए वैसा रं ग तैयार कर &लया था। नाटक को असल+ समझकर डाकुओं का सरदार चJकत रह गया। उसने कहा, “चतुर+ भैया, यह सारं गी तू हम दे दे ।”
चतरु + ने बहुत आना-कानी क तो सरदार ने सौ hपये नकाल कर दसे और दे Mदये और सारं गी लेकर वे चले गये। घर पहुंचते ह+ सरदार ने aHी को फटकारा और aHी कुछ तेज हो गई तो उसने आव दे खा न ताव, कुiहाड़ी लेकर गद8 न अलग कर द+। Jफर सारं गी लेकर बैठ गया। बजाते-बजाते सारं गी के तार टूट गये, लेJकन aHी ने आंख नह+ं खोल+ं। सरदार अपनी मूखत 8 ा पर &सर धुनकर रह गया। पर अपनी बेवकूफ क बात उसने Jकसी को बताई नह+ं और एक के बाद एक सार+ िaHयL के &सर कट गये। भेद खुला तो डाकुओं का पारा आसमान पर चढ़ गया। वे फौरन चतरु + के घर पहुंचे और उसे पकड़कर एक बोर+ म बंद कर नद+ म डुबोने ले चले। रात भर चलकर सवेरे वेएक मंMदर पर पहुंचे। थोड़ी दरू पर द+ थी। उ.हLने बोर+ को मंMदर पर रख Mदया और और सब नबटने चले गये। उनके जाते ह+ चतरु + Zचiलाया, “मुझे नह+ं करनी। मुझे नह+ं करनी।” संयोग से उसी समय एक Aवाला अपी गाय-भ^स लेकर आया। उसने आवाज सुनी तो बोर+ के पास गया। बोला “Oया बात है ?” चतुर+ ने कहा, “Oया बताऊं। राजा के लोग मेरे पीछे पड़े है । Jक राजकुमार+ से
"ववाह कर लू। लेJकन म कैसे कPं, लड़क कानी है । ये लोग मझ ु े पकड़कर ]याह करने ले जा रहे ह^।” Aवाला बोला, “भेया, ]याह नह+ं होता । म^ इसके &लए तैयार हूं।” इतना कहकर Aवाले ने झटपट बोर+ को खोलकर चतुर+ को बाहर नकाल Mदया और aवयं बंद हो गया। चतुर+ उसक गाय-भ^स लेकर नौ-द+-Aयारह हो गया। थोड़ी दे र म डाकू आये और बोर+ ले जाकर उ.हLने नद+ म पटक द+। उ.ह संतोष हो गया Jक चतुर+ से उनका पीछा छूट गया, लेJकन लौटे तो राaते म दे खते Oया ह^ Jक चतुर+ सामने है । उ.ह अपनी आंखL पर "व@वास नह+ं हुआ। पास आकर चतरु + से पूछा, “Oया बे, तू यहां कैसे ?” वह बोला, आप लोगL ने मुझे नद+ म उथले पानी म डाला, इस&लए गाय-भ^स ह+ मेरे हाथ पड़ी, अगर गहरे पानी म डाला होता तो ह+रे जवाहरात &मलते।” ह+रे -जवाहरात का नाम सुनकर सरदार के मुंह म पानी भर आया। बोला, “भैया चतुर+, तू हम ले चल और ह+रे -जवाहरात Mदलवा दे ।”
चतरु + तो यह चाहता ह+ था। वव उ.ह लेकर नद+ पर गया। बोला,
“दे खो, िजतनी दे र पानी म रहोगे, उतना ह+ लाभ होगा। तुम सब एकएक भार+ पCथर गले म बांध लो।” लोभी Oया नह+ं कर सकता ! उ.हLने अपने गलL म पCथर बांध &लये और एक कतार म खड़े हो गये। चतरु + ने एक-एक को धOका दे कर नद+ म Zगरा Mदया। सारे डाकुओं से हमेशा के &लए छुटकारा पाकर चतरु + चमार गाय-भ^स लेकर खुशी-खुशी घर लौटा और अपनी aHी के साथ आन.द से रहने लगा। &संहल 6वीप क पMदमनी / आदश8 कुमार+ Jकसी जंगल म एकसु.दर बगीचा था। उसम बहुत-सी पQरयां रहती थीं। एक रात को वे उड़नखटोले म बैठकर सैर के &लए नकल+ं। उड़ते-उड़ते वे एक राजा के महल क छत से होकर गज ु र+ं। गरमी के Mदन थे, चांदनी रात थी। राजकुमार अपनी छत पर गहर+ नींद म सो रहा था। पQरयL क रानी क नगाह इस राजकुमार पर पड़ी तो उसका Mदल डोल गया। उसके जी म आया Jक राजकुमार को चुपचाप उठाकर उड़ा ले जाय, परं तु उसे प| ृ वीलोक का कोई अनुभव नह+ं था, इस&लए उसने ऐसा नह+ं Jकया। वह राजकुमार को बड़ी दे र तक
नहारती रह+। उसक साथवाल+ पQरयL ने अपनी रानी क यह हालत भांप ल+। वे मजाक करती हुई बोल+ं, “रानीजी, आद&मयL क दु नया से मोह नह+ं करना चाMहए। चलो, अब लौट चल। अगर जी नह+ं भरा तो कल हम आपको यह+ ले आयंगी।” पर+ रानी मa ु करा उठ-। बोल+, “अoछा, चलो। म^ने कब मना Jकया ? लगता है , िजसने मेरे मन को मोह &लया है , उसने तुम पर भी जाद ू कर Mदया है ।” पQरयां यह सुनकर WखलWखलाकर हं स पड़ीं और राजकुमार क Bशंसा करती हुb अपने दे श को लौट गb। सवेरे जब राजकुमार सोकर उठा तो उसके शर+र म बड़ी ताजगी थी। वह सोचता Jक Mहमालय क चोट+ पर पहुंच जाऊं या एक छलांग म समु.दर को लांघ जाऊं। तभ वजीर ने आकर उसे खबर द+ Jक राजा क हालत बड़ी खराब है और वह आWखर+ सांस ले रहे ह^। राजकुमार क खुशी काफूर हो गयी। वह तुरंत वहां पहुंच गया। राजा ने आंख खोल+ं और राजकुमार के &सर पर हाथ रखता हुआ बोला, “बेआ, वजीर साहब तु`हारे "पता के ह+ समान ह^। तुम सदा उनक बात का Xयाल रखना।”
इतना कहते-कहते राजा क आंख सदा के &लए मंद ु गयीं। राजकुमार फूट-फूटकर रोने लगा। राजा क मCृ यु पर सारे नगर ने शोक मनाया। कहने को तो राजकुमार अब राजा हो गया था, पर अपने "पता क आ?ानुसार वह कोई भी काम वजीर क राय के बना नह+ं करता था। एक Mदन वजीर राजकुमार को महल के कमरे Mदखाने ले गया। उसने सब कमरे खोल-खोलकर Mदखा Mदये, लेJकन एक कमरा नह+ं Mदखाया। राजकुमार ने बहुत िजद क, पर वजीर कैसे भी राजी न हुआ। वजीर का लड़का भी उस समय साथ था। वह राजकुमार का बड़ा गरा &मH था। उसने वजीर से कहा, ‘"पताजी, राजपाट, महल और बाग-बगीचे सब इ.ह+ं के तो ह^ आप इ.ह रोकते OयL ह^ ?” वजीर ने कहा, “बेटा, तुम ठ-क कहते हो। सब कुछ इ.ह+ं का है , लेJकन मंहाराज ने मरते समय मुझे हुOम Mदया था Jक इस कमरे म राजकुमार को मत ले जाना। अगर म^ ऐसा कPंगा तो राज को बड़ा बुरा लगेगा।” वजीर का लड़का थोड़ी दे र तक सोचता रहा। Jफर बोला, “लेJकन "पताजी, अब तो राजकुमार ह+ हमारे महाराज है । उनक बात मानना हम सबके &लए जPर+ है । अगर आप राजा के द:ु ख का इतना ;यान
रखते ह^ तो हमारे इन राजा के द:ु ख का भी तो ;यान रWखये ओर दरवाजा खोल द+िजये। राजकुमार को दख ु ी दे खकर हमारे राजा को भी शांत नह+ं &मलेगी।” वजीर ने cयादा हठ करना ठ-क न समझ और चाबी अपने बेटे के हाथपर रख द+। ताला खोलकर तीनL अंदर पहुंचे। कमरा बड़ा संदर था। छत पर तरह-तरह के कमती झाड़-फानूस लटक रहे थे और फश8 पर मखमल के गल+चे बछे हुए थे। द+वार पर सुंदर-सुंदर िaHयL क तaवीर लगी थीं। यकायक राजकुमार क नगाह एक बड़ी सुंदर युवती क तaवीर पर पड़ी। उसने वजीर से पूछा Jक यह Jकसक है ? वजीर को िजसका डर था, वह+ हुआ। उसे बताना ह+ पड़ा Jक वह &संहल6वीप क पMदमनी क है । राजकुमार उसक सु.दरता पर ऐसा मोMहत हुआ Jक उसी Mदन उसने वजीर से कहा, “म^ पMदमनी से ह+ ]याह कPंगा। जबतक पMदमी मुझे नह+ं &मलेग, म^ राज के काम म हाथ नह+ं लगाऊंगा।” वजीर है रान होकर बोला, “राजकुमार, &सहं ल6वीप पहुंचना आसान काम नह+ं है । वह साम समु.दर पार है । वहां भी जाओ तो शाद+ करना तो दरू , उससे भ ट करन भी अस`भव है । उसक तलाश म जो भी गया,
लौटकर नह+ं आया। Jफर ऐसे अनहोने काम म हाथ डालने क सलाह म^ आपको कैसे दे सकता हूं?” पर राजकुमार अपनी बात पर अड़ा रहा। वजीर का लड़का उसका साथ दे ने को तैयार हो गया। वे दोनL घोड़े पर सवार होकर चल Mदये। चलते-चलते Mदन डूब गया। वे एक बाग म पहुंचे और अपने-अपने घोड़े खोल Mदये। हाथ-मुंह धोकर कुछ खाया-"पया। वे थके हुए तो थे ह+, चादर बछाकर लेट गये। कुछ दे र के बाद ह+ गहर+ नींद म सो गये। आंख खुल+ और चलने को हुए तो दे खते कया ह^ Jक बाग का फाटक बंद हो गया है और वहां कोई खोलने वाल नह+ं है । बगीचे के बीचL-बीच संगमरमर का एक चबूतरा था। आधी रात पर वहां काल+न बछाये गये, फूलL और इH क सुगंZध चारL ओर फैलने लगी। Jफर चबूतरे पर एक सोने का &संहासन रख Mदया गया। कुछ ह+ दे र म घर-घर करता हुआ एक उड़नखटोला वहां उतरा। उसके चारL पायL को एक-एक पर+ पकड़े हुए थी और उस पर उनक रानी "वराजमान थीं। चारL पQरयL ने अपनी रानी को सहारा दे कर नीचे उतारा और रCनज ड़त सोने के &संहासन पर बठा Mदया। पर+रानी ने इधर-उधर दे खा और अपनी सWखयL से कहा, “वह दे खो, पेड़ के नीचे
चादर बछाये दो आदमी सो रहे ह^। उनम से एक वह+ राजकुमार है । उसे तरु ं त मेरे सामने लाओ।” हुOम करने क दे र थी Jक पQरयां सोते हुए राजकुमार को अपनी रानी के सामने ले आb। राजकुमार क आंख खल ु गई और वह पQरयL कजगमगाहट से चकाचtध हो गया। पQरयL को अपने आगे-पीछे दे खकर उसे बड़ा डर लगा और हाथ जोड़कर बोला, “मुझे जाने द+िजये।” पर+ रानी ने मुaकराते हुए कहा, “राजकुमार, अब तुम कह+ं नह+ं जा सकते। तु`ह मुझसे "ववाह करना होगा।” राजकुमार बड़ी मस ु ीबत म पड़ गया। बाला, “पर+ रानी, म^ 0मा चाहता हूं। म^ &संहल6वीप क पMदमनी क तलाश म नकला हूं। इस समय मै। "ववाह नह+ं कर सकता।” पर+ ने कहा, “भोले राजकुमार, &संहल6वीप क पMदमनी तक आदमी क पहुंच स`भव नह+ं है । वह दै वी शिOत के बना कभी नह+ं &मल सकती। अगर तुम मुझसे "ववाह कर लोगे तो म^ तु`ह ऐसी चीज दं ग ू ी, िजससे &संहल6वीप कपMदमनी तु`ह आसानी से &मल जायेगी।”
राजकुमार यह सुनकर बड़ा खुश हुआ और बोला, “पर+ रानी, म^ तुमसे जPर शाद+ कPंगा, पर तु`ह मेर+ एक बात माननी होगी। म^ जब पMदमनी को लेकर लौटूंगा तभी तु`ह अपने साथ ले जा सकंू गा। म^ Bत?ा करता हूं Jक मेर+ इस बात म कोई हे र-फेर नह+ं होगी।” पर+ ने Bस.न होकर अपनी अंगठ ू - उतार+ और राजकुमार क उं गल+ म पहनाती हुई बोल+, “यह अंगूठ- जबतक तु`हारे पास रहे गी कोई भी "वपिCत तु`हारे ऊपर असार न करे गी। इसके पास रहने से तु`हारे ऊपर Jकसी का जाद-ू टोना नह+ं चल सकेगा।” अंगूठ- दे कर पर+ रानी आकाश म उड़ गई। राजकुमार वजीर के लड़के के पा आकर सो गया। सवेरे उन दोनL ने दे खा Jक बगीचे का फाटक खुला हुआ है । वे दोनL घोड़L पर सवार होकर चल Mदये। पMदमनी से &मलने क राजकुमार को ऐसी उतावल+ थी Jक वह इतना तेज चला Jक वजीर का लड़का उससे बछुड़ गया। चलते-चलते राजकुमार एक ऐसे शहर म पहुंचा, जहां हर दरवाजे पर तलवार -ह+-तलवार टं गी हुई थीं। एक दरवाजे पर उसने एक बुMढ़या को बैठे हुए दे खा। उसे बड़े जोर क jयास लगी थी। पानी पीने के &लए वह बुMढ़या के पास पहुंच गया। बुMढ़या झूठ-मूठ का लाड़ Mदखाती हुई बोल+, “हाय बेटा ! तू बड़े
MदनL के बाद Mदखाई Mदया है । तू तो मुझे पहचान भी नह+ं रहा। भूल गया अपनी बुआ को ?” यह कहते-कहते उसने राजकुमार को yदय से लगा &लया और चुपचाप उसक अंगठ ू - उतार ल+। इसके बाद उसने राजकुमार को मOखी बनाकर द+वार से Zचपका Mदया। उधर वजीर के लड़के को राजकुमार+ क तलाश म भटकते-भटकते बहुत Mदन नकल गये। अंत म उसे एक उपाय सूझा। वह पर+ रानी के बगीचे म पहुंचा और रात को एक पेड़ पर चढ़ गया। आधी-रात को पर+ रानी उसी चबूतरे पर उतर+। वह वजीर के लड़के क "वपदा को समझ गई। उसने उसे सामने बुलाकर कहा, “यहां से सौ योजना क दरू + पर एक जंगल है । उसने उसे सामने बुलाकर कहा, “यहां से सौ योजन क दरू + पर एक जंगल है । उसम तरह-तरह के Mहंसक पशु रहते ह^। वहां ताड़ के पेड़ पर एक "पंजड़ा टं गा हुआ है । उसम एक तोता बैठा है । उस तोते म उस जादग ू रनी को जान है , िजसने तु`हारे राजकुमार को मOखी बनाकर अपने घर म द+वार से Zचपका रOखा है । वजीर के लड़के ने पछ ू ा, “इतनी दरू म^ कैसे पहुंच सकता हूं?”
पर+ रानी ने वजीर के लड़केको अपने कान क बाल+ उतारकर द+और कहा Jक इसको पास रखने से तुम सौ योजन एक घंटे म तय कर लोगे। इसम एक &सफत यह भी है Jक तुम सबको दे ख सकोगे औरत तु`ह कोई नह+ं दे ख पायगा। इस Bकार तोते के "पंजड़े तक पहुंचने म तु`ह कोई कMठनाई नह+ं होगी और तोते को मारना तु`हारे बांये हाथ का खेल होगा। वजीर का लड़का बाल+ लेकर खुशी-खुशी जंगल क ओर चल Mदया। पेड़ के पास पहुंचकर उसने "पंजड़ा उतारा ओर तोते क गद8 न मरोड़ डाल+। इधर तोते का मरना था Jक जादग ू रनी का भी अंत हो गया। वजीर का लड़का वहां से जादग ू रनी के घर पहुंचा। जरदग ू रनी क उं गल+ से जैसे ह+ उसने अंगूठ- खींची Jक राजकुमार मOखी से Jफर आदमी बन गया। वजीर के लड़के से &मलकर राजकुमार खुशी के मारे उछल पड़ा। वजीर के लड़के ने राजकुमार को सारा Jकaसा कह सुनाया। अब दोनL साथ-साथ पMदमनी से &मलने चल Mदये। चलते-चलते वे बहुत थक गये थे। रात भर के &लए वे एक सराय म hक गये। राजकुमार सो रहा था। उधर से "वमान म बैठकर महादे व-पाव8ती नकले। दोनL बातचीत करते चले जा रहे थे। यकायक महादे वजी ने
कहा, “पाव8ती, इस नगर क राजकुमार+ बहुत संद ु र और गण ु वती है । राजा उसक शाद+ एक काने राजकुमार के साथ कर रहा है । अगर ]याह हो गया तो जनमभर राजकुमार+ को काने के साथ रहना पड़ेगा। म^ इसी सोच म हूं Jक इस सु.दर+ को काने से कैसे छुटकारा Mदलाऊं
?” पाव8तीजी ने नीचे सोये हुए राजकुमार क ओर इशारा करते हुए कहा,
“दे Wखये जरा नीचे क ओर, Jकतना संदर राजकुमार है ! "वमानउताQरये और राजकुमार को लेकर वर क जगह पहुंचा द+िजये।” महादे वजी को यह यिु Oत जंच गई। उ.हLने ऐसा ह+ Jकया। राजकुमार क शाद+ उस राजकुमार+ से हो गयी। "वदा के समय राजकुमार बड़े चOकर म पड़ा। "ववाह करने के बाद लौटते समय म^ तु`ह साथ ले जाऊंगा। इस समय तो तुम मुझे जाने दो।” राजकुमार+ को राजकुमार पर "व@वास होगया। उसने उसेदो बाल Mदये। एक सफेद ओर एक काला। राजकुमार+ ने कहा Jक काला बाल जलाओगे तो काला हो जायेगा और सार+ इoछाएं पूर+ कर दे गा। राजकुमार बाल पाकर बड़ा खुश हुआ और राजकुमार+ को लौटने का भरोसा दे कर &संहल6वीप क ओर चल पड़ा। पहले उसने काला बाल जलाया। बाल के जलाने क दे र थी Jक काला दै Cय राजकुमार के
आगे आ खड़ा हुआ। राजकुमार पहले तो बहुत डरा, पर वह जानता था Jक वह दै Cय उसका सेवक है । उसने हुOम Mदया, “जाओ, वजीर के लड़के को मेरे पास ले आओ।” काला दै Cय उसी 0ण वजीर के लड़के को राजकुमार के पास ले आया। Jफर बोला, “और कोई आ?ा ?” राजकुमार ने कहा, “हम दोनL को पMदमनी के महल म पहुंचा दो।” कहने क दे र थी Jक वे पMदमी के महल के फाटक पर आ गये। वहां एक yFट-पुFट संतर+ पहरा दे रहा था। उसने अंदर नह+ं जाने Mदया। राजकुमार ने Jफर काला बाल जलाया। दै Cय हािजर हो गया। राजकुमार के हुOम दे ते ह+ काले दै CयL क पलटन आ गई। उ.हLने रानी पMदमनी के &सपाMहयL को बात-क-बात म मौत के घाट उतार Mदया। इसके बाद दै Cय गायग हो गये। राजकुमार और वजीर का लड़का महल म घुसे। राजकुमार ने सफेद बाल जलाया। सफेद दे व आ गया। राजकुमार ने उससे कहा, “म^ पMदमनी से "ववाह करना चाहता हूं। बारात सजाकर लाओ।” जरा-सी दे र म दे व अपने साथ एक बड़ी शानदार बारात सजा कर ले आया। पMदमनी के "पता ने जब दे खा Jक कोई राजकुमार पMदमनी
को शान-शौकत से ]याहने आया है और इतना शिOतशाल+ है Jक उसने उसक सार+ सेना नFट कर डाल+ है तो उसने चंू तक न क। राजकुमार का ]याह पMदमनी से हो गया। अब राजकुमार पMदमनी को लेकर अपने घर क ओर रवाना हो गया। राaते म से उसने उस राजकुमार+ को अपने साथ &लया, िजसने उसे बाल Mदये थे। इसके बाद पर+ रानी के बगीचे म आया। रात को सब वह+ं ठहरे । आधी-रात को पर+ रानी आई। राजकुमार उसे दे खकर बड़ा Bस.न हुआ और बोला, “यह तु`हार+ ह+ कृपा का फल है । जो म^ पMदमनी को लेकर यहां अoछ- तरह लौट आया। यह दस ू र+ राजकुमार+ भी तु`हार+ तरह मुसीबत म मेर+ सहायक हुई है । तुम इसे छोट+ बहन समझकर खब ू jयार से रखना।” पर+रानी गदगद कंठ से बाल+, “राजकुमार, तु`हार+ खुशी म मेर+ खुशी है । पMदमनी के कारण ह+ हम दोनL को तु`हारे जैसा संद ु र राजकुमार &मला है । पMदमनी आज से पटरानी हुई और हम दोनL उसक छोट+ बहन।” वे सब उड़नखटोले म बैठकर राजकुमार के दे श म आ गयीं। नगर भर म खब ू आन.द मनाया गया और धूमधाम के साथ राजकुमार क तीनL रानयL के साथ सवार+ नकाल+ गई।
मगध क लोककथा खंजड़ी क खनक / भगवानचं1 "वनोद सांझ हो गई थी। पंछ- पंख फैलाये तेजी से अपने-अपेन घLसलL क ओर लौट रहे थे। जंगल+ पशु Mदन भर &शकार क तलाश म भटकने के बाद Jकसी जला@य म पानी पीकर लौटने लगे। लेJकन सेमल के गाछ के नीचे खड़ी एक Mहरनी न Mहल+, न डुल+। उसके चेहरे पर उदासी का भाव था। गुमसुम होकर वह डूबते हुए सरू ज क लाल+ को दे ख रह+ थी। सेमल के गाछ पर बखरने वाल+ लाल+ से फूल और भी लाल हो रहे थे। Mहरनी को उदास दे खकर Mहरन उसके पास आया। अपनी बड़ी-बड़ी आंखL से उसे दे खकर बाला, “OयL, आज तु`ह Oया हो गया है ? म^ दे ख रहा हमं Jक तुम आज सवेरे से ह+ इस गाछ के नीचे गुमसुम खड़ी हो ?” Mहरनी चप ु रह+। कुछ नह+ं बाल+। उसक सागर-सी गहर+ आंखL म आज सूनापन था। Mहरन क बात सुनते ह+ उस सूनेपन को आंसुओं क बूंदL ने भर Mदया। "पुर वे आंसू ढुलक पड़े। Mहरन "वच&लत हो उठा। अपनी "Bयतमा क आंखL म आंसू उसने आज पहल+ बार दे खे थे। न जाने Jकस आशंका से उसका yदय कांप उठा। उसने दे खा,
Mहरनी फट+ हुई आंखL से अब भी दे ख रह+ है । उसक सांस क गत बढ़ गई है । उसके पैर कांप रहे ह^। Mहरन ने aपश8 से अपनी Mहरनी को दल ु ारा। Jफर पूछा, “Oया हो गया है तु`ह ? Oया तु`हार+ चारागाह सख ू गया है । या Jकसी जंगल+ जानवर का डर है ? बोलो, तु`हार+ उदासी और तु`हारा मौर मेरे Mदल को चीरे डालरहा है ।” Mहरनी के होठL म थोड़ा-सा क`पन हुआ। Jफर वह साहस बटोरकर बोल+, “सुना है , इस दे श के राजा के याहां राजकुमार+ का ज.म-Mदन मनाया जानेवाला है । बड़े-बड़े राजाओं को नमंHण भेजे गये ह^। कल बड़ा भार+ उCसव होगा। और….और……इस अवसर पर तरह-तरह के पकवानबनगे……..िजसके &लए तु`हारा………….. वह बात पूर+ Jकये बना बलख उठ-। आंखL से आंसुओं क धार बहने लगी। चारL ओर अंधेरा छा गया। बेचारा Mहरन Oया कहे ! एक 0ण तक वह मौन रहा। Jफर धीरज के साथ उसने कहा, “अर+ पगल+, इतनी-सी छोट+ बात के &लए तू द:ु खी होती है ! ऐसे अoछे अवसर पर अगर मूझे ब&लदान होना पड़ा तो यह मेरा Jकतना बड़ा
सौभाAय होगा ! राजा के जंगल म रहने वाले हम सब उ.ह+ं के तो सेवक ह^। इस बहानेम^ उनके ऋण के बोझ से छूट जाऊंगा। मुझे aवग8 &मलेगा। अWखर एक Mदन मरना तो है ह+ ! Jकसी &शकार+ के तीर से मरने क बजाय राजा के बेटे के &लए ब&लदान होना कह+ं अoछा है ।” Mहरनी फफक-फफक कर रो पड़ी। रोते-रोते बोल+, “मेरे Bाणनाथ, मेर+ दु नया सूनी मत करो। तु`हारे बना कैसे जीऊंगी? म^ने तु`ह अपनी आंखL से कभी ओझल नह+ं होने Mदया। मेरे &लए….बस मेरे &लए….ऐसा मत करा।”
“तू बड़ी रासमझ ह^ !” Mहरन ने jयार से Jफर समझाना चाहा। “ठ-क है , म^ नासमझ हूं।” Mहरनी नेकहा, “लेJकन अपने BाणL से बढ़कर jयारे दे वता को म^ कह+ं नह+ं जाने दं ग ू ी। एक बार, बस एक बार, मेर+ बात मान लो। हम इसीसमय इस राcय को छोड़कर Jकसी दस ू रे जंगल म भाग चल। इतनी दरू चल ….Jक जहां और कोई न हो….।” Mहरनी सार+ रात इससे "वनय करती रह+, लेJकन Mहरन नह+ं माना। एक ओर jयार था, दस ू र+ ओर कत8kय, उनके बीच उसे फैसला करना था। उसक नगाह म कत8kय का महCव अZधक था, तभी तो वह अपने jयार क ब&ल चढ़ा रहा था।
दोनL एक-दस ू रे का सहारा &लए, सेमलक छाया म , बैठे रहे । आंख बंद थी। स.नाटा इतना छाया था Jक Mदल क धड़कन साफ सुनाई दे ती थीं। सख ू े पCतL क खड़खड़ाहट से अचानक जंगल जाग उठा। दोनL ने चtककर दे खा। परू ब म सरू ज क लाल+ मa ु करा रह+ थी और दो बZधक नगी तलवार &लये खड़े थे। घबराकर Mहरनी ने आंख बंद कर ल+ं। उसके yदय क धड़कन बढ़ गयी। मारे पीड़ा के वह छटपटा उठ-। जब उसने आंख खोलकर दे खा तो न वहां बZधक थे और न उसका BाणL से jयारा Mहरन। तभी आसमान म लाल+ ओर अZधक kयाjत हो गयी। उसे लगा, जैसे उसके Mहरन का लहू बहकर चारL तरफ फैल गया हो। Mहरनी के Mदल बड़ा धOका लगा। वह बेसुध हो गयी। Mदन-भर अचेत पड़ी रह+। शाम को उसक चेतना पल-भर के &लए लौट+। तब न ला&लमा थी, न रोशनी। चारL तरफ भयानक सूनापन और अंधेरा छाया था। Mहरनी ने Jकसी तरह साहस जुटाया। वह उठ- और भार+ पैरL से राजमहल क ओर चल द+। चलते-चलते वह महल म पहुंची। तबतक
राजमहल म ज.म-महोCसव समाjत हो चक ु ा था। महारानी अपने छोटे राजकुमार को गोद म &लये बैठ- थी। Mहरनी ने उ.ह &सर झक ु ाकर Bणाम Jकया और कातर aवर म "वनती क, “महारानी जी ! म^ आपके राcय कएक अभाZगनी Mहरनी हूं। आज के महोCसव म मेरे Bाणाथ का वध Jकया गया है । उससे आपक रसोई क शोभा बढ़+, मेहमानL का आदर-सCकार हुआ, यह सब ठ-क है ; Jकंतु मेरा तो सुहाग ह+ लट ु गया। अब मेरा कोई नह+ं रहा। म^ अनाथ हो गई….।” उसक आंखL से आंसू बहने लगे, पर धीरज धर कर वह Jफर बाल+,
“महारानीजी! अब एक मेर+ आपसे "वनती है । आप कृपा कर मेरे Mहरनक खाल मझ ु े दे द । म^ने उसे अपनी आंखL से कभी ओझल नह+ं होने Mदया। उस खाल को म^ उस सेमल के गाछ पर टांग दं ग ू ी और दरू से दे ख-दे खकर समझ &लया कPंगी Jक मेरा Mहरन मरा नह+ं, जी"वत है । महारानीजी ! वह मेरे सुहाग क नशानी है ।” लेJकन महारानी ने Mहरनी क Bाथ8ना aवीकार नह+ं क। उ.हLने कहा,
“उस खाल क तो म^ खंजड़ी बनवाऊंगी और उसे बजा-बजाकर मेरा बेटा खेला करे गा।”
Mहरनी का yदय टूक-टूक हो गया। उसक आशा क धंध ु ल+ cयोत हवा के एक झLके से बुझ गयी। नराश और भार+ मन से वह जंगल को पुन: लौट आयी। उसके बाद जब भी राजमहल म खंजड़ी खनकती तो Mहरनी एक 0ण के &लए बेसुध हो जाती है । वह उस खनक को सुन-सुनकर घंटL आंसू बहाती रहती है । नमाड़ क लोककथाएं वाता8कार और हुंकारा दे नेवाला / &शवनारायण उपा;याय एक गांव म एक वाता8 कहनेवाला रहता था। उसे ल`बी वाता8 कहने का शौक था। लेJकन कोई हुंकारा दे ने वाला नह+ं &मल रहा था। इस&लए उसने सोचा Jक परदे श म चलना चाMहए, शायद वहां कोई &मल जाये। चलते-चलते वषq बीत गये। कई गांवL ओर नगरL क याHा क, पर कोई हुंकारा दे नेवाला नह+ं &मला। लाचार हो वह एक छोटे -से गांव के बाहर नीम क ठ}डी छांव दे खकर उसके नीचे "वpाम करने बैठ गया। इतने म वहां से एक आदमी
नकला और उसने पछ ू ा, “OयL भई, तुम कौन हो ? Oया काम करते हो
?” उसने कहा, “म^ वाता8कार हूं और ल`बी वाता8 कहना मेरा काम है । लेJकन वाता8 सुनाऊं तो Jकसे ? कोई हुंकारा दे नेवाला नह+ं &मल रहा है ।” उस आदमीने कहा, “वाह भाई वाह! तुम खूब &मले ! म^ &सफ8 हुंकारा दे ने का काम करता हूं और वषq से एक ऐसे आसदमी को खोज रहा हूं, जो ल`बी वाता8 कह सके। आज तुम &मल गये तो मेर+ खुशी का Mठकाना नह+ं है ।” इस तरह एक-दस ू रे को पाकर दोनL बड़े Bस.न हुए। Jफर उ.हLने aनान Jकया, भोजन Jकया ओर भगवान का ;ययान करके वाता8कार ने अपनी ल`बी वाता8 कहनी शुP क। Mदन, मह+ने और वष8-पर-वष8 बीतते गये, लेJकन न वाता8 खCम हुई और न हुंकारे । कुछ Mदनो बाद लोगL ने दे खा Jक उस जगह दो ह डडयL के ढांचे पड़े हुए ह^। लोगL क कुछ समझ म नह+ं आ रहा था। वे उ.हL कोई चमCकार+ संत समझकर Bणाम कर लौट जाते थे। उधर वाता8कार और हुंकारा दे नेवाले क पिCनयां अपने-अपने पतयL के घर लौटने क राह दे खते-दे खते नराश हो गb। वे दानL पत~ता
थीं। इस&लए उ.हLने Mह`मत नह+ं हार+ और पतयL क खोज म चल द+ं। संयोग क बात, दोनL उसी पेड़ के नीचे पहुंचीं, जहां ह डडयL के दो ढांचे पड़े हुए थे। एक ने दस ू ा, “OयL बहन, तु`हारे पत Oया ू र+ से पछ काम करते थे ?” उसने कहा, “वे वाता8कार थे और उ.ह ल`बी वाता8 कहने का शौक था। वे ऐसे आदमी क खोज म थे, जो सालL तक हं कारा दे ता रहे ।” दस ू र+ ने कहा, “मेरे पत हुंकारा दे ने वाले थे और ऐसे वाता8कार क खोज म थे, जो ल`बी वाता8 कहे ।” दोनL ने सोचा, हो न हो, ये दोनL ढांचे हमारे पतयL के होने चाMहए। लेJकन उनम से कौन-सा ढांचा वाता8कार का था और कौन-सा हुंकारे वाले का, यह जानना मिु @कल था। तब दोनL ने तपaया शुP कर द+, वषq बीत गये। इस बीच एक संत वहां से नकले। उ.हLने उनक तपaया से Bस.न होकर कहा, ‘हे दे "वयो ! यMद तुम भगवान से Bाथ8ना करके इन पर गंगा-जल छड़को तो तु`हारे पत तु`ह &मल सकते ह^।” तुरतं ह+ एक aHी ने भगवान से Bथ8ना क, “भगवान, यMद म^ सती होऊं तो मेरे पत वाता8 Bारं भ कर द ।” ओर उसने उन ढांचL पर गंगाजल छड़का Jकएक ढांचे म हलचल हुई और उसने वाता8 कहना Bारं भ
कर Mदया। Jफर दस ू र+ aHी ने Bाथ8ना क, “हे भगवान यMद म^ सती होऊं तो मेरे पत हुंकारा दे ने Bारं भ कर द ।” और उसने ढांचे पर जल छड़का। तरु ं त दस ू रे ढांचे म हलचल हुई और उसने हुंकारा दे ना Bारं भ कर Mदया। तब से आज तक वाता8एं चल रह+ ह^ और हुंकारL क आवाज भी बराबर आती रहती ह^। सेवा का फल / रामनारायण उपा;याय छोटे -से गणपत महाराज थे। उ.हLने एक पु ड़या म चावल &लया, एक म शOकर ल+, सीम म दध ू &लया और सबके यहां गये। बोले, “कोई मझ ु े खीर बना दो।” Jकसी ने कहा, मेरा बoचा रोता है ; Jकसी ने कहा, म^ aनान कर रहा हूं; Jकसी ने कहा, म^ दह+ बलो रह+ हूं। एक ने कहा, “तुम लtदाबाई के घर चले जाओ। वे तु`ह खार बना द गी।” वे लtदाबाई के घर गये। बोले, “बहन, मुझे खीर बना दो।” उसने बड़े jयार से कहा, “हां-हां, लाओ, म^ बनाये दे ती हूं।”
उसने कड़छ- म दध ू डाला, चावल डाले, शOकर डाल+ और खर बनाने लगी तो कड़छ- भर गई। तपेले म डाल+ तो तपेला भर गया, चरवे म डाल+ तो चरवा भर गया। एक-एक कर सब बत8न भर गये। वह बड़े सोच म पड़ी Jक अब Oया कPं ? गणपत महाराज ने कहा, “अगर तु`ह Jक.ह+ं को भोजन कराना हो तो उ.ह नमंHण दे आओ।” वह खीर को ढककर नमंHण दे ने गई। लौटकर दे खा तो पांचL पकवान बन गये। उसने सबको पेट भरकर भोजन कराया। लोग आ@चय8चJकत रह गये। पछ ू ा, “OयL बहन, यह कैसे हुआ ?” उसने कहा, “म^ने तो कुछ नह+ं Jकया। &सफ8 अपने घर आये अतZथ को भगवान समझकर सेवा क, यह उसी का फल था। जो भी अपने 6वार आए अतZथ क सेवा करे गा, अपना काम छोड़कर उसका काम पहले करे गा, उस पर गणपत महाराज Bस.न हLगे। बड़ा कौन? / अ?ात भूख, jयास, नींद और आशा चार बहन थीं। एक बार उनम लड़ाई हो गई। लड़ती-झगड़ती वे राजा के पास पहुंचीं।
एक ने कहा, “म^ बड़ी हूं।” दस ू र+ ने कहा, ” म^ बड़ी हूं।” तीसर+ ने कहा,
“म^ बड़ी हूं।” चौथी ने कहा, “म^ बड़ी हूं।” सबसे पहले राजा ने भख ू से पूछा, “OयL बहन, तुम कैसे बड़ी हो ?” भख ू बोल+, “म^ इस&लए बड़ी हूं, OयLJक मेरे कारण ह+ घर म चूiहे जलते ह^, पांचL पकवान बनते ह^ और वे जब मुझे थाल सजाकर दे ते ह^, तब म^ खाती हूं, नह+ं तो खाऊं ह+ नह+ं।” राजा ने अपने कम8चाQरयL से कहा, “जाओ, राcय भर म मुनाद+ करा दो Jक कोई अपने घर म चi ू हे न जलाये, पांचL पकवान न बनाये, थाल न सजाये, भूख लगेगी तो भूख कहां जायगी ?” सारा Mदन बीता, आधी रात बीती। भख ू को भख ू लगी। उसने यहां खोजा, वहां खोजा; लेJकन खाने को कह+ं नह+ं &मला। लाचार होकर वह घर म पड़े बासी टुकड़े खाने लगी। jयास ने यह दे खा, तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची। बोल+,
“राजा! राजा ! भख ू हार गई। वह बासी टुकड़े खा रह+ है । दे Wखए, बड़ी तो म^ हूं।” राजा ने पूछा, तुम कैसे बड़ी हो ?
jयास बोल+, “म^ बड़ी हूं OयLJक मेरे कारण ह+ लोग कुएं, तालाब बनवाते ह^, बMढ़या बता8नL म भरकर पानी रखते ह^ और वे जब मुझे Zगलास भरकर दे ते ह^, तब म^ उसे पीती हूं, नह+ं तो पीऊं ह+ नह+ं।” राजा ने अपने कम8चाQरयL से कहा, “जाओ, राcय म मुनाद+ करा दो Jक कोई भीअपने घर म पानी भरकर नह+ं रखे, Jकसी का Zगलास भरकर पानी न दे । कुएं-तालाबL पर पहरे बैठा दो। jयास को jयास लगेगी तो जायगी कहां?” सारा Mदन बीता, आधी रात बीती। jयास को jयास लगी। वह यहां दौड़ी। वहां दौड़, लेJकन पानी क कहां एक बूंद न &मल+। लाचार वह एक डबरे पर झुककर पानी पीने लगी। नींद नेदेखा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास पहुंची बोल+, “राजा ! राजा ! jयास हार गई। वह डबरे का पानी पी रह+ है । सच, बड़ी तो म^ हूं।” राजा ने पछ ू ा, “तुम कैसे बड़ी हो?” नींद बोल+, “म^ ऐसे बड़ी हूं Jक लोग मेरे &लए पलंग बछवाते ह^, उस पर बaतर डलवाते ह^ और जब मुझे बaतर बछाकर दे ते ह^ तब म^ सोती हूं, नह+ं तो सोऊं ह+ नह+ं।
राजा ने अपने कम8चाQरयL से कहा, “जाओ, राcय भर म यह मुनाद+ करा दो कोई पलंग न बनवाये, उस पर गmे न डलवाये ओर न बaतर बछा कर रखे। नींद को नींद आयेगी तो वह जायगी कहां ?” सारा Mदन बीता। आधी रात बीती। नींद को नींद आने लगी।उसने यहां ढूंढा, वहां ढूंढा, लेJकन बaतर कह+ं नह+ं &मला। लाचार वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सो गई। आशा ने दे खा तो वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पा पहुंची। बोल+, “राजा ! राजा ! नींद हार गयी। वह ऊबड़-खाबड़ धरती पर सोई है । वाaतव म भूख, jयास और नींद, इन तीनL म म^ बड़ी हूं।” राजा नेपछ ू ा, “तुम कैसे बड़ी हो ?” आशा बोल+, “म^ ऐसे बड़ी हूं Jक लोग मेर+ खातर ह+ काम करते ह^। नौकर+-ध.धा, मेहनत और मजदरू + करते ह^। परे शानयां उठाते ह^। लेJकन आशाके द+प को बझ ु ने नह+ं दे ते।” राजा ने अपने कम8चाQरयL से कहा, “जाओ, राcय म मुनाद+ करा दो। कोई काम न करे , नौकर+ न करे । धंधा, मेहनत और मजदरू + न करे और आशा का द+प न जलाये। आशा को आश जागेगी तो वह जायेगी कहां?”
सारा Mदन बीता। आधी रात बीती। आशा को आश जगी। वह यहां गयी, वहां गयी। लेJकन चारL ओर अंधेरा छाया हुआ था। &सफ8 एक कु`हार MटमMटमाते द+पक के Bकाश म काम कर रहा था। वह वहां जाकर Mटक गयी। और राजा ने दे खा, उसका सोने का Mदया, hपये क बाती तथा कंचन का महल बन गया। जैसे उसक आशा परू + हुई, वैसे सबक हो। सरै सा क लोककथा सोने का चूहा / नागे@वर &संह ‘शशी.1’ सरै सा के नरहन मोखा जनपद म एक kयापार+ रहता था। उसे जुआ खेलने क लत थी। एक बार वह जुए म अपनी सार+ स`पिCत हार गया। इससे उसे इतना द:ु ख हुआ Jक एक Mदन वह मर गया। उसक पCनी गभ8वती थी। कुछ MदनL बाद उसने एक लड़के को ज.म Mदया। उन MदनL उसके घर म बेहद तंगी थी। kयापार+ क पCनी ने अपने इकलौते बेटे को जैस-तैसे पाला। जब लड़का पांच साल का हुआ तो वह अपने पुH के साथ पत के एक धनक &मH कशरण म चल+ गयी। वहां वह बारह वष8 तक रह+।
एकMदन अवसरपाकर लड़के क मां ने पत के &मH से Bाथ8ना क Jक सेठजी, मेरे पH ु को कुछ पढ़ा-&लख दे ते तो वह अपने पांवL पर खड़ा हो जाता। लड़के क मां क Bाथ8ना पर सेठ ने एक अ;यापक रख Mदया। उसने उसे कुछ पढ़ना-&लखना और Mहसाब-Jकताब &सखा Mदया। एक Mदन क बात है Jक वह लड़का सेठ के दरवाजे पर बैठा चुपचाप कुछ सोच रहा था। आगे Oया होगा, इस Zचंता म उसक आंख गील+ हो गb। उसी समय उसक मां भी वहां आ गई। मां ने आंचल से बेटे का मुंह पLछते हुए कहा, “बेटा, तुम रोते कयL हो? तुम kयापार+ के लड़के हो। इस&लए कोई छोटा-मोटा धंधा शुP कर दो। पास के मोहiले म एक सेठ रहता है , जो द+न-दख ू ी ु ी लड़कL को kयापार म पंज लगाने के &लए बना ]याज के पैसा उधार दे दे ता है । तुम उनके पास जाओ और उनसे कुछ hपया ले आओ।˝ सवेरा होते ह+ लड़का सेठ के पास गया। िजस समय वह उसक गmी पर पहुंचा, वह Jकसी लड़के को डांटते हुए समझा रहा था Jक तुम इस तरह अपने जीवन म मुछ नह+ं कर सकोगे। जो आदमी मेहनत नह+ं करता, वह भी कोई आदमी है ! बना उ6योग Jकये तुम सुखी नह+ं रह सकोगे। तु`हारा जीवन बेकार चला जायगा। उ6यम के बना Jकसी का मनोरथ आज तक पूरा नह+ं हुआ है । दे खते हो, सामने जो
मरा चूहा पड़ा है , Jकसी योAय और कम8ठ kयापार+ का बेटा उसे बेचकर भी पैसा बना सकता है । सामने जो &मटट+ और कोयला है , उससे वह सोना बना सकता है । चi ू हे क राख से वह लाख बना सकता है । म^ने तु`ह इतने hपये Mदये और तुम खाल+ हाथ लौटकर और hपये मांगने आये हो। यहां से चले जाओ। तुम म काम करने क शिOत नह+ं है । तुम अपने Bत भी ईमानदार नह+ं हो। इस लड़के ने जब दोनL के बीच क बातचीत सुनी तो उसने सेठ से कहा, “सेठजी, म^ इस मरे हुए चूहे को आपसे पूंजी के Pप म उधार ले जाना चाहता हूं।˝ यह कहकर वह लड़का वहां hका नह+ं, बिiक उसमरे चूहे को पूंछ के सहारे उठाकर वहां से चला गया। सेठ ने उस लड़के का पQरचय जानने के &लए अपने मुनीम को उसक खोज म भेजा। पर वह लड़का तो नगर क भीड़ म खो गया था। लौटकर मुनीम ने सेठ को इस बात क सूचना द+ तो उसे बड़ी Zचंता हुई। उसने अपने मुनीम से कहा, “मुनीम जी, वह लड़का बड़ा होनहार है । एक Mदन वह अव@य लखपत बनेगा। अगर म^ उसक कुछ मदद कर सकता तो मझ ु े बड़ी खुशी होती।˝
उसे मरे चूहे को आWखर कौन लेतो? एक बनये के बेटे ने अपनी बiल+ के &शकार के &लए उसे कुछ पैसे दे कर खर+द &लया। लड़के ने उन पैसL से कुछ चने और एक घड़ा खर+दा। Jफर उस घड़े म जल भरकर नगर के चौराहे पर एक पेड़ के नचे बैठ गया। उस राaते से गुजरने वाले लोगL को वह बड़ी नnता से कुछ चने दे कर जल "पलाता । लड़के क उस सेवा से खुश होकर वे उसे कुछ पैसे दे दे ते। लकड़ी काटने के काम से बढ़ई लोग भी उसी राaते से गुजरते थे। वे लोग भी वहां पानी पीते और उस लड़के को बदले म लक ड़यां दे जाते। इस तरह वहां लक ड़यL का ढे र लग गया। एक Mदन लकड़ी के एक kयापार+ के हाथ उस लड़के ने सार+ लक ड़यां बेच द+ं। लकड़ी क उस पंज ू ी से उसने कुछ और चने खर+दे । वह पहले क तरह राहगीरL को चने Wखलाकर पानी "पलाता रहा और बदले म पैसे और लकड़ी पाता रहा। धीरे -धीरे उसक पंज ू ी बढ़ने लगी। जब उसके पास कुछ cयादा पैसा हो गया तो वह लक ड़यां भी खर+दने लगा। उनके बेचने पर उसे बड़ा लाभ हुआ। लेJकन वषा8 ऋतु के आने से लक ड़यL का धंधा मंद पड़ने लगा। लोग पानी भी कम पीने लगे। तब उस लड़के ने चौराहे पर जमा लक ड़यL को लेकर बाजार म बेच Mदया और उसी पूंजी से वहां उसने एक
दक ु ान खोलद+। थोड़े ह+ MदनL म उसक दक ु ान चल पड़ी। रोज के काम म आनेवाल+ सभी चीज उस दक ु ान पर सaते दामL म &मल जाती थीं। लड़का कुछ ह+ MदनL म बड़ा kयापार+ बनगया। उसने वह+ं अपने &लए एक मकान बनवा &लया। उसम वह अपनी मां के साथ अoछ- तरह से रहने लगा। एक Mदन जब वह अपनी दक ु ान पर बैठा था, उसे अचानक उस सेठ क याद आ गई, िजसके यहां से वह मरा हुआ चूहा लाया था। उसने उसके ऋण से मुOत होने के &लए सोने का चूहा बनवाया और उसे साथ लेकर सेठ के यहां गया। उसने सेठ से कहा, “सेठजी, आपके चूहे ने मुझे लखपत बना Mदया है । मेरे जीवन क धारा ह+ बदल द+ है ।˝ सेठ उस घटना को भूल गये थे। जब लड़के ने सार+ कहानी सुनाई तो उस पर वह इतने मुAध हो गये Jक उ.हLने उसे अपने पास गmी पर बैठा &लया। बाद म अपनी लड़क का "ववाह उसके साथ कर Mदया। कांगड़ा क लोककथा करम का फल / मनोहरलाल एक लड़क थी। वह बड़ी स. ु दर थी, शर+र उसका पतला था। रं ग गोरा था। मख ु ड़ा गोल था। बड़ी-बड़ी आंख कट+ हुई अि`बयL जैसी थीं।
ल`बे-ल`बे काले-काले बाल थे। वह बड़ा मीठा बोलती थी। धीरे -धीरे वह बड़ी हो गई। उसके "पता ने कुल के परु ोMहत तथा नाई से वर क खोज करने को कहा, उन दानL ने &मलकर एक वर तलाश Jकया। न लड़क ने होनेवाले दi ू हे ने होनेवाल+ दi ु हन को। ू हे को दे खा, न दi धूम-धाम से उनका "ववाह हो गया। जब पहल+ बार लड़क ने पत को दे खा तो उसक काल+-कलूट+ सूरत को दे खकर वह बड़ी द:ु खी हुई। इसके "वपर+त लड़का सु.दर लड़क को दे खकर फूला न समाया। रात होती तो लड़क क सास दध ू औटाकर उसम गुड़ या शOकर &मलाकर बहू को कटोरा थमा दे ती और कहती, “जा, अपने लाड़े (पत) को "पला आ।˝ वह कटोरा हाथ म लेकर, पकत के पास जाती और बना कुछ बोले चुपचाप खड़ी हो जाती। उसका पत दध ू का कटोरा लेलेता और पी जाता। इस तरह कई Mदन बीत गये। हर रोज ऐसे ह+ होता। एक Mदन उसका पत सोचने लगा, आWखर यह बोलती OयL नह+ं। उसने न@चय Jकया Jक आज इसे बल ु वाये बना मानंग ू ा नह+ं। जबतक यह कहे गी नह+ं Jक लो दध ू पी लो, म^ इसके हाथ से कटोरा नह+ं लूंगा। उस Mदन रात को जब वह दध ू लेकर उसके पास खड़ी हुई तो वह चुपचाप लेटा रहा। उसने कटोरा नह+ं थामा। पCनी भी कटोरे को हाथ
म पकड़े खड़ी रह+, कुछ बोल+ नह+ं। बेचार+ सार+ रात खड़ी रह+, मगर उसने मंह ु नह+ं खोला। उस हठ-ले आदमी ने भी दध ू का कटोरा नह+ं &लया। सब ु ह होने को हुई तो पत नेसोचा, इस बेचार+ ने मेरे &लए Jकतना कFट सहा है । यह मेरे साथ रहकर Bस.न नह+ं है । इसे अपने पास रखना इसके साथ घोर अ.याय करना है । इसके बाद वह उसे उसके पीहर छोड़ आया। बेचार+ वहां भी Bस.न कैसे रहती ! वह मन-मन ह+ कुढ़ती। वह घट ु कर मरने लगी। उसे कोई बीमार+ न थी। वह बाहर से एकदम ठ-क लगती थी। माता-"पता को उसके "वZचH रोग क Zचंता होने लगी। वे बहुत-से वै6यL और cयोत"षयL के पास गये, पर Jकसी क समझ म उसका रोग नह+ आया। अंत म एक बड़े cयोतषी ने लड़क के रं ग-Pप और चाल-ढाल को दे खकर असल+ बात जानल+। उसने उसके हाथ क रे खाएं दे खीं। cयोतषी ने बताया, “बेट+! "पछले ज.म म तूने जैसे कम8 Jकये थे, तझ ु े ठ-क वैसा ह+ फल &मल रहा है । इसम नतेरा दोष है , न तेरे पत का। तेरे पत ने "पछले ज.म म सफेद मोतयL का दानJकया था और तूने ढे र सारे काले उड़द मांगने वालL क झो&लयL म डाले थे।
सफेद मोतयL के दानके फल से तेरे पत को संद ु र पCनी &मल+ है और तुझे उड़दL जैसा काला-कलट ू ा आदमी &मला है ।
“ऐसी हालत म तेरे &लए यह+ अoछा है Jक तू अपने पत के घर चल+ जा और मन म Jकसी भी Bकार क बरु + भावना लाये बना उसी से सांतोष कर, जो तुझे &मला है , ओर आगे के &लए खब ू अoछे अoछे काम कर। उसका फल तुझे अगले ज.म म अव@य &मलेगा।” cयोतषी क बात उस लड़क क समझ म आ गई और वह खुश होकर अपने पत के पास चल+ गई। वे लोग आंनंद से रहने लगे। छ!तीसगढ़ क लोककथा भाAय क बात / @यामाचरण दब ु े दो &मH थे। एक xाyाण था, दस ू रा भाट। भाट ने एक Mदन अपने &मH से कहा, “चलो, राजा के दरबार म चल। यMद गोपाल राजा खुश हो गया तो हमारे भाAय खुल जायगे।” xाyाण ने हं सकर उसक बात टालते हुए कहा, “दे गा तो कपाल, Oया करे गा गोपाल ? भागय म होगा, वह+ &मलेगा।” भाट ने कहा, “नह+ं, दे गा तो गोपाल, Oया करे गा कपाल ! गापाल राजा बड़ा दानी है , वह हम अव@य बहुत धन दे गा।”
दोनL म इस Bकार "ववाद होता रहा और अंत म गोपाल राजा के दरबार म जाकर दोनL ने अपनी-अपनी बात कह+। भाट क बात सुनकर राजा Bस.न हुआ। xाyाण क बात सुनकर उसे 3ोध आया। उसने दोनL को दस ू रे Mदन दरबार म आने क आ?ा द+। दोनL &मH दस ू रे Mदन दरबार म पहुंचे। राजा क आ?ा से उसके &सपाMहयL ने xyाण को एक मुटठ- चावल तथा एक मुटठ- दाल और कुछ नमक दे Mदया। भाट को एक सेर चावल, एक सेर घी और कmू Mदया। राजा के आदे श से कmू म सोना भर Mदया गया। राजा ने कहा,
“अब जाकर बना-खा लो। शाम को Jफर दरबार म हािजर होना।” दरबार से चलकर वे नद+ Jकनारे के उस aथान पर पहुंचे, जहां उ.हLने रात बताई थी। भाट मन-ह+-मन सोच रहा था-”न जाने OयL, राजा ने xाyाण कोतो दाल द+, और मुझे यह कmू दे Mदया। इसे छ-लो, काटो और Jफर बनाओ इसक तरकार+। कौन करे इतना झंझट ? ऊपर से यह भी डर है Jक कह+ं सके खाने से Jफर से कमर का परु ाना दद8 न उभर आए।” ऐसा सोचकर उसने xाyाण से कहा, “&मH, कmू खाने से मर+ कमर म दद8 हो जायेगा, इसे लेकर तुम अपनी दाल मुझे दे दो।” xाyाण नेउसक बात मान ल+। अपना-अपना सामान लेकर दोनL रसोई म जुट गये। भाट दाल-चावल खाकर एक आम के पेड़ के नीचे
सो गया। xाyाण ने जब कmू काटा तो उसे वह सोना Mदखाई Mदया, जो राजा ने उसम भरवा Mदया था। उसने मन-ह+-मन सोचा, “मेरे भाAय म था, मेरे पास आ गया। गोपाल तो इसे भाट को दे ना चाहता था, उसने सोना एक कपड़े म बांध &लया। कmू का आधा भाग बचाकर आधे क तरकार+ बना ल+। वह भी खा-पीकर सो गया। सं;या के समय दोनL &मH Jफर गोपाल राजा के दरबार म पहुंचे। xाyाण ने शेष आध कmू एक कपड़े म लपेटकर अपने पास ह+ रख &लया था। राजा ने xाyाणीक ओर दे खकर पूछा, “अब तो मान &लया, दे गा तो गोपाल, Oया करे गा कापाल? “ xाyाण ने आधा कmू राजा क ओर बढ़ा Mदया और नnता से &सर झुकाकर कहा, “नह+ं माहाराज, दे गा तो कपाल, Oया करे गा गोपाल ?” राजा ने सोचा Jक xाyाण सच कह रहा है । xाyाण के भाAय म सोना था, भाट के नह+ं और इसी&लए भाट ने कmू xाyाण को दे Mदया। राजा ने कहा, “तु`हारा कहना ह+ ठ-क है । दे गा तो कपाल, Oया करे गा गोपाल ?” उसने दोनL को भ ट म धन दे कर "वदा कर Mदया। ह&रयाणा क लोककथा
बद+ का फल / श&शBभा गोयल Jकसी गांव म दो &मH रहते थे। बचपनसे उनम बड़ी घनFटता थी। उनम से एक का नाम था पापबु6"व और दस ू रे का धम8बु6"व। पापब6 ु "व पाप के काम करने म MहचJकचाता नह+ं था। कोई भी ऐसा Mदननह+ं जाता था, जबJक वह कोई-न-कोई पाप ने करे , यहां तक Jक वह अपने सगे-स`बंZधयL के साथ भी बुरा kयवहार करने म नह+ं चूकता था। दस ु "व सदा अoछे -अoछे काम Jकया करता था। वह ू रा &मH धम8ब6 अपने &मHL क कMठनाइयL को दरू करने के &लए तन, मन, धन से पूरा BयCन करता था। वह अपने चQरH के कारण B&स6व था। धम8बु6"व को अपने बड़े पQरवार का पालन-पोषण करना पड़ता था। वह बड़ी कMठनाईयL से धनोपाज8न करता था। एक Mदन पापबु6"व ने धम8बु6"व के पास जाकर कहा, “&मH ! तूने अब तक Jकसी दस ू रे aथानL क याHा नह+ं क। इस&लए तुझे और Jकसी सथान क कुछ भी जानकार+ नह+ं है । जब तेरे बेटे-पोते उन aथानL के बारे म तुझसे पछ ू गे तो तू Oया जवाब दे गा ? इस&लए &मH, म^ चाहता हूं Jक तू मेरे साथ घूमने चल।”
धम8ब6 ु "व ठहरा नFकपट। वह छल-फरे ब नह+ं जानता था। उसने उसक बात मान ल+। xाyाण से शुभ मुहूत8 नकलवा कर वे याHा पर चल पड़े। चलते-चलते वे एक स. ु दर नगर+ म जाकर रहने लगे। पापब6 ु "व ने धम8ब6 ु "व क सहायता से बहुत-सा धन कमाया। जब अoछ- कमाई हो गई तो वे अपने घर क ओर रवाना हुए। राaते म पापबु6"व मनह+-मन सोचने लगा Jक म^ इस धम8बु6"व को ठग कर इस सारे धन को हZथया लूं और धनवान बन जाऊं। इसका उपाय भी उसने खोज &लया। दोनL गांव के नकट पहुंचे। पापबु6"व ने धम8बु6"व से कहा, “&मH, यह सारा धनगांव म ले जाना ठ-क नह+ं।” यह सुनकर धम8बु6"व ने पूछा, “इसको कैसे बचाया जा सकता है ? “ पापब6 ु "व ने कहा, “सारा धन अगर गांव म ले गये तो इसे भाई बटवा लगे और अगर कोई प&ु लस को खबर कर दे गा तो जीना मिु @कल हो जायगा। इस&लए इस धन म से आव@यकता के अनुसार थोड़ा-थोड़ा लेकर बाक को Jकसी जंगल म गाड़ द । जब जhरत पड़ेगी तो आकर ले जायगे।”
यह सुनकर धम8ब6 ु "व बहुत खुश हुआ। दोनL ने वैसा ह+ Jकया और घर लौट गए। कुछ MदनL बाद पापबु6"व उसी जंगल म गया और सारा धन नकालकर उसके aथान पर &मटट+ के ढे ले भर आया। उसने वह धन अपने घर म छपा &लया। तीन-चार Mदन बाद वह धम8ब6 ू "व के पास जाकर बोला, “&मH, जो धन हम लाये थे वह सब खCम हो चुका है । इस&लए चलो, जंगल म जाकर कुछ धन और ल आय।” धम8ब6 ु "व उसक बात मान गया और अगलेMदन दोनL जंगल म पहुंचे। उ.हLने गुjत धन वाल+ जगह गहर+ खोद डाल+, मगर धन का कह+ं भी पता न था। इस पर पापबु6"व ने बड़े 3ोध के साथ कहा,
“धम8बु6"व, यह धन तूने ले &लया है ।” धम8बु6"व को बड़ा गुaसा आया। उसने कहा, “म^ने यह धन नह+ं &लया। म^ने अपनी िजंगी म आज तक ऐसा नीच काम कभी नह+ं Jकया ।यह धन तूने ह+ चुराया है ।” पापबु6"व ने कहा, “म^ने नह+ं रचुराया, तूने ह+ चुराया है । सच-सच बता दे और आधा धन मुझे दे दे , नह+ं तो म^ .यायधीश से तेर+ &शकायत कPंगा।”
धम8ब6 ु "व ने यह बात aवीकार कर ल+। दोनL .यायालय म पहुंचे। .ययाधीश को सार+ घटना सुनाई गई। उसने धम8ब6 ु "व क बात मान ल+ और पापब6 ु "व को सौ कोड़े का द}ड Mदया। इस पर पापब6 ु "व कांपने लगा और बोला, “महाराज, वह पेड़ प0ी है । हम उससे पूछ ल तो वह हम बता दे गा Jक उसके नीचे से धन Jकसने नकाला है ।” यह सुनकर .यायधीश ने उनदोनL को साथ लेकर वहां जाने का न@यच Jकया। पापबु6"व ने कुछ समय के &लए अवकाश मांगा और वह अपने "पता के पास जाकर बोला, “"पताजी, अगर आपको यह धन और मेरे Bाण बचाने हL तो आप उस पेड़ क खोखर म बैठ जायं और .यायधीश के पछ ू ने पर चोर+ के &लए धम8ब6 ु "व का नाम ले द ।” "पता राजी हो गये। अगले Mदन .यायधीश, पापबु6"व और धम8बु6"व वहां गये। वहां जाकर पापबु6"व ने पूछा, “ओ व0 ृ ! सच बता, यहां का धन Jकसने चरु ाया है ।” खोखर म छपे उसके "पता ने कहा, “धम8बु6"व ने।” यह सुनकर .यायधीश धम8बु6"व को कठोर कारावास का द}ड दे ने के &लए तैयार हो गये। धम8बु6"व ने कहा, “आप मुझे इस व0 ृ को आग लगाने क आ?ा दे द । बाद म जो उZचत द}ड होगा, उसे म^ सहष8 aवीकार कर लंूगा।”
.यायधीश क आ?ा पाकर धम8ब6 ु "व ने उस पेड़ के चारL ओर खोखर म &मटट+ के तेलके चीथड़े तथा उपले लगाकर आग लगा द+। कुछ ह+ 0णL म पापब6 ु "व का "पता Zचiलाया “अरे , म^ मरा जा रहा हूं। मुझे बचाओ।” "पता के अधजले शर+र को बाहर नकाला गया तो सoचाई का पता चल गया। इस पर पापबु6"व को मCृ यु द}ड Mदया गया। धम8बु6"व खुशी-खुशी अपने घर लौट गया। उ!तर*दे श क लोककथाएं च.दन वन / &शवान.द एक राजा &शकार खेलते हुए दरू सघन वन म पहुंच गया। लौटते समय वह माग8 भूल गया। भटकते-भटकते उसे एक मंद Bकाश Mदखाई Mदया। उस Bकाश क ओर बढ़ते-बढ़ते वह एक घLपड़ी के समीप आ गया, जहां एक नध8न भील रहता था। राज ने भील के 6वार को खटखटाया और उसक झLपड़ी म शरण ल+। भील ने राजा का aवागत-सCकार Jकया। राजा ने सुख से राH kयतीत क। Bात:काल "वदा होते हुए राजा ने पूछा, “भील,तु`हार+ आजी"वका का साधन Oया है ?”
भील ने उCतर Mदया, “महाराज, म^ वन से लकड़ी काटकर लाता हूं और उसका कोयला बनाकर बाजार म बेच आता हूं।” राजा Bस.न होकर भील को अपने राcय मे ले गया ओर पुरaकार के Pप म उसे एक छोटा-सा चंदन-वन दे Mदया। भील कुट+ बनाकर सख 8 रहने लगा। ु पव ू क एक वष8 के बाद राजा उस चंदन-वन को दे खने के &लए गया; वह यह दे खकर चJकत रह गया Jक वन Bाय: उजड़ चक ु ा था और भील उस झLपड़ी म दयनीय अवaथा म रह रहा था। राजा ने उससे पछ ू ा,
“तुमने वन का Oया Jकया ?” भील ने उCतर Mदया, “महाराज, पहले तो म^ दरू से लकड़ी काटकर लाता था और Jफर कोयला बना लेता था। अब म^ यह+ं लकड़ी का कोयला बना लेता हूं, और उसे बेच कर अपना बुजारा करता हूं। अब तो सारा वन कट चुका, केवल एक व0 ृ बचा है ।” राजा को उसक मख 8 ा पर बड़ा द:ु ख हुआ और उसने कहा, “भील, ू त तम बहुत ह+ मूख8 है । तूने चंन-वन का महCव ह+ नह+ं समझा। इस व0 ृ क छोट+-सी लकड़ी काटकर उसे बाजार म बेचकर आ।”
भील व0 ृ क छोट+-सी लकड़ी काटकर उसे बाजार म ले गया और उसने उसे बेच Mदया। भील को उससे काफ पैसा &मल गया। वह बहुत ह+ चJकत होकर राजा के पास लौट गया। भील के yदय म अपनी अ?ानता पर बड़ा 0ोभ था। उसने राजा से कहा, “महाराज, म^ने आपके उपहार का मूiय नह+ं समझा।” राजा ने उसे समझाकर कहा, “भील, जो कुछ हान हो गई, उस पर अब पछताने से Oया लाभ है ? अब इस व0 ृ का ठ-क मूiय समझो। इसम से थोड़ी-थोड़ी लकड़ी काटकर धन कमाते रहो ओर नये-नये व0 ृ लगाते रहो। आगे चलकर Jफर एक हरा-भरा चंदन-वन हो जायगा।” ना"वक का दायCव / आन.द एक नौका जनल म "वहार कर रह+ थी। अकaमात ् आकाश म मेघ घर आये और घनघोर वषा8 होने लगी। वायु-Bकोप ने तूफान को भीषण करMदया। याHी घबराकर हाहाकार करने लगे और ना"वक भी भयभीत हो गया। ना"वक ने नौका को तट पर लाने के &लए जी-जान से पQरpम करना Bार`भ कर Mदया। वह अपने मजबूत हाथL से नाव को खेता ह+ रहा, जब तक Jक वह बiकुल थक ह+ न गया। Jकंतु थकने पर भी वह नाव को कैसे छोड़ दे ? वह अपने थके शर+र से भी नौका को पार करने म जुट गया।
धीरे -धीरे नौका म जल भरने लगा और याHयL के 6वारा पानी को नकालने का BयCन करने पर भी उसम लज भरती ह+ गया। नौका 8 जट धीरे -धीरे भार+ होने लगी, पर ना"वक साहसपव ू क ु ा ह+ रहा। अंत म उसे नराशा ने घेर &लया। अभी Jकनारा काफ दरू था और नौका जल म डूबने लगी। ना"वक ने हाथ से पतवार फक द+, और &सर पकड़कर बैठ गया। कुछ ह+ 0णL म मौका डूब गयी। सभी याHी BाणL से हाथ धो बैठे। यमराज के पाष8द आये और ना"वक को नरक के 6वार पर ले गये। ना"वक ने पछ ू ा, “कृपा करके मेरा अपराध तो बताओ Jक मुझे नरक क ओर OयL घसीटा जा रहा है ?” पाष8दL ने उCतर Mदया, “ना"वका, तुम पर मौका के याHयL को डुबाने का पाप लगा है ।” ना"वक चJकत होकर बोला, “यह तो कोई .याय नह+ं है । म^ने तो भरसक BयCन Jकया Jक याHयL क र0ा हो सके।” पाष8दL ने उCतर Mदया, “यह ठ-क है Jक तुमने पQरpम Jकया, Jकंतु तुमे अंत म नौका चलाना छोड़ Mदया था। तु`हारा कत8kय था Jक अंतम @यास तक नौका को खेते रहते। नौका के याHयL क िज`मेदार+ तुम पर थी। तुम पर उनक हCया का दोष लगा है ।” महाकाल क DिFट / &शव
दे व-समाज के वह ृ 6 महोCसव का आयोजन हो रहा था। सभी दे वता अपने-अपने वाहनL म आ रहे थे। महादे व शंकर सभा म Bवेश कर रहे थे। उ.हLने सभा-भवन के बाहर िaथत एक व0 ृ क शाखा पर बैठे हुए एक शुक क ओर कुछ ग`भीर DिFट से दे खा। शंकर तो सभाभवन म चले गये, Jकंतु उस शुक के मन म Zचंता उCप.न हो गयी। समीप बैठे गhड़ से उसने अपनी आशंका का नवेदन Jकया। उसके बचने का उपाय सोचकर गhड़ ने कहा, “शक ु राज, म^ तु`ह 1त ु गत से अनेक सम1 ु L को पार करा कर Jकसी सरु /0त aथान पर छोड़ आता हूं। Zचंता मत करो।” गhड़ ने परू + शिOत से उड़कर बहुत कम समय म अनेक सम1 ु पार करके उसे दरू कह+ं सरु /0त aथान पर बैठा Mदया। श3 ु आ@वaत हो गया Jक वह Bलयकर शंकर क कठोर DिFट से बच गया। गhड़ लौटकर पुन: उसी व0 ृ पर जा बैठा और उCसुकता से शंकर के सभा से बाहर आने क Bती0ा करने लगा। शंकर नकले। उ.हLने पुन: व0 ृ क उसी शाखा क ओर दे खा। गhड़ ने सहम कर उनक ग`भीर DिFट का कारण पूछा। शंकर बोले, “श3 ु कहां है ?”
गhड़ ने कहा, “भगवान ् ! शक ु आपक तीण DिFट से भयभीता हो गया था और म^ने उसे दरू एक स/ु 0त aथान पर बैठा Mदया है ।” शंकर ने कहा, “यह+ तो मेरा आ@चय8 था Jक कुछ ह+ 0ण के बाद वह शक ु उसी aथान पर एक महासप8 6वारा कव&लत हो जायगा। तुमने उस समaया का उपाय कर Mदया।” गुजरात क लोककथा जटा हलकारा / झवेरचंद मेघाणी नपंस ु क पत क घरवाल+-सी वह शोकभर+ शाम थी। अगले ज.म क आशा के समान कोई तारा चमक रहा था। अंधेरे पखवाड़े के Mदन थे। ऐसी नीरस शाम को आंबला गांव के चबत ू रे पर ठाकुरजी क आरती क सब बाट दे ख रहे थे। छोटे -छोटे अधनंगे बoचL क भीड़ लगी थी। Jकसी के हाथ म चांद-सी चमकती कांसे क झालर झूल रह+ थी तो कोई बड़े नगाड़े पर चोट लगाने क Bती0ा कर रहा था। छोटे -छोटे बoचे इस आशा से नाच रहे थे Jक Bसाद म उ.ह &मी का एकाध टुकड़ा, नारQरयल क एक-दो फांक तथा तुलसी दल से सुगंZधत मीठा चरणमत ृ &मलेगा। बाबाजी ने अभी तक मंMदर को खोला नह+ं था। कंु ए के Jकनारे पर बैठे बाबाजी aनान कर रहे थे।
बड़ी उn के लोग न.ह बoचL को उठाये आरती क Bती0ा म चबत ू रे पर बैठे थे। सब चjु पी साधे थे। उनके अंतर अपने आप गहरारई म ब ्◌ैठते जा रहे थे। यह ऐसी शाम थी। बड़ी उदास थी आज क शाम। अCयंत धीमी आवाज म Jकसी ने बड़े द:ु ख से कहा, “ऋतुएं मंद पड़ती जा रह+ है ।” दस ू रा इस द:ु ख म व6 ृ "व करते हुए बोला, “यह क&लयुग है । अब क&लयुग म ऋतुएं Wखलती नह+ं ह^। Wखल तो कैसे Wखल!” तीसरे ने कहा, “ठाकुरजी का मुखारब.द ु Jकतना `लान पड़ गया है ।” चौथा बोला, “दस वष8 पहले उनके मुख पर Jकतना तेज था।” बड़-बढ़ ू े लोग धीमी आवाज म तथा अधमंद ु + आंखL से बातL म तiल+न थे। उसी समय आंबला गांव के बाजार म दो kयिOत सीधे चले आ रहे थे। आगे पुhष और पीछे aती्र। पुhष क कमर म तलवार और हाथ म लकड़ी थी। aHी के &सर पर बड़ी गठर+ थी। पुhष को एकदम पहचाना नह+ं जा सकता था, परं तु राजपूतनी अपने पैरL कचाल से ओर घेरदार लहं गे तथा ओढ़नी से पहचानी जाती थी। राजपूत ने लोगL को ‘राम-राम’ नह+ं Jकया, इससे गांव के लोग समझ गये Jकये अजनबी ह^। अपनी ओर से ह+ लोगL ने कहा, ‘राम-राम’।
उCतर म ‘राम-राम’ कहकर याHी जiद+-जiद+ आगे चल पड़ा। उसके पीछे राजपत ू नी अपने पैरL क ए ड़यL को ढकती हुई बढ़ चल+। एकदस ु क ओर दे खकर लोगL ने कहा, “ठाकुर, Jकतनी दरू जाना ू रे के मंह है ?”
“यह+ कोई आधा मील।” जवाब &मला। “तब तो आत लोग यहां hक जाइये ? “ “OयL ? इतना जोर OयL दे रहे ह^?” याHी ने कुछ तेजी से कहा। “इसका कोई खास कारण तो नह+ं है , परं तु समय अZधक हो गया और साथ म मMहला है । इसी से हम कह रहे ह^। अंधेरे म अकारण जोWखम OयL लेते ह^? Jफर यहां हम सब आपके ह+ भाई-बंद तो ह^। इस&लए आप hक जाइये।” मुसाJफर ने जवाब Mदया, “अपनी ताकत का अंदाजा लगा करके ह+ म^ सफर करता हूं। मादq के &लए समय-समय Oया होता है ! अब तक तो अपने से बढ़कर कोई बहादरु दे खा नह+ं है ।” आह करने वाले लोगL को बड़ा बुरा लगा। Jकसी ने कहा, “ठ-क है , वरना चाहते ह^ तो इ.ह मरने दो।” राजपत ू और राजपत ू ानी आगे बढ़ गये।
दोनL जंगल म चले जा रहे थे। सय ू 8 अaत हो गया था। दरू से मंMदर म आरती के घंटे क ;वन सुनाई दे रह+ थी। दरू के गांवL के द+पक MटमMटमा रहे थे और कुCते भtक रहे थे। मस ु ाJफर ने अचानक पीछे घंुघP क आवाज सीु । राजपत ू नी ने पीछे मुड़कर दे खा तो उसे सणोसरा का जटा हलकारा कंधे पर डाक क थैल+ लटकाये, हाथ म घुंघP वाला भाला &लये, जाते हुए Mदखाई Mदया। उसक कमर म फटे मयानवाल+ तलवार लटक हुई थी। जटा हलकारा दु नया क आशा-नराशा और शुभ-अशुभ क थैल+ कंधे पर लेकर जा रहा था। कुछ परदे श गये पुHL क व6 ृ व माताएं ओर Bवा&सयL क िaHयां साल-छ: मह+ने म Zचटठ- &मलने क आस लगाये बैठ- राह दे खती होगी, यह सोचकर नह+ं,बिiक दे र+ हो जायेगी तो वेतन कट जरयगा, इस डर से जटा हलकारा दौड़ा जा रहा था। भाले के घुंघP इस अंधेरे एकांत रात म उसके साथी बने हुए थे। दे खते-ह+-दे खते हलकारा पीछे चलती राजपत ू नी के पास पहुंच गया। दोनL ने एक-दस ू रे क कुशल पूछ-। राजपूतनी का मायका सणोसरा म था। हलकारा सणोसरा से ह+ आ रहा था। इस&लए राजपूतनी अपने मां-बाप के समाजचार पूछने लगी। पीहर के गांव से आनेवाले
अपQरZचत पh ु ष को भी aHी अपने सगे भाई-सा समझती है । दोनL बात करते हुए साथ चलने लगे। राजपूत कुछ कदम आगे था। राजपूतनी को पीछे रह जाते दे खकर उसने मुड़कर दे खा। दस ू रे आदमी के साथ बात करते दे खकर उसने उसको भला-बरु ा कहा और धमकाया। राजपूतनी ने कहा, “मेरे पीहर का हलकारा है । मेरा भाई है ।”
“दे ख &लया तेरा भाई ! चुपचाप चल+ आ।” राजपूत ने भtह चढ़ाकर कहा, Jफर हलकारे से बोला, “तुम भी तो आदमी-आदमी को पहचानो।” ठ-क है , बापू !” यL कहकर हलकारे ने अपननी चाल धीमी करद+। एक खेत िजतनी दरू + रखकर वह चलने लगा। जब यह राजपत ू जोड़ी नद+ पर पहुंची तो एक साथ बाररह आद&मयL ने ललकारा, “खबरदार, जो आगे बढ़े ! तलवार नीचे डाल दो।” राजपत ू के मंह ु से दो-चार गा&लयां नकल+ं, परं तु `यान से तलवार नह+ं नकल पायी। आंबला गांव के बाहर को&लयL ने आकर उस राजपूत को रaसी से बांध Mदया और दरू पटक Mदया।
“बाई, गीहने उतार दो।” एक लट ु े रे ने राजपूतनी से कहा।
बेचार+ राजपत ू नी अपने शर+र पर से एक-एक गहना उतारने लगी। हाथ, पैर, सीना आMद अंग लट ु े रL क आंखL के आगे आये। उसक भर+ हुई दे ह ने लट ु े रL क आंखL म काम-वासना उभार द+। जवान को&लयL ने पहले तो उसका मजाक उड़ाना शुP Jकया। राजपूतनी शांत रह+, लेJकन जब लुटेरे बढ़कर उसके नकट आने लगे तो जहर+ल+ नाZगन क तरह फुफकारती हुई राजपूतनी खड़ी हो गई। को&लयL ने यह दे खकर अटटहास करते हुए कहा, “अरे ! उस समी क पूंछ को धरती पर पटक दो !” अंधेरे म राजपूतनी ने आकश क ओर दे खा। जटा हलकारा के घुंघP क आवाज उसके कानL म पड़ी। राजपत ू नी चीख उठ-, “भाई, दौड़ो ! बचाओ !” हलकारे ने तलवार खींच ल+ और पलक मारते वहां जा पहुंचा। बोला,
“खबरदार, जो उस पर हाथ उठाया !” बारह कोल+ लाMठयां लेकर उस पर टूट पड़े। हलकारे ने तलवार चलायी और सात को&लयL को मौत के घाट उतार Mदया। उसके &सर पर लाMठयL क वषा8 हो रह+ थी, परं तु हलकारे को लाMठयL क चोट का पता ह+ नह+ं था। राजपत ू नी ने शोर मचा Mदया। मारे डर के बचे
हुए लट ु े रे भाग गये। उनके जाते ह+ हलकारा चOकर खाकर Zगर पड़ा ओर उसके Bाण-पखेP उड़ गये। राजपूतनी ने अपने पत क रिaसयां खोल द+ं। उठते ह+ राजपूत बोला, “अब हम चल।”
“कहां चल ?” aHी ने द:ु खी होकर कहा, “तु`ह शम8 नह+ं आती ! दो कदम साथ चलनेवाला वह xाyाण, घड़ी भर क पहचान के कारण, मेरे शील क र0ा करते मरा पड़ा है । और मेरे ज.म भर के साथी, तु`ह अपना जीवन jयारा लगता है ! ठाकुर, चले जाओ अपने राaते। अब हमारा काग और हं स का साथ नह+ं हो सकता। म^ तो अब अपने बचानेवाले xाyाण क Zचता म ह+ भaम हो जाऊंगी !”
“ठ-क है , तेर+ जैसी मुझे और &मल जायगी।” कहता हुआ राजपमत वहां से चला गया। हलकारे के शव को गोद म लेकर राजपत ू नी सवेरे तक उस भयंकर जंगल म बैठ- रह+। उजाला होने पर उसने इद8 -Zगद8 से लक ड़यां इकटठ- करके Zचता रची। शव को गोद म लेकर aवयं Zचता पर चढ़ गई। अिAन सुलग उठ-। दोनL जलकर खाक हो गये। कायर पत क सती aHी जैसी शोकातुर सं;या क उस घड़ी म Zचता क 0ीण cयोत दे र तक चमकती रह+।
आंबला और रामधार+ के बीच के एक नाले म आज भी जटा और सती क aमृ त सरु /0त है । महारा,- क लोककथा चार &मH / मुरल+धर जगताप बहुत Mदन पहले क बात है । एक छोटा-सा नगर था, पर उसम रहने वाले लोग बड़े Mदलवाले थे। ऐसे .यारे नगर म चार &मH रहते थे। वे छोट+ उमर के थे, पर चारL म बड़ा मेल था। उनम एक था। राजकुमार, दस ू रा राजा के मंHी का पुH, तीसरा सहूकार का लड़का और चौथा एक Jकसान का बेटा। चारL साथ-साथ खाते-पीते और खेलतेघूमते थे। एक Mदन Jकसान ने अपने पुH से कहा, “दे खो बेटा, तु`हारे तीनL साथी धनवान ह^ और हम गर+ब ह^। भला धरती और आसमान का Oया मेल !” लड़का बोला, “नह+ं "पताजी, म^ उनका साथ नह+ं छोड़ सकता। बेशक यह घर छोड़ सकता हूं।” बाप यह सुनकर आग-बबूला हो गया और लड़के को तुरंत घर छोड़ जाने क अ?ा द+। लड़के ने भी राम क भांत अपने "पता क अ?ा
&शरोधाय8 कर ल+ और सीधा अपने &मHो के पास पहुंचा। उ.ह सार+ बात बताई। सबने तय Jकया Jक हम भी अपना-अपना घर छोड़कर &मH के साथ जायंगे। इसके बाद सबने अपने घर और गांव से "वदा ले ल+ और वन क ओर चल पड़े। धीरे -धीरे सूरज पि@चम के समु.दर म डूबता गया और धरती पर अंधेरा छाने लगा। चारL वन से गुजर रहे थे। काल+ रात थी। वन म तरह-तरह क आवाज सुनकर सब डरने लगे। उनके पेट म भूख के मारे चूहे दौड़ रहे थे। Jकसान के पुH ने दे खा, एक पेड़ के नीचे बहुतसे जुगनू चमक रहे ह^।वह अपने साZथयL को वहां ले गया और उ.ह पेड़ के नीचे सोने के &लए कहा। तीनL को थका-मांदा दे खकर उसका Mदल भर गया। बोला, “तुम लोगL ने मेर+ खातर नाहक यह मुसीबत मोल ल+।” सबने उसे धीरज बंधाया और कहा, “नह+ं-नह+ं, यह कैसे हो सकता है Jक हमारा एक साथी भख ू ा-jयासा भटकता रहे और हम अपने-अपने घरL म मौज उड़ाय। जीयगे तो साथ-साथ, मर गे तो साथ-साथ।” थोड़ी दे र बाद वे तीनL सो गये, पर Jकसान के लड़के क आंख म नींद कहां! उसने भगवान से Bाथ8ना क, “हे भगवान ! अगर तू सचमच ु कह+ं है तो मेर+ पुकार सुनकर आ जा और मेर+ मदद कर।”
उसक पक ु ार सुनकर भगवान एक बढ़ ू े के Pप म वहां आ गये। लड़के से कहा, “मांग ले, जो कुछ मांगना है । यह दे ख, इस थैल+ म ह+रे जवाहरात भरे ह^।” लड़के ने कहा, “नह+ं, मझ ु े ह+रे नह+ं चाMहए। मेरे &मH भख ू े ह^। उ.ह कुछ खाने को दे दो।” भगवान ने कहा, “म^ तु`ह भेद क एक बात बताता हूं। वह जो सामने पेड़ है न….आम का, उस पर चार आम लगे ह^-एक परू ा पका हुआ, दस ू रा उससे कुछ कम पका हुआ, तीसरा उससे कम पका हुआ और चौथा कoचा।”
“इसम भेद क कौन-सी बात ?” लड़के ने पछ ू ा। भगवान ने कहा, “ये चारL आम तुम लोग खाओ। तुमम से जो पहला आम खायगा, वह राजा बन जायगा। दस ू रा आम खाने वाला राजा का मंHी बन जायगा। जो तीसरा आम खायगा, उसके मंह ु से ह+रे नकलगे और चौथा आम खानेवाले को उमर कैद क सजा भोगनी पड़ेगी।” इतना कहकर बूढ़ा आंख से ओझल हो गया।
तड़के सब उठे तो Jकसान के पH ु ने कहा, “सब मंह ु धो लो।” Jफर उसने कoचा आम अपने &लए रख &लया और बाक आम उनको खाने के &लए दे Mदये। सबने आम खा &लये। पेट को कुछ आराम पहुंचा तो सब वहां से चल पड़े। राaते म एक कुआं Mदखाई Mदया। काफ दे र तक चलते रहने से सबको Jफर से भूख-jयास लग आई। इ&स&लए वे पानी पीने लगे। राजकुमार ने मुंह धोने के इरादे से पानी "पया और Jफर थूक Mदया तो उसके मुंह से तीन ह+रे नकल आये। उसे ह+रे क परख थी। उसने चुपचाप ह+रे अपनी जेब म रख &लए। दस ू रे Mदन सुबह एक राजधानी म पहुंचने के बाद उसने एक ह+रा नकालकर मंHी के पुH को Mदया और खाने के &लए कुछ ले आने को कहा। वह ह+रा लेकर बाजार पहुंचा ता दे तखता Oया है Jक राaते म बहुत-से लोग जमा हो गये ह^। क.धे-से-क.धा Mठल रहा है । गाजे-बाजे के साथ एक हाथी आ रहा है । उसने एक आदमी से पूछा, “OयL भाई, यह शोर कैसा है ?”
“अरे , तु`ह नह+ं मालूम ?” उस आदमी ने "वaमय से कहा।
“नह+ं तो।” “यहां का राजा बना संतान के मर गया है । राज के &लए राजा चाMहए। इस&लए इस हाथी को राaते म छोड़ा गया है । वह+ राजा चुनेगा।”
“सो कैसे ?” “हाथी क सूंड म वह फल-माला दे ख रहे हो न ?” “हां-हां।” “हाथी िजसके गले म यह माला डालेगा, वह+ हमारा राजा बन जायगा। दे खो, वह हाथी इसी ओर आ रहा है । एक तरफ हट जाओ।” लड़का राaते के एक ओर हटकर खड़ा हो गया। हाथी ने उसके पास आकर अचानक उसी के गले म माला डाल द+। इसी Bकार मंHी का पुH राजा बन गया। उसने पूरा पका हुआ आम जो खाया था। वह राजवैभव म अपने सभी &मHL को भूल गया। बहुत समय बीतने पर भी वह नह+ं लौटा, यह दे खकर राजकुमार ने दस ू रा ह+रा नकाला और साहूकार के पुH को दे कर कुछ लाने को कहा। वह ह+रा लेकर बाजार पहुंचा। राज को राजा &मल गया था, पर मंHी के अभाव क पू त8 करनी थी, इस&लए हाथी को माला दे कर
दब ु ारा भेजा गया। Jकaमत क बात ! अब हाथी नेएक दक ु ान के पास खड़े साहूकार के पH ु को ह+ माला पहनाई। वह मंHी बन गया और दोaतL को भूल गया। इधर राजकुमार और Jकसान के लड़के का भूख के मारे बरु ा हाल हो रहा था। अब Oया कर ? Jफर Jकसान के पH ु ने कहा, “अब म^ ह+ खाने क कोई चीज ले आता हूं।” राजकुमार ने बचा हुआ तीसरा ह+रा उसे सtप Mदया। वह एक दक ु ान म गया। खाने क चीज लेकर उसने अपने पास वाला ह+रा दक ु ानदार क हथेल+ पर रख Mदया। फटे हाल लड़के केपास कमती ह+रा दे खकर दक ु ानदार को शक हुआ Jक, हो न हो, इस लड़के ने जPर ह+ यह ह+रा राजमहल से चुराया होगा। उसने तुरंत पु&लस के &सपाMहयL को बुलाया। &सपाह+ आये। उ.हLने Jकसानके लड़के क एक न सुनी और उसे Zगरफतार कर &लया। दस ू रे Mदनउे स उमर कैद क सजा सुनाई गई। यह Bताप था कoचे आम का। बेचारा राजकुमार मारे Zचंता के परे शान था। वह सोचने लगा, यह बड़ा "वZचH नगर है । मेरा एक भी &मH वापस नह+ं आया। ऐसे नगर म न रहना ह+ अoछा। वह दौड़ता हुआ वहां से नकला और दस ू रे गांव के पास पहुंचा। राaते म उसे एक Jकसान Jकला, जो &सर पर रोट+ क
पोटल+ रखे अपने घर लौट रहा था। Jकसाननेउसे अपने साथ ले &लया और भोजन के &लए अपने घर ले गया। Jकसान के घर पहुंचने के बाद राजकुमार ने दे खा Jक Jकसान क हालत बड़ी खराब है । Jकसान ने उसे अoछ- तरह नहलाया और कहा, म^ गांव का मWु खया था। रोज तीन करोड़ लोगL को दान दे ता था, पर अब कौड़ी-कौड़ी के &लए मोहताज हूं। राजकुमार बड़ा भख ू ा था, उसने जो Pखी-सख ू ी रोट+ &मल+, वह खा ल+। दस ु ह उठने के बाद जब उसने मंह ु धोया तो Jफर मंह ु से ू रे Mदन सब तीन ह+रे नकले। वे ह+रे उसने Jकसान को दे Mदये। Jकसान Jफर धनवान बन गया और उसने तीन करोड़ का दान Jफर से आर`भ कर Mदया। राजकुमार वह+ं रहने लगा और Jकसान भी उससे पुHवत ् Bेम करने लगा। Jकसान के खेत म काम करने वाल+ एक औरत से यह सुख नह+ं दे खा गया। उसने एक वे@या को सार+ बात सुनाकर कहा, “उस लड़के को भगाकर ले आओ तो तु`ह इतना धन &मलेगा Jक िज.दगी भर चैन क बंसी बजाती रहोगी।” अब वे@या ने एक Jकसान-औरत का Pप रख &लया और Jकसान के घर जाकर कहा, “म^ इसक मां हूं। यह दल ु ारा मेर+ आंखL का तारा है । म^ इसके बना कैसे ज सकंू गी ? इसे
मेरे साथ भेज दो।” Jकसान को उसक बात जंच गई। राजकुमार भी भल ु ावे म आकर उसके पीछे -पीछे चल Mदया। घर आने पर वे@या ने राजकुमार को खूब शराब "पलाई। उसने सोचा, लड़का उiट+ करे गा तो बहुत-से ह+रे एक साथ नकल आयंगे। उसक इoछा के अनस ु ार लड़के को उiट+ हो गई। लेJकन ह+रा एक भी नह+ं नकला। 3ोZधत होकर उसने राजकुमार को बहुत पीटा और उसे Jकसान के मकान के पीछे एक गडढे म डाल Mदया। राजकुमार बेहोश हो गया था। होश म आने पर उसने सोचा, अब Jकसानके घर जाना ठ-क नह+ं होगा, इस&लए उसने बदन पर राख मल ल+ और सं.यासी बनकर वहां से चल Mदया। राaते म उसे सोने क एक रaसी पड़ी हुई Mदखाई द+। जैसे ह+ उसने रaसी उठाई, वह अचानक सुनहरे रं ग का तोता बनगया। तभी आकाशवाणी हुई, “एक राजकुमार+ नेBण Jकया है Jक वह सुनहरे तोते के साथ ह+ ]याह करे गी।” अब तोता मुOत Pप से आसमान म उड़ता हुआ दे श-दे श क सैर करने लगा। होते-होते एक Mदन वहउसी राजमहल के पास पहुंचा, जहां क राजकुमार+ Mदन-रात सुनहरे तोते क राह दे ख रह+ थी और Mदनब-Mदन दब ु ल+ होती जा रह+ थी। उसने राजा से कहा, “म^ इस सुनहरे
तोते के साथ ह+ ]याह कPंगी।” राजा को बड़ा द:ु ख हुआ Jक ऐसी स. ु दर राजकुमार+ एक तोते के साथ ]याह करे गी! पर उसक एक न चल+। आWखर सुनहरे तोते के साथ राजकुमार+ का ]याह हो गया। ]याह होत ह+ तोता सु.दरराजकुमार बन गया। यह दे खकर राजा खुशी से झूम उठा। उसने अपनी पुHी को अपार स`पिCत, नौकर-चकर, घोड़े और हाथी भ ट-aवPप Mदये। आधा राcय भी दे Mदया। नये राजा-रानी अपने घर जाने नकले। राजा पहले गांव के मुWखया Jकसानसे &मलने गया, जो Jफर गर+ब बन गया था। राजा ने उसे काफ संपिCत द+, िजससे उसका तीन करोड़ का दान-काय8 Jफर से चालू हो गया। अब राजकुमार को अपने &मHL क याद आई। उसने पड़ोस के राcय क राजधानी पर हमला करने क घोषणा क, पर लड़ाई आरं भ होने से पहले ह+ उस राcय का राजा अपने सरदारL-मस ु ाMहबL सMहत राजकुमार से &मलने आया। उसने अपना राcय राजकुमार के हवाले करने क तैयार+ बताई। राजा क आवाज से राजकुमार ने उसे पहचान &लया और उससे कहा, “OयL &मH, तुमने मुझे पहचाना नह+ं?” दोनL ने एक-दस ू रे को पहचना तो दोनL क खुशी का Mठकाना नह+ं रहा। अब दोनL ने &मलकर अपने साथी, Jकसान केपुH को खोजना
आर`भ Jकया। राजकुमार को यह बात खलने लगी Jक उसक खातर &मH को कारावास भुगतना पड़ा। जब सब कैMदयL को Qरहा Jकया गया तो उनम Jकसान का लड़का &मलगया। राजकुमार ने उसका आ&लंगन Jकया और अपना पQरचय Mदया। Jकसान का लड़का खुशी से उछल पड़ा। सब Jफर से इके हो गए। इसके बाद सबने अपनी-अपनी स`पिCत एकH क और उसके चार बराबर Mहaसे Jकए। सबको एक-एक Mहaसा दे Mदया गया। सब अपने गांव वापस आ गये। माता-"पता से &मले। गांव भर म खुशी क लहर दौड़ गई सबके Mदन सुख से बीतने लगे।