ज्योतिष शास्त्र वेदिक ज्योतिष
8/19/2012 SunilKumar Dubey
अनुक्रमणिका क्र.
अध्याय
१
विषय प्रिेश
२
पृष्ठ संख्या
[१]
बालारिष्ट (शीघ्रमृत्युयाेग): १.
बािह िषष अिस्था तक वकसी बालक की अायु का विचाि नन चयपुिषक नहीं वकया जा सकता । जातक की कुण्डली में अायुयाेग िहने पि भी माता-वपता द्वािा वकये गये पाप कमाेों से या बालारिष्टकािक ग्रहाें के कािि बालक की मृत्यु हाे जाती है। पहले चाि िषष तक माता के पाप से बालक की मृत्यु हाेती है, दूसिे चाि िषष तक याने अाठ िषष तक वपता के पाप से मृत्यु हाेती है, तीसिे चाि िषष तक याने बािह िषष की अिधि तक स्िकीय पूिषजन्मकृत् पाप के कािि बालक मृत्यु काे प्राप्त हाेता है।
२.
यदद जन्मकाल में चन्रमा की हाेिा हाे, जन्म का समय प्रात: - सन्ध्या या सायं – संध्या काल हाे, पाप ग्रह िाश्यन्त (िाशश के अंत) में हाे अाैि पापग्रह से युक्त हाेकि चन्रमा केन्र में स्स्थत हाे ताे जातक अिश्य मृत्यु पाता है। सन्ध्यायां दीधिनतहाेिाक्रूिैभाषन्तगतैननषिनाय । प्रत्येकं शशशपापसमेत :ै केन्रैिाषसविनाशमुपनै त । (िािाहममहहि हाेिाशास्त्र) अवप चसन्ध्याद्वये भान्त्यगताश्च पापााः चन्रस्य हाेिा यदद जन्मकाले । चतुष ुष केन्रेष ु शशाकपापापा: सया-नतबालाः वकलकालगेहम् । (जातकाभििम्)
३.
दाो राशियाोों की सन्धि मोों यदद जधम हाो औार राशि पापग्रहाोों सो युत या दृष्ट हाो ताो बालक की िीघ्र मृत्यु हाो जाती ह। यदद गण्डाधत मोों जधम हाो ताो उसको माता-पपता या बालक का स्वयों का नाि हाोता ह। यदद बालक जीपवत रह जाय ताो राजा को समान वभविाली हाोता ह। मीन औार मोष की सन्धि, ककक औार ससोंह की सोंधि, वृश्चिक औार िनु की सोंधि गण्डाधत कहलाती ह। पापग्रहाोों सो युत या दृष्ट सन्धियाोों मोों पदा हाोनो वालो बालक औल्पायु हाोतो ह।ों गण्डान्ततािासहहते मृगाकपाे
पापोसितो पापसमन्धवतो वा । बालाो लयों यातत समृत्युभागो चधरो ताा पापतनरिसितो वा । (जातकपाररजात) महपषक परािर नो भी कहा ह – सध्यायाों चधरहाोरायाों गण्डाधतो तनिनाय व । प्रत्योकों चधरपापि कोधरगैः स्याद पवनािनम ॥ इनका तात्पयक यह ह पक जातक का जधम सध्या काल (प्रातैः–सों्या औावा सायों-सों्या) हाो, चधरमा की हाोरा हाो या गण्डाधत (गण्डाधत = ककक, वृश्चिक या मीन को औधत) हाो, प्रत्योक न्स्ातत मोों चधरमा को साा पापग्रह हाो ताो जातक का िीघ्र तनिन हाो जाता ह। औागो सध्या-काल की पररभाषा महपषक नो बताया हरवोस्तु मण्डलािाकस्तात सायों सध्या तिनादडका । तावािाोद क यात्पूव ं प्रातैः सध्या तिनादडका ॥ सूयष के अिाषस्त के बाद की ३ घटी सायंसंध्या हाेती है एिं सूयष के अिष वबमबाेदय के पूिष की ३ घटी प्राताः सन्ध्या हाेती है। िामाचायष ने भी सन्ध्यानिनाडीप्रममताकषवबमबाददत्यादद कहा है। ४.
चक्र के पूिाषपि भागाशित ग्रहिशात् सद्याः मिि् :चक्रस्य पूित ेष भाषगगेष ु क्रूिेष ु साैमयेष ु च कीटलग्ने । क्षिप्रं विनाशं समुपनै त जाताः पापैविषलग्नास्तमयामभतश्च ॥ िृश्चश्चक लग्न में जन्म हाे, जन्मचक्र के पूिभ ष ाग (दशम से चतुथष पयषन्त तथा चतुथष से दशम पयषन्त अपि भाग) अथाषत दशम्, एकादश, द्वादश, प्रथम, हद्वतीय, तृतीय तथा चतुथष भाि तक चक्र का पूिष भाग तथा इसी प्रकाि चतुथष, पञ्चम, षष्ठ अादद दशमपयषन्त चक्र के अपि भाग है।ं इनमें पूिष भाग में क्रूि ग्रह की स्स्थनत हाे तथा अपि भाग में शुभ ग्रह स्स्थत हाे ताे जातक की शीघ्र मृत्यु हाेगी। सािािली में इस याेग काे िज्रमुधष्ट की संज्ञा दी गई है; यथा-
चक्रस्यापिभागे साैमयााः पापास्तथेतिे चैि । िृश्चश्चकलग्ने जातागतायुषाे िज्रमुधष्टयाेग᳡े स्स्मन् ॥ ठीक इसी अाशय का उल्ले ख महवषषपिाशि ने भी वकया हैचक्र पूिाषपिािेष ष ु क्रूि-साैमयेष ु कीटभे । लग्नगे ननिनं यानत नाि कायाष विचाििा ॥ कीटलग्न से ककष लग्न का भी ग्रहि वकया जाता है जैसा वक बादिायि ने कहा है। पूिाषपिभागगतैिशुभिै मल ककषटे लग्ने । जतस्य शशशाेमिष िं सद्याः कथयनत यिनेन्राः ॥ िज्रमुधष्ट याेग का कथन जातकाभिि में भी वकया गया हैलग्ने कुलीिे᳡प्यथिा᳡मल संज्ञे खग्रहा पूिद ष ले यदद स्युाः । साैमयाः पिािेष खलु िज्रमुधष्टयाेग ष ाे᳡यमुक्ताः प्रकिाेनत रिष्टम् । पापग्रह लग्न में स्स्थत हाेकि (ककष या िृश्चश्चक िाशश) लग्न से सप्तम तक पापग्रह अाैि सप्तम से लग्न तक शुभग्रह स्स्थत हाे ताे यह िज्रमुधष्ट नामक याेग हाेता है अाैि यह अरिष्टकािक है। चक्र के पूिाषपि भागाशित पाप तथा शुभ ग्रह की स्स्थनत के कािि अरिष्ट का कथन लघुजातक में इस प्रकाि हैचक्रे प्राक् पश्चादिेष पापशुभाःै कीटभाेदयेाः । ननिन चतुष्टयगैिाष क्रूिैाः िीिे शशशन्युदये ॥ जन्मसमय चक्र के पूिाष्ष में पापग्रह अाैि पश्चश्चमािष में शुभग्रह हाें तथा ककष या िृश्चश्चक लग्न हाे ताे जातक की शीघ्र मृत्यु हाेती है। इसी में दूसिे याेग भी बता िहे है-ं समस्त पापग्रह अष्टम अाैि केन्र (१, ४, ७) स्थान में हाे अाैि िीि चन्रमा लग्न में हाे ताे भी मिि हाेता है। विशेषाः- दशम लग्न के भाेगयांश अाैि ११, १२, १, २, ३ भाि तथा चतुथष भाि के भुक्तांश ये पूिष कपाल में िहने के कािि चक्र का पूिाषिष तथा चतुथष लग्न के भाेगयांश अाैि ५, ६, ७, ८, ९ अाैि दशम के भुक्तांश ये पश्चश्चम कपाल में िहते हैं इस कािि पश्चािषसंज्ञक हैं तथा कीट शब्द से यहााँ ककष ि िृश्चश्चक दाेनाें का ग्रहि किना चाहहए।
५.
यदद लग्न तथा सप्तम भाि के अमभताः दाेनाें अाेि अथाषत लग्न से बािहिें तथा दूसिे एिं छठें तथा अाठिें भाि में पापग्रह स्स्थत हाें ताे जातक की मृत्यु हाे जाती है। सािािली में कहा भी गया हैलग्नाद द्वादश िनगैाः क्रूिैम्रयते च िन्ररिपुगाःै । शुभसमपकषभयातैमाषस े षष्ठे᳡ष्टमे िा᳡वप ॥ छठे तथा बािहिें भाि में पापग्रह हाें ताे एक याेग, हद्वतीय तथा अष्टम में पाप ग्रह हाें ताे दूसिा याेग, इन चाि याेगाें का कथन गगाषचायष ने वकया हैअरिव्ययगतैाः पापैयदष द िा िनमृत्युगाःै । लग्ने िा पापमध्यस्ते द्यून े िा मृत्युमा नुयात् ॥ इसी याेग का कथन िृहत्पािाशि हाेिाशास्त्र में भी वकया गया हैव्ययशिुगतैाः क्रूिैमत्ृष यु-रव्यगतैिवप । पापमध्यगते लग्ने सत्यमेि मृनतं िदेत ् ॥ पापग्रह यदद १२, ६, ८, २ स्थानाें में हाें अाैि लग्न दाे पापग्रहाें के बीच में हाे ताे ननश्चय ही शशशु की मृत्यु हाेती है।
६.
यदद जन्म के समय मंगल शनन के साथ लग्न में, छठें , तथा अाठिें घि में हाे अाैि शुभ ग्रह की उन पि दृधष्ट न हाे ताे सद्याः जातक के मृत्युकािक हाेते हैं तथा सूयष के साथ अष्टम में हाे ताे भी यही हाेता है। भाैम े विलग्ने शुभदैिदृष्टे षष्टे᳡ष्टमेिा᳡कषसुतन े युक्ते । ताै चाकषसंस्थाै शुभदृधष्टहीनाै जातस्यसद्याः कुरुताः प्रिाशम् ॥ इसी का कथन महवषष पािाशि ने कीया हैपापक्षिताे युताे भाैमाे लग्नगाेन शुभक्षे िताः । मृत्युदस्त्िष्टमस्थाे᳡वप साैरििा᳡केषििा᳡स्न्िताः ॥ लग्नस्थ मंगल पापग्रह से युत दृष्ट हाे अाैि शुभग्रह की दृधष्ट उन पि न हाे ताे जातक का मिि हाे जाता है। शनन या सूयष के साथ अाठिें घि में मंगल मििकािक हाेता है।
सािािली में भी कहा हैिक्री शननभाेम ष गृह ं प्रपन्नं श्चन्रे᳡ष्टषष्ठे᳡थ चतुष्टये िा । कुजेन समप्राप्तबले न दृष्टाे िषषद्वयं जीियनत प्रजातम् ॥ यदद जन्मसमय में िवक्र शनन भाैम की िाशश (१, ८) में हाे एिं चन्रमा ६, ८, १, ४, ७, १० मोों बली मोंगल सो दृष्ट हाो ताो जातक २ वषक तक जीपवत रहता ह। जातकाभरण मोों भी कहा हषष्ठाष्टमो वापप चतुष्टयो वा पवलाोमगामी कुजमन्धदरस्ाैः । बलान्धवतोनावतनजोन दृष्टाो वषा क स्त्रिभी ररष्टकरैः ितनैः स्यात ॥ जजसको जधमकाल मोों वक्री ितन मोष या वृश्चिक राशि मोों न्स्ात हाोकर १, ४, ६, ७, ८ या १० वोों स्ाान मोों न्स्ात हाो औार बली मोंगल सो दोखा जाता हाो ताो तीसरो वषक मोों औररष्ट हाोता ह। एवों वृहस्पतत की न्स्ाततवि सारावली मो-ों वृहस्पततभाम क गृह᳡ो ष्टमस्ाैः सूयधोक दुभामाककजदृष्टमूततकैः । औब्दस्त्रिभभभाकगव क दृधष्टहीनाो लाोकाधतरों प्रापयतत प्रसूतम ॥ जन्मकाल के समय यदद मंगल की िाशश (१, ८) में अष्टम भाि में गुरु हाे अाैि सूयष, चन्रमा, भाैम ि शनन से दृष्ट हाे तथा उन पि शुक्र की दृधष्ट न हाे ताे जातक का तीसिे िषष में मिि हाेता है। इसी स्स्थनत का कथन जातकभिि में भी वकया गया हैभाैमालयेकाषिशननन्दुदृष्टे गृह᳡े ष्टमे मचिशशखस्ण्डसूनाःु । अदृष्टमूनतषभग ृष ि ु ाि याेगे प्रािैविषयाेगं लभते मनुष्याः ॥ यदद मेष या िृश्चश्चक िाशश में हाेकि गुरु अष्टम भाि में स्स्थत हाे अाैि सूयष शनन चन्रमा से देखा जाता हाे तथा शुक्र से न देखा जाता हाे ताे जातक की मृत्यु हाेती है। ७.
यदद मंगल अाैि शनन सूयष के साथ द्वादश भाि में स्स्थत हाें तथा शुभग्रह की दृधष्ट से िहहत हाें ताे मृत्यु के कािि हाेते है; यिनेश्वि का कथनपापेष ु लग्नामभमुखष े ु नश्येदिाप्तिीयेष्ष िशुभिषजष े ु ॥
िे शनन तथा मंगल छठे तथा अाठिें सूयष के साथ शुक्र की िाशश िृष या तुला में स्स्थत हाें ताे जातक की मृत्यु हाेती है। सिािली में – भाैमददिाकिसाैिास्श्छरे जातस्य शुक्र गृहे । मम्रयते सनिाे᳡िश्यं यमकृत ििाे᳡वपमासे न ॥ इसी अाशय का कथन जातकभिि में भी वकया हैमासेन मन्दािननसूनस ु य ू ाषस्श्छरारिगेहाशिततासमेतााः । यदद शनन, मंगल, सूयष तीनाें का याेग षष्ठ, अष्टम में हाे ताे एक मास में जातक की मृत्यु हाेती है। ८.
निम िषष में अरिष्टकथन (सािािली)भास्किहहमकिसहहताः शनैस्ििाे मृत्युदाः प्रसिकाले । िषष निमभयाषताैरित्याह ब्रह्मशाैण्डमतम् ॥ यदद जन्म समय में सूयष, चन्रमा के साथ शनन हाे ताे निम िषष के अनन्ति जातक की मृत्यु हाेती है। यह कथन ब्रह्ममशाैण्ड का है। जातकाभिि में भी कहा हैचराकषयुगजन्मनन भानुसन ू ाःु किाे-नतनून ं ननिनं निब्दैाः ।
९.
१० या १६ िषष में अरिष्ट ज्ञानिाहुश्चतुष्टयस्थाे मििाय ननिीक्षिताे भिनत पापैाः । िषैि ष द ष स्न्त दशमभाः षाे᳡षमभाः केमचदाचायाषाः ॥ यदद जन्म काल में िाहु १, ४, ७, १० भाव मोों पाप ग्रह सो दृष्ट हाो ताो पकसी को मत सो १० वषक मोों, पकसी को मत सो १६वोों वषक मोों मरण हाोता ह। जातक भरण मोों कहा हराहुभकवज्ज ो धमतन कोधरवतीक क्रूरग्रहिापप तनरिसितिोत । कराोतत वषद क किभभपवकनािों-वदन्धत वा षाो᳡िभभि को भचत ॥
जधम काल मोों कोधर मोों न्स्ात राहु पापग्रह सो दोखा जाता हाो ताो जातक की दसवोों या साोलहवोों वषक मोों मृत्यु हाोती ह। ९.
स्वल्प काल मोों मरणयाोग औोंिाधिपजधमपतीलग्न पततिास्तमुगतायस्य । सोंवत्सरस्तु मरणों तनवाकज ों कततपयरोव ॥ यदद नवाोंिपतत, राशिस्वामी ताा लग्नस्वामी– यो तीनाोों जजस जातक को औस्त हाोों ताो औल्प वषाोक मोों ही मरण हाो जाता ह।
१०.
१, ६, ८ मास मोों औररष्ट ज्ञान साम्या षष्ठाष्टमगाैः पापवकक्राोपसण््गतदृष्टा । मासो मृत्युदास्तो यदद न िुभस्ति सधदृष्टा ॥ लग्नादाादििनगैः क्रूरमृयतो च रधुररपुयः ु ैः । िुभसम्पककमयातमाकस ो षष्ठ᳡ष्टमो वा᳡पप ॥ यदद िुभ ग्रह षष्ठ औष्टम भाव मोों वक्रगतत वालो पापग्रह सो दृष्ट हाो ताा िुभग्रह सो औदृष्ट हाो ताो १ मास मोों तनिन हाोता ह। यदद लग्न सो १२, २, ८, ६ मोों पापग्रह, िुभग्रह सो औदृष्ट व पृाक हाो ताो ६ या ८ वोों मास मोों तनिन हाोता ह। इसी काो जातक भरण मोों भी कहा हिनाधतगवाक᳡ररमृततन्स्ातवाक िमाकष्टमस्ार्वयय क ििुगवाक । क्रूरग्रहो याो जननों प्रपन्नैः षष्ठो᳡ष्टमोमासस मृततों प्रयातत ॥ षष्ठाष्टमस्ााैः िुभखोचरोधराैः पबलाोमगैः पापखगैः प्रदुष्टाैः । िुभरदृष्टा यदद तो भवन्धत मासोन नून ों तनिनों तदानीम ॥ (सारावली) यदद पाप ग्रह (२, १२), (६, ८), (८, ९) या (६, १२) मोों न्स्ात हाो ताो जातक की छठोों या औाठवोों मास मोों मृत्यु हाोती ह।
जजसको जधमकाल मोों षष्ठ या औष्टम मोों न्स्ात हाोकर िुभग्रह यदद वपक्र पापग्रह सो दोखो जातो हाोों औार िुभग्रह सो न दोखो जातो हाोों ताो जातक की एक मास मोों मृत्यु हाोती ह। ११.
उदयास्तगतपापिशादरिष्टलिि पापावुदयास्तगता क्रूरोण युति ििी । दृष्टि िुभनक यदा मृत्युि भवोदाभचरात ॥ जधमलग्न मोों एक पापग्रह हाो ताा सप्तम मोों एक पाप्ग्ग्रह हाो, चधरमा पापग्रह को साा हाो ताा पापग्रह सो दृष्ट हाो ताा िुभ ग्रह सो औदृष्ट हाो ताो जातक की िीघ्र मृत्यु हाोती ह। लग्न पर पापग्रह की युतत ताा दृधष्ट औार चधरमा की पापयुतत मृत्युकारक हाोती ह। यदद चधरमा तीन पापग्रहाोों सो दृष्ट हाो ताो माता का मरण कहना, सूयक दाो पापग्रह सो वीसित हाो ताो पपता की मृत्यु कहनी चाहहए।
१२.
मातृ औररष्ट-ज्ञान यिस्ास्तिस्ााो रुधिराककिनिरोसित-िधरैः । जननीमृत्युों कुयाकन्नतु साम्यतनरिसितैः सद्यैः ॥ यदद जधम को समय पकसी भी भाव मोों चधरमा मोंगल, सुयक, ितन– इन तीनाोों सो दृष्ट हाोों माता का िीघ्र तनिन हाोता ह। यदद चधरमा िुभग्रह सो दृष्ट हाो ताो माता का तनिन नहीों हाोता ह। वृहत्परािर मोों कहा हपापैः खोटस्त्रिभभिधराोदृश्यतो यदद जधमतन । मातृनािाो भवोत्तस्य िुभदृष्टो िुभ ों वदोत ॥ जधमकाभलक चधरमा काो यदद तीन पापग्रह दोखोों, ताो जातक को माता की मृत्यु कहो, यदद चधरमा पर िुभ ग्रह की दृधष्ट हाो ताो, िुभ कहना चाहहए।
१३.
वपतृ अरिष्ट-ज्ञान रुधिरिनिरदृष्टाो ददवसकराो ददवसस जधमतनयस्य । पापयुताो वा हधयात पपतरों तनैःसोंियों जातैः ॥ जजस जातक का ददन मोों जधम हाो औार सूयक मोंगल ताा ितन सो दृष्ट हाो औावा सूयक पापग्रह सो युत हाो ताो तनिय ही पपता का मरण हाो।
१४.
पापयुत चधराक्राधतराशिविाद औररष्ट कान
क्रूरसोंयत ु ैः ििी स्मराधत्यमृत्युलग्नगैः । कण्टकाााहहैः िुभरनीसिति मृत्युदैः ॥ जधमकाल मोों चधरमा क्रूर ग्रह को साा सप्तम, ाादि, औष्टम ताा लग्न मोों न्स्ात हाो, िुभ ग्रह कोधरस्ाान को औततररः स्ाान पर न्स्ात हाो ताा चधरमा पर उनकी दृधष्ट न हाो ताो जातक का मरण हाोता ह। यदद िुभग्रह कोधर को बाहर हाोकर दोखतो हाो ताो इस याोग भ्ग हाो जाता ह। िुभग्रह कोधर को बाहर हाोों तभी यह याोग प्रभावी हाोता ह, औधयाा नहीों। १५.
यदद १२, ८, ७, १ भाब में चन्रमा पापग्रह से युत एिं शुभग्रह से अदृष्ट एिं केन्र (१, ४, ७, १०) में शुभग्रह न हाे ताे जातक का ननिन हाेता है। व्ययाष्टसप्ताेदयगे शशाकपाे पापैाः समेत ै शुभदृधष्टहीने । केन्रेष ु साैमयग्रहिर्जषतष े ु जातस्य सद्याः कुरुतेप्रिाशम् ॥
१६.
जातक भरण मोों कहा हलग्नास्तरधुाधत्यगतोििा्को पापान्धवतो साम्यरवगर दृष्टो । कोधरोष ु साम्यग्रहवजजकतष ो ु कीनािदोिों हहशििुैः प्रयातत ॥ यदद चधरमा १, ७, ८, १२ भाव मोों पापग्रह को साा हाो, िुभ ग्रह सो न दोखा जाता हाो औार न काोई िुभ ग्रह कोधर मोों हाो ताो जातक की मृत्यु हाोती ह। यदद कोधर मोों िुभग्रह की न्स्ातत हाो जाय ताो यह याोग भोंग हाो जाता ह ताा औररष्ट याोग नष्ट हाो जाता ह। जसा पक सारावली मोों कहा गया हगुरुिुक्रा च कोधरस्ाा जीवोाषकितों नरैः । ग्रहातनष्टों हहनस्त्यािु चधरातनष्टों ताव च ॥ यदद गुरु व िुक्र कोधरस्ाान मोों न्स्ात हाो ताो जातक सा वषक तल जीपवत रहता ह। ग्रहाोों को औतनष्ट फल ताा चधरकृत औतनष्ट फल का नाि हाो जाता ह। औााकत िुभ फल की प्रतप्त हाोती ह।
१७.
प्रत्येक िाशश मे,ं चन्रकृत् अरिष्टयाेग ज्ञान कुम्भो ददितत ििा्को भागो मृत्यु ताकपवोंिाख्यो । ों ो वृष ो च नवमो तावाोः ैः ॥ ससोंह ो च पोंचमोि औभलतन तिपवोंियुः ो मोष ो च तााष्टमो ददितत मृत्युम ।
कककटको ाापवोंिो तुभलतनचतुा ोक मृगो पवोंिो ॥ कधयायाों प्रामोंिो िनुिक रो᳡ष्टादिो झषो दिमोों । भमाुन ो च ाापवोंिो ििी प्रसूतस्य मरणकरैः ॥ यदद जधमकालीन चधरमा कुम्भ राशि को २१वोों औोंि मोों हाो या ससोंह को ५वोों औोंि मोों हाो या वृष को ९वोों औोंि मोों हाो ताो मरण करता ह। वृश्चिक राशि को २३वोों औोंि मोों, मोष को ८ (औष्टम) औोंि मोों, ककक राशि को २२वोों औोंि मोों, तुला को चतुाक औोंि मोों, मकर राशि को २०वोों औोंि मोों चधरमा हाो ताो तनिन करता ह। कधया राशि को प्रामाोंि मोों, िनु को औठारहवोों औोंि मोों, मीन को दसवोों औोंि मोों, भमाुन राशि को २२वोों औोंि मोों चधरमा हाो ताो मरण्कारक हाोता ह। जातकभरण मोों कहा हमात्ग८नकवभभि ९रामनयन२३नोि क ाश्चिभभैः२२सायक रोकोनाों ५ बुधिभभ४स्त्रिलाोचन भमत२३िृत्क या १८च पवोंिाो२०न्धमतैः । भूनि ो २१दकिभभ १०लक वयकदद भवोधमोषाददसोंस्ााोपविुवषभ क ाकगसमैः कराोतत तनिनों कालाो᳡यमिाोददत्तैः ॥ जधम को समय चधरमा मोष को ८वोों औोंि मो,ों वृष को ९वोों औोंि मो,ों भमाुन को २३वोों औोंि मोों, ककक को १२वोों औोंि मो,ों ससोंह को ५वोों औोंि मोों, कधया को १ औोंि मो,ों तुला को चााो औोंि मोों, वृश्चिक को २३वोों औोंि मोों, िनु को १८वोों औोंि मोों, मकर को २०वोों औोंि मोों, कुम्भ को २१वोों औोंि मोों मीन को १०वोों औोंि मोों हाो ताो वह जातक औोंितुल्य वषक मोों मृत्यु पाता ह। चधरमा यदद कोधर या औष्टक मोों हाो औार मृत्युभाग मोों हाो ताो भी बालक की िीघ्र मृत्यु हाोती ह। पकस राशि मोों पकस औोंि मोों चधरमा औार लग्न मृत्युभाग मोों हाोता ह इसकाो फलदीपपका मोों इस प्रकार बताया गया हचाधरों रुपों लाोकिूराो वरज्ञैः कुडयो भचिों भायलयलाोको सुखानाम । मोन ो राज्य मृत्युभागाैः प्रददष्टा मोषा दीनाों वणकसख् ों यहहकमािाोैः ॥ दानों िोनाो रुररारीभुखन ो भायलयाभानुगाोि क जायानखोन । पुिी तनत्यों मृत्युभागा क्रमोण मोषादीनाों तोषज ु ाता गतायुैः । इन श्ाोकाोों का भाव ताा पकस राशि मोों ताा पकन-पकन औोंिाोों मोों रहनो सो चधरमा या लग्न मृत्युभाग मोों कहलाता ह- यह तनचो को चक्र सो स्पष्ट हाो जायोगा।
स्पष्टबाोिनााकचक्रम राशि
चन्रमा का अंश
लग्न का अंश
मेष
२६°
८°
िृष
१२°
९°
ममथुन
१३°
२२°
ककष
२५°
२२°
क्षसंह
२४°
२५°
कन्या
११°
१४°
तुला
२६°
०४°
िृश्चश्चक
१४°
२३°
िनु
१३°
१८°
मकि
२५°
२०°
कुमभ
०५°
२१°
मीन
१२°
१०°
जन्म के समय चन्रमा या लग्न उपिाेक्त अंशाें पि हाे ताे जातक अल्पायु हाेता है। १८.
याेगातान्ति सिणो हहमगा र्वययगो पापरुदयाष्टमगैः कोधरोष ु िुभाि न चाोन्त्िप्रों तनिनों प्रवदोत ॥ (लघुजातक ८ औ्याय १ श्ाोक) जधम को समय यदद सिण चधरमा र्वयय भाव मोों हाो ताा पापग्रह लग्न व औष्टम भाव मोों हाो ताा कोधर मोों िुभ ग्रह न हाोों ताो जातक की िीघ्र मृत्यु हाोगी- एोसा कान करो। यदद लग्न व औष्टम मोों पापग्रह न हाोों, कोधर मोों िुभ ग्रह हाोों ताो औायुविकक याोग हाोता ह। सारावली मोों कहा हन निनो ग्रहैः कश्चित पापाो हाोरागताो᳡ावा । कोधरो वाधयतराो जीवाो जीवत्यष्टिताोत्तरम ॥ न कोधरो कश्चिदाग्नोयाो न तिकाोणो न निनो ।
गुरुिुक्रा च कोधरस्ाा जीवोदष्टिताधिकम ॥ यदद जधम को समय औष्टम भाव व लग्न काोई भी पापग्रह न हाो ताा पकसी भी कोधर (१, ४, ७, १०) मोों गुरु हाो ताो जातक १०८ वषक तक जीता ह। यदद कोधर तिकाोण व औष्टम भाव पापग्रह सो रहहत हाो ताा गुरु िुक्र कोधर मोों हाो ताो जातक १०८ वषक तक जीता ह। औपप च सारावल्यामयदद हाोरागतैः िुक्रैः कोधरोष्वधयतमो गुरुैः निनो न च पापाैः स्यात सपविों जीवनो ितम ॥ यदद लग्न मोों िुक्र हाो औार पकसी भी कोधर मोों गुरु हाो ताा औष्टम भाव मोों पाप ग्रह न हाो ताो जातक १२० िषष जीवित िहता है। इस प्रकाि बहुत से मिियाेग का केन्रस्थ शुभ ग्रह के कािि अरिष्ट का नाश हाेता है तथा दीघाषयु प्राप्त हाेती है। जैसा वक सािािली में कहा है – सिाषनतशाय्यनतबलाः१ स्फुिदंशम ु ालीलग्ने स्स्थताः प्रशमयेत ् सुििाजम िी२ । एकाे बहूनन दुरितानन सुदस्ु तािाणि भक्त्या प्रयुक्त इि शुलििे३ प्रिामाः ॥ [ १. केन्राेपगाे᳡नतबलिान्। २. स्िलाेक ष िाज समचिाः शमयेदि े श्यम। ३. चक्रििे। ] यदद जन्मलग्न में देदीप्यमान वकििाें से युक्त बली गुरु एकाकी लग्न में स्स्थत हाे ताे समस्त अरिष्टाें का नाशक हाेता है, जैसे भमक्तपूिक ष वकया हुअा िी शशिजी के प्रनत पाठान्ति (चक्रििे) िी विष्िु जी के प्रती एक नमस्कि भी समग्र महापापाें काे नष्ट कि देता है। िृहत्पािाशि ने भी कहा है – एक एि बली जीिाे लग्नस्थाे᳡रिष्टसश्चयम हस्न्त पापियं भक्त्या प्रिाम इिष शूमलनाः ॥ १९.
शीघ्र अरिष्ट-ज्ञान हाोरातनिनास्तगैः पापैः िीणो र्वययन्स्ातो चधरो ।
जातस्य भवोधमरणों सद्यैः कोधरोष ु चोि िुभाैः ॥ यदद लग्न, अष्टम, सप्तम भाि में पापग्रह हाें तथा िीि चन्रमा व्यय (द्वादश) भाि में हाे अाैि केन्र में शुभ ग्रह न हाे ताे शीघ्र मृत्यु हाेती है। जातकाभिि में भी कहा हैभूमीसुत े िाकषसुत े विलग्ने भानाैस्मिस्थानगते᳡न्यथा िा । युक्ते तयाेिन्यत्मेन चन्रे᳡मचिेि मृत्युाः परििेददतव्याः ॥ पापैविषलग्नाष्टमिामसस्थैाः िीिे वििाै द्वादशभाियाते । केन्रेष ु साैमया न भिस्न्त नून ं शशशाेस्तदानीं ननिनं प्रकल्प्यम् ॥ यदद मंगल या शनन लग्न में हाें, सूयष सप्तम में स्स्थत हाे चन्रमा लग्न ि सप्तम काे छाेड कि अन्य स्थानाें में हाे ताे जातक की शीघ्र मृत्यु हाेती है। पापग्रह लग्न या अष्टम स्थान में स्स्थत हाे, िीि चन्रमा द्वादश भाि में हाे अाैि काेई शुभ ग्रह केन्र स्थान में न हाे ताे जातक की शीघ्र मृत्यु हाेती है। २०.
चन्रकृत् अरिष्टकथन िशिधयररपवनािगो ननिनमाशु पापेक्षिते । िुभरा समाष्टकों दलमति भमश्रोसितो ॥ औसद्भिरवलाोपकतो बभलभभरि मासों िुभ ो । कलिसहहतो च पापपवजजतो पवलग्नाधिपो ॥ यदद चधरमा छठोों औाठवोों भाव मोों हाो ताा पापग्रह सो दृष्ट हाोों ताो िीघ्र मरण हाोता ह। यदद िुभ सो दृष्ट हाो ताो औाठ वषक तक जीपवत रहता ह। यदद िुभ व औिुभ दाोनाोों प्रकार को ग्रहाोों सो दृष्ट हाो ताो उः वषक सोंख्या सो औािी यानो ४ वषक हाो जाती ह। चधरमा की यह न्स्ातत चाहो िुभ ग्रह सो औावा औिुभ ग्रह सो या दाोनाोों सो दृष्ट हाोनो पर मरणकारक ही हाोती ह। यदद पकसी ग्रह सो दृष्ट न हाो ताो मरण्कारक नहीों हाोता। इसी प्रकार छठो , औाठवोों भाव मोों न्स्ात िुभग्रह भी िुभािुभ दृधष्ट सो रहहत हाोनो पर िुभ फल ही करता ह। छठो या औाावोों भाव मोों िुभ ग्रह न्स्ात हाोों औार पाप ग्रह सो दृष्ट हाोों ताो जातक एक माह का जीवन पाता ह। यदद िुभ व औिुभ दाोनाोों की दृधष्ट हाो ताो दाो माह तक जीपवत रहता ह। लग्नोि सप्तम भाव मोों न्स्ात हाो ताा पाप ग्रह सो युद्ध मोों पराजजत हाो ताो जातक एक मास जीपवत रहता ह। यानो लग्नाधिपतत की मारक स्ाान मोों न्स्ातत ताा पापग्रह सो पराजजत
हाोना औायु सिणता का द्याोतक ह। यद्यपप लग्नोि सप्तम भाव मोों न्स्ात हाोकर लग्न काो दोखता ह इसभलयो औायुष्य कारक हाोता ह पकोंतु युद्ध मोों पाप ग्रह सो पराजजत हाोनो को कारण औररष्ट फलकारक हाोता ह। “औसद्भिरवलाोपकतो बभलभभरि मासों िुभो” िुभिोि न्स्ात षष्ठाष्टमस्ा चधरमा पर औभमशश्रत औााकत कोवल तीन पाप ग्रहाोों सो दृष्ट हाोनो पर ही मरण हाोता ह। औतैः औिुभ ग्रह की राशि मोों न्स्ात चधरमा को पवषय मोों पराोः फल समझना चाहहए; जसा पक यवनोश्वर नो कहा हचधरमाच्छिी निनगाो᳡िुभिोक षष्ठो तु वा पाप तनरिसिति । सवाकयरु ाहन्धत िुभरभमश्रो तदीसितो᳡ब्दाष्टकपयकयण ो ॥ चधरमा को छठोों औाठवोों हाोनो माि सो मरण नहीों कहना चाहहए, इसका तात्पयक ह काोोंपक कृष्ण पि मोों ददवाजधम व िुक्ल पि मोों राति का जधम हाो औार चधरमा छठोों औाठवोों भाव मोों हाो ताो िुभिुभ की दृधष्ट सो मरण का कान न करो। जसा पक सारावली मोों कहा हपिो ससतो भवतत जधम यदद िपायाों कृष्णो᳡ावा᳡हतन िुभािुभदृश्यमानैः । त्तों चधरमा ररपुपवनािगताो᳡पप य नादापत्सु रितत पपतोव शििुों न होंन्धत ॥ यदद िुक्ल पि हाो औार राति मोों जधम हाो या कृष्ण पि मोों ददन मोों जधम हाो ताो ६, ८ भाव मोों न्स्ात चधरमा िुभािुभ ग्रहाोों सो दृष्ट हाोनो पर भी य न सो पवपद्भत्त मोों रिा करता ह। जसा पपता औपनो पुि काो मारता नहीों, औपपतु रिा ही करता ह। वृहत्पारािर मोों कहा हिुक्लपिो िपाजधम-लग्नो साम्यतनरिितो । पवपरितों कृष्णपिो ताा᳡ररष्टपवनािनम ॥ िुक्ल पि मोों राति मोों जधम हाो औार लग्न पर िुभ ग्रह की दृधष्ट हाो, या कृष्ण पि मोों ददन का जधम हाो औार लग्न पर पापग्रह की दृधष्ट हाो ताो भी सभी औररष्ट समाप्त हाो जातो ह। २१.
माता के साथ शशशुमिियाेग लग्नोिीणो िशितन तनिनों रधुकोधरोष ु पापैः पापाधतस्ाो तनिनहहबुकद्यूनयुः ो च चधरो । एवों लग्नो भवतत मदनन्च्छरसोंस्ाि पाप-
माकिा सािक यदद च न िुभवीकसितैः िभः मद्भिैः ॥ यदद िीण चधरमा लग्न मोों न्स्ात हाो, औष्टम ताा कोधर मोों पापग्रह हाो ताो जातक की िीघ्र मृत्यु हाोती ह। दूसरा याोग- यदद चधरमा औष्टम, चतुाक या सप्तम भाव मोों पापग्रहाोों को म्य मोों हाो ताो सद्यैः मरणकारक हाोता ह। एवों चधरमा लग्न मोों पापग्रहाोों को म्य मोों न्स्ात हाो ताा सप्तम व औष्टम मोों पापग्रह न्स्ात हाो ताा बलवान िुभ ग्रह सो चधरमा दृष्ट न हाो ताो माता को साा-साा जातक की मृत्यु हाोती ह। यहााँ चधरमा की पापग्रह को म्य न्स्ातत को कारण माता का तनिन कहा गया ह। औतैः यदद सूयक पापग्रहाोों को म्यन्स्ात हाो ताो पपता का मरण कहना चाहहए। जसा पक सारावली मोों कहा गया हयदद जधम को समय ितन, सूयक, चधरमा ताा मोंगल र्वयय, नवम, लग्न व औष्टम मोों न्स्ात हाोों ताा बलयुः गुरु सो न दोखो जातो हाोों ताो जातक का िीघ्र मरण हाोता ह। सारावली मोों इसकाो औार भी ग्रहाोों की युतत को कारण औररष्ट का कान पकया ह। याारपवचधरभामगुरुभभैः कुजगुरुसारोधदुभभस्ताकस्ाैः । रपवितनभामििा्कोमकणों खलु पञ्चभभवकषैःोक ॥ यदद जधम को समय मोों सूय-क चधर-भाम-गुरु एक राशि मोों हाोों या भाम-गुरु-ितन-चधरमा एक राशि मोों हाोों या सूय-क ितन-भाम-चधरमा एक राशि मोों ताो पााँच वषक मोों जातक का मरण हाोता ह। जातकाभरण मोों इससो कुछ भभन्न कहा गया हसूयज्ञ क जीवाैः ितनभामिुक्रैः सूयाकरमधदाि यददधदुयः ु ाैः । प्रसुततकालो भमभलतायदद स्युनाकिैः शििाोरब्दकपञ्चकोन ॥ जधम-काल मोों चधरमा को सहहत सूयक, बुि, वृहस्पतत या ितन, मोंगल, िुक्र वा सूय-क मोंगल-ितन एक राशि मोों न्स्ात हाो ताो जातक पााँचवोों वषक मोों मृत्यु पाता ह। पुनैः औररष्ट कान सुत्मदनवमाधत्य लग्नरधुोष्विुभयुताो मरणाय िीतरन्श्मैः । भृगस ु त ु िशिपुिदोवपूज्ययकदद-बभलभभकन क युताो᳡वलाोपकताो वा ॥ चधरमा पापग्रह को साा पोंचम, सप्तम, नवम, र्वयय, लग्न वा औष्टम मोों सो पकसी भाव मोों न्स्ात हाो, िुक्र बुि-गुरु को न ताो साा हाो औार न ताो इनको ाारा दृष्ट ही हाो ताो जातक का मरण हाोता ह। यहााँ िुभ ग्रह की युतत वा दृधष्ट सो सम्पुणक औररष्ट का नाि पववसित ह। जसा पक सारावली मोों कहा भी गया ह-
साम्यग्रहरततबलपवकबलि पाप लक ग्न ों च साम्यभवनों िुभदृधष्टयुः म । सवाकपदापवरहहताो भवतत प्रसूतैः पूजाकरैः खलु याा दुररतग्रकहाणाम ॥ यदद जधमकुण्डली मोों समस्त िुभग्रह पूणक बलवान हाो ताा सब पापग्रह तनबकल हाो औार िुभ ग्रह की राशि मोों लग्न, िुभग्रह सो दृष्ट हाो ताो जातक को समस्त औररष्टाोों (औापद्भत्तयाोों) का पवनाि हाोता ह, जसा सब ग्रहाोों की पूजा करनो वाला पापाोों सो रहहत हाोता ह। २२.
अनुक्त काल में अरिष्ट याेगाें में मिि-काल-ननरुपि याोग ो स्ाानों गतवतत बभलनिधरो स्वों वा तनुगह ृ मि वा । पापदृकष्टो बलवतत मरणों वषकस्याधतैः पकल मुतनगददत्तम ॥ उपराोः जजन औररष्ट याोगाोों मोों मरण का समय नहीों कहा गया ह उन याोगाोों मोों मरणकाल का कान करतो हों – जधम समय मोों सबसो बली जाो ग्रह हाो उस ग्रह को स्ाान मोों, वा औपनो स्ाान (जधम समय जजस स्ाान मोों चधरमा हाोता ह औार पापग्रहाोों सो दृष्ट हाोता ह उस समय सो उस जातक का मुतनयाोों सो कहा हुऔा मरण समझना चाहहए। ऊपर जाो बालाररष्ट को दाोष कहो गयो ह उनकी िान्धत को भलए प्रततवषक बालक की जधमततभा (निि) को ददन (चाधर मास को हहसाब सो) जप, हाोम औादद सो िान्धत करो। एोसा १२ वषक की औवस्ाा तक करना चाहहए। बालक को पपता काो भी उभचत ह पक भचपकत्सा ताा औधय औायुविकक सािनाोों ाारा बालक की रिा करो। सारावली मोों भी कहा गया हतद्ाोषिाधत्य प्रततजधमतारा मााादिाब्दों जपहाोमपूवम क । औायुष्करों कमकपविाय ताता बालों भचपकत्साददभभरोव रिोत ॥ ग्रहाोों की एोसी न्स्ातत, जजससो बच्चो बीमार पडतो हों या बच्चाोों की मृत्यु हाो जाती ह बालाररष्ट कहलाता ह। उदाहरणााक िीण चधरमा का छठोों औाठवोों हाोना। ततभा वार निि, ग्रह औादद को कारण जाो याोगाोों सो औररष्ट हाोतो हों वो याोगाररष्ट कहलातो हों। फलदीपपका मोों “ददनमृत्यु” व “ददनराोग” या “पवषघटीकाल” मोों जधम हाोनो पर िीघ्र मरण याोग बताया गया हमृत्युैः स्यादद्नमृत्युरुन्यलवषघटी कालो ᳡ा ततष्यो᳡म्बुभ ो ताताम्बासुतमातुलाधपदविात्वाष्टरो च हधयात्ताा । मूलिोक पपतृमातृवि ों पवलयों तस्याधत्यपादो तियों
सापोक र्वयस्तभमदों फलों न िुभसम्बधिों पवलग्नों यदद ॥ ददधमृत्यु- ितनष्ठा औार हस्त का प्राम चरण पविाखा औार औाराक का हातीय चरण, उत्तरा भारपद औार औाश्ोषा का तृतीय चरण ताा भरणी औार मूल का चतुाक चरण हाो औार ददन का समय हाो ताो ददनमृत्यु याोग हाोता ह। यदद राति मोों जधम हाो ताो दाोष नहीों हाोता। ददनराोग- औाश्ोषा औार उत्तराभारपद का प्राम चरण, भरणी औार मूल का हातीय चरण, उत्तरा फाल्गुनी औार श्रवण का तृतीय चरण ताा स्वाती औार मृगशिरा का चतुाक चरण यदद ददन को समय हाो ताो “ददनराोग याोग” कहलाता ह। यदद राति मोों जधम हाो ताो दाोष नहीों हाोता। पवषघटी याोग- प्रत्योक निि मोों चार घटी का समय पवषघटी काल हाोता ह। इसका पववरण औागो ददया गया हक्रम
निि
विषघटी
क्रम
निि
विषघटी
१.
अश्वश्वनी
५० से ५४ तक
१५.
स्िाती
१४ से १८ तक
२.
भििी
२४ से २८ तक
१६.
विशाखा
१४ से १८ तक
३.
कृत्तिका
३० से ३४ तक
१७.
अनुिािा
१४ से १८ तक
४.
िाेहहिी
४० से ४४ तक
१८.
ज्येष्ठा
१४ से १८ तक
५.
मृगशशिा
१४ से १८ तक
१९.
मूल
५६ से ६० तक
६.
अाराष
२१ से २५ तक
२०.
पूिाषषाढ़ा
२४ से २८ तक
७.
पुनिषसु
३० से ३४ तक
२१.
उििाषाढ़ा
२० से २४ तक
८.
पुष्य
२० से २४ तक
२२.
ििि
१० से १४ तक
९.
श्लेषा
३२ से ३६ तक
२३.
िननष्ठा
१० से १४ तक
१०.
मघा
३० से ३४ तक
२४.
शतमभषा
१८ से २२ तक
११.
पूिाषफाल्गुनी
२० से २४ तक
२५.
पूिाषभारपदा
१६ से २० तक
१२.
उििाफाल्गुनी
१८ से २२ तक
२६.
उििाभारपदा
२४ से २८ तक
१३.
हस्त
२१ से २५ तक
२७.
िेिती
३० से ३४ तक
१४.
मचिा
२० से २४ तक
अश्वश्वनी निि के ५० घटी बीत जाने पि ४ घटी काल औााकत ५४ वीों घटी समाप्त हाोनो तक पवषघटी काल समझा जाता ह। इसी प्रकार सवकि समझना चाहहए। यदद पुष्य, पूवाकषाढा औार भचिा को प्राम चरण मोों जधम हाो ताो बालक को पपता की मृत्यु हाो, यदद हातीय चरण मोों जधम हाो ताो माता की, यदद तृतीय चरण मोों हाो ताो बालक स्वयों की औार यदद चतुाक चरण मोों हाो ताो जातक को मामा की मृत्यु हाो।
यदद लग्न का िुभ ग्रहाोों सो सम्बधि न हाो औार मूल या श्ोषा मोों जधम हाो ताो तनम्नभलन्खत फल हाोता हमूल प्राम चरण — औाश्ोषा चतुाक चरण — पपता की मृत्यु मूल हातीय चरण — औाश्ोषा तृतीय चरण — माता की मृत्यु मूल तृतीय चरण — औाश्ोषा हातीय चरण — वोंिनाि मूल चतुाक चरण — औाश्ोषा प्राम चरण — लक्ष्मी औार समृद्धद्ध समस्त कमथत अरिष्ट याेगाें में गुरु की स्स्थनतिश मिि-िषष ज्ञान (सिािली) एिं सिषप्रयत्नेन जायमानस्य देहहनाः । हाेिास्थानानन केन्राणि मचन्तनीयानन तद्यथा ॥ मचन्तयेज्जायमानस्य स्थानिाशशषु ननत्यशाः । िृहस्पनतनृि ष ां जीिस्तस्य ननत्यं िृहस्पतेाः ॥ पञ्चदशषट् समेतश्चत्िारिंशिथैक – विंशच्च । शतमथ चत्िारिंशत् षधष्टश्वस्त्रश ं त् क्रमायु हाेिायााः ॥ तृतीयचतुथम ष च ं मसप्तमनिमदशमैकादश्गृहष े ु जीिास्स्थताै िषाषाः ॥ इस प्रकाि समस्त प्रयत्न से जातक के िाशश-स्थान ि केन्र-स्थान का विचाि कि अरिष्ट कहना चाहहए। गुरु जातक का जीिन है, इसमलए िृहस्पनत की स्स्थनतिश मृत्यु का विचाि किना चाहहए। यथा यदद गुरु – ३, ४, ५, ७, ९, १०, ११, १ भाि में हाे ताे क्रम से ५, १०, ४६, २१, १००; पाठान्ति से (३०), ४०, ६०, ३०; पाठान्ति से (५०) तक जातक का जीिन हाेता है। यद्यवप बालारिष्ट कथन में यि-ति कनतपय अरिष्ट-भंग याेग का भी कथन वकया गया है, वफि भी अागे विस्ताि से अरिष्ट भंग याेग का कथन अलग से वकया जा िहा है।
[२]
अरिष्ट भकपग – कथन संभत ू ारिष्टाख्याभकपगस्तेषां यथा भेिद्याेगाःै । तानागमताे िक्ष्य े प्रिानभूता यतस्ते᳡ि ॥ उडु पनतकृतरिष्टानां भकपगस्तािनिरुप्यते पूिम ष ् । समयक् शेषािामवप यथामतं ब्रह्मपूिाषिाम् ॥ इससे पूिष र्जन बालारिष्ट याेगाें का ििषन वकया है उन याेगाें की विफलता र्जन याेगाें से हाेती है उन याेगाें काे अागम से कहता हुाँ, क्ाेवकं हाेिाशास्त्र में िे याेग प्रिान हाेते हैं। उनमें भी सिषप्रथम चन्रमा द्वािा कृत अरिष्ट याेगाें की विफलता का ििषन किता हुाँ। पुनाः अिशशष्ट याेगाें की विफलता काे ब्रह्मादद शास्त्रकािाें के मत से कथन करुाँ गा। १.
पूिच ष न्र हाेन े पि अरिष्ट-विनाश सिैग ष ग ष नभ्रमिैदृषष्टश्चन्राे विनाशयनत रिष्टम् । अापूयम ष ािमूनतषयथ ष ा नृपाः सन्नयेदद्वे ् षम् ॥ चन्राः समपूित ष नुाः शुक्रेि ननिीक्षिताः सुहद्भागे । रिष्ट हिािां िेष्ठाेिातहिािां यथा िस्स्ताः ॥ यदद जन्म समय में चरमा पूिवष बमब परिपूिष हाे अाैि समस्त ग्रहाें से दृष्ट हाे ताे अरिष्ट नाश किता है, जैसे न्याय के विरु् चलने िालाें का िाजा नाश किता है। यदद पूिष वबमब से युत् चन्रमा, ममि के निांश में स्स्थत हाे ि शुक्र से दृष्ट हाे ताे अरिष्ट दूि किने िालाें में िेष्ठ हाेता है अथाषत अरिष्ट का विनाश किता है, जैसे िायु िाेगहिि िाेग में िस्ती वक्रया िेष्ठ हाेती है। लघुजातक में भी कहा हैचन्राः समपूित ष नुाः साैमयिषगताः स्स्थताः शुभस्थान्ताः । प्रकिाेनत रिष्टभकपग विशेषताः शुक्रसंदृष्टाः ॥ तथा जातकभिि मे भीपूिाःष कैिवििीपनतददषविचिैाः सिैाःष प्रदृष्टिस्तदा । रिष्टंहन्त्यथिा सुहृल्लिगताः सव्दीक्षिताे᳡नतप्रभाः ॥ िाेिाे िावप ननजाेच्चगाः शुभखगैाः शुक्रेिदृष्टस्तदा । रिष्टंयत् समुपागतं स तु हिेस्त्संहाे यथा क्षसन्िुिम् ॥ प्रकािान्ति से रिष्टभकपग याेगपिमाेच्च े शशशशितनुभग ृष त ु नयननिीक्षिताे हिनत रिष्टम् । समयस्गििेकिमनं कफवपिानां यथा दाेषम् ॥ चन्राः शुभिगषस्थाः िीिाे᳡वप शुभक्षे िताे हिनत रिष्टम् ।
जलममि महानतसािं जातीफलिल्कल िमथतम् ॥ (सािािली) यदद चन्रमा जन्म के समय में अपने पिमाेच्च में स्स्थत हाे अाैि शुक्र से दृष्ट हाे ताे अरिष्ट का नाश किता है, जैसे कफ-वपि के दाेष काे वििेक (जुलाब) ि िमन (उल्टी) नाश किता है। यदद िीि चन्रमा भी शुभग्रहाें के िगष में, शुभ ग्रह से दृष्ट हाे ताे अरिष्ट का नाश किता है; जैसे जायफल के णछलके (पाठान्ति दादडम) का
िाथ (काढ़ा) महानतसाि िाेग का विनाश किता है।
पुनाः प्रकािान्ति से अरिष्ट भकपग याेगसप्ताष्टमषष्ठस्थाः शशशनाः साैमया हिन्त्यरिष्टफलम् । पापैिममिचािााः कल्याििृत ं यथाेन्मादम् ॥ युक्ताः शुभफलदाययमभरिन्दुाः साैमयेननषहन्त्यरिष्टानन । १
तेषामेित्र्िश ं े लििविममिं घृत ं नयन िाेगम् ॥ यदद चन्रमा से ७, ८, ६ भाि में पापग्रह से िहहत शुभ ग्रह हाें ताे अरिष्ट का नाश किते हैं, जैसे उन्माद िाेग का नाश कल्याि घृत किता है। यदद चन्रमा शुभफल देने िाले शुभग्रह से युत हाे अाैि शुभग्रह के रेष्काि में हाे ताे अरिष्ट का नाश किता है। जैसे लिि से युत घृत नेििाेग (ददष) का, पाठान्ति से नमक गमष पानी में ममलाकि कान मे भिने से कान के िाेग या ददष का नाश किता है। जातकाभिि में कहा हैरिष्ट ननहन्युाः शुभदााः शाकपाात्पापैविषनास्ताष्टमशिुसस्ं थााः । शुभास्न्िताः सािुदृकाितीष पीयुषमुनतषाः शमयत्यरिष्टम् ॥ पुनाः प्रकािान्ति से अरिष्ट भकपग अापूयम ष ािमूनतष द्वाषदशभागे शुभस्य यदद चन्राः । रिष्टं नयनत विनाशं त-क्राभ्यासाे यथा गुदजम् ॥ साैमयिेि े चन्राे हाेिापनतना विलाेवकताे हस्न्त । रिष्टं न िीक्षिताे᳡न्यैाः कुलाकपगनाकुलममिान्यगता ॥ यदद जन्माकपग में चन्रमा पूिष वबमब से युत हाेकि शुभ ग्रह के द्वादशांश में हाे ताे अरिष्ट का विनाशक हाेता है, जैसे तक्र (मठ् ठा) के सेिन से गुदिाेग (बिासीि) नष्ट हाे जाता है। यदद चन्रमा शुभग्रह की िाशश में लग्नेश से दृष्ट हाे अाैि अन्य ग्रहाें से अदृष्ट हाे ताे अरिष्ट का नाशक हाेता है। जैसे कुलांगना पपुषरुष के संग से अपने कुल का नाश किती है। जातकाभिि में कहा हैलग्नेश दृष्टाः शुभिाशशयाताे नान्येक्षिताे ििनत रिष्टयाेगात् ॥ पुनाः प्रकािान्ति से क्रूिभिने शशाकपगाे भिनेशननिीक्षितस्तदुनिगेष । ििनत शशशुं प्रजातं कृपि इि िनं प्रयत्नेन ॥
जन्माधिपनतबषलिान् सुिमभिीक्षिताः शुभभ ै कप ष गम् । रिष्टस्य किाेनत सदा भीरुरिि प्राप्तसंग्रामाः ॥ यदद चन्रमा पापग्रह की िाशश में या पापग्रह के िगष में िाशश-स्िामी से दृष्ट हाे ताे जातक की ििा किता है, जैसे लाेभी पुरुष अपने िन की प्रयत्न से ििा किता है। यदद िाशश-स्िामी बली हाे अाैि शुभ ममि ग्रह से दृष्ट हाे, ताे अरिष्ट का नाश किता है, जैसे कायि पुरुष संग्राम में उपस्स्थत हाेकि भी वकसी काे नहीं मािता है। जातकाभिि में भी कहा है – स्स्थताः शशी क्रूिखगस्य िाशाै िाशीश्र्ििेिावप विलाेवकतश्च । तद्वगषगाे िा यदद तेन युक्ताः कुयाषदलं मकपगलमेि नान्यत् ॥ जन्माधिपाले बलिास्न्कल स्िात्साैमयैाः सुहृत्तद्भश्च ननिीक्ष्यमािाः ॥ पुनाः प्रकािान्ति से जन्माधिपनतलष ग्नदृ े ष्टाः सिैवष िषनाशयनत रिष्टम् । घृष्टाेषिविदलाभ्यां प्रत्येककृता᳡ञ्जनंयथा शुक्लम् ॥ यदद जन्मिाशश का अधिपनत लग्न में समस्त ग्रहाें से दृष्ट हाे ताे अरिष्ट का नाश किता है, जैसे काली ममचष अाैि बांस के काेमल ऊपिी भाग काे धघस कि प्रनतददन अााँख में लगाने से सफेदी (फूली) नष्ट हाे जाती है। जातकाभिि में कहा हैयद्वा तनुस्थाः सकलै ाः प्रदृष्टाे रिष्टं हह चन्रेि कृतं ननहस्न्त ॥ पुनाः प्रकािान्ति से स्िाेच्चस्थस्थस्िगृह᳡े थिावप सुहृदां िगे᳡ष वप साैमये᳡थिा समपुिाःष शुभिीक्षिताः शशििाे िगेष स्िकीये᳡थिा । शिूिामिलाेकनेन पनतताः पापैियुक्तेक्षिताे रिष्टं हस्न्त सुदस्ु तिं ददनपनताः प्रले यिाशशं यथा ॥ यदद पूिष वबमब चन्रमा अपनी उच्च िाशश में िा अपनी िाशश िाशश (ककष) में, या ममि िाशश के षड् िगष में अथिा शुभग्रह के िगष में िा अपने िगष में शुभग्रह से दृष्ट हाे अाैि अपने शिु िा पापग्रह से अदृष्ट हाे या साथ में न हाे ताे अरिष्ट का विनाश किता है, जैसे सूयष सुदस्ु ति प्राले यिाशश (पाला) काे नष्ट किता है। पुनाः प्रकािान्ति से अरिष्टभकपग िाशशनाे᳡न्त्ये बुिक्षसतयाेिाये क्रूिेषि ु ाक्पताै गगने । दुरितं चातुमथषकममि नश्यनत मुननकुसुमिसनस्यैाः ॥ लग्नेश्विस्य चन्राः षस्ट् िदशायहहबुकेषु शुभदृष्टाः । िपयनत समस्तरिष्टान्यनुयाते नृपनत िाेि इि ॥ एकाे जन्माधिपनताः परिपूिब ष लाः शुभदृ ै षष्टाः ।
हस्न्त ननशाकिरिष्टं व्याघ्र इि मृगान्िने मिाः ॥ यदद चन्रमा से बािहिें भाि में बुि िा शुक्र हाे अाैि गयािहिें भाि में पापग्रह हाें एिं दशम भाि में गुरु हाें ताे अरिष्ट का नाश हाेता है, जैसे मुननकुसुम (अगस्त्य पुष्प) के िस काे सूंघने से कदठन चतुथष ददन में अाने िाले ज्िि का नाश हाेता है। यदद लग्न-स्िामी से ६, ३, १०, ११, ४ में चन्रमा शुभ ग्रह से दृष्ट हाे ताे सब अरिष्टाें का नाश हाेता है। जैसे िाजा की सेना के पीछे चलने िाले मनुष्य काे काेई कष्ट नहीं हाेता। यदद एक ही िशश-स्िामी बलिान, शुभ ग्रह से दृष्ट हाे ताे चन्रकृत् अरिष्ट का नाश किता है। जैसे जंगल मेम उन्मि बाघ हरििाें का नाश किता है। जातकाभिि में कहा हैिाचामिीशाे दशमे शशाकपााद्व्यये ज्ञशुक्राै च खलाः वकलाये । विलग्नपा ियमबुदृशान्त्यलाभे शुभक्षे ितेन्दुश्च हिेत्स रिष्टम् ॥ पुनाः प्रकािान्ति से अरिष्टभकपग पापा यदद शुभिगेष साैमयेदृषष्टा शुभांशिगषस्थैाः । नन नस्न्त तथा रिष्टं पनतं वििक्ता यथा युिनताः ॥ यदद जन्मकाल में सब पापग्रह शुभग्रह के षड् िगष में हाें, शुभग्रह के निमांशाें के िगाेों में स्स्थत शुभ ग्रहाें से दृष्ट हाें ताे अरिष्ट का नाश किते हैं, जैसे वििक्ता स्त्री अपने पनत काे नष्ट किती है। (यह पद्य लघुजातक ८ अध्याय १२ िें श्लाेक में पदठत है।) २.
िाहु से अरिष्टभंग याेग िाहुश्वस्त्रषष्ठलाभे लग्नात् साैमयैननषिीक्षिताः सद्याः । नाशयनत सिषदरु ितं मारुन इि तूलसंघातम् ॥ यदद जन्म के समय लग्न से ३, ६, ११ भाि में िाहु शुभ ग्रह से दृष्ट हाे ताे सब अरिष्टाें काे शीघ्र नष्ट किता है, जैसे िायु रूई के ढ़ेि काे नष्ट किती है। (यह पद्य लघुजातक ८ अध्याय १३ िें श्लाेक में पदठत है।) पुनाः अरिष्टभकपग याेग शीषाेद ष येष ु िाशशषु सिैग ष ग ष नाधििाक्षसमभाः सूताै । प्रकृनतस्थैश्चारिष्टं विवक्रयते घृतममिायग्नष्ठम् ॥ यदद जन्मकाल के समय समस्त ग्रह शीषाेषदय (क्षसंह, कन्या, ममथुन, तुला, िृश्चश्चक, कुमभ) िाशश में मागीष हाें ताे जातक के अरिष्ट का नाश हाेता है, जैसे अयग्न में छाेडा हुअा घृत नष्ट हाे जाता है। (यह पद्य लघुजातक ८ अध्याय १४ िें श्लाेक में पदठत है।) पुनाः प्रकािान्ति से तत्काले यदद विजयी शुभग्रहाः शुभननिीक्षिताे िगेष । तजषयनत सिषरिष्टं मारुत इि पादपान् प्रबलाः ॥
यदद जन्मकुण्डली में काेई भी शुभग्रह यु् में विजयी हाे एिं शुभग्रह से दृष्ट शुभिगष में हाे ताे अिश्य ही समस्त अरिष्ट का नाशक हाेता है, जैसे प्रबल िायु िृिाें काे नष्ट किती है। (यह पद्य लघुजातक ८ अध्याय १५ िें श्लाेक में पदठत है।) पुनाः प्रकािान्ति से परिविष्टाे गगनचिाः क्रूिैश्च विलाेवकताे हिनत पापम् । नानं संमन्नहहतानां कृते यथा भास्किग्रहिे ॥ स्नियलिमृदप ु वनभाजाो जलदाि ताव खोचराैः िस्ताैः । स्वस्ााैः िणाच्च ररष्टों िमयततरजाो यााम्बुिारािैः ॥ यदद औररष्टकारक ग्रह पकसी ग्रह सो धघरा हुऔा (युत) पापाग्रह सो दृष्ट हाो ताो औररष्ट का नाि करता ह, जसो सूयग्र क हण को समय कुरुिोि मोों िान करनो सो पाप का नाि हाोता ह। यदद जधमकाल मोों िीतल मोंद सुगधि वायु ताा मोघ हाोों औार ग्रह समुदाय बली व तनमकल पबम्ब हाोों ताो िणभर मोों औररष्ट का िमन हाोता ह, जसो जलिारा िुभल समुदाय का िमन करती ह। जातकाभरण मोों कहा हकश्चिदग्रहिोत्पररवोषगामी क्रूरैः प्रददष्टैः पकल ररष्टभ्गैः । रजाोपवहीनों गगनों च खस्ााैः स्वस्ाा भवोयज ु ल क दा सुनीलाैः मधदातनलािोहामला मुहूताकैः प्रसूततकालो पकल ररष्ट भ्गैः ॥ पुनैः प्रकाराधतर सोउदयो चागस्त्यमुनैःो सप्तषीकणाों मरिभच पुिाणाम । सवाकररष्टों नश्यतत तम इव सूयाोद क यो जगतैः ॥ औजवृषकपककपवलग्नो रितत राहुैः समस्तपीडाभ्यैः । पृथ्वीपततैः प्रसन्नैः कृतापरािों याा पुरुषम ॥ जजस जातक का जधम औगस्त मुतन या मरिभच औादद सप्तपषकयाोों को उदय-समय मोों हाोता ह, उसको समस्त औररष्टाोों का नाि हाोता ह, जसो सूयक को उदय हाोनो पर सोंसार का औधिकार नष्ट हाो जाता ह। राहुजतनत औररष्टभ्गयाोग यदद जधमकाल मोों मोष, वृष या ककक लग्न मोों राहु हाो ताो समस्त औररष्टाोों सो रिा करता ह, जसो राजा प्रसन्न हाोकर औपराि करनो वालो की रिा करता ह। जातकाभरण मोों कहा हकुम्भयाोतनमुनीनाों चोददु गमो जननों भवोत । पवलीयतो तदा ररष्टों नून ों लािोव वतिना ॥ वृषाजककाकख्यपवलग्नसोंस्ााो राहुभकवदो दष्टपवनािकताक । िुभाि याोगा बहवाो यददस्युस्ताापप ररष्टों पवलयों प्रयातत ॥ गुरु-िुक्र कोधर मोों हाो ताो औररष्टभ्ग गुरुिुक्रा च कोधरस्ाा जीवोाषकितों नरैः ।
गृहातनष्टों हहनस्त्यािु चधरातनष्टों ताव च ॥ यदद जधमचक्र मोों गुरु-िुक्र कोधर मोों हाोों ताो सा वषक का जीवन हाोता ह ताा ग्रह जधय व चधरजधय औतनष्ट िीघ्र नष्ट हाोता ह। जातकाभरण मोों कुछ पवपरित कान पकया हवृहस्पततस्तु्गताो पवलग्नो भृगाोैः सुतैः कोधरगतैः ितायुैः ॥
[३]
अायुदाषय-सािन मानव जीवन मोों औायु-पवचार बहुत ही महत्व का ह। महपषक जभमनी औपनो जभमनी-सूि को हातीय औ्यायस्ा सम्पूणक प्राम पाद औायु का ही तनणकय पकया गया ह। पपण्डायु, तनसगक-औायु औोंिायु को औततररः औायु-सािन की रितत महपषक परािर नो जाो दी ह , वह महपषक जभमनी ाारा प्रततपाददत औायु-सािन का ही रुपाधतर ह। तनैःसन्धदयलि रुप सो यह कहना सम्भव नहीों ह पक पकसनो पकसका रुपाधतर पकया ह। महपषक परािर की िली पाराद्धणक ह , पकधतु महपषक जभमनी की सूि-िली ह। इस प्रकार िली मोों पााकक हाोनो पर पवषयवस्तु मोों एकरूपता ह।
१.
महपषक परािर का कान तनम्नवतब्रवीम्याापरों चापप समाकणकयतददजैः । (नाोटैः औािा द) लग्नोिरधुतरस्तदवत ििा्कितनतस्ताा ॥ स्पष्टमायुैः कभचदुः ों हाोरालग्नों पवलग्नतैः । ति तु प्रामाो याोगाो लग्नरधुयतैः स्मृतैः ॥ हातीयिधरितनताो लग्नहाोरपवलग्नतैः । तृतीय औायुषाो याोगाो पवज्ञोयाो वाोवि ु ैः सदाैः ॥ चरभ सोंन्स्ाता ाा चोद्ीिकमायुस्तदा स्मृतम । न्स्ारो हाभो ताक कस्तिाप्ग्यायुस्तदोव हह ॥ चरो न्स्ारो ताककाो म्यमायुस्तदा भवोत । उमा हाभो प्रयाता चोत तदाप्ग्यायुरस्तु म्यमम ॥ चरो त्वोको हाभो चाधयाो न्स्ारगा चोदभ ु ावपप । तदा स्वल्पायु रो व स्याजन्धमनाो नाि सोंियैः ॥ याोगाभ्याों वा तिभभयाोग क तनकष्पन्नों नोयमोव तत । ियाणाों तु पवसोंवादो हाोरालग्नपवलग्नतैः ॥ पविातना मदोवापप चधरापककजतनतों ताा । कक्ष्याया सवृासवृद्धी च भचधतनीयो प्रयः तैः ॥ शिष्य काो सम्बाोधित करतो हुयो महपषक कह रहो हों पक लग्नोि, औष्टमोि, ितन, चधर ताा लग्न एवों हाोरा लग्न को ाारा कई नो सािन पकया ह। (१) लग्नोि-औष्टमोि सो प्राम याोग, (२) ितन-चधर सो दूसरा याोग, (३) लग्न-हाोरालग्न सो तीसरा याोग कहा ह। (१) दाोनाोों चर राशिस्ा हाो ताो दीघाकयु,
(२) एक न्स्ार ताा दूसरा हास्वभाव मोों हाो ताो भी दीघाकयु, (३) एक चर ताा दूसरा न्स्ार मोों हाो ताो म्यायु, (४) दाोनाोों हास्वभाव मोों हाोों ताो भी म्यायु, (५) एक चर मोों दूसरा हास्वभाव मोों या दाोनाोों न्स्ार राशि मोों हाोों ताो तनिय ही औल्पायु याोग समझना चाहहए। (६) दाो या तीनाोों याोगाोों सो तनष्पन्न औायु ही माधय हाोता ह। तीनाोों याोगाोों मोों पवषमता हाो औााकत तीनाोों सो तीन प्रकार की औायु औावो ताो लग्न व हाोरालग्न सो ससद्ध औायु काो ग्रहण करना चाहहए। परधतु इस न्स्ातत मोों लग्न या सप्तम मोों चधरमा हाो ताो हातीय याोग (ितन, चधर) सो ससद्ध औायु ही मानना चाहहए। कक्ष्या-सवृास वा वृद्धद्ध का भी पवचार करना चाहहए। महपषक जभमनी को औनुसार औायुष्य का पवचार(१) लग्नोि औार औष्टमोि सो (२) लग्न-राशि औार चधर-राशि सो (यदद लग्न औावा सप्तम मोों चधरमा हाो, औधयाा ितन-राशि औार चधर-राशि सो) ताा (३) लग्न औार हाोरा-लग्न सो करना चाहहए। ‘पपतृलाभगो चधरो मधदचधराभ्याम’ इस सूि को औनुसारऔगर चधरमा लग्न या सप्त मोों हाो ताो ितन व चधर पर सो समागत औायु का ही ग्रहण करना चाहहए। ग्रधााधतर मोों भी – औादा लग्नाष्टमोिाभ्याों याोगमोकों पवभचधतयोत । जधमहाोरापवल नाभ्याों हातीयों पररभचधतयोत ॥ तृतीयों ितनचधराभ्याों भचधतयोत्त ु हाजाोत्तम । याोगियोण याोगाभ्याों ससद्धों यद ग्राह्यमोव तत ॥ याोगियपवसोंवादो लग्नहाोरापवलग्नतैः । लग्नो वा सप्तमो चधरो भचधतयोधमधदचधरतैः ॥ स्पष्टााक औायुबाोिक-चक्र दीघाकय ु
म्यायु
औल्पायु
औष्टमोि चर राशि मोों
औष्टमोि न्स्ार राशि मोों
औष्टमोि हास्वभाव राशि मोों
लग्नोि हास्वभाव राशि मोों
औष्टमोि चर राशि मोों
औष्टमोि न्स्ार राशि मोों
औष्टमोि न्स्ार राशि मोों
औष्टमोि हास्वभाव राशि मोों
औष्टमोि चर राशि मोों
लग्नोि चर राशि मोों लग्नोि न्स्ार राशि मोों लग्नोि हास्वभाव राशि मोों
लग्नोि चर राशि मोों लग्नोि न्स्ार राशि मोों
लग्नोि हास्वभाव राशि मोों
लग्नोि चर राशि मोों लग्नोि न्स्ार राशि मोों
लग्नोि हास्वभाव राशि मोों
दीघक, म्य, औल्प औायु को भोदैः तीनाोों प्रकार सो दीघाकयु प्राप्त हाोनो पर १२० वषक, दाो प्रकार सो दीघाकयु मोों १०८ वषक औार एक प्रकार सो दीघाकयु हाोनो पर ९६ वषक समझना चाहहए। इसी तरह तीनाोों प्रकार सो म्यायु प्राप्त हाोनो पर ८० वषक, दाो प्रकार सो म्यायु मोों ७२ वषक औार एक प्रकार सो म्यायु हाो ताो ६४ वषक ग्राह्य हाोतो हों। औल्पायु तीनाोों प्रकार सो प्राप्त हाो ताो ३२ वषक, दाो प्रकार सो औल्पायु मोों ३६ वषक औार एक प्रकार सो औल्पायु हाो ताो ४० वषक समझना चाहहए। इस प्रकार प्राप्त दीघक, म्य ताा औल्पायु मोों ४०, ३६, ३२ खण्ड हाोतो हों, जजनको ाारा स्पष्ट औायुसािन करना चाहहए। स्पष्टााक चक्र दीघाकयु
एक याोग ९६ वषक
दाो याोग १०८ वषक
तीन याोग १२० वषक
म्यायु
एक याोग ६४ वषक
दाो याोग ७२ वषक
तीन याोग ८० वषोक
औल्पायु
तीन याोग ३२ वषक
दाो याोग ३६ वषक
एक याोग ४० वषक
खण्ड
३२
३६
४०
औायु-स्फुटीकरण की रितत याोों ताो जातक-तत्त्व मोों औायुदाकयानयन १२ प्रकार सो पकया गया ह। २.